Friday 31 August 2018

सूरह नम्ल २७ क़िस्त-2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
******
सूरह नम्ल २७
क़िस्त-2

क़ुरआन में अल्लाह ने देव परी के क़िस्से कितने फूहड़ तरीक़े से सुनाए हैं, आप भी पढ़ें - - - 

"एक बार यूँ हुआ कि सुलेमान ने परिंदों की हाज़िरी ली, पाया कि हुद हुद ग़ायब है. वह इसकी ग़ैर हाज़िरी पर बहुत बरहम हुए और कहा कि इसकी सज़ा इसको सख्त़ मिलेगी. या तो उसको मैं ज़िबह कर डालूँगा या तो वह आकर कोई हुज्जत पेश करे. सो थोड़ी देर में वह आ गया और कहने लगा मैं ऐसी ख़बर लेकर आया हूँ जिसकी ख़बर आप को भी नहीं है, मैं क़बीला-ए-सबा से एक तहक़ीक़ ख़बर लाया हूँ. मैं ने एक औरत को देखा कि वह लोगों पर हुकूमत कर रही है और इसके यहाँ अश्या-ए-ऐश मुहय्या है और उसके यहाँ एक बड़ा तख़्त है. मैंने देखा उसको और उसके क़ौम को कि अल्लाह की इबादत को छोड़ कर सूरज को सजदा कर रहे हैं. वह राहे-हक़ पर नहीं चलते, शैतान ने उन्हें रोक रक्खा है."
सूरह नम्ल २७- आयत (20-24).

इसके बाद कुछ देर के लिए मुहम्मद की ज़बान हुद हुद की चोंच में आ जाती है और वह करने लगती है तबलीग़-इस्लाम - - -
"सुलेमान ने दास्तान सुन कर कहा, देख लेते है कि तू सच बोलता है या झूट तू मेरा एक ख़त दरबार में छोड़ कर, सुन कि वहां क्या सवाल जवाब होते हैं."
सूरह नम्ल २७- आयत (28).

(हुद हुद हुक्म बजाते हुए सुलेमान के ख़त को मलका ए बिलक़ीस के महल में डाल कर रद्दे अमल का इंतज़ार करता है. बिलक़ीस ख़त उठाती है और इसे पढ़ कर दरबार तलब करती है.)
"ए लोगो! सुलेमान का यह ख़त आया है जिसमें सब से पहले लिखा है 'बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम' तुम लोग मेरे बारे में ज़्यादः तकब्बुर न करो और मती हो कर चले आओ. मलका ने अपने दरबारियों से पूछा कि तुम लोगों की क्या राय है? तुम लोगों के मशविरे के बग़ैर तो मैं कोई काम करती नहीं, बोलो कि हमें क्या करना चाहिए? दरबारी कहने लगे वैसे हम लोग बहादर हैं और बेहतर फ़ौजी हैं मगर तुम्हारी मसलेहत क्या कहती है? फ़ैसला करके हम को हुक्म दो. बिलक़ीस बोली वालियान मुल्क जब किसी बस्ती में दाख़िल होते हैं तो इसे तहो-बाला कर देते है और इसमें रहने वाले इज्ज़त दार लोगों को ज़लील करते हैं और वह लोग भी ऐसा करेंगे. मैं उन लोगों के पास कुछ हदिया भेजती हूँ, फिर देखती हूँ कि वह फ़रिस्तादे क्या लाते है, सो वह फ़रिस्तादा जब सुलेमान के पास पहुंचा तो सुलेमान ने फ़रमाया क्या तुम लोग मॉल से मेरी इमदाद करना चाहते हो?  सो अल्लाह ने मुझे जो कुछ दे रक्खा है, वह इससे बहुत बेहतर है, हाँ तुम ही अपनी इस हदिया पर इतराते हो."
सूरह नम्ल २७- आयत (29-36).

'बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम'
अल्लाह के ये नाम मुहम्मद का रक्खे हुए है जिसको यहूदी बादशाह के मुंह से कहलाते हैं. 
किस क़द्र झूट और मक्र के पुतले थे ? 
वह जिनको मुसलमान सल्लाल्हो-अलैहे-असल्लम कहते हैं.
(अगली क़िस्त में तौरेती सुलेमान की हक़ीक़त होगी जिससे ऐसे मन गढ़ंत का कोई तअल्लुक़ नहीं.)


बिलक़ीस के दूतों का अपमान करते हुए सुलेमान उन्हें वापस कर देता है - - - 
उसके बाद कहानी का सिलसिला मुलाहिजा हो  -  - -
बादशाह सुलेमान से मुहम्मद अपनी क़ाबिलयत उगलवाते हैं - - -

"सो हम उन पर ऐसी फौजें भेजते हैं कि उन लोगों से उन का ज़रा मुक़ाबिला न हो सकेगा और हम वहाँ से उनको ज़लील करके निकाल देगे और वह मातहत हो जाएँगे. सुलेमान ने फ़रमाया ऐ अहले दरबार तुम में से कोई ऐसा है कि उस बिलक़ीस का तख़्त, क़ब्ल  इसके कि वह लोग मेरे पास आएँ, मती (आधीन) होकर आएँ, हाज़िर कर दे ?
 एक क़वी हैकल जिन ने जवाब में अर्ज़ किया, मैं इसको आप की ख़िदमत में हाज़िर कर दूंगा, क़ब्ल इसके कि आप इस इजलास से उठ्ठें. और मैं इसको लाने की ताक़त रख़ता  हूँ. और अमानत दार भी हूँ. 
जिसके पास किताब का इल्म था उसने कहा मैं इसको तेरे सामने तेरी आँख झपकने से पहले लाकर खड़ा कर सकता हूँ.
पस जब सुलेमान अलैहिस्सलाम ने इसको अपने रूबरू देखा तो कहा ये भी मेरे परवर दिगार का एक फ़ज़ल है. ताकि वह मेरी आज़माइश करे, मैं शुक्र करता हूँ. और जो शुक्र करता है अपने ही नफ़ा के लिए करता है. और जो नाशुक्री करता है,(?) मेरा रब ग़नी है, करीम है. 
सुलेमान ने हुक्म दिया कि इसके लिए इस तख़्त की सूरत बदल दो हम देखें कि इसको इसका पता चलता है या इसका इन्हीं में शुमार है जिन को पता नहीं लगता .
 सो जब बिलक़ीस आई तो इस से कहा की क्या तुम्हारा तख़्त ऐसा ही है? 
बिलक़ीस ने कहा हाँ ऐसा ही है और हम को तो इस वाक़ेऐ की पहले ही तहक़ीक़ हो गई थी. और हम मती हो चुके हैं 
और इसको ग़ैर अल्लाह की वबा ने रोक रख्खा था और वह काफ़िर क़ौम में की थी. 
बिलक़ीस से कहा गया कि तू इस महल में दाख़िल हो, तो जब इसका सेहन देखा तो उसको पानी समझा और अपनी दोनों पिंडलियाँ खोल दीं. सुलेमान ने फ़रमाया यह तो एक महेल है जो शीशों से बनाया गया है. बिलक़ीस कहने लगी ऐ मेरे परवर दिगार ! मैं ने अपने नफ़्स पर ज़ुल्म किया था और अब मैं सुलेमान के साथ होकर रब्बुल आलमीन पर ईमान लाई."
सूरह नम्ल २७- आयत (37-44).

इस सुलेमानी कहानी के बाद बिला दम लिए अल्लाह समूद और सालेह के बयान पर आ जाता है और इनकी दो एक बातें बतला कर लूत को पकड़ता है और लूत की इग़लाम बाज़ उम्मत को. फिर शुरू कर देता है कुफ़्फ़ार के साथ सवाल जवाब अजीब सूरत रखते हैं. कुफ़्फ़ार अल्लाह से बुनयादी सवाल करते हैं और अल्लाह उनको बे बुन्याद जवाब देता है.
सूरह नम्ल २७- आयत (45-64).

सुलेमान की दास्तान मुहम्मद की अफ़साना निगारी का एक नमूना है. 
हैरत होती है कि मुसलमान इस अल्लाह की बद तरीन तसनीफ़ (रचना) पर किताब पर ईमान रखते हैं जिसको बात करने का सलीक़ा भी नहीं है और जिसकी मदद बन्दों ने तर्जुमानी और लग्व तफ़सीर से की. 
क्या अल्लाह जलीलुल क़द्र अपनी छीछा लेदर ऐसी दास्तान गोई से कराएगा जिसमें झूट और मक्र की भरमार है?
 जिन और परिंदों का लश्कर होना ? सुलेमान का हज़ारों परिंदों की हाज़री लेना? इनमें से किसी एक को ग़ैर हाज़िर पाना ? सुलेमान के मुँह से ऐसे कलिमें अदा कराना " वह इसकी ग़ैर हाज़िरी पर बहुत बरहम हुए और कहा कि इसकी सज़ा इसको सख्त़ मिलेगी. या तो उसको मैं ज़िबह कर डालूँगा या तो वह आकर कोई हुज्जत पेश करे"
दर असल  मुहम्मद अपनी फ़ितरत के मुताबिक़ क़ुरआन की शक्ल पेश करते है. वह मिज़ाजन ऐसे थे, 
शुक्र है बुलबुल ने हुज्जत न करके बद ख़बरी दी कि कमबख़्त बिलक़ीस एक औरत हो कर मर्दों पर हुक्मरानी  करती है? भला मुहम्मदी दीन में इसकी गुजाइश कहाँ? 
सुलेमान क़दीम बादशाहों में पहली हस्ती हैं जो आला दर्जे की शख़्सियत था और अपने वक़्त कि जदीद तरीन तालीमों से लबरेज़ था. 
वह मुफ़क्किर था, अच्छा शायर था, माहिरे नबातात (बनस्पति-ज्ञान) 
और माहिरे हयात्यात था. 
तामीरात में पहला पहला अज़ीम आर्चिटेक्ट हुआ है. 
उसकी तामीर को वालियान मुमल्कत देखने आया करते थे. 
घामड़  मुहम्मद ने सुलेमान के बारे में बेहूदा कहानी गढ़ी है  
देखिए कि  देवों के देव, महादेव ने किस तरह  मलकाए शीबा का तख़्त पलक झपकते ही सुलेमान के क़दमों पर रख दिया? 
अगर इसी क़ुरआनी हालात में एक हिन्दू कहता है कि परबत को लेकर हनुमान जी उड़े तो मुसलमान हसेंगे और लाहौल पढेंगे. 
नक़ली रसूल के अल्लाह की कहानी आप नियत बाँध कर नमाज़ों में पढ़ते हैं.
*** 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 30 August 2018

Hindu Dharm Darshan 221



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (24)

 भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
किन्तु जो अज्ञानी और श्रद्धा विहीन व्यक्ति शाश्त्रों में संदेह करते हैं , 
श्रद्धाभावनामृत नहीं प्राप्त कर सकते. 
अपितु नीचे गिर जाते हैं. 
संशयात्मा के लिए न तो इस लोक मे, न परलोक में कोई सुख है.
जो व्यक्ति अपने कर्म फलों का परित्याग करते भक्ति करता है 
और जिसके संशय दिव्य ज्ञान द्वारा विनष्ट हो चुके होते हैं , 
वही वास्तव में आत्म परायण है. 
हे धनञ्जय ! 
वह कर्मों के बंधन में नहीं बंधता.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -40 - 41 

**हर धर्म की धुरी है श्रद्धा अर्थात कल्पना करना कि कोई शक्ति है जिसे हमें पूजना चाहिए. 
इस कशमकश में पड़ते ही गीता और क़ुरआन के रचैता आपकी कल्पना को साकार कर देते हैं, 
इसके बाद आपकी आत्म चिंतन शक्ति ठिकाने लग जाती है. 
किन्तु स्वचिन्तक बअज़ नहीं आता तब धर्म गुरु इनको गरिया शुरू कर देते हैं. 
इस ज्ञानी को अज्ञानी और नास्तिक की उपाधि मिल जाति है. 
श्रद्धाभावनामृत की पंजीरी बुद्धुओं में बांटी जाती है. 
कर्म करते रहने की भी ख़ूब परिभाषा है, 
बैल की तरह खेत जोतते रहो, 
फसल का मूल्य इनके भव्य मंदिरों में लगेगा, 
तभी तो इनकी दुकाने चमकेंगी.

क़ुरआन कहता है ---
''और जब तू इन लोगों को देखे जो हमारी आयातों में ऐब जोई कर रहे हैं तो इन लोगों से कनारा कश हो जा, यहाँ तक कि वह किसी और बात में लग जाएं और अगर तुझे शैतान भुला दे तो याद आने के बाद ऐसे ज़ालिम लोगों में मत बैठ.''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (६८)

मुहम्मद ने मुसलामानों पर किस ज़ोर की लगाम लगाईं है कि उनकी इस्लाह माहौल के ज़रिए करना भी बहुत मुश्किल है. उनको माहौल बदल नहीं सकता. मुल्ला जैसे कट्टर मुसलमान जब आधुनिकता की बातों वाली महफ़िल में होते हैं तो वैज्ञानिक सच्चाइयों का ज़िक्र सुन कर बेज़ार होते हैं और दिल ही दिल में तौबा कर के महफ़िल से उठ जाते हैं.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह नम्ल 27 क़िस्त-1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
********


सूरह नम्ल 27
क़िस्त-1

आइए देखें मुहम्मदी क़ुरआन के जालों में बुने हुए फन्दों को - - -

मुहम्मद ने इस सूरह में देव और परी की कहानी गढ़ी है. 
इस्लामी बच्चे इस कहानी को अल्लाह के बयान किए हुए हक़ायक़ मानते हैं और इस पर इतना ईमान और यक़ीन रखते हैं कि वह बालिग़ ही नहीं होना  चाहते. 
ये कहानी मशहूर-ज़माना यहूदी बादशाह सोलेमन (सुलेमान) की है. 
इस कहानी की हक़ीक़त के साथ साथ तारीख़ी सच्चाई तौरेत में तफ़सील के साथ बयान किया गया है, जिसे मुहम्मद ने पूरी तरह  से बदल कर क़ुरआन  बनाया है. 
मुहम्मद का तरीक़ा ये रहा है कि उन्होंने हर यहूदी हस्ती को लिया और उसके नाम की कहानी ऐसी गढ़ी कि जिसका तौरेती हक़ीक़त से कोई लेना देना नहीं. 
अपनी गढंत को अल्लाह से गवाही दिला दिया है और असली तौरेत और इंजील को नक़ली बतला दिया. इनके इस बदलाव में मज़मून में कोई सलीक़ा होता तो भी मसलहतन माना जा सकता था, 
मगर देखिए  कि उनका ज़ेह्नी मेयार कितना पस्त है - - -

"ता-सीन"
यह कोई इशारा है जिसे आज तक कोई नहीं समझ सका, 
बस अल्लाह ही बेहतर जाने, कह कर आलिमान आगे बढ़ लेते हैं, 
गोया मंतर है सूरह शुरू करने से पहले दोहराने का.

"ये आयतें हैं क़ुरआन  की और एक वाज़ह किताब की. ये ईमान वालों के लिए हिदायत और ख़ुश ख़बरी सुनाने वाली है."
सूरह नम्ल २७- आयत (1).

ये आयतें हैं क़ुरआन की जो कि एक ग़ैर वाज़ह किताब है और इस में सब कुछ मुज़ब्ज़ब है जिसमे अल्लाह के रसूल को बात कहने का सलीक़ा तक नहीं है, 
आयातों में कोई दम नहीं है, जो कुछ है सब मुहम्मद का बका हुआ झूट है.
ये किताब आज इक्कीसवीं सदी में भी लोगों को गुमराह किए हुए है. मुहम्मद की दी हुई तरबियत में कुछ लोग अवाम के सीने पर तालिबान बने खड़े हुए हैं.
यही ख़ुश ख़बरी है ऐ मज़लूम मुसलमानों.  

अल्लह मुसलमानों को इस्लाम पर चलने की ताक़ीद करता है और बदले में आख़िरत की तस्वीर दिखलाता है. अल्लाह मुहम्मद  को मूसा की याद दिलाता है, 
जब वह अपने परिवार के साथ सफ़र में होते हैं - - - 
"मैंने एक आग देखी है मैं अभी वहाँ से कोई ख़बर लाता हूँ. तुम्हारे पास आग का शोला किसी लकड़ी वग़ैरा में लगा हुवा लाता हूँ ताकि तुम सेंको. सो जब इसके पास पहुंचे तो उनको आवाज़ दी गई कि जो इस आग के अंदर हैं, उन पर भी बरकत हो और जो इसके पास है, उसपर भी बरकत हो, और रब्बुल आलमीन पाक है. ऐ मूसा बात ये है कि  मैं जो कलाम करता हूँ , अल्लाह हूँ ज़बरदस्त हिकमत वाला, और तुम अपना असा डाल दो सो जब उन्हों ने इसको इस तरह  हरकत करते हुए देखा जैसे सांप हो तो पीठ फेर कर भागे और पीछे मुड़ कर भी न देखा. ऐ मूसा डरो नहीं हमारे हुज़ूर में पैग़म्बर नहीं डरा करते.हाँ! मगर जिससे क़ुसूर हो जावे फिर नेक काम करे तो मैं मग़फ़िरत करने वाला हूँ . - - -
सूरह नम्ल २७- आयत  (3-16). ) 

क़ुरआन के अल्लाह बने मुहम्मद, 
इस वक़्त आयतों में वज्द की हालत में हैं, 
कुछ बोलना चाहते हैं और मुँह से निकल रहा है कुछ, 
तर्जुमे के कारीगर मौलानाओं ने इस में पच्चड़ लगा लगा कर 
इन मुह्मिलात में मअनी भरा दिया . 
अभी पिछले बाब में मूसा के बारे में जो बयान किया गया है, उसी को यहाँ पर दोहराया गया है, और आगे भी कई बार दोहराया जाएगा. 
मुसलमानों की नज़ात का एक ही इलाज है कि क़ुरआन इनको मार-बाँध कर सुनाया जाय, 
जब तक कि ये मुन्किरे-क़ुरआन न हो जाएँ.

"हज़रत सुलेमान के पास बहुत बड़ी फ़ौज थी जिसमे आदमियों के अलावा जिन्न और परिंदों के दस्ते भी थे और कसरत से थे कि जिनको चलाने के लिए निज़ामत की जाती थी. लश्करे सुलेमानी जब चीटियों के मैदान में आया तो वह आपस में बातें करने लगीं कि अपने अपने बिलों में गुस जाओ कि लश्करे-सुलेमानी तुमको कहीं कुचल न डाले. सुलेमान ये सुनकर मुस्कुरा पड़े."
सूरह नम्ल २७- आयत (17-18).

कहते हैं मैजिक आई घुप अँधेरे में बड़ी ख़ूबसूरत दिखाई पड़ती है, 
जैसे कि नादान और निरक्षर क़ौमों में जादूई करिश्में. 
मुहम्मद इन्हें सुलेमानी लश्कर में जिन्न और परिंदों के दस्ते शामिल बतला रहे हैं, मुसलमान इस पर यक़ीन करने पर मजबूर है. 
चीटियों की ख़ामोश झुण्ड में मुहम्मद उनकी  गुफ़्तगू सुनते हैं और सुलेमान को मुस्कुराते हुए लम्हे की गवाही देते हैं. 
यह तमाम ग़ैर फ़ितरी बातें ही मुसलमानों की फ़ितरत में शामिल हैं, 
इन्हें कैसे समझाया जाए? 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 28 August 2018

Hindu Dharm Darshan 220



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (23)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
किन्तु जो अज्ञानी और श्रद्धा विहीन व्यक्ति शाश्त्रों में संदेह करते हैं , 
श्रद्धाभावनामृत नहीं प्राप्त कर सकते. 
अपितु नीचे गिर जाते हैं. 
संशयात्मा के लिए न तो इस लोक मे, न परलोक में कोई सुख है.
जो व्यक्ति अपने कर्म फलों का परित्याग करते भक्ति करता है 
और जिसके संशय दिव्य ज्ञान द्वारा विनष्ट हो चुके होते हैं , 
वही वास्तव में आत्म परायण है. 
हे धनञ्जय ! 
वह कर्मों के बंधन में नहीं बंधता.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -40 - 41 
**हर धर्म की धुरी है श्रद्धा अर्थात कल्पना करना कि कोई शक्ति है जिसे हमें पूजना चाहिए. 
इस कशमकश में पड़ते ही गीता और क़ुरआन के रचैता आपकी कल्पना को साकार कर देते हैं, 
इसके बाद आपकी आत्म चिंतन शक्ति ठिकाने लग जाती है. 
किन्तु स्वचिन्तक बअज़ नहीं आता तब धर्म गुरु इनको गरिया शुरू कर देते हैं. 
इस ज्ञानी को अज्ञानी और नास्तिक की उपाधि मिल जाती  है. 
श्रद्धाभावनामृत की पंजीरी बुद्धुओं में बांटी जाती है. 
कर्म करते रहने की भी ख़ूब परिभाषा है, 
बैल की तरह खेत जोतते रहो, 
फ़सल का मूल्य इनके भव्य मंदिरों में लगेगा, 
तभी तो इनकी दुकाने चमकेंगी.

क़ुरआन कहता है ---
''और जब तू इन लोगों को देखे जो हमारी आयातों में ऐब जोई कर रहे हैं तो इन लोगों से कनारा कश हो जा, यहाँ तक कि वह किसी और बात में लग जाएं और अगर तुझे शैतान भुला दे तो याद आने के बाद ऐसे ज़ालिम लोगों में मत बैठ.''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (६८)
मुहम्मद ने मुसलामानों पर किस ज़ोर की लगाम लगाईं है कि उनकी इस्लाह माहौल के ज़रिए करना भी बहुत मुश्किल है. उनको माहौल बदल नहीं सकता. मुल्ला जैसे कट्टर मुसलमान जब आधुनिकता की बातों वाली महफ़िल में होते हैं तो वैज्ञानिक सच्चाइयों का ज़िक्र सुन कर बेज़ार होते हैं और दिल ही दिल में तौबा कर के महफ़िल से उठ जाते हैं.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 27 August 2018

Soorah e shoara 26 – Q -3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
************
सूरह -शोअरा 26
क़िस्त-3

पिछले बाब में आपने मूसा की गाथा मुहम्मद के ज़ुबानी सुनी जो कि मुसलमानों को बतलाया गया और जिस पर हर मुसलमान ईमान रख़ता है, यह बात और है कि ऐतिहासिक सच कुछ और ही है. 
इसके बाद मुहम्मद अब्राहम को पकड़ते हैं जो अपने बाप को एक ईश्वरीय नुक़ते को समझाता और धमकता है. 
बाप आज़र मशहूर संग तराश था जिसके वंशजों की मूर्ति रचनाएँ आज भी मिस्र की शान बनी हुई है, 
वह बाप एक चरवाहे की बात और डांट को सुनता है. 
जो कि अपने पोते यूसुफ़ की वजह से मशहूर हुवा. 
(क्यूँकि  यूसुफ़ मिस्र के शाशक फ़िरऔन का मंत्री बना). 
इब्राहीम बाप के लिए मुजस्सम मुहम्मद बन जाता है और उसके लिए मुक्ति की दुआ माँगता है जैसे मुहम्मद ने ख़ुद अपने चचा के लिए दुआ माँगी थी.
सूरह -शोअरा २६ - आयत  (10-68) 

इसके बाद नूह का नंबर आता है और अल्लाह उनका क़िस्सा एक बार फिर दोहराता है, फिर आद और हूद पर आता है और उनके नामों का ज़िक्रे-ख़ास भर कर पाता है. 
मुहम्मदी अल्लाह ऊँची ऊँची इमारतों की तामीर को गुनाह ठहराते हुए मुसलमानों को ऐसा पाठ पढ़ाता है कि आज भी तरक़्क़ी याफ़्ता क़ौमों के सामने वह झुग्गियों में राहक़र गुज़र बसर कर रहे हैं. 
मवेशी, बाग़बानी, और औलादों की बरकतों की फ़ैज़याबी से मुसलमानों को नवाज़ते हुए मुहम्मद अपना दिमागी तवाजुन खो बैठते हैं और जो मुँह में आता है, बकते चले जाते हैं, जो ऐसे ही क़ुरआन  बनता चला जाता है. अपने इर्द गिर्द के माहौल को दीवाने की तरह बड़बड़ाते हुए कहते हैं
"वह लोग कहने लगे यूँ कि तुम पर तो किसी ने बड़ा जादू कर दिया है, तुम तो महेज़ हमारी तरह एक आदमी हो. और हम तो तुम पर झूठे लोगों का ख़याल करते हैं, सो अगर तुम सच्चे हो तो हम पर कोई आसमान का टुकड़ा गिरा दो."
सूरह -शोअरा २६ - आयत  (69-178) 

"और ये क़ुरआन रब्बुल आलमीन का भेजा हुवा है. इसको अमानत दार फ़रिश्ता लेकर आया है, आपके क़ल्ब पर साफ़ अरबी ज़बान में, ताकि आप मिनजुम्ला डराने वालों में हों और इसका ज़िक्र पहली उम्मतों की किताबों में है . क्या इन लोगों के लिए ये बात दलील नहीं है कि इसको इन के ओलिमा बनी इस्राईल जानते हैं"
सूरह -शोअरा २६ - आयत  (191-97) 

रब्बुल आलमीन गर्म हवाओं का क़हर भेजता है, 
ठंडी हवाओं की लहर भेजता है, 
सैलाब और तूफ़ान भेजता है, 
साथ साथ ख़ुश गवार सहर भेजता है. 
भूचाल और ज्वाला मुखी भेजता है, 
सूखा और बाढ़ भेजता है, 
सोने की खानें भेजता है, 
हासिल कर सकते हो तो करो. 
किताब कापी वह जानता भी नहीं, 
न कोई भाषा और न कोई लिपि को वह समझता है. 
उसने एक निज़ाम बना कर अपने मख़लूक़ के लिए सिद्क़ और सदभाव की चुनौती दी है. 
उसने हर चीज़ को फ़ना होने का ठोस नियम भेजा है,उसके ज़हरों और नेमतों को समझो, और उसका मुक़ाबिला करो. 
इसी उसूल को मान कर मग़रिबी दुन्या आज फल फूल रही है 
और मुसलमान क़ुरआनी जेहालातों में मुब्तिला है. 
मुहम्मद एक नाक़बत अंदेश का सन्देशा लेकर पैदा हुए 
और करोरों लोगों को गुम राह करने में कामयाब हुए.

