Friday 9 March 2018

Soorah Aleraaf 7 Q 4

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह  अल-­एराफ़ 7 
(क़िस्त -4) ­

धर्मो की स्थापना बहुधा दो अवस्थाओं में होती है, 
या तो इसका संस्पाथक इसकी अलामतों और इसके अंजामों से बे ख़बर स्वर्ग सिधार जाए, 
या फिर संसार बाद में उसके महत्त्व को समझ कर उसको संस्पाथक का मौलिक रूप दे सके.
दूसरे वह हैं जो अपनी ज़िन्दगी में ही अपने को पैग़म्बर या भगवान आदि स्थापित करने के लिए पापड़ बेलते हैं. 
इसकी दो मिसालें हैं, 
गांधी जी, जो कहते थे कि "पता नहीं लोग मुझे महात्मा क्यूँ कहते हैं?"
दूसरे मुहम्मद जो मुहम्मदुर रसूल अल्लाह 
''यानी मुहम्मद अल्लाह के दूत'' ख़ुद कहलाते थे. 
मुहम्मदुर रसूल अल्लाह कहला कर ही लोगों को वह मुसलमान बनाते थे. मुहम्मदुर रसूल अल्लाह न कहने वाले पर जज़िया का जुर्माना वसूलते थे या फिर उसका सर क़लम कर दिया करते थे.
अब देखिए क़ुरआन में मुहम्मद का गढ़ा हुआ अल्लाह क्या कहता है - - -

''और ज़मीन में बाद इसके कि कुछ दुरुस्ती कर दी गई , फ़साद मत फैलाओ. ये तुम्हारे लिए नाफ़े है.''
अलएराफ़ ७ -आठवाँ पारा आयत (८५)

मज़हबी फ़साद फैलाने वाला मुहम्मदी अल्लाह बन्दों से कह रहा है कि फ़साद मत फैलाओ, 
है न "जबरा मारे रोवे न देय."
नवें पारे में अल्लाह शोएब का बाब खोलता है. बाग़ी शोएब को बस्ती वाले अपने आबाई मज़हब पर वापस आने के लिए ज़ोर डालते हैं और शोएब इन लोगों से अल्लाह की पनाह में आने की दावत देते हैं. 
(जैसे मुहम्मद की आप बीती है)

बस्ती के काफिरों के सरदार सरकशी करते हैं तो एक ज़लज़ला आ जाता है और सब अपने अपने घरों में औंधे मुंह गिर पड़ते हैं. पैग़म्बर शोएब नाराज़ होकर बस्ती से मुंह मोड़ कर चले जाते हैं कि काफ़िरों के लिए मैं क्यूं रंज करूं. फिर अल्लाह ने वहां किसी नबी को नहीं भेजा. सब तकज़ीब करने वाले मुहताजी और बदहाली में पड़ गए और ढीले हो गए. 
मुहम्मद क़ुरान में इस क़िस्म की कई कहानियां मक्का के क़बीलाई सरदारों के लिए गढ़े हुए हैं.

''हाँ! तो क्या अल्लाह की इस पकड़ से बे फ़िक्र हो गए? अल्लाह की पकड़ बजुज़ इसके जिसकी शामत आ गई हो कोई बे फ़िक्र नहीं हो सकता और इन रहने वालों के बाद ज़मीन पर, बजाए इन के ज़मीन पर रहते हैं, क्या इन को ये बात नहीं बतलाई कि अगर हम चाहते तो इनको इनके जरायम के सबब हलाक कर डालते और हम इन के दिलों पर बंद लगाए हुए हैं, इस से वह सुनते नहीं.''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (८८-१००)

इन १३ आयातों में ऐसी ही बहकी बहकी बातें हैं, जिसे मुहम्मद ने न जाने नशे (जब कि शराब हलाल थी) में, वज्द या दीवानगी के आलम में बकी है. हराम ज़ादे ओलिमा ने इनमें ब्रेकेट लगा लगा कर अपने हिसाब से मानी और मतलब भरा है. मुहम्मद ने ऐसे बेवक़ूफ़ अल्लाह का ख़ाक़ा पेश कर के उस नामालूम हस्ती की  मिटटी पिलीद की है.

*अल्लाह, फ़िरौन और मूसा की कहानी एक बार फिर दोहराता है.
( इन्हीं बातों के अलावा कुरआन में कुछ है भी नहीं.)
जो कि किसी तौरेत के जानकार के मशविरे से मुहम्मद ने गढ़ी है. 
कभी कभी जानकारी देने वाले मुहम्मद को चूतिया बना देते है और नाज़िल शुदा आयत उलटी पड़ जाती है तो ऐसी मौक़ूफ़ (रद्द ) हो जाया करती है. मुहम्मद अपनी तमाम सीमा पार करते हुए अल्लाह से कलाम कराते हैं कि मूसा और फ़िरौन के जादू गरों में जब मुक़ाबला होता है तो फ़िरौन के हारे हुए जादूगर इस्लाम क़ुबूल कर लेते हैं.
ख़ुराफ़ाती आयातों में पकड़ने की ज़लील तरीन बात यही है कि फ़िरौन के दरबार में यहूदी मूसा का मुक़ाबिला और हज़ारों साल बाद पैदा होने वाले मुहम्मद की दीवानगी की फ़तह हो जाती है  .
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१०२-१५६)

''जो लोग ऐसे रसूल उम्मी की पैरवी करते हैं जिन को कि वह अपने पास तौरेत, इंजील में लिखा पाते हैं कि वह उनको नेक बातों का हुक्म फ़रमाते हैं और बुरी बातों से मना फ़रमाते हैं और पाकीज़ा चीजों को हलाल फ़रमाते हैं. और गन्दी चीज़ों को उन पर हराम फ़रमाते हैं - - - 
सो जो लोग उन पर ईमान लाते हैं और उनकी हिमायत करते हैं और उनकी मदद करते हैं और उस नूर की पैरवी करते हैं जो उनके साथ भेजा गया है, ऐसे लोग पूरी फ़लाह पाने वाले हैं''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१५७)

मुहम्मद ख़ुद बतला रहे हैं कि जो लोग ऐसे अनपढ़ पैग़म्बर की बात मानते है जो बातें बतला न रहा हो बल्कि ''फ़रमा '' रहा हो. 
जो अपने जैसे अनपढ़ों को समझा रहा है कि उसका ज़िक्र तौरेत और  इंजील में है और उसके ज़ालिम जेहादी तलवार से समझा रहे हों कि पैग़मबर सच बोल रहा है 
और अय्यार ओलिमा क़तार दर क़तार इसकी सदाक़त की तस्दीक़ कर रहे हों, तो आज कौन उसको झुटला सकता है. 
हालाँकि झूट उनके सामने खुला रखा हुवा है.
कितना बड़ा सानेहा है कि झूट पर ईमान लाया जाए.

*मुहम्मदी अल्लाह नबियों के क़िस्से कहानियों में फंसे हुए लोगों को बतलाता है कि उसने क़दीम क़बीलों पर कैसे कैसे ज़ुल्म ढाए.
मुहम्मद जैसा ज़ालिम पैग़म्बर बना मुखिया अगर नाकाम होता तो बद दुआ देने की धमकी देता है . 
ख़ुद मुहम्मद ने कई बार इसका सहारा लिया. 

कहते है - - - '
शोएब अलैहिस सलाम की उम्मत पर तीन मर्तबा अल्लाह ने क़हर ढाया''
गोया मुहम्मद धमकाते हैं, सुधर जाओ वर्ना तुम्हारा भी यही हाल होगा. चालाक. मुहम्मद ने जिस तरह ख़ुद को अल्लाह का रसूल बना लिया था उसी तरह पहले अपने क़बीले को अपनी उम्मत बनाया और कामयाब होने के बाद पूरे अरब को अपनी उम्मत बना लिया. 
उनके बाद माले ग़नीमत के घिनावने  हरबे से दुन्या के तमाम आबादी का एक हिस्सा उम्मत ए मोहम्मदी बन गईवजो झूटे पैग़म्बर के झूट के चलते आज रुस्वाए ज़माना है.

*सूरह बहुत देर तक मुहम्मद साख़्ता पैग़म्बर शोएब के कन्धों पर चलती है. जिसमें न तो उनकी जीवनी है न ही उनकी जीवन की कोई घटना. 
बस मुहम्मद ने जिस किसी का नाम समाजी पस ए मंज़र में सुन रखा था, उसको लेकर कहानी गढ़ दी. 
उनकी तवारीख़ जानना हो तो अंग्रेजी हिस्टिरी को खंगालना पड़ेगा. 
मगर मुसलामानों को तो क़ुरानी तवारीख़ ही काफ़ी है जिसकी गवाही अल्लाह दे रहा है.
तमाम क़ुरआन की कहानियां, वाक़आत, मुअज्ज़े मुहम्मद की वक्फ़ा ए पयंबरी की कोशिशों के हिसाब से गढ़े हुए हैं. 
ख़ुद क़ुरआन हदीस, तारीख़ ए इस्लाम को गहराई से मुतालेआ किया जाए तो यह नतीजा सामने आ जाता है.
आख़ीर में मूसा के मार्फ़त क़ुरआन चलता है. 
मुहम्मद पर लगा इलज़ाम बतलाता है कि मुहम्मद के पास कोई यहूदी मुख़बिर था जो यहूदयत और मूसा की टूटी फूटी मालूमात उन्हें देता था वह जगह जगह क़ुरआन में इसे जड़ देते थे और अल्लाह को इसका गवाह बना देते.

* मेरी तहरीर में तौरेत और यहूदयत का बार बार हवाला शायद कुछ लोगों को खटक रहा हो, मालूम होना चाहिए कि अगर क़ुरआन से इसे ख़ारिज कर दिया जाए तो क़ुरआन की बुन्याद खिसक जाएगी. 
क़ुरआन ख़ुद तस्लीम करता है, इस्लाम को दीन ए इब्राहिमी कह के, 
जब कि अब्राहम ही यहूदयों के आबा ओ अजदाद की पहली कड़ी हैं. यहूदी इस्माइलियों को (जिस में मुहम्मद हैं) इस लिए अपने से कम तर मानते हैं कि वह अब्राहम की मिसरी लौंडी हाजरा की औलाद हैं, जिसे सारा के कहने पर उन्होंने अपनी रखैल तो बना लिया था मगर बाद में बीवी सारा के कहने पर ही उसे पर घर से बाहर निकल दिया था.
यह दुन्या के तमाम मुसलमानों के साथ ग़ायबाना सानेहा है कि इन की जड़ें जुग़राफ़ियाई एतबार से अपने ही चमनों से कटी हुई हैं. वह न इधर के रहे न उधर के. मियाम्नार ने जो की बुद्धिष्ट हैं, अपने यहाँ से मुसलामानों को निकाल बाहर किया है क्यूँ कि वह बर्मी होते हुए भी क़ौमी धारे में शामिल न रह कर अलग थलग कनारे गढ़े में रुके हुए पानी की तरह थे जो कि तअफ़्फ़ुन पैदा कर रहे थे. तरक़्क़ी पज़ीर बर्मियों में धर्म दाल में नमक की तरह बचा है और मुसलामानों में इस्लाम दाल की जगह नमक की तरह है, वह कहीं भी क्यों न हों.
वह पहले मुसलमान होते हैं उसके बाद बर्मी, हिदुस्तानी या चीनी. 
यही वजह है कि इन को हर ग़ैर मुस्लिम मुल्क में शक की निगाह से देखा जाता है जो हक़ बजानिब है.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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