Wednesday 3 January 2018

Soorah Aale-Imraan 3 Qist 8

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह आले इमरान                                    
क़िस्त-8
                                                                  
जंगे ओहद की हार पर लोगों में फैली बद गुमानी, बे चैनी और बग़ावत पर मुहम्मद धीरे धीरे क़ाबू पा रहे हैं. उनका अल्लाह मज़बूत होता चला जा रहा है. 
देखिए उसकी बे ग़ैरत हिम्मत की दाद दीजिए - - - 
"हाँ! क्या ये खयाल करते हो कि जन्नत में दाखिल हो गए, हालां कि अभी तक अल्लाह ने उन लोगों को तो देखा ही नहीं जिन्हों ने तुम लोगों में से जेहाद की हो और न उन लोगों को देखा जो लोग साबित क़दम रहे हों, तुम तो मरने की तमन्ना कर रहे थे." 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा आयात (142)

मुसलमानों! 
तर्क ए इसलाम के लिए यही आयत काफ़ी है, 
जो अल्लाह दावा करता हो कि वह कायनात की हर मख्लूक़ के हर एक अमल ओ हरकत की खबर रखता है, जिसके हुक्म के बगैर कोई पत्ता भी न हिलता हो, वह कुरआन में कहता है कि 
"हालां कि अभी तक अल्लाह ने उन लोगों को तो देखा ही नहीं जिन्हों ने तुम लोगों में से जेहाद की हो और न उन लोगों को देखा जो लोग साबित क़दम रहे हों"
कुरान क़यामत तक बदला नहीं जा सकता, ये बात इसकी ज़िल्लत के लिए मुनासिब ही है, 
मगर क्या इस के साथ साथ तुम नस्ल ए इंसानी भी न बदलने का अहेद किए बैठे हो?

"और तुम मरने की तमन्ना कर रहे थे, मौत के सामने आने से पहले, सो इस को खुली आँखों से देखा था."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा आयात (143)

हारी हुई जंगे ओहद के बारे में जब चे मे गोइयाँ होती हैं तो होशियार नबी इस की ज़िम्मे दारियाँ अल्लाह पर डाल देते हैं. अल्लाह जंग जूओं को मावज़ा देने में टाल मटोल करते हुए कहता है - - - 
"अभी इसे मालूम नहीं कि जंग तुमने कैसी लड़ी (वैसे) तुम तो मौत की तमन्ना पहले ही कर रहे थे."
अल्लाह ने यहाँ पर लम्बी ना मर्दाना बहस की है जो की इन्तेहाई शर्मनाक है, खास कर मुस्लमान दानिश वरों के लिए, 
रह गई बात पढ़े लिखे जाहिलों के लिए तो उनको जेहालत ही अज़ीज़ है, 
वह अपने इल्म ए नाक़िस के साथ जहन्नम में जाएँ. 
कुरान इंसानी क़त्ले आम जेहाद के एवाज़ ऊपर शराब और शबाब से भरी जन्नत दिलाने का यक़ीन दिलाता है, ग़ालबन यही यक़ीन उनकी तमन्ना है. 
अब देखिए अल्लाह बेवकूफ बन जाने वालों को कैसे ताने देता है 
"तुम तो मौत की तमन्ना पहले ही कर रहे थे." 
मतलब साफ है की तुम मेरे झांसे में आए.

"और मुहम्माद निरे अल्लाह के रसूल ही तो हैं आप से पहले भी कई अल्लाह के रसूल गुज़र चुके हैं सो अगर आप का इंतक़ाल भी हो जावे या अगर आप शहीद ही हो जाएँ तो क्या लोग उल्टे फिर जाएँगे और जो उल्टा फिर भी जाएगा तो अल्लाह का कोई नुकसान न होगा."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा आयात (144)

मुहम्मद निरे अल्लाह के रसूल तो नहीं मगर निरे घाघ और पैकर ए दरोग़ ज़रूर हैं. ठीक कहते हैं कि इसलाम मे रुकने या फिरने से उसके अल्लाह का कोई नुकसान या नफ़ा होने का नहीं मगर इनकी ईजाद से डेढ़ हज़ार साल से इंसानियत शर्मिंदा है. 
जब तक इन्सान जेहनी बलूग़त को नहीं छूता इस्लामी शर्मिंदगी उस पर ग़ालिब रहेगी.

"हम अभी डाले देते हैं हौल काफ़िरों के दिलों में बसबब इस के कि उन्हों ने अल्लाह का शरीक ऐसी चीजों को ठहराया जिस की कोई दलील अल्लाह तअला ने नाज़िल नहीं फ़रमाई और इन की जगह जहन्नम है. और वह बुरी जगह है."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा आयात (151)

अल्लाह का डेढ़ हज़ार साल पहले का "अभी" कभी नहीं आया. 
हुवा उल्टा मुसलमानों के दिलों में हौल ज़रूर पड़ा हुवा है.
 काफ़िरों के पास बे बुन्याद दलीलों का न होना, बेहतर है, कुरान के होने से. 
काफ़िरों के पास सैकडों कारामद ग्रन्थ उस वक़्त मौजूद थे जिनका नाम भी अनपढ़ मुहम्मद ने सुना नहीं होगा. 
जंगे ओहद की शिकस्त के बाद मुसलमानों में बड़ी बे चैनी का आलम था. अल्लाह इन पर इल्ज़ाम लगाता है कि उन्हों ने आख़रत के बजाए दुन्या को तरजीह दिया. हार की फ़ज़ीहत थी, जीती हुई जंग में लालची मुसलमानों की लालच. जो नक़ली माले ग़नीमत लूटने के लिए दौड़ पड़े, जो कि मुख़ालिफ़ की हिकमत ए अमली थी. 
हुवा यूँ की मुसलमानों ने देखा कि कुछ औरतें गठरियाँ लिए भाग रही है जिनको उन्हों ने माल समझा और दौड़ पड़े उसे लूटने. मुहम्मद आवाज़ लगाते रहे लौट आओ मगर किसी ने इनकी न सुनी. 
कुछ लोग एह्तेजजन कहते है हमारी कुछ चलती है क्या? 
मुहम्मद कहते हैं - - - 
चली तो सब अल्लाह की है. 
कुछ लोग कहते हैं हम मना कर रहे थे की मौत (जेहाद) की तरफ़ मत जाओ. 
मुहम्मद कहते हैं मौत आती है तो घर बैठे बैठे आ जाती है, मक़तूल का 
क़त्ल होना तो उसका मुक़द्दर था. 
मुहम्मद मरने वालों के पस्मान्दगानको यूं भी समझाते हैं कि ये अल्लाह की आज़माइश थी इन लोगों की बातिन की जो पीठ मोड़ कर मैदान जंग से वापस आए. 
फिर दूसरी बोली बोलते हैं इन को शैतान ने इन के कुछ आमाल के बाईस बहका दिया. मुहम्मद किज़्ब और मक्र के मरहम से शिकस्त खुर्दों के ज़ख्म भर रहे हैं साथ साथ उन पर नमक पाशी भी कर रहे हैं.

"और यक़ीन मानो की अल्लाह ने इन्हें मुआफ़ कर दिया और अगर तुम अल्लाह की राह में मारे जाओ या मर जाओ तो बिल ज़रुरत अल्लाह के पास की मग्फ़ेरत और रहमत, उन चीज़ों से बेहतर है जिन को यह लोग जमा कर रहे हैं."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा आयात (145-158)

अगर मर गए या मारे गए तो बिल ज़रुरत अल्लाह के पास ही जमा होगे. 
इस बीसवीं सदी में ऐसी अंध विशवासी बातें? 
अल्लाह इंसानी लाशें जमा करेगा दोज़ख सुलगाने के लिए? 
अल्लाह अपने नबी मुहम्मद की तारीफ़ करता है कि अगर वह तुनुक और सख्त मिज़ाज होते तो सब कुछ मुन्तशिर हो गया होता? यानी कायनात का दार व् मदार उम्मी मुहम्मद पर मुनहसर था? 
इसी रिआयत से ओलिमा उनको सरवर ए कायनात कहते हैं. 
मुहम्मद को अल्लाह सलाह देता है कि ख़ास ख़ास उमूर पर मुझ से राय ले लिया करो. गोया अल्लाह एक उम्मी, दिमागी फटीचर को मुशीर कारी का अफ़र दे रहा है. 
अस्ल में इस्लामी अफ़ीम पिला पिला कर आलिमान ए इसलाम ने मुसलमानों को दिमागी तौर पर दीवालिया कर दिया है.
नबूवत अल्लाह के सर चढ़ कर बोल रही है, 
वक़्त के दानिश वर खून का घूट पी रहे हैं कि जेहालत के आगे सर तस्लीम ख़म है. मुहम्मद मुआशरे पर पूरी नज़र रखे हुए हैं .एक एक बाग़ी और सर कश को चुन चुन कर ख़त्म कर रहे हैं या फिर ऐसे बदला ले रहे हैं कि दूसरों को इबरत हो. 
हदीसें हर वाक़िए की गवाह हैं और कुरान जालिम तबा रसूल की फ़ितरत का, मगर बदमाश ओलिमा हमेशा मुहम्मद की तस्वीर उलटी ही अवाम के सामने रक्खी. इन आयातों में मुहम्मद की करीह तरीन फ़ितरत कि बदबू आती है, मगर ओलिमा इनको, इतर से मुअत्तर किए हुए है. 

अल्लाह बने मुहम्मद कहत्ते हैं - - - 
"हकीक़त में अल्लाह ने मुसलमानों पर बड़ा एहसान किया है जब कि इनमें इन्हें के  जिंस के एक ऐसे पैगम्बर को भेजा कि वह इनको अल्लाह कि आयतें पढ़ कर सुनाते हैं."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा आयात (164)

बक़ोल सलमान रश्दी कुरआन की आयतों का इस से अच्छा कोई नाम हो ही नहीं सकता जो उसने रखा है, 
" शैतानी आयतें "(सैटनिक वर्सेज़). 
मुसलमान आखें मूँद कर इस की तिलावत करते रहें ताकि शैतान इन को अपने काबू में रख सके. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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