Monday 12 March 2018

Soorah al Eraaf 7 Qist- 5

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह  अल-एराफ़
(क़िस्त-5 ) 
चलिए क़ुरआन की अदभुत दुन्या की सैर करें. - - -
अल्लाह मुहम्मद बसद एहतराम कहता है,

'आप कह दीजिए - - - 
लोगो!
मैं तुम सब की तरफ़ उस अल्लाह का भेजा हुवा हूँ, जिसकी बादशाही है, तमाम आसमानों और ज़मीन पर है - - - अल्लाह पर ईमान लाओ और नबी उम्मी पर जो अल्लाह और उसके एह्कम पर ईमान रखते हैं''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१५८)

लोगों को अल्लाह का इल्म भली भांत था जिसे वह मानते थे मगर जनाब उसकी तरफ़ से नक़ली दूत बन कर सवार हो, वह भी उम्मी. 
तायाफ़ के हुक्मरां ने सूरत देख कर और बातें सुन कर ठीक ही कहा था कि "क्या अल्लाह को मक्का में कोई ढ़ंग का पढ़ा लिखा इंसान नहीं नज़र आया था कि उसने तुम जैसे फटीचर को अपना रसूल चुना ?"
 और मुहम्मद रुसवा हो कर उसके दरबार से निकले. 

अल्लाह ने उनकी कोई खबर न ली? 
जाहिलों को लूट मार का सबक़ सिखला कर कामयाब हुए तो किया हु ?.

'' - - - और इन लोगों को जो ज़्यादती करते थे एक सख़्त अज़ाब में पकड़ लिया,बावजेह इसके कि वह बे हुकमी किया करते थे, यानी जब उनको जिस काम से मना किया जाता थ तो उस में वह हद से निकल गए तो हम ने उन को कह दिया की तुम बन्दर ज़लील बन जाओ.''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१६६)

ऐ अल्लाह के बन्दों !
ऐ भोले भाले मुसलमानों !
अगर तुम इस पैग़म्बरी ए जेहालत से बाग़ी होकर, इल्म जदीद की तरफ़ राग़िब हो जाओ तो बेहतर होगा कि यह तुम को ज़लील बन्दर बना दे. तुम्हारे लिए दावते फ़िक्र यह है कि समझो, 
सिर्फ़ अपने फ़ेल से इंसान ही ज़लील और अज़ीम होता है, बाक़ी तमाम मख़लूक़ अपनी फ़ितरत और अपनी ख़सलत के एतबार से हुआ करती हैं. इंसान को इंसानियत की राह से हटा कर दुश्मन ए इंसानियात बनाने वाला ख़ुद ज़लील बंदर हो सकता है.

''और जब आप के रब ने बतला दिया कि वह उन पर क़यामत तक ऐसे शख़्स को ज़रूर मुसल्लत करता रहेगा जो उनको सज़ा ए शदीद की तकलीफ़ पहुंचता रहेगा. बिला शुबहा आप का रब वाक़ई जल्द ही सज़ा दे देता है और बिला शुबहा वह बड़ी मग़फ़िरत और बड़ी रहमत वाला है.''
सूरह अलेराफ ७ - ९वाँ आयत (१६७)

मुहम्मदी अल्लाह के परदे में ख़ुद मुहम्मद हैं . वह लोगों को आगाह कर रहे हैं कि इस्लाम क़ुबूल करो वर्ना मैं तुमको सख़्त सज़ा दूंगा. 
तलवार के ज़ोर पर पैग़म्बर बन जाने के बाद उन्हों ऐसा किया भी.

