Friday 19 January 2018

Soorah Nisa 4 Q-6

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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निसाँअ 4 
क़िस्त 6   
अल्लाह कहता है - - -
"मुनाफ़िक़ जब नमाज़ को खड़े होते हैं तो बहुत काहिली के साथ खड़े होते हैं, सिर्फ आदमियों को दिखाने के लिए और अल्लाह का ज़िक्र भी नहीं करते, मुअल्लक़ (टंगे हुए) हैं दोनों के दरमियाँ. न इधर के, न उधर के. जिन को अल्लाह गुमराही में डाल दे, ऐसे शख्स के लिए कोई सबील (उपाय) न पाओ गे।"
सूरह निसाँअ पाँचवाँ पारा- आयात (144) 

मुजरिम तो मुहम्मदी अल्लाह हुवा जो नमाज़ियों को गुमराह किए हुए है और ना हक़ ही बन्दों के सर इलज़ाम रख रहा है कि वह मुनाफ़िक़ और काहिल हैं.

"जो लोग कुफ़्र करते हैं अल्लाह के साथ और उसके रसूल के साथ वह चाहते हैं फ़र्क़ रखें अल्लाह और उसके रसूल के दरम्यान, और कहते हैं हम बअज़ों पर तो ईमान लाते हैं और बअज़ों के मुनकिर हैं और चाहते हैं बैन बैन (अलग-अलग) राह तजवीज़ करें, ऐसे लोग यक़ीनन काफ़िर हैं."
सूरह निसाँअ छटवां पारा- (युहिब्बुल्लाह) आयात (151)

जनाब! 
नमाज़ एक ऐसी बला है जिसमें नियत बांधते ही ज़ेहन मुअल्लक़ हो जाता है, अल्लाह का नाम लेकर दुन्या दारी में, इसकी गवाही एक ईमानदार मुसलमान दे सकता है. खुद मुहम्मद को तमाम क़ुरआनी और हदीसी ख़ुराफ़ात नमाजों में ही सूझती थीं. 
मदीने में अक्सरीयत जनता मुहम्मद को अन्दर से उस वक्त तक पसंद नहीं करती थी मगर, चूँकि चारो तरफ़  इस्लामी हुकूमतें क़ायम हो चुकी थी और मदीने पर भी, इस लिए मर्कज़ियत (केंद्र) तो उनको हासिल थी. फिर भी थे नापसंदीदा ही. कैसे बे शर्मी के साथ अल्लाह की तरह ख़ुद को मनवा रहे हैं. आज उनका तरीक़ा ही उनके चमचे आलिमान दीन अपनाए हुए हैं. मुसलमानों! बेदारी लाओ.
नूह, मूसा, ईसा जैसे मशहूर नबियों के सफ़ में शामिल करने के लिए मुहम्मद एहतेजाज (विरोध) करते हैं कि लोग उनको भी उनकी ही तरह क्यूँ तस्लीम नहीं करते. वह उनको काफ़िर कहते हैं और उनका अल्लाह भी. मुहम्मद अपनी ज़िन्दगी में ही सोलह आना अपनी मनमानी देखना चाहते हैं जो कि उमूमन ढोंगियों के मरने के बाद होता है. इन्हें क़तई गवारा नहीं कि  कोई उनकी राय में दख्ल अंदाज़ी करे, जो उनकी रसालत पर असर अंदाज़ हो. 
लोगों को अपनी इन्फ्रादियत (व्यक्तिगतत्व) भी अज़ीज़ होती है, इसलाम में निफ़ाक़ (विरोध) की ख़ास वजह यही है. यह सिलसिला मुहम्मद के ज़माने से शुरू हुवा तो आज तक जारी है. इसी तरह उस वक़्त अल्लाह की हस्ती को तस्लीम करते हुए, मुहम्मद की ज़ात को एक मुक़ररर हद में रहने की बात पर हज़रत बिफर जाते हैं और बमुश्किल तमाम बने हुए मुसलमानों को काफ़िरर कहने लगते हैं.

