Saturday 31 March 2018

Hindu Dharm 160




राम कहानी 

रज़िया सुल्तान के ज़माने में एक सज्जन पुरुष को बिठूर (कानपुर) के एक डाकू से सामना पड गया. 
डाकू उनका माल असबाब लूट कर चला तो 
उस सज्जन पुरुष ने उसे टोका, 
सुनो - - - 
डाकू रुका, दोनों में कुछ बात चीत हुई , 
उनको डाकू की बातों से लगा कि यह तो कोई पढ़ा लिखा विद्वान लगता है. 
उन्हों ने उसका नाम पूछा. 
डाकू ने सज्जन पुरुष की सज्जनता का आभाष कर लिया था, 
वह उनसे झूट बोलने की हिम्मत न जुटा पाया. 
मैं हूँ "वाल्मीकि". 
नाम सुनते ही उस सज्जन पुरुष ने लपक कर उसे लिपटा लिया. 
वाल्मीकि ने उनको अपनी लाचारी, और मजबूरी की दास्तान सुनाई. - - - 
उसने उनसे पूछा कि अपने छोटे छोटे बच्चों को क्या खिलाऊँ, क्या पहनाऊँ ? 
अपना ज्ञान ?? 
अपनी बुद्धिमत्ता को मैं ने इस कुल्हाड़ी के हवाले कर दिया. 
क्या करता बच्चों की हत्या से यह लूट मार भली लगी . 
उस सज्जन पुरुष ने वाल्मीकि को बात बात पर राज़ी कर लिया कि 
वह किसी महा काव्य लिखने का आयोजन करे जिस से शाशक वर्ग आकर्षित हों.
वाल्मीकि ने उससे विषय पूछा तो उस सज्जन पुरुष ने इशारा किया, 
विषय तुम्हारे सामने है और तुम्हारे शरण में है,
अभागन सीता अपने दो बच्चों के साथ. उन्हों ने कहा - - -
विषय कोई आकृति नहीं होती, विषय रचना और गढ़ना पड़ता है. 
पति द्वारा ठुकराई सीता को महिमा मंडित करो.
वाल्मीकि ने ऐसा महा काव्य रचा कि आस पास के परिवेश में विद्वानों के लिए आकार और आधार  भूत रोचक कथा बन गई. 
यह राम कहानी रामायण नाम से संस्कृत में थी और सीमित होकर विद्वानों के द्वारा ही प्रसारित और प्रचारित होती रही. शाशकों का भी कथा को संरक्षण मिला.
कहानी के किरदारों के साथ जनता की रूचि भी बढती गई, यह बहुधा होता है. 
आज भी 50 साल पहले फिल्म संतोषी माँ आई थी और इतनी चली कि संतोषी माँ एक देवी बनते बनते रह गईं. उनकी मंदिरें बनना शुरू हो गई थीं. अगर २०० वर्ष पहले यह रचना होती तो आज यक़ीनन संतोषी माँ कोई पूजनीय देवी होतीं. 
यही नहीं रोमियो और जूलिएट भी भारत में पूजनीय होते अगर शेक्स्पेयर भारत में जन्मा होता. 
वेदों और पुराणों के खोकले कृत के सामने रामायण एक ठोस कृति साबित हुई. रज़िया सुलतान के ३०० साल बद अकबर के दौर में हिंदी विद्वान महा कवि तुलसी दास पैदा हुए उनको वाल्मीकि कृत रामायण रोचक लगी और तुलसी दास ने इसको  हिंदी में रूपान्तर किया. 
फिर क्या था, जनता जनार्दन की पहली पसंद बन गई. 
उसके बाद रामायण कथाओं की बुन्याद बन गई . 
हर विद्वान इस पर अपनी कलम को आजमाता रहा . 
सत्तर से ऊपर विभिन्न भाषाओँ में रामायण मौजूद है. 
मैंने मांढा (मिर्ज़ापुर) में देखा कि पूर्व प्रधान मंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के पूर्वज राजा रूद्र प्राताप सिंह अपनी भाषा में एक अदद रामायण रचे हुए हैं. 
तुलसी रामायण से भी मोटी. 
हर रामायण कुछ परिवर्तन के साथ साकार हुई . 
कालिदास ने कहानी के किरदारों के साथ इन्साफ करते हुए उन्हें अनजाम तक पहुँचाया. उनकी कहानी में नायका सीता के किरदार को प्राथमिकता थी 
और राम को द्वतीयता. 
वाल्मीकि का राम अपने जीवन काल में जो जो अन्याय किया उनके पश्च्याताप की आग में जलता हुवा सरयू नदी में डूब कर आत्म हत्या कर लेता है. 
उससे जो अन्याय हुए वह थे भाईयों के साथ अन्याय,  
जैसे भरतके संतानों को देश निकला देना आदि , 
पत्नी सीता की अग्नि परीक्षा जैसे जघन्य अपराध. 
बाल्मीकि रामायण को देखा जाए जिसके आधार पर तुलसीदास की रचना है,तो  दोनों में मूल भूत टकराव है. 
न्याय तुलसीदास को कटहरे में खड़ा कर सकता है. 
वाल्मीकि ने सीता को प्राथमिकता और राम को द्वतीयता दी है .
तुलसीदास ने राम का प्राथमिकता और सीता को द्वतीयता.
इस कमजोरी को ब्रह्मण बुद्धी ने ताड़ा तो तुलसी दास को सर पर चढ़ा लिया और बाल्मीकि को भंगी बना दिया. 
उनकी लिखी रामायण अछूत हो गई. 
इसका प्रचार और प्रसार लुप्तमान है और तुलसी कथा विराजमान. 
रामायण पूरी तरह से कपोल कल्पित कथा है, 
यह कपोल कल्पित कथा आज देश का राज धर्म जैसा बना जा रहा है.
इसको कोई कसौटी सत्य साबित नहीं कर सकती. 
भारत का राजकाज मुट्ठी भर मनुवादियों के हाथों में 5000 साल से है 
जो खिलवाड़ बनी हुई है, इसमें कोई मानव मूल्य नहीं न मानव पीड़ा.
यह कुछ सालों की मेहमान और हो सकती है. 
क्यांकि अभिताभ बच्चन जैसे महा नायक हनुमान चालीसा पढ़ कर ही घर से बाहर निकलते हैं तो हिन्दुओं की श्याम स्वेत छवि से मलटी कलर हो जाती है. 
भारत दुन्या का अभागा भू भाग है जो हजारों सालों से दासता में रहा है 
चाहे वह आर्यन की ब्राह्मण वादी व्योवस्था हो या पठानों और मुघलों की दासता 
या फिर अंग्रेजों की गुलामी. 
कुप्रचार है कि भारत कभी जगत गुरु हुवा करता था. रहा होगा,
आर्यन के आक्रमण से पहले कभी. 
नोट -
मुहम्मद गौरी तुर्क हिन्दुस्तान का पहला मुस्लिम फातेह था जो फ़तेह के बाद अपने ग़ुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली की गद्दी पर बैठा कर खुद अपने वतन गौर वापस चला गया. कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद उसका भाई शमसुद्दीन इल्तुतमिश उसके बाद हिन्दुस्तान का सुलतान हुवा. शमसुद्दीन इल्तुतमिश की बेटी रज़िया सुलतान १२11-३६ ई में दिल्ली की पहली महिला शाशक हुई. 
बिठूर, वन्धना (कानपुर) में रहकर वाल्मीकि काल को सत्यापित किया जा सकता है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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