Friday 16 March 2018

Soorah Infaal 8 Q 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इंफ़ाल - ८
(क़िस्त-2)

मुहम्मद के कथन को हदीस कहा जाता है 
और हदीसें मुस्लिम बच्चों को ग्रेजुएशन कोर्स की तरह पढ़ाई जाती है, 
कई लोग हदीसी ज़िन्दगी जीने की हर लम्हा कोशिश करते हैं. 
कई दीवाने अरबी, फ़ारसी लिपि में लिखी इबारत 'मुहम्मद' की तरह ही बैठते हैं. 
अपने नबी की पैरवी में सऊदी अरब के शेख चार बीवियों की पाबन्दी की  तहत पुरानी को तलाक़ देकर नई कम उम्र लाकर बीवियाँ रिन्यू किया करते हैं. 
हदीसो में एक से एक ग़लीज़ बातें हैं. 
उम्मी यानी निरक्षर गँवार विरोधाभास को तो समझते ही नहीं थे. 
हज़रात की दो हदीसें मुलाहिजा हों.
१- एक शख़्स अपनी तहबंद ज़मीन पर लथेड़ कर चलता था. अल्लाह तअला ने इसे ज़मीन में धंसा दिया. क़यामत तक ज़मीन में वह यूं ही धंसता रहेगा.
 ''बुखारी (१४०२)"

२-फ़रमाते हैं एक रोज़ मैं सो रहा था कि मेरे सामने कुछ लोग पेश किए गए जिनमें से कुछ लोग तो सीने तक ही कुरता पहने थे, और बअज़ इस से भी कम. इन्हीं लोगों में मैं ने उमर इब्ने अल ख़िताब को देखा जो अपना कुरता ज़मीन पर घसीटते हुए चल रहे थे. लोगों ने इसकी तअबीर जब पूछी तो बतलाया यह कुरताए दीन है.''
(बुखारी २२)

कबीर कहते हैं- - -
साँच बराबर तप नहीं झूट बराबर पाप, 
जाके हृदय सांच है ताके हृदय आप। 

मुहम्मद के कथन में झूट का अंश देखिए - - -
१- उनको कैसे मालूम हुआ कि अल्लाह तअला तहबन्द ज़मीन पर लथेड कर चलने वाले को ज़मीन में मुसलसल धंसाता  रहता है?
२-उम्मी सो रहे थे और इनके सामने कुछ लोग पेश किए गए? 
भला बक़लम ख़ुद का रूतबा तो देखिए. 
माँ बदौलत नींद के आलम में शहेंशाह हुवा करते थे. 
जनाब सपनों में पूरा पूरा ड्रामा देखते हैं.
 कुछ लोग सीने तक कुरता पहने थे? गोया फुल आस्तीन ब्लाउज? 
कुछ इससे भी कम? यानी आस्तीन दार चोली? 
मगर ऐसे लिबासों को कुरता कहने की क्या ज़रुरत थी आप को? 
झूट इस लिए कि आगे कुरते की सिफ़त जो बयान करना था. 
ज़मीन पर कुरता गोगर ग़लीज़ को बुहारता चले तो दीन है. 
लंबी तुंगी हो तो वह ज़मीन में धंसने का अनोखा अज़ाब?
ऐसी हदीसों में अक्सर मुसलमान लिपटे हुए लंबे लंबे कुरते और घुटनों के ऊपर पायजामा पहन कर कार्टून बने देखे जा सकते हैं. 

कुरते और तहबन्द वालों का मुहम्मदी अल्लाह इंसानों की तरह गुफ्तुगू भी करता है - - - 

''जो कि नमाज़ की पाबन्दी करते हैं और हम ने जो कुछ उनको दिया उस में ही ख़र्च करते है.''
सूरह इनफ़ाल पारा 8  आयत (३)

मुहम्मद जंग में लूटे हुए माल का पांचवां हिस्सा अल्लाह के नाम का निकाल के ख़ुद रख लेते और पांचवां हिस्सा अल्लाह के रसूल का लेके ख़ुद रख लेते बाक़ी ३/५ हिस्सा हज़ारों लुटेरों में बंटता जोकि बहुत कम होता. 
बुरा वक़्त था भरण-पोषण की मजबूरी के कारन लड़कियां पैदा होते ही दफ़्न कर दी जाती थीं. ऐसे में बेकारी की कल्पना की जा सकती है. 
लूट मार का समय पूरी दुन्या में था मगर लुटेरे डाकू, चोर, बदमाश कहे जाते थे, मुसलमान नहीं. 
लूट के माल को माल ए ग़नीमत का नाम देकर मुहम्मद ने इसे न्याय संगत कर दिया और स्वयंभू अल्लाह बन बैठे, 
बन्दों को इसमें से जो कुछ वह हाथ उठा कर दे देते, उसी में वह गुज़ारा करे. 
जिसने नमाज़ की पाबंदी दिल व्  जान से कर ली वह कुछ और कर भी नहीं सकता, ख़र्च कहाँ से करेगा? या फिर नमाज़ की आड़ में कुछ ग़लत काम करे.
''जैसा कि आप के रब ने आप के घर से मसलेहत (भलाई) के तहत बदर (जंगे बदर) के लिए रवाना किया और मुसलामानों की एक जमाअत इसे गराँ समझती थी, वह इस मसलेहत में बाद  इसके कि इसका ज़हूर हो गया था, आप से इस तरह झगड़ते रहे थे कि गोया इन को कोई मौत की तरफ़ हाँके जा रहा हो और वह देख रहे हों ''
सूरह इनफ़ाल पारा 8  आयत (६)

 बनू नुज़ैर (यहूदियों का क़बीला) पर मुसलामानों का पहला हमला धोका धडी से कामयाब हुआ तफ़सील आगे होगी. दूसरा हमला मक्का के कुरैश्यों पर था. दिग्गज कुरैश सरदार इसमें शामिल थे. कुरैशों में ज़रुरत से ज़्यादा आत्म विशवास था और मुसलमानों में अंध विशवास लालच. 
मुहम्मद ने यक़ीन दिला दिया था कि ३००० फ़रिश्ते मुसलमानों के साथ जंग में शरीक करने का वादा अल्लाह ने कर लिया है, 
लालच थी माल ए ग़नीमत की. 
बहर हाल मुसलमान जंग जीत गए मगर ग़नीमत पर रसूल की बद नियाती पर लोग बद गुमान हो गए. जान भी गँवाई और जो बचे उनको कोई ख़ास फ़ायदा भी न हुआ. इस से बेहतर होता कि घर पर ही जो कर रहे थे, करते रहते. 
दूसरी जँग, जँग-ए-उहद के लिए मुहम्मद एक बार फिर लोगों को ललचा रहे हैं, फुसला रहे हैं, झूट और मक्र का सहारा ले रहे हैं. इस बार ५००० फ़रिशतों के शरीक होने का अल्लाह के वादे का यक़ीन दिला रहे हैं.
और दर पर्दा धमका भी रहे हैं - - -

''बिला शुबहा अल्लाह तअला ज़बरदस्त हिकमत वाले हैं''
सूरह इनफ़ाल पारा 8  आयत (१०)

अफ़सोस कि मुसलमान अल्लाह की इस हिकमत पर आज भी ईमान रखते हैं कि उनके अल्लाह जेहादों में फ़रिश्तों की मदद भेजता है और अपने पैग़म्बर की ऐसी दरोग़ आमोज़ी पर भी.

''जब अल्लाह तुम पर ऊंघ तारी कर रहा था, अपनी तरफ़ से चैन देने के लिए और इस के क़ब्ल आसमान से बारिश बरसा रहा था कि इस के ज़रीए तुम को पाक करदे और तुम को शैतानी वस्वुसे से दफ़ा कर दे और तुम्हारे दिलों को मज़बूत कर दे और तुम्हारे पाँव जमा दे.''
सूरह इनफ़ाल पारा 8  आयत (११)

अरब की, इस्लामी और क़ुरआन की अलामतें ही हमारी सामाजिक मान्यताओं से भिन्न हैं. 
ऊँघना अल्लाह की रहमत और चैन है, 
बरसात की गन्दी छींटों से आप पाक हो जाते हैं, 
शैतानी बहकावे का इलाज हो जाता है और पाँव जम जाते हैं? 
ख़ैर अरब में ऐसा होता होगा मगर भारत के मुसलमान इस उलटी धार में क्यूं बह रहे हैं, वजेह हो सकती है कि अल्लाह जेहाद के लिए बहका रहा है,और वह अंदर ही अंदर तालिबानी हो रहे हों ,

''मैं अभी कुफ्फ़ार के दिलों में रोब डाल देता हूँ सो तुम गर्दनों पर मारो और पूरा पूरा मारो.''
सूरह इनफ़ाल पारा 8  आयत(१२)

'कुन फ़या कून' का फार्मूला क्या भूल रहा है ? अल्लाह तअला ! 
क्या तेरी शान है. 
मुनकिर नकीर को क्या छुट्टी पर भेज दिया है? 
बे ईमान मुस्लिम ओलिमा टिकिया चोर नेता ढोल पीटते फिरते है कि क़ुरआन अमन अमान सिखलाता है, 
इस्लाम शांति और सद भाव का मज़हब है, 
अक्सरियत उनके हाँ में हाँ मिलाती है 
क्यूंकि उसके यहाँ ख़ुद रामायण और महा भारत युद्धों से भरी हुई हैं. 
सच तो यह है की हिदुस्तानी धर्मों और पश्चिम से आए हुए यहूदी, ईसाई और इस्लाम मजहबों का मतलब ही अन्याय और अधर्म है.

''जो अल्लाह और रसूल की मुख़ालिफ़त करता है, अल्लाह तअला सख्त सजा देते हैं, सो यह चक्खो. जालिमो के लिए सख़्त अज़ाब है.''
सूरह इनफ़ाल पारा 8  आयत (१३-१४)


किर्दगार ए कायनात, ख़ुदाए बरतर ने क्या ?, 
दरोग़ आमेज़ मुहम्मद की कचेहरी में वकील की नौकरी करली है. 
वह मुहम्मद की हर ऊट पटाँग बातों की पैरवी कर रहा है।



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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