"आप से अहले किताब यह दरख़्वास्त करते हैं कि आप उनके पास एक ख़ास नविश्ता (लिखी हुई) किताब आसमान से मंगा दें, सो उन्हों ने मूसा से इस से भी बड़ी दरख़्वास्त की थी और कहा था कि हम को अल्लाह तअला को खुल्लम खुल्ला दिखला दो. उनकी गुस्ताख़ी के सबब उन पर कड़क बिजली आ पड़ी. फिर उन्हों ने गोशाला तजवीज़ किया था, इस के बाद बहुत से दलायल उनके पास पहुँच चुके थे. फिर हम ने उसे दर गुज़र कर दिया था, और मूसा को हम ने बहुत बड़ा रोब दिया था."
सूरह निसाँअ छटवां पारा- आयात (153)

देखिए कि लोगो की जायज़ मांग पर अल्लाह के झूठे रसूल कैसे कैसे रंग बदलते हैं, जवाज़ में कहीं पर कोई मर्दानगी नज़र आती है? कोई ईमान दिखाई पड़ता है, 
आप को कहीं कोई सदाक़त की झलक नज़र आती है? 
उनकी इन्हीं अदाओं पर यह इस्लामी हिजड़े गाया करते हैं ,
"मुस्तफा जाने आलम पे लाखों सलाम"

"और हम ने उन लोगों से क़ौल क़रार लेने के वास्ते कोहे तूर को उठा कर उन के ऊपर टांग दिया था और हम ने उनको हुक्म दिया था कि दरवाज़े में सरलता से दाखिल होना और हम ने उनको हुक्म दिया था कि शनिवार के बारे में उल्लंघन न करना और हम ने उन से क़ौल व् क़रार निहायत शदीद लिए. सो उनकी अहद शिकनी की वजह से और उनकी कुफ़्र की वजह से अहकाम इलाही के साथ और उनके क़त्ल करने की वजह से ईश्वीय दूत अनुचित और उन के इस कथन की वजह से कि हमारे ह्रदय सुरक्षित हैं  बल्कि इन के कुफ़्र के सबब - - - "
सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (154-55)

ये हैं तौरेत के वाकेआती कुछ टुकड़े जो कि अनपढ़ मुहम्मद के कान में पडे हुए हैं उसे वे शायर के तौर पर वह भी अल्लाह बन कर कुरआन की पागलों की सी रचना कर रहे हैं और इस महा मूरख कालिदास के इशारे को उसके होशियार पंडित ओलिमा सदियों से मानी पहना रहे हैं. 
कहानी कहते कहते खुद मुहम्मदी अल्लाह भटक जाता है, 
उसको यह अलिमाने दीन अपनी पच्चड़ लगा कर रास्ते पर लाते हैं. 
जब तक आम मुसलमान इन मौलानाओं से भपूर नफ़रत नहीं करेंगे, 
इनका उद्धार होने वाला नहीं।

बात मूसा की चले तो ईसा को कैसे भूलें? 
कुरआन के रचैता ये तो उम्मी की फ़ितरत बन चुकी है, 
इस बात की गवाह खुद कुरआन है. 
मुहम्मदी अल्लाह कहता है - - -

"मरियम पर उनके बड़ा भारी इलज़ाम धरने की वजह और उनके इस कहने की वजेह से हम ने मसीह ईसा पुत्र मरियम जो कि अल्लाह के रसूल हैं को क़त्ल कर दिया गया. हालाँकि उन्हों ने न उनको क़त्ल किया, न उनको सूली पर चढाया, लेकिन उनको इश्तेबाह (शंका) हो गया और लोग उनके बारे में इख्तेलाफ़ करते हैं, वह ग़लत ख़याल में हैं, उनके पास इसकी कोई दलील नहीं है बजुज़ इसके कि अनुमानित बातों पर अमल करने के और उन्हों ने उनको यक़ीनी बात है कि क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह तअला ने उनको अपनी तरफ़ उठा लिया और अल्लाह तअला ज़बरदस्त हिकमत वाले हैं और कोई शख्स अहल किताब से नहीं रहता मगर वह ईसा अलैहिस्सलाम की अपने मरने से पहले ज़रूर तस्दीक़ कर लेता है और क़यामत के रोज़ वह शख़्स इन पर गवाही देंगे."
सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात( 156-159)

