Tuesday 31 July 2018

सूरह हज 22 Q 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*****

सूरह हज 22 
क़िस्त-2


''जो शख़्स  इस बात का ख़याल रखता है कि अल्लाह तअला उसकी  आख़िरत में मदद न करेगा तो उसको चाहिए कि एक रस्सी आसमान तक तान ले और मौक़ूफ़ करा दे ग़ौर करना चाहिए कि तदबीर उसकी ना गवारी की चीज़ को मौक़ूफ़ कर सकती है और हमने क़ुरआन  को इसी तरह उतारा है,''

सूरह हज 22 (आयत-15-16)

दिमाग़ मुहम्मद का, कलाम अल्लाह का, समझ बंदए-मुस्लिम की - - - बड़ा मुश्किल मुक़ाम है कि ऐसी आयतें क़ुरआन की क्या कहना चाहती हैं? आम मुसलमान में जब कोई इस क़िस्म की बातें करता है तो सुनने वाले उसे कठमुल्ला कह कर मुस्कुराते है. मगर अगर उनको बतलाया जाय कि क़ुरआनी अल्लाह ही कठमुल्ला है, ये उसकी बातें हैं, तो कुछ देर के लिए कशमकश में पड़ जाता है? मगर मुसलमान ही बना रहना पसंद करता है , कुछ बग़ावत के साथ. भारतीय माहौल में वह जाय तो कहाँ जाय? 
मोमिन का रास्ता उसे टेढ़ा नज़र आता है, जो कि है बहुत सीधा.
सितम ये कि बे शऊर अल्लाह कहता है,
''और हमने क़ुरआन को इसी तरह उतारा है,'' 



''और अल्लाह तअला उन लोगों को कि ईमान लाए और नेक काम किए ऐसे बाग़ों  में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें जारी होंगी. इनको वहाँ पर सोने के कंगन और मोती पहनाई जाएँगे और पोशाक वहाँ रेशम की होगी.''

सूरह हज 22 (आयत-23)

मुहम्मद को इतनी भी अक़्ल नहीं है कि जहाँ सोने के घर द्वार हैं, 
वहाँ सोने के कंगन पहना रहे हैं ? 
वैसे भी सोने का जब तक ख़रीदार न हो उसकी कोई क़द्र व् क़ीमत नहीं. सोने और रेशम को मर्दों पर हराम करके दुन्या में तो कहीं का न छोड़ा, जहाँ इनकी जीनत थी. 
महरूम और मक़रूज़ क़ौम. 



''बेशक जो लोग काफ़िर हुए अल्लाह के रास्ते से और मस्जिदे हराम 
(काबा ) से रोकते हैं, जिसको हमने तमाम आदमियों के लिए मुक़र्रर किया है, कि इस में सब बराबर हैं. इसमें रहने वाले भी और बाहार से आने वाले भी.''

सूरह हज 22 (आयत-25)

क़ुरआन  की यह आयत बहुत ही तवज्जेह तलब है - - - 
आज काबे में कोई ग़ैर मुस्लिम दाख़िल नहीं हो सकता है. 
काबा ही क्या, शहर मक्का में भी मुसलामानों के अलावा किसी और के दाख़िले पर पाबन्दी है. 
आज की हक़ीक़त ये है जब कि ये आयतें उस वक़्त की हैं जब मुसलामानों पर काबे में दाख़िले पर पाबन्दी थी. 
इसी क़ुरआन  में आगे आप देखेंगे कि अल्लाह कैसे अपनी बातों से फिरता है. 
इनके जवाब में ही आज़ाद भारत में कई स्थान ऐसे हैं, 
जहाँ मुसलामानों के दाख़िले पर पाबन्दी है. 

सफ़ाई 

क्या आपने कभी ग़ौर किया है कि सारी दुन्या में मुसलमान पसमान्दा क्यूं हैं? 
सारी दुन्या को छोड़ें अपने मुल्क भारत में ही देखें कि मुसलमान एक दो नहीं हर मैदान में सब से पीछे हैं. 
मैं इस वक़्त इस बात का एहसास शिद्दत के साथ कर रहा हूँ. 
इस लिए कि मैं Ved is at your door '' के संचालक स्वर्गीय स्वामी चिन्मयानन्द के आश्रम के एक कमरे में मुक़ीम हूँ, जो कि हिमालयन बेल्ट हिमांचल प्रदेश में तपोवन के नाम से मशहूर है. 
साफ़ सफ़्फ़ाफ़, और शादाब, गन्दगी का नाम व निशान नहीं, 
वाक़ई यह जगह धरती पर एक स्वर्ग जैसी है. 
ईमान दारी ऐसी कि कमरों में ताले की ज़रुरत नहीं. सिर्फ़ सौ रुपिए में रिहाइश और ख़ूराक, बमय चाय या कॉफ़ी. ज़रुरत पड़े तो इलाज भी मुफ़्त. 
मैं यहाँ अपने मोमिन के नाम से अज़ादाना रह रहा हूँ, 
उनके दीक्षा प्रोग्रामो में हिस्सा लेकर अपनी जानकारी में अज़ाफ़ा भी कर रहा हूँ. इनकी शिक्षा में कहीं कोई नफ़रत का पैग़ाम नहीं है. 
जदीद तरीन इंसानी क़द्रों के साथ साथ धर्म का ताल मेल भी, 
आप उनसे खुली बहेस भी कर सकते हैं. 
मैं ने यहाँ हिन्दू धर्म ग्रंथों का ज़ख़ीरा पाया और जी भर के अध्धयन किया.
इसी तरह मैंने कई मंदिर, गुरु द्वारा, गिरजा देखा, बहाइयों का लोटस टेम्पिल देखा, ओशो आश्रम में रहा, इन जगहों में दाख़िले पर जज़्बाए एहतराम पैदा होता है. 

इसके बर अक्स मुसलामानों के दरे अक़दस पर दिल बुरा होता है और नफ़रत के साथ वापसी होती है. चाहे वह ख़्वाजा अजमेरी की दरगाह हो या निज़ामुद्दीन का दर ए अक़दस हो, जामा मस्जिद हो या मुंबई का हाजी अली. जाने में कराहियत होती है. आने जाने के रास्तों पर गन्दगी के ढेर,  साथ साथ भिखारियों, अपाहिजों और कोढ़ियों की मुसलसल क़तारें, राह पार करना दूभर कर देती है. 
मुजाविर (पण्डे) अक़ीदत मंदों की जेबें ख़ाली करने पर आमादः रहते हैं. मेरी अक़ीदत मन्द अहलिया निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह पहुँचने से पहले ही भैंसे की गोश्त की सडांध, और गंदगी के बाईस उबकाई करने लगीं. बेहूदे फूल फ़रोश फूलों की डलिया मुँह पर लगा देते है. 
वह बग़ैर ज़्यारत किए वापस हुईं . 
इसी तरह अजमेर की दरगाह में लगे मटकों का पानी पीना गवारा न किया, सारी आस्था वहाँ बसे भिखारियों और हराम खो़र मुजाविरों के नज़र हो गई.
औरों के, और मुसलामानों के ये क़ौमी ज़्यारत गाहें, क़ौमों के मेयार का आइना दार हैं. 
मुसलमान आज भी बेहिस हैं जिसकी वजेह है दीन इस्लाम. 
दूसरी क़ौमों ने परिवर्तन के तक़ाज़ों को तस्लीम कर लिया है और वक़्त के साथ साथ क़दम मिला कर चलती हैं. 
मुसलमान क़ुरआनी झूट को गले में बांधे हुए है. क़ुरआनी और हदीसी असरात ही इनके तमद्दुनी मर्कज़ों पर ग़ालिब है. 
मुसलमान दिन में पाँच बार मुँह हाथ और पैरों को धोता है, 
जिसे वज़ू कहते हैं और बार बार तनासुल (लिंग) को धोकर पाक करता है, मगर नहाता है आठवें दिन जुमा जुमा. 
कपड़े साफ़ी हो जाते हैं मगर उसमें पाकी बनी रहती है. 
नतीजतन उसके कपड़े और जिस्म से बदबू आती रहती है. 
जहाँ जायगा अपनी दीनी बदबू के साथ. 
मुसलामानों को यह वर्सा मुहम्मद से मिला है. 
वह भी गन्दगी पसंद थे कई हदीसें इसकी गवाह हैं, 
अकसर बकरियों के बाड़े में नमाज़ पढ़ लिया करते.
दूसरी बात ज़कात और ख़ैरात की रुकनी पाबंदी ने क़ौम को भिखारी ज़्यादः बनाया है जिसकी वजेह से मेहनत की कमाई हुई रोटी को कोई दर्जा ही नहीं मिला. 
सब क़ुरआनी बरकत है, जहां सदाक़त नहीं होती वहां सफ़ाई भी नहीं होती और न कोई मुसबत अलामत पैदा हो पाती है.

आश्रम में कव्वे, कुत्ते कहीं नज़र नहीं आते, इनके लिए कहीं कोई गंदगी छोड़ी ही नहीं जाती. ख़ूबसूरत चौहद्दी में शादाब दरख़्त, उनपर चहचहाते हुए परिंदों के झुण्ड. जो कानों में रस घोलते हैं. 
ऐसी कोई मिसाल भारत उप महाद्वीप में मुसलामानों की नहीं है. 
यहाँ जो भी तअलीम दी जाती है उसमें क़ुरआनी नफ़रत, 
इंसानों के हक़ में नहीं. 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 30 July 2018

Soorah ambiya 21 Q 4

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
**********

 सूरह अंबिया -21   
क़िस्त- 4   

उन यहूदी नबियों को जिन जिन का नाम मुहम्मद ने सुन रखा था, 
कुरान में उनकी अंट-शंट गाथा बना कर बार बार गाये हैं .
* योब (अय्यूब) की तौरेती कहानी ये है कि वह अपने समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति था, औलादों से और धन दौलत में बहुत ही सम्पन्न था. उस पर बुरा वक़्त ऐसा आया कि सब समाप्त हो गया, इसके बावजूद उसने ईश भक्ति नहीं त्यागी. वह चर्म रोग से इस तरह पीड़ित हुवा कि शरीर पर कपड़े भी गड़ने लगे और वह एक कोठरी में बंद होकर नंगा भभूत धारी बन कर रहने लगा, इस हालत में भी उसको ईश्वर से कोई शिकायत न रही, और उसकी भक्ति बनी रही. उसके पुराने दोस्त आते, उसको देखते तो दुखी होकर अपने कपड़े फाड़ लेते.
** इस्माईल लौड़ी जादे थे,
पिता अब्राहम इनको इनके माँ के साथ सेहरा बियाबान में छोड़ गए थे, 
इनकी माँ हैगर ने इनको पाला पोसा. 
ये मात्र शिकारी थे और बड़ी परेशानी में जीवन बिताया. 
इन्हीं के वंशज मियां मुहम्मद हैं, 
यहूदियों की इस्माईल्यों से पुराना सौतेला बैर है.
*** इदरीस और ज़ुल्कुफ़्ल सब साबित क़दम रहने वाले लोगों में से थे. 
बस अल्लाह को इतना ही मालूम है. दुन्या में लाखो साबित क़दम लोग हुए, 
अल्लाह को पता नहीं. और मछली वाले जब कि वह अपनी क़ौम से ख़फ़ा होकर चल दिए जिनका नाम मुहम्मद भूल गए और मुख़ातिब मछवारे की संज्ञा से याद किया है. 
**** (यूनुस=योंस नाम था) मशहूर हुवा कि वह तीन दिन मगर मछ के पेट में रहे, निकलने के बाद इस बात का एलान किया तो लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया, 
कहा के बस्ती छोड़ कर चले गए थे. 
योंस का हथकंडा मुहम्मद जैसा ही था मगर उनके साथ लाख़ैरे सहाबा-ए-कराम न थे, जेहाद का उत्पात न सूझा था कि माले-ग़नीमत की बरकत होती. फ्लाप हो गए .
***** ज़कारिया (ज़खारिया) और याहिया (योहन) का बयान मैं पिछली किस्तों में कर चुका हूँ. मुहम्मद फ़रमाते हैं कि उपरोक्त हस्तियाँ मेरी इबादत करते - - -
''और हमारे सामने दब कर रहते थे.'' 
दिल की बात मुंह से निकल गई और जेहालत को तख़्त और ताज भी मिल गया.



''और उनका भी जिन्हों ने अपने नामूस को बचाया, फिर हमने उन में अपनी रूह फूँक दी, फिर हमने उनको और उनके फरजंद को जहाँ वालों के लिए निशानी बना दी - - - और हमने जिन बस्तियों को फ़ना कर दीं हैं उनके लिए ये मुमकिन नहीं है फिर लौट कर आवें. यहाँ तक कि जब याजूज माजूज खोल दिए जाएँगे तो (?) और वह हर बुलंदी से निकलते होंगे. और सच्चा वादा आ पहुँचा होगा तो बस एकदम से ये होगा कि मुनकिर की निगाहें फटी की फटी रह जाएँगी कि हाय कमबख़्ती हमारी कि हम ही ग़लती पर थे, बल्कि वक़ेआ ये है कि हम ही क़ुसूरवार थे. बिला शुबहा तुम और जिनको तुम ख़ुदा को छोड़ कर पूज रहे हो, सब जहन्नम में झोंके जाओगे. 

(इसके बाद फिर दोज़ख़ियो को तरह तरह के अज़ाब और जन्नतियों को मज़हक़ा ख़ेज़ मज़े का हांल है जो बारबार बयान होता है)
सूरह अंबिया -21- आयत (91-103)



मुहम्मद का इशारा मरियम कि तरफ़ है. ईसाई मानते हैं कि ईसा मसीह ख़ुदा के बेटे है तब मुहम्मद कहते हैं कि यह अल्लाह की शान के ख़िलाफ़ है, 

न वह किसी का बाप है न उसकी कोई औलाद है. 
यहाँ पर अल्लाह कहता है कि फिर हमने उन में अपनी रूह फूँक दी, 
तब तो ईसा ज़रूर अल्लाह के बेटे हुए. जिस्मानी बेटे से रूहानी बेटा ज़्यादा मुअत्बर हुवा. यही बात जब ईसाई कहते हैं तो मुहम्मद का तसव्वुर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के शेर का हो जाता है - - -
आ मिटा दें ये तक़द्दुस ये जुमूद,
फिर हो किसी ईसा का वुरूद,
तू भी मज़लूम है मरियम की तरह,
मैं भी तनहा हूँ ख़ुदा के मानिद.

यहाँ अल्लाह मरियम के अन्दर अपनी रूह फूंकता है ,
इसके पहले फ़रिश्ते जिब्रील से उसकी रूह फुंकवाए थे, 
ईसा को रूहिल क़ुद्स कहा जाता है, जब कि यहाँ पर रूहुल्लाह हो गए.
कहते हैं कि 'दारोग आमोज रा याद दाश्त नदारद.' 
झूटों की याद दाश्त कमज़ोर होती है.



''और हम उस रोज़ आसमान को इस तरह लपेट देंगे जिस तरह लिखे हुए मज़मून का कागज़ को लपेट दिया जाता है, हमने जिस तरह अव्वल बार पैदा करने के वक़्त इब्तेदा की थी, इसी तरह इसको दोबारा करेंगे, ये हमारे ज़िम्मे वादा है और हम ज़रूर इस को करेंगे. और हम ज़ुबूर में ज़िक्र के बाद लिख चुके हैं कि इस ज़मीन के मालिक मेरे नेक बन्दे होंगे. 

(इसके बाद मुहम्मद ने हस्ब आदत अंट-शंट बका है जिसमें मुतराज्जिम ने ब्रेकेट लगा लगा कर थक गए होंगे कि कई बात बना दें, कुछ नमूने पेश हैं - - -
''और हम ने (1) आप को और किसी बात के लिए नहीं भेजा, मगर दुन्या जहान के लोगों (2) पर मेहरबानी करने के लिए . आप बतोर(3) फ़रमा दीजिए कि मेरे पास तो सिर्फ़ वह्यि आती है कि तुम्हारा माबूद (4 )सिर्फ़ एक ही है सो अब भी तुम (5) फिर (6) ये लोग अगर सर्ताबी करेंगे तो (7) आप फ़रमा दीजिए कि मैं तुम को निहायत साफ़ इत्तेला कर चुका हूँ और मैं ये जानता नहीं कि जिस सज़ा का तुम से वादा हुवा है, आया क़रीब है या दूर दराज़ है (8). - - -
सूरह अंबिया -२१ -आयत (१०४--११२)

१-(ऐसे मज़ामीन नाफ़े देकर)
२-(यानी मुकल्लफ़ीन)
३-( खुलासा के मुक़र्रर)
४-(हक़ीक़ी )
५-(मानते हो या नहीं यानी अब तो मानन लो)
६-(भी)
७- (बतौर तमाम हुज्जत के)
८- (अलबत्ता वक़ूअ ज़रूर होगा).
दोबारा समझा रहा हूँ की ओलिमा ने अनुवाद में मुहम्मद की कितनी मदद की है. पहले आप आयतों को पढ़ें, मतलब कुछ न निकले तो अनुवादित शब्दावली का सहारा लें, इस तरह कोई न कोई बात बन जायगी.भले वह हास्य स्पद हो.
मुहम्मद की चिंतन शक्ति एक लाल बुझक्कड़ से भी कम है, 
ब्रह्माण्ड को नज़र उठा कर देखते हैं तो वह उनको कागज़ का एक पन्ना नज़र आता है और वह आसानी के साथ उसे लपेट देते हैं. 
मुसलमान उनकी इस लपेटन में दुबका बैठा हुवा है. 
मुहम्मदी अल्लाह क़यामत बरपा करने का अपना वादा क़ुरआन में इस तरह दोहराता है जैसे कोई ख़ूब सूरत वादा किसी प्रेमी ने अपने प्रियशी से किया हो. और मैं ये जानता नहीं कि जिस सज़ा का तुम से वादा हुवा है, आया क़रीब है या दूर दराज़ है- - -
इतना कमज़ोर अल्लाह ?
मुसलमान उसके वादे को पूरा होने के लिए डेढ़ हज़ार सालों से दिल थामे बैठा है.

***



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 28 July 2018

Hindu Dharm Darshan207



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (11)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
तुम सुख या दुःख ,हानि या लाभ, विजय या पराजय का विचार किए बिना युद्ध करो ऐसा करने पर तुम्हें कोई पाप नहीं लगेगा.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 2 श्लोक 38
*
और क़ुरआन कहता है - - -
"और उन से कहा गया आओ अल्लाह की राह में लड़ना या दुश्मन का दफ़ीअ बन जाना. वह बोले कि अगर हम कोई लड़ाई देखते तो ज़रूर तुम्हारे साथ हो लेते, यह उस वक़्त कुफ़्र से नज़दीक तर हो गए, बनिस्बत इस हालत के की वह इमान के नज़दीक तर थे।"
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (168)

क्या गीता और कुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती पर शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ
क्या इस काबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए, 
गवाह बनाया जाए ???
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 27 July 2018

Soorah haj 22 Q-1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
************
 सूरह हज 22 
क़िस्त-1
''ऐ लोगो अपने रब से डरो यक़ीनन क़यामत का ज़लज़ला बहुत भारी चीज़ होगी.'
सूरह हज 22 (आयत-1)

एक बार फिर आप को दावते-फ़िक्र दे रहा हूँ कि ग़ौर करिए कि आपका अल्लाह कैसा होना चाहिए? 
बहुत ज़ालिम, बड़ा ग़ुस्सैल, शेर की तरह कि ज़रा सी हरकत पर अप पर चढ़ बैठे? या आपके चचा और मामा की तरह आप को चाहने वाला, आपकी ग़लतियों को दरगुज़र करने वाला, 
कम से कम, सज़ा देने वाले को तो आप पसंद नहीं ही करेगे. 
यह आप पर मुनहसर है कि आप जैसा अल्लाह चाहें अख़्तियार करें. 
जी हाँ! यही तो इंसान का ज़ाती मुआमला हो जाता है कि वह अपने को किस पसंद दीदा दोस्त के हवाले करता है. 
दोस्त कोई ज़ात पाक भी हो सकता है, 
दोस्त कोई ख़याल-ए-नादिर भी हो सकता है. 
दोस्त आपकी महबूबा भी हो सकती है 
और आप का हुनर भी. 
दोस्त आप की पूजा भी हो सकती है और आपकी इबादते-लाहूत भी. 
दोस्त कैसा भी हो सकता है मगर क़ुरआनी अल्लाह को दोस्त बनाना किसी साज़िश का शिकार हो जाना है.
ज़लज़ले और आतश फ़िशां निज़ाम क़ुदरत के तहत मुक़र्रर है जो किसी काफ़िर या मुस्लिम आबादी को देख कर नहीं आते, 
न उनका उस टुकाची अल्लाह से कोई सरोकार है जो मुहम्मद ने गढ़े हैं. खुलकर ऐसे अल्लाह से बग़ावत कीजिए जो क़ौम को जुमूद में किए हुए है. 


''जिस रोज़ तुम इसको देखोगे, तमाम दूध पिलाने वालियाँ अपने बच्चों को दूध पिलाना भूल जाएँगी और तमाम हमल वालियाँ अपना हमल डाल देंगी और तुझको लोग नशे के आलम में दिखाई देंगे. हालांकि वह नशे में न होंगे मगर अल्लाह का अज़ाब है सख्त़.'' 

सूरह हज 22 (आयत-2-3)

क़बीलाई बन्दे मुहम्मद तमाज़त और मेयार को ताक़ पर रख कर गुफ़्तगू कर रहे हैं. क़यामत का बद तरीन नज़ारा को वह किस घटिया हरबे से  बयान कर रहे है कि जिसमे औरत ज़ात रुसवा हो रही है. 
और मर्द शराब के नशे में बद मस्त अपनी औरतों की रुस्वाइयाँ देख रहे होगे. 


''हमने तुमको मिटटी से बनाया फिर. नुतफ़े से, फिर  ख़ून के लोथड़े से फिर ख़ून की बोटी से पूरी होती है और अधूरी भी, ताकि हम तुम्हारे सामने ज़ाहिर कर दें. हम गर्भ में जिसको चाहते हैं एक मुद्दत ए मुअय्यना तक ठहराए रखते हैं, फिर तुम को बच्चा बना कर हम बाहर लाते हैं. फिर ताकि तुम अपनी भरी जवानी तक पहुँच जाओ और बअजे तुम में वह भी हैं जो निकम्मी उम्र तक पहुंचे जाते हैं. - - - और क़यामत आने वाली है, इसमें ज़रा शुबहा नहीं और अल्लाह क़ब्र वालों को दोबारह पैदा करेगा.''

सूरह हज 22 (आयत-5-7) 

एक बार फिर मुहम्मदी अल्लाह अपने हुनर और हिकमत को दोहराता है कि उसने जो कुछ इंसानी वजूद की शुरूआत अपनी आँखों से मुश्तअमल होते हुए देखा है. यानी मुहम्मद अपना ज़ाती मुशाहिदा बयान करते हैं जो मेडिकल साइंस में जेहालत कही जायगी. इन्हीं लग्वियात को ओलिमा कुराने-हकीम की बातें कहते हैं. 
पुनर जन्म की फ़िलासफ़ी एक कशिश तो रखती है मगर ये सदियों क़ब्र में पड़े रहना और उसके बाद उठाए जाना बड़ा बोरियत वाला अफ़साना है. क्या मज़ाक़ है अल्लाह अपने कारनामों का यक़ीन ज़ोरदार तरीक़े से दिलाता है.
 
''जो शख़्स  अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाख़िल कर देंगे जिसके नीचे नहरें जरी होंगी, हमेशा हमेशा इनमें रहें. ये बड़ी कामयाबी है, अल्लाह तअला जो इरादः करता है, कर गुज़रता है '' 
सूरह हज 22 (आयत-14)

मुसलामानों!
 अल्लाह तअला कोई इंसानी ज़ेहन का बाँदा जैसा नहीं है, वह अगर कुछ है तो इन बातों से बाला तर होगा. वह बज़ाहिर लगता है बहुत बारीक, मगर है बहुत साफ़. हर जगह नज़र आता है मगर बिना किसी रंग रूप का. उसकी कोई ज़बान नहीं है, न उसका कोई कलाम. ज़बान होती तो बोलता ही रहता, सिर्फ़ चौदह सौ साल पहले मुहम्मद से बात करने के बाद उसके मुँह को लक़वा नहीं मार गया होता, उसके बाद उसकी बोलती बंद है. 
बार बार मुहम्मद तुम से नहरों वाली जन्नत की बात करते हैं जो कि तुमको अगर मिल जाय तो घर, घर न रह जाय बल्कि खेत और ताल तलय्या बन जायगा . 
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 25 July 2018

Soorah ambiya 21 Q 3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
**********

  सूरह अंबिया -21   
क़िस्त- 3   

आइए चलें अतीत के बाबा मुहम्मद देव की तरफ़ - - -

''आप कह दीजिए कि मैं तो सिर्फ़ वह्यि (ईश वाणी) के ज़रीए तुम को डराता हूँ और बहरे जिस वक़्त डराए जाते हैं, पुकार सुनते ही नहीं और उनको आप के रब के अज़ाब का एक झोंका भी लग जाए तो कहने लगें कि हाय मेरी कमबख़्ती हम तो ख़तावार थे. और क़यामत के रोज़ हम मीज़ाने-अज़ल क़ायम करेंगे सो किसी पर असला ज़ुल्म न होगा और अगर राई के दाने के बराबर होगा तो हम इसको हाज़िर कर देंगे. और हम हिसाब लेने वाले काफ़ी हैं.- - - 
(इब्राहीम की अपने बाप से तू तू मैं मैं, जैसे पहले आ चुका है, इब्राहीम अपने बाप से कहता है) - - -
और ख़ुदा की क़सम मैं तुम्हारे इन बुतों की गत बना दूंगा, जब तुम पीठ फेर के चले जाओगे. और उन्हों ने इन के टुकड़े टुकड़े कर दिए बजुज़ एक बड़े बुत के 
(लोगों के ग़ुस्से को देखते ही इब्राहीम झूट बोलते हैं कि ये हरकत इस बड़े बुत की है इससे पूछ लो, - - - झूट काम नहीं आता ,पंचायत इनको आग में झोंक देती है जो अल्लाह की मुदाख़लत से ठंडी हो जाती है) ''
सूरह अंबिया -21- आयत (45-70)



अल्लाह के कलाम में ? पैग़म्बर मुहम्मद की विपदा बयान होती है, 

दीवाना अल्लाह उनके मुँह से बोलता है कि वह ईशवानी द्वारा लोगों को डराता है मगर वह बहरे काफ़िर बन्दे उसकी सुनते ही नहीं, 
धमकता है कि अगर एक झोंका भी मेरे अज़ाब का उन पर पड़ जाय तो उनको नानी याद आ जाय. 
अल्लाह कहता है क़यामत के दिन वह तमाम लोगों के कर्मों का लेखा-जोखा पेश करेगा. एक तरफ़ कहता है कि किसी पर रत्ती भर अत्याचार न होगा, 
दूसरी तरफ़ धमकता है, 
''तो हम इसको हाज़िर कर देंगे.और हम हिसाब लेने वाले काफी हैं.- - -''
मूर्ती तोड़क मुहम्मद का अल्लाह भी उन्हीं की ज़बान में ख़ुद अपनी क़सम खाकर कहता है , 
''और ख़ुदा की क़सम मैं तुम्हारे इन बुतों की गत बना दूंगा, जब तुम पीठ फेर के चले जाओगे'' 
क्या डरपोक अल्लाह है कि इब्राहीम के बाप आज़र के सामने उसकी हिम्मत नहीं कि बुतों को हाथ भी लगाए, 
मुन्तज़िर है कि यह हटें तो मैं बुतों की दुर्गत कर दूं. 
मुहम्मद बड़े बुत को बचा कर उससे गवाही की दिल चस्प कहानी गढ़ते हैं जो इस्लामी बच्चे अपने बच्चों के कानों में पौराणिक कथा की तरह घोल देते हैं..
मुसलामानों!
 क्या तुम इन्हीं बेवज़्न  कलाम को अपनी नमाज़ों में दोहराते हो? 
ये बड़े शर्म की बात है.
 जागो! ख़ुदा के लिए जागो!!



''और दाऊद और सुलेमान जब दोनों किसी खेत के बारे में फ़ैसला करने लगे जब कि कुछ लोगों की बकरियाँ रात के वक़्त उसको चर गईं और हम उस फ़ैसले को जो लोगों के मुतअल्लिक़ हुवा था, हम देख रहे थे, सो हमने उसकी समझ सुलेमान को दे दी और हमने दोनों को हिकमत और इल्म अता फ़रमाया और हम ने दाऊद के साथ ताबेअ कर दिया था, पहाड़ों को कि वह तस्बीह किया करते थे और परिंदों को हुक्म करने वाले हम थे. और इनको ज़ेरह (कन्वच) की सनअत तुम लोगों के वास्ते सिखलाई ताकि वह लड़ाई में तुम लोगों को एक दूसरे की ज़द से बचाए तो तुम शुक्र करोगे भी? और हम ने सुलेमान अलैहिस सलाम का ज़ोर की हवा को ताबेअ बना दिया था''.

सूरह अंबिया -21- आयत (71-81)



क्या पुर मज़ाक़ बात है कि दाऊद जिसने चोरी और डाके में अपनी जवानी गुज़ारी वह अल्लाह की हिकमत से इस मुक़ाम तक पहुंचा कि पहाड़ उसके साथ बैठ कर माला फेरने लगे. 
पहाड़ कैसे बैठते, उठते और तस्बीह भानते होगे बात भी ग़ौर तलब है, जिसे मुहम्मदी अल्लाह ही जाने जो अपने पिछवाड़े से घोडा खोल सकता है. 

मुहम्मदी अल्लाह ऐसा है कि पंछियों को हुक्म देता है कि इन के मातहेत रहें. 
यहाँ तक कि हवाओं तक पर भी इन बाप बेटों की हुक्मरानी हुवा करती थी. 
सवाल उठता है कि जब उन हस्तियों को अल्लाह ने इतनी पावर ऑफ़ अटार्नी देदी थी तो मुसलामानों के आख़रुज़्ज़मा को क्यों फटीचर बना रक्खा है?



मेरे नादान भाइयो !

 कुछ समझ में आता है कि क़ुरानी इबारतें क्या मुक़ाम रखती हैं ?
इस तरक़्क़ी याफ़्ता समाज में. 
क्यूँ अपनी भद्द कराने की ज़िद पर अड़े हुए हो. ? 
हिदुस्तान में हिदुत्व का देव है, जो तुम को बचाए हुए है, 
अगर ये न होता तो तुम खेतों में चरने के लिए भेड़ बकरियों की तरह छोड़ दिए जाते और तुम्हारा अल्लाह आसमान पर बैठा टुकुर टुकुर देखता रहता, 
किसी मुहम्मद की गवाही देने के लिए. क़ुरान पूरी की पूरी बकवास है जब तक इसके ख़िलाफ़ ख़ुद मुसलमान आवाज़ बुलंद नहीं करते तब तक हिंदुत्व का भूत भी ज़िदा रहेगा. जिस दिन मुसलमान जग कर मैदान में आ जाएँगे, हिदुत्व का जूनून ख़ुद बख़ुद काफ़ूर हो जायगा फिर भारत में बनेगा एक नया समाज जिसका धर्म और मज़हब होगा ईमान.



'और बअज़े शैतान ऐसे थे कि उनके (सुलेमान) लिए गोता लगाते थे और वह और काम भी इसके अलावा किया करते थे और उनको संभालने वाले थे और अय्यूब, जब कि उन्हों ने अपने रब को पुकारा कि हमें तकलीफ़ पहुँच रही है और आप सब मेहरबानों से ज़्यादः मेहरबान हैं, हमने दुआ क़ुबूल की और उनकी जो तकलीफ़ थी, उसको दूर किया. और हमने उनको उनका कुन्बा अता फ़रमाया और उनके साथ उनके बराबर और भी अपनी रहमते-ख़ास्सा के सबब से और इबादत करने वालों के लिए यादगार रहने के सबब. और इस्माईल और इदरीस और ज़ुल्कुफ़्ल सब साबित क़दम रहने वाले लोगों में से थे.और उनको हमने अपनी रहमत में दाख़िल कर लिया, बे शक ये कमाल सलाहियत वालों में थे. और मछली वाले जब कि वह अपनी क़ौम से ख़फा होकर चल दिए और उन्हों ने यह समझा कि हम उन पर कोई वारिद गीर न करंगे, बस उन्हों ने अँधेरे में पुकारा कि आप के सिवा कोई माबूद नहीं है, आप पाक हैं, मैं बेशक क़ुसूर वार हूँ.. सो हमने उनकी दुआ क़ुबूल की और उनको इस घुटन से नजात दी.. और ज़कारिया, जब कि उन्हों ने अपने रब को पुकारा कि ऐ मेरे रब! मुझको लावारिस मत रखियो, और सब वारिसों से बेहतर आप हैं, सो हमने उनकी दुआ क़ुबूल की और उनको यह्या अता फ़रमाया.और उनकी ख़ातिर उनकी बीवी को क़ाबिल कर दिया. ये सब नेक कामों में दौड़ते थे और उम्मीद ओ बीम के साथ हमारी इबादत करते थे.और हमारे सामने दब कर रहते थे.''

सूरह अंबिया -21- आयत (81-90)



मुहम्मद कहते हैं कि यहूदी बादशाह सुलेमान शैतान पालता था, 

जो उसके लिए नदियों में गो़ते लगा कर मोतियाँ और ख़ूराक़ के सामान मुहय्या कराता था, और भी शैतानी काम करता रहा होगा. 
आगे आएगा कि वह पलक झपकते ही महारानी शीबा का तख़्त बमय शीबा के उठा लाया था. 
वह सुलेमान अलैहिस्सलाम के तख़्त कंधे पर लाद कर उड़ता था, 
बच्चों की तरह आम मुसलमान इन बातों का यक़ीन करते हैं, 
क़ुरआन की बात जो हुई, तो यक़ीन करना ही पड़ेगा, 
वर्ना गुनाहगार हो जाएँगे 
और गुनाहगारों के लिए अल्लाह की दोज़ख धरी हुई है. 
यह मजबूरियाँ है मुसलामानों की. 
उन यहूदी नबियों को जिन जिन का नाम मुहम्मद ने सुन रखा था, 
कुरान में उनकी अंट-शंट गाथा बना कर बार बार गाये हैं .
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 24 July 2018

Hindu Dharm Darshan206


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (10)

कृष्ण भगवान् गीता में कहते हैं - - -
"हे कुंती पुत्र ! तुम अगर युद्ध में मारे जाओगे तो स्वर्ग प्राप्त करोगे या
यदि तुम जीत जाओगे तो पृथ्वी के सान्राज को भोग करोगे,
अतः तुम संकल्प करके खड़े हो जाओ और युद्ध करो .
श्रीमद्  भगवद् गीता अध्याय 2  श्लोक 37
*
अल्लाह क़ुरआन में कहता है - - -
"और जो शख़्स अल्लाह कि राह में लड़ेगा वोह ख़्वाह जान से मारा जाए या ग़ालिब आ जाए तो इस का उजरे अज़ीम (महा पुण्य) देंगे और तुम्हारे पास क्या औचित्य है कि तुम जेहाद न करो अल्लाह कि राह में"
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (75)
*
"वह इस तमन्ना में हैं कि जैसे वोह काफ़िर हैं, 
वैसे तुम भी काफ़िर बन जाओ,
जिस से तुम और वह सब एक तरह के हो जाओ.
सो इन में से किसी को दोस्त मत बनाना,
जब तक कि अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और
अगर वह रू गरदनी करें तो उन को पकडो और क़त्ल कर दो
और न किसी को अपना दोस्त बनाओ न मददगार"
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (89)
***
देखिए कि किसका पलड़ा भारी है, अल्लाह का या भगवन का ?



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 23 July 2018

Soorah Ambiya 21 Q 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
***********

  सूरह अंबिया -21   
क़िस्त- 2   
अल्लाह अपने रसूल से जवाब तलब है - - - 


 ''क्या बावजूद दलायल के उन लोगों ने ख़ुदा के सिवा किसी और को माबूद बना रक्खे हैं - - - और हमने आपसे पहले कोई ऐसा पैग़म्बर नहीं भेजा जिसके पास हमने ये वह्यि न भेजी हो कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं, पस मेरी इबादत किया करो. - - - वह जानते हैं कि अल्लाह तअला उनके अगले और पिछले अहवाल को जनता है और बजुज़ उसके जिसके लिए अल्लाह तअला की मर्ज़ी हो और किसी की सिफ़ारिश नहीं कर सकते. और सब अल्लाह तअला की मौजूदगी से डरते. इन काफ़िरों को मअलूम नहीं कि आसमान और ज़मीन बंद थे, फिर हमने अपनी क़ुदरत से दोनों को खोल दिया और हमने पानी से हर जानदार चीज़ को बनाया. क्या फिर भी ईमान नहीं लाते ''
सूरह अंबिया -21- आयत (21-30)



उस अल्लाह पर लअनत है जो अपने मुँह से कहता हो कि मैं ही इबादत के लायक़ हूँ,

तुम मेरी इबादत ही किया करो. वह टुच्चा और ख़ुद नुमाई करने वाला अल्लाह तुम्हारा मालिके-कायनात है? तो यह तुम्हारे लिए शर्म की बात होनी चाहिए. 
जहिले-मुतलक़ की दलील पर ग़ौर हो कि 
''क्या इन काफ़िरों को मअलूम नहीं कि आसमान और ज़मीन बंद थे, फिर हमने अपनी क़ुदरत से दोनों को खोल दिया'' 
जैसे कि मुस्लिमों को इसका इल्म रहा हो. 
मुसलमान इस ख़ुलासे को पाकर फूले नहीं समाते, उनसे बेहतर काफ़िर हैं जो इनका मज़ाक उड़ाते हैं.
मुसलामानों, 
सिर्फ़ ये मुल्ला और मोलवी ही नहीं दूसरे फ़िरके के दुष्ट प्रकृति के लोग भी नहीं चाहते कि तुम बेदार हो सको. तुमको मुसलमान बना कर रखने में ही उनका हित निहित है. 
तुम अगर जग गए तो उन्हें अच्छे और मेहनती मज़दूर मिस्त्री कहाँ मिलेंगे? अच्छे दस्त कर मुसलमानों में ही ज़्यादा पाए जाते हैं, 
क्या कभी सोचा है कि ऐसा क्यूं? 
इस लिए कि जिन बच्चों में पढ़ लिख कर इंजीनियर, डाक्टर, केमिस्ट और साइंटिस्ट बनने कि सलाहियत होती है मगर वह उसकी तालीम से महरूम रहते है, तो हुनर में अपनी सलाहियत का मज़ाहिरा करते हैं. 
मुल्ला बार बार दोहराते हैं कि क़ुरआन कहता है,
''इल्म हासिल करना है तो चीन तक जाना पड़े तो जाओ''
तो चीन में क्या इस्लामी अल्लाह के मुताबिक तालीम तब थी, 
या आज है ?
तुम बेदार हुए तो उनकी सनअतों का क्या होगा जो तुम्हारे लिए वज़ू बनाने और इस्तेंजा पाक (लिंग-शोधन) करने का टोटी दार लोटा बनाते हैं ? तहमदें, टोपियाँ, पोशाकें और खिज़ाब वग़ैरा बनाते हैं ? 
बड़ी दूकानों और सलाटर हाउसों के लिए कर्मीं कहाँ होंगे? 
हत्ता कि तुम्हारे क़ुरआन की इशाअत और तबाअत भी उन्हीं के हाथ में है.
नवल किशोर प्रेस का नाम सुना है? 
तुम्हारी सभी दीनी किताबों की बरकतें पचास साल तक उन्हीं के हक़ में गई है. ग़ैर मुसलामानों की कंज्यूमर सेंटर तुम्हारी इस दीनी जेहालत पर ही क़ायम है, वह तो तुमको क़ायम रखना ही चाहेंगे. 
क़ुरआन बार बार तुम्हारी बदहाली और काफ़िरों की ख़ुशहाली की वकालत करता है क्यूंकि तुम्हारी पूँजी तो ऊपर जमा हो रही है.



''और हमने ज़मीन में इस लिए पहाड़ बनाए कि ज़मीन इन लोगों को लेकर हिलने (?) लगे और हमने इसमें कुशादा रस्ते बनाए ताकि वह लोग मंजिल तक पहुँच सकें और हम ने आसमान को एक छत बनाया जो महफूज़ है. और ये लोग इस से एराज़ किए (मुंह फेरे) हुए हैं. और वह ऐसा है जिसने रात और दिन बनाए, सूरज और चाँद. हर एक, एक दायरा में तैरते है. और हमने आप से पहले भी किसी बशर को हमेशा रहना तजवीज़ नहीं किया. फिर आप का इंतक़ाल हो जाए तो क्या लोग हमेश हमेशा दुन्या में रहेंगे. हर जानदार मौत का मज़ा चक्खेगा और हम तुमको बुरी भली से अच्छी तरह आज़माते हैं. और तुम सब हमारे पास चले आओगे और यह काफ़िर लोग जब आपको देखते हैं तो बस आप से हँसी करने लगते हैं. क्या यही हैं जो तुम्हारे मअबूदों का ज़िक्र किया करते हैं? और यह लोग रहमान के ज़िक्र पर इंकार करते हैं. इंसान जल्दी का ही बना हुवा है. हम अनक़रीब आप को अपनी निशानियाँ दिखाए देते हैं ,पस ! तुम हम से जल्दी मत मचाओ. और ये लोग कहते हैं वादा किस वक़्त आएगा? अगर तुम सच्चे हो, काश इन काफ़िरों को उस वक़्त की ख़बर होती. जब ये लोग आग को न अपने सामने से रोक सकेंगे न अपने पीछे से रोक सकेंगे. और न उनकी कोई हिमायत करेगा. बल्कि वह उनको एकदम से आ गी. - - -''

सूरह अंबिया -21- आयत (31-40)



देखिए ऊपर शुरू आयत में ही तर्जुमा करने वाले आलिम ने कैसे मुहम्मद की बक बक में पेवन्द लगाया है - - -

मुहम्मद कह रहे है ''और हमने ज़मीन में इस लिए पहाड़ बनाए कि ज़मीन इन लोगों को लेकर हिलने लगे.''
तर्जुमा करने वाले आलिम ने इसको ब्रेकट में (न) लगा कर मतलब को उल्टा कर दिया है --
''और हमने ज़मीन में इस लिए पहाड़ बनाए कि ज़मीन इन लोगों को लेकर हिलने (न)लगे.''
अब ऐसी जगह पर ओलिमा आपस में एक दूसरे का विरोध कर करते रहते हैं कि अल्लाह ने पहाड़ इस लिए रखे कि ज़लज़ला की सूरत पैदा होती है और यह भी कि वज़न रखने से ज़मीन सधी रहे मगर अस्ल मतलब को ज़ाहिर करने की हिम्मत किसी में नहीं कि ये अल्लाह बने मुहम्मद की ला इल्मी है, क्यूंकि वह उम्मी थे.
इंसान जल्दी का ही बना हुवा है.? 
क्यूँ क्या जल्दी थी अल्ला मियां को, 
वह अगर उनका बनाया हुवा है तो फिर उसको मुसलमान बनाने का पापड़ क्यूं ,वह और उनके रसूल बेल रहे हैं.
ज़मीन पर रस्ते इंसान बनाते हैं, अल्लाह नहीं. 
इस बात में भी मुहम्मद की उम्मियत हायल है.
मुसलामानों ! 
आसमान कोई छत नहीं आपकी हद्दे नज़र है. ये लामतनाही है, 
जिसको जनाब ने सात तबक में सात  मंजिला इमारत तसव्वुर किया है.
आप पर हंसने वाले काफ़िर थे, न ज़ालिम, वह ज़हीन लोग थे कि ऐसी बातों पर हँस दिया करते थे कि आज जो तिलावत बनी हुई हैं.
मुहम्मद तबीयातन तालिबानी थे, 
जो दुन्या की आबादी को ख़त्म कर देना चाहते थे, 
इशारतन वह बतला रहे हैं कि वह अल्लाह से जल्दी बाज़ी कर रहे हैं कि क़यामत क्यूँ नहीं आती.
मुहम्मद का एक तकिया कलाम यह भी रहा है कि किसी आमद को हर बार सामने से बुलाते हैं, फिर पीछे से भी आने का कयास करते हैं.

***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 21 July 2018

Soorah ambiya 21 Q 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*********

  सूरह अंबिया -21   
क़िस्त- 1  


चलिए देखें उस डरावने बागड़बिल्ला को जो 

मुसलमानों को डरा डरा कर अल्लाह बना हुवा है- - -

कुछ मुसलमानों का मानना है कि इंसान के दिल में अगर खौ़फ़-ख़ुदा न रहे तो वह हैवान हो जायगा और माँ बहन बेटियों की तमाज़त खो देगा. 
आधी दुन्या जो नॉन बिलिवर्स है, तो क्या वह सब ऐसी ही है? 
हाँ ! मुहम्मदी तबअ रखने वाले लोग ऐसे ज़रुर हो सकते हैं, 
जिनके लिए गढ़ित अल्लाह सब रिश्तों की छूट देता है, 
या उन्हें अल्लाह मानने वाले लोग.
मुहम्मद ने इंसान की जिस सब से बड़ी कमज़ोरी पर अपनी गिरफ़्त मज़बूत की है, 
वह है अल्लाह का डर. वह क़ुरआन में बार बार कहते हैं कि वह अल्लाह की तरफ़ से तुम को डरा रहे हैं और मुसलमान उनके झूट पर रोज़े हश्र और दोज़ख़ का यक़ीन कर लेता है. उसको कैसे समझाया जाए कि दोज़ख और जन्नत सब उसके दिलो-दिमाग में हैं और कायनात में कहीं नहीं हैं, उसके बुरे और अच्छे फ़ेल ही उसको दोज़ख़ी और जन्नती बनाए रहते हैं. किसी फ़ेल या अमल से पहले ख़ूब सोच समझ लेना चाहिए कि इसका रद्दे अमल दूसरों के लिए नुक़सान दह या फ़ायदे मंद, 
बस वह हर अमल आपका रहनुमाई करता है कि आप इस वक़्त दोज़ख़ में जाने वाले है या जन्नत में. 
यह ख़याल दिमाग़ से निकाल दीजिए कि ज़माना क्या कहेगा. 
ज़माना तो ज़माना है, उसके कहने पर मत जाइए. 
 समाज में जो कमज़ोरियां हैं उनका डट कर विरोध करिए, 
एक दिन आएगा कि लोग आपके साथ होंगे और आप ख़ुद को जन्नती महसूस करेंगे.
चलिए डरपोक बने समाज को जगाया जाए कि अल्लाह किसी बनिए का मुनीम नहीं होता जो अपनी मख़लूक़ के फ़ेलों का बही खाता रक्खे, 
इस कायनात में वह हर शय में विराजमान है और हर शय उसके बनाए नियमानुसार चलती है, 
सदाक़त जन्नत के दरवाज़े पर बैठी आप का इंतज़ार कर रही है, 
 दरोग़ और झूट दोज़ख के दर पे - - -
 
''इन लोगों से इनका हिसाब नज़दीक आ पहुँचा और ये गफ़लत में एराज़ (विमुखता) किए हुए हैं. इनके पास इनके रब से जो नसीहत ताज़ा आती है, ये इसको ऐसे सुनते हैं कि उनके साथ हँसी करते हैं, उनके दिल मुतवज्जो नहीं होते और ये लोग यानी ज़ालिम लोग चुपके चुपके सरगोशी करते हैं कि ये तुम जैसे एक आदमी हैं, तो क्या तुम भी जादू के पास जाओगे? हालाँकि तुम जानते हो कि पैग़म्बर ने फ़रमाया कि मेरा रब आसमान में या ज़मीन में सब जानता है. और वह ख़ूब सुनने वाला और जानने वाला है, बल्कि कहा कि परेशान ख़यालात हैं.बल्कि इन्हों ने इसको तराश लिया है, बल्कि यह तो एक शायर हैं, तो इसको चाहिए कि हमारे पास कोई ऐसी निशानी लावें जैसे पहले लोग रसूल बनाए गए. इनसे पहले कोई बस्ती वाले जिनको हमने हलाक किया है, ईमान नहीं लाए तो क्या यह लोग ईमान ले आवेंगे और इस से पहले सिर्फ़ आदमियों को ही पैग़म्बर बनाया जिनके पास हम वह्यि को भेजा करते थे, सो अगर तुमको मालूम न हो तो अहले किताब से दरियाफ़्त कर लो, और हमने इन के ऐसे जुस्से (शरीर) नहीं बनाए थे जो खाना न खाते हों और वह हमेशा रहने वाले नहीं हुए. फिर हमने उन से जो वअदा किया था उसको सच्चा किया. यानी उनको और जिन जिन को मंज़ूर हुआ, हमने नजात दी. और हद से गुज़रने वाले को हलाक किया, हम तुम्हारे पास ऐसी किताब भेज चुके हैं कि जिसमें नसीहत है, क्या फिर भी तुम नहीं समझते''
सूरह अंबिया -21- आयत (१-१०)

वह कथित काफ़िर और जाहिल आज के तालीम याफ़्ता लोगों से कुजा बेहतर थे जो क़ुरआन को उस दीवाने पैग़म्बर का ख़याल-ए-परेशान कहते थे, कैसी माक़ूल बात है. जो आज भी लागू होती है. 
मुहम्मद अपनी बातों को तारीफ़ के सन्दर्भ में जादू जैसी पुर कशिश बतलाते हैं, नहीं जानते कि जादू झूट होता है. 
मुहम्मदी अल्लाह की तमाम वाणी मज़ाक के स्तर पर भी नहीं बल्कि मज़मूम (निन्दित) हैं. इन बातों को कैसे किसी अल्लाह का कलाम माना जा सकता है? 
मुसलामानों को इनसे पीछा छुड़ाने में शर्म कैसी? 
ये समझदारी और फ़ख्र का क़दम होगा.



''बहुत सी हस्तियाँ जहाँ के रहने वाले ज़ालिम थे, ग़ारत कर दीं और उसके बाद दूसरी क़ौम  पैदा कर दीं. सो जब उन्हों ने हमारा अज़ाब आता देखा, इस से भागना शुरू किया, भागो मत और अपने सामान ऐश की तरफ़ और अपने मकानों की तरफ़ वापस चलो, शायद तुम से कोई पूछे पाछे,. वह लोग कहने लगे हाय! हमारी कम बख़्ती, बेशक हम लोग ज़ालिम थे. सो उनकी यही पुकार रही, हत्ता कि हमने उनको ऐसा कर दिया जिस तरह खेती कट गई हो. और आग ठंडी हो गई. और हमने आसमान और ज़मीन को इस तरह नहीं बनाया कि हम कोई फ़ालतू काम कर रहे हों. अगर हमको मशग़ला ही बनाना मंज़ूर होता तो हम ख़ास अपने पास की चीजों को मशग़ला बनाते. अगर हम को ये करना होता, बल्कि हम हक़ बात को बातिल पर फ़ेंक मारते हैं,. सो वह इस का भेजा निकाल देता है.सो वह दफ़अतन जाता रहता है. और तुम्हारे लिए ये बड़ी ख़राबी होगी जो तुम गढ़े हो और जितने कुछ आसमानों और ज़मीन में है, सब इसी के हैं और जो उसके नज़दीक हैं, वह उस से आर नहीं करते.और न झुकते हैं. बल्कि शबो रोज़ तस्बीह करते हैं,  मौक़ूफ़ नहीं करते हैं''

सूरह अंबिया -21- आयत (11-20)

यह मुहम्मदी अल्लाह मुहम्मद के कठमुल्ला जैसे दिमाग़ की पैदावार है, 
पच्चीस साल की उम्र तक मक्कियों की भेड़ बकरियां चराने के दरमियान वह भेड़ बकरियों को साधते और सोचते रहे कि इनकी तरह ही आदमी भी इस धरती पर मौजूद हैं,क्यूँ न उनको चराया जाए, और बेवक़ूफ़ भेड़ बकरियों जैसा दिमाग़ रखने वाले दुन्या में उनको भरे पड़े मिले, 
माँ की उम्र वाली ख़दीजा ने इनको टुकड़े डाले और यह उसके पालतू बन गए, फिर क्या था ग़ारे-हरा में बैठ कर पंद्रह सालों तक मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ते रहे और मंसूबा बंदी करते रहे. 
चालीस सालों में एक जाहिल जट ने पैग़म्बरी का एलान कर दिया. 
ईसा और मूसा के बराबर होने का मौक़ा मुनासिब था और अपनी उम्मियत को उरूज पर रखते हुए तजुर्बा किया किए और बन बैठे भेड़ बकरियों नुमा उम्मत के पैग़म्बर- ए- आख़ुज़्ज़मा . 
कई हदीसें गवाही देती है कि मुहम्मद तबीयतन ज़ालिम थे. 
इज्ज़त दार ख़ातून का हाथ काट डाला मअमूली सी चोरी के इलज़ाम में, अपने सामने दो वफ़ादार और बा किरदार जोड़े को संगसार करते हुए जिंदा दफ़्न कराया. 
ऐसी एक नहीं सैकड़ों मिसालें हैं. 
अपने ही तरह ज़ालिम अल्लाह को मुहम्मद ने क़ायम किया.
साज़गारे-कायनात कहता है कि उसे मशग़ला मंज़ूर होता तो अपने आस-पास ही करता. देखिए कि अल्लाह भागते हुए लोगों को ललकारता है, 
भागो मत, मेरे ज़ुल्म से भाग न सकोगे, 
वह अपने बन्दों को जला कर ही अपने ज़ुल्म की आग को ठंडी बतलाता है. उनकी बसी बसाईं दुन्या को वीरान करके कटे हुए खेत कि तरह कर देता है. 
हद तो ये है  कि वह क़साइयों की तरह बन्दों के भेजे भी खोल देता है. कहता है शबो रोज़ तस्बीह किया करो, 
सोचो कि अगर शबो रोज़ तस्बीह करोगे तो मेहनत और मशक्क़त करके अपने बच्चों का पेट कैसे भरोगे?
मुसलमानों! 
क्या तुम फिर भी ऐसे अल्लाह को पसंद करोगे ?
जिसे फ़ासिक़ मुहम्मद ने गढ़ा हो?

***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 16 July 2018

Soorah taha -20 Q- 3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
***********

सूरह ताहा २० 
क़िस्त-३


''और हमने इसी तरह उसको अरबी क़ुरआन नाज़िल किया है और हमने उसमें तरह तरह की चेतावनियाँ दी हैं. ताकि वह लोग डर जाएँ या यह उनके लिए किसी क़द्र समाझ पैदा कर दे. - - - और आप दुआ कीजिए की ऐ मेरे रब मेरा इल्म बढ़ा दीजिए. और इस से पहले हम आदम को एक हुक्म दे चुके थे, सो उनसे गफ़लत हो गई हमने इन में पुख़तगी न पाई, जब कि हमने फ़रिश्तों को इरशाद फ़रमाया था कि आदम को सजदा करो. - - 
फ़िर इसके बाद शुरू हो जाती है आदम और इब्लीस की दास्तान जो क़ुरआन में बार बार दोहराई गई है.
सूरह ताहा- २० आयत- (११३-१२३)



मुहम्मद बार बार कहते हैं कि वह क़यामत की (मुख़्तलिफ़ ड्रामे बाज़ी करके) लोगों को डरा रहा हूँ, डराने वाला ज़ाहिर है झूठा होता है, मुसलमान इसी बात को ही अगर समझ लें तो उनकी इसमें बेहतरी है, मगर इतना ही काफ़ी नहीं है, क्यूं कि उम्मी के पास शब्द भंडार नहीं थे कि वह ''डराने'' की जगह आगाह या तंबीह लफ़्ज़ों को अपने कलाम में लाते. इस से साबित होता है कि मुहम्मद अव्वल दर्जे के फ़ासिक़ और दरोग़ गो थे. क़ुरआन के एक एक हर्फ़ झूठे हैं, 

जब तक इस बात पर मुसलमान ईमान नहीं लाते, वह सच्चे मोमिन नहीं कहलाएंगे.
क़ुरआन अरबी में है, मुनासिब था कि ये अरबियों तक सीमित रहता, 
वह रहते कुँए के मेंढक, मगर यह तो तलवार के ज़ोर और ओलिमा के प्रोपोगंडा से पूरी दुन्या में मोहलिक बीमारी बन कर फैल गया. 
हमारे पूर्वजों के वंशजों पर इसका कुप्रभाव ऐसा पड़ा कि अपने रंग में रंगे भारत टुकड़ों में बट गया, 
अफ़ग़ानिस्तान में शांति प्रिय बुद्धिस्ट तालिबानी बन गए, 
आर्यन की मुक़द्दस सरज़मीन नापाक (किस्तान) हो गई, साथ साथ आधा बंगाल भी इस्लाम के भेट चढ़ गया. 
अगर इस्लाम का स्तित्व न होता तो भारत हिंदुत्व ग्रस्त कभी भी न होता, कोई महान ''माओज़े तुंग'' यहाँ भी पैदा होता जो धर्मों की अफ़ीम से भारत को मुक्त कराता और आज हम चीन से आगे होते.
मुसलमान क़ौम, क़ौमों में रुवाई और ज़िल्लत उठा रही है, 
इबादत और दुवाओं के फ़रेब में आकर. 
मुन्जमिद क़ौम की कोड़ों की मार और संगसारी सिंफे-नाज़ुक पर, 
ज़माना इनकी तस्वीरें देख रहा है, 
यह ओलिमा अंधे हो कर इस्लाम की तबलीग़ में लगे हुए है क्यूंकि मुसलामानों की दुर्दशा ही इनकी ख़ूराक है.



''रोज़-हश्र अल्लाह गुनेहगार मुर्दों को क़ब्र से अँधा करके उठाएगा और कहेगा कि तूने मेरे हुक्म को नहीं माना, मैं भी तेरे साथ कोई रिआयत नहीं करूंगा. अल्लाह कहता है क्या इस से भी लोगों को इबरत नहीं मिलती कि इससे पहले कई गिरोहों को हमने हलाक कर दिया, (मूसा द्वारा बर्बाद और वीरान की गई बस्तियों का हवाला देते हुए) कहता कि क्या इनको वह दिखता नहीं कि यहाँ लोग चलते फिरते थे. मुहम्मद समझाते हैं कि अगर अल्लाह ने अज़ाब के लिए एक दिन मुक़ररर न किया होता तो अज़ाब आज भी नाज़िल हो जाता. अल्लाह बार बार मुहम्मद को तसल्ली देता है कि आप सब्र कीजिए जल्दी न मचाइए और दुखी मत होइए. अपने रब की हम्द के साथ इसकी तस्बीह कीजिए. 
ख़बरदार! खुश हाल लोगों की तरफ़ नज़र उठा कर भी न देखिए कि वह उनके साथ मेरी आज़माइश है. आप के रब का इनआम तो आख़रत है. समझाइए अपने साथियों को कि नमाज़ पढ़े, और ख़ुद भी पाबन्दी रखिए. अल्लाह कहता है - -  ''

''हम आप से मुआश कमवाना नहीं चाहते मुआश तो आप को हम देंगे.और बेतर अंजाम तो परहेज़ गारी है.'' 
सूरह ताहा- २० आयत- (१३०) 



अवाम जब मुहम्मद से पैग़म्बरी की कोई निशानी चाहते हैं तो जवाब होता है, पहले के नबियों और उन पर उतरी किताबों की बातें क्या नहीं कान पडीं. कहते हैं हम सब आक़बत की दौड़ में हैं 

देखना है कि कौन राहे रास्त पर है किसको मंजिले मक़सूद मिलती है.
सूरह ताहा- २० आयत- (१३४-१३५)



इतना ज़ालिम अल्लाह ? 

अगर अपने बन्दों को अँधा कर के उठाएगा तो वह मैदाने-हश्र में पहुचेंगे कैसे? 
इस क़यामती ड्रमों ने तो मुसलमानों को इतना बुज़दिल बना दिया है कि वह दुन्या में सबसे पीछे खड़े होकर अपने अल्लाह से दुआओं में मसरूफ़ हैं, 
उनके अक़्ल में ये बात नहीं घुसती कि दुआ का फ़रेब इनको पामाल किए हुए है.
मुसलमानों! 
तुमहारी ख़ुशहाली न अल्लाह को गवारा है, न तुमहारे मफ़रूज़ा पैग़म्बर को, न इन हराम खो़र इस्लामी एजेंटों को .
देखो आँखें खोल कर तुम्हारे अल्लाह को अपनी मशक्क़त से रोज़ी रोटी गवारा नहीं? वह अपने रसूल से कहता है,
''हम आप से मुआश कमवाना नहीं चाहते मुआश तो आप को हम देंगे.और बेतर अंजाम तो परहेज़ गारी है.'' 
सूरह ताहा- २० आयत- (१३०)
तरक़्क़ी की जड़ है अनथक मेहनत मगर इस्लाम में इसकी तबलीग़ कहीं भी नहीं है, जंगों से मिला माले ग़नीमत जो मुयस्सर है.
मुहम्मद फ़रमाते हैं - - -
'' अमलों में तीन अमल अफ़ज़ल हैं - - - 
(हदीस-बुखारी २५)
* १-अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखना.
* २-अल्लाह की राह में जेहाद करना.
* ३- हज करना.
देखें कि बेअमली को वह अमल बतलाते है. 
१-ये आस्था है, अमल या कर्म नहीं.
2-जेहाद ही को मुहम्मद ज़रीआ मुआश कहते है. 
कई हदीसें इसकी गवाह हैं.
३-तीर्थ यात्रा भी कोई अमल नहीं अरबियों की परवरिश का ज़रीआ मुहम्मद ने क़ायम किया है, जो आज काबा है.
मुसलमानों !
मेरी तहरीर में आपको कहीं भी कोई खोट नज़र आती है? 
मेरे इन्केशाफ़ात (उदघोषण) में कहीं भी कोई ऐसा नुक़ता-ऐ-रूपोश आप पकड़ पा रहे हैं जो आप के ख़िलाफ़ हो? 
हम समझते हैं कि मेरी बातों से आप परेशान होते होंगे और दुखी भी. 
मेरी ईमान गोई आपको अपसेट कर रही है, 
ज़ाहिर है आपरेशन में कुछ तकलीफ़ तो होती है. 
मैं क़ुरआनी मरज़ से आपको नजात दिलाना चाहता हूँ, 
अपनी नस्लों को मोमिन की ज़िदगी दीजिए, 
ज़माना उनकी पैरवी में होगा, 
फ़ितरत के आगोश में बेबोझ वह आबाद होंगे.

मोमिन को समझने की कोशिश कीजिए.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 14 July 2018

Hindu Dharm Darshan207


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (12)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
यदि कोई कृष्णाभावनामृत अंगीकार कर लेता है तो भले ही वह शाश्त्रानुमोदित कर्मों को न करे अथवा ठीक से भक्ति न करे और चाहे वह पतित भी हो जाए तो इसमें उसकी हानि या बुराई नहीं होगी. किन्तु यदि वह शाश्त्रानुमोदित सारे कार्य करे तो उसके किस काम का है ?
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 1.5.17
*
और क़ुरआन कहता है - - - 
"कुल्ले नफ़्सिन ज़ाइक़तुलमौत''-हर जानदार को मौत का मज़ा चखना है, 
और तुम को तुम्हारी पूरी पूरी पादाश क़यामत के रोज़ ही मिलेगी, सो जो शख़्स दोज़ख़ से बचा लिया गया और जन्नत में दाख़िल किया गया, सो पूरा पूरा कामयाब वह हुवा। और दुनयावी ज़िन्दगी तो कुछ भी नहीं, सिर्फ़ धोके का सौदा है।" 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (185) 

क्या गीता और कुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती को शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ 
क्या इस क़ाबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए,
 गवाह बनाया जाए ???
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 9 July 2018

Soorah Taha -20 Q- 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
***********

सूरह ताहा २० 
क़िस्त-1


बहुत से लक़बों (उपाधियों) के साथ साथ तथा-कथित पैग़म्बर मुहम्मद का एक लक़ब उम्मी भी है जिसके के लफ़्ज़ी मअनी होते हैं अनपढ़ और जाहिल. 
ये लफ्ज़ किसी फ़र्द को नफ़ी (न्यूनता की परिधि) में ले जाता है, 
मगर बात मुहम्मद की है तो मअनी कुछ और ही हो जाता है. 
इस तरह उनके तुफ़ैल में उम्मी शब्द पवित्र और मुक़द्दस हो जाता है. 
ये इस्लाम का ख़ास्सा है. इस्लामी इस्तेलाह (परिभाषा) में कई अलफ़ाज़ आलिमों के साज़िशों से अस्ल मअनी कुछ के कुछ हो गए हैं, जिसे आगे आप देखेंगे. 
मुहम्मद निरे उम्मी थे, 
मुतलक़ जाहिल. 
क़ुरआन उम्मी, अनपढ़ और अक़ली तौर पर उजड, 
मुहम्मद का ही कलाम (वचन) है जिसे उनके गढ़े हुए अल्लाह का कलाम कहा जाता है. 
इसको क़ुराने-हकीम कहा जाता है यानी हिकमत से भरी हुई बातें.
क़ुरआन के बड़े बड़े हयूले बनाए गए, 
बड़ी बड़ी मर्यादाएं रची गईं, 
ऊंची ऊंची मीनारें क़ायम की गईं, 
इसे विज्ञान का का जामा पहनाया गया, तो कहीं पर रहस्यों का दफ़ीना साबित किया गया है. 
इसे कहीं पर अज़मतों का निशान बतलाया गया है तो कहीं पर जन्नत की कुंजी, और हर सूरत में नजात (मुक्ति) का रास्ता. 
निज़ामे-हयात (जीवन विद्या) तो हर अदना पदना मुसलमान इसे कह कर फूले नहीं समाता, 
गोकि दिनो-रात मुस्लमान इन्हीं क़ुरानी आयतों की गुमराही में मुब्तितिला, पस्पाइयों में समाता चला जा रहा है. 
आम मुसलमान क़ुरआन को अज़ खुद कभी समझने की कोशिश नहीं करता, उसे हमेशा अपनी ओलिमा (धर्म गुरु) ही समझाते हैं.
इस्लाम क्या है? 
इसकी बरकत क्या है? 
छोटे से लेकर बड़े तक सारे मुसलमान ही दानिश्ता और ग़ैर दानिश्ता तौर पर इस के झूठे और खोखले फ़ायदे और बरकतों से जुड़े हुए हैं. 
सच पूछिए तो कुछ मुट्ठी भर अय्यार और बेज़मीर मुसलमानों का सब से बड़ा ज़रीया मुआश (भरण पोषण) इस्लाम है जो कि इसी तबके के मेहनत कश  अवाम पर मुनहसर करता है, 
यानी बाक़ी क़ौमों से बचने के बाद ख़ुद मुसलमान मुसलमानों का इस्तेह्सल (शोषण) करते हैं. 
दर अस्ल यही मज़हब फ़रोशों का तबक़ा, ग़रीब मुसलामानों का ख़ुद दोहन करता है और दूसरों से भी इस्तेह्साल कराता है. 
वह इनको इस्लामी जेहालत के दायरे से बाहर  निकलने ही नहीं देता.

"ताहा" 
सूरह ताहा- २० आयत- 1 

यह शब्द निरर्थक है. 
ऐसे शब्दों को क़ुरआनी सन्दर्भ में हुरूफ़े-मुक़त्तेआत कहते हैं जिसका मतलब बन्दे नहीं जानते, अल्लाह ही जाने. 
ऐसे शब्द सूरह के पहले कभी कभी आते हैं. 
यहाँ यह शब्द एक आयत भी बन गई है, 
अर्थात अल्लाह का एक पैग़ाम जिसे बन्दे न समजते हुए भी गाया करते हैं. 

"हमने क़ुररान को आप पर इस लिए नहीं उतारा कि आप तकलीफ़ उठाएं बल्कि ऐसे शख़्श के नसीहत के लए उतारा है कि जो अल्लाह से डरता हो" 
सूरह ताहा- २० आयत- २-३ 

ऐ अल्लाह ! 
तू अगर वाक़ई है तो सच बोल तुझे इंसान को डराना भला क्यूं अचछा लगता है ? 
क्या मज़ा आता है कि तेरे नाम से लोग थरथरएं ? 
गर बन्दे सालेह अमल और इंसानी क़द्रों का पालन करें जिससे कि इंसानियत का हक़ अदा होता हो तो तेरा क्या नुक़सान है? 
तू इनके लिए दोज़खें तैयार किए बैठा है, तू सबका अल्लाह है या कोई दूसरी शय ? 
तेरा रसूल लोगों पर ज़ुल्म ढाने पर आमादा रहता है. 
तुम दोनों मिलकर इंसानियत को बेचैन किए हुए हो. 

"क्या आपको मूसा की ख़बर है? उन्हों ने एक आग देखी, तो घर वालों से कहा तुम ठहरे रहो, मैं ने एक आग देखी है, शायद कोई शोला तुम्हारे लिए ला सकूं और रास्ते का पता मालूम हो सके और जब मूसा आग के पास पहुंचे तो अल्लाह ने आवाज़ दी कि ऐ मूसा! तू अपनी जूतियाँ उतार दे. हमने तुझे मुन्तख़िब किया है. जो कुछ वह्यि (ईश्वरीय-आज्ञा) की जा रही है, तू उसे सुन. मैं ही अल्लाह हूँ , मेरे सिवा कोई माबूद नहीं , मेरी ही इबादत किया करो और मेरे नाम की नमाज़ पढ़ा करो. दूसरी बात सुनो बिला शुब्ह क़यामत आएगी. मैं इसको पोशीदा रखना चाहता हूँ, ताकि हर शख़्श को उसके किए का बदला मिले." 
सूरह ताहा- २० आयत- ९-१५ 

जब मुहम्मद को उनके यहूदी मुख़बिर से कोई ख़बर मिलती तो वह अपने क़बीलाई माहौल में इसे अल्लाह की वह्यी (ईश्वरीय-आज्ञा) बना कर पेश करते. वह सूचना में कुछ फेर बदल कर लेते ताकि बात मुहम्मद की अपनी लगे, वह उसमें नमाज़ ज़कात की बातें बतौर आमेज़िश शामिल कर देते. एक बेवकूफी की बात भी ज़रूर शामिल करते .... 
देखिए अल्लाह कहता है. 
"दूसरी बात सुनो ! बिला शुब्ह क़यामत ज़रूर आएगी . मैं इसको पोशीदा रखना चाहता हूँ ताकि लोगों को इसका बदला मिल सके." 
*
"अल्लाह मूसा की लाठी में करामत पेश करता है और गदेली में सफ़ेद दाग जिसे यदे-बैज़ा कहा गया. अल्लाह मूसा को हुक्म देता है कि इन निशानियों को लेके फ़िररौन के पास जाओ क्यूंकि वह हद से निकल गाया है. 
मूसा कुछ और चाहते हुए अल्लाह से कहते हैं कि वह इनकी ज़बान से लुक्नत (तुतलाहट) हटा दे और मदद के लिए इनके भाई हारून को इनका सहायक बना दे" 
सूरह ताहा- २० आयत- १५-३६ 

अल्लाह मूसा की दरख्वास्त को मंज़ूर करता है और कहता है,

"हम तो तुम पर और एक बार एहसान कर चुके है कि तुम्हारी माँ को इल्हाम में बतलाया था कि तुम को जल्लादों के हाथों से बचाने के लिए सन्दूक में रखकर दरया में डाल दें. हमने तुम्हारे दिल में डाल दिया था कि तुम हम से राग़िब रहो और मेरी निगरानी में परवरिश पाओ. तुम्हारी बहन भागती हुई हमारे पास आई थी कि तुम्हें परवरिश के लिए कुछ करूँ, सो हमने कुछ ऐसी तरकीब किया कि तुम फिर अपनी माँ की परवरिश में चले गए ताकि इनकी आँखें ठंडी हों और तुमने एक शख़्श को जान से मार डाला, फिर हमने तुमको ग़मों से नजात दी. और हमने तुमको सख़्त मेहनतों में डाला और तुमको तुम्हारे भाई समेत मुअज्ज़ा दिया. जाओ हमारी याद  में सुस्ती मत करो."
सूरह ताहा- २० आयत- ३७-४२ 

मुहम्मद का ज़ेहनी मेयार इन बातों में निहाँ है कि 
देखिए  अल्लाह एहसान भी करता है और तरकीब भी भिड़ाता है. 
कितना बड़ा हादसा है जो मुसलामानों के दिल पर क़ाबू किए हुए है. 
वह इन्ही बातों की सुब्ह व् शाम इबादत करते हैं. 
इस क़ौम की रहनुमाई कोई नहीं कर सकता.
ऐ अल्लाह अगर तू कोई हस्ती है तो हिन्दुस्तान में माओत्ज़े तुंग को भेज. 

मूसा अपने भाई हारुन को लेकर फ़िरौन के दरबार में पहुँचता है और उससे अपने लोगों को आज़ाद करने की बात करता है. मूसा से फ़िरौन और उसके जादूगरों से लफ्ज़ी जंग होती है 
फिर अपने मकर का सामान जमा करना शुरू किया. मूसा ने उन लोगों से फ़रमाया
 "ऐ कमबख़्ती मारो अल्लाह तअला पर झूठा इफ़तार मत बांधो, कभी वह तुमको सजा से बिलकुल नेस्त नाबूद न करदे ". 
सूरह ताहा- २० आयत- ६१ 

फ़िरौन और मूसा में जादुई मुक़ाबले शुरू हो जाते हैं. अल्लाह कभी खुद फ़िरौन को जादूगर बतलाता है, कभी उसके जादूगरों को. यह तौरेत का मशहूर ए ज़माना वाक़िया है जिसे क़ुरआन में मुहम्मद निहायत फूहड़ ढंग से पेश कर रहे हैं . 
इस नाटक के आख़िर में मूसा की लाठी का बड़ा सांप, फ़िरौन के जादूगरों की रस्सियों के छोटे छोटे साँपों को निंगल जाता है. फ़िरौन के जादूगर मूसा के क़दमों में गिर कर लिपट जाते हैं और मूसा पर ईमान लाते हैं. मूसा के बतलाए हुए अल्लाह पर ईमान लाते हैं. फ़िरौन अपने जादूगरों से नाराज़ होकर हुक्म देता है कि इनके हाथ और पैर काट कर इनको पेड़ों पर लटका दिया जाए. 
सूरह ताहा- २० आयत- ६८-७१ 

यहूदियों की सुनी सुनाई कहानी में मिलावट करके मुहम्मदी अल्लाह दूसरे वाक़ेआत को आगे बयान करते रहने का वादा करके फिर इस्लामी डफ़ली क़यामत का राग अलापने लगता है..... 
जब सूर फूँका जाएगा और तमाम मुर्दे अपनी अपनी क़ब्रों से बरामद होंगे और आपस में बातें करेंगे . . . 

"जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसे बहिश्तों में दाख़िल कर देगा जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इसमें रहेंगे , ये बड़ी कामयाबी होगी" 
सूरह ताहा- २० आयत-  ७२-७६ 

ये जुमला मुहम्मदी अल्लाह  का क़ुरआन में तकिया कलाम है, 
इसे वह बार बार इसे दोहराता है. 

मूसा का फ़िरौन से बनी इस्राईल को आज़ाद कराने, फिर इन्हें दर्याए नील पार कराने और फ़िरौन को ग़र्क़ ए आब करने, इसके बाद कोहेतूर पर ले जाने और मन व् सलवा बरसाने की बातें दोहराते हुए अल्लाह मूसा को आगाह करता है कि तेरी क़ौम हद से न गुज़रे .
मूसा कलीम उल्लाह तूर पर अल्लाह के दरबार में वास्ते कलाम पहुँचते हैं तो अल्लाह शिकायत ले बैठता है कि तू जिस अपनी क़ौम को पीछे छोड़ आया है व एक सामरी के जाल में फँस चुकी है. मूसा रंजीदा हो कर पहाड़ से नीचे उतरता है, क़ौम पर अपनी खफ़गी का इज़हार करता है . मूसा सामरी से पूछता है 
बता तेरा मुआमला क्या है? 
वह कहता है कि मैं मुट्ठी भर ख़ाक उठाता हूँ और डाल देता हूँ , 
इसनें इसका कोई कमाल छिपा होगा जिससे अवाम मुरीद हो गई होगी?
मूसा इसको आगाह करता है कि एक माबूद के सिवा दूसरा कोई क़ाबिले इबादत नहीं. और फिर इसके बाद शुरू हो जाती है तब्लिगे-इस्लाम .
अल्लाह वादा करता है आगे भी ऐसी कहानियाँ सुनाता रहूँगा"
सूरह ताहा- २० आयत-  ७६-१०० 
मुसलमानों! 
तुम जिस क़ुरआन को वास्ते सवाब पढ़ते हो उसमे तुम्हारा अल्लाह ढंग की कहानी भी नहीं बयान कर पाता. बेश क़ीमत फ़रमान और एलन तो दूर की बात है. 
मुहम्मद की आजिज़ करने वाली बकवास को कलाम इलाही समझते हो.

***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान