Wednesday 31 January 2018

Soorah Almayda -5 – Qist -4

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अलमायदा 5 - - -छटवाँ पारा 
(क़िस्त 4)

मुहम्मदी अल्लाह कहता है - - - 
"ऐ ईमान वालो! जो शख़्स तुम में से अपने दीन से फिर जाए तो अल्लाह बहुत जल्द ऐसी क़ौम पैदा कर देगा कि जिस को इस से मोहब्बत होगी और उसको इस से मुहब्बत होगी. मेहरबान होंगे वह मुसलमानों पर और तेज़ होंगे काफ़िरों पर. जेहाद करने वाले होंगे अल्लाह की राह पर." 
सूरह अलमायदा 5- छटवाँ पारा-आयत (54) 

कितना कमज़ोर है मुहम्मद का गढ़ा हुवा अल्लाह जो अपनी ही कमज़ोरी से परेशान है. 
अफ़सोस ! मुसलमान ऐसे कमज़ोर अल्लाह के जाल में फंसे हुए हैं जो ख़ुद जाल बुनते वक़्त घबरा रहा था. 

तारीख़ी पस ए मंज़र में अल्लाह कहता है - - - .
"जिन्हों ने तुम्हारे दीन को हंसी खेल बना रख्खा है, उनको और दूसरे कुफ्फ़ार को दोस्त मत बनाओ और अल्लाह से डरो अगर तुम ईमान वाले हो और जब तुम नमाज़ के लिए एलान करते हो तो यह तुम्हारे साथ हँसी खेल करते हैं, इस सबब से कि वह लोग ऐसे हैं कि बिलकुलअक्ल नहीं रखते." 
सूरह अलमायदा 5- छटवाँ पारा-आयत (59) 

जब किसी क़ौम का ग़लबा होता है तो उसका छू मंतर भी क़ाबिले एहतराम इबादत बन जाती है. नमाज़ कल भी एक संजीदा शख़्स  के लिए क़ाबिल ए एतराज़ हरकत थी और आज भी हो सकती है. अवामी सतह पर उट्ठक-बैठक बनाम इबादत कल भी हंसी खेल रहा होगा आज भी यक़ीनन है. ऐसी बेतुकी हरकत को कम से कम इबादत तो नहीं कहा जा सकता. कम अक़ली के ताने देने वाला अल्लाह ख़ुद अपने ऊपर शर्म करे कि दुन्या के कोने कोने से मुसलमान अक्ल के अंधे, काबा जाते है, शैतान को कंकड़ीयाँ मारने .

"आप कहिए कि क्या मैं तुम को ऐसा तरीक़ा बतलाऊँ जो इस से भी अल्लाह के यहाँ बदला लेने में ज़्यादा बुरा हो. वह इन लोगों का तरीक़ा है जिन को अल्लाह ने दूर कर दिया हो और इन पर ग़ज़ब फ़रमाया हो और इन को बन्दर और सुवर बना दिया हो और इन्हों ने शैतान की परिस्तिश की हो."
सूरह अलमायदा 5 -छटवाँ पारा-आयत (60) 

मुहम्मदी अल्लाह का दिमाग कैसी कैसी ग़लाज़तों से भरा हुवा था? यही इबारत मुसलमान सुबहो-शाम अपनी नमाज़ों में पढ़ते हैं. अगर अपनी जबान मैं पढें तो एक हफ़्ते में  शर्म से डूब मरें.

मुहम्मद से अल्लाह कहते है - - - 
"और जो आप के पास आप के परवर दिगार की तरफ़ से भेजा जाता है वह इनमें से बहुतों की सरकशी और कुफ़्र का सबब बन जाता है और हम ने इन में बाहम क़यामत तक अदावत और बुग्ज़ डाल दिया है. जब कभी लड़ाई की आग भड़काना चाहते हैं, अल्लाह तअला, उसको फ़र्द कर देते हैं और मुल्क में फ़साद करते फिरते हैं और अल्लाह तअला फ़साद करने वालों को पसंद नहीं करते." 
सूरह अलमायदा 5 - छटवाँ पारा-आयत (64)

यह सोच मुहम्मद की फ़ितरत का आइना है जिसको उनके एजेंट सदियों से पुजवाते चले आ रहे हैं. मुहम्मद खुद परस्ती के सिवाए तमाम इन्सान और इंसानियत के दुश्मन थे. इनकी उलटी मुश्तःरी करके आलिमों ने सारे दुन्या की बीस फ़ीसद आबादी के साथ दग़ाबाज़ी की है और करते जा रहे हैं. मुसलामानों ! ग़ौर करो कि  यह घटिया तरीन बातें जिनको किसी से कहने में ख़ुद तुमको शर्म आए , तुम्हारे क़ुरआनी अल्लाह की हैं. 
वह कभी अपने बन्दों को बन्दर बना देता है तो कभी सुवर, 
कभी उनको आपस में लडवा कर ज़मीन पर फ़साद कराता है.
क्यूँ? आख़िरक्यूं करता रहता है वह ऐसा? 
क्या कभी हुवा भी है ऐसा ? 
क्या मुहम्मद का झूट, उनकी साज़िश इन बातें में तुम को नज़र नहीं आती?
अरे मेरे भाइयो! 
ख़ुदा के लिए आँखें खोलो वरना मुहम्मद का अल्लाह तुम को बे मौत मारेगा. 

"और अगर यह लोग तौरेत की और इंजील की और जो किताब इन के परवर दिगर की तरफ़  से इनके पास पहुँच गई है उसकी पूरी पाबन्दी करते तो ये लोग अपने ऊपर से और अपने नीचे से पूरी फ़राग़त से खाते."
सूरह अलमायदा 5- छटवाँ पारा-आयत (66)

लाहौल वलाकूवत ! 
क्या मतलब हुवा मुहम्मदी अल्लाह का? 
आप खुद अख्ज़ करें कि उसका ऐसा फूहड़ मजाक़ अहले किताब के फ़रमा बरदारों के साथ? अच्छा हुवा कि न फ़रमान हुए वरना नीचे से खाना पड़ता, शायद इसी लिए नाफ़रमान हो गए हों. मुहम्मद की गन्दी ज़ेहनियत ही कही जा सकती है. 
अनुवाद करने वाले मक्कार आलिम इसमें मानी व् मतलब भरते रहें.

"बे शक वह लोग काफ़िर हो चुके हैं जिन्हों ने कहा अल्लाह तअला में मसीह इब्ने मरियम है."
सूरह अलमायदा 5- छटवाँ पारा-आयत (72)

इस्लामी इस्तेलाह में किसी को काफ़िर कहना, उसे गाली देने की तरह होता है. अहले किताब यानी यहूदी और ईसाई काफ़िर नहीं होते हैं मगर मुहम्मद का मूड कब कैसा हो? ईसाइयों को उनके आस्था पर काफ़िर कहते है, जब कि ईसाई ख़ुद कुफ़्र (ख़ास कर मूर्ती पूजा) को सख्त ना पसंद करते हैं. इस तरह ईसाइयों का मुसलमानों से बैर बंधता गया.

"जो शख़्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत (आज्ञा कारी) करेगा, अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाख़िल कर देंगे जिस के नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इन में रहेंगे.ये बड़ी कामयाबी है"
सूरह अलमायदा 5- सातवाँ पारा(वइज़ासमेओ)-आयत (75)

कुरआन में यह आयत मोहम्मद की कमर्शियल ब्रेक  है और क़ुरआन में बार बार आती है.

"ऐ अहले किताब! तुम अपने दीन में न हक़ गुलू (मिथ्य) मत करो और उन लोगों के ख़याल पर मत चलो जो पहले ही ग़लती में आ चुके हैं और बहुतों को ग़लती में डाल चुके हैं."
सूरह अलमायदा 5- सातवाँ पारा(वइज़ासमेओ)-आयत (77) 

ऐ मोहम्मद! 
दूसरों को राह मत दिखलाओ, पहले खुद राह-ऐ-रास्त पर आओ. 
अपनी उम्मत की ज़िन्दगी पलीद किए बैठे हो और अह्ल ए किताब यहूदियों और ईसाइयों को चले हो राह बतलाने. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 30 January 2018

Hindu Dharm Darshan-134 -V 17



वेद दर्शन             
खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

हे  अध्वर्युजनो ! इंद्र के लिए सोम ले आओ एवं चमचों के द्वारा मादक सोम को अग्नि में डालो. इस सोम को पीने के लिए वीर इंद्र सदा इच्छुक रहते हैं. तुम काम वर्धक इंद्र के निमित्त सोम दो, क्यों कि वह इसे चाहते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 14-1 

कामुक इंद्र देव के लिए शराब की महिमा गान ?. 
इंद्र भगवान् की चाहत काम उत्तेजक सोमरस ??. 
भगवान् और मानव से इनकी फरमाइश??? 
जिन्हें गर्व हिंदुत्व का है वह कहाँ हैं ?
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 29 January 2018

Soorah Almayda -5 – Qist -3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अलमायदा 5 - - -छटवाँ पारा 
(क़िस्त -3)

तालिबान अफ़ग़ानिस्तान से खदेडे जाने के बाद अब पाकिस्तान पर ज़ोर आज़माई कर रहा है,
बिलकुल इसलाम का प्रारंभिक काल दोहराया जा रहा है, जब मुहम्मद बज़ोर ग़िज़वा (वह जंगें  जिसमे मुहम्मद शरीक हुए ) हर हाल में इसलाम को मदीना के आस पास फैला देना चाहते थे. वह अपने हुक्म को अल्लाह का फ़रमान बतला कर, क़ुरआनी आयतों द्वारा प्रसारित और प्रचारित करते. लोगों को ज़बर दस्ती जेहाद पर जाने के लिए आमादा करते, लोग अल्लाह के बजाय उनको ही परवर दिगर! कह कर गिड़ गिड़ाते कि 
"आप हम को क्यूं मुसीबत में डाल रहे हैं परवर दिगार ?" 
तो वह ताने देते कि औरतों की तरह घरों में बैठो. 
मज़े की बात ये कि जंगी संसाधन भी ख़ुद जुटाओ. एक ऊँट पर ११-११ जन बैठते. ये सब क़ुरआन में साफ़ साफ़ दर्ज है जिसे इस्लामी विद्वान छिपाते रहते हैं और इसे ज़ालिम तालिबान सब जानते हैं. आज भी तालिबान अपने अल्लाह द्वतीय मुहम्मद के ही पद चिन्हों पर चल रहे है. इन्हें इंसानी ज़िन्दगी से कोई लेना देना नहीं, बस मिशन है इस्लाम का प्रसार. 
इसी में उनकी हराम रोज़ी का राज़ छुपा है. 
इधर पाकिस्तान का धर्म संकट है कि इस्लाम के नाम पर बनने वाला पाकिस्तान जब तालिबानियों द्वारा इस्लामी मुल्क पूरी तरह बनने की दर पर है तो उसकी हवा क्यूं ढीली हो रही है? उसका रूहानी मिशन तो साठ साल बाद मुकम्मल होने जा रहा है. निज़ाम ए मुस्तफ़ा ही तो ला रहे हैं ये तालिबानी. 
मुस्तफ़ा यानी मुहम्मद जो बच्ची के पैदा होने को औरत का पैदा होना कहते थे (क़ुरआन में देखें) औरत पर पर्दा लाज़िम करते . 
मुहम्मद ने सात साला औरत आयशा के साथ शादी रचाई, आठ साल में उस से सुहाग रात मनाई और परदे में बैठाया, 
तालिबान अपने रसूल की पैरवी करके क्या ग़लत कर रहे हैं? 
उनको ख़त्म करके पाकिस्तान इस्लाम को क़त्ल कर रहा है, 
कोई मुल्ला उसे फ़तवा क्यूं नहीं दे रहा? 
"मुहम्मद मैले कपडे लादे रहते" 
इस ज़रा सी बात पर पाकिस्तान न्यायलय ने एक ईसाई बन्दे को तौहीन ए रिसालत के जुर्म में सज़ाए मौत दे दिया था, आज पाक अद्लिया किं कर्तव्य विमूढ़ क्यूँ ? 
पाक इसलाम के तलिबों से लड़ने के साथ साथ कुफ़्र से भी (भारत) लड़ाई पर आमादा है. कहते हैं कि उसकी एटमी हत्यारों का रुख भारत की ओर है. 
यह पाकिस्तान की गुमराही ही कही जाएगी. मज़हब के नाम पर जो हमारे बड़ों ने अप्रकृतिक बटवारा किया था उसका बुरा अंजाम पाकिस्तान सामने है, बहुत बुरा हो जाने से पहले हम को सर जोड़ कर बैठना चहिए कि हम १९४७ की भूल सुधारें और फिर एक हो जाएँ. इस तरह कल का हिदोस्तान शायद दुन्या कि नुमायाँ हस्ती बन कर लोगों कि आँखें ख़ैरा कर दे. 
मगर भारत के हिदुत्व के पाखंड को भी साथ साथ ख़त्म करना होगा जो कि इस्लामी नासूर से कम नहीं. 

लीजिए शुरू होती है क़ुरआनी गाथा - - 

"यक़ीनन जो लोग काफ़िर हैं अगर उनके पास दुनिया भर की तमाम चीजें हों और उन चीज़ों के साथ उतनी चीजें और भी हों ताकि वह उनको देकर रोज़ ए क़यामत के अज़ाब से छुट जाएं, तब भी वह चीजें उन से क़ुबूल न की जाएँगी और उनको दर्द नाक अज़ाब होगा." 
सूरह अलमायदा 5- छटवाँ पारा-आयत (36) 

इंसानी समाज में ग़रीब अवाम हमेशा ही ज़्यादा रहे है. ग़रीब और अमीर की अज़्ली जंग भी हमेशा जारी रही है. ग़रीब अमीरों से नफ़रत तभी तक क़ायम रखता है जब तक अमारत को वह खुद छू नहीं लेता और फिर वह अपने ही समाज की नफ़रत, हसद और लूट का शिकार बन जाता है. 
ईसा का कहना था 
"ऊँट सूई के नाके से निकल सकता है मगर दौलत मंद जन्नत में दाखिल नहीं हो सकता." 
कार्ल मार्क्स ने इस इंसानी समाज का ग़नीमत हल निकाला, माओ ज़े तुंग ने इस को अमली जामा पहनाया जो अभी तक अपने आप में इज्तेहाद (सुधार) के साथ कामयाब है. वहां इन इस्लामी आलिमों जैसी कोई नापाक मख़लूक़ (जीव) या उसका बीज नहीं बचा है. कई कम्युनिस्ट मुमालिक के रहनुमाओं ने इसकी ना जायज़ औलाद जन्मी और नापैद हुए. 
मुहम्मद ने भी ग़ुरबत की दुखती रग पर ही हाथ रख कर इतनी कामयाबी हासिल की, मगर उनकी तहरीक में सच्चाई की जगह ख़ुराफ़ात थी और उनके बाद ही उनकी नस्ल में हसन ऐश और अय्याशी के शिकार होकर ज़िल्लत की मौत मरे. हुसैन अपने मासूम भानजों भतीजे, बच्चो और ख़ानदान के दीगर लोगों को कुर्बान कर के ख़ुद को इस्लामी फ़ौज के हवाले किया, 
सिर्फ़ ख़िलाफ़त की लालच में. मुहम्मद के  आमाल की बुरी सज़ा उनकी नस्लों को मिली. काफ़िर इसलाम के वजूद में आने के बाद से लेकर आज तक धरती पर सुर्ख रू हैं. मुसलमान ऊपर की आसमानी दौलत के चक्कर में दुनया की एक पिछड़ी क़ौम बन कर रह गई है. भारत में काफ़िरों की संगत में रह कर कुछ मुसलमान अपनी हैसियत बनाने में कामयाब है, ख़्वाह वह सनअत में हों या फ़नकार हों, 
जिन पर आम मुसलमान फ़ख्र करते हैं और ये फटीचर मौलाना उनके सामने चंदे की रसीद लिए खड़े रहते हैं.

"और जो औरत या मर्द चोरी करे, सो उन के दाहिने हाथ गट्टे से काट डालो. इन के किरदार के एवज़, बतोर सज़ा के, अल्लाह की तरफ़ से और अल्लाह तअला बड़ी क़ूवत वाले हैं और बड़ी हिकमत वाले हैं." 
सूरह अलमायदा 5- छटवाँ पारा-आयत (38)

आज भी यह क़ानून सऊदी अरब में लागू है. काश कि यह वहशियाना क़ानून दुनया के तमाम मुल्कों में सिर्फ़ मुसलमानों पर लागू कर दिया जाए जिस तरह शादी और तलाक़ को मुसलमान पर्सनल ला बना कर अलग अपनी डेढ़ ईंट की मस्जिद बनाए हुए है. कोई मुस्लिम तंज़ीम या ओलिमा इस आयत को लेकर मैदान में नहीं उतरते कि मुस्लिम चोरों और उठाई गीरों के दाहिने हाथ को गट्टे से काट दी जाएं. उन के लिए जो जेहाद के बहाने बस्तियों पर डाका डालते थे, मुहम्मद ने कोई सज़ा नहीं रखी , उनकी लूट को तो ग़नीमत करके निगलने का फ़रमान है. 
चवन्नी की चोरी पर हाथ को घुटनों से काट देने का हुक्म? 
इंसान किन हालात में चोरी करने पर मजबूर होता है, ये बात कोई उम्मी सोंच भी नहीं सकता.

क़ुरआनी अल्लाह का यहूदियों से ख़ुदाई बैर चलता रहता है. इनका वजूद भी इसे अज़ीज़ है और इन की दुश्मनी भी. ज़बरदस्ती उनको अपना गवाह बनाए रहता है. इनकी कज अदाई पर कहता है - - -

" - - - और जिस को ख़राब होना ही अल्लाह को मंज़ूर हो तो इसके लिए अल्लाह से तेरा कोई ज़ोर नहीं, यह लोग ऐसे हैं कि अल्लाह को इनके दिलों को पाक करना मंज़ूर नहीं. यह लोग ग़लत बात सुनने के आदी हैं, हराम खाने वाले हैं." 
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (41) 

मुस्लमानो! 
अपने अल्लाह से पूंछो कि अगर बड़ी ताक़त वाला और बड़ी हिकमत वाला है तो इस ज़रा से काम में क्या क़बाहत है कि लोगों के दिलों को पाक कर दे. चुटकी बजाते ही ये काम उसके बस का है, और अगर नहीं कर सकता तो वह भी बन्दों की तरह बेबस है. अगर वह उनके दिलों को नापाक ही रहने देना चाहता है तो यह क़ुरआनी नौटंकी क्यूँ? 
क्या उसको अपना जाँ नशीन चुनने के लिए मुहम्मद जैसा मक्के का महा-मूरख ही मिला था जो तमाम दुन्या में जेहालत की खेती करा रहा है.?

