Thursday 31 May 2018

Hindu Dharm 189



वेद दर्शन                          

खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

एयमगन....................सहागमम || (अथर्व वेद २-३०-५)

अर्थ: इस औरत को पति की लालसा है और मुझे पत्नी की लालसा है. मैं इसके साथ कामुक घोड़े की तरह मैथुन करने के लिए यहाँ आया हूँ. 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 29 May 2018

Hindu Dharm 188


वेद दर्शन -                           

खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

अथर्ववेद - अश्लीलता के कुछ और नमूने वेदों में किस प्रकार अश्लीलता, जन्गी बातों और जादू-टोने को परोसा गया है. 
धर्म-युद्ध: वेदों को गंदगी देख कर आप भी करने लगेंगे इनसे नफरत 
हिन्दुओं के अन्य धर्मग्रंथों रामायण, महाभारत और गीता की भांति वेद भी लडाइयों के विवरणों से भरे पड़े है. उनमें युद्धों की कहानियां, युद्धों के बारे में दांवपेच,आदेश और प्रर्थनाएं इतनी हैं कि उन तमाम को एक जगह संग्रह करना यदि असंभव नहीं तो कठिन जरुर है. वेदों को ध्यानपूर्वक पढने से यह महसूस होने लगता है की वेद जंगी किताबें है अन्यथा कुछ नहीं। इस सम्बन्ध में कुछ उदाहरण यहाँ वेदों से दिए जाते है ....ज़रा देखिये 

वित्तौ.............................गूहसि (अथर्व वेद २०/१३३) अर्थात: हे लड़की, तुम्हारे स्तन विकसित हो गए है. अब तुम छोटी नहीं हो, जैसे कि तुम अपने आप को समझती हो। इन स्तनों को पुरुष मसलते हैं। तुम्हारी माँ ने अपने स्तन पुरुषों से नहीं मसलवाये थे, अत: वे ढीले पड़ गए है। क्या तू ऐसे बाज नहीं आएगी? तुम चाहो तो बैठ सकती हो, चाहो तो लेट सकती हो. 
(अब आप ही इस अश्लीलता के विषय में अपना मत रखो और ये किन हालातों में संवाद हुए हैं। ये तो बुद्धिमानी ही इसे पूरा कर सकते है ये तो ठीक ऐसा है जैसे की इसका लिखने वाला नपुंसक हो या फिर शारीरिक तौर पर कमजोर होगा तभी उसने अपने को तैयार करने के लिए या फिर अपने को एनर्जेटिक महसूस करने के लिए किया होगा या फिर किसी औरत ने पुरुष की मर्दानगी को ललकारा होगा) तब जाकर इस प्रकार की गुहार लगाईं हो. 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 28 May 2018

soorah nahl Q 4

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें है
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सूरह नह्ल 16
(क़िस्त- 4)


सूरतें क्या ख़ाक में होंगी ?

मुहम्मद ने क़ुरान में क़ुदरत की बख़्शी हुई नेमतों का जिस बेढंगे पन से बयान किया है, उसका मज़ाक़ ही बनता है, न ही कोई असर ज़हनों पर ग़ालिब होता है. बे शुमार बार कहा होगा 
''मफ़िस समावते वमा फ़िल अरज़े'' 
यानी आसमानों को (अनेक कहा है) और ज़मीन (को केवल एक कहा है ). 
जब कि आसमान, कायनात न ख़त्म होने वाला एक है और उसमें ज़मीने, 
बे शुमार हैं. 
वह  बतलाते हैं पहाड़ों को ज़मीन पर इस लिए ठोंक दिया कि तुम को लेकर ज़मीन डगमगा न पाए. 
परिंदों के पेट से निकले हुए अंडे को बेजान बतलाते है 
और अल्लाह की शान कि उस बेजान से जान दार परिन्द निकल देता है. 
ज़मीन पर रस्ते और नहरें भी अल्लाह की तामीर बतलाते हैं. 
कश्ती और लिबासों को भी अल्लाह की दस्त कारी गर्दानते है. 
मुल्लाजी कहते हैं अल्लाह अगर अक़्ल ही न देता तो दस्तकारी कहाँ से आती? 
मुल्लाओं की दलीलें कोई नहीं रोक सकता, सिवाए मज़बूत जूतों के.
मुहम्मद के अन्दर मुक़क्किरी या पयंबरी फ़िक्र तो छू तक नहीं गई थी कि जिसे हिकमत, मन्तिक़ या साइंस कहा जाए. 
ज़मीन कब वजूद में आई? कैसे इरतेक़ाई सूरतें इसको आज की शक़्ल में लाईं,  इन को इससे कोई लेना देना नहीं, 
बस अल्लाह ने इतना कहा ''कुन'', यानी होजा और ''फ़याकून'' हो गई.
बक़ौल 'मुनकिर' - - -
तहक़ीक़, ग़ौर व फ़िक्र तबीअत पे बोझ थे,
अंदाज़ से जो ज़ेहन में आया उठा लिया.
चुनना था इनको इल्म व अक़ीदत में एक को,
आसान थीं अक़ीदतें सर में जमा लिया.
देखे जहाँ में जिस क़दर क़ुदरत के नाक व-नक्श,
 इक बुत वहीँ पे रख दिया, धूनी रमा  लिया.

जब तक मुसलमान इस क़बीलाई आसान पसंदी को ढोता रहेगा,
वक़्त इसको पीछे करता जाएगा. 
जब तक मुसलमान, मुसलमान रहेगा उसे यह क़बीलाई आसान पसंदी ढोना ही पड़ेगा, जो क़ुरआन उसको बतलाता है. 

मुसलमानों के लिए ज़रूरी हो गया है कि वह इसे अपने सर से उठा कर दूर फेंके और खुल कर मैदान में आए.
 देखिए कि ब्रिज नारायण चकबस्त ने दो लाइनों में पूरी मेडिकल साइंस समो दिया है.
ज़िन्दगी क्या है? अनासिर में ज़हूरे-तरतीब,
मौत क्या है? इन्ही अजज़ा का परीशां होना.
कुरआन की सारी हिकमत, हिमाक़त के कूड़े दान हैं. 
अगर ग़ालिब का यह शेर मुहम्मद की फ़िक्र को मयस्सर होता तो शायद क़ुरानी हिमाक़त का वजूद ही नहोता - - -
सब कहाँ कुछ लाला ओ गुल में नुमायाँ हो गईं,
सूरतें क्या ख़ाक में होंगी जो पिन्हाँ हो गईं.

देखिए कि मुहम्मदी हिमाक़तें क्या क्या गुल खिलाती हैं . . .

''बाख़ुदा आप से पहले जो उम्मातें हो गुज़री हैं, उनके पास भी हमने भेजा था (?) सो उनको भी शैतान  ने उनके आमाल मुस्तहसिन करके दिखलाए , पस वह आज उन का रफ़ीक़ था और उनके वास्ते दर्द नाक सज़ा है.''
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (६३)

मुहम्मद का एलान कि कुरआन अल्लाह का कलाम है मगर आदतन उसके मुँह से भी बंदों की तरह बाख़ुदा कहलाते है ? 

''जो उम्मतें हो गुज़री हैं, उनके पास भी हमने भेजा था (?)'' 
क्या भेजा था? 
 ''गोया मतलब शेर का बर बतने-शायर रह गया'' 
मुतराज्जिम मुहम्मद का मददगार बन कर ब्रेकेट में (रसूलों को) लिख देता है. यह क़ुरआन का ख़ासा है. 

कोई कुछ दिन किसी के काम आए तो बड़ी बात है फिर चाहे वह शैतान ही क्यूँ न हो बनिस्बत झूठे और जालसाज़ रसूलों के. 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Soorah nahl 16 Q 5

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नह्ल १६
(क़िस्त- 5)
मफ्रूज़ा अल्लाह की फ़र्ज़ी रसूल से ख़िताब - - - 



''और हम ने आप पर यह किताब सिर्फ़ इस लिए नाज़िल की है कि जिन उमूर पर लोग इख़्तलाफ़ कर रहे हैं, आप लोगों पर इसे ज़ाहिर फ़रमा दें और ईमान वालों को हिदायत और रहमत की ग़रज़ से. और तुम्हारे लिए मवेशी भी ग़ौर दरकार हैं, इन के पेट में जो गोबर और ख़ून है, इस के दरमियान में से साफ़ और आसानी से उतरने वाला दूध हम तुम को पीने को देते हैं. और खजूर और अंगूरों के फलों से तुम लोग नशे की चीज़ और उम्दा खाने चीज़ें बनाते हो. बे शक इसमें समझने के लिए काफ़ी दलीलें हैं जो अक़्ल   रखते हैं.'' 
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (६४-६७) 

तब्दीलियाँ क़ानूने-फ़ितरत है जो वक़्त के हिसाब से ख़ुद बख़ुद आती रहती हैं. मुहम्मद ने अपना दीन थोपने के लिए ''तबदीली बराए तबदीली'' की है जो कठ मुल्लाई पर आधारित थी. ख़ास कर औरतें इस में हाद्सती लुक़्मा हुईं. 
क़ब्ले-इस्लाम औरतों को यहाँ तक आज़ादी थी 
कि शादी के बाद भी वह समाज के लायक़ ओ फ़ायक़ फ़र्द से, 
अपने शौहर की रज़ामंदी के बाद, महीने से फ़ारिग होकर, नहा धो के, 
उसकी ''शर्म गाह'' की तलब कर सकती थीं 
और तब तक के लिए जब तक कि वह हामला न हो जाएँ .
 ये रस्म अरब में अलल एलान थी और क़ाबिले-सताइश थी, 
जैसा की भारत में नियोग की प्रथा हुवा करती थी. 
मुहम्मद ने अनमोल कल्चर का गला गोंट दिया, 
मुसलमानों को सिर्फ़ यही याद रहने दिया गया कि सललललाहो  अलैहेवसल्लम ने बेटियों को जिंदा दफ़नाने को रोका.
कठ मुल्ले ने गोबर, ख़ून और दूध का अपने मंतिक  बयानी से कैसा गुड़  गोबर  किया है.

''और आप के रब ने शहेद की मक्खी के जी में यह बात डाली कि तू पहाड़ में घर बनाए और दरख़्तों में और जो लोग इमारतें बनाते हैं इनमें, फिर हर क़िस्म के फलों को चूसती फिर, अपने रब के रास्तों पर चलती जो आसन है. उसके पेट में से पीने की एक चीज़ निकलती है, जिस की रंगतें मुख़्तलिफ़ होती हैं कि इन में लोगों के लिए शिफ़ा है. इस में इन लोगों के लिए बड़ी दलील है जो सोचते हैं.''    
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (६८-६९) 



मुहम्मद का मुशाहिदा शाहेद की मक्खियों पर कि जिनको इतना भी पता नहीं कि मक्खियाँ फलों का नहीं फूलों का रस चूसती हैं. 
रब का कौन सा रास्ता है जिन पर हैवान मक्खियाँ चलती हैं?
या अल्लाह कहाँ मक्खियों के रास्तों पर हज़ारों मील योमिया मंडलाया करता है? मगर तफ़सीर निगार कोई न कोई मंतिक गढ़े होगा. 



''और अल्लाह तअला ने तुम को पैदा किया, फिर तुम्हारी जान कब्ज़ करता है और बअज़े तुम में वह हैं जो नाकारा उम्र तक पहंचाए जाते हैं कि एक चीज़ से बा ख़बर होकर फिर बे ख़बर हो जाता है . . . और अल्लाह तअला ने तुम में बअज़ों को बअज़ों पर रिज्क़ में फ़ज़ीलत दी है, वह अपने हिस्से का मॉल गुलामों को इस तरह कभी देने वाले नहीं कि वह सब इस पर बराबर हो जावें. क्या फिर भी ख़ुदाए तअला की नेमत का इंकार करते हो. और अल्लाह तअला ने तुम ही में से तुम्हारे लिए बीवियाँ बनाईं और बीवियों में से तुम्हारे लिए बेटे और पोते पैदा किए और तुम को अच्छी चीज़ें खाने को  दीं, क्या फिर भी बे बुन्याद चीजों पर ईमान रखेंगे . . . 
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत  (७०-७२) 

न मुहम्मद कोई बुन्याद क़ायम कर पा रहे हैं और न मुख़ालिफ़ को बे बुन्याद साबित कर पा रहे हैं. 
बुत परस्त भी बुतों को तवस्सुत मानते थे न कि अल्लाह की मुख़ालिफ़त करते . 
तवस्सुत का रुतबा छीन लिया बड़े तवस्सुत बन कर ख़ुद बन बैठे . 
मुजरिम बेजान बुत कहाँ ठहरे? 
मुजरिम तो गुनेह्गर मुहम्मद साबित हो रहे हैं जिन्हों ने आज तक करोरो इंसानी जिंदगियाँ वक़्त से पहले ख़त्म कर दीं. 
अफ़सोस कि आज भी करोरो जिंदगियां दाँव पर लगी हुई हैं.



 ''और अल्लाह तअला ने तुम को तुम्हारी माओं के पेट से इस हालत में निकाला कि तुम कुछ भी न जानते थे और इसने तुम को कान दिए और आँख और दिल ताकि तुम शुक्र करो. क्या लोगों ने परिंदों को नहीं देखा कि आसमान के मैदान में तैर रहे हैं, इनको कोई नहीं थामता.बजुज़ अल्लाह के, इस में ईमान वालों के लिए कुछ दलीलें हैं. और अल्लाह तअला ने तुम्हारे लिए जानवरों के खाल के घर बनाए जिन को तुम अपने कूच के दिन हल्का फुल्का पाते हो और उनके उन,बाल और रोएँ से घर की चीज़ें बनाईं . . . और मख़लूक़ के साए . . . पहाड़ों की पनाहें . . . ठन्डे कुरते . . . और जंगी कुरते बनाए ताकि तुम फ़रमा बरदार रहो. फिर भी अगर यह लोग एतराज़ करें तो आप का ज़िम्मा है साफ़ साफ़ पहुंचा देना.
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (७८-८२) 



यह है क़ुरानी हक़ीक़त किसी पढ़े लिखे ग़ैर मुस्लिम के सामने दावते-इस्लाम के तौर पर ये आयतें पेश करके देखिए तो वह कुछ सवाल आप से ख़ुद करेगा . . .
१-अल्लाह ने कान दिए और आँख और दिल - - - सुनने,देखने और एहसास करने के लिए दिए हैं कि शुक्र अदा करने के लिए?
२- और अब हवाई जहाज़, रॉकेट और मिसाइलें आज कौन थामता है? 
ईमान वालों के पास अक़ले-सलीम है?
३-अब हम जानवरों की खाल नहीं बुलेट प्रूफ़ जैकेट पहेनते हैं उन,बाल और रोएँ का ज़माना लद गया, हम पोलोथिन युग में जी रहे हैं, 
तुम भी छोड़ो, इस  बाल की खाल में जीना और मरना. 
जो कुछ है बस इसी दुन्या में और इसी जिंदगी में है.
४-हम बड़े बड़े टावर बना रहे हैं और मुसलमान अभी भी पहाड़ों में रहने की बातों को पढ़ रहा है? 
और पढ़ा रहा है?
५-बड़े बड़े साइंसदानों का शुक्र गुज़र होने के बजाय इन फटीचर सी बातों पर ईमान लाने की बातें कर रहे हो.  
६- तुम्हारे इस उम्मी रसूल पर जो बात भी सलीक़े से नहीं कर पाता था? 
तायफ़  के हाकिम ने इस से बात करने के बाद ठीक ही पूछा था 
''क्या अल्लाह को मक्का में कोई ढंग का पढ़ा लिखा शख्स नहीं मिला था 
जो तुम जैसे जाहिल को पैग़म्बर बना दिया.''



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Hindu Dharm 185




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 25 May 2018

Soorah nahl Q 3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नह्ल १६
(क़िस्त- 3)


''और लोग बड़े ज़ोर लगा लगा कर अल्लाह कि क़समें खाते हैं कि जो मर जाता है अल्लाह उसको जिंदा न करेगा, क्यों नहीं? इस वादे को तो उस ने अपने ऊपर लाज़िम कर रक्खा है, लेकिन अक्सर लोग यक़ीन नहीं करते. . . . हम जिस चीज़ को चाहते हैं, पस इस से हमारा इतना ही कहना होता है कि तू हो जा, पस वह हो जाती है.''

सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (३८+४०)

यह सूरह मक्का की है जब मुहम्मद ख़ुद राह चलते लोगों से क़समें खा खा कर और बड़े ज़ोर लगा लगा कर लोगों को इस बात का यक़ीन दिलाते कि तुम मरने के बाद दोबारा क़यामत के दिन ज़िन्दा किए जाओगे और लोग इनका मज़ाक उड़ा कर आगे बढ़ जाते. 
मुहम्मद ने अल्लाह को कारसाज़े-कायनात से एक ज़िम्मेदार मुलाज़िम बना दिया है. उनका अल्लाह इतनी आसानी से जिस काम को चाहता है इशारे से कर सकता है तो अपने प्यारे नबी को क्यूँ अज़ाब में मुब्तिला किए हुए है कि लोगों को इस्लाम पर ईमान लाने के लिए जेहाद करने का हुक्म देता है? यह बात तमाम दुन्या के समझ में आती है मगर नहीं आती तो ज़ीशानों और आलीशानों के.
''४१ से ५५'' आयत तक मुहम्मद ने अपने दीवान में मोहमिल बका है जिसको ज़िक्र करना भी मुहाल है. उसके बाद कहते हैं

''और ये लोग हमारी दी हुई चीज़ों में से उन का हिस्सा लगाते हैं जिन के मुताललिक़ इन को इल्म भी नहीं. क़सम है ख़ुदा की तुम्हारी इन इफ़तरा परदाज़यों की पूछ ताछ ज़रूर होगी.
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (५६)

मुहम्मद ज़मीन पर पूजे जाने वाले बुत लात, मनात, उज़ज़ा वग़ैरा पर चढ़ाए जाने वाले चढ़ावे को देख कर ललचा रहे हैं कि एक हवा का बुत बना कर सब का बंटा धार किया जा सकता है और इन चढ़ावों पर उनका क़ब्ज़ा हो सकता है, वह अपने इस मंसूबे में कामयाब भी हैं. 
एक अल्लाह ए वाहिद का दबदबा भी क़ायम हो गया है 
और इन्सान तो पैदायशी मुशरिक है, सो वह बना हुवा है. 
मुसलमान आज भी पीरों के मज़ारों के पुजारी हैं, 
मगर हिदू बालाजी और तिरुपति मंदिरों के श्रधालुओं का मज़ाक उड़ाते हुए.



''और अल्लाह के लिए बेटियां तजवीज़ करते हैं सुबहान अल्लाह!और अपने लिए चहीती चीजें.''
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (५७)

मुहम्मद भटक कर ग़ालिबन ईसाई अक़ीदत पर आ गए हैं जो कि ख़ुदा के मासूम फ़रिश्तों को मर्द और औरत से बाला तर समझते हैं. उनके आकृति में पर, पिश्तान, लिंग आदि होते हैं मगर पवित्र आकर्षण के साथ. मुहम्मद को वह लड़कियाँ लगती हैं, 
वह मानते हैं कि ऐसा ईसाइयों ने ख़ुदा के लिए चुना. 
और कहते है ख़ुद अपने  लिए चाहीती चीज़ यानी बेटा.
मूर्ति पूजकों के साथ साथ ये मुहम्मद का ईसाइयों पर भी हमला है.



''और जब इन में से किसी को औरत की ख़बर दी जाए तो सारे दिन उस का चेहरा बे रौनक़ रहे और वह दिल ही दिल में घुटता रहे, जिस चीज़ की उसको ख़बर दी गई है.  इसकी वजेह  से लोगों से छुपा छुपा फिरे कि क्या इसे ज़िल्लत पर लिए रहे या उसको मिटटी में गाड़ दे. खूब सुन लो उन की ये तजवीज़ बहुत बुरी है.''
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (५८-५९)

मुल्लाओं की उड़ाई हुई झूटी हवा है कि रसूल को बेटियों से ज़्यादः प्यार हुवा करता था. यह आयत कह रही है कि वह बेटी पैदा होने को औरत की पैदा होने की खबर कहते हैं. बेशक उस वक़्त क़बीलाई दस्तूर में अपनी औलाद को मार देना कोई जुर्म न था बेटी हो या बेटा. आज भी भ्रूण हत्या हो रही है. 
मुहम्मद से पहले अरब में औरतों को इतनी आज़ादी थी कि आज भी जितना मुहज्ज़ब दुन्या को मयस्सर नहीं. इस मौज़ू पर फिर कभी.




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 24 May 2018

Hindu Dharm 184



वेद दर्शन               
            
खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

 हे अग्नि !
 तुम शत्रु-सैन्य हराओ. 
शत्रुओं को चीर डालो तुम किसी द्वारा रोके नहीं जा सकते. 
तुम शत्रुओं का तिरस्कार कर इस अनुष्ठान करने वाले यजमान को तेज प्रदान करो 
|३७| यजुर्वेद १.९) 

* वेदों और क़ुरान में चीर फाड़ करने वाली अमानवीय घोषणाएं ही मिलेगी.




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 23 May 2018

Soorah nahal 16 Q 2


मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नह्ल १६
(क़िस्त- 2)


''और वह ऐसा है कि उसने दरया को मुसख़्ख़िर (प्रवाहित) किया ताकि उस में से ताजः ताजः गोश्त खाओ और उसमें से गहना निकालो जिसको तुम पहेनते हो. और तू कश्तियों को देखता है कि वह पानी को चीरती हुई चलती हैं और ताकि तुम इसकी रोज़ी तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो. और उसने ज़मीन पर पहाड़ रख दिए ताकि वह तुम को लेकर डगमगाने न लगे. और उसने नहरें और रास्ते बनाए ताकि तुम मंजिले मक़सूद तक पहुँच सको . . . और जो लोग अल्लाह को छोड़ कर इबादत करते हैं वह किसी चीज़ को पैदा नहीं कर सकते और वह ख़ुद ही मख़्लूक़ हैं, मुर्दे हैं, जिंदा नहीं और इस की ख़बर नहीं कि कब उठाए जाएँगे.

सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (१४-२१) 

बग़ैर तर्जुमा निगारों के सजाए यह क़ुरआन की उरयाँ इबारत है. 
मुहम्मद बन्दों को कभी तू कहते हैं कभी तुम, ऐसे ही अल्लाह को. कभी ख़ुद अल्लाह बन कर बात करने लगते हैं तो कभी मुहम्मद बन कर अल्लाह की सिफ़तें बयान करते हैं. 
कहते हैं ''वह पानी को चीरती हुई चलती हैं और ताकि तुम इसकी रोज़ी तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो'' 
अगर ओलिमा उनकी रोज़े-अव्वल से मदद गार न होते तो क़ुरआन की हालत ठीक ऐसी ही होती 
''कहा उनका वो अपने आप समझें या खुदा समझे.'' 
कठ मुल्ले नादार मुसलमानों को चौदः सौ सालों से ये बतला कर ठग रहे है कि अल्लाह ने ''ज़मीन पर पहाड़ रख दिए ताकि वह तुम को लेकर डगमगाने न लगे.'' 
मुहम्मद इंसान के बनाए नहरें और रास्ते को भी अल्लाह की तामीर गर्दान्ते हैं. भूल जाते हैं कि इन्सान रास्ता भूल कर भटक भी जाता है मगर कहते हैं 
''ताकि तुम मंजिले मक़सूद तक पहुँच सको'' 
मख़्लूक़ को मुर्दा कहते हैं, 
फिर उनको मौत से बे ख़बर बतलाते हैं. 
''वह ख़ुद ही मख़्लूक़ हैं, मुर्दे हैं, ज़िन्दा नहीं और इस की ख़बर नहीं कि कब उठाए जाएँगे''
मुसलामानों की अक़्ल  उनके अक़ीदे के आगे खड़ी ज़िन्दगी, 
जीने की भीख माँग रही है मगर अंधी अक़ीदत अंधे क़ानून से ज़्यादा अंधी होती है उसको तो मौत ही जगा सकती है. 
मुसलमानों! तब तक बहुत देर हो चुकी होगी. जागो.
मुहम्मद जब अपना क़ुरआन लोगों के सामने रखते, लेहाज़न लोग सुन भी लेते, 
तो बग़ैर लिहाज़ के कह देते  
क्या रक्खा है इन बातों में ? 
सब सुने सुनाए क़िस्से हैं जिनकी कोई सनद नहीं
''ऐसे लोगों को मुहम्मद मुनकिर (यानी इंकार करने वाला) कहते हैं और उन्हें वह क़यामत के दिन से भयभीत कराते हैं. एक ख़ाक़ा भी खीचते हैं क़यामत के दिन का कि काफ़िरो-मुनकिर को किस तरह अल्लाह जहन्नम रसीदा करता है 
और ईमान लाने वालों को किस एहतेमाम से जन्नत में दाख़िल करता है. 
काफिरों मुशरिकों के लिए . . . 

''सो जहन्नम के दवाज़े में दाख़िल हो जाओ, इसमें हमेशा हमेशा को रहो, 
ग़रज़ तकब्बुर करने वालों का बुरा ठिकाना है.'' 
और मुस्लिमों के लिए ''फ़रिश्ते कहते हैं . . .
अस्सलाम अलैकुम! तुम जन्नत में चले जाना अपने आमाल के सबब.''
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (२२-३४)
इतना रोचक प्लाट, और इतनी फूहड़ ड्रामा निगारी.
मुशरिकीन ऐन मुहम्मद का क़ौल दोहराते हुए पूछते हैं ''अगर अल्लाह तअला को मंज़ूर होता तो उसके सिवा किसी चीज़ की न हम इबादत करते और न हमारे बाप दादा और न हम बगैर उसके हुक्म के किसी चीज़ को हराम कह सकते'' इस पर मुहम्मद कोई माक़ूल जवाब न देकर उनको गुमराह लोग कहते हैं और बातें बनाते हैं कि माज़ी में भी ऐसी ही बातें हुई हैं कि पैगम्बर झुटलाए गए हैं . . . जैसी बातें करने लगे.
सूरह नह्ल १६- पारा १४ आयत (35-३७)



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 22 May 2018

Hindu Dharm 183

भाजपा की भुनड़िया 

13 साला लड़की को किसी मदरसे का मुलाज़िम वरग़ला कर ले जाता है और उसके साथ बलात कार करता है, मदरसे का मोलवी सर झुकाए क़ुरआन पाठ में मग्न रहता  है. ऐसी घटना हर रोज़ की कहानी सिर्फ़ दिल्ली की है.
वह पकड़ा जाता है,उसकी उम्र 20 की पाई जाती है,
लड़की की भी डाक्टरी होती है मीडिया उसकी उम्र नहीं बतलाता,
नेता गण उसकी उम्र  8 साल बतलाते हैं.
ख़ैर - - -

दूसरा मुआमला है आसिफ़ा का, एक आठ साल की बच्ची,
उठाई जाती है, उसके साथ सामूहिक बलात कार होता है,
उसे नाशीली दवा पिलाई जाती है, एक हफ़्ता भूखी प्यासी जिंदा रखा जाता है, वह भी देवालय में, 
बाप आता है, मुजरिमों से बेटी गुम होने की ख़बर लेता है,
मदद की गुहार लगता है, जवाब होता है जंगल में ढूंढिए.
मुजरिमों में पोलिस से लेकर बाप बेटे तक शामिल होते हैं,
तय होता है इसे मार दिया है, एक हलाल ज़ादा कहता है,
यार एक बार और - - -

उसके बाद आसिफ़ा का सर कुचल कर मार दिया जाता है .
सभी मुजरिम गिरफ़तार होते हैं, अपने जुर्म का इक़बालिया बयान देते हैं.
कठुआ में इन भाजपा पुत्रों को बचाने के लिए जूलूस निकाला जाता है,
जिसकी अगुवाई दो नेता ही नहीं बल्कि मंत्री पद पर बैठे सज्जन पुरुष करते हैं.

इधर दिल्ली में गीता के लिए यही भाजपाई कैंडल मार्च जुलूस निकालते हैं.
जिसकी अगुवाई एक कलाकार करता है,
कहा जाता है कलाकार कभी झूट और मक्र में शामिल नहीं होता,
मिसाल शत्रुघ्न सिन्हा या अमिताभ बच्चन देखे जा सकते हैं,
ख़ैर - - -

उधर संविधान के साथ बलात्कार,
इधर कैंडल मार्च जैसी मर्यादा के साथ बलात्कार .
ज़रा सा सोचो यारो !
ज़रा सा लारज़ो,
कुछ तो शरमाओ,
बिलकुल संवेदन हीन हो चुके हो ?
मानवता और मानव मूल्य तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं ?
क्या आसिफ़ा तुम्हारी बेटी, बहन नहीं हो सकती थी ?
सब कुछ सियासी गलाज़त ही तुम्हारे जीवन का लक्ष रह गया है ?
अपने ख़ून का रंग पहचानो,
तुम केवल इंसान हो,
इंसानियत के लिए जियो
और हो सके तो इस के लिए ही मरो.
******
(पूरा लेख मुसतनद सारी हक़ीक़त मंज़रे-आम पर आ चुकी हैं)


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 21 May 2018

Soorah Hujr 15 mulammal

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
****

सूरह हुज्र १५ 

((मुकम्मल)
)


चलो मक्खियों की तरह भिनभिना कर मुहम्मद की तुकबंदी की तिलावत की जाय और आने वाली नस्लों का आक़बत ख़राब किया जाय .

''अलरा -ये आयतें हैं एक किताब और कुरआन वाज़ेह की.''

सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत (१)

अलरा यह बेमानी लफ्ज़ मुहम्मद का छू मंतर है इसके कोई माने नहीं. 
मुहम्मद बार बार अपनी किताब को वाज़ेह कहते हैं जिसका मतलब होता है स्पष्ट अथवा असंदिग्ध, जब कि क़ुरआन पूरी तरह से संदिग्ध और मुज़ब्ज़ब किताब है.
ख़ुद आले इमरान में आयत ६ में अपनी आयातों को अल्लाह मुशतबह-उल-मुराद(संदिग्ध) बतलाता है. इसी को हम क़ुरआनी तज़ाद (विरोधाभास) कहते है. 
इसी के चलते सदियों से विरोधा भाषी फ़तवे ओलिमा नाज़िल किया करते हैं.


''काफ़िर लोग बार बार तमन्ना करेंगे क्या खूब होता अगर वह लोग मुसलमान होते. आप उनको रहने दीजिए कि वह खा लें और चैन उड़ा लें और ख़याली मंसूबा उन्हें ग़फलत में डाले रखें, उन्हें अभी हक़ीक़त मालूम हुई जाती है ''

सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत (२-३)

काफ़िर लोग हमेशा ख़ुश हाल रहे हैं और मुसलमान बद हाल. 
इस्लामी तालीम मुसलमानों को कभी ख़ुश हाल होने ही न देगी, 
इनकी ख़ुश हाली तो इनका फरेबी आक़बत है जो उस दुन्या में धरा है. 
सच पूछिए तो अज़ाब ए मुहम्मदी मुसलमानों का नसीब बन चुका है. 
चौदह सौ साल पहले अहमक़ अल्लाह ने कहा
''उन्हें अभी हक़ीक़त मालूम हुई जाती है ''
उसका अभी, अभी तक नहीं आया ?


''और हमने जितनी बस्तियां हलाक की हैं, इन सब के लिए एक मुअययन नविश्ता है. कोई उम्मत न अपनी मीयाद मुक़रररा से न पहले हुई न और न पीछे रही.''

सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत(४-५)

अल्लाह ख़ुद एतराफ़ कर रहा है कि वह हलाकू है. 
फिर ऐसे अल्लाह पर सुब्ह ओ शाम लअनत भेजिए,
 किसी ऐसे अल्लाह को तलाशिए जो बाप की तरह मुरब्बी और दयालु हो, 
ना कि बस्त्तियाँ तबाह करने वाला. 
उसके सही बन्दे ओसामा बिन लादेन और बग़दादी की तरह ही ज़ालिम होते हैं जो तुम को नाबीना करके तबाह कर सकते हैं.


''और कहा वह शख़्स  जिस पर क़ुरआन नाज़िल किया गया, तहक़ीक़ तुम मजनूँ हो और अगर तुम सच्चे हो तो हमारे पास फ़रिश्तों को क्यूँ नहीं लाते? हम फ़रिश्तों को सिर्फ़ फ़ैसले के लिए ही नाज़िल किया करते हैं और इस वक़्त उनको मोहलत भी न दी जाती.''

सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत(६-८)

हदीसों में कई जगह है कि फ़रिश्ते ज़मीन पर आते हैं. 
पहली बार मुहम्मद को पटख कर फ़रिश्ते ने ही पढ़ाया था
''इकरा बिस्म रब्बे कल्लज़ी'' 
फिर ''शक्कुल सदर'' भी फ़रिश्ते ने किया, 
मुहम्मद ने आयशा से कहा कि जिब्रील अलैहिस्सलाम आए हैं, 
तुम को सलाम कर रहे हैं. 
जंगे बदर में तो हजारों फ़रिश्ते मैदान में मुसलामानों के शाने बशाने लड़ रहे थे, 
कई (झूठे) सहाबियों ने इसकी गवाही भी दी. 
अब लोगों के तकाज़े पर मंतिक गढ़ रहे हो कि रोज़े हश्र वह नाज़िल होंगे तो कभी कहते हो कि उनके आने पर भूचाल ही आ जाएगा.



''हम ने क़ुरआन नाज़िल किया, हम इसकी मुहाफ़िज़ हैं. और हम ने आप के क़ब्ल भी अगले लोगों के गिरोहों में भेजा था और कोई उनके पास ऐसा नहीं आया जिसके साथ उन्हों ने मज़ाक न किया हो. इसी तरह ये हम उन मुज्रिमीन के दिलों में डाल देते हैं. 

ये लोग इस पर ईमान नहीं लाते और ये दस्तूर से होता आया है. अगर उनके लिए आसमान में कोई दरवाज़ा खोल दें फिर ये दिन के वक़्त इस में चढ़ जाएँ, कह देंगे कि हमारी नज़र बंदी कर दी गई है, बल्कि हम लोगों पर तो एकदम जादू कर रखा है.
सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत (९-१५)

अल्लाह कहता है कि वह ख़ुद लोगों के दिलों में शर डाल देता है कि (स्वयंभू ) पैग़म्बरों का मज़ाक़ उड़ाया करें. 
मुहम्मद इस बात को इस लिए अल्लाह से कहला रहे हैं कि बग़ैर उसके हुक्म के कुछ नहीं होता. 
यह उनका पहला कथन है. 
अब लोगों का मुजरिम भी अल्लाह को बना रहा है, 
और जुर्म ख़ुद कर रहा है ? 
भला क्यों? 
अल्लाह के पास कोई ईमान और इन्साफ़ का तराज़ू है? 
कहता है कि ऐसा उसका दस्तूर है? 
जबरा मारे रोवै न देय. 
ऐसे अल्लाह पर सौ बार लअनत. 
मुहम्मद आसमान में दरवाज़ा खोल रहे हैं गोया पानी में छेद कर रहे हैं.
मुसलमानों! 
दर अस्ल तुम्हारी नज़र बंदी कर दी गई है आँखें खोलो, वर्ना - - 
तुम्हारी दास्ताँ रह जाएगी बस दास्तानों में.



''बेशक हमने आसमान में बड़े बड़े सितारे पैदा किए और देखने वालों के लिए इसको आरास्ता किया और इसको शैतान मरदूद से महफूज़ फ़रमाया, हाँ! कोई बात चोरी छुपे अगर सुन भागे तो इसके पीछे एक रौशन शोला हो लेता है.''

सूरह हुज्र,१५ पारा१४आयत(१६-१८)

रात को तारे टूटते हैं, ये उसका साजिशी मुशाहिदा है, 
उम्मी मुहम्मद ने शगूफ़ा तराशा है कि अल्लाह जो आसमान पर रहता है, वहां से ख़ारिज और मातूब किया गया शैतान उसके राजों के ताक में लगा रहता है कि कोई राज़ ए खुदा वंदी हाथ लगे तो मैं उस से बन्दों को भड़का सकूँ, जिसकी निगरानी पर फ़रिश्ते तैनात रहते हैं, 
शैतान को देखते ही रौशन शोले की मिसाईल दाग़ देते हैं. जो उसे दूर तक खदेड़ आतीहै.
मुसलमानों कब तक तुम्हारे अन्दर बलूग़त आएगी? 

कब मोमिन के ईमान पर ईमान लओगे?


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 19 May 2018

Hindu Dharm 182


सच का ग़ुलाम

मेरे हिंदी लेख ख़ास कर उन मुस्लिम नव जवानो के लिए होते हैं 
जो उर्दू नहीं जानते . 
अगर इसे ग़ैर मुस्लिम भी पढ़ें तो कोई एतराज़ नहीं , 
बस इतनी ईमान दारी के साथ कि अपने गरेबान में मुंह डाल कर देखें कि कहीं उनके धर्म में कोई मानवीय मूल्य आहत तो नहीं होते . 
सच्चाई सर्व श्रेष्ट आधार , सत्य मेव जयते !
अल्लाह, गाड और भगवान् 
अगर इंसान किसी अल्लाह, गाड और भगवान् को नहीं मानता तो सवाल उठता है कि वह इबादत और आराधना किसकी करे ? 
मख़लूक़ (जीव) फ़ितरी तौर पर किसी न किसी की आधीन होना चाहती है. 
एक चींटी अपने रानी के आधीन होती है, तो एक हाथी अपने झुण्ड के सरदार हाथी के.
या पीलवान का अधीन होता है. 
कुत्ते अपने मालिक की सर परस्ती चाहते है, 
तो परिंदे अपने जोड़े पर मर मिटते हैं. 
इन्सान की क्या बात है, उसकी हांड़ी तो भेजे से भरी हुई है, 
हर वक्त मंडलाया करती है, 
नेकियों और बदियों का शिकार किया करती है.
शिकार, शिकार और हर वक़्त शिकार, 
इंसान अपने वजूद को ग़ालिब करने की उडान में हर वक़्त दौड़ का खिलाडी बना रहता है,
मगर बुलंदियों को छूने के बाद भी वह किसी की अधीनता चाहता है.
सूफ़ी तबरेज़ अल्लाह की तलाश में इतने गहराई में गए कि उसको अपनी ज़ात के आलावा कुछ न दिखा, उसने अनल हक (मैं खुदा हूँ) कि सदा लगाई, इस्लामी शाशन ने उसे टुकड़े टुकड़े कर के दरिया में बहा देने की सज़ा दी. मुबालग़ा ये है कि उसके अंग अंग से अनल हक़ की सदा निकलती रही.
कुछ ऐसा ही गौतम के साथ हुवा कि उसने भी भगवन की अंतिम तलाश में खुद को पाया और
"आप्पो दीपो भवः " का नारा दिया.
मैं भी किसी के आधीन होने के लिए बेताब था, 
ख़ुदा की शक्ल में मुझे सच्चाई मिली और मैंने उसमे जाकर पनाह ली.
कानपूर के ९२ के दंगे में, मछरिया की हरी बिल्डिंग मुस्लिम परिवार की थी, 
दंगाइयों ने उसके निवासियों को चुन चुन कर मारा, मगर दो बन्दे उनको न मिल सके, जिनको कि उन्हें ख़ास कर तलाश थी. 
पड़ोस में एक हिन्दू बूढी औरत रहती थी, 
भीड़ ने कहा इसी घर में ये दोनों शरण लिए हुए होंगे, 
भीड़ ने आवाज़ लगाई, घर की तलाशी लो. 
घर की मालिकन बूढी औरत अपने घर की मर्यादा को ढाल बना कर दरवाजे खड़ी हो गई. 
उसने कहा कि मजाल है मेरे जीते जी मेरे घर में कोई घुस जाए, 
रह गई बात कि अन्दर मुसलमान हैं ? 
तो मैं ये गंगा जलि सर पर रख कर कहती हूँ कि मेरे घर में कोई मुसलमान नहीं है. 
औरत ने झूटी क़सम खाई थी, दोनों व्यक्ति घर के अन्दर ही थे, जिनको उसने मिलेट्री आने पर उसके हवाले किया. ऐसे झूट का भी मैं अधीन हूँ. 
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 18 May 2018

Soorah Ibraheem 14 Q 3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इब्राहीम १४
(क़िस्त- 3 )


मैजिक आई

अल्ताफ़ हुसैन 'हाली'(हलधर) कहते हैं अँधेरा जितना गहरा होता है, मैजिक आई उतनी ही चका चौंध और मोहक लगती है. हाली साहब सर सय्यद के सहायकों में एक थे, रेडियो कालीन युग था जब रेडयो में एक मैजिक आई हुवा करती थी, श्रोता गण उसी पर आँखें गड़ोए रहते थे. 
हाली का अँधेरे से अभिप्राय था निरक्षरता. 
कहते हैं कि चम्मच से खाने पर भी मुल्लाओं का कटाक्ष होता है, 
जब कि यह साइंसटिफ़िक है, क्यूँकि इंसान की त्वचा बीमारी के कीटाणुओं को आमन्तिरित करती है. 
सर सय्यद को मुल्लाओं ने काफ़िर होने का फ़तवा दे दिया था. 
पता नहीं मौलाना हाली को बख़्शा या नहीं.
क़ुरआन का स्पाट तर्जुमा और उस पर बेबाक तबसरा पहली बार शायद अपने भारतीय माहौल में मैंने किया है. 
मेरे विश्वास पात्र सरिता मैगज़ीन के संपादक स्वर्गीय विश्व नाथ जी ने कहा इतना तो मैं भी समझता हूँ जो तुम समझते हो मगर इसका फ़ायदा क्या? मुफ्त में अंगार हाथ में ले रहे हो 
और मेरे लेख की पंक्तियाँ उन्हें अंगार लगीं, सरिता में जगह देने से इंकार कर दिया. 
क़ुरआन को नग्नावस्था में देखने के बाद कुकर्मियों की रालें टपक पड़ती हैं कि एक अनपढ़, उम्मी का नाम धारण करके अगर इतना बड़ा पैग़म्बर बन सकता है तो मैं क्यूँ नहीं? 
न बड़ा तो मिनी पैग़म्बर ही सही. 
गोया चौदह सौ सालों से मुहम्मद की नक़्ल में जगह जगह मिनी पैग़म्बर कुकुर मुत्ते की तरह पैदा हो रहे हैं. इसी सिलसिले के ताज़े और कामयाब पैग़म्बर मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादियानी हुए हैं. यह मुहम्मद की ही भविष्य वाणी के फल स्वरुप हैं कि 
'' ईसा एक दिन मेहदी अलैहिस्सलाम बन कर आएँगे और दज्जाल को क़त्ल कर के इस्लाम का राज क़ायम करेंगे .'' 
मिर्ज़ा ने मुहम्मद की बकवास का फ़ायदा उठाया, और बन बैठे
''मेंहदी अलैहिस्सलाम'' 
क़दियानियों की मस्जिदें तक कायम हो गईं, वह भी पाकिस्तान लाहोर में. उसमें इस्लामी कल्चर के मुवाफ़िक़ क़त्ल ओ ग़ारत गरी भी होने लगी. पिछले दिनों ७२ अहमदिए शहीद हुए. 
उस शहादत की याद आती है जब मुहम्मद का वंश कर्बला में अपने कुकर्मों का परिणाम लिए इस ज़मीन से उठ गया था, वह भी ७२ थे.
उम्मी (निरक्षर) मुहम्मद सदियों पहले अंध वैश्वासिक युग में हुए. 
उन्होंने इर्तेक़ा (रचना क्रिया) के पैरों में ज़ंजीर डाल कर युग को और भी सदियों पीछे ढकेल दिया. 
इस्लाम से पहले अरब योरोप से आगे था, ख़ुद इसे योरोपियन दानिश्वर तस्लीम करते हैं और अनजाने में मुस्लिम आलिम भी मगर मुहम्मद ने सिर्फ़ अरब का ही नहीं दुन्या के कई टुकड़ों का सर्व नाश कर दिया.
युग का अँधेरा दूर हो गया है, धरती के कई हिस्सों पर रातें भी दिन की तरह रौशन हो गई मगर मुहम्मद का नाज़िला ( प्रकोपित) अंधकार मय इस्लाम अपनी मैजिक आई लिए मुसलमानों को सदियों पुराने तमाशे दिखा रहाहै.


अब देखिए मफ़रूज़ा अल्लाह का कलामे-बेलगाम - - - 


''पस कि अल्लाह तअला को अपने रसूल की वअदा ख़िलाफ़ी करने वाला न समझना. बे शक अल्लाह तअला बड़ा ज़बरदस्त और पूरा बदला लेने वाला है और सब के सब ज़बदस्त अल्लाह के सामने पेश होने वाले हैं.''
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत  (४७)
इस आयत के लिए जोश मलीहाबादी की रुबाई काफ़ी होगी.
कहते हैं - - -
गर मुन्तक़िम है तो झूटा है ख़ुदा,
जिसमें सोना न हो वह गोटा है ख़ुदा,
शब्बीर हसन खाँ नहीं लेते बदला,
शब्बीर हसन खाँ से भी छोटा है ख़ुदा. 



''जिस रोज़ दूसरी ज़मीन बदल दी जाएगी, इस ज़मीन के अलावा आसमान भी, और सब के सब एक ज़बरदस्त अल्लाह के सामने पेश होंगे और तू मुजरिम को ज़ंजीरों में जकड़े हुए देखेगा, और उनके कुरते क़तरान के होंगे और आग उनके चेहरों पर लिपटी होगी ताकि अल्लाह हर शख़्स को इसके किए की सज़ा दे यक़ीनन अल्लाह बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है.''
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (४९-५१)

ज़मीन बदल दी जाएगी, आसमान बदल जाएगा मगर इंसान न बदलेगा, 
क़तरान का कुरता पहने मुंह पर आग की लपटें लिए ज़बरदस्त अल्लाह के आगे अपने करतब दिखलाता रहेगा. आज ऐसा दौर आ गया है कि बच्चे भी ऐसी कहानियों से बोर होते हैं. मुसलमान इन पर यक़ीन रखते हैं?
मुसलमानों! 
दुन्या की हर शय फ़ानी है और यह दुन्या भी. 
साइंस दान कहते है कि यह धरती सूरज का ही एक हिस्सा है और एक दिन अपने कुल में जाकर समां जाएगी मगर अभी उस वक़्त को आने में अरबों बरसों का फ़ासला है. 
अभी से उस की फ़िक्र में मुब्तिला होने की ज़रुरत नहीं. 
साइंस दान यह भी कहते हैं कि तब तक नसले-इंसानी दूसरे सय्यारों तक पहुँच कर बस जाएगी. साइंस की बातें भी अर्द्ध-सत्य होती हैं, 
वह ख़ुद इस बात को कहते है मगर इन अल्लाह के एजेंटों की बातें १०१% झूट होती हैं, इन पर क़तई न यक़ीन करना.



''और हुज्र वालों ने पैगम्बर को झूठा बतलाया और हमने उनको अपनी निशानयाँ दीं सो वह लोग उस से रू गरदनी करते रहे और वह लोग पहाड़ों को तराश तराश कर अपना घर बनाते थे कि अमन में रहें सो उनको सुबह के वक़्त आवाज़ ए सख़्त ने आन पकड़ा सो उनका हुनर उनके कुछ काम न आया . . और ज़रूर क़यामत आने वाली है, सो आप ख़ूबी के साथ दरगुज़र कीजिए.
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (८०-८५)

मुहम्मद ने तौरेती वाक़ेए के मुख़बिर यहूदी के ज़ुबानी सुना सुनाया क़िस्सा गढ़ते हुए उस बस्ती को लिया है जिस पर कुदरती आपदा आ गई थी, जिसमें बसे लूत बस्ती को तर्क करके पहाड़ों पर अपनी बेटियों के साथ आबाद हो गए थे और उनकी बीवी हादसे का शिकार हो गई थी. उसके आसार आज भी देखे जा सकते हैं कि योरोपियन लूत की नस्लें मुआबियों और अम्मोनियों को उस वाक़ेए पर रिसर्च करने की तैफीक़ हुई है. 
मुहम्मद उसकी कहानी की गढ़ी, 
क़ुरआन की मुसलामानों से तिलावत करा रहे हैं.



''बिला शुबहा आप का रब बड़ा ख़ालिक़ और बड़ा आलिम है. और हम ने आप को सात आयतें दीं जो मुक़र्रर हैं और क़ुरआन ए अज़ीम. आप अपनी आँख उठा कर भी इस चीज़ को न देखिए जो कि हम ने उन मुख़्तलिफ़ लोगों को बरतने के लिए दे रक्खी है और उन पर ग़म न कीजिए.और मुसलमानों पर शिफ़क़त रखिए.
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (८६-८८)



अल्लाह अपने प्यारे नबी से वार्ता लाप कर रहा है कि वह बड़ा निर्माण कुशल और ज्ञानी है, 
कहता है हमने आपको सात आयतें दीं(?) 
{ अब याद नहीं कि सात दीं या सात सौ ? कुछ याद नहीं आ रहा} 
कि क़ुराने-अज़ीम समझो. 
वह अपने बच्चे को समझाता है दूसरों की संपन्नता को आँख उठा कर देखा ही मत करो. 

''रूखी सूखी खाए के ठंडा पानी पिव, 
देख पराई चोपड़ी क्यूं ललचाए जिव.'' 

इस बात का ग़म भी न किया करो.( क़ुरैशियों का आगे भला ज़रूर होगा.) 
बस मुसलामानों को चूतिया बनाए रहना.

''और कह दीजिए कि खुल्लम खुल्ला मैं डराने वाला हूँ जैसा कि हम ने उन लोगों पर नाज़िल किया है जिन्हों ने हिस्से कर रखे थे यानी आसमानी किताबों के मुख़्तलिफ़ अजज़ा करार दिए थे, सो तुम्हारे परवर दिगार की क़सम हम उन सब के आमाल की ज़रूर बाज़ पुर्स करेंगे. ये लोग जो हँसते हैं अल्लाह तअला के साथ, दूसरा माबूद क़रार देते हैं, उन से आप के लिए हम काफ़ी हैं. सो उनको अभी मालूम हुवा जाता है. और वाक़ई हमें मालूम है ये लोग जो बातें करते हैं उस से आप तंग दिल हैं.
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (९५-९७)

अल्लाह की राय मुहम्मद को कितनी स्टीक है कि कहता है 
कह दीजिए कि खुल्लम खुल्ला मैं डराने वाला बागड़ बिल्ला हूँ , 
यह कि इस से वह हज़ारों साल तक डरते रहेगे. 
हमने उन मुसलमानों पर दिमाग़ी हिपना टिज़्म  क़ायम व दायम कर दिया है. यह आसमानी किताबों के मुख़्तलिफ़ अजज़ा क्या होते हैं किसी दारोग़ गो आलिम से पूछना होगा कि अल्लाह यहाँ पर बे महेल बहकी बहकी बातें क्यूं करता है? 
अपने प्यारे नबी को तसल्ली देता है कि वह उनके दुश्मनों से जवाब तलब करेगा कि मेरे रसूल की बातें क्यूं नहीं मानीं? 
और उल्टा उनका मज़ाक़ उड़ाया.

काश कि मुहम्मद तंग दिल न होते, कुशादा दिल और तअलीम याफ़्ता भी होते.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 17 May 2018

Hindu Dharm 181




लिंग पूजा  

योगियों, योगिनों स्वामी और साध्वियों के बयानों को पढ़ पढ़ कर पानी सर से ऊंचा हुवा जा रहा है, मेरे पाठक क्षमा करें कि सीमा लांघ रहा हूँ.
वह कहते हैं हिन्दू बच्चो की कतारें लगाएँ, 
porn फ़िल्में देखें, स्व-लिंग पूजा करें, 
यह वही नामर्द और नामुराद लोग हैं जो अपनी पौरुष शक्ति से एक चूहा भी पैदा नहीं कर सके.
हिजड़े होते होते रह गए, गेरुवे बन गए . 
इन्हों ने शिव लिंग मंदिर बनवा दिए अपनी औरतो के लिए, 
इनकी औरतों नें शिव लिंग को पूजना शुरू किया और अपनी वासना को लिंग की आराधना में ठंडा कर लिया.
यह आत्म ज्ञान और आत्म ध्यान में इतना डूबे कि वाह्य ज्ञान से बेख़बर रह गए. अपना जीवन तो ख़ुशियों से वंचित कर लिया अब दूसरों को राय दे रहे है कि 8, 8 बच्चे पैदा करके तुम भी जीवन की ख़ुशियों वंचित हो जाओ.

डा तो गडिया ने पौरुष वर्धन दवा भी हिन्दुओं के लिए ईजाद कर लिया है. 
६०० की लिंग वर्धन को खरीदने पर १०० रुपिए की छूट भी दे रहे हैं.
धिक्कार है ऐसे मदारियों पर जो अपनी कमियों को छिपाने के लिए जनता को मूर्ख बनाए हुए हैं.

सुदर्शन TV का जोकर हिन्दू जागरण की यात्रा कर रहा है जहाँ पहाड़ जैसे "झूटों" का प्रचार हो रहा है, लोगों को समझाया जा रह है कि मुसलमान देश में जन संख्या को 8.8 % की दर से बढ़ा रहे है और हिन्दू केवल 1.2% . अफ़ग़ानी तालिबान की राह चल कर 10-12 बच्चे पैदा करो.
उन्हें खिलाएं पिलाएंगे वह जो स्वयम दूसरों की मेहनत पर गुज़ारा करते है ?

इस्लाम में ब्रह्म चर्य हराम है जो १००% सही है. 
इसकी बहस को ख़ुद अपने दिमाग़ में गति दें कि 
इस पर पूरी किताब लिखने की ज़रुरत होगी. 
ब्रह्म चर्य तो ठीक वैसे ही है जैसे माली अपने पेड़ को फलने फूलने न दे,
किसान अपनी फसलों को लहलहाने न दे.
इस धरती का सारा कारोबार SEX पर आधारित है, 
धरती का दारोमदार SEX है.
कुछ लोगों में इसमें दिल चस्पी कम हो सकती है, 
जबकि उनके लिए इसके मुक़ाबिले में कोई और विषय हो, 
जो मानव जाति  के लिए वरदान हो.
उनको मुनकिर का सलाम,


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 16 May 2018

Soorah Ibraheem 14 Q 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इब्राहीम १४
(क़िस्त- 2)

''और कुफ़्फ़ार ने रसूल से कहा कि हम तो अपनी सर ज़मीन से निकाल देंगे, या तुम हमारे मज़हब में फिर आओ, पस उन पर उन के रब ने वहिय नाज़िल की कि हम उन ज़ालिमों को ज़रूर हलाक़ कर देंगे और उनके बाद तुम को उस सर ज़मीन पर आबाद रखेंगे. ये हर उस शख़्स के लिए है जो मेरे रूबरू खड़े रहने से डरे और मेरी वईद से डरे. और कुफ़्फ़ार फ़ैसला चाहने लगे, जितने ज़िद्दी थे वह सब नामुराद हुए. इसके आगे दोज़ख़ है और इसको ऐसा पानी पीने को दिया जाएगा जो पीप होगा, जिसे घूँट घूँट पिएगा और कोई सूरत न होगी और हर तरफ़ उसके मौत की आमद होगी, वह किसी तरह से मरेगा नहीं और उसे सख़्त अज़ाब का सामना होगा.''
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (३) (१३-१७)

मुसलामानों!
देखो कि कितनी सख़्त और घिनावनी सज़ाएँ तुम्हारे अल्लाह ने मरने के बाद भी तुम्हारे लिए तैयार कर रक्खी है, यहाँ तो दुन्या भर के अज़ाब थे ही. वहां फिर मौत भी नहीं है कि इन से नजात मिल सके. 
एक ही रास्ता है कि हिम्मत करके ऐसे अल्लाह को एक लात जम कर लगाओ कि फिर तुम्हारे आगे यह मुँह खोलने लायक़ भी न रहे.
यह ख़ुद तुम्हारा पिया हुवा 
''मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' का ज़हर है जो तुम्हारी ख़ूब सूरत ज़िन्दगी को खौ़फ़ में घुलाए हुए है.
सर ज़मीनों को ''मुहम्मदुर रसूल लिल्लाह'' का नाटक है जो अपने जादू से लोगों को पागल किए हुए है.
अब बस बहुत हो चुका. आप इक्कीसवीं सदी में पहुँच चुके हैं. 
आँखें खोलिए.
ये पाक क़ुरान नहीं, नापाक नजासत है जो आप सर रखे हुए हैं.

''जो लोग अपने परवर दिगार के साथ कुफ्र करते हैं उनकी हालत बएतबार अमल के ये है कि जैसे कुछ राख हो जिस को तेज़ आँधी के दिन में तेज़ी के साथ उड़ा ले जाए. इन लोगों ने अमल किए थे, इस का कोई हिस्सा इनको हासिल नहीं होगा. ये भी बड़ी दूर दराज़ की गुमराही है.''

अल्लाह के साथ बन्दा कभी कुफ्र कर ही नहीं सकता जब तक अल्लाह ख़ुद न चाहे, ऐसा मैं नहीं ख़ुद मुहम्मदी अल्लाह का कहना है.
दूर दराज़ की गुमराही और आस पास कि गुमराही में क्या फ़र्क़ है ?
ये कोई अरबी नुक़ता होगा जिसे मुहम्मद बार बार दोहराते हैं, 
इसमें कोई दूर की कौड़ी जैसी बात नहीं.
कोई नेक अमल हवा में नहीं उड़ता बल्कि नमाज़ें ज़रूर हवा में उड़ जाती हैं या ताकों में मकड़ी के जाले की तरह फँसी रहती हैं.

''और जब तमाम मुक़दमात फ़ैसल हो चुके होंगे तो शैतान कहेगा कि अल्लाह ने तुम से सच वादे किए थे, सो वह वादे हम ने तुम से उस से ख़िलाफ़ किए थे और मेरे तुम पर और कोई ज़ोर तो चलता नहीं था बजुज़ इसके कि हम ने तुम को बुलाया था, सो तुम ने मेरा कहना मान लिया, तो तुम मुझ पर मलामत मत करो, न मैं तुम्हारा मदद गार हूँ और न तुम मेरे मदद गार हो. मैं ख़ुद इस से बेज़ार हूँ कि तुम इससे क़ब्ल मुझ को शरीक क़रार देते थे. यक़ीनन ज़ालिमों के लिए दर्द नाकअज़ाब है.''
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (22)

मुहम्मद जब कलाम ए इलाही बड़बड़ाने में तूलानी या वजदानी कैफ़ियत में आ जाते हैं तो राह से भटक जाते हैं, इस सूरत में अगर कोई उनसे वज़ाहत चाहे तो जवाज़ होता है  
''वह आयतें हैं जो मुशतबह-उल-मुराद हैं, इनका बेहतर मतलब बजुज़ अल्लाह तअला कोई नहीं जानता.''
सूरह आले इमरान आयत(७) यहाँ भी कुछ ऐसी ही कैफ़ियत है, 
अल्लाह के रसूल , शैतान के साथ शैतानी कर रहे हैं.

''क्या आप को मालूम है कि अल्लाह ने कैसी मिसालें बयान फ़रमाई है . . .
कलमा ए तय्यबा वह कि मुशाबह एक पाकीज़ा दरख़्त के जिसकी जड़ें खूब गडी हुई हों और इसकी शाखें उचाई में जारी हों और परवर दिगार के हुक्म से हर फ़स्ल में अच्छा फल देता हो. . . . और गन्दा कलमा की मिसाल ऐसी है जैसे एक ख़राब दरख़्त की हो जो ज़मीन के ऊपर ही ऊपर से उखाड़ लिया जाए, उसको कोई सबात न हो.''
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (२४-२५)

मुहम्मदी अल्लाह की मिसालें हमेशा ही बेजान और फुसफुसी होती हैं.
ख़ैर.
मुहम्मद अपने कलमा ए तय्यबा की बात करते हैं, यह वह कलमा है जो अनजाने में ज़हरे-हलाहल बन कर दुन्या पर नाज़िल हुवा. 
देखिए कि इसका असर कब तलक दुन्या पर क़ायम रहता है.

''तमाम हम्दो सना अल्लाह के लिए है जिसने बुढ़ापे में हमें इस्माईल और इशाक़ (इसहाक) अता फ़रमाए. ऐ मेरे रब मुझको भी नमाज़ों का एहतमाम करने वाला बनाए रखियो, मेरी औलादों में से भी बअज़ों को.''
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत (४०)

इर्तेक़ाई हालात का शिकार, इंसानी तहज़ीब में ढलता हुवा इब्राहीम उस वक़्त अर्वाह ए आसमानी में ज़ात मुक़द्दस के लिए चंद पत्थर इकठ्ठा किए थे जो ज़मीन और उसके क़द से ज़रा ऊँचे हो जाएँ और उसी बेदी के सामने अपने सर को झुकाया था, उसके मन में बअज़ों के लिए बुग्ज़ न बअज़ों के लिए हुब थी. न ही मुहम्मदी इस्लाम का कुफ़्र.

''ऐ मेरे रब मेरी मग़फ़िरत कर दीजो, और मेरे माँ बाप की भी और कुल मोमनीन की हिसाब क़ायम होने के दिन . . . ''
सूरह इब्राहीम १४- पारा १३- आयत  (४१)

इसी क़ुरआन में मुहम्मदी अल्लाह इस आयत के ख़िलाफ़ कहता है कि उन लोगों के लिए मग़फ़िरत की दुआ न करो जो काफ़िर का अक़ीदा लेकर मरे हों, ख़्वाह वह तुम्हारे कितने ही क़रीबी अज़ीज़ ही क्यूं न हों. 
यहाँ पर इब्राहीम काफ़िर बाप आज़र के लिए अल्लाह के हुक्म से दुआ मांग रहा है? 
कोई आलिम इन बातों का जवाब नहीं देता.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Hindu Dharm 180



भारतीय इतिहास के नाज़ुक़ लम्हे

आज इंसानी ज़ेहन जग चुका है और बालिग़ हो चुका है.
इस सिने-बलूग़त की हवा शायद ही आज किसी टापू तक न पहुँची हो,
रौशनी तो पहुँच ही चुकी है,
यह बात दीगर है कि नसले-इंसानी चूज़े की शक्ल बनी हुई अन्डे के भीतर बेचैन कुलबुलाते हुए, अंडे के दरकने का इन्तेज़ार कर रही है.
मुल्कों के हुक्मरानों ने हुक्मरानी के लिए सत्ता के नए नए चोले गढ़ लिए हैं.
कहीं पर दुन्या पर एकाधिकार के लिए सिकंदारी चोला है
तो कहीं पर कमन्युज्म का छलावा.
धरती के पसमांदा टुकड़े बड़ों के पिछ लग्गू बने हुए है.
हमारे मुल्क भारत में तो कहना ही क्या है!
क़ानूनी किताबें, जम्हूरी हुक़ूक़, मज़हबी जूनून, धार्मिक आस्थाएँ और आर्थिक लूट की छूट, सब एक दूसरे को मुँह बिरा रही हैं.
९०% अन्याय का शिकार जनता अन्डे में क़ैद बाहर निकलने को बेक़रार है,
१०% मुर मुर्ग़ियाँ इसको सेते रहने का आडम्बर करने से अघा नहीं रही हैं.
गरीबों की मशक्क़त ज़हीन बनियों के ऐश आराम के काम आ रही है,
भूखे नंगे आदि वासियों के पुरखों के लाशों के साथ दफ़्न दौलत बड़ी बड़ी कंपनियों के मालिकन की जेबें में जा रही है,
और अंततः ब्लेक मनी होकर स्विज़र लैंड के हवाले हो रही है.
हजारों डमी कंपनियाँ जनता का पैसा बटोर कर चम्पत हो जाती हैं.
किसी का कुछ नहीं बिगड़ता.
लुटी हुई जनता की आवाज़ हमें ग़ैर क़ानूनी लग रही हैं
और मुट्ठी भर सियासत दानों, पूँजी पतियों, धार्मिक धंधे बाजों और समाज दुश्मनों की बातें विधिवत बन चुकी हैं.
1 May की छुट्टी पूरी दुन्या में आज भी मज़दूर दिवस के रूप में मनाया जाता है, भारत में मज़दूरों का कहीं पता पता नहीं.
किसान ख़ुदकुशी कर करके भारत के हर घर को अन्न पहुंचा रहे है.
कैसा अंधेर है ?
कुछ लोगों का मानना है कि आज़ादी हमें नपुंसक संसाधनों से मिली,
जिसका नाम अहिंसा है.
सच पूछिए तो आज़ादी भारत भूमि को मिली, भारत वासियों को नहीं.
कुछ सांडों को आज़ादी मिली है और गऊ माता को नहीं.
जनता जनार्दन को इससे बहलाया गया है.
इनक़्लाब तो बंदूक की नोक से ही आता है, अब मानना ही पड़ेगा,
वर्ना यह सांड फूलते फलते रहेंगे.
स्वामी अग्निवेश कहते हैं कि वह चीन गए थे,
वहां उन्हों ने देखा कि हर बच्चा गुलाब के फूल जैसा सुर्ख़ और चुस्त है.
जहाँ बच्चे ऐसे हो रहे हों वहां जवान ठीक ही होंगे.
मगर स्वामी जी रहे भगुवा धारी के भगुवा धारी सनातनी पाखण्ड के मूर्ति.
कहते है चीन में रिश्वत लेने वाले को, रिश्वत देने वाले को और बिचौलिए को एक साथ गोली मारदी जाती है.
भारत में गोली किसी को नहीं मारी जाती चाहे वह रिश्वत में भारत को ही लगादे.
दलितों, आदि वासियों, पिछड़ों, गरीबों और सर्व हारा से अब सेना निपटेगी.
नक्सलाईट, देश द्रोही और ग़द्दार का नाम देकर ९०% भारत वासियों का सामना भारतीय फ़ौज करेगी,
कहीं ऐसा न हो कि इन १०% लोगों को फ़ौज के सामने जवाब देह होना पड़े
कि इन सर्व हारा की हत्याएं हमारे जवानों से क्यूं कराई गईं?
और हमारे जवानों का ख़ून इन मज़लूमों से क्यूं कराया गया?

चौदह सौ साल पहले ऐसे ही धांधली के पोषक मुहम्मद हुए
और बरबरियत को क़ुरआनी कानून बना गए, 
जिसका हश्र यह है कि करोड़ों इंसान आज वक़्त की धार से पीछे है,

वैसे ही आज हम ?????
खाड़ियों, ख़न्दक़ो, पोखरों और गड्ढों में रुके पानी की तरह सड़ रहे हैं.
हम जिन अण्डों में हैं उनके दरकने के आसार भी ख़त्म हो चुके हैं.
कोई चमत्कार ही इनको बचा सकता है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान