Thursday 21 September 2017

Hindu Dharm Darshan 93



गीता और क़ुरआन
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>बुद्धिमान मनुष्य दुःख के कारणों से भाग नहीं लेता 
जोकि भौतिक इन्द्रियों के संसर्ग से उत्पन्न होते हैं.
हे कुंती पुत्र ! 
ऐसे भोगों का आदि तथा अंत होता है.
अतः चतुर व्यक्ति उनमे आनंद नहीं लेता.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -5  - श्लोक -22 

>भौतिक इन्द्रियों के संसर्ग से उत्पन्न सुख, दुःख कैसे हो गए ? 
इस सुख से वंचित व्यक्ति दुखी होता है, 
ऐसा भगवान् कहते हैं और कहते हैं 
इस दुःख से पलायन नहीं करना चाहिए. 
सवाल यह है कि ऐसे दुःख अपने लिए पैदा ही क्यों किए जाएं ?
सुख को त्याग कर. 
भगवान् कहते हैं 
"ऐसे भोगों का आदि तथा अंत होता है." 
आदि तथा अंत तो सभी का होता है चाहे वह भोग हो अथवा अभोग. 
व्यक्ति को चतुर होना चाहिए या सरल ? हे भगवन !
*
और क़ुरआन कहता है - - - 
>"बिल यकीन जो लोग कुफ्र करते हैं, 
हरगिज़ उनके काम नहीं आ सकते, 
उनके माल न उनके औलाद, 
अल्लाह तआला के मुकाबले में, ज़र्रा बराबर नहीं 
और ऐसे लोग जहन्नम का सोखता होंगे।"
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (१०)

भगवान् और अल्लाह की बातें एक जैसी ही हैं, 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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