Monday 2 July 2018

सूरह मरियम 19 (क़िस्त 1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह मरियम 19
(क़िस्त  1)


* क्या आप कभी ख़याल करते हैं कि इस जहाँ में आपका सच्चा रहनुमा कौन है?

* क्या आप ने कभी ग़ौर किया कि किस मसलके-इस्लाम से आप का तअल्लुक़ है?
* क्या आपने कभी ख़याल किया कि आप का महफूज़ मुल्क कहाँ है?
* क्या आपने कभी सोचा कि आप में से किसी ने इस धरती को कुछ दिया, 
जिससे सब कुछ ले रहे है?
* क्या आप ने कभी खोजबीन की, कि मौजूदा ईजाद और तरक़्क़ी में आपका कोई योगदान है? 
जब कि भोगने में सब से आगे है ?
* क्या आप ने कभी ख़याल किया कि अपनी नस्लों के लिए किया कर रहे हैं? 



बतौर नमूने के यह चन्द सवाल मैंने आपके सामने रख्खे हैं, 
सवाल तो सैकड़ों हैं. 
बग़ैर दूर अनदेशी के जवाब तो आपके पास हर सवाल के होंगे मगर हक़ीक़त में आप के पास कोई मअक़ूल जवाब नहीं, अलावः शर्मसार होने के, क्यूँकि आपको मुहम्मदी अल्लाह ने आप को गुमराह कर रखा है 
कि यह दुन्या फ़ानी है और आक़बत की ज़िदगी लाफ़ानी. 

इस्लाम ९०% यहूदियत है और यह अक़ीदा भी उन्हीं का है. 
वह इसे फ़रामोश करके आसमान में सुरंग लगा रहे हैं 
और मुसलमान उनकी जूठन चबा रहे हैं. 

पहला सवाल है मुसलमानों की रहनुमाई का? 
अलावा रूहानी हस्तियों के कोई क़ाबिले ज़िक्र नहीं, 
रूहानियत जो अपने आप में इन्सान को निकम्मा बनाती है, 
इनको छोड़ कर जिसके शाने बशाने आप हों?
 आला क़द्रों में कबीर, शिर्डी का साईं बाबा जैसे जो आपके लिए नियारया हो सकते थे उनको आप ने इस्लाम से ख़ारिज कर दिया और वह हिन्दुओं में बस कर उनके अवतार बन गए. 
माज़ी क़रीब में क़ायदे-आज़म मुहम्मद अली जिना 
शराब और सुवर के गोश्त के शौक़ीन थे, 
कभी भूल कर नमाज़ रोज़ा नहीं किया, 
कैसे पाकिस्तानियों ने उनको क़ायदे-आज़म बना दिया? 
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद सूरज डूबते ही शराब में डूब जाते थे. 
ए.पी.जे अब्दुल कलाम तो मौजूदा ही हैं, 
मुसलमान उनको मुहम्मदी हिन्दू कहते हैं. 
इनमें से कोई इस्लाम की कसौटी पर खरा नहीं उतरता.
 गाँधी जी जो आप के हमदर्दी में गोली के शिकार हुए, 
उनको आप के ओलिमा काफ़िर कहते हैं. 
बरेली के आला हज़रात ने तो उनकी अर्थी यात्रा में शामिल होने वाले मुसलमानों को काफ़िर का फ़तवा दे दिया था. 
एक कमाल पाशा तुर्की में मुस्लिम रहनुमा सही मअनो में हुवा, 
जिसको इस्लामी दुन्या क़यामत तक मुआफ़ नहीं करेगी. 
पिछली चौदह सदियों से आप लावारिस हैं, 
क्यूँकि आप का वारिस, मालिक, रहनुमा है मुहम्मदी अल्लह 
और वह फ़रेब जिसके आप शिकार हैं आप के आख़रुज़्ज़मा, 
सललल्लाहो अलैहे वसल्लम.
आप किस टाइप के मुसलमान है? 
टाईप नंबर एक तो आप को काफ़िर कहता है. 
हर मस्जिद किसी न किसी मुल्ला की हुकूमत बनी हुई है. 
ख़ुद मुहम्मद ने मस्जिदे नबवी को अपने हाथों से मदीने में मिस्मार किया कि वह काफिरों की मस्जिद हो गई थी. 
अली ने तीनो ख़लीफ़ाओं को क़त्ल कराया, 
यहाँ तक कि उस्मान ग़नी की लाश तीन दिनों तक सड़ती रही, 
तब रहम दिल यहूदियों ने उनको अपने क़ब्रिस्तान में दफ़नाया था. 
दुन्या भर में बक़ौल मुहम्मद अगर मुसलमानों के ७२ फिरके हो चुके थे, 
तो उनमें से ७१ आपका जानी दुश्मन है.
फिर भी आप मुसलमान हैं? 
जाएँगे भी कहाँ? सोचें कि कोई रास्ता बचा है आपके लिए?
आपका कोई मुल्क नहीं,  
आप आज़ादी के साथ कहीं भी नहीं रह सकते, 
हर मुल्क में आप पड़ोस में दुश्मन पाले हुए हैं. 
आपका कोई मुल्क हो ही नहीं सकता, 
तमाम दुन्या पर इस्लाम को छा देने की आप का मिशन जो है. 
आप को अमलन देखा गया है कि मुस्लिम हुक्मरान हमेशा एक दूसरे को फ़तह करते रहे. बस काबे में आप सब ज़रूर इकठ्ठा होते हैं, 
लबबैक कह कर, ताकि कुरैशियों को इमदाद जारिया हो 
और आप को मुहम्मदी सवाब मिले.
आप ने ख़िदमत ए ख़ल्क़ के लिए कोई ईजाद की? 
कोई तलाश कोई या कोई खोज मुसलामानों द्वारा वजूद में आई ? 
आप दो चार मुस्लिम नाम गिना सकते हैं और ए. पी जे. अब्दुल कलाम को भी पेश कर सकते हैं, 
मगर आप अच्छी तरह जानते हैं कि साइंटिस्ट कभी मुसलमान हो ही नहीं सकता. मुसलमान तो सिर्फ़ अल्लाह का खोजी होता है 
और उम्मी मुहम्मद को सब से बड़ा साइंसदान ख़याल करता है. 
जहाँ कोई फ़नकार बना कि टाट पट्टी बाहर हुवा. 
मकबूल फ़िदा हुसैन या नव मुस्लिम ए. आर. रहमान जैसी आलमी हस्तियाँ क्या इस्लाम को गवारा हैं? 
हम तो यहाँ तक कहेंगे कि मुसलमानों को नई ईजादों की बरकतों को छूना भी नहीं चाहिए, चाहे रेल हो या हवाई सफ़र हो, 
चाहे बिजली हो. मोबाईल हो, कप्यूटर हो,ए.सी हो, 
मुसल्म्मानों के लिए हराम हो जाना चाहिए, 
या फिर इस्लाम हराम हो जाना चाहिए
तब होश ठिकाने आएँगे. 
इसकी तालीम भी इनके लिए ममनू हो अगर तालिब इल्म इस्लामी अक़ीदे का हो, 
जदीद इल्म का इस्तेमाल तालिबान बन कर इंसानियत पर ख़ुदकुश बम बन कर नाज़िल होता रहेगा.
क्या आपने कभी सोचा कि मुहम्मद के बाद मुसलमानों में कोई आलमी हस्ती पैदा हुई है? 
कोई नहीं. 
उन्हों ने इसकी इजाज़त ही नहीं दी. ज़माना जितना आगे जाएगा, मुसलमान उतना ही पीछे चला जायगा. एक दिन इसके हाथ में झाड़ू पंजा आ जाएगा. इसकी अलामत बने मज़लूम बिरादरी ( मेहतर ) भी जग गई है 
मगर मुसलमानों की नींद ही नहीं खुल रही है.
मुसलमानों ! 
मोमिन आप के साथ रहते हुए आप को जगा रहा है, 
वर्ना उसके लिए बड़ा आसान था ईसाई या हिन्दू बन जाना. 
क्यूं अपनी जान को हथेली पर रख कर मैदान में उतरा? 
इस लिए कि आप लोग सब से ज़्यादः इंसानी बिरादरी की आँखों में खटक रहे हो. 
मै आपका कुछ भी नहीं छीनना चाहता, 
जैसे हैं, जहाँ हैं, बने रहिए, 
बस ईमानदार मोमिन बन जाइए, 
देखिएगा कि ज़माने कि नफ़रत आपकी पैरवी में बदल जाएगी.
इस्लामी ओलिमा को अपनी ड्योढ़ी मत लांगने दीजिए, 
इन्हें गलाज़त आलूद खिंजीर मानिए. 
इनके अलावा जो भी आपको इस्लाम के हक़ में समझाए, 
देखिए कि इसकी रोज़ी रोटी तो इस्लाम से वाबिस्ता नहीं है? 
ऐसे लोगों की मदद कीजिए कि वह हराम ज़रीआ मुआश बदल सकें. 
आप जागिए और दूसरों को जगाइए.

''खायाअस''
सूरह मरियम 19 आयत(1)

यह शब्द मुहम्मदी अल्लाह का मन्त्र है, पढ़ने वाले इस का मतलब नहीं जानते मगर हाँ! यह अल्लाह की कही हुई कोई बात ज़रूर है जिस का मतलब वही जानता है.
ऐसे पचास मोह्मिलात (अर्थ हीन) हैं जिन को क़ुरआन की कोई सूरह शुरू करने से पहले इसका उच्चारण मुसलमान करते हैं.
इंसानी नफ़सियत (मनो विज्ञानं) के माहिर मोहम्मद ने मुसलमानों के लिए यह शब्द गढ़े, गोकि वह निरक्षर थे,
जैसे जोगी जटा मदारी तमाशा दिखलाने से पहले मन्त्र से भूमिका बाँधता है.
 
''ये तज़करह है आप के परवर दिगार के मेहरबानी फ़रमाने का अपने बन्दे ज़कारिया पर जब कि उन्होंने अपने परवर दिगार को पोशीदा तौर पर पुकारा. अर्ज़ किया ऐ मेरे परवर दिगार ! मेरी हड्डियाँ कमज़ोर पड़ गई हैं और मेरे सर में बालों की सफ़ैदी फैल गई है और आप से मांगने में ऐ मेरे रब, मैं नाकाम नहीं रहा हूँ और मैं अपने बाद रिश्ते दारों से ये अंदेशा रखता हूँ और मेरी बीवी बाँझ है. आप अपने पास से ऐसा वारिस दे दीजिए''

''ऐ हम तुमको एक नेक फ़रज़न्द की खुश खबरी देते हैं जिसका नाम यहिया होगा कि इससे पहले हमने किसी को इसका हम सिफ़त न बनाया होगा. अर्ज़ किया ऐ मेरे रब मेरे औलाद कैसे होगा हालाँकि मेरी बीवी बाँझ है और में बुढ़ापे के इन्तेहाई दर्जे को पहँच गया हूँ. इरशाद हुवा कि यूं ही तुम्हारे रब का क़ौल है कि ये मुझको आसान है. हमने तुमको पैदा किया तो तुम न कुछ थे. अर्ज़ किया कि मेरे रब मेरे लिए कोई अलामत मुक़रार फ़रमा दीजिए इरशाद ये हुवा कि तुम्हारी अलामत ये है कि तुम तीन दिन किसी आदमी से बात न कर सकोगे. पस कि हुजरे में से अपनी क़ौम की तरफ़ बरामद हुए और इरशाद फ़रमाया कि तुम लोग सुब्ह शाम ख़ुदा की पाकी बयान किया करो. ऐ यहिया किताब को मज़बूत होकर लो और हमने उनको लड़कपन में ही समझ और ख़ास अपने पास से रिक़्क़त ए कल्ब और पाकीज़गी अता फरमाई थी - - - और उनको सलाम पहुँचे जिस दिन से वह पैदा हुए और जिस दिन कि वह इन्तेक़ाल करेंगे और जिस दिन वह जिन्दा हो कर उठाए जाएगे.
सूरह मरियम 19 आयत(2-15)

तौरेती हस्ती ज़खारिया का नाम और बुढ़ापे में साहिबे औलाद होना ही मुहम्मद ने सुन रखा था, उसकी जानकारी देकर आगे बढ़ गए.
ज़ख़ारिया का मुख़्तसर तअर्रुफ़ दे दूं कि वह और उसकी बीवी उम्र की ढलान पर थे कि औलाद हुई, जैसा कि आजकल भी देखा जा सकता है. 
ये यहूदी शाशक हीरोद के ज़माने में हुए. ज़ख़ारिया से ज़्यादः इसके बेटे योहन क़ाबिले ज़िक्र हैं जिनका नाम मुहम्माद ने यहिया बतलाया कि वह अहेम था.
योहन ईसा कालीन एक सत्य वादी हुवा था जिस का राजा हीरोद ने एक रक़्क़ासा की मर्ज़ी से सर कलम कर दिया था. योहन की माँ अल्हुब्बियत और मरियम आपस में सहेलियां हुवा करती थीं और साथ साथ हामला हुई थीं. ज़खरिया औलाद पैदा होने के बाद तरके-दुन्या हो गया था. 
ईसा यहिया की खबर से ऐसा ख़ायाफ़ हुए कि सर पे पैर रख कर भागे और आख़िर कार गिरफ़्तार हुए और सलीब पर चढ़ा दी गए. 

मंदार्जा ज़ेल जुमले पर ग़ौर करें कि उम्मी मुहम्मद अपनी धुन में क्या कह रहे हैं.
 ''और इस किताब में मरियम का भी तज़करह करिए जब मरियम अपने घर वालों से अलाहिदा एक ऐसे मकान में जो मशरिक जानिब था, नहाने के लिए गईं. फिर इन घर वालों के बीच उन्हों ने पर्दा डाल दिया, पास हमने अपने फ़रिश्ते जिब्रील को उनके पास भेज दिया और मरियम के सामने पूरा बशर बन कर ज़ाहिर हुवा. मरियम ने कहा मैं तुझ से रहमान की पनाह मांगती हूँ और अगर तू ख़ुदा तरस है तो यहाँ से हट जा. उसने कहा मै तेरे रब का भेजा हुवा फ़रिश्ता हूँ (आया इस लिए हूँ) ताकि तुझ को एक पाकीज़ा औलाद दूं. मरियम ने कहा मुझे बच्चा कैसे हो जायगा? जब कि मुझे किसी मर्द ने हाथ नहीं लगाया है.और न मैं बदकार हूँ, फ़रिश्ते ने कहा यूं ही, यह उसके लिए आसान है, इस लिए पैदा करेंगे ताकि ये लोगों के लिए निशानी हो और रहमत बने और ये एक तय शुदा बात है. और फिर मरियम के पेट में बच्चा रह गया. फिर इस को लिए हुए वह दूर चली गई, फिर दर्द ज़ेह (प्रसव पीड़ा) के आलम में खजूर की तरफ़ आई और कहने लगी कि काश! मैं इससे पहले ही मर गई होती और ऐसी नेस्त नाबूद होती कि किसी को याद भी न आती. फिर जिब्रील ने पुकारा तुम मग़मूम मत हो. तुम्हारे पैताने तुम्हारे रब ने नहर पैदा कर दी है और खजूर के तने को पकड़ कर हिलाओ, तुम्हारे लिए ताज़े ख़ुरमें गिरेंगे सो इन्हें खाओ और पानी पियो. और आँखें ठंडी करो फिर जब तुम किसी आदमी को देखो कह दो कि हम ने तो रोज़ा के वास्ते अल्लाह से मन्नत माँग रख्खी है, सो आज मैं किसी आदमी से न बोलूंगी''
(उम्मियत का एक नमूना)
सूरह मरियम 19 आयत(16-26)

हक़ीक़त ये है कि ईसा मरियम के शौहर का नहीं बल्कि उसके मंगेतर यूसुफ़ का बेटा था और दोनों की शादी होने से पहले बच्चा पैदा हो गया था, रूढ़ी वादी समाज उस वक़्त ऐसी औलाद को हरामी क़रार देता था, जैसे आज मुस्लिम समाज को देखा जा सकता है.
हरामी है, हरामी है - - - का तअना सुन सुन कर बच्चे ईसा का दिल बचपन में ही मजरूह हो गया. चौदह साल की उम्र में इस यहूदी नवजवान ने योरुसलम की एक इबादत गाह में पनाह ली, जहाँ उसने ख़ुद को ख़ुदा का बेटा कहा और उसी दिन दिन से वह खुदा का बेटा मशहूर हुवा.
बिलकुल कबीर की कहानी है, कबीर की तरह उसने भी रूढ़ी वादिता का सामना किया. ईसा की ऐसी चर्चा हुई कि वह हुकूमत की निगाहों में आ गया और सलीब पर चढ़ा दिया गया.
सलीब पर चढ़ जाने के बाद वह वाक़ई वह ख़ुदा  का बेटा बन गया.
मानव जाति को यहूदियत के क़दामत की ग़ार से निकल कर जदीद वसी मैदान बख़्शने वाला ईसा, के छः सौ साल बाद वजूद में आने वाले इस्लाम ने इंसानियत को एक बार फिर यहूदियत की ग़ार में झोंक दिया.
मूसा ने नस्ली तौर पर बनी इस्राईल को ही यहूदियत की चपेट में रख्खा था,
मुहम्मद ने चौथाई दुन्या हर क़ौम को यहूदियत की ज़द में लाकर खड़ा कर दिया है.
ईसा की विवादित वल्दियत को लेकर मुहम्मद ने जो बेहूदा कहानी गढ़ी है इसे पढ़ कर ईसाइयों की दिल आज़ारी होना लाजिम है. सैकड़ों सलीबी जंगें ऐसी बातों को लेकर ईसाइयों और मुसलामानों में हुई हैं और आज तक जारी हैं.
करोरों इंसानी खून मुहम्मद के सर जाता है.
ईसा को क़ुरआन में रूहुल क़ुद्स बतलाया गया है जैसा कि उपरोक्त आयतें कहती हैं. इन आयतों पर ग़ौर कीजिए कि मुहम्मदी अल्लाह ने किस तरह जिब्रील से मरियम का रूहानी मुबाश्रत (सम्भोग) करवाया है कि जो जिस्मानी बलात्कार का ही एक मुज़ाहिरा है - -
मरियम का नहाने के लिए जाना, सामने पर्दा डालना, नहाने के लिए उरयाँ होना,
जिब्रील का बशक्ल इंसान मरियम के सामने आकर खड़े हो जाना,
मरियम का हट जाने की मिन्नत करना,
फरिस्ते का आल्लाह का फैसला सुनाना, और मरियम का हामला हो जाना - - -
यह सब ख़ुराफात के सिवा और क्या है?
ईसा की ज़िन्दगी के एक एक लम्हात तारिख इंसानी में दर्ज है और मुसलमान उस हक़ीक़त पर यक़ीन न करके क़ुरआनी आयतों कि बद तमीज़ियों पर यक़ीन करता है, 
तो अगर कोई बुश इसकी दुर्गत करे तो हैरानी किस बात की? 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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