मूसा और ईसा अरब दुन्या की धार्मिक केंद्र के दो ऐसे विन्दु हैं जिन पर पूरी पश्चिम ईसाई और यहूदी आबादी केंद्रित है. 
"ओल्ड टेस्टामेंट "यानी तौरेत इन को मान्य है. 
इनकी आबादी दुन्या में सर्वाधिक है, दुन्या की कुल आबादी का आधे से ज़्यादा है. कहा जा सकता है कि तौरेत दुन्या की सब से पुरानी रचना है जो मूसा कालीन नबियों और स्वयं मूसा द्वारा शुरू की गई और ४०० सालों बाद के दाऊद के ज़ुबूरी गीतों को अपने दामन में समेटे हुए, ईसा काल तक पहुंची, 
आदम और हव्वा की कहानी और दुन्या का वजूद छह सात हज़ार साल पहले का ?इसमें ज़रूर कोरी कल्पना है जिसे खुद इस की तहरीर कंडम करत्ती है, मगर बाद के वाकिए हैरत नाक सच बयान करते हैं. 
ऐसी क़ीमती दस्तावेज़ को ऊपर लिखी मुहम्मद की जेहालत, बल्कि दीवानगी के आलम में बकी गई बकवास को लाना तौरेत की तौहीन है. जिसको अल्लाह ख़ुद शक ओ शुबहा भरी आयत कहता हो उसको समझने की क्या ज़रुरत? जाहिल क़ौम इसे पढ़ती रहे और अपने मुर्दों को बख़श कर उनका भी आकबत ख़राब करती रहे.
हम कहते हैं मुसलमान क्यूँ नहीं सोचता कि उसके अल्लाह अगर हिकमत वाला है तो अपनी आयत साफ़  साफ़ क्यूँ अपने बन्दों को बतला सका, क्यूँ कारामद बातें नहीं बतलाएं? क्यूँ बार बार ईसा मूसा की और उनकी उम्मत की बक्वासें हम हिदुस्तानियों के कानों में भरे हुए है? 
वह फिर दोहरा रहा है कि यहूदियों पर बहुत सी चीज़ें हराम करदीं, 
अरे तेल लेने गए यहूदी, करदी होंगी उन पर हराम, हलाल, हमसे क्या लेना देना, क्यों हम इन बातों को दोहराए जा रहे है? 
यहूदी ज्यूज़ बन गए आसमान में छेद कर रहे हैं और हम अहमक़ मुसलमान उनकी क़ब्रो की मरम्मत करके मुल्लाओं को पाल पोस रहे हैं हमारे लिए दो जून की रोटी मोहाल है, ये अपनी माँ के ख़सम ओलिमा हम से कुरानी गलाज़त ढुलवा रहे हैं. 
पैदाइशी जाहिल अल्लाह एक बार फिर नूह को उठता है, पूरे क़ुरआन में बार बार वह इन्हीं गिने चुने नामों को लेता है जो इस ने सुन रखे हैं, 
कहता है- - -
"और मूसा से अल्लाह ने ख़ास तौर पर कलाम फ़रमाया, उन सब को ख़ुश ख़बरी देने वाले और खौ़फ़  सुनाने वाले पैग़म्बर इस लिए बना कर भेजा था ताकि अल्लाह के सामने इन पैग़म्बरों के बाद कोई उज्र बाक़ी न रहे और अल्लाह तअला पूरे ज़ोर वाले और बड़ी हिकमत वाले हैं."
ऐसी बकवासें क़ुरआनी आयतें हुईं?
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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