Thursday 22 March 2018

Hindu Dharm 156 V



वेद दर्शन 
                        
खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 
हे शत्रु नाशक इन्द्र! 
तुम्हारे आश्रय में रहने से शत्रु और मित्र सही हमको ऐश्वर्य्दान बताते हैं |६| यज्ञ को शोभित करने वाले, आनंदप्रद, प्रसन्नतादायक तथा यज्ञ को शोभित करने वाले सोम को इन्द्र के लिए अर्पित करो |१७| हे सैंकड़ों यज्ञ वाले इन्द्र ! इस सोम पान से बलिष्ठ हुए तुम दैत्यों के नाशक हुए. इसी के बल से तुम युद्धों में सेनाओं की रक्षा करते हो |८| हे शत्कर्मा इन्द्र ! युद्धों में बल प्रदान करने वाले तुम्हें हम ऐश्वर्य के निमित्त हविश्यांत भेंट करते हैं |९| धन-रक्षक,दू:खों को दूर करने वाले, यग्य करने वालों से प्रेम करने वाले इन्द्र की स्तुतियाँ गाओ. (ऋग्वेद १.२.४) 
* कहाँ पर कोई धर्म या मानव समाज के लिए शुभ बातें कही गई हैं इन वेदों में. 
सच पूछो तो इनको अब दफना देना चाहिए.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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