Friday 23 February 2018

Hindu Dharm Darshan-145-V23



वेद दर्शन - - -                           
खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

हे बृहस्पति ! जो तुम्हें हव्य अन्न देता है, 
उसे तुम न्याय पूर्ण मार्ग से ले जाकर पाप से बचाते हो. 
तुम्हारा यही महत्त्व है कि तुम यज्ञ  का विरोध करने वाले को 
कष्ट देते एवं शत्रुओं की हिंसा करते हो. 
द्वतीय मंडल सूक्त 23(4)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

ब्रह्मणस्पति और बृहस्पति भी इंद्र देव की तरह कोई इनके देव होंगे. 
इनके सामने पुरोहित उन लोगों को नाश कर देने की तमन्ना करते हैं 
और उनको उनका हिंसक महत्व बतलाते हैं. 
उनको हिंसा करने का निमंत्रण देते हैं.
एक ओर हिन्दू अहिंसा का पुजारी है कि वह पानी भी छान कर पता है 
और दूसरी ओर हर मौके पर हवन कराता है, 
कि हे देव तुम हिंसा करो, हम पर पाप लगेगा. 
ठीक ही कहा है किसी ने - - -
साही मरे मूड के मारे, हम संतन का का पड़ी - - -  


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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