Monday 30 April 2018

* आज 1 मई है*




* आज  1 मई है* 

आज का दिन है मई दिवस का , आज का दिन है बड़ा महान,
आज के दिन आज़ाद हुए हैं, दुन्या के मज़दूर किसान. 

सदी होने को है जब कार्ल मार्क्स, लेनिन और उनके जांबाज़ साथियों ने मेहनत कशों­­ को ज़ारों और सरमायादारों के चंगुल से आज़ाद कराया था, जब मेहनत कश अवाम एक एक मुठ्ठी दाने के लिए तरसती थी और इब मुट्ठी भर नागों की ग़ुलाम हुवा करती थी. हमारी आज की नस्लें भूल गई हैं कि उनके पूर्वज कितने मज़लूम हुवा करते थे, कम ही नव जवान जानते है 1 मई की छुट्टी क्यों होती है, इसका इतिहास क्या है ? 
1 मई की आज़ादी को आज पूरी दुन्या मनाती है, भले अमरीका ही क्यूँ न हो.
इन्क़लाब ने दुन्या का नक़्शा ही बदल दिया था. 
लाखों वह मुजरिम मौत के घाट उतारे गए जो मुज्रिमे-इंसानियत थे, 
वह भी जो धार्मिक अफ़ीम के ताजिर थे, जो मुफ़्त खो़र थे, 
जो इंसानी  ख़ून को अपनी ख़ुराक़ बनाए हुए थे, ऐसे साँपों को साइबेरिया के  रेगिस्तान में छोड़ दिया गया था, कि जहाँ वह आज़ादी के साथ गाड, अल्लाह और भगवानों का कारोबार करें. पादरी और मुल्लों की शामत आ गई थी. 
तुर्की के इन्क़लाबी कमाल पाशा ने उन क़ाबिज़ मुल्लाओं को जहाज़ में भर कर समंदर में डुबो दिया था.
भारत ने बहुत दूर से मई दिवस को देखा था और सुना था, निकट आने से पहले ही मई दिवस की छुट्टी का एलान कर दिया. गोया इन्क़लाब आया और गया,
नतीजतन हम जहाँ के तहां पड़े हुए हैं. 
यहाँ धार्मिक लुटेरों की शाख़ मज़बूत जड़ें रखती है. 
बाबाओं और माल्याओं का बोल बाला है. 
सर उठाने वाले इंक़्लाबियों को नक्सल वादी, माओ वादी और देश द्रोही कह कर गोलियों से भून दिया जाता है.
परिणाम स्वरूप दुन्या का सब से ज़्यादः ज़रखेज़ टुकड़ा आज भी ग़रीबी और भुखमरी का शिकार है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Soorah yusuf 12 Q 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह यूसुफ़ -१२

(क़िस्त -2)

पिछली क़िस्त में मैंने कहा था कि यूसुफ़ की तौरेती कहानी आपको सुनाऊंगा जिसे मैं मुल्तवी करता हूँ कि यह बात मेरे मुहिम में नहीं आती. इतना ज़रूर बतलाता चलूँ कि 
मुहम्मद ने तौरेत की हर बात को ऐतिहासिक घटना के रूप में तो लिया है मगर उसमें अपनी बात क़ायम करने के लिए रद्दो बदल कर दिया है तौरेत में यूसुफ़ हसीन इन्सान नहीं बल्कि ज़हीन तरीन शख़्स है. 
उसने सात सालों में इतना ग़ल्ला इकठ्ठा कर लिया था कि अगले सात क़हत साली के सालों में पूरे मिस्र के किसानो को मजबूर कर दया था कि दाने के एवाज़ में बादशाह के पास अपनी ज़मीनें गिरवीं कर दें. 
ज़मीन बादशाह की हुई और उसका मालिक मज़दूरी पर रिआया बन कर उस पर काम करने लगी . 
कुल पैदावार का १/५ लगान सरकार को मिलने लगा. 
यूसुफ़ का यह तरीक़ा आलम गीर बन गया जो आज तक कहीं कहीं रायज है. 
मुहम्मदी अल्लाह कहता है - - - 

''ये क़िस्सा ग़ैब की ख़बरों में से है जो हम वाहिय के ज़रीए से आप को बतलाते हैं. - - - और अक्सर लोग ईमान नहीं लाते गो आप का कैसा भी जी चाह रहा हो, और आप इनसे इस पर कुछ मावज़ा तो चाहते नहीं, यह क़ुरआन तो सारे जहान वालों के लिए सिर्फ़ नसीहत है."
सूरह यूसुफ़ 13  पारा 13 आयत (१०२-४)

मैंने आप को बतलाया था कि यूसुफ़ कि कहानी अरब दुन्या कि मशहूर तरीन वाक़ेआ है जिसे बयान करने के बाद झूठे मुहम्मद फिर अपने झूट को दोहरा रहे है कि ये ग़ैब कि ख़बर है जो इन्हें वाहिय के ज़रीए मिली है. 
मुसलमानों! 
मेरे भोले भाले भाइयो!! 
क्या तुम्हें ज़रा भी अपनी अक़्ल  नहीं कि ऐसे क़ुरआन को सर से उतार कर ज़मीन पर फेंको. 
सिड़ी सौदाई की ख़्वाहिशे-पैग़म्बरी की इन्तहा देखो कि ज़माने के दिखावे के लिए अपने आप में ग़म के मारे गले जा रहे हैं, अपने जी की चाहत में तड़प रहे हैं, जेहादी रसूल. क़ुरआन सारे ज़माने को एक भी कारामद नुस्ख़ा नहीं देता, बस इसका गुणगान बज़ुबान ए ख़ुद है.

''और बहुत सी निशानियाँ आसमानों और ज़मीन पर जहाँ उनका गुज़र होता रहता है और वह उनकी तरफ़ तवज्जे नहीं देते हैं और अक्सर लोग जो ख़ुदा को मानते भी हैं तो इस तरह के शिर्क करते जाते हैं तो क्या फिर इस बात से मुतमईन हुए हैं कि इन पर ख़ुदा के अज़ाब का कोई आफ़त आ पड़े जो इनको मुहीत हो जावे या उन पर अचानक क़यामत आ जावे और उनको ख़बर भी न हो.''
सूरह यूसुफ़ 13  पारा 13 आयत (१०५-१०७)

गंवार चरवाहा बग़ैर कुछ सोचे समझे  मुँह से बात निकालता है जिसको यह हराम ज़ादे ओलिमा कुछ नशा आवर अफ़ीम मिला के कलामे-इलाही बना कर आप को बेचते हैं. 
अब सोचिए कि आसमानों पर वह भी उस ज़माने में आप अवाम का गुज़र कैसे होता रहा होगा ?
या इन मुल्लाओं का आज भी आसमानों पर जाने की तौफ़ीक़ कहाँ , साइंस दानों के सिवा ? 
रह गई ज़मीन की बात तो इस पर अरब दुन्या के लड़ाके यूसुफ़ से लेकर मूसा तक हज़ारो बस्तियों को यूँ तबाह करते थे कि वह ज़मीन कि निशानयाँ बन जाती थीं. 
(पढ़ें तौरेत मूसा काल)

मुहम्मद हज़रते-इन्सान को कभी हालाते इत्मीनान में देखना या रहने देना पसंद नहीं करते थे. 
उनकी बुरी ख़सलत थी कि फ़र्द के ज़ातयात में दख़्ल अंदाज़ी जिसकी पैरवी इस ज़माने भी उल्लू के पट्ठे तबलीग़ी जमाअत वाले जोहला, तालीम याफ़्ता हल्के में, लोगों को जेहालत की बातें समझाने जाते है.
मुहम्मद की एक ख़ू शिर्क है कि जो उनके सर में जूँ की तरह खुजली किया करती है. शिर्क यानी अल्लाह के साथ किसी को शरीक करना. इसमें भी मुहम्मद की चाल है कि सिर्फ़ उनको शरीक करो.जेहादों की मिली माले-ग़नीमत,तलवारों के साए में रचे इस्लामी क़ानून और हरामी ओलिमा के ख़ून में दौड़ते नुत्फ़ा ए मशकूक ने एक बड़ी आबादी को रुसवा कर रखाहै. 

"आप फ़रमा दीजिए मेरा तरीक़ा है मैं ख़ुदा की तरफ़ इस तौर पर बुलाता हूँ कि मैं दलील पर क़ायम हूँ. मैं भी, मेरे साथ वाले भी और अल्लाह पाक है और मैं मुशरिकीन में से नहीं हूँ और हमने आप से पहले मुख़्तलिफ़ बस्ती वालों में जितने रसूल भेजे हैं सब आदमी थे. और यह लोग मुल्क में क्या चले फिरे नहीं कि देख लेते कि इन लोगों का कैसा अंजाम हुवा जो इन से पहले हो गुज़रे हैं और अल्बस्ता आलमे-आख़रत इनके लिए निहायत बहबूदी की चीज़ है जो एहतियात रखते हैं. सो क्या तुम इतना भी नहीं समझते. इन के क़िस्से में समझदार लोगों के लिए बड़ी इबरत है. ये क़ुरान कोई तराशी हुई बात तो है नहीं बल्कि इससे पहले जो किताबें हो चुकी हैं ये उनकी तस्दीक़ करने वाला है और हर ज़रूरी बात की तफ़सील करने वाला है और ईमान वालों के लिए ज़रीया हिदायत है और रहमत है."
सूरह यूसुफ़ 13  पारा 13 आयत (१०९)