"फिर वह उनके सामने पढ़ भी देता, ये लोग फिर भी इसको न मानते. हम ने इसी तरह इस ईमान न लाने वालों को, इन नाफ़र्मानों के दिलों में डाल रख्खा है, ये लोग इस पर ईमान न लाएँगे, जब तक कि सख्त़ अज़ाब को न देख लेंगे, जो अचानक इन के सामने आ खड़ा होगा और इनको ख़बर न होगी."
सूरह - शोअरा २६ - आयत  (199-201) 

मुहम्मद अनजाने में अपने अल्लाह को शैतान साबित कर रहे हैं जो इंसानों के दिलों में वुस्वसे पैदा करता है. किस क़द्र बेवक़ूफ़ी की बातें करते है? क्या ये कोई पैग़म्बर हो सकते है. 
अगर ये अल्लाह का कलाम है तो कोई दीवाना ही मुसलमानों का अल्लाह हो सकता है. 
जागो मुसलमानों! 
तुम क़ुरआनी इबारतों को समझो और अपने गुमराहों को राह दिखलाओ. 

"और जितनी बस्तियां हमने ग़ारत की हैं, सब में नसीहत के वास्ते डराने वाले आए और हम ज़ालिम नहीं हैं और इसको शयातीन लेकर नहीं आए, और ये इनके मुनासिब भी नहीं, और वह इस पर क़ादिर भी नहीं, क्यूँकि वह शयातीन सुनने से रोक दिए गए हैं, सो तुम अल्लाह के साथ किसी और माबूद की इबादत न करना, कभी तुम को सज़ा होने लगे और आप अपने नज़दीक के क़ुनबे को डराइए "
सूरह -शोअरा २६ - आयत  (209-214) 

पूरे क़ुरआन में सिर्फ़ क़ुरआन की अज़मतें बघारी गई हैं, 
कौन सी अज़मतें है? 
इसको मुहम्मद बतला भी नहीं पा रहे. 
शैतान मियाँ को क़ुरआन ने अल्लाह मियाँ का सौतेला भाई बना रख्खा है. 
ताक़त में उन्नीस बीस का फ़र्क़ है. 

उम्मी के ज़ेह्नी भंडार में इतने शब्द भी नहीं की डराने के बजाए कोई इनके मक़सद को छूता हुवा लफ़्ज़ होता जिससे  इनकी बातें और भाषा में कमी न होती , 
बल्कि मुनासिबत होती.  

"और अगर ये लोग आपकी बात को न मानें तो कह दीजिए मैं आपके अफ़आल  से बेज़ार हूँ, और आप अल्लाह क़ादिर और रहीम पर तवक्कुल कीजिए "
सूरह -शोअरा २६ - आयत  (216-17)  

उस वक़्त के ज़हीन लोगों से ख़ुद मुहम्मद बेज़ार थे या उनका लाचार अल्लाह? 
जोकि रब्बुल आलमीन है. 
नाफ़रमान काफ़िरों से अल्लाह कैसे खिसया रहा है. 
सब मुहम्मद की कलाकारी है.

"और शायरों की  राह तो बे राह लोग चला करते हैं और क्या तुमको मालूम नहीं शायर ख़याली मज़ामीन के हर मैदान में हैरान फिरा करते हैं और ज़ुबान से वह बातें कहते हैं, जो करते नहीं. हाँ ! जो लोग ईमान लाए और अच्छे काम किए और अपने अशआर में कसरत से अल्लाह का ज़िक्र किया."
सूरह -शोअरा २६ - आयत  (224-27) 

मुहम्मद ख़ुद उम्मी शायर थे. 
क़ुरआन उनकी ऐसी रचना है जो तुकान्तों में है, 
तुकबंदी करने में ही वह नाकाम रहे. 
अपनी शायरी में मअनी ओ मतलब पैदा करने में नाकाम रहे. 
लोग उनको शायरे-मजनू कहते थे. 
अपनी इस फूहड़ गाथा को अल्लाह का कलाम बतला कर अपनी एडी की गलाज़त को, 
अल्लाह की एडी में लगा दिया. 
मुहम्मद उल्टा शायरों पर बेहूदा आयतें गढ़ते हैं ताकि इन पर मुतशायरी का इलज़ाम न आए .
काश कि मुहम्मद पूरे शायर होते और साहिबे फ़िक्र भी. 
उनके कलाम में इतना दम होता कि ग़ालिब कह पड़ता - - -

देखना तक़रीर लज़्ज़त की, कि जो उसने कहा,
मैं ने ये जाना कि गोया, ये भी मेरे दिल में था.

***



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 25 August 2018

Hindu Dharm Darshan 218



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (22)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
जैसे प्रज्वलित अग्नि ईधन को भस्म कर देती है, 
उसी तरह से 
अर्जुन ! 
ज्ञान रुपी अग्नि भौतिक कर्मों के सभी फलों को जला डालती है. 
इस संसार में दिव्य ज्ञान के समान कुछ भी उदात्त तथा शुद्ध नहीं . 
ऐसा ज्ञान समस्त योग का परिपक्व फल है. 
जो व्यक्ति भक्ति में सिद्ध हो जाता है, 
वह यथा समय अपने अंतर में इस ज्ञान का आस्वादन करता है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -37- 38 -

बहुत ज्ञान मनुष्य को भ्रमित और गुमराह किए रहता है, 
इन ज्ञानियों को बहुधा भौतिक सुख और सुविधा का आदी ही देखा जाता है, 
वह मान और सम्मान के भूके होते हैं. 
और अगर ज्ञान पाकर मनुष्य गुमनाम हो जाए, 
तब तो ज्ञान का लाभ ही ग़ायब हो जाता है. 
वैसे भी इस युग में ईश्वरीय ज्ञान का कोई महत्व नहीं. 
यह युग विज्ञान का है. 
विज्ञान के लिए गहन अध्यन की ज़रुरत है, 
तप और तपश्या की नहीं.
ठीक कहा है 
"ज्ञान रुपी अग्नि भौतिक कर्मों के सभी फलों को जला डालती है. "
अर्थात ज्ञान का फल राख का ढेर. 
भभूति लगा कर ज्ञान का चिंमटा बजाइए.

और क़ुरआन कहता है - - - 
"बिल यक़ीन जो लोग कुफ्र करते हैं, हरगिज़ उनके काम नहीं आ सकते, उनके माल न उनके औलाद, अल्लाह तअला के मुक़ाबले में, ज़र्रा बराबर नहीं और ऐसे लोग जहन्नम का सोख़ता होंगे."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा आयात (१०)


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 24 August 2018

Soorah e shoara 26 – Q -1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*************

सूरह-शोअरा 26
क़िस्त-1

ज़रा देखिए तो अल्लाह क्या कहता है - - -

"ये किताबे-वाज़ेह की आयतें हैं. शायद आप उनके ईमान न लाने पर अपनी जान दे देंगे. अगर हम चाहें तो उन पर आसमान से एक बड़ी किताब नाज़िल कर दें, फिर उनकी गर्दनें उस निशानी से पस्त हो जाएँ. और उन पर कोई ताजः फ़ह्माइश राहमान की तरफ़ से ऐसी नहीं आई जिससे ये बेरुख़ी न करते हो , सो उन्होंने झूठा बतला दिया, सो उनको अब अनक़रीब इस बात की हक़ीक़त मालूम हो जाएगी जिसके साथ यह मज़ाक़ किया करते थे."
सूरह -शोअरा २६ - आयत  (१-६) 

ये किताबे-मुज़बज़ब की आयतें हैं, ये किताबे-गुमराही की आयतें हैं. 
ये एक अनपढ़ और ख़्वाहिश-ए-पैग़म्बरी की आयतें हैं जो तड़प रहा है कि  लोग उसको मूसा और ईसा की तरह मान लें. 
इसका अल्लाह भी इसे पसंद नहीं करता कि कोई करिश्मा दिखला सके. क़ुरआनी आयतें चौदह सौ सालों से एक बड़ी आबादी को नींद की अफ़ीमी गोलियाँ खिलाए हुए है.

मुसलमानों क़ुरआन  की इन आयतों पर ग़ौर करो कि कहीं पर कोई दम है?
"क्या उन्हों ने ज़मीन को नहीं देखा कि हमने उस पर तरह तरह की उमदः उमदः बूटियाँ उगाई हैं? इसमें एक बड़ी निशानी है. और उनमें अकसर लोग ईमान नहीं लाते , बिला शुबहा आप का रब ग़ालिब और रहीम है.
सूरह -शोअरा २६ - आयत  (7-9) 

मुहम्मद को क़ुदरत की बख़्शी हुई नेमतों का बहुत ज़रा सा एहसास भर है. इन ज़राए पर रिसर्च करने और इसका फ़ायदा उठाने का काम दीगर क़ौमों ने किया, जिनके हाथों में आज तमाम सनअतें हैं, 
और ज़मीन की ज़रख़ेज़ी का फ़ायदा भी उनके सामने हाथ बांधे खड़ा है, 
मुसलमानों के हाथों में ख़ुद साख़्ता रसूल के फ़रमूदात ?

मुसलमानों के हाथों में ख़ुद साख़्ता रसूल के फ़रमूदात फ़क़त तौरेत की कहानी का सुना हुआ वक़ेआ मुहम्मद अपनी पैग़म्बरी चमकाने के लिए  कुछ इस तरह गढ़ते हैं - - -
.''- - -  जब आप के रब ने मूसा को पुकारा - - -
रब्बुल आलमीन :-- "तुम इन ज़ालिम लोगों यानी काफ़िरों के पास जाओ, क्या वह लोग नहीं डरते?"
मूसा :-- "ऐ मेरे परवर दिगार! मुझे ये अंदेशा है कि वह मुझको झुटलाने लगें औए मेरा दिल तंग होने लगता है और मेरी ज़बान भी नहीं चलती है , इस लिए हारून के पास भी वह्यि भेज दीजिए और मेरे ज़िम्मे उन लोगों का एक जुर्म भी है. सो मुझको अंदेशा है कि व लोग मुझे क़त्ल कर देंगे."
(वाजेह हो कि मूसा ने एक मिसरी का ख़ून कर दिया था और मुल्क से फ़रार हो गए थे.)
रब्बुल आलमीन :-- "क्या मजाल है? तुम दोनों मेरा हुक्म लेकर जाओ, हम तुम्हारे साथ हैं, सुनते हैं. कहो कि हम रब्बुल आलमीन के भेजे हुए हैं कि तू बनी इस्राईल को हमारे साथ जाने दे "
फ़िरऔन :-- "क्या बचपन में हमने तुम्हें परवारिश नहीं किया? और तुम अपनी उम्र में बरसों हम में रहा सहा किए, और तुम ने अपनी वह हरकत भी की थी, जो की थी, और तुम बड़े ना सिपास हो."
मूसा :-- "उस वक़्त वह हरकत कर बैठ था और  मुझ से ग़लती हो गई थी फिर जब मुझको डर लगा तो मैं तुम्हारे यहाँ से मफ़रुर हो गया था. फिर मुझको मेरे रब ने दानिश मंदी अता फ़रमाई और मुझको पैग़म्बरों में शामिल कर दिया और वह ये नेमत है जिसका तू मेरे ऊपर एहसान रख़ता  है कि तू ने बनी इस्राईल को सख्त़ ज़िल्लत में डाल रक्खा था."

*** मुसलसल क़िस्त -2 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Soorah e shoara 26 – Q -2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
**********
सूरह -शोअरा 26
क़िस्त- 2

फ़िरऔन : -- "रब्बुल आलमीन की हक़ीक़त क्या है? "
मूसा : -- "वह परवर दिगार है मशरिक और मग़रिब का और जो कुछ इसके दरमियान है उसका भी, 
अगर तुमको यक़ीन करना हो."
फ़िरऔन : -- "(अपने लोगों से कहा) तुम लोग सुनते हो ?
मूसा :-- "वह परवर दिगार है, तुम्हारा और तुम्हारे पहले बुज़ुर्गों का "
फ़िरऔन : --"ये जो तुम्हारा रसूल है, ख़ुद साख़्ता तुम्हारी तरफ़ रसूल बन कर आया है, मजनू है."
मूसा :-- "वह परवर दिगार है मशरिक और मगरिब का और जो कुछ इसके दरमियान है, उसका. भी, अगर तुमको अक़्ल  हो."
फ़िरऔन (झल्लाकर) : --"अगर तुम मेरे सिवा कोई और माबूद तस्लीम करोगे तो तुम को जेल खाने भेज दूंगा."
मूसा : -- "अगर मैं कोई सरीह दलील पेश करूँ तब भी. ?
फ़िरऔन : --"अच्छा तो दलील पेश करो, अगर तुम सच्चे हो ."
मूसा ने अपनी लाठी डाल दी तो वह एक नुमायाँ अज़दहा  बन गया और अपना हाथ बाहर निकाला तो दफ़अतन सब देखने वालों के रूबरू बहुत ही चमकता हुवा हो गया.
 फ़िरऔन:--(ने अहले-दरबार से जो उसके आसपास थे कहा) : -- "इसमें कोई शक नहीं की ये शख़्स  बड़ा माहिर जादूगर है, इसका मतलब ये है कि तुमको तुम्हारी सर ज़मीन से बाहर कर देगा तो तुम क्या मशवि रहदेते हो "
दरबारियों ने कहा : -- "आप उनको और उनके भाई को मोहलत दीजिए. और शहरों में चपरासियों को भेज दीजिए कि वह सब जादूगरों को आप के पास हाज़िर करें"
(गोया फ़िरऔन बादशाह न था बल्कि किसी सरकारी आफ़िस का अफ़सर था जो चपरासियों से काम चलाता था कि वह मिस्र के शहरों में जाकर बादशाह के हुक्म की इत्तेला अवाम तक पहुंचाते थे)
गरज़ वह सब जादूगर मुअय्यन दिन पर, ख़ास वक़्त पर जमा किए गए और लोगों को इश्तेहार दिए गए कि क्या तुम जमा हो गए, ताकि अगर जादूगर ग़ालिब आ जावें तो हम उन्हीं की  रहपर रहें .
फिर जब वह जादूगर आए तो फ़िरऔन से कहने लगे अगर हम ग़ालिब हो गए तो क्या हमें कोई बड़ा सिलह मिलेगा?
फ़िरऔन : --"हाँ! तुम हमारे क़रीबी लोगों में दाख़िल हो जाओगे "
मूसा : -- ( जादूगरों से )"तुम को जो कुछ डालना हो डालो"
चुनाँच उन्हों ने अपनी रस्सियाँ और लाठियाँ  डालीं और कहने लगे की फ़िरऔन के इक़बाल की क़सम हम ही ग़ालिब होंगे.
मूसा ने अपना असा (लाठी) डाला सो असा के डालते ही उनके तमाम तर बने बनाए धंधे को निगलना शुरू कर दिया. जादूगर सब सजदे में गिर गए, और कहने लगे हम ईमान ले आए रब्बुल आलमीन पर जो मूसा और हारुन का भी रब है.
फ़िरऔन : -- "हाँ! तुम मूसा पर ईमान ले आए बग़ैर इसके कि मैं तुम को इसकी इजाज़त देता, ज़रूर ये तुम सब का उस्ताद है जिसने तुम को जादू सिखलाया है, सो अब तुम को हक़ीक़त मालूम हुई जाती है.  मैं तुम्हारे एक तरफ़ के हाथ और दूसरे तरफ़ के पैर काटूँगा ."
जादूगर :-- "कोई हर्ज नहीं हम अपने रब के पास जा पहुच जाएँगे. हम उम्मीद करंगे कि हमारे परवर दिगार हमारी ख़ता ओं को मुआफ़ कर दे, सो इस वजेह से कि हम सब से पहले ईमान ले आए ."
रब्बुल आलमीन :--और हमने मूसा को हुक्म भेजा कि मेरे इन बन्दों को रातो रात बाहर निकाल ले जाओ .
फ़िरऔन : -- "तुम लोगों का पीछा किया जाएगा, उसने पीछा करने के लिए शहरों में चपरासी दौड़ाए कि ये लोग थोड़ी सी जमाअत हैं और इन लोगों ने हमको बहुत ग़ुस्सा दिलाया है और हम सब एक मुसल्लह जमाअत हैं''
रब्बुल आलमीन :--  ''गरज़ हम ने उनको बाग़ों  से और चश्मों से और खज़ानों से और उमदः मकानों से बाहर किया. और उसके बाद बनी इस्राईल को उनका मालिक बना दिया. गरज़ सूरज निकलने से पहले उनको जा लिया. फिर जब दोनों जमाअतें एक दूसरे को देखने लगीं तो मूसा के हमराही कहने लगे कि बस, हम तो हाथ आ गए ''
मूसा :-- "हरगिज़ नहीं ! क्यूं कि मेरे हम रहमेरा परवर दिगार है, वह मुझको अभी रास्ता बतला देगा "
रब्बुल आलमीन :--''फिर हमने हुक्म दिया कि अपने असा को दरिया में मारो, चुनाँच वह दरिया फट गया और हर हिस्सा इतना था जैसे बड़ा पहाड़. हमने दूसरे फरीक़ को भी मौक़े के क़रीब पहुँचा दिया और हम ने मूसा को और उनके साथ वालों को बचा लिया फिर दूसरे को ग़र्क़ कर दिया और इस वाक़िए में बड़ी इबरत है और बावजूद इसके बहुत से लोग ईमान नहीं लाते और आप का रब बहुत ज़बरदस्त है और बड़ा मेहरबान है.
सूरह -शोअरा २६ - आयत  (10-64) 

मूसा की कहानी कई बार क़ुरआन  में आती है, मुख़्तलिफ़ अंदाज़ में. 
एक कहानी मैंने बतौर नमूना पेश किया आप के समझ में आए या न आए मगर है ये ख़ालिस तर्जुमा, 
बग़ैर मुतरज्जिम की बैसाखियों के. 
कोई अल्लाह तो इतना बदज़ौक़ हो नहीं सकता कि अपनी बात को इस फूहड़ ढंग से कहे, 
उसकी क्या मजबूरी हो सकती है? 
ये मजबूरी तो मुहम्मद की है कि उनको बात करने तमीज़ भी नहीं थी. 
ऐसी ही हर यहूदी हस्तियों की मुहम्मद ने दुर्गत की है. 
अल्लाह को जानिबदार, चालबाज़, झूठा और जालसाज़ हर कहानी में साबित किया गया है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 23 August 2018

Hindu Dharm Darshan 217


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (21)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
जिस व्यक्ति का प्रत्येक प्रयास (उद्दयम ) इन्द्रिय तृप्ति की कामना से रहित होता है, उसे पूर्ण ज्ञानी समझा जाता है. 
उसे ही साधु पुरुष ऐसा करता कहते है. 
जिसमें पूर्ण ज्ञान की अग्नि से काम फलों को भस्म कर  दिया जाता है.   
ऐसा ज्ञानी पुरुष पूर्ण रूप से संयमित मन तथा बुद्धि से काम करता है. 
अपनी संपत्ति के सारे स्वभाव को त्याग देता है 
और केवल शरीर निर्वाह के लिए कर्म करता है. 
इस तरह कार्य करता हुवा वह पाप रुपी फलों से प्रभावित वहीँ होता है.                                                                                                                                                                                                                        
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -19 -21 

*केचुवे बहुत ही महत्त्व पूर्ण जीव हैं, 
इस धरती की उर्वरकता के लिए वह 24सो घंटे मिटटी को एक ओर से खाते हैं और दूसरी ओर से निकालते हैं. केचुवे अपने कर्म में लगे रहते हैं अपनी उपयोगिता को जानते भी नहीं 
कि धरती की हरियाली उनके दम से है. 
भगवान् कृष्ण इंसान को केचुवे बन जाने की सलाह देते हैं, 
इंसान इंसानी मिज़ाज से परे होकर हैवानी प्रकृति को अपनाए. 
ज्ञान का खाना, कपड़ा खाए और पहने, 
कोई प्रयास (उद्दयम ) इन्द्रिय तृप्ति की कामना से रहित हो ही नहीं सकता . 
इन्द्रिय तृप्ति ही तो संचालन है, मानव उत्पत्ति का. 
इसके बग़ैर तो मानव जाति ही धरती से ग़ायब हो जाएगी. 
सिर्फ़ सनातनी ही इस ईश वाणी का पालन करें तो सौ साल से पहले इतिहास बन जाएँगे.

और क़ुरआन कहता है - - - 
''और मेरे पास ये क़ुरआन बतौर वही (ईश वाणी) भेजा गया है ताकि मैं इस क़ुरआन के ज़रीए तुम को और जिस जिस को ये क़ुरआन पहुंचे, इन सब को डराऊं''
सूरह अनआम-६-७वाँ पारा आयत(२८)
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान


Wednesday 22 August 2018

सूरह फ़ुरक़ान-25 क़िस्त-4

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*************
सूरह फ़ुरक़ान-25 

क़िस्त-4

झूट का पाप=क़ुरआन का आप 

बहुत ही अफ़सोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि क़ुरआन वह किताब है जिसमें झूट की इन्तेहा है. हैरत इस पर है कि इसको सर पे रख कर मुसलमान सच बोलने की क़सम खाता है, अदालतों में क़ुरआन उठा कर झूट न बोलने की हलफ़ बरदारी करता है. 
क़ुरआन में मुहम्मद कभी मूसा बन कर उनकी झूटी कहनियाँ गढ़ते हैं तो कभी ईसा बन कर उनके नक़ली वाक़िए बयान करते हैं. वह अपने हालात को कभी सालेह की झोली में डाल कर अवाम को बे वक़ूफ़ बनाते हैं तो कभी सुमूद की झोली में. जिन जिन यहूदी नबियों का नाम सुन रखा है सब के सहारे से फ़र्ज़ी कहानियाँ बड़े बेढंगे पन से गढ़ते हैं और क़ुरआन की आयतें तय्यार करते है. 
अल्लाह से झूटी वार्ता लाप, जन्नत की मन मोहक पेशकश और दोज़ख़ के भयावह नक्शे. झूट के पर नहीं होते, जगह जगह पर भद्द से गिरते हैं. 
ख़ुद झूट के जाल में फँस जाते हैं. जहन्नमी ओलिमा को इन्हें निकालने में दातों पसीने आ जाते हैं.वह मज़हब के कुछ मुबहम, गोलमोल फ़ार्मूले लाकर इनकी बातों का रफ़ू करते हैं जो मुसलमान भेड़ें सर हिला कर मान लेती हैं. 
मुहम्मद खुल्लम खुल्ला इतना झूट बोलते हैं कि कभी कभी तो अपने अल्लाह को भी ज़लील कर देते हैं और ओलिमा को कहना पड़ता है ''लाहौल वला क़ूवत''अल्लाह के कहने का मतलब यह है ( ? )
यही वजेह है कि क़ुरआन पढ़ने की किताब नहीं बल्कि तिलावत (पठन-पाठन) का राग माला रह गया है. गो कि इस्लाम में गाना बजाना हराम है मगर क़ुरआन के लिए क़िरअत की लहनें बन गई है. यह लहनें भी एक राग है मगर इसे हलाल कर लिया गया है. क़ुरआन को लहेन में गाने का आलमी मुक़ाबिला होता है. इसके अलावा इसको पढ़ कर मुर्दों को बख़्शा जाता है, इसको पढ़ने से ज़िदों को मुर्दा होने के बाद उज्र मिलता है. 
और यह अदालतों में हलफ़ उठाने के काम भी आता है.
मैं हलफ़ लेकर कह सकता हूँ कि क़ुरआन की आयतें ही भोले भाले मुसलमानों को जेहादी बनाती हैं. 
और मुस्लिम ओलिमा क़ुरआन उठा कर अदालत में बयान दे सकते हैं कि क़ुरआन सिर्फ़ अम्न का पैग़ाम देता है. 
***

"और जब इन काफ़िरों से कहा जाता है कि राहमान को सजदा करो तो वह कहते हैं रहमान क्या चीज़ हैं, क्या हम उसको सजदा करने लगेंगे कि तुम जिसको कहोगे? और इससे इनको और ज़्यादः नफ़रत होती है."
सूरह फ़ुरक़ान-25 आयत (60)

मुहम्मद की तमाम बिदअतों में एक बिदअत ये थी कि ख़ुदा के नए नए नाम तराशे थे, उनमे से एक था राहमान. बाशिदों को ये नाम अजीब सा लगा, लफ़्ज़ तो पहले से ही अपने मानवी एतबार से रायज था कि रहम दिल को राहमान कहा जाता था, इसे जब अल्लाह का दर्जा मिला तो मुख़ालिफ़त की बहसें होने लगीं. इससे मुतालिक़ एक हदीस - - -
- - - सुल्ह हदीबिया कुछ लफ़्ज़ी तक़रार के बाद पास हुआ. 
बिस्मिल्लाह-हिर राहमान-निर-रहीम पर फरीक़ मुख़ालिफ़ के फ़र्द सुहेल ने कहा  "ये रहमान कौन हैं ?  इनको मैं नहीं जानता, इनको बीच से अलग किया जाए और 'ब इस्मक अलम' से शुरूआत की जाय. और मुहम्मदुर रसूल अल्लाह की जगह मुहम्मद इब्ने अब्दुल्लाह करो." (बुखारी ११४४) 

इसे मुहम्मद को मानना पड़ा था.
ज़ाहिर है इस तरहअपने पूज्य का नाम बदलना किसको रास आएगा . 
अल्लाह की जगह मुसलमानों से भगवान कहलाया जाए तो कैसा लगेगा?

"और वह ज़ात बड़ी आली शान है जिसने आसमान में बड़े बड़े सितारे बनाए और इसमें एक चराग़ आफ़ताब और एक नूरानी चाँद बनाया और वह ऐसा है जिसने रात और दिन को एक दूसरे के आगे पीछे आने जाने वाले बनाए. उस शख़्स  के लिए काफ़ी है जो समझना चाहे.या शुक्र करना चाहे."
सूरह फ़ुरक़ान-25 आयत (61-62)

मुसलमानों! क्या उम्मी के जेहालत भरे फ़लसफ़े ही तुम्हारा यक़ीन है? अगर हाँ तो अपनी नस्लों को तालिबानियों के सुपुर्द करते रहो और आने वाले दिनों में वह कुत्ते की मौत मरें, इस का यक़ीन करके इस दुन्या से रुख़सत हो. तुम्हारे लिए इस्लाम की हर बात ही नामाक़ूल है क्यूँकि इस्लाम जेहालत के पेट से पैदा हुवा है.

''और रहमान के बन्दे वह हैं जो ज़मीन पर अजिज़ी के साथ चलते हैं, शर की बात करते हैं तो वह रफ़ा-ए-शर की बातें करते हैं. और जो रातों को अपने रब के सामने सजदा और क़याम में लगे राहते हैं और जो दुआ मांगते हैं ऐ मेरे रब ! हम से जहन्नम के अज़ाब को दूर राख्यो.क्यूंकि  इसका अज़ाब तबाही है.''
सूरह फ़ुरक़ान-25 आयत (63-65)
मुहम्मद अपनी उम्मत को अपनी दोहरी शख़्सियत से गुम राह करते हैं, 
यही अल्लाह के बने हुए रसूल के बारे में दूसरे ख़लीफ़ा उमर फ़रमाते हैं कि - - -
"फ़तह मक्का के बाद मुहम्मद हज करने जाते तो संगे-अस्वाद को बोसा देकर अकड़ कर चलते और यही हुक्म सब के लिए था, मगर बाद में देखा कि जईफों को इसमें क़बाहत हो रही है तो हुक्म को वापस ले या."
(बुखारी ७७६-७७)
  जिसका इरशाद था कि काफ़िरों को घात लगा कर मारो वह कह रहा है कि जो "शर की बात करते हैं तो वह (मुस्लिम) रफ़ा-ए-शर की बातें करते हैं." मुहम्मद पैग़म्बर होते तो पैग़ाम देते कि "दोज़ख़ कहीं नहीं है, इंसान के दिल में है जो उसे दिनों-रात भूना करती है, इस लिए बुरे काम मत करो." दोज़ख़ का तसव्वुर मुसलमानों का सबसे बड़ा नुक़सान है, इन कच्चे ईमान वालों को ये तसव्वुर जीते जी खाता राहता है कि वह इसकी वजेह से अपनी तामीर नहीं कर पा रहे है.

"और जो वह ख़र्च करने लगते हैं तो फ़ुज़ूल ख़र्ची करते हैं, और न तंगी करते हैं और उनका ख़र्च करना इसके दरमियान एतदाल पर हो, और जो अल्लाह तअला के साथ किसी और माबूद को शरीक नहीं करते और जिस शख़्स  को क़त्ल करने में अल्लाह तअला ने हराम फ़रमाया है उसको क़त्ल नहीं करते और जो शख़्स  ऐसा करेगा सज़ा से उसको साबेका पड़ेगा कि क़यामत के रोज़ उसका अज़ाब बढ़ता चला जाएगा. और वह हमेशा ज़लील होकर इस अज़ाब में रहेगा.
सूरह फ़ुरक़ान-25 आयत (67-69)

मुहम्मद का मिशन है कि 
"अल्लाह कि इबादत करो और रसूल की इताअत." 
मुसलमान अपने बुज़ुर्गों पर हुवे मज़ालिम को भूल कर, जिनके गर्दनों पर तलवार रख कर कलिमा पढ़ाया गया था,  दो एक पुश्तों के बाद पूरी तरह से इस अरबी डाकू के मुट्ठी में फँस चुका है. इसको समझाना जूए शीर लाना है.
मुहम्मद किसी अपने शागिर्द को ख़र्राच होना पसंद नहीं करते थे. 
अल्लाह की राह में ख़र्च करने की हिदायत देते जो कि जेहाद की राह होती. देखिए कि क़ुरआन  ईरान से तूरान कैसे चला जाता है, कैसे मौज़ू बदल जाते है, अभी अल्लाह ख़र्च खराबे की बातें कर रहा था, कि उसे अपने लिए इबादत की याद आ गई, फिर हरम और हलाल क़त्ल करने की बातें करने लगा. ये इस्लाम ही है जहाँ क़त्ले-इंसानी हलाल भी होता है,

"और वह ऐसे हैं कि जब उनको अल्लाह के एहकाम के ज़रीया नसीहत की जाती है तो उन पर बहरे अंधे होकर नहीं गिरते.''
सूरह फ़ुरक़ान-25 आयत (73)

उफ़ ! अय्यारे-आज़म कहते हैं कि उनकी इन बकवासों पर लोग मुतास्सिर हो कर क्यूँ बहरे अंधे होकर नहीं गिरते? ये इन्तहा दर्जे की गिरावट है कि एक इंसान दूसरे को इस क़दर ज़लील करे कि वह उसकी बातों को इतना माने कि बहरा और अँधा हो जाय. दुनिया भर के मुसलमानों की इस से बढ़ कर और क्या बद नसीबी होगी कि उनका राहनुमा इतना गिरा हुवा ज़ेहन रख़ता हो. कितना महत्त्वा-कांक्षी और ख़ुद पसंद था वह इंसान.

"और वह ऐसे हैं कि दुआ करते हैं कि ऐ हमारे परवर दिगार हमारी बीवियों और हमारे औलाद की तरफ़ से आँखों की ठंडक अता फ़रमा और हमको मुत्तक़ियों का अफ़सर बना दे.ऐसे लोगों को बहिश्त में रहने को बाला ख़ाने मिलेंगे. ब,वजह उनके साबित क़दम रहने के और उनको इन में बक़ा की दुआ और सलाम मिलेगा."
सूरह फ़ुरक़ान-25 आयत (75-76)

इस्लाम की बहुत बड़ी कमज़ोरी है दुआ माँगना. 
इस बेबुन्याद ज़रीया की बहुत अहमियत है. हर मौक़ा वह ख़ुशी का हो या सदमें का दुआ के लिए हाथ फैले राहते हैं. बादशाह से लेकर रिआया तक सब अपने अल्लाह से जायज़, नाजायज़ हुसूल के लिए उसके सामने हाथ फैलाए रहते हैं. जो मांगते मांगते अल्लाह से मायूस हो जाता है, वह इंसानों के सामने हाथ फैलाने लगता है. 
मुसलमानों में भिखारियों की कसरत इसी दुआ के तुफ़ैल में है कि भिखारी भी भीख देने वाले को दुआ देता है, देने वाला भी उसको इस ख़याल से भीख दे देता है कि मेरी दुआ क़ुबूल नहीं हो रही, शायद इसकी ही दुआ क़ुबूल हो जाए. 
दुआओं की बरकत का यक़ीन भी मुसलमानों को निकम्मा और मुफ़्त खो़र बनाए हुए है. 
कितना बड़ा सानेहा है कि मेहनत काश मजदूर को भी यह दुआओं का मंतर ठग लेता है. कोई इनको समझाने वाला नहीं कि ग़ैरत के तक़ाज़े को दुआओं की बरकत भी मंज़ूर नहीं होना चाहिए. 
ख़ून पसीने से कमाई हुई रोज़ी ही पायदार होती है. यही क़ुदरत को भी गवारा है न कि वह मंगतों को पसंद करती है.
मुहम्मद की दुआ? इससे तो ख़ुदा हर मुसलमान को बचाए. 
मुहम्मद चाल घात की दुआएं भी मुसलमानों से मंगवाते हैं, कि दुआओं की बरकत से उनका अल्लाह मुत्तक़ियों का अफ़सर बना दे. गोया ऊपर भी हुक्मरानी की चाहत. दुआ मांगने वालों को बाला ख़ाने मिलेंगे, 
भूखंड और तहखाने ऐरे ग़ैरों को. 
मुहम्मदी जन्नत में जन्नतियों को बराबरी का दर्जा न होगा कोई सोने की जन्नत में होगा तो कोई जमुर्रद की, तो  किसी को जन्नतुल फ़िरदौस जोकि सब से कीमती जन्नत होगी . 
जिब्रील अलैहिस्सलाम ने पता नहीं क्यूँ मुहम्मद की पहली बीवी  ख़दीजा को खोखले मोतियों की जन्नत अलाट की है. हैरत है कि मुसलमान किसी आयत पर नज़रे सानी नहीं करता. 
हर मस्जिद में गिद्ध बैठे हुए है जो क़ौम का बोटियाँ नोच नोच कर खा रहे हैं.
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 21 August 2018

Hindu Dharm Darshan 216



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (20)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
*हे भरतवंशी ! 
जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है 
और अधर्म की प्रधानता होने लगती है , 
तब मैं अवतार लेता हूँ.
* * भगतों का उद्धार करने, दुखों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मै हर युग में प्रकट होता हूँ.
>
कहते हैं कि युद्ध के लिए कौरव और पांडु दोनों एक साथ भगवान के पास आए. भगवान शय्या पर सो रहे थे. 
होशियार कौरव शय्या के पैताने बैठे कि भगवान् उठेंगे तो उनकी नज़रें सामने होंगी और हम पर पड़ेंगी, और वरदान मागने का मौक़ा पहले मिलेगा. 
हुवा भी ऐसा, कौरवों ने सैन्य सहायता भगवान् से मांग ली और उन्हें मिल भी गई. 
जब भगवान् ने सर उठा कर देखा तो पीछे पांडु खड़े थे, 
पूछा तुमको क्या चाहिए ? मेरी सेना तो यह झटक ले गए. 
पांडु बोले आप अपने आप को हमें दे दीजिए.
भगवान तुरंत तैयार हो गए , 
पूरे युद्ध काल में मैं तुम्हें पाठ और पट्टी पढ़ाता रहूँगा. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -7 -8 
*भगवान की भग्नत्व तो यह थी कि दोनों भाइयो को चेतावनी देते कि पुर अमन ज़िन्दगी गुज़ारो वरना अपने प्रताप से मैं तुम लोगों में से एक को लंगड़ा कर दूंगा और दूसरे को लूला.  

* और क़ुरआन कहता है - - - 
"कुल्ले नफ़्सिन ज़ाइक़तुलमौत''
हर जानदार को मौत का मज़ा चखना है, 
और तुम को तुम्हारी पूरी पूरी पादाश क़यामत के रोज़ ही मिलेगी, 
सो जो शख्स दोज़ख से बचा लिया गया और जन्नत में दाखिल किया गया, 
सो पूरा पूरा कामयाब वह हुवा. 
और दुनयावी ज़िन्दगी तो कुछ भी नहीं, 
सिर्फ धोके का सौदा है।" 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (185) 
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 20 August 2018

सूरह फ़ुरक़ान-25 क़िस्त-2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
************

सू रहफ़ुरक़ान-25 
क़िस्त-2

"और जिस रोज़ अल्लाह तअला इन काफ़िरों को और उनको जिन्हें वह अल्लाह के सिवा पूजते हैं, जमा करेगा और फ़रमाएगा कि क्या तुमने हमारे बन्दों को गुम राह किया है? या ये ख़ुद गुम राह हो गए थे ? माबूदैन (पूज्य) कहेंगे कि मअज़ अल्लाह मेरी क्या मजाल कि हम आप के सिवा किसी को कारसाज़ तजवीज़ करते. लेकिन आपने इनको और इनके बड़ों को आसूदगी दी यहाँ तक कि वह आपको भुला बैठे और ख़ुद ही बर्बाद हो गए. अल्लाह तअला कहेगा कि लो तुम्हारे मअबूदों ने तुम को तुम्हारी बातों में ही झूठा ठहरा दिया तो अब अज़ाब को न तुम टाल सकते हो न मदद दिए जा सकते हो"
सूरह फ़ुरक़ान-25 आयत (17-19)

मुहम्मद की चाल-घात इन आयतों में उन पर खुली लअनत भेज रही हैं  कि जिन मिटटी की मूर्तियों को वह बे हुनर और बेजान साबित करते है वही अल्लाह के सामने जानदार होकर मुसलमान हो जाएँगी और अल्लाह से  गुफ़्तगू करने लगेंगी और अल्लाह की गवाही देने लायक़ बन एँगी.

"मअज़ अल्लाह मेरी  क्या मजाल कि हम आप के सिवा किसी को कारसाज़ तजवीज़ करते" 
माबूदैन की पहुँच अल्लाह तक है तो काफ़िर उनको अगर वसीला बनाते हैं तो हक़ बजानिब हुवे.


   "वह यूँ कहते हैं कि हमारे पास फ़रिश्ते क्यूँ नहीं आते या हम अपने रब को देख लें. ये लोग अपने आप को बहुत बड़ा समझ रहे है और ये लोग हद से बहुत दूर निकल गए हैं. जिस रोज़ ये फरिश्तों को देख लेंगे उस रोज़ मुजरिमों के लिए कोई ख़ुशी की बात न होगी. देख कर कहेंगे पनाह है पनाह."

सूरह फ़ुरक़ान-25 आयत (22)
ऐसी आयतें इंसान को निकम्मा और उम्मत को नामर्द बनाए हुए हैं. 
दुनिया की तरक़्क़ी में मुसलमानों का कोई योगदान नहीं. 
ये बड़े शर्म की बात है
.
"और जिस रोज़ आसमान बदली पर से फट जाएगा, और फ़रिश्ते बकसरत उतारे जाएँगे उस रोज़ हक़ीक़ी हुकूमत राहमान की होगी. और वह काफ़िर पर सख्त़ दिन होगा, उस रोज़ ज़ालिम अपने हाथ काट काट  खाएँगे. और कहेंगे क्या ख़ूब होता रसूल के साथ हो लेते."
सूरह फ़ुरक़ान-25 आयत (26-27)

अल्लाह का इल्म मुलाहिजा हो, उसकी समझ से बादलों के ठीक बाद आसमान की छत छाई हुई है जो फट कर फरिश्तों को उतारने लगेगी.  

इस अल्लाह को हवाई सफ़र कराने की ज़रुरत है, 
कह रहे हैं कि "उस रोज़ हक़ीक़ी हुकूमत राहमान की होगी" 
जैसे कि आज कल दुन्या में उसका बस नहीं चल पा रहा है. 
अल्लाह ने काफ़िरों को ज़मीन पर छोड़ रक्खा है कि हैसियत वाले बने रहो कि जल्द ही आसमान में दरवाज़ा खुलेगा और फ़रिश्तों की फ़ौज आकर फटीचर मुसलमानों का साथ देगी. 
काफ़िर लोग हैरत ज़दः  होकर अपने ही हाथ काट लेंगे और पछताएँगे कि कि काश मुहम्मद को अपनी ख़ुश हाली को लुटा देते. 
चौदः  सौ सालों से मुसलमान फटीचर का फटीचर है और काफ़िरों की ग़ुलामी कर रहा है, यह सिलसिला तब तक क़ायम रहेगा जब तक मुसलमान इन क़ुरआनी आयतों से बग़ावत नहीं कर देते.

"नहीं नाज़िल किया गया इस तरह इस लिए है, ताकि हम इसके ज़रीए से आपके दिल को मज़बूत रखें और हमने इसको बहुत ठहरा ठहरा कर उतारा है. और ये लोग कैसा ही अजब सवाल आप के सामने पेश  करें, मगर हम उसका ठीक जवाब और वज़ाहत भी बढ़ा हुवा आपको इनायत कर देते हैं."

सूरह फ़ुरक़ान-25 आयत (32-33)
अल्लाह की कोई मजबूरी रही होगी कि उसने क़ुरआन को आयाती टुकड़ों में नाज़िल किया, वर्ना उस वक़्त लोग यही मुतालबा करते थे कि यह आसमानी किताब आसमान से उड़ कर सीधे हमारे पास आए या मुहम्मद आसमान पर सीढ़ी लगाकर चढ़ जाएँ और पूरी क़ुरआन लेकर उतरें. मुहम्मद का मुँह जिलाने वाली बातें इसके जवाब में ये होती कि तुम सीढ़ी लगा कर जाओ और अल्लाह को रोक दो कि मुहम्मद पर ये आयतें न उतारे. इस जवाब को वह ठीक ठीक कहते है बल्कि वज़ाहत भी बढ़ा हुवा.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 19 August 2018

Hindu Hindu Dharm Darshan 215


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (19)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
आज मेरे द्वारा यह प्राचीन योग यानी परमेश्वर के साथ 
अपने संबंध का विज्ञान तुम से कहा जा रहा है, 
क्योंकि तुम मेरे भक्त और मित्र हो, 
अतः तुम इस विज्ञान के दिव्य को समझ सकते हो. 
अर्जुन ने कहा ---
* सूर्य देव विवस्वान आप से पहले हो चुके (ज्येष्ट) हैं 
तो फिर मैं कैसे समझूं कि प्रारंभ में भी आप ने उन्हें उपदेश दिया था. 
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
तुम्हारे और मेरे अनेकानेक जन्म हो चुके हैं. 
मुझे तो उन सब का स्मरण है परन्तु 
हे परन्ताप ! 
तुम्हें इनका स्मरण नहीं रह सकता.
यद्यपि मैं अजन्मा तथा अविनाशी हूँ 
और यद्यपि मैं समस्त जीवों का स्वामी हूँ , 
तो भी प्रतियेक युग में मैं अपने आदि दिव्य रूप में प्रकट होता रहता हूँ.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -3- 4 -5-6 
*
और क़ुरआन कहता है - - -
आधे क़ुरआन में अल्लाह अपनी बड़प्पन की डीगें मारता है कि 
वह हर राज़ को जानता है, 
वह मुसब्बुल असबाब है, 
वह बड़ी ताक़त वाला है, 
हिकमत वाला है. 
डींगें मारते मारते वह यह भी भूल जाता है कि 
वह उल्लू के पट्ठों जैसी बातें कर रहा है. 
वह कहता है,
" कि वह  रात को दिन में दाख़िल कर देता है,
और दिन को रात में. 
वोह जानदार चीज़ों को बेजान से निकाल लेता है 
(जैसे अंडे से चूजा) 
और बे जान चीज़ों को जानदार से निकाल लेता है 
(जैसे परिंदों से अंडा)
"सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (27)
वेद और क़ुरआन में बस इतना फ़र्क़ है कि वेद का लेखक साक्षर था और क़ुरआन का लेखक निरक्षर.
बातें दोनों  की स्तर हीन  हैं.
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान