Monday 22 January 2018

Soorah Nisa 4 Q-7

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह निसाँअ 4 
क़िस्त 7   

 देखिए कि बे ग़ैरत बना मुहम्मदी अल्लाह क्या कहता है - - - 

"लेकिन अल्लाह तअला बज़रिए इस क़ुरआन के जिस को आप के पास भेजा है और भेजा भी अपने अमली कमाल के साथ, शहादत दे रहे हैं फ़रिश्ते, तस्दीक़  कर रहे हैं और अल्लाह तअला की ही शहादत काफ़ी है. जो लोग मुनकिर हैं और ख़ुदाई दीन के माने हैं, बड़ी दूर कि गुमराही में जा पड़े हैं."
सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (167)

वाह! 
मुद्दआ ओनका है अपने आलम तक़रीर का, 
अल्लाह का अमली कमाल भी कुछ ऐसा ही है कि जैसे मुहम्मद पर कुरआन नाज़िल हुवा. मुहम्मद अपने दोनों हाथ रेहल बना कर हवा में फैलाए हुए थे कि कुरआन आसमान से अपने दोनों बाज़ुओं से उड़ती हुवा  आया और मुहम्मद के बाँहों में पनाह लेता हुवा सीने में समा गया. तभी तो इसे मुस्लमान आसमानी किताब कहते हैं और सीने बसीने क़ायम रहने वाली भी. 
मदारी मुहम्मद डुगडुगी बजा कर मुसलमानों को हैरत ज़दा कर रहे हैं 
(गो कि यहूदियों के इसी मुताल्बे पर हज़ार ताने के बाद भी मुहम्मद न दिखा सके). 
मुस्लमान मुहम्मद के पास आ गए इस लिए इन को पास की गुमराही में वह डाले हुए हैं. इन दिनों दूर की गुमराही मुहम्मद का तकिया कलाम बना हुवा है.

"ऐ तमाम लोगो! यह तुहारे पास तुमहारे रसूल अल्लाह कि तरफ़ से तशरीफ़ लाए हैं, सो तुम यकीन रखो तुम्हारे लिए बेहतर है।"
सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (173)

मुहम्मद लोगों को फुसला रहे हैं, लोग हर दौर में काइयाँ हुवा करते हैं, वह अपना फ़ायदा देख कर रिसालत का फ़ायदा उठाते है. कुर्ब जवार में वह हर एक पर पैनी नज़र रखते है, जहाँ किसी में खुद सरी देखते हैं, उसे ज़िन्दा उठवा लेते हैं. उसे मंज़र ए आम पर बांध कर इबरत नाक सज़ाएं देते हैं. जिस से अमन ओ अमान का ख़तरा होता है उसको एक मुक़ररर मुद्दत तक झेलते है. ओलिमा हर बात खूब जानते हैं मगर हर मुहम्मदी ऐबों की पर्दा पोशी करते हैं, इसी में उनकी ख़ैर है. 
मुसलमानों में एक अवामी इन्क़लाबआना बेहद ज़रूरी है. 

"मसीह इब्ने मरियम तो और कुछ भी नहीं, अलबत्ता अल्लाह के रसूल हैं. मसीह हरगिज़ अल्लाह के बन्दे बन्ने से आर नहीं करेंगे और न मुक़र्रिब फ़रिश्ते."
सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (174)

मुहम्मद फ़ितरत से एक लड़ाका, शर्री और शिद्दत पसंद इन्सान थे.
दख्ल़ अंदाजी उनको पसंद न थी. तमाम आलम पर छाई ईसाइयत को छेड़ कर एक बड़ी ताक़ से बैर बाधना उनकी सिर्फ़ हिमाक़त कही जा सकती है जिसका नतीजा दुन्या की करोरों जानें अपने वजूद को गँवा कर अदा कर चुकी हैं और करती रहेंगी.

"अगर कोई शख्स मर जाए जिस की कोई औलाद न हो, जिस की बहन हो तो उसको उसके तुर्के का आधा मिलेगा और वह शख्स उसका वारिस होगा और अगर उसकी औलाद न हों और अगर दो हों तो उनको उसके तुर्के का दो तिहाई मिलेगा और अगर भाई बहन हों मर्द, औरत तो एक मर्द को दो औरतों के हिस्से के बराबर. अल्लाह तअला इस लिए बयान करते हैं कि तुम गुमराही में मत पडो और अल्लाह तअला हर चीज़ को जानने वाले हैं।"
सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (177)

यह है मुहम्मदी अल्लाह के विरासती बटवारे का क़ानून जिस पर बड़े बड़े कानून दान अपने सरों को आपस में लड़ा लड़ा कर लहू लुहान कर सकते हैं और अलिमान दीन दूर खड़े तमाशा देखा करें.

"मर्द हाकिम हैं औरतो पर, इस सबब से कि अल्लाह ने बअजों को बअजों पर फ़ज़ीलत दी है. और जो औरतें ऐसी हों कि उनकी बद दिमाग़ी का एहतेमाल हो तो उनको ज़बानी नसीहत करो और इनको लेटने की जगह पर तनहा छोड़ दो और उनको मारो, फिर वह तुम्हारी इताअत शुरू कर दें तो उनको बहाना मत ढूंढो"
सूरह निसाँअ ४ छटवां पारा- आयात (178)



क्या कोई मुसलमान अपनी लख़्त ए जिगर बेटी को ऐसे क़ुरआनी पसंद करेगा?



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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