Thursday 4 January 2018

Hindu Dharm Darshan-123


गीता और क़ुरआन

सज्जन पुरुष अर्जुन दुहाई दे रहे हैं कि युद्ध बुरी बला है - - -
>कुल का नाश होने पर सनातन कुल-परम्परा नष्ट हो जाती  है,
और इस तरह शेष कुल भी अधर्म में प्रवित्त हो जाता है. 
>>हे कृष्ण ! 
जब कुल में अधर्म प्रमुख हो जाता है तो कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं 
और स्त्रीतत्व के पतन से.
हे वृष्ण वंशी ! 
अवांछित संतानें उत्पन्न होती हैं.
>>>अवांछित संतानों की वृद्धि से निश्चय ही परिवार के लिए 
तथा पारिवारिक परम्परा को विनष्ट करने वालों के लिए नरकीय जीवन उत्पन्न होता है. ऐसे पतित कुलों के पुरखे गिर जाते हैं, 
क्यों कि उन्हें जल तथा पिंड दान देने की क्रियाएं समाप्त हो जाती हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  1   श्लोक 39-40-41 

लड़ाई पर आमादः भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>सारे जीव प्रारंभ में अव्यक्त रहते हैं, मध्य अवस्था में व्यक्त होते हैं और विनष्ट होने पर पुनः अव्यक्त हो जाते हैं. अतः शोक करने की क्या आवश्यकता है ?
>>कोई आत्मा को आश्चर्य की तरह देखता है, 
कोई इसे आश्चर्य की तरह बताता है, 
तथा कोई इसे आश्चर्य की तरह सुनता है, 
किन्तु कोई कोई इसके विषय में सुन कर भी कुछ नहीं समझ पाते.
>>>हे भरतवंशी !
शरीर में रहने वाले (देही) का कभी भी बद्ध नहीं किया जा सकता. 
अतः तुम्हें किसी भी जीव के लिए शोक करने की आवश्यकता नहीं.
श्रीमद् भगवद भगवद् गीता अध्याय 2- श्लोक 28-29-30 

*अर्जुन कहते हैं खेत की और भगवान सुनते हैं खलियान की. 
जिस प्रकार कुरीच चचा भोले भाले भतीजे को गुमराह करता है 
उसी तरह गीता के भगवान् अर्जुन को पथ भ्रष्ट कर रहे हैं. 
गीता और क़ुर आन का सम्मान अंतर राष्ट्रीय पटल पर सदयों से भारत का अपमान कर रहा है. इनकी गहराइयों में जाकर कोई उप महाद्वीप का रोग समझे.

और क़ुरआन कहता है - - - 
मुहम्मद क़ीमती इंसानी ज़िन्दगी को अपने मुफ़ाद के लिए जेहाद के नज़र यूँ करते हैं - - - 

''बिला शुबहा अल्लाह तअला ने मुसलमानों से उनके जानों और उनके मालों को इस बात के एवज़वाज़ ख़रीद लिया है कि उनको जन्नत मिलेगी, वह लोग अल्लाह की राह में लड़ते हैं , क़त्ल करते हैं, क़त्ल किए जाते हैं, इस पर सच्चा वादा है तौरेत में, इन्जील में, और कुरआन में और अल्लाह से ज्यादा अपना वादा कौन पूरा करने वाला है? तो तुम लोग अपने बयनामे पर जिसका तुम ने अल्लाह के साथ मुआमला ठहराया है ,ख़ुशी मनाओ.'' 
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१११)

यही कुरानी आयतें तालिबानी ज़ेहनों को आत्म घाती हमलों पर आमादः करती हैं और मुसलामानों को इस तरक्क्की याफ़्ता दुन्या के सामने ज़लील करती हैं. इनपर तमाम दुन्या के शरीफ़ और समझदार कयादत को एक राय होकर पाबंदी आयद करना चाहिए.
क्या क़ुरआन और गीता में कहीं पर भी विरोध नज़र आ रहा है ?
दोनों ही अम्न पसंद इंसानों को लड़ते रहने के लिए पोत्साहित करते है. 
जिहाद और धर्म युद्ध से ही धर्म और मज़हब का वजूद कायम है.
 जिस दिन दुन्या पुर अम्न होगी यह काफ़ूर हो चुके होंगे, 
या यूँ कहिए कि इनका दफ्न हो जाना ही अम्न और शान्ति का तक़ाज़ा है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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