क़ुरआनीअल्लाह की यह बात भी दावते फ़िक्र देती है - - - 
"और हम ने उन पर इस में ये बात फ़र्ज़ की थी कि जान के बदले जान, आँख के बदले आँख, नाक के बदले नाक, कान के बदले कान, दाँत के बदले दाँत और खास ज़ख्मों का बदला भी, फिर भी इस के लिए जो मुआफ करदे, वह उसके लिए कुफ्फ़ारा हो जाएगा - - - " 
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (45) 

मुन्तक़िम अल्लाह और मुन्तक़िम रसूल के कानून इस से कम क्या हो सकते हैं. जेहालत को नए सिरे से लाने वाले अल्लाह के बने रसूल कहते हैं - - - 
" यह लोग क्या फिर ज़माना ए जेहालत का फैसला चाहते हैं?" 
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (50) 

बाबा इब्राहीम का दौर इरतेक़ाई (रचना कालिक) दौर के हालात जेहालत की मजबूरी में कहे जा सकते हैं. फिर मूसा का दौर आते आते जेहालत की गाठें खुलती हैं मगर बरक़रार रहती हैं . ईसा ने इसे खोल कर इंसानी समाज को बड़ी राहत बख्शी. अरब दुन्या भी इस से फैज़याब हुई. .कुरआन गवाह है कि उम्मी मुहम्मद ने ईसा के किए धरे पर पानी फेर दिया और आधी दुन्या पर एक बार फिर जेहालत का ग़लबा हो गया. तअज्जुब है वह ही कह रहा है 
"यह लोग क्या फिर ज़माना ए जेहालत का फ़ैसला चाहते हैं?" 
मुसलमान ही जाग कर अपनी क़िस्मत बदल सकते हैं, वगरना दुश्मन ए मुसलमान यह सियासत दान और हरामी ओलिमा मुसलमानों को कभी भी जागने नहीं देंगे.

''यहूदियों और ईसाइयों को दोस्त मत बनाना , वह एक दूसरे के दोस्त हैं और तुम में से जो शख्स उन से दोस्ती करेगा, बेशक वह इन्हीं में से होगा।" 

नतीजे में आज सिर्फ ईसाई और यहूदी ही नहीं कोई क़ौम भी ख़ुद मुसलमानों को दोस्त बनाना पसंद नहीं करती, यहाँ तक की मुसलमान भी एक बार मुसलमान को दोस्त बनाने के लिए सौ बार सोचता है. 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 27 January 2018

Hindu Dharm Darshan-133 -G 13



गीता और क़ुरआन

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -

*जो इस जीवत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसे मरा हुवा समझता है, वह दोनों ही अज्ञानी हैं, क्योंकि आत्मा न मारता है और न मारा जाता है.
**आत्मा के लिए किसी भी काल में न जन्म है न मृत्यु. वह न तो कभी जन्मा है न जन्म लेता है, न जन्म लेगा. वह अजन्मा, नित्य, शाश्वत तथा पुरातन है.शरीर के मारे जाने पर वह मारा नहीं जाता.
श्रीमद्  भगवद् गीता अध्याय 2   श्लोक 19 +20 +++++

अर्जुन युद्ध करने से कतराते हैं . 
कहते हैं कि अपने भाइयों को मारने से अच्छा है कि मैं ही मारा जाऊँ, 
इस पर भगवान उन्हें यह पट्टी पढाते हैं . 
मामला गौर तलब है. अर्जुन प्रतियक्ष शरीर की बात करते हैं 
तो भगवान् परोक्ष आत्मा की सुनाते हैं, 
यह धर्म है या अधर्म.

और क़ुरआन कहता है - - - 
"अगर अल्लाह को मंज़ूर होता वह लोग (मूसा के बाद किसी नबी की उम्मत)उनके बाद किए हुआ बाहम कत्ल ओ क़त्ताल नहीं करते, 
बाद इसके, इनके पास दलील पहुँच चुकी थी, 
लेकिन वह लोग बाहम मुख्तलिफ हुए 
सो उन में से कोई तो ईमान लाया और कोई काफ़िर रहा. 
और अगर अल्लाह को मंज़ूर होता तो वह बाहम क़त्ल ओ क़त्ताल न करते 
लेकिन अल्लाह जो कहते है वही करते हैं" 
(सू रह अलबकर-२ तीसरा पारा तिरकर रसूल आयत २५३) 

क्या गीता और कुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती पर शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ 
क्या इस काबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए, गवाह बनाया जाए ???


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 26 January 2018

Soorah Almayda -5 – Qist -2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अलमायदा 5 - - -छटवाँ पारा 
(क़िस्त -2)

एक व्यभिचारणी को जुर्म की सजा में संग सार (पथराव) करने की तय्यारी चल रही थी, लोग अपने अपने हाथों में पत्थर लिए हुए खड़े थे. वहीँ ईसा ख़ाली हाथ आकर खड़े हो गए. व्यभिचारणी लाई गई, पथराव शुरू ही होने वाला था कि ईसा ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा - - - 
"तुम लोगों में पहला पत्थर वही मारेगा जिसने कभी व्यभिचार न किया हो" 
सब के हाथ से पत्थर नीचे ज़मीन पर गिर गए. शायद उस वक़्त लोग अंतर आत्मा वाले रहे होंगे ?
अन्ना हज़ारे  अगर ईसा तुल्य होते तो उन्हें चाहिए कि वह लोगो से कहते - - 
"कि मेरे साथ वही लोग आएं जिन्हों ने कभी भ्रस्ट आचरण न किया हो. 
न रिश्वत लिया हो और न रिश्वत दिया हो." 
बड़ी मुश्किल आ जाएगी कि वह अकेले ही राम लीला मैदान में पुतले की तरह खड़े होते . 
चलिए इस शपथ को और आसान करके लेते हैं कि वह अपने अनुयाइयों से यह शपथ लें कि आगे भविष्य में वह रिश्वत लेंगे और न रिश्वतदेंगे. 
रिश्वत के मुआमले में लेने वालों से देने वाले दस गुना मुजरिम होते हैं. 
पहले देने वाले ईमानदार और निर्भीक बने. 
रिश्वत के आविष्कारक देने वाले ही थे. 
अन्ना सिर्फ सातवीं क्लास पास हैं, उनके अन्दर इंसानी नफ्सियत की कोई समझ है, न अध्यन, परिपक्वता तो बिलकुल नहीं है, वह अनजाने में भ्रष्टा चार का एक रावन और बनाना चाहते हैं जिसका रूप होगा लोकायुक्त. अन्ना को चाहिए कि वह अपनी बची हुई थोड़ी सी ज़िन्दगी को हिन्दुस्तानियों के चरित्र निर्माण में लगाएं. 

गुल की मानिंद पाई है हम ने जहाँ में ज़िन्दगी, 
रंग बन के आए हैं , बू बन के उड़ जाएँगे हम.

ये है एक शायर का चिंतन और मुहम्मदी अल्लाह भी तुकबंदी करता है मगर अपनी शायरी में वह ज़िन्दगी को चूं चूं का मुरब्बा  बना देता है.
कहता है - - - 

"बिला शुबहा वोह काफ़िर हैं जो कहते हैं अल्लाह में मसीह बिन मरियम हैं.आप पूछिए अगर कि अल्लाह मसीह इब्ने मरियम को और उनकी वाल्दा को और ज़मीन में जो हैं उन सब को हलाक करना चाहे तो कोई शख्स ऐसा है जो अल्लाह तअला  से इन को बचा सके."
सूरह अलमायदा 5- छटवाँ पारा-आयत (17)

*मुहम्मद ने कहना चाहा होगा कि मसीह इब्ने मरियम में अल्लाह है, मगर आलम ए वज्द में कह गए अल्लाह में मसीह इब्ने मरियम है और क़ुरआन को मुरत्तब करने वालों ने भी "मच्छिका स्थाने मच्छिका" ही कर दिया और कोई बड़ी बात भी नहीं कि मुहम्मद कि इल्मी लियाक़त इस को दर गुज़र भी कर सकती है. मुसलमान तो मानता है क़ुरआन में जो भूल चूक है उसका ज़िम्मेदार अल्लाह है. 
पूरी सूरह ही जिहालत से लबालब है, 
मुसलमान इसे कब तक वास्ते सवाब पढता रहेगा ?