''हमने दुनया में इसकी मुतफ़र्रिक़ जमाअतें कर दीं. बअज़े उनमें नेक और बअज़े और तरह के थे और हम उन को ख़ुशहालियों और बद हालियों से आज़माते रहे कि शायद बअज़ आ जाएँगे. फिर उस के बाद ऐसे लोग उसके जानशीन रहे कि किताब को उन से हासिल किया. इस दुन्याए अदना का माल ओ मतअ हासिल कर लेते है और कहते हैं हमारी ज़रूर मग़फ़िरत हो जाएगी, हालांकि उनके पास ऐसा ही माल व मतअ आने लगे तो इस को ले लेते हैं. क्या उन से किताब का अहेद नहीं लिया गया कि अल्लाह की तरफ़ बजुज़ हक़ बात के और किसी बात की निस्बत न करें और उन्हों ने इस में जो कुछ था इसे पढ़ लिया और आख़ीर वाला घर इन लोगों के लिए बेहतर है जो परहेज़ रखते हैं, तो फिर क्या नहीं समझते. और जो लोग किताब के पाबन्द हैं और नमाज़ की पाबन्दी करते हैं, हम ऐसे लोगों को जो अपनी इस्लाह ख़ुद करें तो सवाब ज़ाया न करेंगे. और जब पहाड़ को उठा कर छत की तरह इन के ऊपर कर दिया और इन को यक़ीन हो गया की अब उन पर गिरा, क़ुबूल करो जो किताब हमने उन को दी है और याद रखो जो एहकाम इस में हैं, जिस से तवक्को है कि तुम मुत्तक़ी बन जाओ,''
सूरह अलेराफ ७ - ९वाँ आयत (१७१-१६८

एक थे हादी बाबा, 
मैं जब भी क़ुरआन का तर्जुमा पढ़ता हूँ तो ऐसी आयतों पर उनकी तस्वीर मेरे आँखों में तैर जाती है. वह सीधे सादे थे, क़लम किताब से उनको कभी वास्ता न रहा, खेत खलियान और मवेश्यों की देख भाल में उनकी ज़िन्दगी की कायनात महदूद थी. इन में कुछ ज़ेहनी ख़लल था. रात को हम लोग इनको लेकर कुछ मशगला किया करते, इनके ऊपर बाबा आया करते थे, जैसे कि लोगों पर शैतान, भूत और जिन्नात आते हैं. बस इन्हें पानी पर चढ़ाने भर कि देर होती कि हादी बाबा हो जाते शुरू. उनके मुंह में जो भी आता बकते रहते मगर गाली गलौज नहीं, न ही किसी को बुरा भला. उनकी धारा प्रवाह बक बक उस वक़्त तक ख़त्म न होती जब तक हम लोग उनको वापस पानी से उतार न लेते. इसी तरह पनयाने पर वह लम्बी लम्बी दौड़ भी लगा कर वापस आते. भरम था कि थकते नहीं. इसी भरम ने हादी बाबा की जान ले ली.
क़ुरआन में मुहम्मद की वज्दानी कैफ़ियत में बकी गई बक बक हादी बाबा की बक बक जैसी ही होती है. जिन आयातों को मैं ने हाथ नहीं लगाया वह लंतरानियों से भी गई गुज़री हैं.
क़ुरआन की यह बक बक सियासत के दांव पेंच में आकर इबादत बन गईं हैं.

''क्या उनके पाँव हैं जिन से वह चलते हैं? या उनकी आँखें हैं जिन से वह देखते है? या उनके कान हैं जिन से वह सुनते हों? आप कह दीजिए कि तुम अपने सब शुरका (सम्लितों) को बुला लो फिर मेरी ज़रर रेसनी (नुकसान पहुंचाने) की तदबीर करो, फिर मुझको ज़रा मोहलत मत दो. यक़ीनन मेरा मदद गार अल्लाह है जिस ने यह किताब नाज़िल फ़रमाई है. वह नेक बन्दों कि मदद करता है.''
सूरह अलेराफ ७ - ९वाँ आयत (195-९६)

यह जुमले मुहम्मद के निजी दावे हैं तो अल्लाह का कलाम कैसे होसकते  है? 
ख़ैर अभी तो अरबी बोलने वाले अल्लाह का ही पता नहीं. मुहम्मद का ये दावा खोखला है, गर इनकी बातों में दम है तो _ - - 
रातों रात मक्का से मदीना चोरों कि तरह अपने साथी अबू बक़र के साथ क्यूं भागे, 
ग़ार में दिन भर डर के मारे क्यूं दुबके पड़े रहे? 
जंगे उहद में सिकश्त ए फ़ाश के बाद नाम पुकारने पर पिछली क़तार में ख़ामोश बे ईमान फ़ौजी सिपाही बने खड़े रहे ? 
कहीं पर अल्लाह की मदद इनको मयस्सर क्यूं न थी??





जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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