Tuesday 13 February 2018

Hindu Dharm Darshan-140-G-22



गीता और क़ुरआन

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
जैसे प्रज्वलित अग्नि ईधन को भस्म कर देती है,
उसी तरह से
अर्जुन !
ज्ञान रुपी अग्नि भौतिक कर्मों के सभी फलों को जला डालती है.
इस संसार में दिव्य ज्ञान के सामान कुछ भी उदात्त तथा शुद्ध नहीं .
ऐसा ज्ञान समस्त योग का परिपक्व फल है.
जो व्यक्ति भक्ति में सिद्ध हो जाता है,
वह यथा समय अपने अंतर में इस ज्ञान का आस्वादन करता है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  - 4 - श्लोक -37- 38

बहुत ज्ञान मनुष्य को भ्रमित और गुमराह किए रहता है,
इन ज्ञानियों को बहुधा भौतिक सुख और सुविधा का आदी ही देखा जाता है,
वह मान और सम्मान के भूके होते हैं.
और अगर ज्ञान पाकर मनुष्य गुमनाम हो जाए,
तब तो ज्ञान का लाभ ही ग़ायब हो जाता है.
वैसे भी इस युग में ईश्वरीय ज्ञान का कोई महत्व नहीं.
यह युग विज्ञान का है.
विज्ञान के लिए गहन अध्यन की ज़रुरत है,
तप और तपश्या की नहीं.
ठीक कहा है
"ज्ञान रुपी अग्नि भौतिक कर्मों के सभी फलों को जला डालती है. "
अर्थात ज्ञान का फल राख का ढेर.
भभूति लगा कर ज्ञान का चिंमटा बजाइए.

और क़ुरआन कहता है - - -
''फिर जब वह लोग इन चीज़ों को भूले रहे जिनकी इनको नसीहत की जाती थी तो हमने इन पर हर चीज़ के दरवाज़े कुशादा कर दिए, यहाँ तक कि जब उन चीज़ों पर जो उनको मिली थीं, वह खूब इतरा गए तो हमने उनको अचानक पकड़ लिया, फिर तो वह हैरत ज़दः रह गए, फिर ज़ालिम लोगों की जड़ कट गई''
सूरह अनआम-६_७वाँ पारा (आयत  44-45)

धर्म और मज़हब का ज्ञान मानव जाति को अज्ञान परोसता है.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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