"और यहूदी व नसारह (ईसाई) दावा करते हैं कि हम अल्लाह के बेटे हैं और महबूब हैं, फिर तुम को ईमानों के एवज़ अज़ाब क्यूँ देंगे बल्कि तुम भी मिन जुमला और मख़लूक़ एक आदमी हो."
सूरह अलमायदा -5 छटवाँ पारा-आयत (18)

मिन जुमला उम्मी मुहम्मद का आज कल तकिया कलाम है वह अक्सर इस लफ्ज़ को ग़ैर ज़रूरी तौर पर इस्तेमाल करते हैं.यहाँ पर भी जो बात कहना चाहा है वह कह नहीं पाए, अब मुल्ला जी उनके मददगार इस तरह होगे कि बन्दों को समझेंगे 
"अल्लाह का मतलब यह है कि - - -"
गोया अल्लाह इनका हकला भाई हुवा. 
यहूद, नसारह अपने अपने राग गा रहे थे, मुहम्मद ने सोचा अच्छा मौक़ा है, क्यूँ न हम इस्लामी डफ़ली लेकर मैदान में उतरें मगर उनके साथ बड़ा हादसा था कि वह उम्मी नंबर वन थे जिस को कठमुल्ला कहा जाए तो मुनासिब होगा.

"मुहम्मद एक बार फिर मूसा को लेकर नई कहानी गढ़ते है जो हर कहानी कि तरह बेसिर पैर की होती है. पता नहीं उनको कोई पुर मज़ाक यहूदी मिल जाता है जो मूसा की फ़र्जी दास्ताने गढ़ गढ़ कर मुहम्मद को बतलाता है. उस पर उनके गैर अदबी ज़ौक़ की क़िस्सा गोई के लिए भी सलीक़ा ए गोयाई चाहिए. 
बस शुरू हो जाते हैं अल्लाह तअला बन कर - - - 

"वोह वक़्त भी काबिले ज़िक्र है कि जब - - - 
या इस तरह कि क्या तुम को इस क़िस्से के बारे में, मालूम है कि जब - - -
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (19-32)

"जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ते हैं और मुल्क में फ़साद फैलाते फिरते हैं, उनकी यही सज़ा है कि क़त्ल किए जावें या सूली दी जावें या उनके हाथ और पाँव मुख़तलिफ़ सम्त से काट दिए जावें या ज़मीन पर से निकाल दिए जावें - - - उनको आख़रत में अज़ाब ए अज़ीम है. हाँ जो लोग क़ब्ल इस के कि तुम उनको गिरफ्तार करो, तौबा कर लें तो जान लो बे शक अल्लाह तअला बख्स देगे, मेहरबानी फ़रमा देंगे."
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (33-34)

भला अल्लाह से कौन लडेगा? 
वोह मयस्सर भी कहाँ है? 
हज़ारों सालों से दुन्या उसकी एक झलक के लिए बेताब है, बाग़ बाग़ हो जाने के लिए, तर जाने के लिए, निहाल हो जाने के लिए और सब कुछ लुटाने को तैयार है. 
उसकी तो अभी तक जुस्तुजू है, किसी ने उसे देखा न पाया, सिवाय मुहम्मद जैसे खुद साख्ता पैग़म्बरों के. उस से लड़ने का सवाल ही कहाँ पैदा होता है. लडाई तो उसका एजेंट पुर अमन ज़मीन पर थोप रहा है. 
गौर तलब है की कैसे कैसे घृणित तरीके अपने विरोधियों के लिए ईजाद कर रहा है वह, 
जिस को 'मोहसिन इंसानियत 'मानव मित्र' यह ओलिमा हराम ज़ादे कहते हुए नहीं शर्माते. 
मुहम्मद ने अपनी ज़िंदगी में लोगों का जीना दूभर कर दिया था जिसका गवाह कोई और नहीं ख़ुद यह क़ुरआन है. इसकी सज़ा ए मुसलसल की शक्ल में भोले भाले इंसानों को इन आलिमो की वज़ह से मिलती रही है मगर यह आज तक ज़मीन से नापैद नहीं किए गए, जाने कब मुसलमान बेदार होगा. 
यह क़ुरआन उसके लिए ज़हर का प्याला है जो अनजाने में वह सुब्ह ओ शाम पीता है

"ए ईमान वालो! 
अल्लाह से डरो और अल्लाह का क़ुर्ब ढूंढो, उसकी राह में जेहाद करो, उम्मीद है कामयाब होगे."
सूरह अलमायदा 5- छटवाँ पारा-आयत (35)

याद रखें मुहम्मद दर पर्दा बज़ात ख़ुद बने हुए अल्लाह हैं और आप को अपने क़रीब चाहते हैं ताकि आप पर ग़ालिब रहें और आप से दीन के नाम पर जेहाद करा सकें. 
मुहम्मद दफ़ा हो गए हजारों मिनी मुहम्मद पैदा हो गए जो आप की नस्लों को जाहिल रखना चाहते हैं. अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान ही नहीं हिंदुस्तान में भी ये सब आप की नज़रों के सामने हो रहा है और अप की आँखें खुल नहीं रहीं. कोई राह नहीं है कि मैदान में खुल कर आएं. कमसे कम इस से शुरुआत करें की मुल्ला, मस्जिद और मज़हब का बाई काट करें.
मत डरें समाज से, समाज आपसे है. मत डरें अल्लाह से, डरें तो बुराइयों से. अल्लाह अगर है भी तो भले लोगों का कभी बुरा नहीं करेगा. अल्लाह से डरने की ज़रुरत नहीं है. अल्लाह कभी डरावना नहीं होगा, 
होगा तो ? बाप जैसा अपनी औलाद को सिर्फ प्यार करने बाला, 
दोज़ख में जलाने वाला? 
उस पर लाहौल भेजिए. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 25 January 2018

Hindu Dharm Darshan-132 -V 16



वेद दर्शन - - -            
खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

जल धारण करने वाली नदियाँ आपस में मिलकर चारो ओर बह रही हैं एवं जल के स्वामी सागर को भोजन पहुँचती हैं, नीचे की ओर बहने वाले जलों का रास्ता एक सामान है, जिसे इंद्र ने प्राचीन काल में ये सब काम किए हैं, वह प्रशंशा के योग्य हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 13-2 

अर्थात विश्व की सारी नदियाँ राजा इन्दर की परिश्रम के परिणाम स्वरूप हैं. 
क्या हम अपने बच्चों को यह शिक्षा  और ज्ञान दे सकते है? 
योरोप के सभ्य समाज के लोग वेदों को पढ़कर भारतीय चिंतन को क्या दर्जा देंगे?
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 24 January 2018

Soorah Almayda -5 – Qist -1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*************


सूरह अलमायदा 5 - - -छटवाँ पारा 
(क़िस्त -1)

मैं वयस्कता से पहले ईमान का मतलब लेन देन के तक़ाज़ों को ही समझता था (और आज भी सिर्फ़ इसी को समझता हूँ) 
मगर इस्लामी समझ आने के बाद मालूम हुवा कि इस्लामी ईमान का अस्ल तो कुछ और ही है, 
वह है 'कलिमा ए शहादत', 
यानी अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखना, 
और दो क़िस्म की क़समें,
क़स्म ए आम और क़स्म ए पुख्ता. 
इन बारीकियों को मौलाना जब समझ जाते है कि अल्लाह झूट को कितना दर गुज़र करता है, 
तो वह लेन देन की बेईमानी भरपूर करते हैं. 
मेरे एक दोस्त ने बतलाया कि उनके क़स्बे के एक मौलाना, मस्जिद के पेश इमाम, मदरसे के मुतवल्ली क़ुरआन के आलिम, बड़े मोलवी, 
साथ साथ ग्राम प्रधान, रहे. 
हज़रात ने क़स्बे की रंडी हशमत जान का खेत पटवारी को पटा कर जीम का नुक़ता बदलवा कर नीचे से ऊपर करा दिया जो जान की जगह ख़ान हो गया. हज़रात के वालिद मरहूम का नाम हशमत ख़ान था. 
विरासत हशमत ख़ान के बेटे, बड़े मोलवी साहब उमर ख़ान की हो गई.
हशमत रंडी की सिर्फ़ एक बेटी छम्मी थी (अभी जिंदा है), उसने बेटी को मोलवी के क़दमों पर लाकर डाल और कहा" मोलवी साहब इस से रंडी पेशा न कराऊँगी, इस की ज़िदगी इसी खेत के सहारे कट जाएगी, 
रहम कीजिए, अल्लाह का खौ़फ़ खाइए - - - " 
मगर मोलवी का दिल न पसीजा उसका ईमान कमज़ोर नहीं था, बहुत मज़बूत था. क़ुरआनी ईमान जो था. 
दो बेटे हैं, मेरे दोस्त बतलाते हैं दोनों डाक्टर है, 
और पोता कस्बे का चेयर मैन है. 
रंडी की और मदरसे की हड़पी हुई जायदादें सब उनके काम आरही हैं. 
यह है क़ुरआनी ईमान की बरकत.

मुसलामानों के इस ईमानी झांसे में हो सकता है ग़ैर मुस्लिम इन से ज़्यादा धोका खाते हों कि ईमान लफ्ज़ को इन से जाना जाता है.
अहद की बात आई तो तसुव्वुर क़ायम हुवा 
"प्राण जाए पर वचन न जाए"
 मगर अल्लाह तो अहद के नाम पर चौपायों के शिकार की बातें कर रहा है. 
ख़ैर, चलो शुक्र है दो पायों (यानी इंसानों) के शिकार से उसकी तवज्जो हटी हुई है.

मुहम्मदी अल्लाह कहता है - - -
"ऐ ईमान वालो! अहदों को पूरा करो. तुम्हारे लिए तमाम चौपाए जो पुरस्कार स्वरूप के हों, हलाल किए गए, मगर जिन का ज़िक्र आगे आता है, लेकिन शिकार हलाल मत समझना, जिस हालत में तुम अहराम (एक अरबी परिधान) में हो. बेशक अल्लाह जो चाहे हुक्म दे," 
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (1)

इस सूरह में शिकारयात पर अल्लाह का क़ीमती तबसरा ज़्यादा ही है गो कि आज ये फ़ुज़ूल की बातें हो गईं हैं मगर मुहम्मदी अल्लाह इतना दूर अंदेश होता तो हम भी यहूदियों की तरह दुनिया के बेताज बादशाह न होते. ख़ैर ख्वाबों में सही आक़बत में ऊपर जन्नतों के मालिक तो होंगे ही. 
मोहम्मद शिकार के तौर तरीक़े बतलाते हैं क्यूंकि उनके मूरिस ए आला इस्माईल इब्ने लौंडी हाज़रा(हैगर) के बेटे एक शिकारी ही थे जिनकी अलामाती मूर्तियाँ काबे की दीवारों में नक्श थीं, जिसे इस्लामी तूफ़ान ने तारीख़ी सच्चाइयों की हर धरोहर की तरह खुरच खुरच कर मिटा दिया. मगर क्या ख़ून में दौड़ती मौजों को भी इसलाम मिटा सका है ? 
खुद मुहम्मद के ख़ून में इस्माईल के ख़ून की मौज कुरआन में आयत बन कर बोल रही है. 
हिदुस्तानी मुल्ला की बेटी शादी के मौक़े पर तन पर लिपटे हुए सुर्ख़ लिबास का, क्या सफ़ेद इस्लामी लिबास का मुकाबला कर सका है? 
मुहम्मद कुरआन में कहते है बेशक अल्लाह जो चाहे हुक्म दे, 
यह उनकी ख़ुद सरी की इन्तहा है और उम्मत  की इंसानी सरों की पामाली की हद. एक सरकश अल्लाह बन कर बोले और लाखों बन्दे सर झुकाए लब बयक कहें,
 इस से बड़ा हादसा किसी क़ौम के साथ और क्या हो सकता है?

"तुम पर हराम किए गए हैं मुरदार, ख़ून और ख़िजीर (सुवर) का गोश्त और जो कि ग़ैर अल्लाह के नाम पर मारा गया हो और जो गला घुटने से मर जाए, जो किसी ज़र्ब से मर जाए या गिर कर मर जाए, जिसको कोई दरिंदा खाने लगे, लेलिन जिस को ज़बह कर डालो."
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (3) 

ज़रा जिंदगी की हक़ीक़तों में जाकर देखिए तो ये बातें बेवकूफ़ी की लगती हैं. आप की भूक कितनी है, हालात क्या हैं? हराम हलाल सब इन बातों पर मुनहसर करता है. 
किसी बादशाह ने मेहतरों को हलाल खो़र का लक़ब ठीक ही  दिया था, आज का सब से बड़ा हराम खोर रिशवत खाने वाला है. 
धर्म ओ मज़हब की कमाई खाने वाले भी खुद को हराम खो़र ही समझें.

"और अगर तुम बीमार हो, हालत ए सफ़र मे हो या तुम मे से कोई शख्स इस्तेंजे (शौच) से आया हो या तुम ने बीवियों से कुर्बत (संभोग) की हो, फिर तुम को पानी न मिले तो पाक ज़मीन से तैममुम (भभूति करण) करो यानी अपने चेहरों पर, हाथों पर हाथ फेर लिया करो."
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (6)

तैममुम भी क्या मज़ाक है मुसलमानों के मुँह पर, इसकी लोजिक कहीं से भी समझ में नहीं आती, सिवाए इसके की मुँह और हाथों पर धूल मल लेना, हो सकता है जहाँ मोलवी तैममुम कर रहा हो वहां कल किसी जानवर ने पेशाब किया हो? इस से बेहतर तो हवाई तैममुम था, जैसे हवाई अल्लाह मियां हैं. 
मगर इसलाम में पाकी की बड़ी अहमियत है. इस तरह पाकी हफ्तों और महीनों बर क़रार रह सकती है भले ही कपडे साफ़ी हो जाएँ और इन से बदबू आने लगे. 
इसके बर अक्स एक क़तरा पेशाब धुले कपडे में लग जाए तो मुसलमान नापाक हो जाता है, यहाँ तक कि अगर वोह कपडा वाशिंग मशीन में डाल दिया गया है तो उस के साथ के सभी कपडे नापाक हुए. नापाक कपडे की नजासत को बहते हुए पानी से इसलाम धोता है 
और जिस्म पर जमी हुई गंदगी को तैममुम से जमी रहने देता है. 
देखने में आता है कि यू पी में लोग मुसलामानों को सवारी में पास बिठाना पसंद नहीं करते.

"और किसी ख़ास क़ौम की अदावत तुम्हारे लिए बाइस न बन जाए कि तुम अदल (न्याय) न करो. अदल किया करो कि वो तक़वा (तपस्या) से करीब है."
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (8)

मुहम्मद कभी कभी मजबूरन जायज़ बात भी कर जाते है.

"अल्लाह लोगों से मुसलमान होने के बाद ही अच्छे कामों के बदले बेहतर आख़िरत के वादे करता है. बनी इस्राईल को उन के बारह सरदारों की पद प्रतिष्ठा की याद दिलाता है, जो कि यूसुफ़ के भाई और हज़रत इब्राहीम के पड़ पोते थे. इन से इस्लामी नमाजें और ज़कात अदा कराता है. 
मुहम्मद अपने मज़हबी कर्म कांड के साथ चौदह सौ साल पहले पैदा होते है और साढे तीन हज़ार साल पहले पैदा होने वाले यहूदियों से इस्लामी फ़राइज़ अदा कराते हैं, अपने ऊपर ईमान लाने की बातें करते हैं, 
गोया दीर्घ अतीत में दाख़िल होकर इस्लामी प्रचार करते हैं और यहूदियों के नबियों को मुसलमान बनाते हुए वर्तमान में आँखें खोलते हैं. 
अल्लाह इन से क़र्ज़ लेकर इनके गुनाह दूर करने की बात करता है. मुहम्मद को हर रोज़ कोई न कोई बुरी खबर मिलती रहती है कि कोई टुकडी इनकी समूह से कट गई है. अल्लाह इनको तसल्ली देता है. 
नव मुस्लिम अंसार ताने देने लग जाते हैं, 
हम तो अंसार ठहरे, उन को भी मुहम्मद क़यामत तक के लिए बैर और अदावत की वजेह से पुन्य के एक हिस्से से वंचित कर देते हैं. 
मुहम्मद अपनी किताब को एक नूर बतलाते है, और इसकी रौशनी में ही राह तलाश करने की हिदायत करते हैं. 
जी हाँ! किताब यही  जिसमें होई राह नज़र नहीं आती." 
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (9-16)




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 23 January 2018

Hindu Dharm Darshan-131- G-12



गीता और क़ुरआ

अर्जुन पूछता है - - -
अब मैं अपनी कृपण- दुर्बलता के कारण अपना कर्तव्य भूल गया हूँ और सारा धैर्य खो चूका हूँ. ऐसी अवस्था में मैं आपसे पूछ रहा हूँ कि जो मेरे लिए श्रेयस्कर हो, उसे निश्चित रूप से बताएं. अब मैं आपका शिष्य हूँ और आपका शरणागत . कृपया मुझे आदेश दें. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 2   श्लोक 7 

भगवान् कृष्ण अर्जुन से कहते हैं - - -
अनिवाशी (कभी नाश न होने वाला) अप्रमेय (न नाप तौल कर सकने वाला ) तथा शाश्वत जीव के भौतिक शरीर का अंत आवश्यम्भावी है, 
अतः हे भारत वंशी युद्ध करो . 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 2   श्लोक 18  

इंसानी शरीर की रचना ऐसी वैसी है, इस लिए उसे युद्ध करना चाहिए ?
भगवान् बात पच नहीं पा रही. दूसरी तरफ़ आप ॐ शान्ति का पाठ पढ़ाते हैं ? 
यह धर्म का डबुल स्टैण्डर्ड, जवाब तलब है.

और क़ुरआन कहता है - - - 
"और अल्लाह कि राह में क़त्ताल करो. 
कौन शख्स है ऐसा जो अल्लाह को क़र्ज़ दिया 
और फिर अल्लाह उसे बढा कर बहुत से हिस्से कर दे 
और अल्लाह कमी करते हैं और फराखी करते हैं और तुम इसी तरफ ले जाए जाओगे" 
(सूरह अलबकर-२ तीसरा पारा तिरकर रसूल आयत २४४+२४५) 

क्या गीता और कुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती पर शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ 
क्या इस काबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए, गवाह बनाया जाए ???


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 22 January 2018

Soorah Nisa 4 Q-7

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
******************

सूरह निसाँअ 4 
क़िस्त 7   

 देखिए कि बे ग़ैरत बना मुहम्मदी अल्लाह क्या कहता है - - - 

"लेकिन अल्लाह तअला बज़रिए इस क़ुरआन के जिस को आप के पास भेजा है और भेजा भी अपने अमली कमाल के साथ, शहादत दे रहे हैं फ़रिश्ते, तस्दीक़  कर रहे हैं और अल्लाह तअला की ही शहादत काफ़ी है. जो लोग मुनकिर हैं और ख़ुदाई दीन के माने हैं, बड़ी दूर कि गुमराही में जा पड़े हैं."
सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (167)

वाह! 
मुद्दआ ओनका है अपने आलम तक़रीर का, 
अल्लाह का अमली कमाल भी कुछ ऐसा ही है कि जैसे मुहम्मद पर कुरआन नाज़िल हुवा. मुहम्मद अपने दोनों हाथ रेहल बना कर हवा में फैलाए हुए थे कि कुरआन आसमान से अपने दोनों बाज़ुओं से उड़ती हुवा  आया और मुहम्मद के बाँहों में पनाह लेता हुवा सीने में समा गया. तभी तो इसे मुस्लमान आसमानी किताब कहते हैं और सीने बसीने क़ायम रहने वाली भी. 
मदारी मुहम्मद डुगडुगी बजा कर मुसलमानों को हैरत ज़दा कर रहे हैं 
(गो कि यहूदियों के इसी मुताल्बे पर हज़ार ताने के बाद भी मुहम्मद न दिखा सके). 
मुस्लमान मुहम्मद के पास आ गए इस लिए इन को पास की गुमराही में वह डाले हुए हैं. इन दिनों दूर की गुमराही मुहम्मद का तकिया कलाम बना हुवा है.

"ऐ तमाम लोगो! यह तुहारे पास तुमहारे रसूल अल्लाह कि तरफ़ से तशरीफ़ लाए हैं, सो तुम यकीन रखो तुम्हारे लिए बेहतर है।"
सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (173)

मुहम्मद लोगों को फुसला रहे हैं, लोग हर दौर में काइयाँ हुवा करते हैं, वह अपना फ़ायदा देख कर रिसालत का फ़ायदा उठाते है. कुर्ब जवार में वह हर एक पर पैनी नज़र रखते है, जहाँ किसी में खुद सरी देखते हैं, उसे ज़िन्दा उठवा लेते हैं. उसे मंज़र ए आम पर बांध कर इबरत नाक सज़ाएं देते हैं. जिस से अमन ओ अमान का ख़तरा होता है उसको एक मुक़ररर मुद्दत तक झेलते है. ओलिमा हर बात खूब जानते हैं मगर हर मुहम्मदी ऐबों की पर्दा पोशी करते हैं, इसी में उनकी ख़ैर है. 
मुसलमानों में एक अवामी इन्क़लाबआना बेहद ज़रूरी है. 

"मसीह इब्ने मरियम तो और कुछ भी नहीं, अलबत्ता अल्लाह के रसूल हैं. मसीह हरगिज़ अल्लाह के बन्दे बन्ने से आर नहीं करेंगे और न मुक़र्रिब फ़रिश्ते."
सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (174)

मुहम्मद फ़ितरत से एक लड़ाका, शर्री और शिद्दत पसंद इन्सान थे.
दख्ल़ अंदाजी उनको पसंद न थी. तमाम आलम पर छाई ईसाइयत को छेड़ कर एक बड़ी ताक़ से बैर बाधना उनकी सिर्फ़ हिमाक़त कही जा सकती है जिसका नतीजा दुन्या की करोरों जानें अपने वजूद को गँवा कर अदा कर चुकी हैं और करती रहेंगी.

"अगर कोई शख्स मर जाए जिस की कोई औलाद न हो, जिस की बहन हो तो उसको उसके तुर्के का आधा मिलेगा और वह शख्स उसका वारिस होगा और अगर उसकी औलाद न हों और अगर दो हों तो उनको उसके तुर्के का दो तिहाई मिलेगा और अगर भाई बहन हों मर्द, औरत तो एक मर्द को दो औरतों के हिस्से के बराबर. अल्लाह तअला इस लिए बयान करते हैं कि तुम गुमराही में मत पडो और अल्लाह तअला हर चीज़ को जानने वाले हैं।"
सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (177)

यह है मुहम्मदी अल्लाह के विरासती बटवारे का क़ानून जिस पर बड़े बड़े कानून दान अपने सरों को आपस में लड़ा लड़ा कर लहू लुहान कर सकते हैं और अलिमान दीन दूर खड़े तमाशा देखा करें.

"मर्द हाकिम हैं औरतो पर, इस सबब से कि अल्लाह ने बअजों को बअजों पर फ़ज़ीलत दी है. और जो औरतें ऐसी हों कि उनकी बद दिमाग़ी का एहतेमाल हो तो उनको ज़बानी नसीहत करो और इनको लेटने की जगह पर तनहा छोड़ दो और उनको मारो, फिर वह तुम्हारी इताअत शुरू कर दें तो उनको बहाना मत ढूंढो"
सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (178)



क्या कोई मुसलमान अपनी लख़्त ए जिगर बेटी को ऐसे क़ुरआनी पसंद करेगा?



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 20 January 2018

Hindu Dharm Darshan-130- V-15



वेद दर्शन - - -    
       

 खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

हे मनुष्यों ! 
जिसने चंचल धरती को दृढ किया, क्रोधित पर्वतों को नियमित किया, विशाल आन्तरिक्ष को बनाया और आकाश को स्थिर किया, वही इंद्र है.
द्वतीय मंडल सूक्त 12-2 

वाह ! वाह !! वाह!!!
गोया गोया राजा इन्दर, मिनी अल्लाह मियाँ भी हुए. 
धन्य है पंडित जी.
*
हे मनुष्यों ! 
जो सोम रस निचोडने वाले यजमान, पुरोडाश पकाने वाले व्यक्ति, स्तुति रचना करने वाले एवं पढने वाले की रक्षा करता है. 
हमारा अन्न सोम एवं स्तोत्र जिसे बढ़ाने वाले हैं, हमारे इंद्र हैं. 
द्वतीय मंडल सूक्त 12-14 

पुरोहित जी मादक भंग को कूटने, पीसने, भिगोने और निचोड़ने वाले यजमान (मेज़बान) को और पुरोडाश (पकवान) बनाने वाले बावरची के उत्थान का भी ख़याल रखते हैं. 
उनके भले में ही सब का भला है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 19 January 2018

Soorah Nisa 4 Q-6

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
***********


निसाँअ 4 
क़िस्त 6   
अल्लाह कहता है - - -
"मुनाफ़िक़ जब नमाज़ को खड़े होते हैं तो बहुत काहिली के साथ खड़े होते हैं, सिर्फ आदमियों को दिखाने के लिए और अल्लाह का ज़िक्र भी नहीं करते, मुअल्लक़ (टंगे हुए) हैं दोनों के दरमियाँ. न इधर के, न उधर के. जिन को अल्लाह गुमराही में डाल दे, ऐसे शख्स के लिए कोई सबील (उपाय) न पाओ गे।"
सूरह निसाँअ पाँचवाँ पारा- आयात (144) 

मुजरिम तो मुहम्मदी अल्लाह हुवा जो नमाज़ियों को गुमराह किए हुए है और ना हक़ ही बन्दों के सर इलज़ाम रख रहा है कि वह मुनाफ़िक़ और काहिल हैं.

"जो लोग कुफ़्र करते हैं अल्लाह के साथ और उसके रसूल के साथ वह चाहते हैं फ़र्क़ रखें अल्लाह और उसके रसूल के दरम्यान, और कहते हैं हम बअज़ों पर तो ईमान लाते हैं और बअज़ों के मुनकिर हैं और चाहते हैं बैन बैन (अलग-अलग) राह तजवीज़ करें, ऐसे लोग यक़ीनन काफ़िर हैं."
सूरह निसाँअ छटवां पारा- (युहिब्बुल्लाह) आयात (151)

जनाब! 
नमाज़ एक ऐसी बला है जिसमें नियत बांधते ही ज़ेहन मुअल्लक़ हो जाता है, अल्लाह का नाम लेकर दुन्या दारी में, इसकी गवाही एक ईमानदार मुसलमान दे सकता है. खुद मुहम्मद को तमाम क़ुरआनी और हदीसी ख़ुराफ़ात नमाजों में ही सूझती थीं. 
मदीने में अक्सरीयत जनता मुहम्मद को अन्दर से उस वक्त तक पसंद नहीं करती थी मगर, चूँकि चारो तरफ़  इस्लामी हुकूमतें क़ायम हो चुकी थी और मदीने पर भी, इस लिए मर्कज़ियत (केंद्र) तो उनको हासिल थी. फिर भी थे नापसंदीदा ही. कैसे बे शर्मी के साथ अल्लाह की तरह ख़ुद को मनवा रहे हैं. आज उनका तरीक़ा ही उनके चमचे आलिमान दीन अपनाए हुए हैं. मुसलमानों! बेदारी लाओ.
नूह, मूसा, ईसा जैसे मशहूर नबियों के सफ़ में शामिल करने के लिए मुहम्मद एहतेजाज (विरोध) करते हैं कि लोग उनको भी उनकी ही तरह क्यूँ तस्लीम नहीं करते. वह उनको काफ़िर कहते हैं और उनका अल्लाह भी. मुहम्मद अपनी ज़िन्दगी में ही सोलह आना अपनी मनमानी देखना चाहते हैं जो कि उमूमन ढोंगियों के मरने के बाद होता है. इन्हें क़तई गवारा नहीं कि  कोई उनकी राय में दख्ल अंदाज़ी करे, जो उनकी रसालत पर असर अंदाज़ हो. 
लोगों को अपनी इन्फ्रादियत (व्यक्तिगतत्व) भी अज़ीज़ होती है, इसलाम में निफ़ाक़ (विरोध) की ख़ास वजह यही है. यह सिलसिला मुहम्मद के ज़माने से शुरू हुवा तो आज तक जारी है. इसी तरह उस वक़्त अल्लाह की हस्ती को तस्लीम करते हुए, मुहम्मद की ज़ात को एक मुक़ररर हद में रहने की बात पर हज़रत बिफर जाते हैं और बमुश्किल तमाम बने हुए मुसलमानों को काफ़िरर कहने लगते हैं.

"आप से अहले किताब यह दरख़्वास्त करते हैं कि आप उनके पास एक ख़ास नविश्ता (लिखी हुई) किताब आसमान से मंगा दें, सो उन्हों ने मूसा से इस से भी बड़ी दरख़्वास्त की थी और कहा था कि हम को अल्लाह तअला को खुल्लम खुल्ला दिखला दो. उनकी गुस्ताख़ी के सबब उन पर कड़क बिजली आ पड़ी. फिर उन्हों ने गोशाला तजवीज़ किया था, इस के बाद बहुत से दलायल उनके पास पहुँच चुके थे. फिर हम ने उसे दर गुज़र कर दिया था, और मूसा को हम ने बहुत बड़ा रोब दिया था."
सूरह निसाँअ छटवां पारा- आयात (153)

देखिए कि लोगो की जायज़ मांग पर अल्लाह के झूठे रसूल कैसे कैसे रंग बदलते हैं, जवाज़ में कहीं पर कोई मर्दानगी नज़र आती है? कोई ईमान दिखाई पड़ता है, 
आप को कहीं कोई सदाक़त की झलक नज़र आती है? 
उनकी इन्हीं अदाओं पर यह इस्लामी हिजड़े गाया करते हैं ,
"मुस्तफा जाने आलम पे लाखों सलाम"

"और हम ने उन लोगों से क़ौल क़रार लेने के वास्ते कोहे तूर को उठा कर उन के ऊपर टांग दिया था और हम ने उनको हुक्म दिया था कि दरवाज़े में सरलता से दाखिल होना और हम ने उनको हुक्म दिया था कि शनिवार के बारे में उल्लंघन न करना और हम ने उन से क़ौल व् क़रार निहायत शदीद लिए. सो उनकी अहद शिकनी की वजह से और उनकी कुफ़्र की वजह से अहकाम इलाही के साथ और उनके क़त्ल करने की वजह से ईश्वीय दूत अनुचित और उन के इस कथन की वजह से कि हमारे ह्रदय सुरक्षित हैं  बल्कि इन के कुफ़्र के सबब - - - "
सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (154-55)

ये हैं तौरेत के वाकेआती कुछ टुकड़े जो कि अनपढ़ मुहम्मद के कान में पडे हुए हैं उसे वे शायर के तौर पर वह भी अल्लाह बन कर कुरआन की पागलों की सी रचना कर रहे हैं और इस महा मूरख कालिदास के इशारे को उसके होशियार पंडित ओलिमा सदियों से मानी पहना रहे हैं. 
कहानी कहते कहते खुद मुहम्मदी अल्लाह भटक जाता है, 
उसको यह अलिमाने दीन अपनी पच्चड़ लगा कर रास्ते पर लाते हैं. 
जब तक आम मुसलमान इन मौलानाओं से भपूर नफ़रत नहीं करेंगे, 
इनका उद्धार होने वाला नहीं।

बात मूसा की चले तो ईसा को कैसे भूलें? 
कुरआन के रचैता ये तो उम्मी की फ़ितरत बन चुकी है, 
इस बात की गवाह खुद कुरआन है. 
मुहम्मदी अल्लाह कहता है - - -

"मरियम पर उनके बड़ा भारी इलज़ाम धरने की वजह और उनके इस कहने की वजेह से हम ने मसीह ईसा पुत्र मरियम जो कि अल्लाह के रसूल हैं को क़त्ल कर दिया गया. हालाँकि उन्हों ने न उनको क़त्ल किया, न उनको सूली पर चढाया, लेकिन उनको इश्तेबाह (शंका) हो गया और लोग उनके बारे में इख्तेलाफ़ करते हैं, वह ग़लत ख़याल में हैं, उनके पास इसकी कोई दलील नहीं है बजुज़ इसके कि अनुमानित बातों पर अमल करने के और उन्हों ने उनको यक़ीनी बात है कि क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह तअला ने उनको अपनी तरफ़ उठा लिया और अल्लाह तअला ज़बरदस्त हिकमत वाले हैं और कोई शख्स अहल किताब से नहीं रहता मगर वह ईसा अलैहिस्सलाम की अपने मरने से पहले ज़रूर तस्दीक़ कर लेता है और क़यामत के रोज़ वह शख़्स इन पर गवाही देंगे."
सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात( 156-159)

मूसा और ईसा अरब दुन्या की धार्मिक केंद्र के दो ऐसे विन्दु हैं जिन पर पूरी पश्चिम ईसाई और यहूदी आबादी केंद्रित है. 
"ओल्ड टेस्टामेंट "यानी तौरेत इन को मान्य है. 
इनकी आबादी दुन्या में सर्वाधिक है, दुन्या की कुल आबादी का आधे से ज़्यादा है. कहा जा सकता है कि तौरेत दुन्या की सब से पुरानी रचना है जो मूसा कालीन नबियों और स्वयं मूसा द्वारा शुरू की गई और ४०० सालों बाद के दाऊद के ज़ुबूरी गीतों को अपने दामन में समेटे हुए, ईसा काल तक पहुंची, 
आदम और हव्वा की कहानी और दुन्या का वजूद छह सात हज़ार साल पहले का ?इसमें ज़रूर कोरी कल्पना है जिसे खुद इस की तहरीर कंडम करत्ती है, मगर बाद के वाकिए हैरत नाक सच बयान करते हैं. 
ऐसी क़ीमती दस्तावेज़ को ऊपर लिखी मुहम्मद की जेहालत, बल्कि दीवानगी के आलम में बकी गई बकवास को लाना तौरेत की तौहीन है. जिसको अल्लाह ख़ुद शक ओ शुबहा भरी आयत कहता हो उसको समझने की क्या ज़रुरत? जाहिल क़ौम इसे पढ़ती रहे और अपने मुर्दों को बख़श कर उनका भी आकबत ख़राब करती रहे.
हम कहते हैं मुसलमान क्यूँ नहीं सोचता कि उसके अल्लाह अगर हिकमत वाला है तो अपनी आयत साफ़  साफ़ क्यूँ अपने बन्दों को बतला सका, क्यूँ कारामद बातें नहीं बतलाएं? क्यूँ बार बार ईसा मूसा की और उनकी उम्मत की बक्वासें हम हिदुस्तानियों के कानों में भरे हुए है? 
वह फिर दोहरा रहा है कि यहूदियों पर बहुत सी चीज़ें हराम करदीं, 
अरे तेल लेने गए यहूदी, करदी होंगी उन पर हराम, हलाल, हमसे क्या लेना देना, क्यों हम इन बातों को दोहराए जा रहे है? 
यहूदी ज्यूज़ बन गए आसमान में छेद कर रहे हैं और हम अहमक़ मुसलमान उनकी क़ब्रो की मरम्मत करके मुल्लाओं को पाल पोस रहे हैं हमारे लिए दो जून की रोटी मोहाल है, ये अपनी माँ के ख़सम ओलिमा हम से कुरानी गलाज़त ढुलवा रहे हैं. 
पैदाइशी जाहिल अल्लाह एक बार फिर नूह को उठता है, पूरे क़ुरआन में बार बार वह इन्हीं गिने चुने नामों को लेता है जो इस ने सुन रखे हैं, 
कहता है- - -
"और मूसा से अल्लाह ने ख़ास तौर पर कलाम फ़रमाया, उन सब को ख़ुश ख़बरी देने वाले और खौ़फ़  सुनाने वाले पैग़म्बर इस लिए बना कर भेजा था ताकि अल्लाह के सामने इन पैग़म्बरों के बाद कोई उज्र बाक़ी न रहे और अल्लाह तअला पूरे ज़ोर वाले और बड़ी हिकमत वाले हैं."
ऐसी बकवासें क़ुरआनी आयतें हुईं?
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 18 January 2018

Hindu Dharm Darshan-129



गीता और क़ुरआन
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
यदि कोई कृष्णाभावनामृत अंगीकार कर लेता है तो भले ही वह शाश्त्रानुमोदित कर्मों को न करे अथवा ठीक से भक्ति न करे और चाहे वह पतित भी हो जाए तो इसमें उसकी हानि या बुराई नहीं होगी. किन्तु यदि वह शाश्त्रानुमोदित सारे कार्य करे तो उसके किस काम का है ?
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 1.5.17

और क़ुरआन कहता है - - - 
"कुल्ले नफ़्सिन ज़ाइक़तुलमौत''-हर जानदार को मौत का मज़ा चखना है, और तुम को तुम्हारी पूरी पूरी पादाश क़यामत के रोज़ ही मिलेगी, सो जो शख्स दोज़ख से बचा लिया गया और जन्नत में दाखिल किया गया, सो पूरा पूरा कामयाब वह हुवा। और दुनयावी ज़िन्दगी तो कुछ भी नहीं, सिर्फ धोके का सौदा है।" 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (185) 

क्या गीता और कुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती पर शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ 
क्या इस काबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए, गवाह बनाया जाए ???


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 17 January 2018

Soorah Nisa 4 Q-5

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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निसाँअ 4 पाँचवाँ पारा 
क़िस्त 5  

हलाक़ू के समय में अरब दुन्या का दमिश्क़ शहर इस्लामिक माल ए ग़नीमत से ख़ूब फल फूल रहा था. ओलिमा ए दीन (धर्म गुरू) झूट का अंबार किताबों की शक्ल में खड़ा कर रहे थे. 
हलाक़ू बिजली की तरह दमिश्क़ पर टूटा, 
लूट पाट के बाद  उसने ओलिमा की ख़बर ली, जो इस्लामी झूट के किताबों की मीनार खडी किए हुए थे. 
सब को इकठ्ठा किया और पूछा यह किताबें किस काम आती हैं? 
जवाब था पढने के. 
फिर पूछा - सब कितनी लिखी गईं? 
जवाब- साठ हज़ार. 
फिर उसने पूछा तुम लोग और क्या करते हो? ज़रीया मुआश ??
ओलिमा बोले हम लोग आलिम हैं हमारा यही काम है. 
हलाक़ू पर  हलाक़त का जलाल चढ़ गया. 
हुक्म दिया- - -
 इन किताबों को तुम लोग खाओ. 
ओलिमा बोले हुज़ूर यह खाने की चीज़ थोढ़े ही है. 

हलाक़ू बोला यह किसी काम की चीज़ नहीं है, 
और न ही तुम किसी कम की चीज़ हो. 
हलाक़ू के सिपाहिओं ने उसके इशारे पर दमिश्क की लाइब्रेरी में आग लगा दी. वह उस वक़्त दुन्या की सबसे बड़ी इस्लामी लाइब्रेरी थी. 
और सभी ओलिमा को मौत के घाट उतार दिया. 
आज भी इस्लामिक और तमाम धार्मिक लाइब्रेरी को आग के हवाले कर देने की ज़रुरत है.
क़ज़ज़ाक़ लुटेरे और वहशी अपनी वहशत में कुछ अच्छा भी कर गए. 
हलाक़ू का ही पोता चंगेज़ ख़ान जिसने इस्लाम को स्वीकारा मगर  क़ज़ज़ाक़ परम्परा के साथ. 
मुसलमान होने के बाद उसने दो मुल्लाओं को नौकरी पर रख लिया ताकि वह समय समय पर उसकी रहनुमाई किया करें. कि मौक़ा ब मौक़ा इस्लाम क्या कहता है. 
उनमें एक थे बड़े मुल्ला और दूसरे छोटे मुल्ला, 
दोनों एक दूसरे के छुपे दुश्मन. जैसा कि हमेशा से होता चला आ रहा है.
एक दिन अचनाक चंगेज़ कि बूढी माँ मर गई. 
बड़े मुल्ला इस्लामिक तौर तरीक़े बतलाने के लिए तलब किए गए, 
बाक़ी मंगोली क़बीलाई एतबार से जो होता है वह होगा, उस से इस्लाम का कोई लेना देना नहीं. 
माँ के साथ साथ उसके तमाम नौकर चाकर, साज व् सामान, कुछ दिनों का खाना पीना दफ़न करना क़ज़ज़ाक़ी हुक्म हुवा, 
मौक़ा मुनासिब था कि बड़े मुल्ला छोटे को इसी बहाने निपटा दें.
उनहोंने चंगेज़ को राय दिया कि हुज़ूर क़ब्र में मुनकिर नकीर मुर्दे को ज़िदा करके सवाल जवाब के लिए आते है, 
एक मुल्ला की वहां ज़रुरत पड़ेगी, अम्माँ बेचारी कहाँ जवाब दे पाएगी ? बेहतर है कि छोटे मुल्ला को इन के हमराह कर दें. 
वह बहुत क़ाबिल भी है. 
चंगेज़ को बात मुनासिब लगी और हुक्म हुवा कि छोटे मुल्ला को अम्माँ के साथ दफ़न कर दिया जाए. 
हुक्म सुन कर छोटे मुल्ला की जान निकल गई कि यह कारस्तानी बड़े मुल्ला की है. 
वह भाग कर चंगेज़ के पास गया और बोला यह क्या नादानी कर रहे हैं आप?. हुज़ूर समझदारी से काम लें , बूढी माँ के लिए बूढ़े मुल्ला को रखिए.
आप ने सुना नहीं कि बड़ा होकर भी उसने मेरी तारीफ़ की. 
मैं यक़ीनन उस से ज़्यादा क़ाबिल हूँ.
आप मुझको अपने लिए बचा के क्यूं नहीं रखते, 
आप के सर लाखों के ख़ूनों का गुनाह है, मैं बखूबी मुनकिर नकीर से निमट सकता हूँ, आपका हम उम्र भी हूँ.
अम्माँ के लिए इस बूढ़े मुल्ला को भेज दें,ये मुनासिब होगा. 
चंगेज़ को बात समझ में आ गई और बड़े मुल्ला जी बुढिया के साथ दफ़न कर दिए गए.

क़ज़ज़ाक़ों का क़ज़ज़ाकिस्तान इस्लाम के असर में आकर एक इस्लामी मुल्क बन गया था.
७९ साल तक रूस की ला मज़हबीयत ने उसे मुसलमान से इंसान बनाया फिर वह आज़ाद हुए. 
आज़ाद क़ज़ज़ाकिस्तान के सामने मुस्लिम मुमालिक ने फिर इस्लामी लानत के टुकड़े फेंके जिसे उस जगी हुई कौम ने ठुकरा दिया.
चंगेज़ का पोता तैमूर लंग हुवा जिसकी ज़ुल्म की कहानी दिल्ली कभी नहीं भूलेगी. तैमूर का पोता बाबर, बाबर के पोते दर पोते बहादुर शाह ज़फर और उनकी पोती आज कोलकोता की गली में चाय कि फुट पाथी दूकान पर झूटी प्यालियाँ धोती है.

अब अल्लाह की २+२=५ की बातों पर आओ और 
मुसलमान बने रहो या फिर आँखें खोलो, 
बहादुर और ईमान दार मोमिन बन कर जीने का अहद करो. 
मोमिन जिसका कि इस्लाम ने इस्लामी करण करके मुस्लिम कर दिया है और अपने झूट को सच का जामा पहना दिया.

अल्लाह कहता है.- - - 
"यह तो कभी न हो सकेगा कि सब बीवियों में बराबरी रखो, तुम्हारा कितना भी दिल चाहे." 
सूरह निसाँअ 4 पाँचवाँ पारा- आयात (129) 

यह क़ुरआनी आयत है अपनी ही पहली आयात के मुक़ाबले में जिसमें अल्लाह कहता है दो दो तीन तीन चार चार बीवियां कर सकते हो मगर मसावी सुलूक और हुक़ूक़ की शर्त है, और अब अपनी बात काट रहा है, 
कुरानी कठमुल्ले मुहम्मदी अल्लाह की इस कमजोरी का फ़ायदा यूँ उठाते है की अल्लाह ये भी तो कहता है. 

"ऐ ईमान वालो! इंसाफ पर खूब क़ायम रहने वाले और अल्लाह के लिए गवाही देने वाले रहो."
सूरह निसाँअ 4 पाँचवाँ पारा- आयात (135) 

मुसलमानों !
सोचो तुम्हारा अल्लाह इतना कमज़ोर है कि बन्दों की गवाही चाहता है? 
अगर तुम पीछे हटे तो वोह मुक़दमा हार जाएगा. 
उस झूठे और कमज़ोर अल्लाह को हार जाने दो. 
ताक़त वर जीती जागती क़ुदरत तुम्हारा इन्तेज़ार अपनी सदाक़त की बाहें फैलाए हुए कर रही है.

"जब एहकाम ए इलाही के साथ इस्तेह्ज़ा (मज़ाक) होता हुवा सुनो तो उन लोगों के पास मत बैठो - - - इस हालत में तुम भी उन जैसे हो जाओगे।'' 
सूरह निसाँअ 4 पाँचवाँ पारा- आयात (140) 

मुहम्मद की उम्मियत में पुख्तगी थी, अपनी जेहालत पर ही उनका ईमान था जिसमें वह आज तक कामयाब हैं. जब तक जेहालत क़ायम रहेगी मुहम्मदी इसलाम क़ायम रहेगा. 
इस आयात में यही हिदायत है कि तालीमी रौशनी में इस्लामी जेहालत का मज़ाक बनेगा. "ज़मीन नारंगी की तरह गोल और घूमती हुई दिखती है, रोटी की तरह चिपटी और क़ायम नहीं है." 

एहकाम ए इलाही में ज़्यादा तर इस्तेहज़ा के सिवा है क्या ? 
इस में एक से एक हिमाक़तें दरपेश आती हैं. 👀