Tuesday 23 January 2018

Hindu Dharm Darshan-131- G-12



गीता और क़ुरआ

अर्जुन पूछता है - - -
अब मैं अपनी कृपण- दुर्बलता के कारण अपना कर्तव्य भूल गया हूँ और सारा धैर्य खो चूका हूँ. ऐसी अवस्था में मैं आपसे पूछ रहा हूँ कि जो मेरे लिए श्रेयस्कर हो, उसे निश्चित रूप से बताएं. अब मैं आपका शिष्य हूँ और आपका शरणागत . कृपया मुझे आदेश दें. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 2   श्लोक 7 

भगवान् कृष्ण अर्जुन से कहते हैं - - -
अनिवाशी (कभी नाश न होने वाला) अप्रमेय (न नाप तौल कर सकने वाला ) तथा शाश्वत जीव के भौतिक शरीर का अंत आवश्यम्भावी है, 
अतः हे भारत वंशी युद्ध करो . 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 2   श्लोक 18  

इंसानी शरीर की रचना ऐसी वैसी है, इस लिए उसे युद्ध करना चाहिए ?
भगवान् बात पच नहीं पा रही. दूसरी तरफ़ आप ॐ शान्ति का पाठ पढ़ाते हैं ? 
यह धर्म का डबुल स्टैण्डर्ड, जवाब तलब है.

और क़ुरआन कहता है - - - 
"और अल्लाह कि राह में क़त्ताल करो. 
कौन शख्स है ऐसा जो अल्लाह को क़र्ज़ दिया 
और फिर अल्लाह उसे बढा कर बहुत से हिस्से कर दे 
और अल्लाह कमी करते हैं और फराखी करते हैं और तुम इसी तरफ ले जाए जाओगे" 
(सूरह अलबकर-२ तीसरा पारा तिरकर रसूल आयत २४४+२४५) 

क्या गीता और कुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती पर शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ 
क्या इस काबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए, गवाह बनाया जाए ???


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment