Tuesday 2 January 2018

Hindu Dharm Darshan-122




गीता और क़ुरआन

सज्जन पुरुष अर्जुन कहता है - - -

यदि हम ऐसे आततायियों का बद्ध करते हैं तो हम पर पाप चढ़ेगा,
अतः यह उचित न गोगा कि घृतराष्ट्र के तथा उनके मित्रों का बद्ध करें.
हे लक्षमी पति कृष्ण ! 
इस में हमें क्या लाभ होगा ?
और अपने ही कुटुम्भियों को मार कर हम किस प्रकार सुखी हो सकते हैं ?   
हे जनार्दन ! 
यद्यपि लोभ से अभिभूत चित वाले यह लोग अपने परिवार को मारने या अपने मित्रों से द्रोह करने में कोई दोष नहीं देखते, 
किन्तु हम लोग जो परिवार को विनष्ट करने में जो अपराध देख सकते  हैं, 
ऐसे पाप कर्मों में क्यों प्रवृति हों ? 
 श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  1   श्लोक 36-37-38

*अर्जुन पहले धर्म मुक्त, इंसानी दर्द का हमदर्द था. 
कृष्ण ने उसे धर्म युक्त कर दिया. 
वह धर्म के अधर्मी गुणों का शिकार हो गया.

युद्ध की आग भड़काने वाले भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
किन्तु अगर तुम यह सोचते हो कि आत्मा सदा जन्म लेता है 
तथा सदा मरता है तो भी, 
हे बाहुबली ! 
तुम्हारे शोक करने का कोई करण नहीं.
;जिसने जन्म लिया है, 
उसकी मृत्यु निश्चित है. 
अपने अपरिहार्य कर्तव्य पालन में तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 2  श्लोक 26-27  

*अभी पिछले दिनों किसी मुल्क में आतंक वादियों ने एक बस्ती जला दी, 
उसमे एक ज़ू था, उसके जानवर भी जलकर मर गए. 
उनसे पूछा गे कि ज़ू के जानवरों की कौन सी खता थी कि तुमने उनको मार दिया ? जवाब था कि जानवरों को तो एक दिन मरना ही था. 
क्या भगवान् केविचार उन आतंकियों से कुछ जुदा हैं.

और क़ुरआन कहता है - - - 

अल्लाह मुहम्मद से कहता है, 
''आप फरमा दीजिए तुम तो हमारे हक में दो बेहतरीयों में से एक बेहतरी के हक में ही के मुताज़िर रहते हो और हम तुम्हारे हक में इसके मुन्तजिर रहा करते हैं कि अल्लाह तअला तुम पर कोई अज़ाब नाज़िल करेगा, अपनी तरफ से या हमारे हाथों से.सो तुम इंतज़ार करो, हम तुम्हारे साथ इंतज़ार में हैं.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (५२)

यह आयत मुहम्मद की फितरते बद का खुला आइना है, कोई आलिम आए और इसकी रफूगरी करके दिखलाए. ऐसी आयतों को ओलिमा अवाम से ऐसा छिपाते हैं जैसे कोई औरत बद ज़ात अपने नाजायज़ हमल को ढकती फिर रही हो. आयत गवाह है कि मुहम्मद इंसानों पर अपने मिशन के लिए अज़ाब बन जाने पर आमादा थे. इस में साफ़ साफ मुहम्मद खुद को अल्लाह से अलग करके निजी चैलेन्ज कर रहे हैं, क़ुरआन अल्लाह का कलाम को दर गुज़र करते हुए अपने हाथों का मुजाहिरा कर रहे हैं. अवाम की शराफत को ५०% तस्लीम करते हुए अपनी हठ धर्मी पर १००% भरोसा करते हैं. तो ऐसे शर्री कूढ़ मग्ज़ और जेहनी अपाहिज हैं 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान



No comments:

Post a Comment