Tuesday 23 May 2017

Hindu Dharm Darshan 67



ग़द्दार
आजकल मुसलमानों को ग़द्दार कहने का फैशन बन गया है. 
नोट बंदी ने साबित कर दिया है कि ग़द्दार कहाँ बसते हैं. 
सिर्फ दिल्ली में चांदी सोने और जवाहरात की एक हज़ार दुकानें ताला बंदी की हालात में हैं , काला बाजारी, टेक्स चोरी सब इनके कारनामे हुवा करते हैं. 
जिनमें मुसलमान कोई नहीं. 
बड़ी बड़ी कंपनियों  के मालकान में सब ग़ैर मुस्लिम हैं. 
भारत माता की जय बोलने और बुलवाने वाले , 
इनको मिलने वाली सज़ा मुसलामानों को झेलनी पड़ती है. जनता इनके जुर्म को भुला देती है.यही लोग देश भगति के नाम पर मुज़फ्फ़र नगर वीरान कर दिया करते है.

ग़द्दार
ग़द्दार वह लोग हैं जो देश हित में टेक्स नहीं देते, वह नहीं जो देश को माता या पिता नहीं मानते. 
देश सीमा बंदी का नाम है जो कभी भारत होता है तो कभी 
पाकिस्तान हो जाता है 
तो कभी बांगला देश. 
देश धरती का सीमा बंद एक टुकड़ा होता है जिसका निर्माण वहां  के लोगों के आपसी समझौते से हुवा करता था, फिर राजाओं महाराजाओं और बादशाहों की बाढ़ आई जनता ने उनके अत्याचार झेले. आज जम्हूरियत आई तो बादशाहत की जगह "देश भगति" ने लेली. 
देश भगति की मूर्ति बना कर अत्याचार को नया स्वरूप दे दिया गया है. 
सरकारी शायर देश प्रेम के गुनगान में लग गए. 
धूर्त टैक्स चोर भारत माता की पूजा हवन में लग गए.
देश की हिफाज़त दमदार सेना करती है जिनका खर्च देशवासियों द्वारा टेक्स भर कर ही किया जा सकता है, देश की ख़ाली पोली पूजा करके नहीं.
देश के असली ग़द्दार सब नंगे हो कर बिलों में घुसे हुए हैं. इनकी दुकानों में ताले लगे हुए हैं. 
इनके जुर्म की सज़ा गरीब और बेबस जनता अपनी खून पसीने की कमाई को लेने के लिए बैंक के कतारों में दिनों रात ख़ड़ी हुई है.
देश के असली और ऐतिहासिक ग़द्दार हमेशा बनिए हुवा करते हैं जिनका अपनी बिरादरी के लिए सन्देश हुवा करता है - - -बनिए -- बनिए - बनिए कुछ बनिए , दूसरों को बिगड़ कर खुद बनिए. इसी निज़ाम को पूँजी वाद कहते हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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