Thursday 1 March 2018

Hindu Dharm Darshan- 147- V




वेद दर्शन 5

खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 
          

मैं इस यज्ञ में इंद्र और अग्नि को बुलाता हूँ एवं इन्हीं दोनों की स्तुति करने की इच्छा रखता हूँ. 
सोम पान करने के अत्यंत शौक़ीन वह दोनों सोमरस पिएँ . (1)
हे मनुष्यों ! इस यज्ञ में उन्हीं इंद्र और अग्नि की प्रशंशा करो एवं उन्हें अनेक प्रकार से सुशोभित करो. 
गायत्री छंद का सहारा लेकर उन्हीं दोनों की स्तुत्याँ गाओ. (2)
हम मित्र देव की प्रशंशा के लिए इंद्र और अग्नि को इस यज्ञ में बुला रहे हैं. (3)
हम शत्रु नाशन में क्रूर उन्हीं दोनों को इस सोमरस पीने के लिए बुला रहे हैं. 
इंद्र और अग्नि इस यज्ञ में आएँ. (4)
ये गुण संपन्न एवं सभा पलक ! इंद्र और अग्नि राक्षस जाति की क्रूरता को समाप्त कर दें. 
नर भक्षण करने वाले राक्षस इन दोनों की कृपा से संतान हीन हो जाए. (5)
हे इंद्र और अग्नि जो स्वर्ग लोक हमारे कर्मो को प्रकाशित करने वाला है, 
वहीँ तुम इस यज्ञ के निमित्त जाओ और हमें सुख प्रदान करो. (6)
ऋग वेद -प्रथम मंडल  -सूक्त 21  
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

आप तलाश करें कि वेदों में कोई तत्व है क्या ?
मानवता का कहीं परोपकार नज़र आता है ?
पुरुषार्थ हीन वेद मन्त्र आज भी प्रचलित है.
जैसे मुसलमान अल्लाह से दुआ करता है कि कुफ्फ़ारों का सर्व नाश हो.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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