Saturday 21 July 2018

Soorah ambiya 21 Q 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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  सूरह अंबिया -21   
क़िस्त- 1  


चलिए देखें उस डरावने बागड़बिल्ला को जो 

मुसलमानों को डरा डरा कर अल्लाह बना हुवा है- - -

कुछ मुसलमानों का मानना है कि इंसान के दिल में अगर खौ़फ़-ख़ुदा न रहे तो वह हैवान हो जायगा और माँ बहन बेटियों की तमाज़त खो देगा. 
आधी दुन्या जो नॉन बिलिवर्स है, तो क्या वह सब ऐसी ही है? 
हाँ ! मुहम्मदी तबअ रखने वाले लोग ऐसे ज़रुर हो सकते हैं, 
जिनके लिए गढ़ित अल्लाह सब रिश्तों की छूट देता है, 
या उन्हें अल्लाह मानने वाले लोग.
मुहम्मद ने इंसान की जिस सब से बड़ी कमज़ोरी पर अपनी गिरफ़्त मज़बूत की है, 
वह है अल्लाह का डर. वह क़ुरआन में बार बार कहते हैं कि वह अल्लाह की तरफ़ से तुम को डरा रहे हैं और मुसलमान उनके झूट पर रोज़े हश्र और दोज़ख़ का यक़ीन कर लेता है. उसको कैसे समझाया जाए कि दोज़ख और जन्नत सब उसके दिलो-दिमाग में हैं और कायनात में कहीं नहीं हैं, उसके बुरे और अच्छे फ़ेल ही उसको दोज़ख़ी और जन्नती बनाए रहते हैं. किसी फ़ेल या अमल से पहले ख़ूब सोच समझ लेना चाहिए कि इसका रद्दे अमल दूसरों के लिए नुक़सान दह या फ़ायदे मंद, 
बस वह हर अमल आपका रहनुमाई करता है कि आप इस वक़्त दोज़ख़ में जाने वाले है या जन्नत में. 
यह ख़याल दिमाग़ से निकाल दीजिए कि ज़माना क्या कहेगा. 
ज़माना तो ज़माना है, उसके कहने पर मत जाइए. 
 समाज में जो कमज़ोरियां हैं उनका डट कर विरोध करिए, 
एक दिन आएगा कि लोग आपके साथ होंगे और आप ख़ुद को जन्नती महसूस करेंगे.
चलिए डरपोक बने समाज को जगाया जाए कि अल्लाह किसी बनिए का मुनीम नहीं होता जो अपनी मख़लूक़ के फ़ेलों का बही खाता रक्खे, 
इस कायनात में वह हर शय में विराजमान है और हर शय उसके बनाए नियमानुसार चलती है, 
सदाक़त जन्नत के दरवाज़े पर बैठी आप का इंतज़ार कर रही है, 
 दरोग़ और झूट दोज़ख के दर पे - - -
 
''इन लोगों से इनका हिसाब नज़दीक आ पहुँचा और ये गफ़लत में एराज़ (विमुखता) किए हुए हैं. इनके पास इनके रब से जो नसीहत ताज़ा आती है, ये इसको ऐसे सुनते हैं कि उनके साथ हँसी करते हैं, उनके दिल मुतवज्जो नहीं होते और ये लोग यानी ज़ालिम लोग चुपके चुपके सरगोशी करते हैं कि ये तुम जैसे एक आदमी हैं, तो क्या तुम भी जादू के पास जाओगे? हालाँकि तुम जानते हो कि पैग़म्बर ने फ़रमाया कि मेरा रब आसमान में या ज़मीन में सब जानता है. और वह ख़ूब सुनने वाला और जानने वाला है, बल्कि कहा कि परेशान ख़यालात हैं.बल्कि इन्हों ने इसको तराश लिया है, बल्कि यह तो एक शायर हैं, तो इसको चाहिए कि हमारे पास कोई ऐसी निशानी लावें जैसे पहले लोग रसूल बनाए गए. इनसे पहले कोई बस्ती वाले जिनको हमने हलाक किया है, ईमान नहीं लाए तो क्या यह लोग ईमान ले आवेंगे और इस से पहले सिर्फ़ आदमियों को ही पैग़म्बर बनाया जिनके पास हम वह्यि को भेजा करते थे, सो अगर तुमको मालूम न हो तो अहले किताब से दरियाफ़्त कर लो, और हमने इन के ऐसे जुस्से (शरीर) नहीं बनाए थे जो खाना न खाते हों और वह हमेशा रहने वाले नहीं हुए. फिर हमने उन से जो वअदा किया था उसको सच्चा किया. यानी उनको और जिन जिन को मंज़ूर हुआ, हमने नजात दी. और हद से गुज़रने वाले को हलाक किया, हम तुम्हारे पास ऐसी किताब भेज चुके हैं कि जिसमें नसीहत है, क्या फिर भी तुम नहीं समझते''
सूरह अंबिया -21- आयत (१-१०)

वह कथित काफ़िर और जाहिल आज के तालीम याफ़्ता लोगों से कुजा बेहतर थे जो क़ुरआन को उस दीवाने पैग़म्बर का ख़याल-ए-परेशान कहते थे, कैसी माक़ूल बात है. जो आज भी लागू होती है. 
मुहम्मद अपनी बातों को तारीफ़ के सन्दर्भ में जादू जैसी पुर कशिश बतलाते हैं, नहीं जानते कि जादू झूट होता है. 
मुहम्मदी अल्लाह की तमाम वाणी मज़ाक के स्तर पर भी नहीं बल्कि मज़मूम (निन्दित) हैं. इन बातों को कैसे किसी अल्लाह का कलाम माना जा सकता है? 
मुसलामानों को इनसे पीछा छुड़ाने में शर्म कैसी? 
ये समझदारी और फ़ख्र का क़दम होगा.



''बहुत सी हस्तियाँ जहाँ के रहने वाले ज़ालिम थे, ग़ारत कर दीं और उसके बाद दूसरी क़ौम  पैदा कर दीं. सो जब उन्हों ने हमारा अज़ाब आता देखा, इस से भागना शुरू किया, भागो मत और अपने सामान ऐश की तरफ़ और अपने मकानों की तरफ़ वापस चलो, शायद तुम से कोई पूछे पाछे,. वह लोग कहने लगे हाय! हमारी कम बख़्ती, बेशक हम लोग ज़ालिम थे. सो उनकी यही पुकार रही, हत्ता कि हमने उनको ऐसा कर दिया जिस तरह खेती कट गई हो. और आग ठंडी हो गई. और हमने आसमान और ज़मीन को इस तरह नहीं बनाया कि हम कोई फ़ालतू काम कर रहे हों. अगर हमको मशग़ला ही बनाना मंज़ूर होता तो हम ख़ास अपने पास की चीजों को मशग़ला बनाते. अगर हम को ये करना होता, बल्कि हम हक़ बात को बातिल पर फ़ेंक मारते हैं,. सो वह इस का भेजा निकाल देता है.सो वह दफ़अतन जाता रहता है. और तुम्हारे लिए ये बड़ी ख़राबी होगी जो तुम गढ़े हो और जितने कुछ आसमानों और ज़मीन में है, सब इसी के हैं और जो उसके नज़दीक हैं, वह उस से आर नहीं करते.और न झुकते हैं. बल्कि शबो रोज़ तस्बीह करते हैं,  मौक़ूफ़ नहीं करते हैं''

सूरह अंबिया -21- आयत (11-20)

यह मुहम्मदी अल्लाह मुहम्मद के कठमुल्ला जैसे दिमाग़ की पैदावार है, 
पच्चीस साल की उम्र तक मक्कियों की भेड़ बकरियां चराने के दरमियान वह भेड़ बकरियों को साधते और सोचते रहे कि इनकी तरह ही आदमी भी इस धरती पर मौजूद हैं,क्यूँ न उनको चराया जाए, और बेवक़ूफ़ भेड़ बकरियों जैसा दिमाग़ रखने वाले दुन्या में उनको भरे पड़े मिले, 
माँ की उम्र वाली ख़दीजा ने इनको टुकड़े डाले और यह उसके पालतू बन गए, फिर क्या था ग़ारे-हरा में बैठ कर पंद्रह सालों तक मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ते रहे और मंसूबा बंदी करते रहे. 
चालीस सालों में एक जाहिल जट ने पैग़म्बरी का एलान कर दिया. 
ईसा और मूसा के बराबर होने का मौक़ा मुनासिब था और अपनी उम्मियत को उरूज पर रखते हुए तजुर्बा किया किए और बन बैठे भेड़ बकरियों नुमा उम्मत के पैग़म्बर- ए- आख़ुज़्ज़मा . 
कई हदीसें गवाही देती है कि मुहम्मद तबीयतन ज़ालिम थे. 
इज्ज़त दार ख़ातून का हाथ काट डाला मअमूली सी चोरी के इलज़ाम में, अपने सामने दो वफ़ादार और बा किरदार जोड़े को संगसार करते हुए जिंदा दफ़्न कराया. 
ऐसी एक नहीं सैकड़ों मिसालें हैं. 
अपने ही तरह ज़ालिम अल्लाह को मुहम्मद ने क़ायम किया.
साज़गारे-कायनात कहता है कि उसे मशग़ला मंज़ूर होता तो अपने आस-पास ही करता. देखिए कि अल्लाह भागते हुए लोगों को ललकारता है, 
भागो मत, मेरे ज़ुल्म से भाग न सकोगे, 
वह अपने बन्दों को जला कर ही अपने ज़ुल्म की आग को ठंडी बतलाता है. उनकी बसी बसाईं दुन्या को वीरान करके कटे हुए खेत कि तरह कर देता है. 
हद तो ये है  कि वह क़साइयों की तरह बन्दों के भेजे भी खोल देता है. कहता है शबो रोज़ तस्बीह किया करो, 
सोचो कि अगर शबो रोज़ तस्बीह करोगे तो मेहनत और मशक्क़त करके अपने बच्चों का पेट कैसे भरोगे?
मुसलमानों! 
क्या तुम फिर भी ऐसे अल्लाह को पसंद करोगे ?
जिसे फ़ासिक़ मुहम्मद ने गढ़ा हो?

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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