Monday 4 September 2017

Quraan ke jhoot aur taureti sadaqat Q6

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार बार आता है , जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है। पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें।  मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं , उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं। दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका  विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ , इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है। 
क़ुरआन के झूट - - - और तौरेती सदाक़त  

योसेफ़ / यूसुफ़ / जोज़फ़ 
Part 2


यूसुफ़ की ताबीर और तदबीर से बादशाह बहुत मुतास्सिर हुवा और यूसुफ़ का मुक़दमा तलब किया जोकि दो सालों से चल रहा था। पूरा मुआमला नए सिरे से पेश किया गया , कुर्ते का दमन पीछे की तरफ का चाक था इस लिए ज़ुलैख़ा को मुजरिम पाया गया जिसे खुद ज़ुलैखा ने तस्लीम कर लिया। यूसुफ़ बाइज़्ज़त बरी हुवा और उसने फ़िरऔन के दिल में अपना मुक़ाम बना लिया। फ़िरऔन ने खुश होकर यूसुफ़ को वज़ीर-खज़ाना मुक़र्रर किया , इसे सारे मिस्र का दौरा कराया और उसे "साफ़नत्त पीयूऊह " के लक़ब से नवाज़ा।  यूसुफ़ की शादी इमाम पोटी फियरऊ की बेटी आसनत से हुई। 
यूसुफ़ की ताबीर के मुताबिक़ सात साल खरे उतरे , इतना गल्ला पैदा हुवा कि जिसकी नाप तौल रखना मुमकिन न था।  उसके बाद मुल्क और आस-पास ऐसा क़हत पड़ा कि लोग दाने दाने को मुहताज हो गए। फ़िरऔन ने यूसुफ़ को पूरा अख्तियार दे रखा था कि वह ग़ल्ले को जिस तरह चाहे रिआया को बाटे या बाहर वालों को बेचे। यूसुफ़ की हिकमत-अमली से बादशाह का खज़ाना लबरेज़ हो गया था।  मुल्क की सारी ज़मीन बादशाह की मिलकियत हो गई थी। 

यूसुफ़ के वतन कनान को भी कहत का सामना करना पड़ा जहाँ यूसुफ़ का परिवार रहता था। 
याक़ूब ने अपने कुछ बेटों को भी अनाज लेने के लिए मिस्र भेजा। यूसुफ़ से बहैसियत वज़ीर जब इन भाइयों से आमना सामना हुवा तो उसने इन सभों को पहचान लिया मगर यूसुफ़ को कोई भी न पहचान सका। उनके वहमो-गुमान में भी न था कि जिस भाई को उन्हों ने अंधे कुवें में डाल  कर मार दिया था , वह इस वक़्त हुक्मरान-मिस्र होगा। यूसुफ़ ने अपने भाइयों पर जासूसी का इलज़ाम लगा कर गिरफ्तार करा लिया और तफ्तीश के बहाने अपने सारे कुनबे की जानकारी ली।
  इस तरह यूसुफ़ को इसके बाप और भाई बिन्यामीन की खैरियत मिली। इसके बाद यूसुफ़ ने समऊन को हथकड़ी लगा कर बाकियों को इस शर्त पर छोड़ा कि अगली बार वह बेन्यामीन को साथ लेकर आएँ। युसूफ ने अनाज की कीमत भी ग़ल्ले के बोरियों में छुपा कर उन्हें वापस कर दिया। 
बेटे कनान आकर पूरी दास्तान बाप याक़ूब को सुनते हैं समऊन को यर्गः माल बनाने और बिन्यामीन को साथ लाने की शर्त को याक़ूब न मानते हुए कहता है - - -
तुम लोग यूसुफ़ को भी इसी तरह की साज़िश करके मार चुके हो , अब उसके भाई को भी मारना चाहते हो ?
बहुत यक़ीन दिलाने के बाद याक़ूब उनकी बात मान जाता है। 
कुछ दिनों बाद बेन्यामिन को साथ लेकर सभी भाई मिस्र आते हैं। यूसुफ़ अपने चहीते भाई बेन्यामिन को देखता है तो देखता ही रह जाता है , भाग कर गोशा-एतन्हाई में चला जाता है और खूब रोता है। इस बार यूसुफ़ सभी भाइयों की दावत करता है और उन्हें ठीक से परखता है कि आया इसके सभी भाई सुधर गए हैं ? इसके बाद वह सारे भेद खोल देता है कि वह कोई और नहीं , तुमहारा भाई यूसुफ़ है। इसकी खबर बादशाह तक पहुंच जाती है कि यूसुफ़ के भाई आए हुए हैं। वह उनको इजाज़त देता है कि सभी अपने खानदान के साथ मिस्र आ कर बस जाएं। वह सभी कनान जाकर माँ बाप को और घर के सभी साज़ व् सामान लेकर मिस्र में आकर आबाद हो जाते हैं। 
इस वक़्त यूसुफ़ के खानदान में कुल ७० नफ़र थे।   
यूसुफ़ की इमान दारी , वफ़ा दारी और हिकमत-ए -अमली से बादशाह इनता खुश था कि उसने मिस्र की निजामत भी यूसुफ़ को सौंप दी।  नतीजतन यूसुफ़ बादशाह को पक्का वफादार और फ़रमा बरदार बन गया। वह उसे अपने बाप का दर्जा देता था। यूसुफ़ ने जिस दूर अंदेशी से अनाज का ज़ख़ीरा बनाया , बादशाह के लिए एक वरदान था। इसके ज़रिए मुल्क और ग़ैर मुल्क की भारी दौलत बादशाह के ख़ज़ाने में आ गई थी। अवाम के पास फूटी कौड़ी भी नहीं बची कि वह ज़िंदा रह सकें। 
यूसुफ़ ने बड़ी बेरहमी के साथ अवाम की ज़मीनें बादशाह के नाम करा लीन और उनको बादशाह का मज़दूर बना लिया। ज़मीन इस शर्त पर लोगों में बाटी गईं कि पैदावार को पाँचवाँ हिस्सा बादशाह का होगा। 
यूसुफ़ का बनाया हुवा यह क़ानून हज़ारों साल से दुन्या में रायज है  

उसने अपने देखे हुए ख्वाब "कि सूरज चाँद और ग्यारह सितारे उसको सजदा कर रहे हैं। " की ताबीर को अपने बाप और भाइयों के सामने फिर दोहराई। 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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