Monday 8 January 2018

Soorah nisa 4 Q-1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह निसाँअ ४ 
क़िस्त 1  

"ऐ लोगो ! अपने परवर दिगार से डरो, जिसने हमको एक जानदार से पैदा किया और उस जानदार से उसका जोड़ा पैदा किया और उन दोनों से बहुत से मर्द और औरतें फैलाईं और क़राबत से भी डरो . बिल यक़ीन अल्लाह तअला सब की इत्तेला रखता है."
आयत (१) 

ऐ मुसलमानों! 
सब से पहले तो अपने अन्दर से अल्लाह का खौ़फ़ दूर करो. 
अल्लाह अगर है तो किसी को डराता नहीं, उसने एक निज़ाम बना कर, इस ज़मीन को इंसान के हवाले कर दिया है. हर अच्छे और बुरे अमल का अंजाम इसी दुन्या में मिल जाता है. 
डरो तो अपने अन्दर बैठे ज़मीर से डरो जो कम से कम इन्सान को कोई बुरा काम करने से रोकता है, 
उस ज़मीर के इंसाफ़ से डरो. 
अब अल्लाह राय देता है कि क़राबत दारियों से डरो, 
भला क्यूँ, क्या क़राबत दार भी छोटे अल्लाह होते हैं? 
मुहम्मद को राय देना चाहिए कि क़राबत में रिश्तों का एहतराम करो, 
ख़ैर वह कोई मुफ़क्किर नहीं थे फ़क़त उम्मी थे.
तौरेती नक़ल आदम की कहानी है कि पहला इन्सान आदम मिटटी के पुतले से बना, फिर उसकी पसली से हव्वा बनी और फिर उनसे नस्ल ए इंसानी फैली. यह सब मन गढ़ंत है. 
इन्सान इर्तेक़ाई (रचना कालिक)मरहलों को तय करता हुआ आज की दुन्या में मौजूद है.
 
"जिन बच्चों के बाप मर जाएँ तो उनका माल उनको पहुंचाते रहो, 
अच्छी चीज़ को बुरी चीज़ से मत बदलो और अगर तुम्हें एहतेमाल हो कि यतीम लड़कियों के साथ इंसाफ़ न कर सकोगे तो और औरतों से जो तुम्हें पसँद हों निकाह कर लो. दो दो, तीन तीन या चार चार, बस कि इंसाफ सब के साथ कर सको, वर्ना एक, और जो लौंडी तुम्हारी मिलकियत में है, वही सही." 
आयत (२-३)

जंग जूई का दौर था मर्द आपस में क़त्ल ओ ख़ून किया करते थे. औरतें अपने बच्चों के साथ बेवा और यतीम हो जाया करते, आज यतीमों पर तरस खाने का वक़्त गया. अल्लाह के क़ानून में दूर अनदेशी नहीं है. 
इन चार चार शादियों का फ़रमान भी उसी माज़ी के लिए था, आज ये बात बेजा मानी जाती है मगर अरबी शेख आज भी उन्हीं फ़रमान का नाजायज़ फ़ायदा उठा रहे हैं. 
उस वक़्त साहिबे हैसियत लोग ज़्यादः से ज़्यादः लावारिस औरतों और बच्चों को सहारा दे दिया करते थे, चार बीवियों के बाद भी मजबूर और गरीब औरतें क़नीजें बन जाती थीं, 
यह बात हिन्दू समाज से बेहतर थी कि बेवाओं को पंडों को अय्याशी के लिए सन्यास में दे दी जाएं.
 
"यह सब अहकाम मज़्कूरह ख़ुदा वंदी ज़ाब्ते हैं और जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा अल्लाह उसको ऐसी बहिश्तों में दाख़िल करेगा जिसके नीचे नहरें जारी होंगी. हमेशा हमेशा उसमें रहेंगे, यह बड़ी कामयाबी है."
आयत (८-१३)

यह आयत क़ुरआन  में बार बार दोहराई गई है. 
अरब की भूखी प्यासी सर ज़मीन के लिए पानी की नहरें, वह भी मकानों के नीचे, पुर कशिश हो सकती हैं मगर बाक़ी दुन्या के लिए यह जन्नत जहन्नम जैसी हो सकती है. 
मुहम्मद अल्लाह के पैग़ामबर होने का दावा करते हैं और अल्लाह के बन्दों को झूटी लालच देते हैं. 
अल्लाह के बन्दे इस इक्कीसवीं सदी में इस पर भरोसा करते हैं. 
अल्लाह के क़ानूनी ज़ाब्ते अलग ही हैं कि  उसका कोई क़ानून ही नहीं है.

"जो औरतें बेहयाई का काम करें तुम्हारी बीवियों में से, सो तुम लोग उन औरतों पर अपने लोगों में से चार आदमी गवाह करो, सो अगर वह लोग गवाही दे दें तो इन्हें घरों में मुक़य्यद रखो. यहाँ तक कि उनकी मौत उनका ख़ात्मा कर दे या अल्लाह उनके लिए कोई राह पैदा कर दे." 
आयत (१५)

यह आयतें आलमी हुक़ूक़ इंसानी के मुंह पर तमाचा हैं. 
मुहम्मदी अल्लाह ने औरत की बेबसी और बेकसी को बरक़रार रखा है. इस क़ुरआनी एहकाम पर आलमी बिरादरी आवाज़ उठाए, 
अगर मुसलमानों का ज़मीर बेदार ही नहीं होता. 
इसको मानने वाला हर शख्स इंसानियत का मुजरिम है. 
उसे इंसानी समाज में रहने के हक़ से महरूम किया जाय.

 
"और जो मर्द बेहयाई का अमल करें, उनको तुम अज़ीयत पहुँचाओ और अगर वह तौबा कर लें तो अल्लाह मुआफ़ करने वाला है." 
आयत (१६)

मर्द अल्लाह है, उसके तमाम एक लाख चौबीस हज़ार पैग़म्बर मर्द. 
लगता है औरत इंसानी मख्लूक़ से अलग होती है.
मर्द को इसका मालिक और हाकिम बनाया है, मरदूद अल्लाह ने. 
औरत को तडपा तडपा कर मार डालने की राय देता है 
और मर्द को बहरहाल मुआफ़ कर देने की रज़ा मंदी देता है.
 
"तुम पर हराम की गईं तुम्हारी माएँ और तुम्हारी बेटियाँ और तुम्हारी बहनें और तुम्हारी फूफियाँ और तुम्हारी खालाएं और भतीज्याँ और भान्जियाँ. तुम्हारी वह माएँ जिन्हों ने तुम्हें दूध पिलाया हो और तुम्हारी वह बहनें जो दूध पीने की वजह से हैं, तुम्हारी बीवियों की माएँ और तुम्हारी बीवियों की बेटियां जो तुम्हारी परवरिश में रहती हों, उन बीवियों से जिनके साथ तुमने सोहबत की हो और तुम्हारी बेटियों की बेटियां और दो सगी बहनें" 
आयत (२३)

ऐसा लगता है कि माएँ किसी ज़माने में अरब के कुछ क़बीलों में हलाल हुवा करती थीं कि मुहम्मद इसको आज से हराम कर रहे हैं.
शराब पहले हलाल थी हम्ज़ा और अली कि मामूली सी रंजिश के बिना पर, अली के हक़ में शराब रातो रात हराम हो गई थी. 
इसी तरह अहमक रसूल फ़र्द पर उसकी माँ, बहनें, बेटियाँ और दीगर मोहतरम और अज़ीज़ तर रिश्तों को हराम कर रहा है. 
खुद इन गन्दगीयों तक समा जाने के नतीजे के यह अहकाम हैं जिन पर ख़ुद अमल करने वाला, दूसरों को रोकता है. 
सूरह अहज़ाब में देखेंगे कि कैसे इस अल्लाह के नक़ली रसूल  ने अपने गोद ली हुई औलाद की बीवी से जिंसी तअल्लुक़ क़ायम किया.

जैसे कि फुफेरी बहन ज़ैनब को अपने बेटे से ब्याह कर फिर उस पर डोरे डाले और रंगे हाथों पकडे जाने पर एलान किया कि ज़ैनब का निकाह मेरे साथ हो चुका है, अल्लाह ने निकाह पढाया और जिब्रील ने गवाही दी.
जिन रिश्तों को हलाल और हराम के ख़ानों में डाला है उसका कोई जवाज़ भी नहीं बतलाया. दो सगी बहने क्यूँ हराम हुईं जब कि बेहतर होता कई हालत में बनिस्बत इसके कि कोई ग़ैर हो.
मोहम्मद ने जिन रिश्तों को हराम किया है वह तो अफ़्रीक़ा के क़बीलों का मुखिया भी फ़र्द पर हराम किए हुए था और है.

"मर्द हाकिम हैं औरतो पर, इस सबब से कि अल्लाह ने बअजों को बअजों पर फ़ज़ीलत दी है. और जो औरतें ऐसी हों कि उनकी बद दिमाग़ी का एहतेमाल हो तो उनको ज़बानी नसीहत करो और इनको लेटने की जगह पर तनहा छोड़ दो और उनको मारो, फिर वह तुम्हारी इताअत शुरू कर दें तो उनको बहाना मत ढूंढो."
आयत (९३४)

मुहम्मदी अल्लाह के ज़ुल्म व् सितम, सदियों से मुसलमान औरतें झेल रही हैं. वह इसके ख़िलाफ़ आवाज़ भी बुलंद नहीं कर सकतीं क्यूँ कि मर्द ताक़त वर है जो अल्लाह के क़ानून के सहारे उसे ज़ेर किए रहता है. 
सिन्फ़ ए नाज़ुक क़ुदरत के बख़शे हुए इनाम में सरे फ़ेहरिश्त है, 
इसके अस्मत का जितना एहतराम किया जाए, उतनी ही ज़िदगी मसरूर होती है.

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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