Wednesday 7 February 2018

Soorah anaam 6 Qist 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अनआम ६
(क़िस्त - 1)

ध्यान दें - - -
क़ुरआन किसी अल्लाह का कलाम हो ही नहीं सकता.
कोई अल्लाह अगर है तो अपने बन्दों के क़त्ल-ओ-खून का हुक्म न देगा. 
क्या सर्व शक्ति मान, सर्व ज्ञाता, हिकमत वाला अल्लाह, 
मूर्खता पूर्ण और अज्ञानता पूर्ण बकवास करेगा?
क्या इन बेहूदा बातों की तिलावत (पाठ) से कोई सवाब मिल सकता है?
जागो! 
मुसलमानों, 
जागो!! 
मुहम्मद के सर पर करोड़ों इन्सानों का ख़ून है जो इस्लाम के फ़रेब में आकर अपनी नस्लों को इस्लाम के हवाले कर चुके हैं. मुहम्मद की ज़िदगी में ही हज़ारों बेगुनाह मारे गए और मुहम्मद के मरते ही उनके दामाद अली और बीवी आयशा के दरमियाँ जंग जमल में एक लाख इंसान बहैसियत मुसलमान मारे गए. 
स्पेन में सात सौ साल क़ाबिज़ रहने के बाद भी दस लाख मुसलमान ज़िन्दा (नकली) इस्लामी दोज़ख में डाल दिए गए, 
अभी तुम्हारे नज़र के सामने ईराक में दस लाख मुसलमान इस्लामी ज़द आकर मारे गए. 
अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान कश्मीर में लाखों इन्सान इस्लाम के नाम पर मारे जा रहे है.
चौदह सौ सालों में हज़ारों इस्लामी जंगें हुईं हैं जिसमें करोड़ों इंसानी जानें गईं. 
मुस्लमान होने का अंजाम है बेमौत मारो या बेमौत मरो.
क्या अपनी नस्लों का अंजाम यही चाहते हो? 
एक दिन इस्लाम का जेहादी सवाब मुसलामानों को मारते मारते और मरते मरते ख़त्म कर देगा. 
वक़्त आ गया है खुल कर मैदान में आओ. ज़मीर फ़रोश गीदड़ ओलिमा का बाई काट करो, 
इनके साए से दूर रहो और भोले भाले लोगों को दूर रखो. 
अब आओ  कुरआनी बकवासों पर जिनको आम मुसलमान नहीं जानता -

क़ुरआन ने मुसलामानों दिलों में एक वहम ''नाज़िल और नुज़ूल''(अवतीर्ण एवं अवतरित) का डाल दिया है, मिन जानिब अल्लाह आसमान से किसी बात, किसी शय, किसी आफ़त का उतरना नाज़िल होना कहा जाता है. ये सारा का सारा क़ुरआन वहियों (ईश-वाणी) के नुज़ूल का पुथंना बतलाया जाता है. नुज़ूल का मतलब है नाज़िल होना किसी आफ़त का.
यानी क़ुरआन का तअल्लुक़ ज़मीन से नहीं बल्कि यह आसमान से उतरी हुई आफ़त ज़दा किताब है. 
क़ुरआन अपनी ही तरह मूसा रचित तौरेत और दाऊद द्वारा रचे ज़ुबूर के गीतों को ही नहीं बल्कि ईसा के हवारियों (धोबियों) की लिखी बाइबिल के बयानों को भी आसमानी साबित करता है, जब कि इन के मानने वाले ख़ुद इन्हें ज़मीनी किताब कहते हैं. 
आगे की खोज कहती है आसमान ऐसी कोई चीज़ नहीं कि जिसके फ़र्श और छत हों, 
ये फ़क़त हद्दे नज़र है. 
क़ुरआन के सात मंजिला आसमान पर मुख्तलिफ़ मंज़िलों पर मुख्तलिफ़ दुनिया है, 
सातवें पर ख़ुद अल्लाह मियाँ विराजमान है.? 
हमारी जदीद तरीन तह्क़ीक़ कहती है की ऐसा आसमान एक कल्पना है, तो ऐसा अल्लाह भी मुहम्मद का तसव्वुर ही है. दोज़ख जन्नत सब उनकी साज़िश है.

''तमाम तारीफें अल्लाह के लिए ही लायक़  हैं जिसने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया और तारीकियों को (अंधकार) और नूर को बनाया, फिर भी काफ़िर लोग दूसरों को अपना रब क़रार देते हैं.''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (१)

उम्मी मुहम्मद ब्रह्मामांड में ज़मीन को हर जगह बार बार एक वचन में लाते हैं और आसमान को बहु वचन, (अनुमानित सात) क़ुरआन में अल्लाह के मुंह से बार बार ये बात कहलाते हैं, जब कि आसमान एक है और ज़मीन इसमें करोरों बल्कि बेशुमार हैं. कोई ताक़त इसका रचैता अगर है तो वह क्या मुहम्मद का अल्लाह हो सकता है जो कह रहा है? 
सब तारीफ़ मेरे लिए हैं और ख़ुद उसको अपनी रचना का ज्ञान नहीं? 
अंधकार और रौशनी सूरज के गिर्द ज़मीनी गर्दिश के रद्दे अमल से होती है, मुहम्मद से सदयों पहले यूनान के साइंस दानों ने दुन्या को बतला दिया था मगर यह बात मुहम्मदी अल्लाह के कानों तक नहीं पहुंची. 
काफ़िर लोगों ने हमेशा हू, याहू, इलह, इलोही, इलाही, रब और ख़ुदा जैसी किसी ताक़त को ईश्वर माना है और अपने देवी देवताओं को उसका माध्यम, जैसे कि आज तक चला आ रहा है. अरबी माध्यम लात, मनात, उज़ज़ा आदि थे, मुहम्मद ज़बरदस्ती उनको उनका अल्लाह साबित करने में लगे हुए है.

''और वह ऐसा है जिसने तुम को मिटटी से बनाया, फिर एक वक़्त मुअय्यन किया और दूसरा ख़ास वक़्त मुअय्यन उसी के नज़दीक़ है, फिर भी तुम शक रखते हो.''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (२)

मुहम्मद ख़ुद अल्लाह के बारे में बतलाते हैं कि वह ऐसा है 
और अपनी बात को कहते हैं यह अल्लाह का कलाम है, 

जब कि मुहम्मद ख़ुद साबित कर रहे हैं कि यह कलाम ख़ुद उनका है. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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