Saturday 24 March 2018

Hindu Dharm 157



धर्म
 (1)
दुन्या के तमाम धर्मों का गहराई के साथ अध्यन करने वाले और उसके बाद सिर्फ़ मानव धर्म को श्रेष्ट बतलाने वाले सर्व धर्म कोष के लेखक डा.राम स्वरुप ऋषिकेश कहते हैं - - - 

हिन्दू कहते हैं जो वेदों में लिखा है वह धर्म है , 
पारसी कहते हैं जो अहुन वइर्यो में लिखा है वह सत्य है , 
जैन कहते हैं जो जैन सूत्रों में लिखा है वह धर्म है , 
बौद्ध कहते है जो त्रिपटक में लिखा है वह धर्म है ,
ईसाई कहते हैं जो बाइबिल में लिखा है वह धर्म है , 
मुसलमान कहते हैं जो क़ुरआन में लिखा है वह धर्म है,
 सिख कहता है जो गुरु ग्रन्थ में है वह सत्य है - - - 
इस तरह अलग अलग फ़िरक़ों के अलग अलग धर्म है, 
कोई मुश्तरका ग्रन्थ नहीं है जिसको सब बिना शक शुबहा किए हुए मान लें कि यह है हम सब का धर्म.  
शायद कोई ऐसी किताब नहीं, 
वजह ?
उपरोक्त सभी किताबें विभिन्न धर्मों की अपनी अपनी हैं.  
क्योंकि यह सब विभिन्न वक़तों में, विभिन्न हालात में और विभिन्न धर्म गुरुओं द्वारा अलग अलग भाषा में लिखी गई हैं.  
ऐसी हालत में किताबों में यकसानियत संभव नहीं. 
सच्चाई ये है कि हर एक का पूज्य, आत्मा, देवी देवता, जन्नत दोज़ख़, पुनर जन्म, नजात, कायनात और क़यामत वग़ैरा के विषय इतने सूक्ष्म हैं कि इन पर बहस सदियों से करते चले आ रहे हैं और सदियों तक करते रहेंगे मगर इंसान आपस में सहमत नहीं हो पाएगा. 
तो फिर क्या किया जाए ?

धर्म 
(२) 

दुन्या के १२ प्रमुख धर्म 
हमारे ख़याल से मुख़्तलिफ़ फ़िरक़ों के बुद्धि जीवी और आलिमों की जानिबदारी से ऊपर उठ कर इस विषय पर तबादला ए ख़याल करना चाहिए. 
लेकिन इन्हें इस ख़ास बातों पर ध्यान देना चाहिए ताकि मानव मात्र आपस में प्यार और मुहब्बत से जी सकें। 
सभी धारमिक किताबों मेँ अच्छी बातेँ बिख़री पड़ी हैं. 
भूल हमाऱी है कि  हम इन फ़ितरी अमल की बातों को भुला कर बारीक  बीनी करके मन्तक़ी ख़ुराफ़ातों को लेकर सर फुटव्वल कर रहे हैं. 
तो आइए हम ज़रूरी बातें करें- - - 

मुहब्बत - - - 
इंसानी दोस्ती सबसे ज़यादा क़रीब लाने वाला जज़बा है ,
नफ़रत मुहब्बत को दूर करती है,
मुहब्बत अजनबियों को भी सगा बना लेती है ,
और नफ़रत सगों को भी बेगाना कर देती है ,
इस लिए हम लोगों को अहद करना चाहिए कि हम 
किसी भी देश, 
किसी भी तबक़े 
किसी भी फ़िर्क़े 
और किसी भी रंग रूप वाले से नफ़रत नहीं करेंगे, 
हम सभी से मीठी बातें  करेंगे, 
और पुर ख़ुलूस सुलूक रवा रक्खेंगे ,
किसी पर मुसीबत आने पर इसके मददगार होंगे.

नरम गोशा ---
हम अगर अपने दिल में झांक कर देखें तो पाएंगे कि इसमें नरमी की कमी है, तमकनत ज़्यादा है. इसी लिए हम अपने देश, अपनी ज़ात, और अपने मज़हब पर फ़ख्र करते हैं और दूसरों को कमतर समझते हैं.  
हमें खुद को इतना संतुलित रखना चाहिए कि दूसरे हमें अपना भाई समझें.

फ़िराख़ दिली - - - 
दिल की कुशादगी और दरिया दिली हमारी रूह को निखारती है. 
इसके बर अक्स तंग दिली और तअस्सुब हमारी रूह को आलूदा करती है. 
 कट्टर लोग दूसरे के ख़याल को सुनना पसंद नहीं करते, 
दूसरे के इबादत गाहों में जाना पसंद नहीं करते. 
वह अपने ही अक़ीदों, रवायतों और ढकोसलों को सही मानते हैं.
 बाक़ियों को ग़लत.
 यही वजह है कि वह अपने को दूसरों से बरतर समझते हैं.

दर गुज़री - - - 
कई बार मुआफ़ी और रहम में कुछ गड़बड़ हो जाती है.
 बुनयादी तौर पर बेबसों और मोहताजों पर रहम खाया जाता है 
और मुजरिम को मुआफ़ किया जाता है.
 भूल कर जुर्म करने वाले मुजरिम को एक बार मुआफ़ किया जा सकता है मगर पेशावर और आदी मुजरिम को सज़ा होनी चाहिए.

मेहनत कशी - - -
हमारे बच्चों और बूढ़ों को छोड़ कर काम करने की शर्त हर बाशिदे पर होना चाहिए.
  काम ज़ेहनी हो या जिस्मानी मगर हो रचनात्मक.
(धर्म और मज़हब के धंधे बाज़ों पर भी मशक्क़त लागू हो) 

इंसाफ़ ---
हर शहरी को न्याय बिना भेद भाव के मिले. 
सब्र, संतोष, संतुलन, सत्य सफ़ाई और शिक्षा के शीर्षक पर क़ायम सुतून हों. इनके रौशन चराग़ की लवें ऐसी हों कि हर किसी के दिल व दिमाग़ तक पहुँचे. 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. मानवता सबसे बडा धर्म हे

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