Saturday 25 November 2017

अलबकर -२ पहला पारा- अलबकर -२ पहला पारा- आठवीं किस्त

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर 
क़िस्त 8 (आख़ीर)

अज़ीयत पसंद हज़रात चाहें तो कुरआन उठा कर आयत २६१ देखें. 
सवाल उठता है हम ऐसी बातें वास्ते सवाब पढ़ते हैं? 
दिन ओ रात इन्हें दोहराते हैं, 
क्या अनजाने में हम पागल पन की हरकत नहीं करते ? 
 हाँ ! 
अगर हम इसको अपनी जबान में बआवाज़ बुलंद दोहराते रहें. 
सुनने वाले यक़ीनन हमें पागल कहने लगेंगे और इन्हें छोडें, 
कुछ दिनों बाद हम खुद अपने आप को पागल महसूस करने लगेंगे. 
आम तौर पर मुसलमान इसी मरज़ का शिकार है जिस की गवाह इस की मौजूदा तस्वीर है. 
वह अपने मुहम्मदी अल्लाह का हुक्म मान कर ही पागल तालिबान बन चुका है. ."
.(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत 261) 

खर्च पर मुसलसल मुहम्मदी अल्लाह की ऊट पटांग तकरीर चलती रहती है. मालदार लोगों पर उसकी नज़रे बद लगी रहती है, 
सूद खोरी हराम है मगर बज़रीआ सूद कमाई गई दौलते बिक़ा हलाल हो सकती है अगर अल्लाह की साझे दारी हो जाए. 
रहन, बय, सूद और इन सब के साथ साथ गवाहों की हाज़िरी जैसी आमियाना बातें अल्लाह हिकमत वाला खोल खोल कर समझाता है. 
(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत 263-273) 

अल्लाह ने इन आयतों में ख़र्च करने के तरीक़े और उस पर पाबंदियां भी लगाई हैं. 
कहीं पर भी मशक्क़त और ईमानदारी के साथ रिज़्क़ कमाने का मशविरा नहीं दिया है. 
इस के बर अक्स जेहाद लूट मार की तलक़ीन हर सूरह में है. 
"ऐ ईमान वालो! तुम एहसान जतला कर या ईजा पहुंचा कर अपनी ख़ैरात को बर्बाद मत करो, उस शख्स की तरह जो अपना मॉल ख़र्च करता है, लोगों को दिखने की ग़रज़ से और ईमान नहीं रखता - - - ऐसे लोगो को अपनी कमाई ज़रा भी हाथ न लगेगी और अल्लाह काफ़िरों को रास्ता न बतला देंगे." 
जरा मुहम्मद की हिकमते अमली पर गौर करें कि वह लोगों से कैसे अल्लाह का टेक्स वसूलते हैं. 
जुमले की ब्लेक मेलिंग तवज्जेह तलब है - - -
और अल्लाह काफिरों को रास्ता न बतला देंगे - - - 
एक मिसाल अल्लाह की और झेलिए- - - 
"भला तुम में से किसी को यह बात पसंद है कि एक बाग़ हो खजूर का और एक अंगूर का. इस के नीचे नहरें चलती हों, उस शख्स के इस बाग़ में और भी मेवे हों और उस शख्स का बुढापा आ गया हो और उसके अहलो अयाल भी हों, जान में कूवत नहीं, सो उस बाग़ पर एक बगूला आवे जिस में आग हो ,फिर वह बाग जल जावे. अल्लाह इसी तरह के नज़ाएर फरमाते हैं, तुम्हारे लिए ताकि तुम सोचो," 
(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत 266) 

" और जो सूद का बक़ाया है उसको छोड़ दो, अगर तुम ईमान वाले हो और अगर इस पर अमल न करोगे तो इश्तहार सुन लो अल्लाह की तरफ से कि जंग का - - - और इस के रसूल कि तरफ से. और अगर तौबा कर लो गे तो तुम्हारे अस्ल अमवाल मिल जाएँगे. न तुम किसी पर ज़ुल्म कर पाओगे, न कोई तुम पर ज़ुल्म कर पाएगा." 
(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत 279) 

एक अच्छी बात निकली मुहम्मद के मुँह से पहली बार 
"लेन देन किया करो तो एक दस्तावेज़ तैयार कर लिया करो, इस पर दो मर्दों की गवाही करा लिया करो, दो मर्द न मलें तो एक मर्द और दो औरतों की गवाही ले लो" 
(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत 283) 

यानी दो औरत=एक मर्द 
कुरान में एक लफ्ज़ या कोई फ़िक़रा या अंदाज ए  बयान का सिलसिला बहुत देर तक क़ायम रहता है जैसे कोई अक्सर जाहिल लोग पढ़े लिखों की नक़्ल में पैरवी करते हैं. इस लिए भी ये उम्मी मुहम्मद का कलाम है, साबित करने के लिए लसानी तूल कलामी दरकार है. 
यहाँ पर अल्लाह के रसूल की धुन है 
"लोग आप से पूछते हैं. "
अल्लाह का सवाल फर्जी होता है, जवाब में वह जो बात कहना चाहता है. ये जवाब एन इंसानी फ़ितरत के मुताबिक होते हैं, जो हजारों सालों से तस्लीम शुदा हैं. जिसे आज मुस्लमान कुरानी ईजाद मानते हैं. 
आम मुसलमान समझता है इंसानियत, शराफ़त, और ईमानदारी, सब इसलाम की देन है, ज़ाहिर है उसमें तालीम की कमी है. उसे महदूद मुस्लिम मुआशरे में ही रखा गया है. 

कुरान में कीडे निकालना भर मेरा मक़सद नहीं है, बहुत सी अच्छी बातें हैं, इस पर मेरी नज़र क्यूँ नहीं जाती?
"अक्सर ऐसे सवाल आप की नज़र के सामने मेरे ख़िलाफ़ कौधते होंगे. बहुत सी अच्छी बातें, बहुत ही पहले कही गई हैं, 
एक से एक अज़ीम हस्तियां और नज़रियात इसलाम से पहले इस ज़मीन पर आ चुकी हैं जिसे कि कुरानी अल्लाह तसव्वुर भी नहीं कर सकता. अच्छी और सच्ची बातें फितरी होती हैं जिनहें आलमीं सचचाइयाँ भी कह सकते हैं. 
कुरान में कोई एक बात भी इसकी अपनी सच्चाई या इन्फरादी सदाक़त नहीं है. हजारों बकवास और झूट के बीच अगर किसी का कोई सच आ गया हो तो उसको कुरान का नहीं कहा जा सकता,
"माँ बाप की ख़िदमत करो" 
अगर कुरान में कहता है तो इसकी अमली मिसाल श्रवण कुमार इस्लाम से सदियों पहले क़ायम कर चुका है. 
मौलाना कूप मंडूकों का मुतलिआ कुरान तक सीमित है इस लिए उनको हर बात कुरान में नज़र आती है. 
यही हाल अशिक्षित मुसलमानों का है. 

सूरह के आख़ीर में अल्लाह खुद अपने आप से दुआ मांगता है, 
बकौल मुहम्मद कुरआन अल्लाह का कलाम है ? 
देखिए आयत में अल्लाह अपने सुपर अल्लाह के आगे कैसे ज़ारों क़तार गिडगिडा रहा है. 
सदियों से अपने फ़ल्सफ़े को दोहरते दोहराते मुल्ला अल्ला को बहरूपिया बना चुका है, 
वह दुआ मांगते वक़्त बन्दा बन जाता है. 
मुहम्मद दुआ मांगते हैं तो एलानिया अल्लाह बन जाते हैं. 
उनके मुंह से निकली बात, चाहे उनके आल औलादों के ख़ैर के लिए हो, चाहे सय्यादों के लिए बरकत की हो, कलाम इलाही बन कर निकलती है. 
आले इब्राहीमा व आला आले इब्राहिम इन्नका हमीदुं मजीद. 
यानी आले इब्राहीम ग़रज़ यहूदियों की ख़ैर ओ बरकत की दुआ दुन्या का हर मुस्लमान मांगता है और वही यहूदी मुसलमानों के जानी दुश्मन बने हुए हैं. 
हम हिदुस्तानी मुसलमान यानि अरबियों कि भाष में हिंदी मिस्कीन अरबों के ज़ेहनी गुलाम बने हुए हैं. 
अल्लाह को ज़ारों कतार रो रो कर दुआ मांगने वाले पसंद हैं. 
यह एक तरीक़े का नफ़्सियाती ब्लेक मेल है. 
रंज ओ ग़म से भरा हुआ इंसान कहीं बैठ कर जी भर के रो ले तो उसे जो राहत मिलती है, अल्लाह उसे कैश करता है, 
(बकौल मुहम्मद कुरआन अल्लाह का कलाम है ? 
देखिए आयत में अल्लाह अपने सुपर अल्लाह के आगे कैसे ज़ारों क़तार गिडगिडा रहा है. 
सदियों से अपने फ़ल्सफ़े को दोहरते दोहराते मुल्ला अल्ला को बहरूपिया बना चुका है, 
वह दुआ मांगते वक़्त बन्दा बन जाता है. 
मुहम्मद दुआ मांगते हैं तो एलानिया अल्लाह बन जाते हैं. 
उनके मुंह से निकली बात, चाहे उनके आल औलादों के ख़ैर के लिए हो, चाहे सय्यादों के लिए बरकत की हो, कलाम इलाही बन कर निकलती है. 
आले इब्राहीमा व आला आले इब्राहिम इन्नका हमीदुं मजीद. 
यानी आले इब्राहीम ग़रज़ यहूदियों की ख़ैर ओ बरकत की दुआ दुन्या का हर मुस्लमान मांगता है और वही यहूदी मुसलमानों के जानी दुश्मन बने हुए हैं. 
हम हिदुस्तानी मुसलमान यानि अरबियों कि भाष में हिंदी मिस्कीन अरबों के ज़ेहनी गुलाम बने हुए हैं. 
अल्लाह को ज़ारों कतार रो रो कर दुआ मांगने वाले पसंद हैं. 
यह एक तरीक़े का नफ़्सियाती ब्लेक मेल है. 
रंज ओ ग़म से भरा हुआ इंसान कहीं बैठ कर जी भर के रो ले तो उसे जो राहत मिलती है, अल्लाह उसे कैश करता है, 
सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत 284-286) 


कुरान की एक बड़ी सूरह अलबकर अपनी २८६ आयातों के साथ तमाम हुई- जिसका लब्बो लुबाबा दर्ज जेल है - - -


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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