Monday 26 February 2018

Soorah anaam 6 Qist 9

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अनआम ६
(क़िस्त -9)

पाकिस्तान अपने आप में एक क़ैद ख़ाना बन गया है और हर पाकिस्तानी उम्र क़ैद की सज़ा पाने वाला एक क़ैदी है. जहाँ पर कैदियों की ज़रा सी ज़बानी लग़ज़िश भी ख़ताए-अज़ीम होती है.
एक ईसाई बच्ची को इस बात पर सज़ा दे दी गई कि वह इस्लामी शरीअत की समझ नहीं रखती थी.
बुत शिकन मुसलमान हर ख़ाम माल के बने बुतों को तोड़ने में बहादुरी की पहचान रखते हैं, 
मगर वही मुसलमान हवा के बने बुत अल्लाह से, उनकी हवा खिसकती है. 
ख़ुद तो ख़ुद किसी दूसरे के लिए भी वह साहिबे ईमान होते हैं, 
क्यूँकि उस से भी हवा के बुत की बुराई उन्हें बर्दाश्त नहीं.
वह एक तरफ़ कहते है अल्लाह सब का है मगर दूसरी तरफ़ बन्दा अपने अल्लाह पर एहतेजाज करता है तो वह उससे अपने थमाए हुए अल्लाह को छीन लेता हैं.
ऐसा मुल्क जहाँ आज इक्कीसवीं सदी में इंसान को इतना अख़्तियार नहीं कि वह अपने ख़ालिक़ की तख़लीक़ है, वह अपने बाप को कुछ भी कह सकता है अगर उसकी हक़ तलफ़ी हो रही हो.
दूसरी तरफ़ इनके ज़ेहनी दीवालिया पन देखिए कि "मिस्टर १०%के दलाल" कहे जाने वाले ज़रदारी को अपने सर पर बिठाए हुए हैं. इनकी जिहादी फ़ौज अब भारत के हाथों रुसवा होने की बजाए पूरी दुन्या के हाथों ज़िल्लत उठाएगी. 
छींक आने पर नाक काटने वाले शरीअत के शैदाई नई क़द्रों के सामने नाक रगड़ेंगे मगर इनके गुनाहों की सज़ा कम न होगी. 
अब वह वक़्त ज्यादः दूर नहीं कि इंसान का मज़हब इंसानियत होगा, 
सिर्फ़ इंसानियत. 

मुहम्मदी शरीअत देखिए कि क्या कहती है - - -

''और इसी तरह हम ने हर नबी के लिए दुश्मन बहुत से शैतान पैदा किए. कुछ आदमी, कुछ जिन्न, जिनमें से बअज़े दूसरे बअज़ो को चिकनी चुपड़ी बातों का वस्वुसा डालते रहते हैं ताकि उनको धोके में डाल दें और अगर तुम्हारा परवर दिगार चाहता तो वह यह काम हरगिज़ न कर सकते, सो इन लोगों को और जो लोग यह फ़ितना अंदाज़ी करते हैं, इनको आप रहने दीजिए.''
सूरह अनआम छटां+सातवां पारा (आयत ११३)

मुहम्मद अल्लाह के हुक्म को अव्वल मानते हैं जो बार बार उनकी तहरीक के ख़िलाफ़ असर रखता है, कहते हैं हर नबी के वास्ते अल्लाह शैतान पैदा करता है, तो मतलब ये हुवा कि नबूवत उसको पसंद नहीं. जैसे इस आयत में वह जेहालत की बातें करते हैं, इस पर नादानों को ज़हीन समझाते हैं, तो वह इसे चिकनी चुपड़ी बातों का वस्वुसा और फ़ितना अंदाज़ी कहते हैं. मुसलमान बग़ैर जाने बूझे ऐसी बातों की ही नमाज़ पढ़ते हैं. 
अपने ब्लोग के ख़िलाफ़ एक अद्भुत एतराज़ आया है एक साहब कहते है कि यह मुंकिर क़ुरआन के बारे में १००००००००००००००००००००००००००% झूट बकता है.
भाई मैं क़ुरआन की बाते सब मुहम्मदी अल्लाह की बकी हुई बातें आप को परोस रहा हूँ और मशहूर आलिम शौक़त अली थानवी की लिखी कुरानी तर्जुमे की नक़्ल  है. जिसे मैं ९०% इंसानियत दुश्मन मानता हूँ और आप तो मुझ से कई गुना ज्यादह. 
ऐसे ही नादान लोग अपने और क़ौम के दुश्मन हैं. 

''आपने शैतानों को इंसानों को और जिनों को हर पैग़म्बर का दुश्मन बना दिया था. वह धोका देने के लिए एक दूसरे के दिलों में मुलम्मे की बातें डालते थे और अगर तुम्हारा परवर दिगार चाहता तो ऐसा न होता.''
सूरह अनआम छटां+सातवां पारा (आयत ११४)

गोया हर शैतानी बातें अल्लाह की चाहत है ?
मुहमद की इन फ़ित्तीनी बातों को समझने के बाद उन पर दिन में पांच बार लाहौल भेजने कि ज़रुरत है..

''अली ने एक क़ौम को आग से जला डाला'' यह खबर इब्न ए अब्बास को भी मालूम हुई तो फ़रमाया - - -
अगर मैं होता तो इस क़ौम को अल्लाह की मानिंद (आग से जला कर) अज़ाब न देता जिस तरह कि हुज़ूर ( मुहम्मद) का हुक्म है किसी को अल्लाह के ख़ास अज़ाब से अज़ाब न दिया जाए बल्कि जो शख्स अपना दीन बदल दे, उसको क़त्ल कर दिया जाए.''
(बुखारी १२४५)

मुसलमानों में दो वर्ग ख़ास हैं, 
1-शिया - - (मोहम्मद के रिश्तेदारों के समर्थक)
2-सुन्नी - - कलिमा गो आम मुसलमान.
शियों का कहना है कि पैग़म्बरी अली के लिए आई थी, फ़रिश्ते जिब्रील ने ग़लती की कि बड़े भाई मोहम्मद को थमा दी. शियों ने अली की शान में किताबों से लाइब्रेरियाँ भर दीं, 
अली मौला किसी इबारत को लिख और पढ़ लेते थे बस, 
कर्म उनके ऐसे थे जो हदीस बतला रही है. 
अली मोहम्मद के ले पालक, हमेशा इक़्तेदार के भूखे, एक अदना और मामूली इंसान, उजड, मौक़ा मिला तो बस्ती में एक क़बीले को ज़िदा जला दिया, आज वह छोटे मोहम्मद बने मुसलामानों के लिए ''या अली'' बने हुए हैं. यह क़ौम है दमा दम मस्त कलंदर - -गाती है 
अली दा पहला नम्बर. 

''आप के रब का कलाम वाक़्अय्यत और एतदाल के एतबार से कामिल है. इसके कलाम का कोई बदलने वाला नहीं और वह खूब सुन रहे हैं, खूब जान रहे हैं.''
सूरह अनआम छटां+सातवां पारा (आयत ११६)

जिन ख़ुसूसयात का क़ुरआन से कोई वास्ता नहीं, उसका वह दावा कर रहा है. तमाम वाक़िए सुने सुनाए और बेशतर मुहम्मद के गढ़े हुए हैं. जिनमें न सर न पैर. एतदाल का यह आलम है कि 
अभी अल्लाह जंग और जेहाद की बातें कर रहा है, 
दूसरे लम्हे ही आ जाता है औरत को मर्द से कम तर बतलाने में, 
तीसरे लम्हे दोज़ख की आग भडकाने लगता है. 
उसके कलाम को मुसलामानों की जेहालत और इनके साज़िशी ओलिमा की चालें बदलने नहीं देतीं वर्ना इनमें रक्खा क्या है.

''सो जिस शख्स को अल्लाह ताला रस्ते पर डालना चाहते हैं उसके सीने को इस्लाम से कुशादा कर देते हैं और जिस को बे राह रखना चाहते हैं उसके सीने को तंग कर देते हैं जैसे कोई आसमान पर चढ़ना चाहता हो. इसी तरह अल्लाह ईमान न लाने वाले वाले पर फिटकार डालता है.''
सूरह अनआम छटां+सातवां पारा (आयत १२६)

सच यह है कि जिनको मुहम्मदी अल्लाह ने गुम राह कर दिया है वह राह ए रास्त नहीं पा रहे हैं और जो इसके फंदे में नहीं आए वह चाँद तारों पर सीढियाँ लगा रहे हैं. मुहम्मदी अल्लाह इन पर अपनी ज़हरीली कुल्लियाँ कर रहा है जो कि नीचे गिर कर बिल आख़िर मुसलामानों को पामाल कर रही हैं.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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