तुम किसी दलील पर क़ायम नहीं हो, तुम तो दलील की शरह भी नहीं कर सकते, अलबत्ता अपने गढ़े हुए अल्लाह के दल्लाली पर क़ायम हो. 
तुम और तुम्हारे साथी यह आलिमान दीन मुशरिकीन में से नहीं, 
बल्कि मुज्रिमीन में से हो. 
आ गया है वक़्त कि तुम जवाब तलब किए जा रहे हो. 
तुम्हारे अल्लाह ने तुमसे पहले मूसा जैसे ज़ालिम जाबिर और दाऊद जैसे डाकू लुटेरे रसूल ही भेजे हैं, 
जिसे तुम अच्छी तरह समझते हो कि उनकी पैरवी ही तुम्हें कामयाब करेगी. 
मुहम्मद के पास एक यहूदी पेशावर शागिर्द रहा करता था जो तमाम तौरेती क़िस्से और वाक़िए इनको बतलाता था और यह उसे अपनी गंवारू ग्रामर की फूहड़ शाइरी में गढ़ कर बयान करते और उसे वह्यी कहते. 
कहते हैं अल्लाह की इस कहानी को दूसरी आसमानी किताबें भी तसदीक़ करती हैं. 
कैसा बेवकूफ़ बनाया है नादानों को और जो आज तक नादान बने हुए हैं. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 28 April 2018

Hindu Dharm 173



खाप की महिमा  
अनोखा कलचर 

हरियाणा भारत का ख़ासम ख़ास सूबा है. 
पूरे भारत में हरियाणा के देव गण फैले हुए है. 
हरियाणा भारत की नाक है, महा भारत जो हरियाणा का इतिहास है. 
आजकल हरियाणा की नाक कुछ ज़्यादः कि नुकीली हो गई है, 
त्रिशूल जैसी. 
खाब इनकी शान है जिसके अंतर गत बस्ती की लड़की बस्ती की बहन हुई, 
गोत्र इनका सब से मज़बूत खूंटा है. 
गोत्र के मुताबिक़ आठ पीढ़िया तक हरियाणवी आपस में भाई बहन  होते है, 
कौन याद रख सकता है आठ पीढ़ी ? 
गोया अब तो पाषाण युग तक इस रिश्ते का फैलाव हो गया है.
दूसरी तरफ़ इनका अनबुझा कलचर है कि 
दूसरे जन समूह के लिए इनकी कोई मान्यता है ? 
अपने निरंकुश नियम के चलते बेटियों की पैदावार हरियाणा में 8:10 के अंतर तक चला गया है. 
लड़कों के लिए बीवियों का अकाल पड़ गया है. 
लड़कियां बिहार बंगाल और छत्तीस गढ़ जैसे ग़रीब इलाक़े से ख़रीद कर लाते है, 
उन्हें बंधक बनाते हैं और घर के सारे मर्द उससे 'फ़ारिग़' होते हैं. 
चाचा फ़ारिग़ होकर चला जाता है, 
बेटा फ़ारिग़ हो रहा होता है 
और बाप फ़ारिग़ होने का इंतज़ार कर रहा होता है.
इनमें यह भी होता है कि दो भाई एक स्त्री के साथ विवाह कर लेते हैं 
और उससे दोनों फ़ारिग़ होते हैं. 
कहते हैं कि इससे जायदाद बटवारे से बच जाती है. 
जो भी हो इन चौधरियों का मेंटल लेवल नापा जा सकता है. 
अतीत में भी यह अजीब व ग़रीब लोग थे, 
द्रोपदियों से यह माला माल थे. 
सवाल आज संयुक्त भारत में यह उठता है कि 
यह महानुभाव अपने गोत्र का इतना सम्मान करते हैं, 
तो दूसरों का अपमान इन्हें कैसे गवारा ? 
बिहार बंगाल और छत्तीस गढ़ जैसे भू खंड के लिए इनका स्तर कहाँ जाकर क़ायम होता है ?? 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 27 April 2018

Soorah yusuf 12 Q 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह यूसुफ़ -१२ 

(क़िस्त -1)

बनी इस्राईल का हीरो यूसेफ़, मशहूरे-ज़माना जोज़फ़ और अरब दुन्या का जाना माना किरदार यूसुफ़ इस सूरह का उन्वान है जिसे अल्लाह उम्दः क़िस्सा कहता है. 
क़ुरआन में यूसुफ़ का क़िस्सा बयाने-तूलानी है जिसका मुख़फ़फ़फ़ (सारांश) पेश है - - - 
''अलरा ? 
"यह किताब है एक दीन वाज़ेह की. हमने इसको उतारा है क़ुरआन अरबी में ताकि तुम इसे समझो. हमने जो यह क़ुरआन आपके पास भेजा है इसके ज़रीए हम आप से एक बड़ा उम्दा क़िस्सा बयान करते है और इसके क़ब्ल आप महज़ बे ख़बर थे.''
क़ुरआन जिसे आप चूमा चाटा करते हैं और सर पे रख कर उसकी अज़मत बघारते हैं उसमें क़िस्सा और कहानियाँ भी हैं जो कि मुस्तनद तौर पर झूट हुवा करती हैं, वह भी नानियों और दादियों की तरह अल्लाह जल्ले जलालहू अपने नाती मुहम्मद को जिब्रील के माध्यम से सुनाता है और फिर वह बन्दों को रिले करते हैं.
मुसलमानों! 
कितनी बकवास है क़ुरआन की हक़ीक़त. 
अल्लाह ख़ुद की पीठ ठोंकते हुए कहता है - - -
''हम आप से एक बड़ा उम्दा क़िस्सा बयान करते है''
इसके क़ब्ल आप देख चुके हैं कि उसको क़िस्सा गोई का कितना फूहड़ सलीक़ा है. 
मज़े की बात यह है कि अल्लाह यह एलान करता है कि 
''और इसके क़ब्ल आप महज़ बे ख़बर थे.'' 

मिस्र के बादशाह फ़िरआना को मूसा चकमा देकर अपनी यहूदी क़ौम को मिस्रियों के चंगुल से निकाल ले जाना, 
नड सागर जिससे क़ुरआन नील नदी कहता है, में मिसरी लश्कर का डूब कर तबाह हो जाना, 
मूसा से लेकर मुहम्मद तक ६०० साल का सब से बड़ा वाक़ेआ था जिसे कि अरब दुनिया का बच्चा बच्चा जानता है, 
गाऊदी मोहम्मदी अल्लाह कहता है 
''और इसके क़ब्ल आप महज़ बे ख़बर थे."

''यह ठीक इसी तरह है कि जैसे कोई पंडा हिन्दुओं से कहे कि मैं तुम को एक अनोखी कथा सुनाता हूँ 
और वाचना शुरू कर दे रामायण. 

लीजिए सदियों चर्चित रहे अंध विश्वास के इस दिल चस्प क़िस्से से आप भी लुत्फ़ अन्दोज़ होइए. 
गोकि मुहम्मद ने बीच बीच में इस क़िस्से में भी अपने प्रचार का बाजा बजाया है मगर मैं उससे आप को बचाता हुवा और उनके फूहड़ अंदाज़ ए बयान को सुधरता हुवा क़िस्सा बयान करता हूँ. 

''याकूब अपनी सभी बारह औलादों में अपने छोटे बेटे यूसुफ़ को सब से ज़्यादः चाहता है. 
यह बात यूसुफ़ के बाक़ी सभी भाइयों को खटकती है, इस लिए वह सब यूसुफ़ को ख़त्म कर देने के फ़िराक़ में रहते हैं. इस बात का ख़दशा याक़ूब को भी रहता है. 
एक दिन यूसुफ़ के सारे भाइयों ने साज़िश करके याक़ूब को राज़ी किया कि वह यूसुफ़ को सैर व तफ़रीह के लिए बाहर ले जाएँगे, याक़ूब राज़ी हो गया. वह सभी यूसुफ़ को जंगल में ले जाकर एक अंधे कुँए में डाल देते हैं और यूसुफ़ का ख़ून आलूद कपड़ा लाकर याकूब के सामने रख कर कहते हैं कहते हैं कि यूसुफ़ को भेडिए खा गए. 
याक़ूब यूसुफ़ की मौत को सब्र करके ज़ब्त कर जाता है.

उधर कुँए से यूसुफ़ की चीख़ पुकार सुन कर राहगीर ताजिर  उसे कुँए से निकाल लेते हैं और बच्चे को माल ए तिजारत में शामिल कर के आगे बढ़ लेते हैं. 
ताजिर उसे मिस्र ले जाकर अज़ीज़ नामी फ़िरऑन के जेलर के हाथों फ़रोख़्त कर देते हैं. 
निःसंतान जेलर अज़ीज़ इस ख़ूब सूरत बच्चे को अपना बेटा बनाने का फ़ैसला करता है मगर यूसुफ़ के जवान होते होते अज़ीज़ की बीवी ज़ुलेख़ा इसको चाहने लगती है. 
एक रोज़ ज़ुलेख़ा इसको अकेला पाकर इस की क़ुरबत हासिल करने की कोशिश करती है लेकिन यूसुफ़ बच बचा कर इसके जाल से भाग निकलने की कोशिश करता है, 
तब ज़ुलेख़ा इसका दामन पकड़ लेती है जो कि कुरते से अलग होकर ज़ुलेख़ा के हाथ में आ जाता है. 
इसी वक़्त इसका शौहर अज़ीज़ घर में दाख़िल होता है, ज़ुलेख़ा अपनी चाल को उलट कर यूसुफ़ पर इलज़ाम लगा देती है कि यूसुफ़ उसकी आबरू रेज़ी पर आमादः होगया था. वह अज़ीज़ से यूसुफ़ को जेल में डाल देने की सिफ़ारिश भी करती है.
बात बढ़ती है तो मोहल्ले के कुछ बड़े बूढ़े बैठ कर मुआमले का फ़ैसला करते हैं और साबित करते हैं कि यूसुफ़ बच कर भागना चाहता था, इसी लिए कुरते का पिछला दामन ज़ुलेख़ा के हाथ लगा. 
मुखिया ज़ुलेख़ा को कुसूर वार ठहराते हैं और बाद में ज़ुलेख़ा भी अपनी ग़लती को तस्लीम कर लेती है. 
इससे मोहल्ले की औरतों में उसकी बदनामी होती है कि वह अपने ग़ुलाम पर रीझ गई. 
जब ये बात ज़ुलेख़ा के कानों तक पहुंची तो उसने ऐसा किया कि मोहल्ले की जवान औरतों की दावत की और सबों को एक एक चाक़ू और एक एक नीबू थमा दिया फ़िर यूसुफ़ को आवाज़ लगाई. यूसुफ़ दालान में दाखिल हुवा तो हुस्ने- यूसुफ़ देख कर औरतों ने चाकुओं से नीबू काटने के बजाएअपने अपने हाथों की उँगलियाँ काट लीं.
अपने तईं औरतों की दीवानगी देख कर यूसुफ़ को अंदेशा होता है कि वह कहीं किसी गुनाह का शिकार न हो जाए, अज़ ख़ुद जेल ख़ाने में रहना बेहतर समझता है. 
जेल में उसके साथ दो ग़ुलाम क़ैदी और भी होते हैं जिनको वह ख़्वाबों की ताबीर बतलाता रहता है जो कि सच साबित होती हैं. कुछ ही दिनों बाद वह क़ैदी रिहा हो जाते हैं.

एक रात बादशाह ए मिस्र एक अजीब ओ ग़रीब ख़्वाब देखता है कि दर्याए नील से निकली हुई सात तंदुरुस्त गायों को सात लाग़र गाएँ खा गईं और सात हरी बालियों के साथ सात सूखी बालियाँ मौजूद हैं. 
सुब्ह को बादशाह ने ख़्वाब की चर्चा अपने दरबारियों में की मगर ख़्वाब की ताबीर बतलाने वाला कोई आगे न आ सका. ये बात उस ग़ुलाम क़ैदी तक पहुँची जो कभी यूसुफ़ के साथ जेल में था. बादशाह ने दरबार में ख़बर दी कि जेल में पड़ा इब्रानी क़ैदी ख़्वाबों की सही सही ताबीर बतलाता है, उस से बादशाह के ख़्वाब की ताबीर पूछी जाए, बेतर होगा.
यूसुफ़ को जेल से निकाल कर दरबार में तलब किया जाता है. ख़्वाब को सुन कर ख़्वाब की ताबीर वह इस तरह बतलाता है कि आने वाले सात साल फ़सलों के लिए ख़ुश गवार साल होंगे और उसके बाद सात साल ख़ुश्क साली के होंगे. सात सालों तक बालियों में से अगर ज़रुरत से ज़्यादः दाना न निकला जाए तो अगले सात साल भुखमरी से अवाम को बचाया जा सकता है.
फ़िरआना (फ़िरौन) इसकी बतलाई हुई ताबीर से ख़ुश होता है और यूसुफ़ को जेल से दरबार में बुला कर इसका ज़ुलैख़ा से मुतालिक़ मुक़दमा नए सिरे से सुनता है, पिछला दामन ज़ुलैख़ा के हाथ में रह जाने की बुनियाद पर यूसुफ़ बा इज़्ज़त बरी हो जाता है. यूसुफ़ को इस मुक़दमे से और ख़्वाब की ताबीर से इतनी इज़्ज़त मिलती है कि वह बादशाह के दरबार में वज़ीर हो जाता है.
बादशाह के ख़्वाब के मुताबिक सात साल तक मिस्र में बेहतर फ़सल होती है जिसको यूसुफ़ स्टोर करता रहता है, इसके बाद सात सालों की क़हत साली आती है तो यूसुफ़ अनाज के तक़सीम का काम अपने हाथों में ले लेता है. 
क़हत की मार यूसुफ़ के मुल्क कन्नान तक पहुँचती है और अनाज के लिए एक दिन यूसुफ़ का सौतेला भाई भी उसके दरबार में आता है जिसको यूसुफ़ तो पहचान लेता है मगर वज़ीर ए खज़ाना को पहचान पाना उसके भाई के लिए ख़्वाब ओ ख़याल की बात थी. 
यूसुफ़ भाई की ख़ास ख़ातिर करता है और उसके घर की जुगराफ़िया उसके मुँह से उगलुवा लेता है. 
वक़्त रुख़सत यूसुफ़ अपने भाई को दोबारा आने और गल्ला ले जाने की दावत देता है और ताक़ीद करता है कि वह अपने छोटे भाई को ज़रूर ले आए.
(दर अस्ल छोटा भाई यूसुफ़ का चहीता था, इसका नाम था बेन्यामीन). 
यूसुफ़ ने वह रक़म भी अनाज की बोरी में रख दी जो ग़ल्ले की क़ीमत ली गई थी. 
यूसुफ़ का सौतेला भाई जब अनाज लेकर कन्नान बाप याक़ूब के पास पहुँचा तो वज़ीर ख़ज़ाना ए मिस्र की मेहर बानियों का क़िस्सा सुनाया और कहा कि चलो खाने का इंतेज़ाम हो गया और साथ में यह भी बतलाया कि अगली बार छोटे बेन्यामीन को साथ ले जाएगा, 
बेन्यामीन का नाम सुन कर याक़ूब चौंका, 
कहा कहीं यूसुफ़ की तरह ही तुम इसका भी हश्र तो नहीं करना चाहते? 
मगर बाद में वह राज़ी हो गया. 
कुछ दिनों के बाद याक़ूब के कुछ बेटे बेन्यामीन को साथ लेकर मिस्र अनाज लेने के लिए पहुँचते हैं. 
यूसुफ़ अपने भाई बेन्यामीन को अन्दरूने-महल ले जाता है और इसे लिपटा कर खूब रोता है और अपनी पहचान को ज़ाहिर कर देता है. 
वह आप बीती भाई को सुनाता है और मंसूबा बनाता है कि तुम पर चोरी का इलज़ाम लगा कर वापस नहीं जाने देंगे, गरज़ ऐसा ही किया. 
बग़ैर बेन्यामीन के यूसुफ़ के सौतेले भाई याक़ूब के पास पहुँचे तो उस पर फ़िर एक बार क़यामत टूटी. 
उसने सोचा कि यूसुफ़ की तरह ही बेन्यामीन को भी इन लोगों ने मार डाला.

कुछ दिनों बाद यूसुफ़ सब को मुआफ़ कर देता है और बादशाह के हुक्म से सब भाइयों, माओं और बाप को मिस्र बुला भेजता है. 
याक़ूब के बेटे याक़ूब को, यूसुफ़ की माँ को लेकर यूसुफ़ के पास पहुँचते हैं, 
यूसुफ़ अपने माँ बाप को तख़्त शाही पर बिठाता है, 
उसके सभी ग्यारह भाई उसके सामने सजदे में गिर जाते हैं, 
तब यूसुफ़ अपने बाप को बचपन में देखे हुए अपने ख्व़ाब को याद दिलाता है कि 
मैं ने चाँद और सूरज के साथ ग्यारह सितारे देखे थे 
जो कि उसे सजदा कर रहे थे, उसकी ताबीर आप के सामने है.'' 
( क़ुरआनी तहरीर का इस्लाही तर्जुमा.) 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 26 April 2018

Hindu Dharm 172



दीवालिए लोग 

धार्मिकता हर आईने में अपना रूप तलाशती है. 
जब आइना नकार देता है तो वह बे शर्म हो जाती है 
जिससे धर्म कांटा भी शर्मिंदा हो जाता है. 
दीपावली के पटाखे मानव और मानवता के लिए दिल्ली और दूसरे बड़े शहरों में ज़हर परोस रहे हैं, इससे उनका (धार्मिकता) कोई वास्ता नहीं, 
उनको पहले जवाब दिया जाए कि क़ुरबानी में जानवर बद्ध क्यों ? 
यह बात तो क़ुरबानी के समय उठती रहती है, 
इसको शहरों की हवा में ज़हर घोलने के जवाब में पेश करना ही अनुचित है.
अब आइए बक़रीद की क़ुरबानी पर . 
क़ुरबानी किस अंध विशवास का नतीजा है, 
मैं इस पर हर बक़रीद के मौक़े पर अपने ख़याल का इज़हार करता हूँ. 
क़ुरबानी का मूल धेय था कि अरब में क़ब्ल इस्लाम अरबी मुमालिक के समूह का वार्षिक सम्मलेन हुवा करता था, जिसका दस्तूर था कि हैसियत वाले यहाँ आकर जानवरों की कुर्बानियां किया करें ताकि सम्मलेन के लिए खाने का इंतज़ाम हो सके. बेहतरीन समझौता था. 
अरब में नए धर्म का इस्लाम का उदय हुवा . 
इस्लाम आया सब  कुछ उलट पुलट गया.  
सम्मलेन ने इस्लामियत का रूप धारण किया और हज बन गया. 
क़ुरबानी फ़र्ज़ का चोला पहन लेली है.

क़ुरबानी में इस्लामी तरीका यह है कि गोश्त का तीन हिस्सा किया जाए,
एक हिस्सा गरीबों में तकसीम कर दिया जाए,
दूसरा हिस्सा गरीब रिश्ते दारों में बाँट दिया जाए जो खैरात खाना गवारा नहीं करते.
तीसरा हिस्सा घर वालों का है जो अहबाब और परिवार के काम आए.
फ़ी ज़माना बेतरीन तरीका था जब इंसान गोश्त की एक बोटी को तरसता था.
क़ुरबानी के दिन हर रोज़ के मुकाबले में दो-तीन गुणा जानवर कट जाते है, 
बस यही बात उचित या अनुचित कही जा सकती है. 
उचित इस लिए है कि क़ुरबानी के माध्यम से पूरा समाज जी भरके गोश्त खा लेता है, जैसे दीवाली या होली में हिन्दू जी भर के मिठाई खा लेता है. 
शाकाहारी महानुभावों से क्षमा ! 
जिन को गोश्त की कल्पना से उलटी होने लगती है, 
हाँलाकि मुंह में वह भी ज़बान रखते हैं जो कि मांस का जीता जागता लोथड़ा है, 
साथ में 32 हड्डियों की मोतियाँ भी होती है जिनको दांत कहा जाता है.
किसी के आहार पर प्रहार करना, दनावताचार है. 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 25 April 2018

सूरह हूद-११ (क़िस्त -4)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह हूद-११

(क़िस्त -4)

मैं हलफ़ लेकर कह सकता हूँ कि क़ुरआन की आयतें ही भोले भाले मुसलमानों को जिहादी बनाती हैं. 
और मुस्लिम ओलिमा क़ुरआन उठा कर अदालत में बयान दे सकते हैं कि क़ुरआन सिर्फ़ अम्न का पैग़ाम देता है.

मैं इस बात को फिर दोहराता हूँ कि तौरेत (OLD TESTAMENT) दुन्या का प्राचीनतम इतिहास की मुसतनद किताब है, 
अगर इसमें से विश्व की रचना और आदम की काल्पनिक कहानी को निकाल दिया जाय तो इसकी लेखनी गवाह है कि गुणगान के साथ साथ हस्ती के अवगुण भी इस में साफ़ साफ़ गिनाए गए हैं. 
बाबा अब्राहाम के बाद तो इस पर शक करना गुनाह जैसा लगता है. 
इसके बर अक्स मुहम्मदी अल्लाह के क़ुरआन के किसी बात पर यक़ीन करना गुनाह ही नहीं बल्कि बेवकूफ़ी है और हराम जैसा लगता है. 
तौरेत के मुताबिक़ इब्राहीम के बाप तेराह (आज़र) ने अपने बेटे, बहू और भतीजे लूत को परदेस जाने का मशविरा दिया कि बद हाली से नजात मिले. वह मुसीबतें उठाते हुए मिस्र के बादशाह के पनाह में कुछ दिन रहे फिर भेड़ पालन का पेशा अख़्तियार किया जो इतना फला फूला कि वह मालदार हो गए, मॉल आया तो दोनों में बटवारे की नौबत आ गई. 
बटवारा मज़ेदार हुआ काले रंग और सफ़ेद रंग की भेड़ें अलग अलग करके एक एक रंग की भेड़ें दोनों ने ले लीं. 
यह भी तै हुवा कि दोनों विपरीत दिशा में इतनी दूर तक चले जाएँ कि एक दूसरे का सामना कभी न हो. 
बाक़ी क़ुरआनी ऊट पटाँग के बाद - - - 

''और उनको ख़ुश ख़बरी मिली और हम से लूत के क़ौम के बारे में जद्दाल करना शुरू किया 
(यहाँ पर आलिम ने जुमले में इल्मे नाक़िस की तफ़सीर गढ़ी है). 
ऐ इब्राहीम इस बात को जाने दो, तुम्हारे रब का हुक्म आ पहुंचा है और उन पर ज़रूर ऐसा अज़ाब आने वाला है जो किसी तरह हटने वाला नहीं. जब हमारे भेजे हुए लूत के पास आए तो वह उनकी वजेह से मगमूम हुए और इनके आने के सबब तन्ग दिल हुए और कहने लगे आजका दिन बहुत भारी है और उनकी क़ौम उनकी तरफ़ दौड़ी हुई आई. और वह पहले से ही नामाक़ूल हरकतें किया ही करते थे. वह फ़रमाने लगे ऐ मेरी क़ौम यह मेरी बेटियाँ जो मौजूद हैं वह तुम्हारे लिए ख़ासी हैं सो अल्लाह से डरो और मेरे मेहमानों में मेरी फ़जीहत मत करो. क्या तुम में कोई भी भला मानुस नहीं?''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (७४-७८)

मुहम्मद ने कहानी अधूरी और फूहड़ ढंग से गढ़ी है जिसे अल्लाह के इस्लाहियों ने इसकी इस्लाह करके कहानी को मुकम्मल किया है।

तौरेती कहानी यूँ है कि फ़रिश्ते लूत के घर मेहमान बन कर आए तो बस्ती वालों ने उनके साथ दुराचार करने की फ़रमाइश करदी. 
लूत ने कहा मेहमानों की लाज रखो भले ही मेरी बेटियों को भोग लो.
कहाँ लूत एक गडरिया बन कर खासी भेड़ों का मालिक बन गया था और मुहम्मद उसको बड़ी उम्मत का पयम्बर बतला रहे हैं.
 हाँ! लूत इस बस्ती में पनाह गुज़ीन था, अपनी बीवी और दो बेटियों के साथ. 

''वह लोग कहने लगे कि आप को तो मालूम है कि हमें आप की बेटियों की ज़रुरत नहीं है और आप को मालूम है जो हमारा मतलब है. वह फ़रमाने लगे क्या ख़ूब होता अगर मेरा तुम पर कुछ ज़ोर चलता या मैं किसी मज़बूत पाए की पनाह पकड़ता. वह कहने लगे ऐ लूत हम रब के भेजे हुए हैं, आप तक हरगिज़ इनकी रसाई न होगी. सो आप रात के किसी हिस्से में अपने घर वालों को लेकर चलिए और तुम में से कोई फिर के भी न देखे मगर आप की बीवी इस पर भी वही आने वाली है जो और लोगों पर आएगी. क्या सुब्ह क़रीब नहीं?''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत  (७९-८१)

तर्जुमानों ने मुहम्मदी अल्लाह की मदद करते हुए साफ़ किया कि बस्ती के इग़लाम बाज़ लोग फ़रिश्तों के साथ दुराचार नहीं कर पाए और वह सुब्ह होते होते बच कर लूत और उसकी बेटियों को लेकर बस्ती से निकल चुके थे. उनके निकलते ही बस्ती उलट गई थी.
तौरेती इतिहास कहता है सोदेम नाम की बस्ती में लूत बस गया था जहाँ के लोग बड़े पापी और दुराचार थे वक़ेआ क़ुरआन से मिलता जुलता है कि बस्ती पर तेजाबी बारिश हुई, 
लूत की बीवी ने पलट कर बस्ती को देखा तो नमक का ख़म्बा बन गई.
लूत अपनी दोनों बेटियों को लेकर पहाड़ियों पर रहने लगा.
तौरेत सच्चाई का दामन थामे हुए कहती है कि पहाड़ियों पर दूर दूर तक आदम न आदम ज़ाद, 
बस यही तीन बन्दे अकेले रहते थे.
लूत की दोनों बेटियां फ़िक्र मंद होने लगीं कि दस्तूर ए ज़माना के हिसाब से कौन यहाँ आयगा जो हम से शादी करेगा ? दोनों ने आपस में तय किया कि बूढ़े बाप लूत को शराब पिला कर, इसे नशे के आलम में लें कि इस को कुछ होश न रहे, फिर बारी बारी हम दोनों रात को इस के पास सोएँ ताकि औलाद हासिल कर सकें और दोनों ने ऐसा ही किया. इस तरह दोनों को एक एक बेटे हुए. 
बड़ी बेटी के बेटे का नाम मुआब पड़ा, और छोटी बेटी के बेटे का नाम बैनअम्मी. 
यही दोनों आगे चलकर मुआबियों और अम्मोनियों के मूरिसे आला बने.
मुहम्मदी क़ुरआन होता तो इस मुआमले को कितना उलट फेर करता जब कि ख़ुद मुहम्मद अपनी बहू ज़ैनब के साथ खुली बदकारी में रंगे हाथों पकडे गए और क़ुरआनी आयतें मौक़ूफ़ करके उसे अपनी बिन ब्याही बीवी बना कर रक्खा. 
तौरेत की सिफ़त यही है कि वह सच बोलती है। अक़ीदे की बातें अलग हैं.

''अल्लाह का दिया हुवा जो कुछ बच जावे वह तुम्हारे लिए बदरजहा बेहतर है, अगर तुम को यक़ीन आवे. और मैं तुम्हारा पहरा देने वाला तो हूँ नहीं.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत  (८६)

'' इन में इस शख़्श के लिए के लिए बड़ी इबरत है जो आख़रत के अज़ाब से डरता हो, वह ऐसा दिन होगा कि इस में तमाम आदमी जमा किए जाएँगे और वह हाज़री का दिन है'' 
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत  (१०३)

''और हम इसको थोड़ी मुद्दत के लिए मुल्तवी किए हुए हैं ''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत  (१०४)

''जिस वक़्त वह दिन आएगा कोई शख्स बगैर उसके इजाज़त के बात भी न कर सकेगा, फिर इन में बअज़े तो शक्की होंगे बअज़े सईद होंगे.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (१०५) 

जो लोग शक्की होंगे वह दोज़ख़ में होंगे कि इस में इन की चीख़ पुकार पड़ी रहेगी.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (१०६)

''और रह गए वह लोग जो सईद हैं सो वह जन्नत में होगे और हमेशा हमेशा उस में रहेंगे, जब तक आसमान और ज़मीन क़ायम है - - - 
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत ('१०८)

इसी क़िस्म की बातें कुरआन में दोहराई तिहराई नहीं बल्कि सौहाई गई हैं. 
तालीम की कमी के बाईस बेचारा आम मुसलमान दुन्या में आकर अपनी जिंदगी गँवा कर, लुटवा कर और मुल्लों से ठगवा कर चला जाता है. 
क्या रक्खा है अल्लाह की इन खोखली आयातों में जो चौदह सौ सालों से एक बड़ी आबादी को गुमराह किए हुए हैं? 

''और अगर आप के रब को मंज़ूर होता तो सब आदमियों को एक ही तरीक़ा का बना देते और वह हमेशा इख़्तिलाफ़ करते रहेंगे.मगर जिस पर आप के रब की रहमत हो.और इसने लोगों को इसी वास्ते पैदा किया है और आप के रब की बात पूरी होगी कि मैं जहन्नम को जिन्नात और इन्सान दोनों से भर दूंगा."
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (११६-११९)

यहाँ पर मुहम्मद की अंजान जेहालत ने खुद अपने ख़िलाफ़ मज़मून साफ़ कर दिया है कि उनका अल्लाह कोई ''हिररहमान निररहीम'' नहीं बल्कि एक पिशाच, खूंखार आदम ख़ोर दोज़ख का महा जीव है, 
जिस ने इंसान ही नहीं बल्कि जिन्नात को भी अपना निवाला बनाने की क़सम खा रखी है. 
उसने इंसान को पैदा ही इसी लिए किया है कि उनको अपनी ख़ुराक़ बनाएगा, जैसे हम मछली पालन और पोल्ट्री फार्म वास्ते ख़ुराक़ मुहय्या करते हैं. 
तर्जुमान और मुफ़स्सिरान ए कुरआन ने एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया है, नफ़ी को मुसबत पहलू करने में.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 23 April 2018

सूरह हूद-११ (क़िस्त -3)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह हूद-११ 
(क़िस्त -3)

मोमिन बनाम मुस्लिम 

मुसलामानों ख़ुद को बदलो. 
बिना ख़ुद को बदले तुम्हारी दुन्या नहीं बदल सकती. 
तुमको मुस्लिम से मोमिन बनना है. 
तुम अच्छे मुस्लिम तो ज़रूर हो सकते हो मगर मोमिन क़तई नहीं, 
इस बारीकी को समझने के बाद तुम्हारी कायनात बदल सकती है. 
मुस्लिम इस्लाम क़ुबूल करने के बाद 
''लाइलाहाइल्लिल्लाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' 
यानी अल्लाह वाहिद के सिवा कोई अल्लाह नहीं और मुहम्मद उसके पयम्बर हैं. 
मोमिन फ़ितरी यानी कुदरती रद्दे-अमल पर ईमान रखता है. 
ग़ैर फ़ितरी बातों पर वह यक़ीन नहीं रखता, 
मसलन इसका क्या सुबूत हैकि मुहम्मद को अल्लाह ने अपना पयम्बर बना कर भेजा. इस वाक़िए को न किसी ने देखा न अल्लाह को पयम्बर बनाते हुए सुना. 
जो ऐसी बातों पर यक़ीन या अक़ीदत रखते हैं वह मुस्लिम हो सकते हैं मगर मोमिन कभी भी नहीं. 
मुस्लमान ख़ुद को साहिबे ईमान कह कर आम लोगों को धोका देता है कि लोग उसे लेन देन के बारे में ईमान दार समझें, उसका ईमान तो कुछ और ही होता है, वह होता है ''लाइलाहाइल्लिल्लाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' इसी लिए वह हर बात पर इंशा अल्लाह कहता है. यह इंशा अल्लाह उसकी वादा खिलाफ़ी, बे ईमानी, धोखा धडी और हक़ तल्फ़ी में बहुत मदद गार साबित होता है. 
इस्लाम जो ज़ुल्म, ज़्यादती, जंग, जूनून, जेहाद, बे ईमानी, बद फेअली, बद अक़ली और बेजा जिसारती के साथ सर सब्ज़ हुवा था, उसी का फल चखते हुए अपनी रुसवाई को देख रहा है. 
ऐसा भी वक़्त आ सकता है कि इस्लाम इस ज़मीन पर शजर-ए-ममनूआ बन जाय और आप के बच्चों को साबित करना पड़े कि वह मुसलमान नहीं हैं. इससे पहले तरके-इस्लाम करके साहिबे-ईमान बन जाओ. 
वह ईमान जो २+२=४ की तरह हो, 
जो फूल में खुशबू की तरह हो, 
जो इंसानी दर्द को छू सके, 
जो इस धरती को आने वाली नस्लों के लिए जन्नत बना सके. 
उस इस्लाम को ख़ैरबाद करो जो 
''लाइलाहाइल्लिल्लाह मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' 
जैसे वह्म में तुमको जकड़े हुए है. 
***

दुन्या को गुमराह किए हुए सब से बड़ी किताब की तरफ़ चलते हैं 
और देखते हैं कि यह किस तरह दुन्या की २०% आबादी को पामाल और ख़्वार किए हुए है और इस के ख़ुद ग़रज़ आलिमाने-दीन इसकी पर्दा पोशी कब तक करते रहेंगे - - - 

''और हमारा क़ौल तो ये है कि हमारे माबूदों में से किसी ने आपको किसी ख़राबी में मुब्तिला कर दिया है, फ़रमाया मैं अलल एलान अल्लाह को गवाह करता हूँ और तुम को भी गवाह करता हूँ कि मैं इन चीज़ों से बेज़ार हूँ जिनको तुम अल्लाह का शरीक क़रार देते हो.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (५४)

उनका क़ौल आज भी हक़ बजानिब है कि बुत अगर कुछ फ़ायदा नहीं पहुचाते तो कोई ज़रर भी नहीं, मगर अल्लाह तो बहुत ही ख़तरनाक साबित हुवा. ग़ौर करें ईमान दारी से.
मुहम्मद हूद का किरदार बन कर बुत परस्तों के दरमियान इस्लाम का प्रचार कर रहे हैं. लोग पूछते हैं कि कोई ठोस दलील तो आपने पेश नहीं किया, यूँ ही आपके कहने पर अपने पूज्य को हम तर्क करने से रहे, 
अच्छा यही बतलाओ कि तुमको कोई इनसे नुकसान पहुँचा? 
किसी ने आप को ख़राबी में मुब्तिला कर दिया है? 
ज़रा ग़ौर कीजिए इन माक़ूल सवालों का ग़ैर माक़ूल जवाब 
''मैं अलल एलान अल्लाह को गवाह करता हूँ और तुम को भी गवाह करता हूँ कि मैं इन चीज़ों से बेज़ार हूँ जिनको तुम अल्लाह का शरीक क़रार देते हो.''
ज्वाला मुखी के मुँह से आग की दरिया और ग्लेशियर से बर्फ के तोदे बहाने वाली क़ुदरत इस क़िस्म की नामर्दों की बातें लेकर बैठी है. 
मुसलमानों आँखें खोलो. अपनी नस्लों को बचाओ मुहम्मदी फ़रेब से. 

''सो तुम सब मिल कर मेरे साथ दाँव घात कर लो, फिर मुझको ज़रा मोहलत न दो, मैंने अपने अल्लाह पर तवक्कुल कर लिया है जो मेरा भी मालिक है और तुम्हारा भी मालिक है. जितने चलने वाले हैं सब की चोटी इसने पकड़ रखी है. यक़ीनन मेरा रब सिरात-ए-मुस्तक़ीम है.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत  (५५-५६)

ये बे वज़न बातें, ये पागल पन की दलीलें, ये बकवास, ये ख़ुराफ़ाती झक क्या किसी अल्लाह का कलाम हो सकता है? 

''और जब हमारा हुक्म पहुँचा (अज़ाब के लिए) तो हमने हूद को और जो इनके हमराह अहले-ईमान थे उनको अपनी इनायत से बचा लिया और उनको एक सख़्त अज़ाब से बचा लिया.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत  (५८)
अहले इल्म क़ुरआन में जाहिल मुहम्मद के इन तमाम जुमलों पर ग़ौर करें, बजाए इसके कि ब्रेकेट लगा लगा कर इसमें बेशर्मी के साथ मानी-ओ-मतलब पैदा करने के..

''ख़ूब सुन लो आद ने अपने रब के साथ कुफ़्र किया, ख़ूब सुन लो, रहमत से दूरी हुई, आद को जो कि हूद की क़ौम थी.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (६०)

मुहम्मद ने पच्चीस साल की उम्र तक मक्का वालों की बकरियाँ चराई है, हलीमा दाई के सुपुर्द होने के बाद उनके तमाम क़िस्से मामूली हैं हक़ीक़त यही है. इस दौरान इनसे इतना न हुआ कि पढ़ना लिखना ही सीख लेते . बन गए अल्लाह के रसूल और गढ़ने लगे अल्लाह का कलाम. पूरा क़ुरान ऐसे ही कूड़े का अम्बार है. मैं तो आपको झलक भर दिखला रहा हूँ. एक एक नामों से क़िस्से कहानियाँ बार बार दोहराई गई हैं. 

''और हमने समूद को पास उनके भाई सालेह को भेजा, उन्हों ने फ़रमाया, ए मेरी क़ौम तुम अल्लाह की इबादत करो. इसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं. इसने तुमको ज़मीन से पैदा किया और इसने तुम को इस में आबाद किया तो तुम अपने गुनाह इस से मुआफ़ कराओ, फिर इसकी तरफ़ मुतवज्जह रहो. बेशक मेरा रब क़रीब है क़ुबूल करने वाला.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (६१)

गोया अल्लाह के इर्तेकाब जुर्म का हवाला है,
''ज़मीन से पैदा किया और इसने तुम को इस में आबाद किया तो तुम अपने गुनाह इस से मुआफ़ कराओ'' 
और इसके लिए उसी से मुआफ़ी भी. 
कभी अल्लाह उछलते हुए पानी से इन्सान को पैदा करता है, कभी ख़ून के लोथड़े से और अब ज़मीन से.
मुहम्मद ४०साल तक मिटटी पत्थर और मुख़्तलिफ़ धात के बने बुतों के पुजारी रहने के बाद अचानक एक वाहिद माबूद, हवा के बुत की पूजा करने लगे और उसका प्रचार भी करने लगे, 
लोग कहने लगे अच्छे ख़ासे हमीं जैसे थे, यह तुमको हो क्या गया है? 
इन्हीं सवालों और बहसों को सैकड़ों बार जिन जिन नबियों का नाम सुन रखा था उनके साथ गढ़ गढ़ कर क़ुरआन तैयार किया - - - 

''लोग कहने लगे कि ऐ सालेह तुम तो इस से क़ब्ल हम में होनहार थे, क्या तुम हम को इन चीज़ों से मना करते हो जिसकी इबादत तुम्हारे बुज़ुर्ग किया करते थे? और तुम जिस तरफ़ हमको बुला रहे हो हम वाक़ई बड़े शुब्हे में हैं. आपने फ़रमाया ऐ मेरी क़ौम! यह तो बताओ कि अगर मैं अपने रब की जानिब से दलील पर हूँ , उसने अपनी तरफ़ मुझ पर रहमत अता फ़रमाई है तो अगर मैं अल्लाह का कहना न मानूँ तो मुझे कौन बचाएगा. तुम तो सरासर मेरा नुक़सान ही कर रहे हो.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (६३)

ये है पुर दलील और हिकमत का क़ुरान ? 

आवारा ऊटनी की गाथा फिर मुहम्मद दोहराते हैं और पल झपकते ही समूद आकर ग़ायब हो जाते हैं
एक बार इब्राहीम अलैहिस्सलाम मय अपनी बीवी सारा के फिर पकडे जाते हैं- - -
''और हमारे भेजे हुए इब्राहीम के पास बशारत लेकर आए, उन्हों ने सलाम किया, उन्हों ने भी सलाम किया, फिर देर न लगाई कि एक तला हुवा बछड़ा लाए. सो उन्हों ने देखा कि उनके हाथ इस तक नहीं बढ़ते तो उन से मुत्वहहिश हुए और उनसे दिल में खौ़फ़ ज़दा हुए. वह कहने लगे डरो मत हम क़ौम लूत की तरफ़ भेजे गए हैं और इनकी बीवी खड़ी थीं, पस हसीं, सो हमने बशारत देदी इनको इस्हाक़ की और इस्हाक़ से पीछे याक़ूब की. कहने लगीं कि हाय ख़ाक पड़े अब मैं बच्चा जनूं बुढ़िया होकर और यह मेरे मियाँ हैं बिलकुल बूढ़े. वाकई अजीब बात है. कहा क्या तुम अल्लाह के कामों में तअज्जुब करती हो. इस ख़ानदान के लोगो! तुम पर तो अल्लाह की रहमत और इसकी बरकतें हैं.बेशक वह तारीफ़ के लायक़ बड़ी शान वाला है.
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (६८-७३)

मुसलामानों !
देखो कि यह एक चरवाहे का कलाम है जिसको बात करने की भी तमीज़ नहीं, कम अज़ कम आम आदमी की तरह क़िस्सा गोई ही कर पाता, 
बात को वाज़ेह कर पाता. 
मुतरज्जिम को इस उम्मी की काफ़ी मदद करनी पड़ी फिर भी कहानी के बुनियाद को वह क्या करता. 
मुहम्मद के रक्खे गए बेसिर पैर की बुन्याद को कैसे खिस्काता? 
क्या अल्लाह के नाम पर ऐसी जग हँसाई करवाना इस सदी में आप को ज़ेबा देता है
*

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Hindu Dharm 171



वेद दर्शन - - -            
             
  खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

 हिरण्यरूप, हिरण्यमय इन्द्रियों वाले एवं हिरण्यवर्ण अपानपात हिरण्यमय स्थान पर बैठ कर सुशोबित होते हैं. हिरण्यदाता यजमान उन्हें दान देते हैं.  
द्वतीय मंडल सूक्त 35(10)

पंडित जी शब्दा अलंकर को लेकर एक पशु हिरन को सुसज्जित और अलंकृत कर रहे हैं, भाव का आभाव है,
हरे हरे कदम की, हरी हरी छड़ी लिए, हरि हरि पुकारती, हरे हरे लतन में. 
पिछले सूक्त34 (1) में अपने देव को भयानक पशु जैसा रूप गढ़ा था.  
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 21 April 2018

Hindu Dharm 170




गीता और क़ुरआन

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -

>मेरे शुभ भक्तों के विचार मुझ में वास करते हैं. 
उनके जीवन मेरी सेवा में अर्पित रहते हैं 
और वह एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते हैं 
तथा मेरे विषय में बातें करते हुए परम संतोष 
तथा आनंद का अनुभव करते हैं.
** जो प्रेम पूर्वक मेरी सेवा करने में परंपर लगे रहते हैं, 
उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूँ. 
जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -  10  श्लोक - 9 +10 

>गीता के भगवान् कैसी सेवा चाहते हैं ? 
भक्त गण उनकी चम्पी  किया करें ? 
हाथ पाँव दबाते रहा करें ? 
मगर वह मिलेंगे कहाँ ? 
वह भी तो हमारी तरह ही क्षण भंगुर थे. 
मगर हाँ ! वह सदा जीवित रहते है, 
इन धर्म के अड्डों पर. 
इन अड्डों की सेवा रोकड़ा या सोने चाँदी के आभूषण भेंट देकर करें. इनके आश्रम में अपने पुत्र और पुत्रियाँ भी इनके सेवा में दे सकते हैं.  
यह इस दावे के साथ उनका शोषण करते हैं कि 
"कृष्ण भी गोपियों से रास लीला रचाते थे." 
धूर्त बाबा राम रहीम की चर्चित तस्वीरें सामने आ चुकी हैं. 
अफ़सोस कि हिदू समाज कितना संज्ञा शून्य है.

और क़ुरआन कहता है - - - 
>" आप फरमा दीजिए क्या मैं तुम को ऐसी चीज़ बतला दूँ जो बेहतर हों उन चीजों से, ऐसे लोगों के लिए जो डरते हैं, उनके मालिक के पास ऐसे ऐसे बाग हैं जिन के नीचे नहरें बह रही हैं, हमेशा हमेशा के लिए रहेंगे, और ऐसी बीवियां हैं जो साफ सुथरी की हुई हैं और खुश नूदी है अल्लाह की तरफ से बन्दों को."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (15)

देखिए कि इस क़ौम की अक़्ल को दीमक खा गई। 
अल्लाह रब्बे-कायनात बंदे मुहम्मद को आप जनाब कर के बात कर रहा है, इस क़ौम के कानों पर जूँ तक नहीं रेगती. 
अल्लाह की पहेली है बूझें? 
अगर नहीं बूझ पाएँ तो किसी मुल्ला की दिली आरजू पूछें कि वह नमाजें क्यूँ पढता है? 
ये साफ सुथरी की हुई बीवियां कैसी होंगी, ये पता नहीं, 
अल्लाह जाने, जिन्से लतीफ़ होगा भी या नहीं? 
औरतों के लिए कोई जन्नती इनाम नहीं फिर भी यह नक़िसुल अक्ल कुछ ज़्यादह ही सूम सलात वालियाँ होती हैं। 
अल्लाह की बातों में कहीं कोई दम दरूद है? 
कोई निदा, कोई इल्हाम जैसी बात है? 
दीन के क़लम कारों ने अपनी कला कारी से इस रेत के महेल को सजा रक्खा है।

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 20 April 2018

Soorah hood 11 क़ 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह हूद-११ 
(क़िस्त -1)
शर्मीला अल्लाह बड़े अदब के साथ अपने शौहर ए मोहतरम से मुख़ातिब है - - -  ''आप का दिल इस बात से तंग होता है कि वह कहते हैं कि उन पर कोई ख़ज़ाना नाज़िल क्यूं नहीं हुआ या उनके हमराह कोई फ़रिश्ता क्यूं नहीं आया? आप तोसिर्फ़ डराने वाले हैं.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (१२)

मुहम्मद का मक्र मुसलमानों के दिमाग़ के दरीचे खोलने के लिए यह क़ुरआनी आयतें ही काफ़ी हैं. 
क्या जंगों में फ़रिश्तों को सिपाही बना कर भेजने वाला अल्लाह ऐसा नहीं कर सकता था कि दो चार फ़रिशेत मुहम्मद के साथ तबलीग़ में लगा देता, कि लोग ख़ुद बख़ुद नमाज़ों के लिए सजदे में गिरे होते. 
लोगों का मुतालबा भी सही है कि मुहम्मद को कोई ख़ज़ाना अल्लाह ने मुहय्या क्यूं न कर दिया कि जंगी लूट पाट के लिए लोगों को न फुसलाते?

''कहते हैं आपने क़ुरआन को ख़ुद बना लिया है, आप कह दीजिए कि तुम भी इस जैसी दस सूरतें बना कर लाओ और जिन जिन ग़ैर अल्लाह को बुला सको बुला लो, अगर तुम सच्चे हो.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (१३)

वह लोग तो ऐसी बेहूदा सूरतों की अंबार लगा दिया करते थे मगर मुहम्मद बेशर्मी से अड़े रहते कि अल्लाह का मुक़ाबला हो ही नहीं सकता जैसे आज मुल्ला डटे रहते हैं कि बन्दा और अल्लाह का मुक़ाबला करे? 
लहौल्वलाकूवत. 
लग भग सारा क़ुरआन और इसकी तमाम सूरह ब मय जुमला आयतों के चन्द जुमले मिलना मुहाल है जिसमे बलूग़त होने के साथ साथ मानी और मतलब के जायज़ पहलू हों.

''और ऐसे शख़्स से बढ़ कर ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाल तअला पर झूट बांधे - - - ''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (१८)

मुहम्मद का तकिया कलाम है कि उन लोगों को ज़ालिम कहना जो उनकी झूटी बात पर यक़ीन न करे. वह अत्याचारी है जो अल्लाह बने हुए मुहम्मद पर और उनके कलाम पर यक़ीन न करे, इस बात को इतना दोहराया गया है कि आज मुसलामानों का ईमान यही क़ुरआनी ख़ुराफ़ात बन गई हैं. इन्तेहाई गंभीर और क़ौमी फ़िक्र का मुआमला है.

*आजकल मुहम्मद का नया तकिया कलाम, कलामे इलाही के लिए बना हुवा है 
''अल्लाह को आजिज़ करना '' 

गोया अल्लाह कोई बेबस, बेचारी औरत, या बच्चा नहीं, 
या है भी कि जो आजिज़ और बेज़ार भी हो सकता है.
 उम्मी का यह तकिया कलामी सिलसिला कुछ देर तक चलेगा फिर याद आएगा कि ''अल्लाह को कुन फयाकून '' की ताक़त रखने वाला जादूगर है, कहा ''हो जा'' और हो गया. 
दुन्या को कहा ''हो जा!'' दुन्या हो गई. 
इतनी बड़ी हस्ती इन काफिरों की बातें कान लगाए आजिज़ न होने के लिए सुनती हैं? 
मुसलमानों यह अल्लाह के आड़ में मुहम्मद के कान हैं. 
क्या इतना भी तुम्हारी समझ में नहीं आता? 
सोचो कि दरोग़ की तुम उम्मत हो?
मुहम्मद ने वज्दानी कैफ़ियत में अपने मिशन को लेकर जो भी मुँह में आया है, बका है. 
तर्जुमा निगारों ने ब्रेकेट लगा लगा कर भर पूर मुहम्मदी अल्लाह की मदद की है. 
उसके बाद भी मंतिक़ि ने तिकड़म लगा कर हाशिया पर तफ़सीर लिखी हैं. 
यह तमाम टीम जंगजू जेहादियों के लूट माले-ग़नीमत के हिस्से दार हुआ करते थे. 
इस कुरआन, इस के पुर मक्र तर्जुमा, इस बकवास तफ़सीरों और दलीलों को सिरे से ख़ारिज कर देने की ज़रुरत है. इसी में मुसलमानों की नजात है. 

ज़रा देखिए क्या क्या बकवास है मुहम्मद की - - - '

'और लोग कहने लगे ऐ नूह तुम हम से बहस कर चुके, फिर बहस भी बहुत कर चुके, सो जिस चीज़ से तुम हमको धमकाया करते हो (क़यामत) वह हमारे सामने ले आओ, अगर सच्चे हो. उन्हों ने फ़रमाया अल्लाह तअला बशर्त अगर उसे मंज़ूर है, तुम्हारे सामने लावेगा और तुम उसको आजिज़ न कर सकोगे और मेरी ख़ैर ख़्वाही तुम्हारे काम नहीं आ सकती, गो मैं तुम्हारी ख़ैर ख़्वाही करना चाहूं, जब की अल्लाह को ही तुम्हारी गुमराही मंज़ूर हो - - - ''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत  (19-34)

हज़रते-नूह का ज़िक्र एक बार फिर आता है. नूह के बारे में मुहम्मद की जानकारी जो भी हो, जहाँ जहाँ नूह का ज़िक्र करते हैं वहाँ वहाँ वह ग़ायबाना नूह बन जाते हैं. अपने मौजूदा हालात को नूह के हालात बना देते हैं. नूह की उम्मत को अपनी नाम निहाद और नाफ़रमान उम्मत जैसी उम्मत पेश करते हैं. नूह की उम्मत में काफिरों का बुरा अंजाम दिखला कर अपनी उम्मत को धमकाने लगते हैं. 
मुहम्मद झूटी कहानियां गढ़ गढ़ कर इसको अल्लाह की गवाही में सच ठहराते हैं. 
इसे पढ़ कर एक अदना दिमाग रखने वाला भी हँस देगा मगर बेज़मीर इस्लामी आलिमों ने इसमें मानी और मतलब भर भर के इसको मुक़द्दस बना दिया है. बड़ी चाल के साथ कुरआन को तिलावत के लिए वक्फ़ करदिया है. मुसलमानों की बद क़िसस्मती है कि जब तक वह कुरआन को नहीं समझेगा, ख़ुदद को नहीं समझ पाएगा. मुसलामानों के सामने ख़ुद तक पहुँचने के लिए कुरआन का बड़ा झूट हायल है.

नूह की तरह ही मुहम्मद सुने सुनाए नबियों आद, हूद, समूद, सालेह, यूनुस, लूत, और शोएब वग़ैरह की कहानियाँ गढ़ गढ़ कर अपने हालात के फ्रेम में चस्पाँ करते हैं, जिसे सुन कर लोग इनका मज़ाक़ उड़ाने के सिवा करते भी क्या? उस वक़्त भी लोग समझदार थे बल्कि ख़ुद साख़्ता  पैगम्बर ही बेवक़ूफ़ थे. इतने जाहिल भी न थे जितने बने हुए रसूल. 
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत  (३५-५६)

अफ़सोस कि इन लग्वयात और  कहानियों से अटा और इन बे बुन्याद दलीलों से पटा पुलिंदा मुसलामानों के अल्लाह का फ़रमान बन गया है. 
इसे दिन में पाँच बार अक़ीदत के साथ वह अपनी नमाज़ों में दोहराता है. नतीजतन मुसलमानों की ज़िन्दगी हक़ीक़त से कोसों दूर जा चुकी है और झूट के करीब तर.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 19 April 2018

Hindu Dharm 169




कृष्ण दोराहा 

क्या कभी आपने गौर किया है कि 
वेद और गीता में कहीं भी औरतों का कोई दर्जा है ? 
क्या उनको भी मानव समूह का कोई अंश माना गया है ? 
हमारा संविधान तो औरतों को मर्दों के बराबर लाकर खड़ा करता है, 
कहीं कहीं इस से भी ज्यादा, 
कि सार्वजानिक स्थानों पर अगर कोई महिला ख़ड़ी हुई है 
तो बैठे हुए पुरुष को उसका सम्मान करते हुए उठ खड़ा हो जाना चाहिए. 
वेद में शायद कहीं कोई ज़िक्र आ गया हो महिलाओं का किसी वस्तु की तरह, 
वरना हवन अनुष्ठान मर्दों द्वारा, 
यजमान पुरुष केवल , 
इन्द्र देव और अग्नि देव से लेकर दर्जनों देव सिर्फ़ पुल्लिंग. 
सोमरस और हव्य, सब पुरुषों द्वारा पाए और खाए जाते हैं.
गीता पर भी वेदों की गहरी छाप है, मनु के शिष्यों ने ही गीता को रचा, 
शायद भृगु महाराज. 
गीता भी पुरुष प्रधान है. 
कृष्णाभावनामृत तो वासना को पाप मानते है, 
अर्थात पाप कर्म का साधन स्त्री. 
कृष्ण भक्त अजीब दोराहा पर खड़े हैं,
कि मथुरा में इन्हीं भगवन श्री की राधा कृष्ण की लीला सुनाई और दिखाई जाती. 
यह धर्म के धंधे बाज़ हर अवस्था में और हर आयु के लोगों को अपने डोर में बांधे हुए हैं. समाज में कब जागृति आएगी ?
कि उसको बतलाया जाएगा कि तुम्हारी मंजिल कहीं और है. 
इनसे मुक्ति पाओ.
***
माताएं  
भारत माता, गऊ माता, गंगा माता, लक्ष्मी माता, 
सरस्वती माता, तुलसी माता, अग्नि माता 
यहाँ तक कि (चेचक) माता +और बहुत सी माताएं, 
सब  हिन्दुओं  के ह्रदय में बसती हैं, 
सिर्फ अपनी जननी माता के अतरिक्त, 
जो विधिवा होने पर सांड जैसे पंडों के आश्रम में बसती, 
माँ के पैरों तले जन्नत होती है, 
यह दुष कर्मी , कुकर्मी और मलेच्छ मुसलमानों का मानना है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 18 April 2018

सूरह हूद-११ (क़िस्त -1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
****************


सूरह हूद-११ 
(क़िस्त -1)

मुनाफ़िक़-ए-इंसानियत
मुसलमानों में दो तबके तअलीम याफ़्ता कहलाते हैं, 
पहले वह जो मदरसे से फ़ारिग़ुल  तालीम हुवा करते हैं और समाज को दीन की रौशनी (दर अस्ल अंधकार) में डुबोए रहते हैं, 
दूसरे वह जो इल्म जदीद पाकर अपनी दुन्या संवारने में मसरूफ़ हो जाते हैं. 
मैं यहाँ दूसरे तबक़े को ज़ेरे-बहस लाना चाहूँगा. 
इनमें जूनियर क्लास के टीचर से लेकर यूनिवर्सिटीज़ के प्रोफ़सर्स तक और इनसे भी आगे डाक्टर, इंजीनियर और साइंटिस्ट तक होते हैं. 
इब्तेदाई तअलीम में इन्हें हर विषय से वाक़िफ़ कराया जाता है जिस से इनको ज़मीनी हक़ीक़तों की जुग़राफ़ियाई और साइंसी मालूमात होती है. 
ज़ाहिर है इन्हें तालिब इल्मी दौर में बतलाया जाता है कि यह ज़मीन फैलाई हुई चिपटी रोटी की तरह नहीं बल्कि गोल है. 
ये अपनी मदार पर घूमती रहती है, न कि साक़ित है. 
सूरज इसके गिर्द तवाफ़ नहीं करता बल्कि ये सूरज के गिर्द तवाफ़ करती है. 
दिन आकर सूरज को रौशन नहीं करता बल्कि इसके सूरज के सामने आने पर दिन हो जाता है. आसमान कोई बगैर खम्बे वाली छत नहीं बल्कि ला महदूद है और इन्सान की हद्दे नज़र है. 
इनको लैब में ले जाकर इन बातों को साबित कर के समझाया जाता है ताकि इनके दिमाग़ से धर्म और मज़हब के अंध विश्वास ख़त्म हो जाएँ.
इल्म की इन सच्चाइयों को जान लेने के बाद भी यह लोग जब अपने मज़हबी जाहिल समाज का सामना करते हैं 
तो इन के असर में आ जाते हैं. 
चिपटी ज़मीन और बग़ैर ख़म्बे की छतों वाले वाले आसमान की झूटी आयतों को कठ मुल्लों के पीछे नियत बाँध कर क़ुरआनी झूट को ओढने बिछाने लगते हैं. 
सानेहा ये है कि यह हज़रात अपने क्लास रूम में पहुँच कर फिर साइंटिस्ट सच्चाइयां पढ़ाने लगते हैं. 
ऐसे लोगों को मुनाफ़िक़ कहा गया है, यह तबका मुसलमानों का उस तबक़े से जो ओलिमा कहे जाते हैं दस गुना क़ौम के मुजरिम है. 
सिर्फ़ ये लोग अपनी पाई हुई तअलीम का हक़ अदा करें तो सीधी-सादी अवाम बेदार हो सकती है. मुनाफ़िक़ ने हमेशा इंसानियत को नुक़सान पहुँचाया है.
चललिए क़ुरआनी मिथ्य का मज़ा चक्खें - - -

''अलारा''
मोहमिल, अर्थहीन शब्द जिसका मतलब तथा-कथित अल्लाह को ही मालूम है. 
मुसलमान इसका उच्चारण छू-छटाका की नक़्ल में करते है.

''क़ुरआन एक ऐसी किताब है जिसकी आयतें मुह्किम की गई हैं फिर साफ़ साफ़ बयान की गई हैं.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (१)
क़ुरआन की हांड़ी में जो ज़हरीली खिचड़ी पकाई गई है उसकी तारीफ़ों के पुल बाँधे गए हैं जिसका एक नावाला भी बग़ैर मूज़ी ओलिमा के दिए हुए मक्र के मीठे घूँट के हलक़ से नीचे उतारना मुमकिन नहीं।

''एक हकीम बा ख़बर की तरफ़ से है, ये कि अल्लाह तअला के सिवा किसी की इबादत मत करो. मैं तुम को अल्लाह तअला की तरफ़ से डराने वाला और बशारत देने वाला हूँ.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (२)

अल्लाह को वज़ाहत करने की ज़रुरत पड़ रही है कि वह हकीम बा ख़बर है, यह ज़रुरत मुहम्मद ने अपनी बेवक़ूफ़ाना सोच के तहत की है, 
कहना चाहिए था आगाह बाख़बर या हकीम बा हिकमत. 
ख़बर भी कैसी बेहूदा कि ख़ुद अल्लाह कहता है कि अल्लाह तअला के सिवा किसी की इबादत मत करो? फिर ख़ुद कहते है 
''मैं तुम को अल्लाह तअला की तरफ़ से डराने वाला और बशारत देने वाला हूँ.'' 
सितम ये कि इसे भी कलाम इलाही कहते हैं. 

''मुहम्मद माहौल का जायज़ा लेकर एक एक फ़र्द के तौर तरीक़े देख कर अल्लाह से वहियाँ नाज़िल करते हैं. लोगों को गुमराह करते हैं कि दुन्या दारी को तर्क करके मुकम्मल तौर पर दीन की राह को अपना लो. अल्लाह से डरते रहने की राय देते हैं. अपनी नबूवत पर इनका यक़ीन कामिल है मगर लोग यक़ीन नहीं करते.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (३-६)

हम ख़ुद को कुछ भी समझने लगें, क्या हक़ है मुझे कि अपनी ज़ात को सब से मनवाएं? तबलीग़ करके, तहरीक चला के, लड़ झगड़ के, क़त्लो ग़ारत गरी करके, जेहाद करके और तालिबानी बन के ?

''अल्लाह छ दिनों में कायनात की तकमील को फिर दोहराता है, 
इसमें एक नई बात जोड़ता है कि इसके पहले अर्श पानी पर था 
ताकि तुम्हें आज़माए कि तुम में अच्छा अमल करने वाला कौन है?''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (७)

एक साहब एक बड़े इदारे में डाक्टर हैं, 
फ़रमाने लगे कि क़ुरआन को समझना हर एक के बस की बात नहीं. 
बड़े रुतबे वाले हैं, मशहूर फ़िजीशियन हैं, 
बीवी और बच्चियों को सख़्त पर्देदारी में रखते हैं. 
काश मज़कूरह आयत को रख कर मैं उन से क़ुरआन को समझ सकता.
ग़ौर तलब है कि मज़कूरह आयत में मुहम्मदी अल्लाह को तमाज़ते-गुफ़्तुगू भी नहीं है 
कि वह क्या बक रहा है? 
अर्श पानी पर था तो फ़र्श कहाँ था? 
क्या मुहम्मद के सर पे जहाँ लोग आज़माइश का अमल करते थे ? 
बड़ा पुख्ता सुबूत है मुहम्मद के मजनू होने का.

*मुहम्मद अपनी शायरी पर नाज़ करते हुए कहते हैं - - -
'' काफ़िर क़ुरआन को सुनकर कहते हैं यह तो निरा और साफ़ जादू है.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत  (७)

मगर शरअ (धर्म विधान) और शरह (व्याख्या) दोनों के लिए अनपढ़ नबी ने मुश्किल खड़ी कर दी है. मुहम्मद ने अपने कलाम में जादूई असर बतला कर कलाम की तारीफ़ की है 
मगर शरअन जादू का असर झूट का असर होता है, 
इसलिए क़ुरआन झूठा साबित हो रहा है, 
इस लिए अय्यार आलिम यहाँ नौज़ बिल्लाह कहकर अल्लाह के कलाम की इस्लाह करने लगते हैं, 
मुहम्मद के कलाम में न जादूई असर है न सुब्हान अल्लाह, है तो बस नौज़ बिल्लाह है. 

*क़यामत की रट सुनते सुनते थक कर काफ़िर कहते हैं - - -
''इसे कौन चीज़ रोके हुए है ? आए न - - -'' 
मुहम्मद कहते हैं 
''याद रखो जिस दिन वह अज़ाब उन पर आन पड़ेगा, फिर टाले न टलेगा और जिसके साथ वह मज़ाक़ कर रहे हैं वह आ घेरेगा.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (८)

चौदहवीं सदी हिजरी भी गुज़र गई, कि क़यामत की मुहम्मदी पेशीनगोई थी, डेढ़ हज़ार साल गुज़र गए हैं, क़यामत नहीं आई. 
इस्लाम दुन्या में ज़वाल पिज़ीर और क़यामत ज़दः भी हो चुका है, 
दीगर क़ौमें मुसलसल उरूज पर हैं, क़यामत का अता पता नहीं? 
कई मुल्कों पर मुसलमानों पर ज़रूर क़यामत आ कर चली गई मगर अल्लाह का क़यामती वादा अभी भी क़ायम है और हमेशा क़ायम रहने वाला है. 

''अगर हम इन्सान को अपनी मेहरबानी का मज़ा चखा कर छीन लेते हैं तो वह न उम्मीद और ना शुक्रा हो जाता है और जब किसी मेहरबानी का मज़ा चखा देते हैं तो इतराने और शेखी बघारने लग जाता है.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (९-११)
ऐसी बातें कोई खुदाए अज़ीम तर नहीं बल्कि एक कम ज़र्फ़ इंसान ही कर सकता है. 
साथ साथ उसका बद अक़ल होना भी लाज़िम है.
मुसलामानों! 
क्या तुम्हारा अल्लाह ऐसी ही बकवास करता है ?




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 17 April 2018

Hindu Dharm 168




सीता कथा 

भारत में ग़ुलाम वंशज के दूसरे बादशाह अल्तुतमिश  के वक्त में बाल्मीकि कानपुर की वन्धाना तहसील में  बिठूर स्थित गाँव में रहते थे. उन्होंने सीता नाम की तलाक़ शुदा औरत को पनाह दी थी. बिठूर जाकर इस विषय में बहुत सी जानकारियाँ और निशानियाँ आज भी जन जन की ज़ुबान पर है. बाल्मीकि रामायण संस्कृत में, सीता पर लिखी एक रोचक कथा मात्र है. तुलसी दास ने हिंदी में अनुवाद कर के इस में बड़ा हेर फेर किया है. रचना को दिलचस्प कर दिया है. 
इसी राम कहानी को मनुवाद ने भारत का धर्म घोषित कर दिया है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान


लूतिया 

कठुआ जम्मू की मख़लूक़ (जीव) को हाथ में कौमी झंडा लिए , बलात कारियों के समर्थन में नारे लगते और चिल्लाते देख कर तौरात का एक चैप्टर आँखों के सामने आकर  रुक गया. 
वाक़िया यूँ है कि हज़रात इब्राहीम का भतीजा हज़रात लूत, 
अपनी दो बेटियों और बीवी को लेकर अपने एक बचपन के दोस्त के घर मेहमान बन कर ठहरा था कि बस्ती के लोग आ गए. हज़रात लूत और उनके दोस्त ने सुना कि बाहर लोग शोर मचा रहे हैं - - -  
"दरवाज़ा खोलो वरना तोड़ देंगे- - - " 
दोस्त ने दरवाज़ा खोला और पूछा कि क्या बात है ? क्या चाहते हो ?? 
भीड़ में से एक बोला हम चाहते हैं कि अपने मेहमान को बाहर निकालो, 
हम लोग उसके साथ बलात्कार करेंगे. 
(दर अस्ल उस बस्ती के लोग समलैंगिक हुवा करते थे और समलैंगिकता बुरा भी नहीं मानते) 
दोस्त ने कहा भाई वह मेरे मेहमान हैं, उनको तो छोड़ दो. 
भीड़ कुछ सुनने को तैयार न थी , 
तब हज़रात लूत बाहर आए और उनको समझाया कि
यह ग़ैर फ़ितरी अमल है, ऐसा मत करो, 
चाहो तो मेरी बेटियों को ले लो, 
मगर भीड़ इस पर भी तैयार न हुई. 
हज़रात लूत ने उस बस्ती के लोगों को बद दुआ दे दिया, 
ऐसी बरसात हुई कि लोग खड़े खड़े नमक बन कर पिघलने लगे. 
कहते हैं कि उस बस्ती के आसार वीरानी की शक्ल में आज भी देखे जा सकते हैं. 
बस्ती का नाम लूतके नाम पर लूतिया पड़ गया. 
कठुवा के सभ्य नागरिक अपने असभ्य नागरिक को समझाएँ  
कि आगे उनका चरित्र ऐसा ही रहा तो भारत की यह बस्ती एक दिन लूतिया हो जाएगी.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान