Saturday 30 June 2018

Hindu Dharm Darshan201


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (5)

सज्जन पुरुष अर्जुन कहता है - - -
>यदि हम ऐसे आततायियों का बद्ध करते हैं तो हम पर पाप चढ़ेगा,
अतः यह उचित न गोगा कि घृतराष्ट्र के तथा उनके मित्रों का बद्ध करें.
हे लक्षमी पति कृष्ण ! 
इस में हमें क्या लाभ होगा ?
और अपने ही कुटुम्भियों को मार कर हम किस प्रकार सुखी हो सकते हैं ?   
>>हे जनार्दन ! 
यद्यपि लोभ से अभिभूत चित वाले यह लोग अपने परिवार को मारने या अपने मित्रों से द्रोह करने में कोई दोष नहीं देखते, 
किन्तु हम लोग जो परिवार को विनष्ट करने में जो अपराध देख सकते  हैं, 
ऐसे पाप कर्मों में क्यों प्रवृति हों ? 
 श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  1   श्लोक 36-37-38
*अर्जुन पहले धर्म मुक्त, इंसानी दर्द का हमदर्द था. 
कृष्ण ने उसे धर्म युक्त कर दिया. 
वह धर्म के अधर्मी गुणों का शिकार हो गया.
युद्ध की आग भड़काने वाले भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>किन्तु अगर तुम यह सोचते हो कि आत्मा सदा जन्म लेता है 
तथा सदा मरता है तो भी, 
हे बाहुबली ! 
तुम्हारे शोक करने का कोई करण नहीं.
>>जिसने जन्म लिया है, 
उसकी मृत्यु निश्चित है. 
अपने अपरिहार्य कर्तव्य पालन में तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 2  श्लोक 26-27  

*अभी पिछले दिनों किसी मुल्क में आतंक वादियों ने एक बस्ती जला दी, 
उसमे एक ज़ू था, उसके जानवर भी जलकर मर गए. 
उनसे पूछा गे कि ज़ू के जानवरों की कौन सी ख़ता थी कि तुमने उनको मार दिया ? जवाब था कि जानवरों को तो एक दिन मरना ही था. 
क्या भगवान् केविचार उन आतंकियों से कुछ जुदा हैं.

और क़ुरआन कहता है - - - 
अल्लाह मुहम्मद से कहता है, 
''आप फ़रमा दीजिए तुम तो हमारे हक़ में दो बेहतरीयों में से एक बेहतरी के हक़ में ही के मुनतज़िर रहते हो और हम तुम्हारे हक़ में इसके मुन्तज़िर रहा करते हैं कि अल्लाह तअला तुम पर कोई अज़ाब नाज़िल करेगा, अपनी तरफ़ से या हमारे हाथों से.सो तुम इंतज़ार करो, हम तुम्हारे साथ इंतज़ार में हैं.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (५२)

यह आयत मुहम्मद की फितरते बद का खुला आइना है, कोई आलिम आए और इसकी रफ़ूगरी करके दिखलाए. ऐसी आयतों को ओलिमा अवाम से ऐसा छिपाते हैं जैसे कोई औरत बद ज़ात अपने नाजायज़ हमल को ढकती फिर रही हो. आयत गवाह है कि मुहम्मद इंसानों पर अपने मिशन के लिए अज़ाब बन जाने पर आमादा थे. इस में साफ़ साफ़ मुहम्मद ख़ुद को अल्लाह से अलग करके निजी चैलेन्ज कर रहे हैं, क़ुरआन अल्लाह का कलाम को दर गुज़र करते हुए अपने हाथों का मुजाहिरा कर रहे हैं. अवाम की शराफ़त को ५०% तस्लीम करते हुए अपनी हठ धर्मी पर १००% भरोसा करते हैं. तो ऐसे शर्री कूढ़ मग्ज़ और जेहनी अपाहिज हैं 
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 29 June 2018

Soorah Kahaf 18 Q 6

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*************

सूरह कहफ़ 18 
(क़िस्त-6) 
अल्लाह का खोखला कलाम मुलाहिजा हो - - - 


''और उन्हों ने मेरी आयातों को और जिस से उनको डराया गया था, उसको दिललगी बनाए रक्खा है। - - -

सूरह कहफ़ १८ - पारा १५ आयत (५७)

ऐ मुहम्मदी अल्लाह! 
तेरी आयतें तो हैं ही ऐसी कि दुन्या भर में मज़ाक बनी हुई हैं. 
बस मुसलमानों की आँखें ही नहीं खुल रहीं. अपना मज़ाक उड़ते देख कर उनको शर्म नहीं आती क्यूँ कि वह जन्नत के फ़रेब में मुब्तिला हैं, 
हालांकि उसमें भी अंततः दुर्गन्ध है. 



'' - - -और बस्तियां जब उन्हों ने शरारत की तो हमने उनको हलाक कर दिया.
''सूरह कहफ़ १८ - पारा १५ आयत (५९)



और तू इंसानी बस्तियों के साथ कर भी क्या सकता था ? 
तेरे डाकिए मुहम्मद ने इंसानों को हैवान बना दिया, वह उसकी पैरवी में लग कर २०% इंसानी आबादी के पैरों में बेड़ियाँ डाले हुए हैं. 
इस वक़्त पूरी दुन्या मिल कर उनको फ़ना करने पर आमादा है.
मुसलमानों! 
जागो, आँखें खोलो. 
इक्कसवीं सदी की सुब्ह हुए देर हुई, 
देखो कि ज़माना चाँद सितारों पर सीढियां लगा रहा है. 
कल जब यह ज़मीन सूरज के गोद में चली जाएगी तो बाक़ी लोग अपनी अपनी नस्लों को लेकर उस पर बस जाएँगे और तुम्हारी नस्लें कहीं की न होंगी. 
तुम समझते हो कि तुम हक़ बजानिब हो? 
तो तुम बहके हुए हो. तुमको बहकाए हुए हैं, इस्लामी ओलिमा, 
जिनका कि ज़रीआ मुआश ही इस्लाम है. 
इनका पूरा माफ़िया सक्रीय है. इनकी पकड़ सीधे सादे मुसलमानों को अपनी मुट्ठी में दबोचे हुए है. ज़रा सर उठा कर तो देखो, इनके एजेंट तुम को फ़तवा देना शुरू कर देंगे, समाज में इनके इस्लामी गुंडे तुम्हारे बग़ल में ही बैठे होंगे, तुम को अलावा समझाने बुझाने के ये और कोई राय नहीं देंगे.
हर एक का मुआमला पेट से जुड़ा हुवा है यह तो तुम मानते हो. 
वह भी मजबूर हैं कि उनकी रोज़ी रोटी है, 
गोरकुन की तरह. कोई मुक़र्रिर बना हुवा है, 
कोई मुफ़क्किर, 
कोई प्रेस चला कर, इस्लामी किताबों की इशाअत जो उसकी रोज़ी है, 
कोई नमाज़ पढ़ाने के काम पर, 
तो कोई अज़ान देने का मुलाज़िम है, 
मीडिया वाले भी ओलिमा को बुला कर तुम्हें आकर्षित करते हैं कि चैनल के शाख़ का सवाल है. यहाँ तक कि इस ब्लाग की दुन्या में भी ऐसे लोगों ने अपने बच्चों के पोषण का ज़रीआ तलाश कर लिया है. 
यह सब मिल कर तुम्हें सुलाए हुए हैं. 
कोई जगाने वाला नहीं हैं. तुम खुद आँखें खोलनी होगी.
आज मैं आप के सामने मुहम्मद द्वारा गढ़ी एक कहानी को पेश कर रहा हूँ जिस में मुहम्मद की हक़ीक़त है कि वह और उनका अल्लाह कितने अधकचरे थे. 
इसमें देखने क़ि बात ये है क़ि इसके तर्जुमान ने अल्लाह और मुहम्मद की कितनी मदद की है, 
कहानी को एक बार ब्रेकट में दिए गए लाल रंग को छोड़ कर पढ़िए, 
दूसरी बार इस के साथ पढ़िए.
आप को अंदाज़ा हो जायगा कि इन ओलिमा ने झूट को सच का रूप देने में इस्लाम की कितनी सहायता की है.



''और(वह वक़्त याद करो) जब मूसा ने अपने नौकर से फ़रमाया कि मैं(इस सफ़र में) बराबर चला जाऊँगा, यहाँ तक कि इस मौक़े पर पहुँच जाऊँ जहाँ दो दरया आपस में मिले हैं, या (यूं ही) ज़माना-ए दराज़ तक चलता रहूँगा. पस जब (चलते चलते) दोनों के जमा होने के मौक़े पर पहुँचे, अपनी मछली को दोनों भूल गए और उस (मछली) ने अपनी राह ली और चल दी. फिर जब दोनों (वहां से) आगे बढ़ गए (तो मूसा ने), अपने नौकर से फ़रमाया कि हमारा नाश्ता लाओ हमको तो इस सफ़र में(यानी आज की मंज़िल में) बड़ी तकलीफ़ पहुंची. (नौकर ने) कहा कि (लीजिए) देखिए (अजीब बात हुई) जब हम उस पत्थर के करीब ठहरे थे सो मैं (उस) मछली (के तज़करे) को भूल गया और मुझको शैतान ही ने भुला दिया, कि मैं इसका ज़िक्र करता और (वह क़िस्सा ये हुवा कि) उस (मछली) ने (ज़िदा होने के बाद) दरया में अजीब तौर पर अपनी राह ली. (मूसा ने हिक़ायत सुन कर) फ़रमाया यही वह मौक़ा है जिसकी हम को तलाश थी. सो दोनों अपने क़दमों के निशान देखते हुए उलटे लौटे. सो (वहां पहुँच कर) उन्हों ने हमारे बन्दों में से एक बन्दे (यानी ख़िज़िर) को पाया जिनको हमने अपनी (ख़ास) रहमत (यानी मक़बूलियत) दी थी और उनको हमने अपने पास से (एक ख़ास तौर का) इल्म सिखलाया था. मूसा ने (उनको सलाम किया और) उन से फ़रमाया कि क्या मैं आप के साथ रह सकता हूँ? इस शर्त से कि जो इल्मे-मुफ़ीद को (मिन जानिब अल्लाह) आप को सिखलाया गया है, इस में से आप मुझको भी सिखला दें. (इन बुज़ुर्ग ने) जवाब दिया आप को मेरे साथ (रह कर मेरे अफ़आल पर) सब्र न होगा. और (भला) ऐसे उमूर पर कैसे सब्र करेगे जो आप के अहाते-वाक़फ़ियत से बाहर हो. (मूसा ने) फ़रमाया आप इंशा अल्लाह हम को साबिर (यानी ज़ाबित) पाएँगे. और मैं किसी बात में आप के ख़िलाफ़ हुक्म नहीं करूँगा, (इन बुज़ुर्ग ने) फ़रमाया (कि अच्छा) अगर आप मेरे साथ रहना चाहते हैं तो (इतना ख़याल रहे कि) फिर मुझ से किसी बात के निसबत कुछ पूछना नहीं, जब तक कि उसके मुतालिक़ मैं ख़ुद ही इब्तेदाए ज़िक्र न कर दूं . फिर दोनों (किसी तरह) चले, यहाँ तक कि जब कश्ती में सवार हुए तो (इन बुज़ुर्ग ने) इस कश्ती में छेद कर दिया. (मूसा ने) फ़रमाया कि क्या आप ने इस कश्ती में इस लिए छेद किया (होगा) है कि इसके बैठने वालों को गर्क़ करदें? आप ने बड़ी भारी (यानी ख़तरा की) बात की. (इन बुज़ुर्ग ने) कहा क्या मैं ने कहा नहीं था कि आप को मेरे साथ सब्र न हो सकेगा. (मूसा ने) फ़रमाया (मुझको याद न रहा था सो) आप मेरी भूल (चूक) पर गिरफ़्त न कीजिए और मेरे इस मुआमले में कुछ ज़्यादा तंगी न डालिए.
फिर दोनों (कश्ती से उतर कर आगे) चले, यहाँ तक कि जब एक (कमसिन) लड़के से मिले तो (इन बुज़ुर्ग ने) उसको मार डाला . मूसा (घबरा कर) कहने लगे कि आपने एक बेगुनाह को जान कर मार डाला (और वह भी) बे बदले किसी जान के, बे शक आप ने (ये तो) बड़ी बेजा हरकत की. (उन बुज़ुर्ग ने) फ़रमाया क्या मैं ने कहा नहीं था कि आप को मेरे साथ से सब्र न हो सकेगा. (मूसा ने) फ़रमाया कि ( ख़ैर अब के और जाने दीजिए) अगर इस (मर्तबा) आप से किसी अम्र के मुतालिक़ कुछ पूछूं तो आप मुझको अपने साथ न राखिए. बेशक आप मेरी तरफ़ से उज़र (की इन्तहा) को पहुँच चुके हैं. फिर दोनों (आगे) चले फिर जब एक गाँव वालों पर गुज़र हुवा तो वहां वालों से खाने को माँगा कि (हम मेहमान है) सो उन्हों ने उनकी मेहमानी से इंकार कर दिया. इतने में इनको वहाँ पर एक दीवार मिली जो गिरा ही चाहती थी कि फिर उन बुज़ुर्ग ने उसको (हाथ के इशारे से) सीधा कर दिया. (मूसा ने) फ़रमाया अगर आप चाहते तो इस (काम) पर कुछ उजरत ही ले लेते.(उन बुज़ुर्ग ने) फ़रमाय कि अब ये वक़्त हमारे और आप के अलहदगी का है (जैसा कि आपने खुद शर्त की थी) मैं उन चीज़ों की हक़ीक़त आप को बतलाए देता हूँ जिन पर आप से सब्र न हुवा. जो कश्ती थी वह चन्द आदमियों की थी जो (इसके ज़रीए) इस दरया में मेहनत (मजदूरी) करते थे सो मैं ने चाहा कि इसमें ऐब डाल दूं और (वजेह इसकी ये थी कि) इन लोगों के आगे की तरफ़ एक (ज़ालिम) बादशाह था जो हर (अच्छी) कश्ती को ज़बरदस्ती पकड़ रहा है. और रहा वह लड़का तो उसके माँ बाप ईमान दार थे सो हमको अंदेशा (यानी तहक़ीक़) हुवा कि ये इन दोनों पर सर कशी और कुफ्र का असर न डाल दे. पस हम को ये मंज़ूर हुवा कि बजाए इसके कि इनका परवर दिगार इनको ऐसी औलाद दे जो पाकीज़गी (यानी दीन) में इस से बेहतर हो और ( माँ बाप के साथ) मुहब्बत करने में इस से बेहतर हो. और रही दीवार, सो वह दो यतीम बच्चों की थी जो इस शहर में (रहते) हैं और उस (दीवार) के नीचे उन का कुछ माल मदफ़ून था (जो उनके बाप से मीरास में पहुंचा है) और उनका बाप (जो मर गया) एक नेक आदमी था. सो आप के रब ने अपनी मेहरबानी से चाहा कि वह दोनों अपने जवानी (की उम्र) को पहुँचें और अपना दफ़ीना निकाल लें. आपके रब की रहमत से और (ये सारे काम मैं ने ब-अल्हाम इलाही किए हैं इन में से) कोई काम मैं ने अपनी राय से नहीं किया. लीजिए ये है हक़ीक़त इन (बातों) की जिन पर आप से सब्र न हो सका.
''सूरह कहफ़ १८ - पारा १५ आयत (५९-८२)  
कहानी के नाम पर ऐसी बेतुकी बकवास, वह भी इतनी बेढंगी.  
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 28 June 2018

Hindu Dharm Darshan 201



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (4)

महा भारत छिड़ने से पहले अर्जुन, भगवान् कृष्ण से कहते हैं ,
>"हे गोविंद ! 
हमें राज्य सुख अथवा इस जीवन से क्या लाभ !
क्योंकि जिन सारे लोगों के लिए हम उन्हें चाहते हैं , 
वे ही इस युद्ध भूमि में खड़े हैं. 
>>हे मधुसूदन !
जब गुरु जन, पितृ गण, पुत्र गण, पितामह, मामा, ससुर, पौत्र गण, साले 
और अन्य सारे संबंधी अपना अपना धन और प्राण देने के लिए तत्पर हैं 
और मेरे समक्ष खड़े हैं 
तो फिर मैं इन सबको क्यों मारना चाहूंगा,
भले ही वह मुझे क्यूँ न मार डालें ?
>>>हे जीवों के पालक !
मैं इन सबों से लड़ने के लिए तैयार नहीं, 
भले ही बदले में हमें तीनों लोक क्यूँ न मिलते हों.
इस पृथ्वी की तो बात ही छोड़ दें. 
भला धृतराष्ट्र को मार कर हमें कौन सी प्रसंनता मिलेगी ?" 
श्रीमद्  भगवद् गीता अध्याय 1  श्लोक ++-32-33-34-35 

* नेक दिल अर्जुन के मानव मूल्यों का के जवाब में,  
भगवान् कृष्ण अर्जुन को जवाब देते हैं - - - 
"श्री भगवान् ने कहा ---
>हे अर्जुन !
तुम्हारे मन में यह कल्मष आया कैसे ?
यह उस मनुष्य के लिए तनिक भी अनुकूल नहीं है 
जो जीवन के मूल्य को जानता हो.
इससे उच्च लोक की नहीं अपितु अपयश की प्राप्ति होती है.
>>हे पृथा पुत्र !
इस हीन नपुंसकता को प्राप्त न होवो 
यह तुम्हें शोभा नहीं देती.
हे शत्रुओं के दमन करता ! 
ह्रदय की क्षुद्र दुर्बलता को त्याग कर युद्ध के लिए खड़े हो जाओ.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय अध्याय  2  श्लोक 2 -3 

*कपटी भगवान् के निर्मूल्य विचार, पाठक ख़ुद फ़ैसला करें. 

और क़ुरआन कहता है - - - 
''ए नबी! कुफ़्फ़ारऔर मुनाफ़िक़ीन से जेहाद कीजिए और उन पर सख़्ती  कीजिए, उनका ठिकाना दोज़ख़ है और वह बुरी जगह है. वह लोग कसमें खा जाते हैं कि हम ने नहीं कही हाँला कि उन्हों ने कुफ़्र की बात कही थी और अपने इस्लाम के बाद काफ़िर हो गए.- - -सो अगर तौबा करले तो बेहतर होगा और अगर रू गरदनी की तो अल्लाह तअला उनको दुन्या और आख़िरत में दर्द नाक सज़ा देगा और इनका दुन्या में कोई यार होगा न मददगार.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (७२-७४)
"काफ़िरों को जहाँ पाओ मारो, बाँधो, मत छोड़ो जब तक कि इस्लाम को न अपनाएं."
"औरतें तुम्हारी खेतियाँ है, इनमे जहाँ से चाहो जाओ."
"इनको समझाओ बुझाओ, लतियाओ जुतियाओ फिर भी न मानें तो इनको अंधेरी कोठरी में बंद कर दो, हत्ता कि वह मर जाएँ."
"काफ़िर की औरतें बच्चे मिन जुमला काफ़िर होते हैं, यह अगर शब् खून में मारे जाएँ तो कोई गुनाह नहीं."

>>ऐसे सैकड़ों इंसानियत दुश्मन पैग़ाम इन जहन्नुमी ओलिमा को इनका अल्लाह देता है.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान


Wednesday 27 June 2018

Soorah Kahaf 18 Q 5

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*************

सूरह कहफ़ 18 
(क़िस्त-5 ) 
अल्लाह कहता है - - - 

''और आप अपने को उन लोगों के साथ मुक़य्यद रखा कीजिए जो सुब्ह शाम अपने रब की इबादत महज़ उसकी रज़ा जोई के लिए करते हैं और दुन्यावी ज़िन्दगी की रौनक़ के ख़याल से आप की आँखें उन से हटने न पाएँ और ऐसे लोगों का कहना न मानिए जिन के दिलों को हम ने अपनी याद से ग़ाफ़िल कर रखा है, वह अपनी नफ़सानी ख़वाहिश पर चलता है - - -
सूरह कहफ़ १८ - पारा १५ आयत (२८)

''और आप कह दीजिए कि हक़ तुम्हारे रब की तरफ़ से है सो जिसका जी चाहे ईमान ले आवे और जिस का जी चाहे काफ़िर बना रहे. बेशक हमने ऐसे ज़ालिमों के लिए आग तैयार कर रखी है कि इनकी क़नातें उनको घेरे होंगी और अगर फ़रयाद करेंगे तो ऐसे पानी से उनकी फ़रयाद पूरी की जाएगी जो तेल की तलछट की तरह होगा, मुँहों को भून डालेगा. क्या ही बुरा पानी होगा, और क्या ही बुरी जगह होगी.''
'सूरह कहफ़ १८ - पारा १५ आयत (२९)

यह मुहम्मदी आयतें इस बात का सुबूत हैं कि तुम को मुहम्मद अपने पयम्बरी के क़ैद ख़ाने में मुक़य्यद करने में कामयाब हैं. 
अब वक़्त की आवाज़ सुनो, जो तुम्हें इस से आज़ाद कराना चाहता है. 
बस मुसलमान से मोमिन बन जाओ और इस गाफ़िल करने वाले शैतान की मानिंद अल्लाह से नजात पाओ, कि जो ख़ुद अपनी कमज़ोरियों का शिकार है. आज़ाद होकर अपनी नफ़सानी और फ़ितरी ज़िन्दगी जियो. 
तुम से तुम्हारी नफ़्स इल्तेजा कर रही है कि अपनी नस्लों को मुकम्मल इन्सान बनाओ. 
नफ़्स क्या है ? 
सिर्फ़ ऐश और अय्याशी को नफ़्स नहीं कहते, 
ज़मीर की आवाज़ भी नफ़्स है, इन्सान की ज़ेहनी आज़ादी भी नफ़्स है, 
मोहम्मद तो ऐश ओ अय्याशी को ही नफ़्स जानते हैं, 
अंतर आत्मा जिसको पाने को तड़पती हो वह नफ़्स है. 
तुम्हारी अंतर आत्मा की आवाज़ इस वक़्त क्या है? 
ऊपर अल्लाह की बख़्शी हुई हूरें या अपने बच्चों का रौशन मुस्तक़बिल? 
ईमान की गहराइयों को गवाह कर के बतलाओ.
यह क़ुरान की साफ़ साफ़ आवाज़ है जिसको बड़े मौलाना शौकत अली थानवी ने उर्दू में अनुवाद किया है, किसी हदीसे-ज़ईफ़ की नक़्ल नहीं. 
देखो कि कितना बुरा अल्लाह है, 
कितना नाइंसाफ़ है 
कि ऐसे खौ़फ़ो से डराता है कि अगर तुम 
''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' कह कर मरते तो क्या से क्या हो सकता था, 
क्या तुम आतिशी क़नातों में घिरी दोज़ख में जलना पसंद करोगे ?
और तेल की तलछट की तरह पानी पीना ? 
जो मुँहों को भून डाले. 
बस बहुत हो गया, 
इस अक़ीदे को सर से झटक कर ज़मीन पर रख्खे कूड़ेदान में डाल दो.
याद रख्खो अल्लाह अगर है तो तुम्हारे बाप कि तरह शफ़ीक़ होगा, 
क़ुरआन में बके हुए मुहम्मदी अल्लाह की मानिंद नहीं. 
इस ज़िन्दगी को बेख़ौफ़ होकर जीना सीखो.

''बेशक जो लोग ईमान लाए और उन्हों ने अच्छे काम किए तो हम ऐसों का उज्र ज़ाया न करेंगे ऐसे लोगों के लिए हमेशा रहने के बाग़ हैं, इनके नीचे नहरें बहती होंगी और इनको वहाँ सोने के कँगन पहनाए जाएँगे और सब्ज़ रंग के कपड़े बारीक और दबीज़ रेशम पहनेंगे और वहाँ मसेहरियों पर टेक लगाए होंगे क्या ही अच्छा सिला है और क्या ही अच्छी जगह है. और आप उन में से दो लोगों का हाल बयान कीजिए 
(बे सर ओ पर की कहानी - - -आप पढ़ना पसंद न करेगे और मुझे लिखने में कराहियत होती है. जिसका इख़्तेसार है कि अल्लाह के न मानने वाले की कमाई जल कर साफ़ मैदान हो गया और उसे मानने वाला सुर्ख सुर्ख़रू रहा.")
सूरह कहफ़ १८ - पारा १५ आयत (३० -४४)

ऐ लोगो! 
ख़ुदा न ख़ास्ता अगर मुहम्मदी ईमान को लेकर ही उठे तो तुम्हारे ऊपर बड़ी ख़राबी होगी. सब्ज़ रंग के बारीक और दबीज़ रेशम के कपड़े पहने पहने तमाम उम्रे-मतनाही लिए बैठे रहोगे कि कोई काम काज न होगा, कोई ज़मीन न होगी 
जिसको उपजाऊ बनाने के लिए अपनी ज़िन्दगी वक़्फ़ करो, 
कोई चैलेंज न होगा, न कोई आगे की मंजिल, 
नफ़्स की कोई माँग न होगी, सब कुछ बे माँगे मिलता रहेगा. 
अंगूर और खजूर खाने की तलब भर हुई कि 
उसकी शाखें तुम्हारे होटों के सामने होंगी. 
सोने का कंगन होगा ? उसकी क़ीमत तो इसी दुन्या में है, 
जिसे तुम खो रहे हो, 
वहाँ सोने के मकान होंगे जिसमें सोने का कमोड होगा, 
फिर सोना लादना हिमाक़त ही लगेगा. 
आख़िर ऐसी बे मक़सद ज़िन्दगी का अंजाम क्या होगा? 
फिर याद आएगी यही अपनी यह दुन्या जिसको तुम गँवा रहे हो, 
मोहम्मदी झांसों में आकर.

''अल्लाह ज़मीन से पहाड़ों को हटा कर ज़मीन पर रोज़े-महशर सजाता है, ईमान का बदला देता है और फिर ईमान न लाने वाले मातम करते हैं," 
ये मुख़्तसर है इन आयतों का. 
ये नौटंकी क़ुरआन में बार बार देखने को मिलेगी"
सूरह कहफ़ १८ - पारा १५ आयत (४५-४९)

''मैंने उनको न आसमान और ज़मीन को पैदा करने के वक़्त बुलाया, और न ख़ुद उनके पैदा होने के वक़्त और मैं ऐसा न था कि गुमराह करने वालों को अपना दोस्त बनाता. और उस दिन हक़ तअल्ला फ़रमाएगा जिन को तुम हमारा शरीक समझते थे उनको पुकारो, वह उनको पुकारेंगे सो वह उनको जवाब ही न देंगे और हम उनके दरमियान में एक आड़ कर देंगे और मुजरिम लोग दोज़ख को देखेंगे कि वह उस में गिरने वाले हैं और इससे कोई बचने की राह न पाएगा."
सूरह कहफ़ १८ - पारा १५ आयत (५१ ५३)

मतलब ये कि अल्लाह ने तुमको बड़ी आसानी से अकेले ही जन दिया, 
उसको किसी दाई, आया, नर्स या डाक्टर की ज़रूरत नहीं थी.
मुसलमानों! 
क्यूँ अपनी रुसवाई ज़माने भर में करवाने पर आमादः हो ? 
सारा ज़माना इन आयात को पढ़ रहा है और तुम पर थूक रहा है. 
क्या सदियों से इस्लामी बेड़ियों में जकड़े जकड़े तुम को इन बेड़ियों से प्यार हो गया है? 
चलो ठीक है ! 
मगर क्या ये जेहालत की बेड़ियाँ अपने बच्चों के पैरों में भी पहनाने का इरादा है? 
दुन्या के करोरो इंसानों को जगाने का वक़्त, 
इक्कीसवीं सदी तुम को आगाह कर रही है कि 
''तुम्हारी दास्ताँ रह जाएगी बस दस्तानों में.''

"और हम ने इस क़ुरआन में लोगों की हिदायत के वास्ते हर क़िस्म के उम्दा मज़ामीन तरह तरह से बयान फ़रमाए हैं और आदमी झगड़े में सब से बढ़ कर है.''
सूरह कहफ़ १८ - पारा १५ आयत (५४)

ऐ दुश्मने-इंसानियत मुहम्मदी अल्लाह ! 
तूने शर, बोग्ज़, नफ़रत, जेहालत, बे ईमानी और हिमाक़त ही बका है, 
इस क़ुरआन में. 
अपनी ख़ूबियाँ बखानने वाले! 
क्यूँ न आदमी को शरीफ़ तबअ मख़्लूक़ बनाया,? 
अपने पैग़म्बर को पहले तालीम दी होती कि बातें करना सीखे, 
फिर सच बोलना सीखे, 
उसके बाद इंसानों की ज़िन्दगी की क़ीमत आँके 
कि जिसने लाखों सदियों से तेरी आपदाओं से बच बचा कर मानव जति को यहाँ तक ले आई है. 
वह तो इसे काफ़िर, मुशरिक, मुनकिर, मुल्हिद, यहाँ तक कि ईसाइयों और मूसाइयों को जानवरों की तरह मार देने की तअलीम दे रहा है. 
 ऐ मुसलमानों !
कब तक ऐसे अल्लाह और उसके रसूल के आगे सजदा करते रहोगे?? ?   



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 26 June 2018

Hindu Dharm Darshan 200



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (3) 

>अर्जुन ने वहां पर दोनों पक्षो की सेनाओं के मध्य में अपने चाचा, ताऊओं, पितामहों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों, मित्रों, ससुरों और शुभचिंतकों को भी देखा.
>>(सरल स्वभाव अर्जुन कहता है - - -)
हे कृष्ण ! 
इस प्रकार युद्ध की इच्छा रखने वाले अपने मित्रों तथा संबंधियों को अपने समक्ष उपस्थित देख कर, मेरे शरीर के अंग काँप रहे हैं और मेरा मुंह सूखा जा रहा है.
>>> मेरा सारा शरीर काँप रहा है, मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं, 
मेरा गाण्डीव धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है. 
>>>>मैं यहाँ अब और खड़े रहने में असमर्थ हूँ. 
मैं अपने को भूल रहा हूँ और मेरा सिर चकरा रहा है. 
हे कृष्ण !
 मुझे तो केवल अमंगल के करण दिख रहे है. 
>>>>>हे कृष्ण ! 
इस युद्ध में अपने ही स्वजनों का बद्ध करने से न तो मुझे कोई अच्छाई दिखती है और न, मैं उस से किसी प्रकार का विजय, राज्य या सुख की इच्छा रखता हूँ.  
 श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 1    श्लोक 26 -28 -29 -30- 31  
   श्री भगवान ने कहा --
>तुम पाण्डित्य पूर्ण वचन कहते हुए उनके लिए शोक कर रहे हो, 
जो शोक करने योग्य नहीं. 
जो विद्वान् होते हैं, वह न तो जीवित के लिए,
 न ही मृत के लिए शोक करते हैं.  
*(भगवान अर्जुन को गुमराह कर रहे हैं ) 
>>जिस शरीर धारी आत्मा इस शरीर में बाल्यावस्था से तरुणावस्था में 
और फिर वृधा वस्था में निरंतर अग्रसर होता रहता है, 
उसी प्रकार मृत्यु होने पर आत्मा दूसरे शरीर में चला जाता है. 
धीर व्यक्ति ऐसे परिवर्तन से मोह को प्राप्त नहीं होता है.  
>>हे कुन्ती पुत्र ! 
सुख और दुःख का क्षणिक उदय और काल क्रम में उनका अन्तर्धान होना, 
सर्दी तथा गर्मी के ऋतुओं के आने जाने के सामान है.
हे भरतवंशी ! 
वे इन्द्रीय बोध से उत्पन्न होते हैं 
और मनुष्य को चाहिए कि अविचल भाव से उन्हें सहन करना सीखे.
श्रीमद् भगवद भगवद् गीता अध्याय 2     श्लोक 11-  13 -14  
*अर्जुन की ठोस मार्मिक और तार्तिक भावनाएं 
और कृष्ण के कुरुर और अमानवीय मशविरे? 
मनुवाद के इस घृणित विचारों से से गीता की शुरुआत होती है 
और अंत तक युद्ध-पाप का दमन गीता नहीं छोडती. 
***
और क़ुरआन कहता है - - - 
''निकल पड़ो थोड़े से सामान से या ज़्यादः सामान से और अल्लाह की राह में अपने माल और जान से जेहाद करो, यह तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम यक़ीन करते हो.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (४१)
''जो लोग अल्लाह और क़यामत के दिन पर ईमान रखते हैं वह अपने माल ओ जान से जेहाद करने के बारे में आप से रुख़सत न मांगेंगे अलबत्ता वह लोग आप से रुख़सत मांगते हैं जो अल्लाह और क़यामत के दिन पर ईमान नहीं रखते और इन के दिल शक में पड़े हैरान हैं.
''सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (४५)
''आप कह दीजिए तुम्हारे बाप, तुम्हारे बेटे, तुम्हारे भाई और तुम्हारी बीवियां और तुम्हारा कुनबा और तुम्हारा माल जो तुमने कमाया और वह तिजारत जिस में से निकासी करने का तुम को अंदेशा हो और वह घर जिसको तुम पसंद करते हो, तुमको अल्लाह और उसके रसूल से और उसकी राह में जेहाद करने से ज़्यादः प्यारे हों तो मुन्तज़िर रहो, यहाँ तक की अल्लाह अपना हुक्म भेज दे. और बे हुकमी करने वाले को अल्लाह मक़सूद तक नहीं पहुंचता'' 
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (२४)
इन्तहा पसंद मुहम्मद, ताजदारे मदीना, सरवरे कायनात, न ख़ुद  चैन से बैठते कभी, 
न इस्लाम के जाल में फंसने वाली रिआया को कभी चैन से बैठने दिया. 
अगर कायनात की मख्लूक़ पर क़ाबू पा जाते तो जेहाद के लिए दीगर कायनातों की तलाश में निकल पड़ते. 
अल्लाह से धमकी दिलाते हैं कि तुम मेरे रसूल पर अपने अज़ीज़ तर औलाद, 
भाई, शरीके-हयात और पूरे कुनबे को क़ुर्बान करने के लिए तैयार रहो, 
वह भी बमय अपने तमाम असासे के साथ जिसे तिनका तिनका जोड़ कर आप ने अपनी घर बार की ख़ुशियों के लिए तैयार किया हो. 
इंसानी नफ़्सियात से नावाक़िफ़ पत्थर दिल मुहम्मद क़ह्हार अल्लाह के जीते जागते रसूल थे. 
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Soorah Kahaf 18 Q 4

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*****************
सूरह कहफ़ 18 
(क़िस्त-4) 
इंशा अल्लाह का मतलब है ''(अगर) अल्लाह ने चाहा तो।'' 
सवाल उठता है कि कोई नेक काम करने का इरादा अगर आप रखते हैं तो अल्लाह उसमे बाधक क्यूँ बनेगा? अल्लाह तो बार कहता है नेक काम  करो. 
हाँ कोई बुरा काम करने जा रहो तो ज़रूर इंशा अल्लाह कहो, 
अगर वह राज़ी हो जाए? 
वह वाक़ई अगर अल्लाह है तो इसके लिए कभी राज़ी न होगा. 
अगर वह शैतान है तो इस की इजाज़त दे देगा. 
अगर आप बुरी नियत से बात करते हैं तो मेरी राय ये है कि इसके लिए इंशा अल्लाह कहने कि बजाए 
''इंशा शैतानुर्रजीम'' 
कहना दुरुस्त होगा. इसबात का गवाह ख़ुद अल्लाह है 
कि वह शैतान से बुरे काम कराता है. 
आपने कोई क़र्ज़ लिया और वादा किया कि मैं फलाँ तारीख़ को लौटा दूंगा. 
आप के इस वादे में इंशा अल्लाह कहने की ज़रुरत नहीं, 
क्यूँ कि क़र्ज़ देने वाले के नेक काम में अल्लाह की मर्ज़ी यक़ीनी है, 
तो वापसी के काम में क्यूँ न होगी? 
चलो मान लेते है कि उस तारीख़ में अगर आप नहीं लौटा पाए तो कोई फाँसी नहीं, जाओ सुलूक करने वाले के पास, 
अपने आप को ख़ता वार की तरह उसको पेश कर दो. 
वह बख़्श दे या जुरमाना ले, उसे इसका हक होगा. 

रघु कुल रीति सदा चलि आई, प्राण जाएँ पर वचन न जाई.
इसी सन्दर्भ में भारत सरकार का रिज़र्व बैंक गवर्नर भरतीय नोटों पर वचन देता है- - -
''मैं धारक को एक सौ रूपए अदा करने का वचन देता हूँ'' 
दुन्या के सभी मुमालिक का ये उसूल है, 
उसमें सभी इस्लामी मुल्क भी शामिल है. 
जहाँ लिखित मुआमला हो, चाहे इक़रार नामें हों या फिर नोट, 
कहीं इंशा अल्लाह का दस्तूर नहीं है. 
इंशा अल्लाह आलमी सतेह पर बे ईमानी की अलामत है. 
मुहम्मद ने मुसलमानों के ईमान को पुख़्ता नहीं, 
बल्कि कमज़ोर कर दिया है, 
ख़ास कर लेन देन के मुआमलों में. 
क़ुरआनी आयतें उन पर वचन देने की जगह 
''इंशा अल्लाह'' 
कहने की हिदायत देती हैं, इसके बग़ैर कोई वादा या अपने आइन्दा के अमल को करने की बात को गुनहगारी बतलाती हैं. 
आम मुसलमान इंशा अल्लाह कहने का आदी हो चुका है.
उसके वादे, क़ौल,क़रार, इन सब मुआमलों में अल्लाह की मर्ज़ी पर मुनहसर करता है कि वह पूरा करे या न करे. 
इस तरह मुसलमान इस गुंजाइश का नाजायज़ फ़ायदा ही उठाता है, 
नतीजतन पूरी क़ौम बदनाम हो चुकी है. 
मैंने कई मुसलामानों के सामने नोट दिखला कर पूछा कि अगर सरकारें इन नोटों में इंशा अल्लाह बढ़ा दें और यूँ लिखें कि 
''मैं धारक को एक सौ रूपए अदा करने का वचन देता हूँ , 
इंशा अल्लाह '' 
तो अवाम क्या इस वचन का एतबार करेगी?, 
उनमें कशमकश आ गई. उनका ईमान यूँ पुख़्ता हुवा है कि अल्लाह उनकी बे ईमानी पर राज़ी है, गोया कोई गुनाह नहीं कि बे ईमानी कर लो. 
इस मुहम्मदी फ़ार्मूले ने पूरी क़ौम की मुआशी हालत को बिगाड़ रख्खा है. 
सरकारी अफ़सर मुस्लिम नाम सुनते ही एक बार उसको सर उठा कर देखता है, 
फिर उसको खँगालता है कि लोन देकर रक़म वापस भी मिलेगी ? 
मेरे लाखों रूपये इन चुक़त्ता मुक़त्ता दाढ़ी दार मुसलमानों में डूबा है. 
क़ौमी तौर पर मुसलमान पक्का तअस्सुबी (पक्षपाती) होता है. 
पक्षपात की वजेह से भी मुसलमान संदेह की नज़र से देखा जाता है .



मेरी तामीर में मुज़्मिर है इक सूरत ख़राबी की (ग़ालिब)



ग़ालिब का ये मिसरा मुसलमानों पर सादिक़ है कि इस्लामी तालीम ने उनको इंसानी तालीम से महरूम कर दिया है. 
मुसलमानों के लिए इससे नजात पाने का एक ही हल है 
कि वह तरके-इस्लाम करके दिलो-ओ-दिमाग़ से मोमिन बन जाएँ.

दीन दार मोमिन.
दीन= दयानत (सत्यता) + मोमिन = ईमान दार (इस्लामी ईमान नहीं)
*

अब चलते है इन के ईमान पर - - -

''और आप किसी काम के निसबत यूँ न कहा कीजिए कि मैं इसको कल करूँगा, मगर ख़ुदा के चाहने को मिला दिया कीजिए. और जब आप भूल जाएँ तो रब का ज़िक्र किया कीजिए. और कह दिया कीजिए कि मुझको उम्मीद है कि मेरा रब मुझ को दलील बनने के एतबार से इस से भी नज़दीक तर बात बतला दे।''
सूरह कहफ़ १८ - पारा १५ आयत (२४)



मुलाहिज़ा फ़रमाइए,
है न मुहम्मदी अल्लाह की तअलीम. इंशा अल्लाह


''और वह लोग अपने ग़ार में तीन सौ बरस तक रहे और नौ बरस ऊपर और है. आप कह दीजिए कि ख़ुदा तअला इनके रहने को ज्यादः जानता है तमाम आसमानों और ज़मीन का ग़ैब उसको है. वह कैसा कुछ देखने वाला और कैसा कुछ सुनने वाला है. इनका ख़ुदा के सिवा कोई मददगार नहीं और न अल्लाह तअला अपने हुक्म में किसी को शरीक करता है.''

सूरह कहफ़ १८ - पारा १५ आयत (२५-२६)



मुहम्मद एक तरफ़ अपनी भाषा उम्मियत में क़्फ़े का एलान भी करते हैं, 
फिर लगता है इसका खंडन भी कर रहे हैं कि 
''आप कह दीजिए कि ख़ुदा तअला इनके रहने को ज्यादः जानता है.'
वह ख़ुदसर थे किसी की दख़्ल अनदाज़ी उनको गवारा न थी , 
इसका एलान वह ख़ुदा ए तअला बनकर करते हैं कि 
''अपने हुक्म में किसी को शरीक करता है.''



''और जो आप के रब की किताब वह्यी के ज़रीए आई है उसको पढ़ दिया कीजिए, इसकी बातों को कोई बदल नहीं सकता. और आप ख़ुदा के सिवा कोई और जाए पनाह नहीं पाएँगे''
सूरह कहफ़ १८ - पारा १५ आयत (27)



मुसलमानों! 
मुहम्मदी अल्लाह अगर वाक़ई अल्लाह होता तो क्या इस क़िस्म की बातें करता? 
जागो कि तुम को सदियों के वक्फ़े में कूट कूट कर इस अक़ीदे का ग़ुलाम बनाया गया है.

***

Friday 22 June 2018

सूरह कहफ़ 18 (क़िस्त-3)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*************


सूरह कहफ़ 18 
(क़िस्त-3) 


(इस क़िस्त में ब्रेकट में रखे अल्फ़ाज़ तर्जुमा निगार के हैं, अल्लाह के नहीं.ऐसे ही पूरे क़ुरआन में तर्जुमान अल्लाह का उस्ताद बना हुवा है.)

''सो हमने इस ग़ार में इनके कानो पर सालहा साल तक (नींद का पर्दा) डाल दिया. फिर हमने उनको उठाया ताकि हम मालूम कर लें इन दोनों गिरोहों में से कौन सा (गिरोह) इनके रहने की मुद्दत से ज़्यादः वाकिफ़ है. हम इनका वाक़ेआ आप से ठीक ठीक बयान करते हैं, वह लोग चन्द नव जवान थे जो अपने रब पर ईमान लाए थे, हमने उनकी हिदायत में और तरक्क़ी कर दी. और हमने उनके दिल और मज़बूत कर दिए, जब वह (दीन में) पुख़ता होकर कहने लगे हमारा रब तो वह है जो आसमानों और ज़मीन का रब है. हम तो इसे छोड़ कर किसी माबूद की इबादत न करेंगे. (क्यूँकि) इस सूरत में यक़ीनन हम ने बड़ी बेजा बात कही है, जो हमारी क़ौम है, उन्हों ने ख़ुदा को छोड़ कर और माबूद क़रार दे रखे हैं. ये लोग इन (माबूदों पर) कोई खुली दलील क्यूँ नहीं लाते? सो इस शख़्स से ज़्यादः कौन गज़ब ढाने वाला शख़्स होगा जो अल्लाह पर ग़लत तोहमत लगावे. और जब तुम उन लोगों से अलग हो गए हो और उनके माबूदों से भी, मगर अल्लाह से अलग नहीं हुए तो तुम फलाँ ग़ार में जाकर पनाह लो. तुम पर तुम्हारा रब अपनी रहमत फैला देगा और तुम्हारे लिए तुम्हारे इस काम में कामयाबी का सामान दुरुस्त करेगा.''
सूरह कहफ़ १८ -१५ वां पारा आयत(८-१६)

कहानी का मुद्दा मुहम्मद के बत्न में ही रह गया '' दोनों गिरोहों में से कौन सा (गिरोह) इनके रहने की मुद्दत से ज़्यादः वाकिफ़ है.'' कौन से दो गिरोह? 
अल्लाह ही जानें या फिर मुल्ला जी जानें. 
फिर अल्लाह झूटों क़ी तरह बातें करता है

''हम इनका वाक़ेआ आप से ठीक ठीक बयान करते हैं'' 
और झूट उगलने लगता है कि वह नव मुस्लिम थे, इस लिए उसने ''उनकी हिदायत में और तरक्क़ी कर दी. और हमने उनके दिल और मज़बूत कर दिए'' 

यानी ये चारो मक्का वालों के लिए फेंका जाता है कि वह बेजा बातें करते हैं कि मूर्ति पूजा करते हैं और उनके फेवर में कोई दलील नहीं रखते. 
मुहम्मद ऐसे लोगों को गज़ब ढाने वाला बतलाते है. 
मक्का वालों को आप बीती बतलाते हैं कि वह इस्लाम का झंडा लेकर उन क़ुरैशियों और अरबों से अलग हो गए.
मुहम्मद की हर बात में सस्ती सियासत और बेहूदा पेवंद कारी की बू आती है. अफ़सोस कि मुसलमानों क़ी नाकें बह गई हैं. 
ऐसा घिनावना मज़हब जिसको अपना कहने में शर्म आए. 
बस इन को इस्लामी ओलिमा इस के लिए, मारे और बांधे हुए हैं.

''और ऐ (मुख़ातब) तू इनको जागता हुवा ख़याल करता है, हालांकि वह सोते थे. और हम उनको (कभी) दाहिनी तरफ़ और (कभी) बाएँ तरफ़ करवट देते थे और इनका कुत्ता दह्जीज़ पर अपने दोनों हाथ फैलाए हुए था. अगर ऐ (मुख़ातब) तू इनको झाँक कर देखता तो उनसे पीठ फेर कर भाग खड़ा होता, तेरे अन्दर उनकी दहशत समां जाती और इस तरह हमने उनको जगाया ताकि वह आपस में पूछ ताछ करें. उनमें से एक कहने वाले ने कहा कि तुम (हालाते-नर्म) में किस क़दर रहे होगे ? बअज़ों ने कहा कि (ग़ालिबन) एक दिन या एक दिन से भी कुछ कम रहे होंगे (दूसरे बअज़ों ने) कहा ये तो तुम्हारे ख़ुदा को ही ख़बर है कि तुम किस क़दर रहे. अब अपनों में किसी को ये रुपया दे कर शहर की तरफ़ भेजो फिर वह शख़्स तहक़ीक़ करे कि कौन सा खाना (हलाल) है. सो इसमें से तुम्हारे पास कुछ खाना ले आवे और (सब काम) ख़ुश तदबीरी (से) करे और किसी को तुम्हारी ख़बर न होने दे. (क्यूं कि अगर) वह लोग कहीं तुम्हारी ख़बर पा जावेंगे तो तुमको या तो पत्थर से मार डालेगे फिर (जबरन) अपने तरीकों में ले लेंगे और (ऐसा हुवा तो) तुम को भी फ़लाह न होगी. और इस तरह (लोगों को) मुत्तेला कर दिया. ताकि लोग इस बात का यक़ीन कर लें कि अल्लाह तअला का वादा सच्चा है. और यह कि क़यामत में कोई शक नहीं. (वह वक़्त भी क़ाबिले-ज़िक्र है) जब कि (इस ज़माने के लोग) इन के मुआमले में आपस में झगड़ रहे थे. सो लोगों ने कहा उनके पास कोई इमारत बनवा दो, इनका रब इनको खूब जनता है. जो लोग अपने काम पर ग़ालिब थे उन्हों ने कहा हम तो उनके पास एक मस्जिद बनवा देंगे. (बअज़े लोग तो) कहेंगे कि वह तीन हैं और चौथा उनका कुत्ता है. और (बअज़े) कहेंगे वह पाँच हैं छटां उनका कुत्ता (और) ये लोग बे तहक़ीक़ बात को हाँक रहे हैं और (बअज़े) कहेगे कि वह सात हैं, आठवां उनका कुत्ता. आप कह दीजिए कि मेरा रब उनका शुमार ख़ूब (सही सही) जानता है उनके (शुमार को) बहुत क़लील लोग जानते हैं तो सो आप उनके बारे में बजुज़ सरसरी बहेस के ज़्यादः बहेस न कीजिए और आप उनके बारे में इन लोगों से किसी से न पूछिए.''
सूरह कहफ़ १८ -१५ वां पारा आयत(१८-२२)

मुसलमान संजीदगी के साथ ये पाँच आयतें अपने ज़ेहनी और ज़मीरी कसौटी पर रख कर कसें. 
अल्लाह जो साज़गारे-कायनात है, इस तरह से आप के साथ मुख़ातिब है ? 
इसके बात बतलाने के लहजे को देखिए, कहता है कि कुत्ता दोनों हाथ फैलाए था? चारों पैर के सिवा कुत्ते को हाथ कहाँ होते हैं जो इंसानों की तरह फैलाता फिरे. 
अपना क़ुरआनी मसअला हराम, हलाल को उस वक़्त भी मुहम्मद लागू करना नहीं भूलते. खुद इंसानी जानों को पथराव करके सज़ा की ज़ालिमाना उसूल को उन पहाड़ियों का बतलाते हैं जो सैकड़ों साल इन से पहले हुवा करते थे, 
हर मौके पर अपनी क़यामत की डफ़ली बजाने लगते हैं. 
पागलों की तरह बातें करते है, 
एक तरफ़ उन लोगों को तनहा छुपा हुवा बतलाते हैं, 
दूसरी तरफ इकठ्ठा भीड़ दिखलाते हैं कि कोई कहता है इन असहाब के लिए इमारत बनवा देंगे और अपने काम में ग़ालिब लोग उनके लिए मस्जिद बनवाने की बातें करते हैं. 
उनकी तादाद पर ही अल्लाह क़यास आराईयाँ करता है कि कुत्ते समेत कितने असहाबे-कुहफ़ थे? 
कहता है बंद करो क़यास आराईयाँ असली शुमार तो मैं ही जनता हूँ कि मैं अल्लाह हूँ, जो हर जगह गवाही देने के लिए मुहम्मद के लिए बे किराये के टट्टू की तरह हाज़िर रहता हूँ.

मुसलमानों!
 क्या है तुम्हारे इस क़ुरआन में? जो इसके पीछे बुत के पुजारी की तरह आस्था वान बने खड़े रहते हो? 
तुमसे बेहतर वह बुत परस्त हैं जो बामानी तहरीर तो रखते और गाते हैं. 
यह जिहालत भरी लेखनी क्या किसी के लिए इअबादत की आवाज़ हो सकती है? 
कोई नहीं है तुम्हारा दुश्मन, 
तुम ख़ुद अपने मुजरिम और दुश्मन हो .
ऐसी वाहियात तसनीफ़ को पढ़ के हर इन्सान तुमसे नफ़रत करेगा कि तुम 
''पहाड़ वाले उसकी अजाएबात में से कुछ तअज्जुब की चीज़ हो'' 
तुम इस धरती का हक़ अदा करने की बजाए, उस पर बोझ हो, 
क्यूं कि तुम्हारा यक़ीन तो इस धरती पर न होकर ऊपर पे है. 
तुम्हारी बेग़ैरती का आलम ये है कि धरती के लिए किए गए ईजाद को सब से पहले भोगने लगते हो, चाहे हवाई सफ़र हो या टेलीफोन, या जेहाद के लिए भी गोले बारूद जो कचरा की तरह बेकार हो चुका है, क्यूँकि तुम्हारे लिए वही आइटम बम है. 
वह अपने पुराने हथियार तुम को बेच कर ठिकाने लगाते हैं, 
तुम उन्हें सोने के भाव ख़रीद लेते हो. 
तुम उनको लेकर मुस्लिम देशों में ही उन बेगुनाहों का ख़ून बहाते हो 
जो हराम ज़ादे ओलिमा के फन्दों में है. 
शर्म तुमको मगर नहीं आती. 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 21 June 2018

Hindu Dharm Darshan 199


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा

गीता का संक्षेप परिचय इस तरह से है कि कौरवों और पांडुओं के बीच हुए युद्ध के दौरान पांडु पुत्र अर्जुन के सारथी (कोचवान) बने भगवान कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं, अर्जुन उनके उपदेश और निर्देश को सुनता है, शंका समाधान करवाता है, 
भगवान् उसे जीवन सार समझाते हैं, दोनों की यही वार्तालाप गीता है. 

अंधे राजा धृतराष्ट्र का सहायक संजय युद्ध का आँखों देखा हाल सुनाता है. 
संजय गीता का ऐसा पात्र है कि जिसमें अलौकिक दूर दृष्टि होती है. 
वह कृष्ण और अर्जुन के बीच हुई बात चीत को अक्षरक्षा अंधे धृतराष्ट्र को सुनाता है.
>धृतराष्ट्र ने पूछा  ---
धर्म भूमि कुरुक क्षेत्र युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पांडु के पुत्रों ने क्या किया.
>>संजय ने कहा --- 
हे राजन ! 
पांडु पुत्रों द्वारा सेना की व्यूह रचना देख कर राजा दुर्योधन अपने गुरु के पास गया और उसने यह शब्द कहे---
>>>हे आचार्य ! 
पांडुओं की विशाल सेना को देखें, जिसे आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपद के पुत्र ने इतने कौशलता से व्यवस्थित किया है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय- 1  श्लोक  1-2-3 

*गीता क्या है ? 
नमूने के तौर पर उपरोक्त तीन श्लोक प्रस्तुत हैं . 
अंधे धृतराष्ट्र को संजय अपनी दूर दृष्टिता द्वारा मैदान ए जंग का आँखों देखा हाल सुनाता है, 
इसी सन्देश वाहक के सन्देश द्वारा गीता की रचना होती है.
संजय की ही तरह मुहम्मद ने क़ुरआन को आसमान से वह्यि (ईश वाणियाँ) ढोकर लाने वाले फ़रिश्ता जिब्रील को गढ़ा है, जो क़ुरआनी आयतें अल्लाह से ले कर मुहम्मद के पास आता  है और इनको उसका पाठ पढ़ाता है. मुहम्मद उसे याद करके लोगों के सामने गाते हैं. 
ऐसे चमत्कार को आज, इस इक्कीसवीं सदी में भी बुद्धिहीन हिन्दू और मुसलमान ओढ़ते और बिछाते हैं. 
कुरआन कहता है ---  
''ये किताब ऐसी है जिस में कोई शुबहा नहीं, राह बतलाने वाली है, अल्लाह से डरने वालों को." 
(सूरह अलबकर -२ पहला पारा अलम आयत 2 ) 
आख़िर अल्लाह को इस क़द्र अपनी किताब पर यक़ीन दिलाने की ज़रूरत क्या है? 
इस लिए कि यह झूटी है. 
क़ुरआन में एक ख़ूबी या चाल यह है कि मुहम्मद मुसलामानों को अल्लाह से डराते बहुत हैं. मुसलमान इतनी डरपोक क़ौम बन गई है कि अपने ही अली और हुसैन के पूरे ख़ानदान को कटता मरता खड़ी देखती रही, 
अपने ही ख़लीफ़ा उस्मान ग़नी को क़त्ल होते देखती रही, 
उनकी लाश को तीन दिनों तक सड़ती, खड़ी देखती रही, 
किसी की हिम्मत न थी की उसे दफ़नाता, 
यहूदियों ने अपने कब्रिस्तान में जगह दी तो मिटटी ठिहाने लगी. 
मगर मुसलमान इतना बहादुर है 
कि जन्नत की लालच और हूरों की चाहत में सर में कफ़न बाँध कर जेहाद करता है. 
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 20 June 2018

सूरह कहफ़ 18 (क़िस्त-2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
 हदीसें सिर्फ़ "बुख़ारी'' 
और  ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*************


सूरह कहफ़ 18 
(क़िस्त-2) 

अल्लाह सूरह कहफ़ में कहफ़ (गुफा ) से हट कर ईसा की बातें करने लगता है - - - 

''और ताकि लोगों को डराइए जो (यूं) कहते हैं (नौज़ बिल्लाह) कि अल्लाह तअला औलाद रखता है, न कोई इसकी कोई दलील उनके पास है, न उनके बाप दादों के पास थी. बड़ी भारी बात है जो उनके मुँह से निकलती है. वह लोग बिलकुल झूट बकते हैं,''
सूरह कहफ़ १८ -१५ वां पारा आयत(५)

मुहम्मद सिर्फ़ काफ़िर, मुशरिक से ही नहीं सारे ज़माने से बैर पालते थे. 
यहाँ इशारा ईसाइयों की तरफ़ है जो ईसा को ख़ुदा का बेटा मानते हैं. 
तुम ख़ुदा के नबी हो सकते हो,वह तुमको आप जनाब करके चोचलाता है, 
कोई दूसरा ख़ुदा का बेटा क्यूँ नहीं हो सकता ?
क्यूँ ? अल्लाह के लिए क्या मुश्किल है ''कुन फियाकून '' का फ़ॉर्मूला उसके पास है, एक अदद बेटा बना लेना उसके लिए कौन सी मुश्किल है?

 ईसा कट्टर पंथी यहूदी धर्म का एक बाग़ी यहूदी था. 
एक मामूली बढ़ई यूसुफ़ क़ी मंगेतर मरियम थी, 
जिनका शादी से पहले ही अपने मंगेतर के साथ यौन संबंध हो गया था और नतीजतन वह गर्भ वती हो गई, 
बच्चा हुआ जो यहूदी धर्म में अमान्य था, 
जैसे आज मुसलमानों में ऐसे बच्चे नाजायज़ क़रार पाते हैं. 
ईसा को बचपन से ही नाजायज़ होने का तअना सुनना पड़ा. 
जिसकी वजह से वह अपने माँ बाप से चिढ़ने लगा था. 
वह चौदह साल का था, माँ बाप उसे अपने साथ योरोसलम तीर्थ पर ले गए, 
जहाँ वह गुम हो गया, बहुत ढूँढने के बाद वह योरोसलम के एक मंदिर में मरियम को वह मिला. मरियम ने झुंझला कर ईसा घसीटते हुए कहा,
''तुम यहाँ हो और तुम्हारा बाप तुम्हारे लिए परेशान है.'' 
ईसा का जवाब था मेरा कोई बाप और माँ नहीं, 
मैं ख़ुदा का बेटा हूँ और यहीं रहूँगा. 
ईसा अड़ गया, यूसुफ़ और मरियम को ख़ाली हाथ वापस लौटना पड़ा. 
ईसा के इसी एलान ने उसे ख़ुदा का बेटा बना दिया. 
वह कबीर क़ी तरह यहूदी धर्म क़ी उलटवासी कहने लगा, 
थे न दोनों समाज के नाजायज़ संतान.
वह धर्म द्रोही हुवा और सबील पर यहूदी शाशकों ने उसे लटका दिया. 
इस तरह वह  ''येसु ख़ुदा बाप का बेटा'' बन गया. 
और उसके नाम से ही एक धर्म बन गया. 
ईसाई उसे कुंवारी मारिया का बेटा कहते हैं, 
जिसमें झूट और अंध विश्वास न हो तो वह धर्म कैसा? ''

"और आप जो उन पर इतना ग़म खाते (हैं) सो शायद आप उनके पीछे अगर यह लोग इस मज़मून (क़ुरआनी) पर ईमान न लाए तो ग़म से अपनी जान दे देंगे (यानी इतना गम न करें कि क़रीब-ब-हलाकत कर दे).''
सूरह कहफ़ १८ -१५ वां पारा आयत(६)

देखिए कि मुहम्मद ख़ुद को अल्लाह से कैसा दुलरा रहे हैं. 
लगता है अल्लाह और उनका चचा भतीजे का रिश्ता हो, 
क्यूँ कि बेटे तो हो नहीं सकते. 
मुल्ला कहता है क़ुरआन को ज़ारो क़तार हो कर पढ़ा जाए, 
हैं न मुहम्मद का भारी नाटक कि अगर उनकी उम्मत उनके लिए राज़ी न होती तो वह जान दे देते.

''हमने ज़मीन पर की चीज़ों को इस (ज़मीन) के लिए बाइसे-रौनक़ बनाया ताकि हम इन लोगों की आज़माइश करें कि इन में ज़्यादः अच्छा अमल कौन करता है और हम इस (ज़मीन) पर की तमाम चीज़ों को एक साफ़ मैदान (यानी फ़ना) कर देंगे।''
सूरह कहफ़ १८ -१५ वां पारा आयत(७-८)

मुहम्मद क़ी नियत में हर जगह नफ़ी का पहलू नज़र आता है, 
एक मुसलमान बग़ैर खौ़फ़ के कोई ख़ुशी मना ही नहीं सकता. 
क़ुदरत की रौनक़ भी देखने से पहले अपनी बर्बादी का ख़याल रक्खो. 
इस कशमकश के अक़ीदे से लोग बेज़ार भी नहीं होते.

''क्या आप ये ख़याल करते हैं कि ग़ार वाले और पहाड़ वाले हमारी अजाएबात (क़ुदरत) में से कुछ तअज्जुब की चीज़ थे (वह वक़्त काबिले-ज़िक्र है) जब कि इन नव जवानो ने इस ग़ार में जाकर पनाह ली और कहा के ऐ हमारे परवर दिगार हमको अपने पास से रहमत (का सामान) अता फ़रमाइए और हमारे लिए (इस) काम में दुरुस्ती का सामान मुहय्या कर दीजिए.''
सूरह कहफ़ १८ -१५ वां पारा आयत(९-१०)

ग़ार वालों क़ी कहानी में ग़ार वालों और पहाड़ियों को अल्लाह ख़ुद अजाएबात और तअज्जुब की चीज़ बतला कर शुरू करता है, 
अल्लाह ख़ुद अपनी रचना पर तअज्जुब करता है.
 मुहम्मद तबलीग़ में लगे यहाँ तक कि पौराणिक कथा में भी ख़ुद  को क़ायम करने लगे. 
सिकंदर युगीन जवानों से अल्लाह की रहमत क़ी दरख़्वास्त करवाते हैं, 
गोया वह भी मुसलमान थे. 
(इस क़िस्त में ब्रेकट में रखे अल्फ़ाज़ तर्जुमा निगार के हैं, अल्लाह के नहीं.ऐसे ही पूरे क़ुरआन में तर्जुमान अल्लाह का उस्ताद बना हुवा है.)




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान