Monday 5 February 2018

Soorah Almayda -5 – Qist -6

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अलमायदा 5 - - -छटवाँ पारा 
(क़िस्त -6)

मेरे गाँव की एक फूफी के बीच बहु-बेटियों की बात चल रही थी कि मेरा फूफी ज़ाद भाई बोला - - -
अम्मा क़ुरआन में लिखा है औरतों को पहले समझाओ बुझाओ, न मानें तो घुस्याओ लत्याओ, फिरौ न मानैं तो अकेले कमरे मां बंद कर देव, यहाँ तक कि वह मर न जाएँ . 
फूफी आखें तरेरती हुई बोलीं उफरपरे! 
कहाँ लिखा है? 
बेटा बोला तुम्हरे क़ुरआन मां.
आयं? कह कर फूफी बेटे के आगे सवालिया निशान बन कर रह गईं. 
बहुत मायूस हुईं और उन्होंने कहा 
''हम का बताए तो बताए मगर अउर कोऊ से न बतलाए''

मेरे ब्लॉग के कुछ मुस्लिम पाठक मेरी गंवार फूफी की तरह ही हैं. 
वह मुझे राय देते हैं कि मैं तौबा करके उस नाजायज़ अल्लाह के शरण में चला जाऊं. 
मज़े कि बात ये है कि मैं उनका शुभ चिन्तक हूँ और वह मेरे?
ऐसे तमाम मुस्लिम भाइयों से दरख़्वास्त है कि मुझे पढ़ते रहें, 
मैं उनका ही असली  ख़ैर ख़्वाह हूँ .

हिदी ब्लॉग जगत में एक सांड के नाम से जाना जाने वाला कैरानवी है जो खुद तो परले दर्जे का जाहिल है मगर ज़मीर फ़रोश ओलिमा की लिखी हुई कपटी रचनाओं को बेच कर गलाज़त भरी रोज़ी से पेट पालता है.
"अल्लाह का चैलेंज, अंतिम अवतार, बौद्ध मैत्रे" जैसे सड़े गले राग के खोंचे लगाए गाहकों को पटाता रहता है. उसको लोगों के धिक्कार की परवाह नहीं. मेरे हर आर्टिकल पर अपना ब्लाक लगा देता है, 
कि मेरे पास आ मैं जेहालत बेचता हूँ. 

अब आइए अल्लाह की रागनी पर - - -

"तुम्हारे लिए दरया का शिकार पकड़ना और खाना हलाल किया गया"
सूरह अलमायदा 5 सातवाँ पारा-आयत (96)

ये एक हिमाकत की बात है. 
जो जीविका का साधन हज़ारों साल से मानव जाति को जीवित रखे हुए है, उसको क़ुरानी फ़रमान बनाना क़ुरआन का मज़ाक और इसमें बेवाज़न  इज़ाफ़ा ही है. 
दरया में बहुत से जीव विषैले और गंदे होते हैं जिसको हराम करना मुहम्मद भूल गए हैं.

"अल्लाह ने काबे को जो कि अदब का मुक़ाम है, लोगों के लिए क़ायम रहने का सबब क़रार दे दिया है और इज्ज़त वाले महीने को भी और हरम में क़ुर्बानी होने वाले जानवरों को भी और उनको भी जिनके गले में पट्टे हों, ये इस लिए कि इस बात का यक़ीन करलो कि बे शक अल्लाह तमाम आसमानों और ज़मीन के अन्दर की चीज़ों का इल्म रखता है."
सूरह अलमायदा 5 सातवाँ पारा-आयत (97)

लगता है मुहम्मदी अल्लाह ने इन बकवासों से यह बात साबित कर दिया हो कि उसको आसमानों और ज़मीन का राज़ मालूम है, जब कि वह यह भी नहीं जाता की आसमान सिर्फ एक है और ज़मीनें लाखों.
आप इस आयात को बार बार पढिए और मतलब निकालिए, नतीजे तक पहुँचिए.
क्या साबित नहीं होता कि यह किसी पागल की बड़ बड़ है, या क़ुरआन का पेट भरने के लिए मुहम्मद कुछ न कुछ बोल रहे हैं. 
इन बकवासों को ईश वाणी का दर्जा देकर और सर पर रख कर हम कहाँ के होंगे? 

एक बार फिर मौत से पहले विरासत नामे पर लम्बी तक़रीर और बहसें दूर तक चलती हैं, 
जिसको नज़र अंदाज़ करना ही बेहतर होगा.
सूरह अलमायदा 5 सातवाँ पारा-आयत (९८-109)

ईसा को एक बार फिर नए सिरे से पकडा जाता है जिसे पढ़ कर मुँह पीटने को जी चाहता है मगर अल्लाह हाथ नहीं लगता. 
इसे मुहम्मद की दीवानगी कहें या उनकी मौजूदा उम्मत की जो इस पर ईमान रखे हुए हैं.

देखिए बकते हैं - - -
"आप बे शक पोशीदा बातों को जानने वाले है, जब अल्लाह तअला इरशाद फ़रमाएंगे: ऐ ईसा इब्ने मरयम! याद करो जो तुम पर और तुम्हारी वाल्दा पर, जब कि मैं ने तुम्हें रूहुल-क़ुद्स से ताईद दी, तुम आदमियों से कलाम करते थे, गोद में भी और बड़ी उम्र में भी और जब कि मैं ने तुम को किताबें और समझ की बातें और तौरेत और इंजील की तालीम क़ीं और जब कि तुम गारे से एक शक्ल बनाते थे, जैसे परिंदे की होती है, मेरे हुक्म से फिर तुम उसके अन्दर फूँक मार देते थे, जिस से वह परिंदा बन जाता था, मेरी हुक्म से. और जब तुम अच्छा कर देते थे मादर ज़ाद अंधे को और कोढ़ से बीमार को, मेरे हुक्म से, और जब तुम मुर्दों को निकाल कर खडा कर देते थे, मेरे हुक्म से, और जब मैं ने बनी इस्राईल को तुम से बांध रखा, जब तुम उनके पास दलीलें लेकर आए थे, फिर उन में जो काफ़िर थे उन्हों ने कहा था यह सिवाय खुले जादू के और कुछ भी नहीं."
सूरह अलमायदा 5 सातवाँ पारा-आयत (110)

इसी दीवानगी की बड़बड़ाहट को करोरो मुस्लमान चौदह सौ सालों से दोहरा रहा है, नतीजतन दुन्या की सब से पिछली क़तार में जा लगा है. इसके धार्मिक गुरु इसको गुमराह किए रहते है. जब तक इनका सफ़ाया नहीं होता, इनका उद्धार मुमकिन नहीं. अफ़सोस कि पढा लिखा वर्ग बहुत स्वार्थी हो गया है, वह सच को जानता है मगर आगे आना पसंद नहीं करता, वह सोचता है ख़ुद को बचा लिया बाक़ी जाएँ जहन्नम में. 
बस एक ही रास्ता है कि मुस्लिम अवाम बेदार हों और ओलिमा को नजिस जानवर का दर्जा दें. 
मुसलमानों ! 
मैं मुस्लिम समाज का ही बेदार फर्द हूँ जो मुस्लिम से मोमिन हो गया, 
यह काम बहुत ही मुश्किल है और बेहद आसान भी. 
मोमिन का मतलब है ईमान दार और मुस्लिम का मतलब है हठ धर्मं और बे ईमान, 
जेहालत पसंद, जेहादी, क़दामत परस्त, झूठा, शर्री, तअस्सुबी, ना इन्साफ़ और बहुत सी इन्सान दुश्मन बातें जो इसलाम की तालीम है. 
मोमिन के ईमान की कसौटी पर ही सच्चाई की परख आती है, 
मोमिम बनो, 
धरम कांटे का ईमान अपने अंदर पैदा करो, 
देखो कि अपने आप में आप का क़द कितना बढ़ गया है. 
इसलाम जिसे तस्लीम किया, मुस्लिम हो गए.
ईमान जो फ़ितरी (प्रकृतिक) सच होगा २+२=४ की तरह .
ईमान पर ईमान लाओ इसलाम को तर्क करो.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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