Monday 17 July 2017

Soorah qausar 108

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह कौसर १०८  - पारा ३० 
(इन्ना आतयना कल कौसर)


ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

आज कल जिहाद को लेकर बहसें चल रही हैं. पिछले दिनों ndtv पर इस सिलसिले में एक तमाशा देखने को मिला. इसमें मुस्लिम बाज़ीगर आलिमों और सियासत दानों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, लग रहा था कि इस्लाम का दिफ़ा कर रहे हों, बजाए इसके कि वह सच्चाई से काम लें जिससे मुस्लिम अवाम का कुछ फ़ायदा हो. जिहाद के नए नए नाम और मअनी तराशे गए, 
इसका हिंदी करण किया गया कि जिहाद प्रयास और प्रयत्न का नाम है, यज्ञं और परितज्ञ को जिहाद कहा जाता है. उन सभों की लफ्ज़ी मानों में यह दलीले सही थीं मगर जिहाद का और उसके अर्थ का इस्लामी करण किया गया है, काश कि ऐसा होता जैसा कि यह जोगी बतला रहे थे. 
क़ुरआन में जिहाद के फ़रमान हैं, 
"इस्लाम के लिए जंगी जिहाद करो, गैर मुस्लिम और ख़ास कर काफ़िरों से इतनी जिहाद करो कि उनका वजूद न बचे." 
सैकड़ों आयतें इस संदभ में पेश की जा सकती हैं. इस सन्दर्भ में. "काफ़िर वह होते हैं जो कुफ्र करते है और एकेश्वर को नहीं मानते तथा मूर्ति पूजा करते है. भारत के हिन्दू 'मिन जुमला काफ़िर' हैं, 
इसको मुसलामानों के दिल ओ दिमाग से निकाला नहीं जा सकता. 
खैबर की जंग इसकी तारीखी गवाह है, जिसमें खुद मुहम्मद शामिल थे. ये जिहाद इतनी कुरूर थी कि इसके बयान के लिए इन ओलिमा के पास हिम्मत और जिसारत नहीं कि यह टीवी चैनलों के सामने बयान कर सकें. इसी जंग में मिली मज़लूम सफ़िया, मुहम्मद की बीवियों में से एक थी जिसे मजबूर होना पड़ा कि अपने बाप, भाई, शौहर और पूरे खानदान की लाशों के बीच मुहम्मद के साथ सुहाग रात मनाए. 
अलकायदा, तालिबान और अन्य जिहादी तंजीमें सही मअनो में क़ुरआनी मुसलमान हैं जो खैबर को अफगानिस्तान के कुछ हिस्से में मुहम्मदी काल को दोहरा रहे हैं. अल्लाह कहता है - - -

"बेशक हमने आपको कौसर अता फ़रमाई,
सो आप अपने परवर दिगार की नमाज़ें पढ़िए,
और क़ुरबानी कीजिए, बिल यक़ीन आपका दुश्मन ही बे नाम ओ निशान होगा"
सूरह कौसर १०८ - पारा ३० आयत (१-३) 
नमाज़ियो !
नमाज़ से जल्दी फुर्सत पाने के लिए अक्सर आप मंदार्जा बाला छोटी सूरह पढ़ते हो. इसके पसे-मंज़र में क्या है, जानते हो?
सुनो,खुद साख्ता रसूल की बयक वक़्त नौ बीवियाँ थीं. इनके आलावा मुताअददित लौंडियाँ और रखैल भी हुवा करती थीं. जिनके साथ वह अय्याशियाँ किया करते थे. उनमें से ही एक मार्या नाम की लौड़ी थी, जो हामला हो गई थी. मार्या के हामला होने पर समाज में चे-में गोइयाँ होने लगी कि जाने किसका पाप इसके पेट में पल रहा है? बात जब ज्यादः बढ़ गई तो मार्या ने अपने मुजरिम पर दबाव डाला, तब मुहम्मद ने एलान किया कि मार्या के पेट में जो बच्चा पल रहा है, वह मेरा है. ये एलान रुसवाई के साथ मुहम्मद के हक में भी था कि खदीजा के बाद वह अपनी दस बीवियों में से किसी को हामला न कर सके थे गोया अज सरे नव जवान हो गए(अल्लाह के करम से). बहरहाल लानत मलामत के साथ मुआमला ठंडा हुआ. 
इस सिलसिले में एक तअना ज़न को मुहम्मद ने उसके घर जाकर क़त्ल भी कर दिया. 
नौ महीने पूरे हुए, मार्या ने एक बच्चे को जन्म दिया, मुहम्मद की बांछें खिल गई कि चलो मैं भी साहिबे औलादे नारीना हुवा. 
उन्होंने लड़के की विलादत की खुशियाँ भी मनाईं. 
उसका अक़ीक़ा भी किया, दावतें भी हुईं. 
उन्हों ने बच्चे का नाम रखा अपने मूरिसे आला के नाम पर 
'इब्राहीम'
इब्राहीम ढाई साल की उम्र पाकर मर गया, एक लोहार की बीवी को उसे पालने के किए दे दिया था, जिसके घर में भरे धुंए से उसका दम घुट गया था. 
खुली आँखों से जन्नत और दोज़ख देखने वाले और इनका हाल बतलाने और हदीस फ़रमाने वाले अल्लाह के रसूल के साथ उनके मुलाज़िम जिब्रील अलैहिस्सलाम ने उनके साथ कज अदाई की और अपने प्यारे रसूल के साथ अल्लाह ने दगाबाज़ी कि उनका ख्वाब चकनाचूर हो गया. 
मुहल्ले की औरतों ने फब्ती कसी - - -
" बनते हैं अल्लाह के रसूल और बाँटते फिरते है उसका पैगाम, बुढ़ापे में एक वारिस हुवा, वह भी लौड़ी जना, उसको भी इनका अल्लाह बचा न सका." 
मुहम्मद तअज़ियत की जगह तआने पाने लगे. बला के बेशर्म और ढीठ मुहम्मद ने अपने हरबे से काम लिया, और अपने ऊपर वह्यी उतारी जो मंदार्जा बाला आयतें हैं. अल्लाह उनको तसल्ली देता है 
कि तुम फ़िक्र न करो मैं तुमको, (नहीं! बल्कि आपको) इस हराम जने इब्राहीम के बदले जन्नत के हौज़ का निगरान बनाया, आकर इसमें मछली पालन करना. 
अच्छा ही हुवा लौंडी ज़ादा गुनहगार बाप का बेगुनाह मासूम बचपन में जाता रहा वर्ना मुहम्मदी पैगम्बरी का सिलसिला आज तक चलता रहता और पैगम्बरे आखिरुज्ज़मां का ऐलान भी मुसलमानों में न होता. 





जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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