Wednesday 28 February 2018

सूरह अनआम ६ (क़िस्त -10)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अनआम ६
(क़िस्त -10)


संत हसन बसरी का क़िस्सा मशहूर है कि वह जुनूनी कैफ़ियत में, अपने एक हाथ में आग और दूसरे हाथ में  पानी लेकर भागे चले जा रहे थे. लोगों ने उन्हें रोका और माजरा दर्याफ़्त किया, 

वह बोले जा रहा हूँ उस दोज़ख में पानी डालकर बुझा देने के लिए 
और उस जन्नत में आग लगा देने के लिए 
जिनके डर और लालच से लोग नमाज़ें पढ़ते हैं. 
ताबेईन (मुहम्माद कालीन की अगली नस्ल) का दौर था जिसमे उस हस्ती ने ये एलान किया था. 
क़ुरआन का गुमराह कुन दौर था, हसन बसरी के नाम का वारंट निकल गया था, सरकारी अमला उनकी गिरफ़्तारी में सर गर्म था, उनके ख़ैर ख़्वावाह उनको छिपाते फिरते. 
इस्लामी पैग़ाम के बाद आम और ख़ास मुसलमान दोज़ख और जन्नत के तअल्लुक से ही नमाज़ पढता है, जिसको हसन जैसे हक़ शिनाश अज़ सर ए नव ख़ारिज करते थे. ऐसे लोगों की ये जिसारत देख कर उनकी गर्दनें मार देने के एहकाम जारी हुए, 
मंसूर, तबरेज़, सरमद और कबीर इसकी मिसाल हैं.



इक्कीसवीं सदी में रहने वाले मुसलमानों को सातवीं सदी के क़ुरआनी पैग़ाम मुलहिज़ा हो - - -


''ऐ जमाअत जिन्नात और इंसानों की ! 
क्या तुम्हारे पास तुम ही में से पैग़म्बर नहीं आए थे ? जो तुम को मेरे एह्काम बयान किया करते थे और तुम को इस आज के दिन की ख़बर दिया करते थे ? 
वह सब अर्ज़ करेंगे क़ि हम अपने ऊपर इक़रार करते है और लोगों को दुनयावी ज़िन्दगी ने भूल में डाल रखा है और यह लोग मुंकिर होंगे कि वह लोग काफ़िर हैं
''सूरह अनआम आठवाँ पारा (आयत १३१)

मुहम्मद की कल्पित क़यामत का एक सीन ये आयत है. जन्नत में दाख़िल होने वाली इंसानी टोली जहन्नम रसीदे जिन्नातों और इंसानों की टोलियों से पूछेगी कि ऐ लोगो !
क्या तुम्हारे पास मुहम्मद नाम के पैग़म्बर नहीं आए थे जो अल्लाह की राहें बतला रहे थे - - -
मुहम्मद के इन्तेहाई दर्जा मक्र की ये आयतें थीं कि जिसको बज़ोर तलवार मजबूरों को मनवाया गया और इन मजबूरों की नस्लें जब इस में पलती रहीं तो आज वह मक्र का पुतला सललललाहे अलैहे वसल्लम बन गया.

''तुम पर हराम किए गए हैं मुरदार, खून और ख़िन्जीर का गोश्त और जो गैर अल्लाह के नाम से ज़द कर दिया गया हो, जो गला घुटने से मर जावे, जो किसी ज़र्ब से मर जावे, या गिर कर मर जावे, जिसको कोई दरिंदा खाने लगे, लेकिन जिसको ज़बह कर डालो - - -.
''सूरह अनआम आठवाँ पारा (आयत १४६)

और हलाल किया जाता है माले ग़नीमत जो लूट मार और शबख़ून के ज़रिए हासिल किया गया हो, जिसमें बे क़ुसूर लोगों को क़त्ल कर गिया गया हो, औरतों को लौंडियाँ बना कर आपस में बाँट लिया गया हो, बच्चों और बूढों को इनके हाल पर छोड़ दिया गे हो.

''सो इस शख़्स से ज़्यादा ज़ालिम कौन होगा जो हमारी इन आयतों को झूठा बतलाए और इस से रोके. हम अभी इन लोगों को जो कि इन से रोकते हैं, इनको रोकने के सबब सख़्त सज़ा देंगे. यह लोग सिर्फ़ इस अम्र के मुन्तज़िर है कि इन के पास फ़रिश्ते आवें या इन के पास इन का रब आवे या आप के रब कि कोई निशानी आवे. जिस रोज़ आप के रब कि बड़ी निशानी आ पहुंचेगी, किसी ऐसे शख़्स का ईमान इस के काम न आएगा, जो पहले स ईमान नहीं रखता या अपने आमाल में उसने कोई नेक अमल न किया हो. आप फ़रमा दीजिए कि तुम मुन्तज़िर रहो और हम भी मुन्तज़िर हैं.''

मुहम्मद के मज़ालिम की दास्तानें हैं जो आगे आप सिलसिलेवार देखते रहेंगे. ऐसे ज़ालिम इन्सान की बात देखिए कि कहता है 



''इस से बड़ा ज़ालिम कौन होगा जो इसकी चाल घात और मक्र की बात को न माने. इसकी बात मानने से लोगों को रोके,'' 


यह मुहम्मद का बनाया हुआ सांचा आज तक ज़ालिम मुसलामानों के काम आ रहा है.
यह तालिबानी क्या हैं ?
चौदह सौ साल पुराना मुहम्मदी साँचा ही तो उनके काम आ रहा है. 
यह आप को समझाएं बुझाएँगे, डराएँगे और बाद में सबक सिख्लएंगे.
मुसलामानों अल्लाह अगर है तो ऐसा घटिया हो ही नहीं सकता क्या आप ऐसे अल्लाह की इबादत करते हैं? इस पर तो लानत भेजा करिए. 




नोट :-- आयातों में लम्बे लम्बे फ़ासले देखे जा सकते हैं जिनको कि मअनी, मतलब और तबसरे के शुमार में नहीं लिया गया है क्यों कि यह इस लायक़ भी नहीं इन का ज़िक्र या इन पर तबसरा किया जाए. इन पर क़लम उठाना भी क़लम की पामाली है. इस क़दर बकवास है कि आप पढ़ कर बेज़ार हो जाएँ. अफ़सोस सद अफ़सोस कि कौम इस ख़ुराफ़ात को सरों पर उठाए घूमती है.


 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 27 February 2018

Hindu dharm darshaqn G 37



गीता और क़ुरआन

अर्जुन भगवान् कृष्ण पूछते हैं - - -
>हे भगवान् !  
हे पुरुषोत्तम !!
ब्रह्म क्या है ?
आत्मा क्या है ? 
सकर्म क्या है ? 
यह भौतिक जगत क्या है ? 
तथा देवता क्या हैं ? 
कृपा करके यह सब मुझे बताइए.
**हे मधु सूदन ! यज्ञ का स्वामी कौन है ? 
और वह शरीर में कैसे रहता है ? 
और मृत्यु के समय भक्ति में लगे रहने वाले आपको कैसे जान जाते हैं ?
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  - 8 - श्लोक -1+2+3   
>भगवान् कृष्ण जवाब देते हैं - - - 
अविनाशी और दिव्य जीव ब्रह्म कहलाता है 
और उसका नित्य स्वभाव आध्यात्म या आत्म कहलाता है. 
जीवों के भौतिक शरीर से संबंधित गतिविधि 
कर्म या सकाम कर्म कहलाती है. 

>अर्जुन के सवाल आज भी ज्यों के त्यों जीवित और निरुत्तरित हैं. 
भगवन के जवाब धार्मिक झोल-झाल हैं.

और क़ुरआन कहता है - - - 
'आप कह दीजिए - - - 
लोगो!
मैं तुम सब की तरफ उस अल्लाह का भेजा हुवा हूँ, 
जिसकी बादशाही है, तमाम आसमानों और ज़मीन पर है - - - 
अल्लाह पर ईमान लाओ और नबी उम्मी पर 
जो अल्लाह और उसके एहकाम पर ईमान रखते हैं''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१५८)

>लोगों को अल्लाह का इल्म भली भांत था जिसे वह मानते थे मगर जनाब उसकी तरफ से नकली दूत बन कर सवार हो, वह भी उम्मी. 
तायाफ़ के हुक्मरां ने ठीक ही कहा थ कि क्या अल्लाह को मक्का में कोई पढ़ा लिखा ढंग का आदमी नहीं मिला था जिसे अपना रसूल बनाता और रुसवा करके उसके दरबार से निकले. अल्लाह ने तुम्हारी कोई खबर न ली. जाहिलों को लूट मार का सबक सिखला कर कामयाब हुए तो किया हुए.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 26 February 2018

Soorah anaam 6 Qist 9

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अनआम ६
(क़िस्त -9)

पाकिस्तान अपने आप में एक क़ैद ख़ाना बन गया है और हर पाकिस्तानी उम्र क़ैद की सज़ा पाने वाला एक क़ैदी है. जहाँ पर कैदियों की ज़रा सी ज़बानी लग़ज़िश भी ख़ताए-अज़ीम होती है.
एक ईसाई बच्ची को इस बात पर सज़ा दे दी गई कि वह इस्लामी शरीअत की समझ नहीं रखती थी.
बुत शिकन मुसलमान हर ख़ाम माल के बने बुतों को तोड़ने में बहादुरी की पहचान रखते हैं, 
मगर वही मुसलमान हवा के बने बुत अल्लाह से, उनकी हवा खिसकती है. 
ख़ुद तो ख़ुद किसी दूसरे के लिए भी वह साहिबे ईमान होते हैं, 
क्यूँकि उस से भी हवा के बुत की बुराई उन्हें बर्दाश्त नहीं.
वह एक तरफ़ कहते है अल्लाह सब का है मगर दूसरी तरफ़ बन्दा अपने अल्लाह पर एहतेजाज करता है तो वह उससे अपने थमाए हुए अल्लाह को छीन लेता हैं.
ऐसा मुल्क जहाँ आज इक्कीसवीं सदी में इंसान को इतना अख़्तियार नहीं कि वह अपने ख़ालिक़ की तख़लीक़ है, वह अपने बाप को कुछ भी कह सकता है अगर उसकी हक़ तलफ़ी हो रही हो.
दूसरी तरफ़ इनके ज़ेहनी दीवालिया पन देखिए कि "मिस्टर १०%के दलाल" कहे जाने वाले ज़रदारी को अपने सर पर बिठाए हुए हैं. इनकी जिहादी फ़ौज अब भारत के हाथों रुसवा होने की बजाए पूरी दुन्या के हाथों ज़िल्लत उठाएगी. 
छींक आने पर नाक काटने वाले शरीअत के शैदाई नई क़द्रों के सामने नाक रगड़ेंगे मगर इनके गुनाहों की सज़ा कम न होगी. 
अब वह वक़्त ज्यादः दूर नहीं कि इंसान का मज़हब इंसानियत होगा, 
सिर्फ़ इंसानियत. 

मुहम्मदी शरीअत देखिए कि क्या कहती है - - -

''और इसी तरह हम ने हर नबी के लिए दुश्मन बहुत से शैतान पैदा किए. कुछ आदमी, कुछ जिन्न, जिनमें से बअज़े दूसरे बअज़ो को चिकनी चुपड़ी बातों का वस्वुसा डालते रहते हैं ताकि उनको धोके में डाल दें और अगर तुम्हारा परवर दिगार चाहता तो वह यह काम हरगिज़ न कर सकते, सो इन लोगों को और जो लोग यह फ़ितना अंदाज़ी करते हैं, इनको आप रहने दीजिए.''
सूरह अनआम छटां+सातवां पारा (आयत ११३)

मुहम्मद अल्लाह के हुक्म को अव्वल मानते हैं जो बार बार उनकी तहरीक के ख़िलाफ़ असर रखता है, कहते हैं हर नबी के वास्ते अल्लाह शैतान पैदा करता है, तो मतलब ये हुवा कि नबूवत उसको पसंद नहीं. जैसे इस आयत में वह जेहालत की बातें करते हैं, इस पर नादानों को ज़हीन समझाते हैं, तो वह इसे चिकनी चुपड़ी बातों का वस्वुसा और फ़ितना अंदाज़ी कहते हैं. मुसलमान बग़ैर जाने बूझे ऐसी बातों की ही नमाज़ पढ़ते हैं. 
अपने ब्लोग के ख़िलाफ़ एक अद्भुत एतराज़ आया है एक साहब कहते है कि यह मुंकिर क़ुरआन के बारे में १००००००००००००००००००००००००००% झूट बकता है.
भाई मैं क़ुरआन की बाते सब मुहम्मदी अल्लाह की बकी हुई बातें आप को परोस रहा हूँ और मशहूर आलिम शौक़त अली थानवी की लिखी कुरानी तर्जुमे की नक़्ल  है. जिसे मैं ९०% इंसानियत दुश्मन मानता हूँ और आप तो मुझ से कई गुना ज्यादह. 
ऐसे ही नादान लोग अपने और क़ौम के दुश्मन हैं. 

''आपने शैतानों को इंसानों को और जिनों को हर पैग़म्बर का दुश्मन बना दिया था. वह धोका देने के लिए एक दूसरे के दिलों में मुलम्मे की बातें डालते थे और अगर तुम्हारा परवर दिगार चाहता तो ऐसा न होता.''
सूरह अनआम छटां+सातवां पारा (आयत ११४)

गोया हर शैतानी बातें अल्लाह की चाहत है ?
मुहमद की इन फ़ित्तीनी बातों को समझने के बाद उन पर दिन में पांच बार लाहौल भेजने कि ज़रुरत है..

''अली ने एक क़ौम को आग से जला डाला'' यह खबर इब्न ए अब्बास को भी मालूम हुई तो फ़रमाया - - -
अगर मैं होता तो इस क़ौम को अल्लाह की मानिंद (आग से जला कर) अज़ाब न देता जिस तरह कि हुज़ूर ( मुहम्मद) का हुक्म है किसी को अल्लाह के ख़ास अज़ाब से अज़ाब न दिया जाए बल्कि जो शख्स अपना दीन बदल दे, उसको क़त्ल कर दिया जाए.''
(बुखारी १२४५)

मुसलमानों में दो वर्ग ख़ास हैं, 
1-शिया - - (मोहम्मद के रिश्तेदारों के समर्थक)
2-सुन्नी - - कलिमा गो आम मुसलमान.
शियों का कहना है कि पैग़म्बरी अली के लिए आई थी, फ़रिश्ते जिब्रील ने ग़लती की कि बड़े भाई मोहम्मद को थमा दी. शियों ने अली की शान में किताबों से लाइब्रेरियाँ भर दीं, 
अली मौला किसी इबारत को लिख और पढ़ लेते थे बस, 
कर्म उनके ऐसे थे जो हदीस बतला रही है. 
अली मोहम्मद के ले पालक, हमेशा इक़्तेदार के भूखे, एक अदना और मामूली इंसान, उजड, मौक़ा मिला तो बस्ती में एक क़बीले को ज़िदा जला दिया, आज वह छोटे मोहम्मद बने मुसलामानों के लिए ''या अली'' बने हुए हैं. यह क़ौम है दमा दम मस्त कलंदर - -गाती है 
अली दा पहला नम्बर. 

''आप के रब का कलाम वाक़्अय्यत और एतदाल के एतबार से कामिल है. इसके कलाम का कोई बदलने वाला नहीं और वह खूब सुन रहे हैं, खूब जान रहे हैं.''
सूरह अनआम छटां+सातवां पारा (आयत ११६)

जिन ख़ुसूसयात का क़ुरआन से कोई वास्ता नहीं, उसका वह दावा कर रहा है. तमाम वाक़िए सुने सुनाए और बेशतर मुहम्मद के गढ़े हुए हैं. जिनमें न सर न पैर. एतदाल का यह आलम है कि 
अभी अल्लाह जंग और जेहाद की बातें कर रहा है, 
दूसरे लम्हे ही आ जाता है औरत को मर्द से कम तर बतलाने में, 
तीसरे लम्हे दोज़ख की आग भडकाने लगता है. 
उसके कलाम को मुसलामानों की जेहालत और इनके साज़िशी ओलिमा की चालें बदलने नहीं देतीं वर्ना इनमें रक्खा क्या है.

''सो जिस शख्स को अल्लाह ताला रस्ते पर डालना चाहते हैं उसके सीने को इस्लाम से कुशादा कर देते हैं और जिस को बे राह रखना चाहते हैं उसके सीने को तंग कर देते हैं जैसे कोई आसमान पर चढ़ना चाहता हो. इसी तरह अल्लाह ईमान न लाने वाले वाले पर फिटकार डालता है.''
सूरह अनआम छटां+सातवां पारा (आयत १२६)

सच यह है कि जिनको मुहम्मदी अल्लाह ने गुम राह कर दिया है वह राह ए रास्त नहीं पा रहे हैं और जो इसके फंदे में नहीं आए वह चाँद तारों पर सीढियाँ लगा रहे हैं. मुहम्मदी अल्लाह इन पर अपनी ज़हरीली कुल्लियाँ कर रहा है जो कि नीचे गिर कर बिल आख़िर मुसलामानों को पामाल कर रही हैं.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 23 February 2018

Hindu Dharm Darshan-145-V23



वेद दर्शन - - -                           
खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

हे बृहस्पति ! जो तुम्हें हव्य अन्न देता है, 
उसे तुम न्याय पूर्ण मार्ग से ले जाकर पाप से बचाते हो. 
तुम्हारा यही महत्त्व है कि तुम यज्ञ  का विरोध करने वाले को 
कष्ट देते एवं शत्रुओं की हिंसा करते हो. 
द्वतीय मंडल सूक्त 23(4)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

ब्रह्मणस्पति और बृहस्पति भी इंद्र देव की तरह कोई इनके देव होंगे. 
इनके सामने पुरोहित उन लोगों को नाश कर देने की तमन्ना करते हैं 
और उनको उनका हिंसक महत्व बतलाते हैं. 
उनको हिंसा करने का निमंत्रण देते हैं.
एक ओर हिन्दू अहिंसा का पुजारी है कि वह पानी भी छान कर पता है 
और दूसरी ओर हर मौके पर हवन कराता है, 
कि हे देव तुम हिंसा करो, हम पर पाप लगेगा. 
ठीक ही कहा है किसी ने - - -
साही मरे मूड के मारे, हम संतन का का पड़ी - - -  


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Soorah anaam 6 Qist 8

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अनआम ६
(क़िस्त -8)

मुहम्मदी अल्लाह के तमाशे पेश हैं - - - 

''आप जानदार चीज़ों को बेजान से निकल लेते हैं (अंडे से परिंदा) 
और बेजान चीज़ों को जानदार से निकाल देते है (परिदे से अंडा)''
'(सूरह अनआम छटां - सातवां पारा(आयत ९६)

जी हाँ ! यह बात मुहम्मद अल्लाह से कह रहे हैं 
और एलान करते है कि क़ुरआन मुहम्मद से अल्लाह की कही हुई बात है. मुहम्मद के कलाम को अल्लाह का कलाम माना जाता है. क्या ख़ुदाए बरतर ऐसी नादानी की बातें कर सकता है?
अण्डों में जान होती है, इतनी सी बात को ख़ुदाए पुर हिकमत नहीं जानता.
अल्लाह के पयंबर कहलाने वाले मुहम्मद नहीं जानते. 
उनका गाउदी अल्लाह क़ुरआन में बार बार इस आयत को दोहराता है. 
इस्लामी ओलिमा ऐसी आयतों को मुस्लिम अवाम से पर्दा पोशी करते हैं और उनको अंध विशवास का ज़हर पिलाते रहते हैं.

''वह आसमानों और ज़मीन का मूजिद है, इसके औलाद कहाँ हो सकती है? हालाँकि इसकी कोई बीवी तो है नहीं. और अल्लाह ने हर चीज़ को पैदा किया है और हर चीज़ को जानता है.''
सूरह अनआम छटां - सातवां पारा (आयत १०२)

ईसाई, ईसा को ख़ुदा का बेटा कहते हैं, उसकी मुख़ालिफ़त में तर्क हीन बाते करते हैं. मुहम्मद के मुताबिक़  कोई आविष्कारक बाप कैसे हो सकता है? फिर ख़ुद ही कहते हैं- - - 
उसके पास कोई बीवी भी तो नहीं है, 
यह दूसरी जेहालत की दलील है. 
अव्वल तो यह कि ब्रह्मांड का रचैता उसका आविष्कारक कैसे हुआ? 
यह एक जाहिल जपट की बातें हैं. 
जब अल्लाह ने हर चीज़ को पैदा किया तो एक अदद बच्चा पैदा करना उसके लिए क्या मुश्किल था या उसकी जोरू नहीं है इसका इल्म मुहम्मद को कैसे है. मुहम्मद क़ुरआन में ही एक जगह अल्लाह से क़सम खिलवाते हैं 
'' कसम है बाप की और औलाद की - - -'' 

गोया अल्लाह के बीवी बच्चे ही नहीं बाप भी है.

''और अगर अल्लाह को मंज़ूर होता तो ये शिर्क न करते, और हम ने आप को इनका निगराँ नहीं बनाया और न आप इन पर मुख़्तार हैं और गाली मत दो उनको जिनकी यह लोग अल्लाह को छोड़ कर इबादत करते हैं, फिर वह बराए जमल हद से गुज़र कर अल्लाह को गाली देंगे.''
सूरह अनआम छटां - सातवां पारा(आयत १०८+९)

अल्लाह को मंज़ूर है कि वह (मुशरिक) शिर्क करें, फिर आप अल्लाह की रज़ा में बाधा क्यूं बन रहे हैं ?
आप कितने किसम की बातें करते हैं? आप निगराँ ही नहीं मुख़्तार ही नहीं बल्कि मौक़ा मिलते ही तलवार लेकर उनके सरों पर खड़े हो जाते हैं, घिज़वा (जंग) करते हैं और इंसानी ख़ून बहाते हैं. अबू बकर आप के ससुर जब काफ़िर इरवा से कहते - - -
''भाग जा अपने माबूद लात की शर्मगाह (लिंग) चूस'' 
(बुखारी ११४४)
जवाब सुन कर आपको होश आता है ?

''और लोगों ने बड़ा ज़ोर लगा कर अल्लाह की क़सम खाई थी कि इन के पास कोई निशानी आ जाए तो वह ज़रूर ही इस पर ईमान लाएँगे. आप कह दीजिए निशानियाँ सब अल्लाह के क़ब्ज़े में हैं और तुम को क्या ख़बर कि वह निशानियाँ जिस वक़्त आ जाएंगी, यह लोग तब भी ईमान न लाएँगे और हम भी उनके दिलों को और निगाहों को फेर देंगे जैसा कि ये लोग इस पर पहली बार ईमान नहीं लाए और हम इनको इनकी सरकशी में हैरान रहने देंगे''
सूरह अनआम छटां - सातवां पारा(आयत १११०+११)

बाबा इब्राहीम के दो बेटे इसहाक़ और इस्माईल थे. 
इसहाक़ ब्याहता सारा से और इस्माईल सेविका हाजरा से. 
इसहाक़ का वंशज यहूदी हैं जो कि श्रेष्ट माने जाते है और तमाम जाने माने कथित पैग़म्बर इसी में हुए. 
लौड़ी ज़ादे इस्माईलिए रश्क किया करते कि हमारे वंस में कोई पैग़म्बर होता तो क्या बात थी, 
यह बात इस्माईलिए मुहम्मद का सपना बन गया और उन्होंने पुख़्ता इरादा किया कि उनको इस्माईलियों का ईसा, मूसा की तरह ही बनना है. 
यहाँ इसी बात का इस्माईलियों को यह तअना दे रहे हैं. 
ईसा मूसा की तरह ही जब लोगों ने इनसे चमत्कार दिखलाने की बात करते हैं तो मियां कैसी कैसी कन्नी काटते नज़र आते हैं.

''और अगर हम इन पर फ़रिश्ते भी उतार देते और मुर्दे भी इनसे गुफ़्तगू करने लगते और हर चीज़ को उनके सामने पेश कर देते तो भी ये ईमान लाने वाले न थे लेकिन अक्सर इनमें से लोग जेहालत की बातें करते हैं.''
सूरह अनआम छटां - सातवां पारा (आयत ११२)

जनाबे आली! 
अगर आप उनके सामने यह मुअज्ज़े पेश कर देते तो वह न सिर्फ़ ईमान लाते बल्कि ईमान के दरिया में बह जाते. 
यह लोग जाहिल न थे बल्कि ख़ुद आप मुस्तनद जाहिल थे, 
जो ऐसी ग़ैर फ़ितरी बातें उनको समझाते थे. 
मुस्लिम अवाम की बद क़िसमती यह है कि वह आप के बके हुए कलाम में मानी, मतलब और मक़सद ढूंढने के बजाए सवाब ढूंढ रही है, 
नतीजतन वह अज़ाब में मुब्तिला है. 

मेरी बेदार मुसलमानों से गुज़ारिश है कि उन भेड़ बकरियों को फ़िलहाल सवाब की घास चरने दें, 
मगर आप हज़रात मेरी तहरीक में शामिल हो जाएँ. 




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 22 February 2018

Hindu Dharm Darshan-144-G



गीता और क़ुरआन
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
> ऐसा मुक्त पुरुष, 
भौतिक इन्द्रीय सुख की ओर आकृष्ट नहीं होता, 
अपितु सदैव समाधि में रह कर अपने अंतर में आनंद का अनुभव करता है.
इस प्रकार स्वरूप सिद्ध व्यक्ति 
परब्रह्म में एकाग्र चित्त होने के कारण असीम सुख भोगता है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -5 - श्लोक -21  

कृष्णभावनामृत - - - लगता है भांग या गाँजा की खूब घुटी हुई पुडिया है 
जिस का नशा इंसान की सुद्ध बुद्ध खो देता है. 
इसको इंसान पीकर अपनी दरिद्रता को भूल जाता है 
और दही खाकर रबड़ी का स्वाद पाता है. 
कल्पनाओं के उड़न खटोले पर सवार होकर 
स्वर्गलोक का आनंद लेता है. 
या तो फिर दीवाना आकाश को तक तक कर मुस्कुराया करता है. गोश्त पोश्त के बने हुए इंसान को, 
गोश्त पोश्त से मिल कर ही महा आनंद आता है, 
किसी दोस्त की बगल गीरी हो, 
माशूक़ा का स्पर्स हो, 
माँ से लिपटना हो 
या औलाद को गोद में भरना, 
सब का अलग अलग सुख.
इन्द्रीय सुख अथवा मुबाशरत कहते हैं इन सब महान है . 
मुबाशरत से ही बशर (व्यक्ति) की उत्तपत्ति है. 
समाधि में तो क्षण भर नहीं जिया जा सकता. 
मैं नहीं समझ सका कि यह आध्यात्मिक समाधि कैसे कल्पित की जाती है.
समझने की ज़रुरत भी नहीं.

और क़ुरआन कहता है - - - 
मुहम्मदी अल्लाह के तो काम ही निराले हैं. 
इन्द्रीय सुख तो उसके बन्दों की पहली ज़रुरत है. 
कहता है तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेतियाँ हैं, सो अपनी खेतियों में जिस तरफ से होकर चाहो जाओ. इनको जोतो बोओ, औलादों की फसलें काटते रहो. 
>"तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेतियाँ हैं, सो अपनी खेतियों में जिस तरफ़ से होकर चाहो जाओ, और आइन्दा के लिए अपने लिए कुछ करते रहो और यकीन रक्खो कि तुम अल्लाह के सामने पेश होने वाले हो. और ऐसे ईमान वालों को खुश खबरी सुना दो"
(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २२३)
   

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 21 February 2018

Soorah anaam 6 Qist 7

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अनआम ६
(क़िस्त -7)

ज़ेहनी ग़ुस्ल 

ज़िन्दगी एक दूभर सफ़र है, 
यह तन इसका मुसाफ़िर है. 
आसमान के नीचे धूप, धूल और थकान के साथ साथ सफ़र करके हम बेहाल हो जाते हैं. मुसाफ़िर पसीने पसीने हो जाता है, लिबास से बदबू आने लगती है, तबीअत में बेज़ारी होने लगती है, 
ऐसे में किसी साएदार पेड़ को पाकर हम राहत महसूस करते है. कुछ देर के लिए इस मरहले पर सुस्ताते हैं, पानी मिलगया तो हाथ मुंह भी धो लेते हैं   मगर यह पेड़ का साया सफ़र का मरहला होता है, हमें पूरी सेरी नहीं देता, हमें एक भरपूर स्नान कि ज़रुरत महसूस होती है. 
इस सफ़र में अगर कोई साफ़ सफ़फ़ाफ़ और महफूज़ ग़ुस्ल ख़ाना हमको मिल जाए तो हम अन्दर से सिटकिनी लगा कर, सारे कपडे उतार के फेंक देते हैं और मादर ज़ाद नंगे हो जाते हैं, फिर जिस्म को शावर के हवाले कर देते हैं. अन्दर से सिटकिनी लगी हुई है, कोई खटका नहीं है. सामने क़द्दे आदम आईना लगा हुआ है. इसमें बगैर किसी लिहाज़ के अपने पूरे जिस्म का जायज़ा लेते है, आखिर यह अपना ही तो है. बड़े प्यार से मल मल कर अपने बदन के हर हिस्से से गलाज़त छुडाते हैं. 
जब बिलकुल पवित्र हो जाते हैं तो ख़ुश्क तौलिए से शरीर को हल्का करते हैं, इसके बाद धुले जोड़े पहेन कर संवरते हैं. इस तरह सफ़र के तकान से ताज़ा दम होकर हम अपली मंजिल की तरफ़ क़दम बढ़ाते हैं.
ठीक इसी तरह हमारा दिमाग भी सफ़र में है, 
सफ़र के तकान से बोझिल है. सफ़र के थकान ने इसे चूर चूर कर रखा है. जिस्म की तरह ही ज़ेहन को भी एक हम्माम की ज़रुरत है, 
मगर इसके तक़ाज़े से आप बेख़बर हैं जिसकी वजेह से ग़ुस्ल करने का एहसास आप नहीं कर पा रहे हैं. नमाज़ रोज़े पूजा पाठ और इबादत को ही हम ग़ुस्ल समझ बैठे हैं. यह तो सफ़र में मिलने वाले पेड़ नुमा मरहले जैसे हैं, हम्मामी मरहले की नई राह नहीं. 
ज़ेहनी ग़ुस्ल है ?
बड़ी हिम्मत की ज़रुरत है कि आप अपने ज़ेहन को जो भी लिबास पहनाए हुए हैं, महसूस करें कि वह सदियों के सफ़र में मैले, गंदे और बदबूदार हो चुके हैं. इसको नए, फ़ितरी, (लौकिक) ग़ुस्ल खाने की चाहत है. 
 मज़हबी कपट के बोसीदा लिबास को उतार फेंकिए और एक दम उरियाँ हो जाइए, वैसे ही जैसे आपने अपने शरीर को प्यार और जतन से साफ़ किया था, अपने ज़ेहन को नास्तिकता और नए मानव मूल्यों के साबुन से मल मल कर धोइए. 
इल्हाद और नास्तिकता जिसे कि धर्म और मज़हब के सौदागरों ने ग़लत माने पहना रखा है, गालियों जैसा घिनावना लगता है, मगर यही साबुन है जो वास्तविकता की पहचान रखता है. 
जदीद तरीन इंसानी क़दरों की सुगंध में नहाइए, जब आप तबदीली का ग़ुस्ल कर रहे होंगे कोई आप को देख नहीं रहा होगा, अन्दर से सिटकिनी लगी हुई होगी. शुरू कीजिए दिमाग़ी ग़ुस्ल. 
धर्म व् मज़हब, ज़ात पात की मैल को खूब रगड़ रगड़ कर साफ़ कीजिए, हाथ में सिर्फ इंसानियत का कीम्याई साबुन हो. इस ग़ुस्ल से आप के दिमाग का एक एक गोशा पाक और साफ़ हो जाएगा. नए धुले जोड़ों को पहन कर बाहर निकलिए. अपनी शख़्ससियत को बैलौस, बे खौ़फ़ जसारत के ज़ेवरात से सजाइए, इस तरह आप वह बन जाएँगे जो बनने का हक़ क़ुदरत ने आप को अता किया है.
याद रखें जिस्म की तरह ज़ेहन को भी ग़ुस्ल की ज़रुरत हुवा करती है. सदियों से आप धर्म व् मज़हब का लिबास अपने ज़ेहन को पहनाए हुए हैं जो कि गूदड़ हो चुके हैं. इसे उतार के आग या फिर क़ब्र के हवाले कर दें ताकि इसके जरासीम किसी दूसरे को असर अंदाज़ न कर सकें. नए हौसले के साथ खुद को सिर्फ़ एक इंसान होने का एलान कर दें.

अब मुहम्मदी अल्लाह की ग़ैर फ़ितरी और इंसानियत सोज़ बाते सुनें - - -

''जब इब्राहीम ने अपने बाप आज़र से फ़रमाया कि क्या तू बुतों को माबूद क़रार देता है? बेशक मैं तुझको और तेरी सारी क़ौम को सरीह ग़लती में देखता हूँ.''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (७५)

इब्राहीम का बाप आज़र एक मामूली और ग़रीब बुत तराश (मूर्तिकार) था, जो अपने बेटे को अक्सर समझाता रहता कि बेटे हिजरत कर, हिजरत में बरकत है, यहाँ कुछ न कर पाएगा. बाहर निकल तुझे दूध और शहद की नदियों वाला देश मिलेगा. 
फ़रमा बरदार बेटे इब्राहीम ने अपनी जोरू सारा और भतीजे लूत को लेकर एक रोज़ बाहर की राह अख़्तियार की जिसको मुहम्मद ने गुस्ताख़ाना कहानी की शक्ल देकर अपना क़ुरआन बनाया है. 
मुहक्म्मद ने अब्राहम के बाप तेराह (आज़र) को बिला वजेह क़ुरआन में बार बार रुसवा किया है, ये मुहम्मद की मन गढ़ंत है. 
सच पूछिए तो वह इब्राहीम ही इंसानी इतिहास के शुरुआत हैं.

''हमने ऐसे ही तूर (एक परबत) पर इब्राहीम को आसमानों और ज़मीन की ख़्लूक़ात (जीव) दिखलाईं और ताकि वह कामिल यक़ीन करने वाले बन जाएं फिर जब रात को तारीक़ी उन पर छा गई तो उन्हों ने एक सितारा देखा तो फ़रमाया ये हमारा रब है, फिर जब वह ग़ुरूब हो गया तो फ़रमाया मैं ग़ुरूब हो जाने वालों से मुहब्बत नहीं करता. फिर जब चाँद को चमकता हुवा देखा तो फ़रमाया ये मेरा रब है. सो जब वह ग़ुरूब हो गया तो फ़रमाया कि मेरा रब मुझ को हिदायत न करता रहे तो मैं गुमराह लोगों में शामिल हो जाऊं - - -''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (७६-७७-७८)

इब्राहीम, इस्माईल वगैरा का नाम भर यहूदियों और ईसाइयों से उम्मी मुहम्मद ने सुन रखे थे. इन पर क़िस्से गढ़ना इनकी ज़ेहनी इख्तरा है. मुहम्मद की मंजिल ए मक़सूद थी ईसा मूसा की तरह मुक़ाम पाना जिसमें वह कामयाब रहे, मगर इंसानी क़दरों में दाग़दार, उनके पोशीदा पहलू उनको कभी मुआफ़ नहीं कर सकते. 
मुहम्मद के अन्दर छुपा हुआ शैतान उन्हें इंसानियत का मुजरिम क़रार ठहराएगा. 
जैसे जैसे इंसानियत बेदार होगी मुसलमानों के लिए बहुत बुरे दिन आने के इमकान है. 

''और ये ऐसी किताब है जिसको हमने नाज़िल किया है, जो बड़ी बरकत वाली है और पहले वाली किताबों की तस्दीक़ करने वाली है और ताकि आप मक्का वालों को और इस के आस पास रहने वालों को डरा सकें.'' 
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (९३)

जो शै डराए वह बरकत वाली कैसे हो सकती है? 
शैतान, भूत, परेत, सांप, दरिन्दे और गुंडे, सब मख़्लूक़ को डराते हैं, 
यह सब मुफ़ीद कैसे हो सकते हैं? 
मुहम्मद की जिहालत और उनका क़ुरआन, दर असल क़ौम के लिए अज़ाब बन सकते हैं.

''और उस शख़्स से ज़्यादः ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर झूट तोहमत लगाए या यूं कहे की मुझ पर वही (ईश वाणी) आती है, हालाँकि उस के पास किसी बात की वही नहीं आती. और जो कहे जैसा कलाम अल्लाह ने नाज़िल किया है, इसी तरह का मैं भी लाता हूँ और अगर आप उस वक़्त देखें जब ज़ालिम लोग मौत की सख़्तियों  में होंगे और फ़रिश्ते अपने हाथ बढ़ा रहे होंगे - - - हाँ ! अपनी जानें निकालो. आज तुमको ज़िल्लत की सज़ा दी जाएगी, इस लिए कि तुम अल्लाह के बारे में झूटी बातें बकते थे और तुम इस की आयात से तकब्बुर करते थे.''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (९४)

मुहम्मद को पैग़म्बरी का भूत सवार था वह गली कूचे सड़क खेत और खलियान में क़ुरआनी आयतें गाते फिरते और दावा करते यह कि अल्लाह की भेजी हुई हैं. इन वहियों के मुक़ाबिले में कोई एक आयत तो बना कर दिखलाए. लोग इनकी नक़ल में जब आयतें गढ़ते तो यह राह ए फ़रार में इस क़िस्म की बकवास करते. इसे अपने अल्लाह की तरफ़ से नाज़िल बतलाते. 
मुहम्मद ऐसे लोगों को ज़ालिम कहते जो इनकी नक़ल करते जब कि बज़ात ख़ुद वह ज़ालिम नंबर एक थे.

''और उस शख्स से ज़्यादः ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर झूट तोहमत लगाए'' 
कौन बेवक़ूफ़ रहा होगा जो ख़ालिक़े कायनात पर बोहतान जड़ता रहा होगा? मुहम्मद अपनी इन मक्र और बेशर्मी की बातों से अवाम को गुमराह कर रहे हैं. 
मुहम्मद खुद उस पाक और बेनयाज़ ज़ात को अपनी फूहड़ बातों से बदनाम कर रहे हैं. 
कैसी अहमकाना बातें हैं कि ज़ालिमों को मौत से डराते हैं जैसे ख़ुद मौज उड़ाते हुए मरेंगे.

''ऐसा होगा क़यामत के दिन का मुसलामानों का काफिरों पर तअना. जन्नत सिर्फ़ मुसलामानों को ही मिलेगी, वह भी जो नेक आमाल के होंगे," 

नेक आमाल नेक काम नहीं बल्कि मुहम्मद नमाज़ रोज़ा ज़कात और हज वग़ैरह में नेकी देखते हैं. ईसाई,यहूदी और सितारा परस्त के लिए तो जन्नत में जगह नहीं है, जिनको कि मुहम्मद साहब ए किताब मानते हैं, मगर काफ़िरों (मूर्ति-पूजक)के लिए तो दहेकती हुई दोज़ख धरी हुई है, भले ही खुद अनाथ मुहम्मद को पालने वाले दादा और चाचा ही क्यूं न हों. 
उम्मी मुहम्मद को इस दलील से कोई वास्ता नहीं कि जिसने इस्लामी पैग़ाम सुना ही न हो या जो इस्लाम से पहले हुआ हो वह भला दोजख़ी क्यूं होगा??ऐसे हठ धर्म क़ुरआन को इस्लामी जंगजूओं ने माले ग़नीमत को जायज़ क़रार देने के बाद चौथाई दुन्या को पीट पीट कर तस्लीम कराया है. 




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 19 February 2018

Hindu Dharm Darshan-143



वेद दर्शन - - -  
                         खेद  है  कि  यह  वेद  है  

इंद्र ने अपनी शक्ति द्वारा इधर उधर जाने वाले पर्वतों को अचल बनाया, 
मेघों के जल को नीचे की ओर गिराया, 
सब को धारण करने वाली धरती को सहारा दिया 
और अपनी बुद्धिमानी से आकाश को नीचे गिरने से रोका है.  
द्वतीय मंडल सूक्त 17(5)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

कुरआन कहता है कि 
आसमान बिना खंबे की छत है 
और वेद भी  कुछ ऐसा ही कहता है. 
कुरआन की बातें सुनकर हिन्दू मज़ाक़ उडाता है, 
और कहता है वेद को अपमानित मत करो 
क्योकि यह सब  से पुराना ग्रन्थ है. 
दोनों को ग़लत फहमी है कि योरोपियन इन्ही ग्रंथो से बहु मूल्य नुस्खे उड़ा कर ले गए हैं और आज आकाश को नाप रहे हैं. 
कितनी बड़ी विडंबना है - - - 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Soorah anaam 6 Qist 6

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अनआम ६
(क़िस्त -6)

अल्लाह के मुँह से कहलाई गई मुहम्मद की बातें क़ुरआन जानी जाती हैं और मुहम्मद के क़ौल और कथन हदीसें कहलाती हैं. मुहम्मद की ज़िन्दगी में ही मिलावटी हदीसें इतनी हो गई थीं कि उनको मुसलसल बोलते रहने के लिए हुज़ूर को सैकड़ों सालों की ज़िन्दगी चाहिए थी, ग़रज़ उनकी मौत के बाद हदीसों पर पाबन्दी लगा दी गई थी, उनके हवाले से बात करने वालों ख़तिर कोड़ों से होती थी. 
दो सौ साल बाद बुख़ारा में एक नव मुस्लिम मूर्ति पूजक बुड्ढा, मगर वाक़िए की  सच्चाई को ईमान दारी से उजागर करता - - -  
''शरीफ़  मुहम्मद इब्न ए इब्राहीम मुग़ीरा जअफ़ी बुख़ारी'' 
जो कि उर्फ़ ए आम में इमाम बुख़ारी के नाम से इस्लामी दुन्या में जाना जाता है, जिसने दर पर्दा इस्लाम की चूलें हिला कर रख दिया. इसने मुहम्मद की तमाम ख़सलतें, झूट, मक्र, ज़ुल्म, ना इंसाफी, बे ईमानी और अय्याशियाँ खोल खोल कर बयान कीं हैं. 
इमाम बुख़ारी ने किया है बहुत अज़ीम कारनामा जिसे इस्लाम के ज़ुल्म के ख़िलाफ़ ''इंतक़ाम-ऐ-जारिया'' कहा जा सकता है. अंधे, बहरे और गूंगे मुसलमान उसकी हिकमत-ए-अमली को नहीं समझ पाएँगे, वह तो ख़त्म कुरआन की तर्ज़ पर ख़त्म बुख़ारी शरीफ़  के कोर्स बच्चों को करा के इंसानी जिंदगियों से खिलवाड़ कर रहेहैं, 
इस्लामी कुत्ते, ओलिमा. लिखते हैं कि इमाम बुख़ारी ने छः लाख हदीसों पर शोध किया और तीन लाख हदीसें कंठस्त कीं, इतना ही नहीं तीन तहज्जुद (रात की नमाज़) की रातों में एक क़ुरआन ख़त्म कर लिया करते थे और इफ्तार से पहले एक कुरआन. 
हर हदीस लिखने से पहले दो रकअत नमाज़ पढ़ते.. 
मगर उनके मरने के बाद पाई गईं सिर्फ़ २१५५ हदीसें. 

बुख़ारी लिखता है मुहम्मद के पास कुछ देहाती आए और उनसे पेट की बीमारी की शिकायत की. हुक्म हुआ कि इनको हमारे ऊंटों के बाड़े में छोड़ दो, वहां यह ऊंटों का दूध और मूत पीकर ठीक हो जाएँगे.
(ग़ौर करें कि बुख़ारी ने मुहम्मदी हुक्म से पेशाब पीना जायज़ क़रार देने का इशारा किया है, जबकि किसी भी पेशाब की एक बूंद से तन पर पड़ा हुवा कपड़ा नजिस हो जाता है.) 
कुछ दिनों बाद देहाती बाड़े के रखवाले को क़त्ल करके ऊंटों को लेकर फ़रार हो गए जिनको कि इस्लामी सिपाहियों ने जा धरा. 
उनको सज़ा मुहम्मद ने इस तरह दी कि 
सब से पहले उनके बाजू कटवाए, 
फिर टागें कटवाई, 
उसके बाद आँखों में गर्म शीशा पिलवाया 
बाद में उन्हें ग़ार ए हरा में फिकवा दिया 
जहाँ प्यास की शिद्दत लिए वह तड़प तड़प कर मर गए.
(बुख़ारी१७०) (सही मुस्लिम - - - किताबुल क़सामत)

तो इस क़दर ज़ालिम थे मुहम्मद जिनको ओलिमा मोहसिन ए इंसानियत लिखते हैं.
.
*अब देखिए मुहम्मद का मक्र क़ुरआन के सफ़हात में - - -

कहते हैं की गेहूं के साथ घुन भी पिस्ता है, मुसीबते और बीमारियाँ नेक और बद को देख कर नहीं आतीं. मगर अक्ल का दुश्मन मुहम्मदी अल्लाह ज़रा देखिए तो मुहम्मद से क्या कहता है- - -

''आप कहिए कि यह बतलाओ अगर तुम पर अल्लाह का अज़ाब आन पड़े, ख़्वाह बे ख़बरी में ख़्वाह ख़बरदारी में, तो क्या बजुज़ ज़ालिम लोगों के और कोई हलाक किया जाएगा?''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (४७)
एक रत्ती भर अक्ल रखने वाले के लिए क़ुरआन की यह आयत ही काफ़ी है कि वह मुहम्मद को परले दर्जे का बेवक़ूफ़ आँख बंद कर के कह दे और इस्लाम से बाहर निकल आए मगर ये हराम ज़ादे आलिमान ए दीन अपने तालिबानी गुंडों के साथ उनकी गर्दनों पर सवार जो हैं. इस से ज़्यादः मज़हकः ख़ेज़ बात और क्या हो सकती है कि जब कोई क़ुदरती आफ़त ज़लज़ला या तूफ़ान आए तो इस में काफ़िर ही तबाह हों और मुसलमान बच जाएं.

''आप कहिए कि न मैं यह कहता हूँ कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने हैं और न मैं तमाम ग़ैबों को जनता हूँ और न तुम से यह कहता हूँ कि मैं फ़रिश्ता हूँ. मैं तो सिर्फ़ मेरे पास जो वही आती है उसकी पैरवी करता हूँ. आप कहिए कि कहीं अँधा और आखों वाला बराबर हो सकता है? सो क्या तुम ग़ौर नहीं करते?''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (५०)

यहाँ मुहम्मद ने ख़ुद को आँखों वाला और दीगरों को अँधा साबित किया है, साथ साथ यह भी बतलाया है कि वह भविष्य की बातों को नहीं जानते. उनकी सैकड़ों ऐसी हदीसें हैं जो इस के बर अक्स हैं और पेशीन गोइयाँ करती है. विरोधाभास क़ुरआन और मुहम्मद की तक़दीर बना हुवा है.

''और जब तू इन लोगों को देखे जो हमारी आयातों में ऐब जोई कर रहे हैं तो इन लोगों से कनारा कश हो जा, यहाँ तक कि वह किसी और बात में लग जाएं और अगर तुझे शैतान भुला दे तो याद आने के बाद ऐसे ज़ालिम लोगों में मत बैठ.''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (६८)


मुहम्मद ने मुसलामानों पर किस ज़ोर की लगाम लगाईं है कि उनकी इस्लाह माहौल के ज़रिए करना भी बहुत मुश्किल है. उनको माहौल बदल नहीं सकता. मुल्ला जैसे कट्टर मुसलमान जब आधुनिकता की बातों वाली महफ़िल में होते हैं तो वैज्ञानिक सच्चाइयों का ज़िक्र सुन कर बेज़ार होते हैं और दिल ही दिल में तौबा कर के महफ़िल से उठ जाते हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 17 February 2018

Hindu Dharm Darshan-142-G-23




गीता और क़ुरआन

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
किन्तु जो अज्ञानी और श्रद्धा विहीन व्यक्ति शाश्त्रों में संदेह करते हैं , 
श्रद्धाभावनामृत नहीं प्राप्त कर सकते. 
अपितु नीचे गिर जाते हैं. 
संशयात्मा के लिए न तो इस लोक मे, न परलोक में कोई सुख है.
जो व्यक्ति अपने कर्म फलों का परित्याग करते भक्ति करता है 
और जिसके संशय दिव्य ज्ञान द्वारा विनष्ट हो चुके होते हैं , 
वही वास्तव में आत्म परायण है. 
हे धनञ्जय ! 
वह कर्मों के बंधन में नहीं बंधता.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -40 - 41 

**हर धर्म की धुरी है श्रद्धा अर्थात कल्पना करना कि कोई शक्ति है जिसे हमें पूजना चाहिए. इस कशमकश में पड़ते ही गीता और क़ुरआन के रचैता आपकी कल्पना को साकार कर देते हैं, 
इसके बाद आपकी आत्म चिंतन शक्ति ठिकाने लग जाती है. 
किन्तु स्वचिन्तक बअज़ नहीं आता तब धर्म गुरु इनको गरिया शुरू कर देते हैं. 
इस ज्ञानी को अज्ञानी और नास्तिक की उपाधि मिल जाति है. 
श्रद्धाभावनामृत की पंजीरी बुद्धुओं में बांटी जाती है. 
कर्म करते रहने की भी ख़ूब परिभाषा है, 
बैल की तरह खेत जोतते रहो, 
फसल का मूल्य इनके भव्य मंदिरों में लगेगा, 
तभी तो इनकी दुकाने चमकेंगी.

क़ुरआन कहता है ---
''और जब तू इन लोगों को देखे जो हमारी आयातों में ऐब जोई कर रहे हैं तो इन लोगों से कनारा कश हो जा, यहाँ तक कि वह किसी और बात में लग जाएं और अगर तुझे शैतान भुला दे तो याद आने के बाद ऐसे ज़ालिम लोगों में मत बैठ.''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (६८)


मुहम्मद ने मुसलामानों पर किस ज़ोर की लगाम लगाईं है कि उनकी इस्लाह माहौल के ज़रिए करना भी बहुत मुश्किल है. उनको माहौल बदल नहीं सकता. मुल्ला जैसे कट्टर मुसलमान जब आधुनिकता की बातों वाली महफ़िल में होते हैं तो वैज्ञानिक सच्चाइयों का ज़िक्र सुन कर बेज़ार होते हैं और दिल ही दिल में तौबा कर के महफ़िल से उठ जाते हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 16 February 2018

Soorah anaam 6 Qist 5

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अनआम ६
(क़िस्त - 5)

पुर अम्न बस्ती, सुब्ह तड़के का वक़्त, लोग अध् जगे, किसी नागहानी से बेख़बर, ख़ैबर वासियों के कानों में शोर व् ग़ुल की आवाज़ आई तो उन्हें कुछ देर के लिए ख़्वाब सा लगा, मगर नहीं यह तो हक़ीक़त थी. 
आवाज़ ए तक़ब्बुर एक बार नहीं, दो बार नहीं तीन बार आई,
नारा ए तकबीर अल्लाहुअकबर - - - 

''ख़ैबर बर्बाद हुवा ! क्यूं कि हम जब किसी क़ौम पर नाज़िल होते हैं तो इन की बर्बादी का सामान होता है'' 

यह आवाज़ किसी और की नहीं, सललल्लाहो अलैहे वसल्लम कहे जाने वाले मुहम्मद की थी. 
नवजवान मुक़ाबिला को तैयार होते, इस से पहले मौत के घाट उतार दिए गए. बेबस औरतें लौडियाँ बना ली गईं और बच्चे गुलाम कर लिए गए. 
बस्ती का सारा तन और धन इस्लाम का माले ग़नीमत बन चुका था.
एक जेहादी लुटेरा वहीय क़ल्बी जो एक परी ज़ाद को देख कर उस पर फ़िदा हो जाता है, मुहम्मद के पास आता है और एक अदद बंदिनी की ख़्वाहिश का इज़हार करता है, जो मुहम्मद उसको अता कर देते हैं. 
वहीय के बाद एक दूसरा जेहादी मुहम्मद के पास दौड़ा दौड़ा आता है और इत्तेला देता है या रसूल अल्लाह सफ़िया बिन्त हई तो आप की मलिका बन्ने के लायक़ हसीन जमील है, वह बनी क़रीज़ा और बनी नसीर दोनों की सरदार थी. 
यह ख़बर सुन कर मुहम्मद के मुंह में पानी आ जाता है, 
उनहोंने क़ल्बी को बुलाया और कहा तू कोई और लौंडी चुन ले. 
मुहम्मद की एक पुरानी मंजूरे नज़र उम्मे सलीम ने उस क़त्ल और ग़ारत गरी के आलम में मज़लूम सफ़िया को दुल्हन बनाया, मुहम्मद दूलह बने और दोनों का निकाह हुवा.
लुटे घर, फुंकी बस्ती में, बाप भाई और शौहर की लाशों पर सललल्लाहो अलैहे वसल्लम ने सुहाग रात मनाई. 
मुसलमान अपनी बेटियों के नाम मुहम्मद की बीवियों, लौंडियों और रखैलों के नाम पर रखते हैं, 
यह सुवरज़ाद ओलिमा के उलटे पाठ की पढाई की करामत है, 
क़ुरआन में ''या बनी इसराइल'' के नाम से यहूदियों को मुहम्मदी अल्लाह मुख़ातिब करता है. 
अरब में बज़ोर तलवार बहुत सारे यहूदी मुसलमान हो गए हैं, उनकी ही कुछ शाखें हिंदुस्तान में है जो खुद को बनी इसराइल कहते हैं मगर मुहम्मद के फ़रेब में इतने मुब्तिला हैं कि उनकी तलवार लेकर मरने मारने पर आमादः रहते हैं.

अब आइए कुरआन की ख़ुराफ़ात पर- - -

''तो आप को अगर ये क़ुदरत है कि ज़मीन में कोई सुरंग या आसमान में कोई सीढ़ी दूंढ़ लो फिर कोई मुअज्ज़ा लेकर आओ. अगर अल्लाह को मंज़ूर होता तो इन सब को राह ए रास्त पर जमा कर देता, सो आप नादानों में मत हो जाएं."
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत३५)

अल्लाह ख़ुद मुहम्मद को फटकार रहा है, 
मुहम्मद की इस ज़ेहनी कारीगरी को क्या आम आदमी समझ नहीं सकता, मगर मुसलमान आँख बंद किए, सर झुकाए इन सौदागरी बातों को समझ नहीं पा रहा है. इन बे सिर पैर की बातों का मज़ाक़ डेढ़ हज़ार साल पहले बन चुका था, अफ़सोस कि आज इबादत बना हुवा है. ज़हीन काफ़िर दीगर नबियों जैसा मुअज्ज़ा दिखा ने की फ़रमाइश जब मुहम्मद से करते हैं तो मुहम्मदी अल्लाह कहता है- - -

''अगर आप को इन काफ़िरों की रू गर्दानी गराँ गुज़रती है तो, फिर अगर आप को क़ुदरत है तो ज़मीन में कोई सुरंग या आसमान में कोई सीढ़ी दूंढ़ लो'' 
सूरह अनआम-६_७ वाँ पारा (आयत३७)

लीजिए अल्लाह अपने दुलारे रसूल से भी रूठ रहा है क्यूं कि वह ग़म ज़दः हो रहे हैं और धीरज नहीं रख पा रहे हैं, अल्लाह पहले बन्दों को तअने देकर बातें सुनाता है फिर मुहम्मद को. 
ये आलम ए ख़्वाहिश ए पैगम्बरी में मुहम्मद की ज़ेहनी कैफ़ियत है जिसमे मक्र की बू आती है.

''और जितने क़िस्म के जानदार ज़मीन पर चलने वाले हैं और जितने क़िस् के परिंदे हैं कि अपने दोनों बाजुओं से उड़ते हैं, इसमें कोई क़िस्म ऐसी नहीं जो तुम्हारी तरह के गिरोह न हों. हमने दफ़्तर में कोई चीज़ नहीं छोड़ी फिर सब अपने परवर दिगार के पास जमा किए जाएंगे''
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत३८)

इन अर्थ और तर्क हीन बातों में मुल्लाओं ने खूब खूब अर्थ और तर्क पिरोया है. ज़रुरत है कि इसे नई तालीम की रौशनी में लाकर इनका पर्दा फाश किया जाए.

''अल्लाह जिसको चाहे बेराह कर दे - - -'' 
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत३९ )

अल्लाह शैतान का बड़ा भाई जो ठहरा. दोनों इंसान को गुमराह करते हैं. 
मुहम्मदी शैतान जो मुसलामानों को सदियों से गुमराह किए हुए 'है.

''मुहम्मद लोगों से पूछते हैं कि अगर कोई मुसीबत आन पड़े या क़यामत ही आ जाए तो अल्लाह के सिवा किसको पुकारोगे?"
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत४१)

 इससे लगता है कि उस वक़्त के लोग ईश शक्ति की बुनयादी ताक़त को  मानते हुए, उसकी अलामतों को भी शक्ति मानते रहे होंगे. 
आज का आम मुसलमान भी यही समझता है, 
ख़्वाजा अजमेरी को ख़ुद अल्लाह का मार्फ़त मानता है मगर अल्लाह नहीं. 
मुहम्मदी अल्लाह कुफ़्र की दुश्मनी का ऐनक लगा कर ही हर मुआमले को देखता है.

''हमने और उम्मतों की तरफ़ भी जोकि आपसे पहले हो चुकी हैं, पैगम्बर भेजे थे, सो हमने उनको तंग दस्ती और बीमारी में पकड़ा था ताकि वह ढीले पड़ जाएं''
''सो जब उन को हमारी सजाएं पहुची थीं तो वह ढीले क्यूं न पड़े? लेकिन उनके क्लूब (ह्रदय) तो शख़्त ही रहे. और शैतान उनके आमाल को उनके ख़याल में आरास्ता करके दिखलाता है''
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत४२-४३)

मुहम्मदी अल्लाह बड़ी बेशर्मी के साथ अपनी बद आमालियों के कारनामें बयान करते हुए मुहम्मद की पैग़म्बरी में मदद गार हो रहा है. अपने मुक़ाबले में शैतान को खड़ा करके नूरा कुश्ती का खेल खेल रहा है, बालावस्था में पड़ा मुस्लिम समाज मुंह में उंगली दबाए अपने अल्लाह की करामातें देख रहा है.

''फिर जब वह लोग इन चीज़ों को भूले रहे जिनकी इनको नसीहत की जाती थी तो हमने इन पर हर चीज़ के दरवाज़े कुशादा कर दिए, यहाँ तक कि जब उन चीज़ों पर जो उनको मिली थीं, वह खूब इतरा गए तो हमने उनको अचानक पकड़ लिया, फिर तो वह हैरत ज़दः रह गए, फिर ज़ालिम लोगों की जड़ कट गई''
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत 44-45)


मुहम्मद एलान नबूवत के बाद अपनी फटीचर टुकड़ी को समझा रहे हैं कि उनके अल्लाह की ही देन है, यह काफ़िरों की ख़ुश हाली जो आरज़ी है. काश कि वह मेहनत और मशक्क़त का पैग़ाम देते जिस में क़ौमों की तरक्क़ी रूपोश है. 
इस्लाम का पैग़ाम तो क़त्ल ओ ग़ारत गरी और लूट पाट है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 15 February 2018

Hindu Dharm Darshan-141V



वेद दर्शन - - -            
खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

हे इंद्र ! घास खाकर तृप्त होने हुई गाय जिस प्रकार अपने बछड़े की भूख को समाप्त करती है, उसी प्रकार तुम शत्रु वाधा सम्मुख आने से पूर्व ही हमारी रक्षा कर लो. 
जिस प्रकार पत्नियां युवक को घेरती हैं, 
उसी प्रकार हे शत्तरुत्र इंद्र ! हम सुन्दर स्तुत्यों द्वारा तुमको घेरेंगे.
सूक्त 16-8 

पंडित अपनी सुरक्षा अग्रिम ज़मानत की तरह इंद्र देव से तलब करता है. 
उपमा देखिए कि जिस तरह धास खाकर गाय अपने बछड़े को तृप्त रखती है.
अनोखी मिसाल 
" पत्नियाँ सामूहिक रूप में युवक को घेरती हैं"
हो सकता है वैदिक युग में यह कलचर रहा हो 
कि इस पर उनके पतियों को कोई एतराज़ न होता रहा हो, 
वैसे कामुक इंद्र देव की रिआयत से पत्नियों की जगह कुमारियाँ होना चाहिए था. 
पंडित जी कहते हैं उसी तरह वह इन्दर देव को घेरेगे.
हिंदुओ ! कब तक इन पाखंडियों के मनुवाद के घेरे में घिरे रहोगे?
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


विवाह की इच्छा से आई हुई कन्याओं को भागता देख कर परावृज ऋषि सब के सामने खड़े हुए. 
इंद्र की कृपा से वह पंगु दौड़ा और अँधा होकर भी देखने लगा. 
इंद्र ने यह सब सोमरस के मद में किया है.
सूक्त 15-7 

आप भांग पीकर इस वेद श्लोक को जितना चाहें और जैसे चाहें कल्पनाओं की दुन्या में कूद सकते हैं मगर मैं समझता हूँ कि वेद ज्ञान को शून्य कर देता है,अज्ञानता में ढकेल देता है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 14 February 2018

Soorah anaam 6 Qist 4

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अनआम ६
(क़िस्त -4)

कोई देखे या न देखे अल्लाह देख रहा है .

काश कि हम अल्लाह को इस क़दर करीब समझ कर ज़िन्दगी को जिएँ. 
मगर अल्लाह की गवाही का डर किसे है?
उसकी जगह अगर बन्दे में दरोगा जी के बराबर भी अल्लाह का डर हो तो इन्सान गुनाहों से बाज़ आ सकता है. 
कोई देखे या न देखे अल्लाह देख रहा है, 
की जगह यह बात एकदम सही होगी कि 
" कोई देखे या न देखे मैं तो देख रहा हूँ." 
दर अस्ल अल्लाह का कोई गवाह नहीं है, आलावा कुंद ज़ेहन मुसलमानों के जो लाउड स्पीकर से अजानें दिया करते कि 
" मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के अलावा कोई अल्लाह नहीं"
और 
"मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद उसके दूत हैं."
अल्लाह ग़ैर मुस्तनद है, 
और मैं अपनी ज़ात को लेकर सनद रखता हूँ कि मैं हूँ.
इस लिए मेरा देखना अपने हर आमल को यक़ीनी है. 
इसी को लेकर तबा ताबईन (मुहम्मद के बाद के) कहे जाने वाले मंसूर को सजाए मौत हुई, 
उसने एलान किया था कि मैं खुदा हूँ (अनल हक़)
इंसान अगर अपने अन्दर छिपे खुदा का तस्लीम करके जीवन जिए तो दुन्या बहुत बदल सकती है.

क़ुरआन कहता है - - -

''यहाँ तक कि जब यह लोग आप के पास आते हैं तो आप से ख़्वाह मख़्वाह झगड़ते हैं. यह लोग जो काफ़िर हैं वोह यूं कहते हैं यह तो कुछ भी नहीं सिर्फ़ बे सनद बातें हैं जो कि पहले से चली आ रही हैं और यह लोग इस से औरों को भी रोकते हैं और ख़ुद भी इस से दूर रहते हैं और यह लोग अपने को ही तबाह करते है और कुछ ख़बर नहीं रखते.''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (२६)

सोचने की बात यह है कि डेढ़ हज़ार साल पहले, उस वक़्त के लोग आज के कुंद ज़हनों से ज़्यादः समझदार थे. मूसा और ईसा के प्रचलित, क़िस्से दौर ए जहालत में अंध विशवास के रूप में रायज थे, जिसको चंट मुहम्मद ने रसूले-खुदा बन के सच साबित किया, मगर, बहर हाल झूट का अंजाम बुरा होता है जो आज दुन्या की एक बड़ी आबादी भुगत रही है.

''और अगर आप देखें जब ये दोज़ख के पास खड़े किए जाएँगे तो कहेंगे -- कितनी अच्छी बात होती कि हम वापस भेज दिए जाएं और हम अपने रब की बातों को झूटा न बतलाएं और हम ईमान वालों में हो जाएं''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (२7)

आगे ऐसी ही बचकानी बातें मुहम्मद करते हैं कि लोग इस पर यक़ीन कर के इस्लाम कुबूल करें. ऐसी बचकाना बातों पर जब तलवार की धारों से सैक़ल किया गया तो यह ईमान बनती चली गईं. 
तलवारें थकीं तो मरदूद आलिमों की ज़बान इसे धार देने लगीं.

''और मेरे पास ये क़ुरआन बतौर वही (ईश वाणी) भेजा गया है ताकि मैं इस क़ुरआन के ज़रीए तुम को और जिस जिस को ये क़ुरआन पहुंचे, इन सब को डराऊं''
सूरह अनआम-६-७वाँ पारा आयत(२८)

क़ुरआन बतौर वही नहीं बज़रीए वही कहें, या रसूलल्लाह!
क़ुरआनी अल्लाह अपनी किताब क़ुरआन में न आगाह करता है, न वाक़िफ़ कराता है और न ख़बरदार करता है, बस डराता रहता है. 
ज़ाहिर है कि वह उम्मी है, उनके पास न तो अल्फ़ाज़ के भंडार हैं, न ज़बान दानी के तौर तरीके. बच्चों को डराया जाता है, बड़ों को धमकाया जाता है, मुहम्मद को इस की तमाज़त नहीं. वह बड़े बूढों, औरत मर्द, गाऊदी और मुफ़क्किर, सब को अपने बनाए अल्लाह के बागड़ बिल्ले से डराते हैं. 
मुसलमानों का तकिया कलाम बन गया है,
''अल्लाह से डरो'' 
भला बतलाइए कि क्यूँ ख़्वाह मख़्वाह अल्लाह से डरें ? 
वह कोई साँप बिच्छू या भेडिया तो नहीं? 
डरना है तो अपनी बद आमालियों से डरो जिसका कि अंजाम बुरा होता है. आप की बद आमालियाँ वह हैं जो दूसरों को नुक़सान पहुंचाएं.
इन कुंद ज़ेहन साहिब ए ईमान मुसलामानों को कोई समझाए कि अरबों ख़रबों बरस से क़ायम इस कायनात का अगर कोई रचना कार है भी तो वह एक जाहिल जपट मुहम्मद से अपनी सहेलियों की तरह, अपने गम गुसारों की तरह, अपने महबूब की तरह बात करेगा? 
अगर तुम्हारा यक़ीन इतना ही कच्चा है तो कोई गम नहीं कि तुम इस नई दुन्या में सफा-ए-हस्ती से मिटा दिए जाओ और जगे हुए इंसानों के लिए जगह ख़ाली करदो कि जो दो वक़्त की रोटी नहीं पा रहे हैं. हालांकि वह बेदार हैं और तुम अक़ीदत की नींद में डूबे हुए गुनाहगार ओलिमा को हलुवा पूरी खिला रहे हो. 
मगर नहीं रुको मैं इतना और कह दूं कि मुहम्मद ने तो सिर्फ़ क़ुरैशियों की हलुवा पूरी को क़ायम करना चाहा था मगर यह बीमारी तो सारी दुन्या को लग गई? दुन्या को दुन्या जाने, मैं तो सिर्फ़ पंद्रह करोर हिदुस्तानी मुसलमानों को जगाना चाहता हूँ. 

देखो कि ब्रह्माण्ड का रचैता एक धूर्त से कैसे बातें करता है - - -
''हम ख़ूब जानते हैं कि आप को इनके अक़वाल मग़मूम करते हैं, सो यह लोग आप को झूटा नहीं कहते, लेकिन यह ज़ालिम अल्लाह तअला की आयातों का इनकार करते हैं.
अनआम-६-७वाँ पारा आयत(३३)

मेरे भोले भाले मुसलमानों क्या यह अय्यारी की बातें तुम्हारे समझ में नहीं आतीं?


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान