Saturday 18 November 2017

Hindu Dharm Darshan 113



गीता और क़ुरआन

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
हे महाबाहु अर्जुन ! और आगे सुनो. 
चूँकि तुम मेरे प्रिय सखा हो, 
अतः मैं तुम्हारे लाभ के लिए  ऐसा ज्ञान प्रदान करूँगा, 
जो अभी तक मेरे द्वारा बताए गए ज्ञान में श्रेष्ट होगा .
**जो मुझे अजन्मा अनादि,  
समस्त लोकों के  स्वामी के रूप में जनता है,
मनुष्यों में केवल वही मोहरहित और समस्त पापों से मुक्त हिता है.     
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  - 10  श्लोक -1+3 

> भगवान् एक सामान्य आदमी को विभिन्न उपाधियाँ देकर ही संबोधित करते हैं.. कभी महाबाहु तो कभी कुंती पुत्र तो कभी पृथा पुत्र, पांडु पुत्र और भरतवंशी. 
अर्जुन भी कोई कसर नहीं छोड़ते मधुसूदन  भगवान्   पुरुषोत्तम आदि उपाधियों से नवाजते हैं. 
फ़ारसी की एक सूक्ति है कि नए शहर में रोज़ी कमाने दो लोग गए और तय किया कि "मन तुरा क़ाज़ी बगोयम, तू मरा हाजी बेगो." 
(तुम मुझे काज़ी जी कहा करो और मै तुमको हाजी जी.) 
कुछ दिनों में हम दोनों कम से कम इज़्ज़त तो कमा ही लेगे .
खैर यह लेखनी की नाट्य कला है. गीता कृष्ण और अर्जुन का नाटक ही तो है जिसे धर्म ग्रन्थ में लिया गया है. उसके बाद तुलसी दास के महा काव्य कृति रामायण को धर्म ग्रन्थ मान लिया गया.
कृष्ण जी अपने प्रिय सखा से एक ही बात को बार बार दोहराते हैं कि आखिर तुम मुझको ईश्वरीय ताक़त क्यों नहीं मान लेते.
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( २४ )

जादूई खसलत के मालिक मुहम्मद इंसानी ज़ेहन पर इस कद्र क़ाबू पाने में आखिर कार कामयाब हो ही गए जितना कि कोई ज़ालिम आमिर किसी कौम पर फ़तह पाकर उसे गुलाम बना कर भी नहीं पा सकती. आज दुन्या की बड़ी आबादी उसकी दरोग की आवाज़ को सर आँख पर ढो रही है और उसके कल्पित अल्लाह को खुद अपने और अपने दिल ओ दिमाग के बीच हायल किए हुए है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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