Thursday 12 October 2017

Hindu Dharm Darshan 101



गीता और क़ुरआन
अर्जुन पूछते हैं  - - -
>हे मधु सूदन !
आपने जिस योग पद्धति का संक्षेप में वर्णन किया है,
वह मेरे लिए अव्यवहारिक तथा असहनीय है, 
क्योकि मन चंचल तथा अस्थिर है.
**
हे कृष्ण ! 
चूँकि मन चंचल, उच्छूँकल, हठीला तथा अत्यन्त बलवान है. 
अतः इसे मुझे वश में करना, 
वायु को वश में करने से भी अधिक कठिन लगता है.   
*** 
भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
हे महाबाहु कुंती पुत्र ! 
निःसंदेह चंचल मन को वश में करना अत्यंत कठिन है,
किन्तु उपयुक्त अभ्यास द्वारा तथा विरक्ति द्वारा ऐसा संभव है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -6  - श्लोक -33-34-35 

>अर्जुन की दलील बिकुल सहीह है. 
ओशो रजनीश कहता है , 
कोई माई का लाल अपने मन को एक मिनट से ज्यादा स्थिर नहीं कर सकता. जब कि उसका काम ही था कि ध्यान में डुबोना. 
जब मानव मस्तिष्क ध्यान में जा ही नहीं सकता तो उसकी कोशिश क्यों ?
मेरा दिल कुछ घंटों के लिए दिमाग़ से अलग करके एक प्लेट में रखा रहा, 
उन घंटों की कोई याद दाश्त मेरे पास नहीं है. 
अर्थात मेरा शरीर घंटों ध्यान और योग युक्त था, 
इससे बड़ा योग क्या हो सकता है ? 
सवाल उठता है कि विचार मुक्त शरीर ने कौन सी उपलब्धियाँ उखाड़ ली. 
हमारी विडंबना यह है कि हम गुरु के दिए हुए उत्तर पर सवाल नहीं करते 
क्योंकि हम उसका ज़रुरत से ज्यादह सम्मान करते हैं, उससे डरते है.

और क़ुरआन कहता है - - - 
मुहम्मद अपनी उम्मत को इसी तरह समझाते हैं - - -
>" और मैं इस तौर पर आया हूँ कि तस्दीक करता हूँ इस किताब को जो तुहारे पास इस से पहले थी,यानि तौरेत की. और इस लिए आया हूँ कि तुम लोगों पर कुछ चीजें हलाल कर दूं जो तुम पर हराम कर दी गई थीं और मैं तुम्हारे पास दलील लेकर आया हूँ तुम्हारे परवर दिगर कि जानिब से. हासिल यह कि तुम लोग परवर दिगर से डरो और मेरा कहना मानो"
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (50) 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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