Monday 15 January 2018

Soorah Nisa 4 Q-4

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह निसाँअ ४ 
क़िस्त- 4   

मैं पहले उम्मी मुहम्मद की एक भविष्य वाणी यानी हदीस से आप को आगाह कराना चाहूंगा, 
उसके बाद उनकी शाइरी कुरआन पर आता हूँ - - -

''दूसरे ख़लीफ़ा उमर के बेटे अब्दुल्ला के हवाले से ... 
रसूल मक़बूल सललललाहो अलैहे वसललम (मुहम्मद की उपाधियाँ) ने फ़रमाया एक ऐसा वक़्त आएगा कि उस वक़्त तुम लोगों की यहूदियों से जंग होगी, अगर कोई यहूदी पत्थर के पीछे छुपा होगा तो पत्थर भी पुकार कर कहेगा कि ऐ मोमिन मेरी आड़ में यहूदी छुपा बैठा है, आ इसको क़त्ल कर दे. 
(बुख़ारी १२१२)
आज मुसलमान पहाड़ी पत्थरों में छुपे यहूदियों के ही बोसीदा ईजाद हथियारों से लड़ कर अपनी जान गँवा रहे हैं. इंसानी हुक़ूक़ उनको बचाए हुए है मगर कब तक? 
मुहम्मद की जेहालत रंग दिखला रही है. 
  
क़ुरआन कहता है - - - 
"बअज़े ऐसे भी तुम को ज़रूर मिलेंगे जो चाहते हैं तुम भी बे ख़तर होकर रहो और अपने क़ौम से भी बे ख़तर होकर रहें. जब इन को कभी शरारत की तरफ़ मुतवज्जो किया जाता है तो इस में गिर जाते हैं. यह लोग अगर तुम से कनारा कश न हों और न तुम से सलामत रवी रखें और न अपने हाथ को रोकें तो ऐसे लोगों को पकडो और क़त्ल कर दो जहाँ पाओ " 
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (91) 

मुहम्मद ये उन लोगों को क़त्ल कर देने का हुक्म दे रहे हैं जो आज सैकुलर जाने जाते हैं और मुसलमानों के लिए पनाह ए अमां बने हुए हैं. 
भारत में आज़ादी के पहले यह भी मुसलमानों के लिए काफ़िर ओ मुशरिक जैसे ही थे, मगर इब्नुल वक़्त ओलिमा आज इनकी तारीफ़ में लगे हुए हैं. वैसे भी नज़रियात बदल जाते हैं, मज़हब बदल जाते हैं मगर खून के रिश्ते कभी नहीं बदलते. मुहम्मदी इसलाम इन्सान से ग़ैर फ़ितरी काम कराता है, इसी लिए बिल आख़ीर रुसवा ए ज़माना है. 
मैं एक बार फिर आप की तवज्जो को होश में लाना चाहता हूँ कि इस कायनात का निगराँ, वह अज़ीम हस्ती अगर कोई है भी तो क्या उसकी बातें ऐसी टुच्ची किस्म की हो सकती हैं जो क़ुरआन कहता है? 
किसी बस्ती के ना इंसाफ मुख्या की तरह, या कभी किसी कस्बे के बे ईमान बनिए जैसा ?. 
कभी गाँव के लाल बुझक्कड़ की तरह ?. 
अल्लाह भी कहीं ज़नानो की तरह बैठ कर पुत्राओ-भत्राओ करता है? 
कुन फ़यकून की ताक़त रखता है तो पंचायती बातें क्यूँ? 
आख़िर मुसलमानों को समझ क्यों नहीं आती, उस से पहले उसे हिम्मत क्यों नहीं आती? 

"और किसी मोमिन को शान नहीं की किसी मोमिन को क़त्ल करे और किसी मोमिन को ग़लती से क़त्ल कर दे तो उसके ऊपर एक मुसलमान ग़ुलाम या लौंडी को आज़ाद करना है और ख़ून बहा है, जो उसके ख़ानदान के हवाले से दीजिए, मगर ये की वह लोग मुआफ़  कर दें." 
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (92)

"और जो किसी मुसलमान का क़सदन क़त्ल कर डाले तो इस की सज़ा जहन्नम है जो हमेशा हमेशा को इस में रहना." 
सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा आयात (93) 

बड़ी ताक़ीद है कि मोमिन मोमिन को क़त्ल न करे, 
इस्लामी तारीख़ जंगों से भरी पड़ी हैं और ज़्यादा तर जंगें आपस में मुसलमनो की इस्लामी मुल्को और हुक्मरानों के दरमियान होती हैं. 
आज ईरान, ईराक, अफ़ग़ानिस्तान, और पाकिस्तान में खाना जंगी मुसमानों की मुसलमानों के साथ हो रही है. भुट्टू और मुजीबुर रहमान जैसा सिलसिला रुकने का नहीं लेता, मज़े की बात ये है कि इनको मारने वाले शहीद और जन्नत रसीदा होते हैं, मरने वाले चाहे भले न होते हों. मुसलमान आपस में एक दूसरे से हमदर्दी रखते हों या नहीं मगर इस जज़्बे का नाजायज़ फ़ायदा उठा कर एक दूसरे को चूना ज़रूर लगाते हैं.  

"अल्लाह तअला ने इन लोगों का दर्जा बहुत ज़्यादा बनाया है जो अपने मालों और जानों से जेहाद करते हैं, बनिसबत घर में बैठने वालों के, बड़ा उज़्र ए अज़ीम दिया है, यानी बहुत से दर्जे जो अल्लाह तअला की तरफ़ से मिलेंगे।" 
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (95) 

मुहम्मद ने जेहाद का आग़ाज़ भर सोचा था, अंजाम नहीं, अंजाम तक पहुँचने के लिए उनके पास ईसा और गौतम जैसा ज़ेहन ही नहीं था, न ही होने वाले रिश्ते दार नौ शेरवान ए आदिल का दिल था. उन्होंने अपनी विरासत में क़ुरआन की ज़हरीली आयतें छोडीं, तेज़ तर तलवार और माल ए ग़नीमत के धनी ख़ुलफ़ा, उमरा, सुलतान, और खुदा वंद बादशाह, 
साथ साथ ज़ेहनी ग़ुलाम जाहिल उम्मत की भीड़. 

"मुहम्मदी अल्लाह कहता है जब ऐसे लोगों की जान फ़रिश्ते क़ब्ज़ करते हैं जिन्हों ने ख़ुद को गुनाह गारी में डाल रक्खा था तो वह कहते हैं कि तुम किस काम में थे? वह जवाब देते हैं कि हम ज़मीन पर महज़ मग़लूब थे. वह कहते हैं कि क्या अल्लाह की ज़मीन बसी न थी? कि तुम को तर्क ए वतन करके वहाँ चले जाना चाहिए था? सो इन का ठिकाना जहन्नम है,"

अल्लाह अपनी नमाज़ें किसी हालात में मुआफ़ नहीं करता, चाहे आज़ारी व् लाचारी हो या फिर मैदान ए जंग. 
मैदान ए जंग में आधे लोग सफ़ बंद हो जाएँ और बाक़ी नमाज़ की सफ़ में खड़े हो जाएँ. नमाज़ और रोज़ा  अल्लाह की बे रहम ज़मींदार की तरह माल गुज़ारी है.
बहुत देर तक और बहुत दूर तक अल्लाह अपने घिसे पिटे कबाडी जुमलों की खो़न्चा फ़रोशी करता है, फिर आ जाता है अपने मुर्ग की एक टांग पर. 

"जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाख़िल करेगा जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इन में रहेगे. यह बड़ी कामयाबी है." 
सूरह निसाँअ पाँचवाँ पारा- आयात (96-122) 

फिर एक बार कूढ़ मग़ज़ों के लिए मुहम्मदी अल्लाह कहता है - - - 

"और जो शख़्स कोई नेक काम करेगा ख़्वाह वह मर्द हो कि औरत बशरते कि वह मोमिन हो, सो ऐसे लोग जन्नत में दाखिल होंगे और इन पर ज़रा भी ज़ुल्म न होगा." 
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (124) 

अल्लाह न ज़ालिम है न रहीम. 
करोरों साल से दुन्या क़ायम है, 
ईमान दारी के साथ उसकी कोई खबर नहीं है, 
अफवाह, कल्पना, और जज़्बात की बातें बे बुन्याद होती हैं. 
ख़ुद मुहम्मद ज़ालिम तबअ थे और अपने हिसाब से उसका तसव्वुर करते हैं. आम मुसलमानों में ज़ेहनी शऊर बेदार करने के लिए ख़ास अहले होश और बुद्धि जीवियों को आगे आने की ज़रुरत है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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