Monday 9 July 2018

Soorah Taha -20 Q- 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह ताहा २० 
क़िस्त-1


बहुत से लक़बों (उपाधियों) के साथ साथ तथा-कथित पैग़म्बर मुहम्मद का एक लक़ब उम्मी भी है जिसके के लफ़्ज़ी मअनी होते हैं अनपढ़ और जाहिल. 
ये लफ्ज़ किसी फ़र्द को नफ़ी (न्यूनता की परिधि) में ले जाता है, 
मगर बात मुहम्मद की है तो मअनी कुछ और ही हो जाता है. 
इस तरह उनके तुफ़ैल में उम्मी शब्द पवित्र और मुक़द्दस हो जाता है. 
ये इस्लाम का ख़ास्सा है. इस्लामी इस्तेलाह (परिभाषा) में कई अलफ़ाज़ आलिमों के साज़िशों से अस्ल मअनी कुछ के कुछ हो गए हैं, जिसे आगे आप देखेंगे. 
मुहम्मद निरे उम्मी थे, 
मुतलक़ जाहिल. 
क़ुरआन उम्मी, अनपढ़ और अक़ली तौर पर उजड, 
मुहम्मद का ही कलाम (वचन) है जिसे उनके गढ़े हुए अल्लाह का कलाम कहा जाता है. 
इसको क़ुराने-हकीम कहा जाता है यानी हिकमत से भरी हुई बातें.
क़ुरआन के बड़े बड़े हयूले बनाए गए, 
बड़ी बड़ी मर्यादाएं रची गईं, 
ऊंची ऊंची मीनारें क़ायम की गईं, 
इसे विज्ञान का का जामा पहनाया गया, तो कहीं पर रहस्यों का दफ़ीना साबित किया गया है. 
इसे कहीं पर अज़मतों का निशान बतलाया गया है तो कहीं पर जन्नत की कुंजी, और हर सूरत में नजात (मुक्ति) का रास्ता. 
निज़ामे-हयात (जीवन विद्या) तो हर अदना पदना मुसलमान इसे कह कर फूले नहीं समाता, 
गोकि दिनो-रात मुस्लमान इन्हीं क़ुरानी आयतों की गुमराही में मुब्तितिला, पस्पाइयों में समाता चला जा रहा है. 
आम मुसलमान क़ुरआन को अज़ खुद कभी समझने की कोशिश नहीं करता, उसे हमेशा अपनी ओलिमा (धर्म गुरु) ही समझाते हैं.
इस्लाम क्या है? 
इसकी बरकत क्या है? 
छोटे से लेकर बड़े तक सारे मुसलमान ही दानिश्ता और ग़ैर दानिश्ता तौर पर इस के झूठे और खोखले फ़ायदे और बरकतों से जुड़े हुए हैं. 
सच पूछिए तो कुछ मुट्ठी भर अय्यार और बेज़मीर मुसलमानों का सब से बड़ा ज़रीया मुआश (भरण पोषण) इस्लाम है जो कि इसी तबके के मेहनत कश  अवाम पर मुनहसर करता है, 
यानी बाक़ी क़ौमों से बचने के बाद ख़ुद मुसलमान मुसलमानों का इस्तेह्सल (शोषण) करते हैं. 
दर अस्ल यही मज़हब फ़रोशों का तबक़ा, ग़रीब मुसलामानों का ख़ुद दोहन करता है और दूसरों से भी इस्तेह्साल कराता है. 
वह इनको इस्लामी जेहालत के दायरे से बाहर  निकलने ही नहीं देता.

"ताहा" 
सूरह ताहा- २० आयत- 1 

यह शब्द निरर्थक है. 
ऐसे शब्दों को क़ुरआनी सन्दर्भ में हुरूफ़े-मुक़त्तेआत कहते हैं जिसका मतलब बन्दे नहीं जानते, अल्लाह ही जाने. 
ऐसे शब्द सूरह के पहले कभी कभी आते हैं. 
यहाँ यह शब्द एक आयत भी बन गई है, 
अर्थात अल्लाह का एक पैग़ाम जिसे बन्दे न समजते हुए भी गाया करते हैं. 

"हमने क़ुररान को आप पर इस लिए नहीं उतारा कि आप तकलीफ़ उठाएं बल्कि ऐसे शख़्श के नसीहत के लए उतारा है कि जो अल्लाह से डरता हो" 
सूरह ताहा- २० आयत- २-३ 

ऐ अल्लाह ! 
तू अगर वाक़ई है तो सच बोल तुझे इंसान को डराना भला क्यूं अचछा लगता है ? 
क्या मज़ा आता है कि तेरे नाम से लोग थरथरएं ? 
गर बन्दे सालेह अमल और इंसानी क़द्रों का पालन करें जिससे कि इंसानियत का हक़ अदा होता हो तो तेरा क्या नुक़सान है? 
तू इनके लिए दोज़खें तैयार किए बैठा है, तू सबका अल्लाह है या कोई दूसरी शय ? 
तेरा रसूल लोगों पर ज़ुल्म ढाने पर आमादा रहता है. 
तुम दोनों मिलकर इंसानियत को बेचैन किए हुए हो. 

"क्या आपको मूसा की ख़बर है? उन्हों ने एक आग देखी, तो घर वालों से कहा तुम ठहरे रहो, मैं ने एक आग देखी है, शायद कोई शोला तुम्हारे लिए ला सकूं और रास्ते का पता मालूम हो सके और जब मूसा आग के पास पहुंचे तो अल्लाह ने आवाज़ दी कि ऐ मूसा! तू अपनी जूतियाँ उतार दे. हमने तुझे मुन्तख़िब किया है. जो कुछ वह्यि (ईश्वरीय-आज्ञा) की जा रही है, तू उसे सुन. मैं ही अल्लाह हूँ , मेरे सिवा कोई माबूद नहीं , मेरी ही इबादत किया करो और मेरे नाम की नमाज़ पढ़ा करो. दूसरी बात सुनो बिला शुब्ह क़यामत आएगी. मैं इसको पोशीदा रखना चाहता हूँ, ताकि हर शख़्श को उसके किए का बदला मिले." 
सूरह ताहा- २० आयत- ९-१५ 

जब मुहम्मद को उनके यहूदी मुख़बिर से कोई ख़बर मिलती तो वह अपने क़बीलाई माहौल में इसे अल्लाह की वह्यी (ईश्वरीय-आज्ञा) बना कर पेश करते. वह सूचना में कुछ फेर बदल कर लेते ताकि बात मुहम्मद की अपनी लगे, वह उसमें नमाज़ ज़कात की बातें बतौर आमेज़िश शामिल कर देते. एक बेवकूफी की बात भी ज़रूर शामिल करते .... 
देखिए अल्लाह कहता है. 
"दूसरी बात सुनो ! बिला शुब्ह क़यामत ज़रूर आएगी . मैं इसको पोशीदा रखना चाहता हूँ ताकि लोगों को इसका बदला मिल सके." 
*
"अल्लाह मूसा की लाठी में करामत पेश करता है और गदेली में सफ़ेद दाग जिसे यदे-बैज़ा कहा गया. अल्लाह मूसा को हुक्म देता है कि इन निशानियों को लेके फ़िररौन के पास जाओ क्यूंकि वह हद से निकल गाया है. 
मूसा कुछ और चाहते हुए अल्लाह से कहते हैं कि वह इनकी ज़बान से लुक्नत (तुतलाहट) हटा दे और मदद के लिए इनके भाई हारून को इनका सहायक बना दे" 
सूरह ताहा- २० आयत- १५-३६ 

अल्लाह मूसा की दरख्वास्त को मंज़ूर करता है और कहता है,

"हम तो तुम पर और एक बार एहसान कर चुके है कि तुम्हारी माँ को इल्हाम में बतलाया था कि तुम को जल्लादों के हाथों से बचाने के लिए सन्दूक में रखकर दरया में डाल दें. हमने तुम्हारे दिल में डाल दिया था कि तुम हम से राग़िब रहो और मेरी निगरानी में परवरिश पाओ. तुम्हारी बहन भागती हुई हमारे पास आई थी कि तुम्हें परवरिश के लिए कुछ करूँ, सो हमने कुछ ऐसी तरकीब किया कि तुम फिर अपनी माँ की परवरिश में चले गए ताकि इनकी आँखें ठंडी हों और तुमने एक शख़्श को जान से मार डाला, फिर हमने तुमको ग़मों से नजात दी. और हमने तुमको सख़्त मेहनतों में डाला और तुमको तुम्हारे भाई समेत मुअज्ज़ा दिया. जाओ हमारी याद  में सुस्ती मत करो."
सूरह ताहा- २० आयत- ३७-४२ 

मुहम्मद का ज़ेहनी मेयार इन बातों में निहाँ है कि 
देखिए  अल्लाह एहसान भी करता है और तरकीब भी भिड़ाता है. 
कितना बड़ा हादसा है जो मुसलामानों के दिल पर क़ाबू किए हुए है. 
वह इन्ही बातों की सुब्ह व् शाम इबादत करते हैं. 
इस क़ौम की रहनुमाई कोई नहीं कर सकता.
ऐ अल्लाह अगर तू कोई हस्ती है तो हिन्दुस्तान में माओत्ज़े तुंग को भेज. 

मूसा अपने भाई हारुन को लेकर फ़िरौन के दरबार में पहुँचता है और उससे अपने लोगों को आज़ाद करने की बात करता है. मूसा से फ़िरौन और उसके जादूगरों से लफ्ज़ी जंग होती है 
फिर अपने मकर का सामान जमा करना शुरू किया. मूसा ने उन लोगों से फ़रमाया
 "ऐ कमबख़्ती मारो अल्लाह तअला पर झूठा इफ़तार मत बांधो, कभी वह तुमको सजा से बिलकुल नेस्त नाबूद न करदे ". 
सूरह ताहा- २० आयत- ६१ 

फ़िरौन और मूसा में जादुई मुक़ाबले शुरू हो जाते हैं. अल्लाह कभी खुद फ़िरौन को जादूगर बतलाता है, कभी उसके जादूगरों को. यह तौरेत का मशहूर ए ज़माना वाक़िया है जिसे क़ुरआन में मुहम्मद निहायत फूहड़ ढंग से पेश कर रहे हैं . 
इस नाटक के आख़िर में मूसा की लाठी का बड़ा सांप, फ़िरौन के जादूगरों की रस्सियों के छोटे छोटे साँपों को निंगल जाता है. फ़िरौन के जादूगर मूसा के क़दमों में गिर कर लिपट जाते हैं और मूसा पर ईमान लाते हैं. मूसा के बतलाए हुए अल्लाह पर ईमान लाते हैं. फ़िरौन अपने जादूगरों से नाराज़ होकर हुक्म देता है कि इनके हाथ और पैर काट कर इनको पेड़ों पर लटका दिया जाए. 
सूरह ताहा- २० आयत- ६८-७१ 

यहूदियों की सुनी सुनाई कहानी में मिलावट करके मुहम्मदी अल्लाह दूसरे वाक़ेआत को आगे बयान करते रहने का वादा करके फिर इस्लामी डफ़ली क़यामत का राग अलापने लगता है..... 
जब सूर फूँका जाएगा और तमाम मुर्दे अपनी अपनी क़ब्रों से बरामद होंगे और आपस में बातें करेंगे . . . 

"जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसे बहिश्तों में दाख़िल कर देगा जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इसमें रहेंगे , ये बड़ी कामयाबी होगी" 
सूरह ताहा- २० आयत-  ७२-७६ 

ये जुमला मुहम्मदी अल्लाह  का क़ुरआन में तकिया कलाम है, 
इसे वह बार बार इसे दोहराता है. 

मूसा का फ़िरौन से बनी इस्राईल को आज़ाद कराने, फिर इन्हें दर्याए नील पार कराने और फ़िरौन को ग़र्क़ ए आब करने, इसके बाद कोहेतूर पर ले जाने और मन व् सलवा बरसाने की बातें दोहराते हुए अल्लाह मूसा को आगाह करता है कि तेरी क़ौम हद से न गुज़रे .
मूसा कलीम उल्लाह तूर पर अल्लाह के दरबार में वास्ते कलाम पहुँचते हैं तो अल्लाह शिकायत ले बैठता है कि तू जिस अपनी क़ौम को पीछे छोड़ आया है व एक सामरी के जाल में फँस चुकी है. मूसा रंजीदा हो कर पहाड़ से नीचे उतरता है, क़ौम पर अपनी खफ़गी का इज़हार करता है . मूसा सामरी से पूछता है 
बता तेरा मुआमला क्या है? 
वह कहता है कि मैं मुट्ठी भर ख़ाक उठाता हूँ और डाल देता हूँ , 
इसनें इसका कोई कमाल छिपा होगा जिससे अवाम मुरीद हो गई होगी?
मूसा इसको आगाह करता है कि एक माबूद के सिवा दूसरा कोई क़ाबिले इबादत नहीं. और फिर इसके बाद शुरू हो जाती है तब्लिगे-इस्लाम .
अल्लाह वादा करता है आगे भी ऐसी कहानियाँ सुनाता रहूँगा"
सूरह ताहा- २० आयत-  ७६-१०० 
मुसलमानों! 
तुम जिस क़ुरआन को वास्ते सवाब पढ़ते हो उसमे तुम्हारा अल्लाह ढंग की कहानी भी नहीं बयान कर पाता. बेश क़ीमत फ़रमान और एलन तो दूर की बात है. 
मुहम्मद की आजिज़ करने वाली बकवास को कलाम इलाही समझते हो.

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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