Saturday 13 January 2018

Hindu Dharm Darshan-127



वेद दर्शन - - -            
खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

हे शूर इंद्र ! तुमने अधिक मात्रा में जल बरसाया, उसी को घृत असुर ने रोक लिया था. तुमने उस जल को छुड़ा लिया था. तुमने स्तुत्यों द्वारा उन्नति पाकर स्वयं को मरण रहित मानने वाले दास घृत को नीचे पटक दिया था. 
द्वतीय मंडल सूक्त 11-2 

कुरआन की तरह वेद को भी  हिन्दू समझ नहीं पाते, वह अरबी में है, यह संस्कृत में. ज़रुरत है इन किताबों को लोगों को उनकी भाषा में पढाई जाए और इसे विषयों में अनिवार्य कर दिया जाए जब तक कि विद्यार्थी इसे पढने से तौबा न करले.
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हे शूर इंद्र ! तुम बार बार सोमरस पियो. मद (होश) करने वाला सोमरस तुमको प्रसन्न करे. सोम तुम्हारे पेट को भर कर तुम्हारी वृध करे. पेट भरने वाला सोम तुम्हें तिरप्त करे.  
 द्वतीय मंडल सूक्त 11-11

सोमरस अर्थात दारू हवन की ज़रूरी सामग्री हुवा करती थी, 
अब पता नहीं है या नहीं हवन के बाद शराब इन पुरोहितों को ऐश का सामान होती.
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हे इंद्र ! तुम्हारी जो धनयुक्त स्तोता की इच्छा पूरी करती है, वह हमें प्रदान करो. तुम सेवा करने योग्य हो, इस लिए हमारे अतरिक्त वह daxina किसी को न देना. हम पुत्र पौत्रआदि को साथ लेकर यज्ञ में तुम्हारी अधिक स्तुति करेंगे.   
द्वतीय मंडल सूक्त 11-21 
वेद ब्रह्मणों कि दुआ है और बाक़ियों के लिए बद दुआ. इसे आज भी मानने वाले कितने स्वार्थी हैं.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान



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