Saturday 29 September 2018

Hindu Dharm Darshan 233


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (36)

अर्जुन भगवान् कृष्ण पूछते हैं - - -
>हे भगवान् !  
हे पुरुषोत्तम !!
ब्रह्म क्या है ?
आत्मा क्या है ? 
सकर्म क्या है ? 
यह भौतिक जगत क्या है ? 
तथा देवता क्या हैं ? 
कृपा करके यह सब मुझे बताइए.
**हे मधु सूदन ! यज्ञ का स्वामी कौन है ? 
और वह शरीर में कैसे रहता है ? 
और मृत्यु के समय भक्ति में लगे रहने वाले आपको कैसे जान जाते हैं ?
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  - 8 - श्लोक -1+2+3   
>भगवान् कृष्ण जवाब देते हैं - - - 
अविनाशी और दिव्य जीव ब्रह्म कहलाता है 
और उसका नित्य स्वभाव आध्यात्म या आत्म कहलाता है. 
जीवों के भौतिक शरीर से संबंधित गतिविधि 
कर्म या सकाम कर्म कहलाती है. 
>अर्जुन के सवाल आज भी ज्यों के त्यों जीवित और निरुत्तरित हैं. 
भगवन के जवाब धार्मिक झोल-झाल हैं.

और क़ुरआन कहता है - - - 
'आप कह दीजिए - - - 
लोगो!
मैं तुम सब की तरफ उस अल्लाह का भेजा हुवा हूँ, 
जिसकी बादशाही है, तमाम आसमानों और ज़मीन पर है - - - 
अल्लाह पर ईमान लाओ और नबी उम्मी पर 
जो अल्लाह और उसके एहकाम पर ईमान रखते हैं''
अलएराफ़ ७ -नवाँ पारा आयत (१५८)

>लोगों को अल्लाह का इल्म भली भांत था जिसे वह मानते थे मगर जनाब उसकी तरफ से नकली दूत बन कर सवार हो, वह भी उम्मी. 
तायाफ़ के हुक्मरां ने ठीक ही कहा थ कि क्या अल्लाह को मक्का में कोई पढ़ा लिखा ढंग का आदमी नहीं मिला था जिसे अपना रसूल बनाता और रुसवा करके उसके दरबार से निकले. अल्लाह ने तुम्हारी कोई खबर न ली. जाहिलों को लूट मार का सबक सिखला कर कामयाब हुए तो किया हुए.
*** 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 28 September 2018

Soorah luqman 31--Q2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*************
सूरह लुक़मान- 31-سورتہ اللقمان  
क़िस्त 2  

"और हमने इंसान को उसके माँ बाप के मुतालिक़ ताक़ीद किया है कि उसकी माँ ने तकलीफ़ पर तकलीफ़ उठा कर ? और दो बरस में उसका दूध छूटता है कि तू मेरी और अपने माँ बाप का शुक्र गुज़ारी किया कर. मेरी तरफ़ ही लौट कार आना है."
सूरह लुक़मान 31आयत (14)

लगता है मुसंनिफ़े-क़ुरआन कुछ मदक़ पिए हुए है, 
ज़बान लड़खड़ा रही है, 
जुमले को पूरा भी नहीं कर पा रहा है. 
ऐसे अल्लाह के मुँह पर लगाम लगाई जाए और पैरों में बेडी डाली जाए. 
कैसी मख़लूक़ है ये कट्टर मुसलमानों की भीड़ 
जो इन बकवासों को इबादत के लायक़ समझते हैं.

"और अगर तुझ पर वह दोनों मिलकर ज़ोर डालें तो कि तू मेरे साथ ऐसी चीज़ को शरीक न कर जिसकी तेरे पास कोई दलील नहीं है तो तू इनका कहना न मानना और दुन्या में इनके साथ ख़ूबी से बसर करना और उसी कि राह पर चलना जो मेरी तरफ़ रुजू हो, फिर तुम सब को मेरे पास आना है, फिर तुम को जतलाऊँगा जो कुछ तुम करते हो."
सूरह लुक़मान 31आयत (15)

मुहममद अल्लाह से कहलाते है कि औलाद माँ बाप की ना फ़रमानी भी करे और इनके साथ ख़ूबी से बसर भी करे. 
है न ये मुतज़ाद हिमाक़त की बातें?
मुहम्मद औलादों को बहक़ते भी हैं और साथ साथ धमकाते भी हैं.
बद क़िस्मत क़ौम ! जागो.

"बेटा! अगर कोई अमल राई के दाने के बराबर हो, वह किसी पत्थर के अन्दर हो या आसमान के अन्दर या ज़मीन के अन्दर हो तब भी अल्लाह इसको हाज़िर कर देगा. बेशक अल्लाह बारीक बीन बाख़बर है."


सूरह लुक़मान 31आयत(16)  

मुसलमानों! 
अल्लाह तअला न बारीक बीन है न बाख़बर, 
न वह बनिए की तरह है कि सब का हिसाब किताब रखता है, 
वह अगर है तो एक निज़ाम बना कर क़ुदरत के हवाले कर दिया है, 
अगर नहीं है तो भी क़ुदरत का निज़ाम ही कायनात में लागू है. 
हर अच्छे बुरे का अंजाम मुअय्यन है, 
इस ज़मीन की रफ़्तार अरबों बरस से मुक़र्रर है कि है कि वह एक मिनट के देर के बिना साल में एक बार अपनी धुरी पर अपना चक्कर पूरा करती है. क़ुदरत गूँगी, बहरी है और अंधी है उससे निपटने के लिए इंसान हर वक़्त मद्दे मुक़ाबिल है. 
अगर वह मुक़ाबिला न करता होता तो अपना वजूद गवां बैठता, 
आज जानवरों की तरह सर्दी, गर्मी और बरसात की मर झेलता होता, 
बड़ी बड़ी इमारतों में ए सी में न बैठा होता.
मुसलमान उसका मुक़ाबिला नहीं करता बल्कि उसको पूजता है, 
यही वजेह है कि वह ज़वाल पज़ीर है.

"बेटा नमाज़ पढ़ा कर और अच्छे कामो की नसीहत किया कर और बुरे कामों से मना किया कर, और तुझ पर मुसीबत वाक़ेअ हो तो सब्र किया कर, ये उम्मत के कामों में से है. और लोगों से अपना मुँह मत फेर और ज़मीन पर इतरा कर मत चला कर. बेशक अल्लाह तकब्बुर करने वाले, फ़ख़्र  करने वाले को पसन्द नहीं करता. अपनी रफ़्तार में एतदाल अख़्तियार कर और अपनी आवाज़ पस्त कर, बे शक आवाज़ों में सब से बुरी आवाज़ गधों की है"
सूरह लुक़मान 31आयत(17-19)

मुहम्मद हकीम लुक़मान से कैसी कैसी टुच्ची बातें करवाते हैं  . 
यह हकीम लुक़मान की मिटटी पिलीद करना हुआ. 
मुहम्मद को इसकी परवाह भी नहीं , 
जो इंसानी समाज का बद ख़्वाह रहा हो 
उसको बुद्धि जीवियों की क़द्र क़ीमत कोई मानी नहीं रखती. 
बहुत से बुद्धि जीवी मुहम्मद के ज़माने में हुवा करते थे जिन्हें उन्हों ने काफ़िर, मुशरिक, मुल्हिद कह कर पामाल कर दिया.
देखिए कि हज़रत कह रहे हैं 
"बे शक आवाज़ों में सब से बुरी आवाज़ गधों की है " 
अल्लाह के बने रसूल अल्लाह की मख़लूक़ पर कैसा तबसरा कर रहे हैं.
"हम उनको चन्द रोज़ का ऐश दिए हुए हैं, उनको धेरे धीरे एक सख़्त अज़ाब की तरफ़ ले जाएँगे और- - -''
सूरह लुक़मान 31आयत(17-19)

ग़ौर कीजिए कि मुहम्मदी अल्लाह अपने बन्दों के साथ कैसी साज़िश रचता है . इंसानी दिलो-दिमाग़और जान का दुश्मन शिकारी.

"और अल्लाह तबारक तअला बे नयाज़, सब ख़ूबियों वाला है. और जितने दरख़्त ज़मीन भर में हैं, ये सब क़लम बन जाएं तो और ये समंदर है, इसके अलावः सात समंदर और इसमें शामिल हो जाएं तो इस की बातें ख़त्म न होंगी."
सूरह लुक़मान 31आयत(27)

गोया रसूल का अंदाज़ा है कि इस ज़मीन के सारे दरख़्त अगर कलम बन जाएँ तो समंदर भर की रोशनाई कम पड़ जायगी बल्कि इस का सात गुना भी कम पड़ जाएगी कि अल्लाह की बातें ख़त्म न होंगी. 
जब कि समंदर पेड़ों के मुक़ाबिले हज़ारों गुना होगा. 
बातें क़ुरआनी बकवास न हों, नई नई बातें हों, 
कारामद बातें हों तो इसको पढ़ने के लिए मुसलसल इंसानी नस्लें तैयार हैं.
"और वही जानता है जो रहेम (गर्भ) में है "
सूरह लुक़मान 31आयत(34)
आज अल्लाह का चैलेंज तार तार हो चुका है. 
अगर इस आयत को ही लेकर मुसलमान अपनी आँखें खोलना चाहें तो काफ़ी है.
*** 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 27 September 2018

ndu Dharm Darshan 232


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (35)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>बुद्धिहीन मनुष्य मुझको ठीक से न जानने के कारण सोचते हैं 
कि मैं (भगवान कृष्ण) पहले निराकार था 
और अब मैंने इस स्वरूप को धारण किया है . 
वह अपने अज्ञान के करण मेरी अविनाशी तथा सर्वोच प्रकृति को नहीं जान पाते.
**मैं मूरखों एवं अल्पज्ञो के लिए कभी भी प्रकट नहीं होता हूँ.
उनके लिए तो मैं अपनी अंतरंगाशक्ति द्वारा आच्छादित रहता हूँ, 
अतः वे नहीं जान पाते कि मैं अजन्मा तथा अविनाशी हूँ.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -7  - श्लोक -24 +25 

> भगवान् रूपी जीव ईश्वरीय शक्ति का मालिक होता है, 
नकि इतना लाचार कि उसे रूप बदलने की ज़रुरत हो. 
सभी धर्म ग्रन्थ अपने ईजाद किए हुए भगवानों को न स्वीकारने वालों को अभद्र भाषा की शब्दावली प्रयोग में लाते हैं. 
थोडा स अगर आपके अन्दर स्वचितन है तो गई भैंस पानी में, 
आपको अज्ञानी अभिमानी और नास्तिक की उपाधि मिल जाएगी. 
धार्मिक रहकर आप कभी भी सीमा रेखा को पार नहीं कर सकते. 
एक अँगरेज़ कथा कार की मशहूर कथा है कि 
एक ठग शोहरत की बुलंदियों पर पहुँच चुका था. वह दुन्या के सबसे अद्भुत तथा कथित परिधान बनाता है जिसके पहनने वाले को सिर्फ सच्ची नज़रें देख सकती हैं, झूटों को वह नज़र नहीं आएगा. खबर राजा तक पहुंची तो वह राज महल पहुँच गया और राजा को अपना आविष्कार किया हुवा लिबास पहना दिया. किसकी मजाल थी कि वह खुद को अँधा साबित करे. सब ने ताली बजाई और राजा नंगा आसन पर बैठ कर शहर में घुमा दिया गया . 
केवल औरतें राजा को देख कर नज़रें नीची करके हैरत में पड़ जातीं, 
" हाय दय्या ! राजा नंगा ?? 

और क़ुरआन कहता है - - - 
>''क्या तुम सचमुच गवाही दोगे कि अल्लाह के साथ और कोई देव भी हैं? 
आप कह दीजिए कि मैं तो गवाही नहीं देता. 
आप कह दीजिए कि वह तो बस एक ही माबूद (पूज्य) है 
और बेशक मैं तुम्हारे शिर्क से बेज़ार हूँ"
'' जिन लोगों ने अपने आप को ज़ाया कर लिया वह ईमान न लाएंगे''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (१६-२४) 
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 26 September 2018

luqman 31-Q1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*****
सूरह लुक़मान- 31-سورتہ اللقمان  

क़िस्त 1 

कहते हैं कि हकीम लुक़मान खेतों में, बाग़ों और जंगलों में सैर करने जाते तो पेड़ पौदे उनको आवाज़ देकर बुलाते कि हकीम साहब मैं फलाँ बीमारी का इलाज हूँ . 
और यह बात भी मशहूर है कि अल्लाह मियाँ ने उनको पैग़मबरी की पेश कश की थी जिसे उन्हों ने ठुकरा दिया था कि मुझे हिकमत पसंद है. 
ये तो ख़ैर किंवदंतियाँ हुईं. 
  हकीम साहब आला ज़र्फ़ इंसान रहे होंगे और समझ दार भी, 
साथ साथ मेहनत कश और हलाल खो़र भी. 
बस यूँ समझें  कि आज के परिवेश में एक सच्चा डाक्टर जो इन नीम हकीमों से बाबा, स्वामी, पीर, गुरू और योगयों वग़ैरा से महान होता है. 
हकीम साहब ने लाखों इंसानी ज़िंदगियाँ बचाईं और उनके नुस्ख़े यूनानी इलाज के बुनियाद बने हुए हैं. पैग़मबरों ने लाखों ज़िंदगियों को मौत के घाट उतारा और उनके मज़हब मुसलसल इंसानियत का ख़ून  किए जा रहे हैं. 
सूरह में देखें कि मुहम्मदी अल्लाह ने उस अज़ीम हस्ती को उल्लू का पट्ठा बनाए हुए है. मुहम्मद जिस क़दर मूसा ईसा को जानते थे उतना ही लुक़मान हकीम को और ठोंक दी एक सूरह उनके नाम की  भी.
"अलिफ़ लाम मीम"
सूरह लुक़मान 31आयत (1)
यह मुहम्मदी छू मंतर है. इसका मतलब अल्लाह जाने.

"ये आयतें एक पुर हिकमत किताब की हैं जो कि हिदायत और रहमत है, नेक कारों के लिए. जो नमाज़ की पाबन्दी करते हैं और ज़कात अदा करते हैं और वह लोग आख़रत का पूरा यक़ीन रखते हैं.''
सूरह लुक़मान 31आयत(2-4)

वाजेह हो कि मुहम्मदी अल्लाह की नज़र में नेक काम नमाज़, ज़कात और आख़िरत पर यक़ीन रखना ही है, जोकि दर असल कोई काम ही नहीं है. 
नेक काम है हक़ हलाल की रोज़ी, ख़ून  पसीना बहा कर कमाई गई रोटी, 
इनसे परवरिश पाया हुवा परिवार, इस कमाई से की गई मदद. 
अल्लाह के बन्दों के लिए रोज़ी के ज़राए पैदा करना. 
धरती को सजा संवार कर इससे खाद्य निकालना, 
सनअत क़ायम करना.
क़ुरआन अगर पुर हिकमत किताब होती तो 
मुसलमान हिकमत लगा कर बहुत सी ईजादों के मूजिद होते. 
कोई ईजाद इन नमाज़ियों ने नहीं की?

"और बअज़ा आदमी ऐसा है जो उन बातों का ख़रीदार बनता है जो  ग़ाफ़िल करने वाली हो, ताकि अल्लाह की राह से बे समझे बूझे गुमराह करे और इसकी हंसी उड़ा दे, ऐसे लोगों को ज़िल्लत का अज़ाब है. और जब उनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो वह तकब्बुर करता हुआ मुँह फेर लेता है, जैसे इसने सुना ही न हो, जैसे इसके कानों में नक़्श  हो."
सूरह लुक़मान 31आयत (6-7)

कैसा मेराक़ी इंसान था वह जो अल्लाह का रसूल बना हुआ था? 
जो राह चलते राही की राहें रोक रोक क़र क़यामत आने की बातें करता था. 
ज़रा आज भी ऐसे ही दीवाने कि कल्पना कीजिए, 
कोई आज पैदा हो जाए तो क्या हो? 
वह ख़ुद लोगों को ग़फ़लत बेचने में कामयाब हो गया, 
ऐसी ग़फ़लत कि सदियाँ गुज़र गईं, लोग ग़ाफ़िल हुए पड़े है, 
पूरी की पूरी क़ौम ग़फ़लत के नशे में चूर है.

"अल्लाह ने आसमान को (बहैसियत एक छत) बग़ैर ख़म्बे के क़ायम किया, तुम इसको देख रहे हो और ज़मीन में पहाड़ डाल रक्खे हैं ताकि वह तुम को लेकर डावां डोल न हो.और इस में हर क़िस्म के जानवर फैलाए और हम ने आसमान से पानी बरसाया और फिर हमने ज़मीन पर हर तरह के उम्दा इक़साम उगाए."
सूरह लुक़मान 31आयत (10)

अफ़्रीक़ा के क़बीलों में जहाँ अभी तालीम नहीं पहुँची, ऐसी आयतों पर अक़ीदा बांधे हुए हैं जब कि मुसलमान योरोप में रह कर भी नहीं बदले उनका अक़ीदा भी यही है कि अल्लाह ने आसमानों की छतें बग़ैर ख़म्बों के बनाए हुए है और ज़मीन में पहाड़ों के खूँटे गाड़ कर हमें महफ़ूज़ किए हुए है.
मुहम्मद अल्लाह की बख़ान  कभी ख़ुद करते हैं 
और कभी ख़ुद अल्लाह बन कर बोलने लगते हैं. 
ग़ौर करें कि कहते हैं "अल्लाह ने आसमान को - - -  
फिर कहते हैं " हम ने आसमान से पानी बरसाया- - - "
इसे मुसलमान अल्लाह का कलाम मानते हैं, 
गोया मुहम्मद को जुज़वी तौर पर अल्लाह मानते हैं. 
ओलिमा इस पर गढ़ी हुई दलील पेश करते हैं कि 
अल्लाह कभी ख़ुद अपने मुँह से बात करता है तो कभी मुहम्मद के मुँह से. 
ओलिमा सारी हक़ीक़त जानते हैं और ये भी जानते हैं कि इनको इनका अल्लाह ग़ारत नहीं कर सकता, 
क्यूंकि अल्लाह वह भी मुहम्मदी अल्लाह हवाई बुत है ?
जैसे मुशरिकों के माटी के बुत होते हैं.
देखिए कि ख़ुद साख़्ता अल्लाह के रसूल हकीम लुक़मान से कोई हिकमत की बातें नहीं कराते हैं बल्कि अपने दीन इस्लाम का प्रचार कराते हैं - - -

"और हमने लुक़मान को दानिश मंदी अता फ़रमाई कि अल्लाह का  शुक्र करते रहो, कि जो शुक्र करता है, अपने ज़ाती नफ़ा नुक़सान के लिए शुक्र करता है. और जो नाशुक्री करेगा तो अल्लाह बे नयाज़  ख़ूबियों वाला है."
सूरह लुक़मान 31आयत(12)

"और जो नाशुक्री करेगा तो अल्लाह बे नयाज़ ख़ूबियों वाला है."बन्दा नाशुक्री करता रहे और अल्लाह ख़ूबियाँ बटोरता रहे? 
है न मुहम्मद की उम्मियत का असर.

"और जब लुक़मान ने अपने बेटे को नसीहत करते हुए कहा कि बेटा! अल्लाह के साथ किसी को शरीक न ठहराना. बे शक शिर्क करना बहुत बड़ा ज़ुल्म है."
सूरह लुक़मान 31आयत(13)

क्या बात है नाज़िम ए कायनात कान लगाए बैठा हकीम लुक़मान की नसीहत सुन रहा था जो वह अपने बेटे को दे रहे थे. फिर हज़ारों साल बाद जिब्रील अलैहिस्सलाम को इसकी ख़बर देकर कहा कि इस वाक़ेए को मेरे प्यारे नबी के कानों में फुसक आओ ताकि वह अपनी उम्मत के लिए तिलावत का सामान पैदा कार सकें,
मुसलमानों थोड़ी देर के लिए दिमाग़ की खिड़की खोलो. 
अपने रसूल की चाल बाज़ी को समझो, 
क्या हकीम लुक़मान अपने बेटे को कोई हकीमी नुस्ख़ा दे रहे हैं, 
जो कि उनकी हिकमत के मुताबिक़ अल्लाह को गवाही देनी चाहिए? 
क़ुरआनी अल्लाह निरा झूठा है.

ज़ुल्म वही इंसानी अमल है जिसके करने से किसी को जिस्मानी नुक़सान हो रहा हो, या फिर ज़ेहनी नुक़सान के इमकान हों, या तो माली नुक़सान पहुँचाना हो. 
शिर्क करने से कौन घायल होता है? 
किसको ज़ेहनी अज़ीयत होती है या 
फिर किसकी जेब कटती है? 
आम मुसलमान कुफ्र और शिर्क को ज़ुल्म मानता है 
क्यूंकि क़ुरआन बार बार इस बात को दोहराता है. 
क़ुरआन ने अलफ़ाज़ के मानी बदल रक्खे हैं.
*** 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 25 September 2018

Hindu Dharm Darshan 231


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (34)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
> इनमें (इंसानों में) जो परम ज्ञानी हैं 
और शुद्ध भक्ति में लगा रहता है, 
वह सर्व श्रेष्ट है 
क्योंकि मैं उसे अत्यंत प्रिय हूँ 
और वह मुझे प्रिय है.  
**अल्प बुद्धि वाले व्यक्ति देवताओं की पूजा करते हैं 
और उन्हें प्राप्त होने वाले फल सीमित एवं क्षणिक होते हैं. 
देवताओं की पूजा करने वाले देव लोक को जाते हैं, 
किन्तु मेरे भक्त अंततः मेरे परम धाम को प्राप्त होते हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -7  - श्लोक -17 +23 
'भक्ति' 
आने वाले समय में समाज की गाली बन जाएगी, 
भक्त पशुओं की श्रेणी में माना जाएगा.  
भक्ति दासता से बढ़ कर ऐसी मानसिकता है जो इंसान के व्यक्तिव को नष्ट करके दासता को अपनाने का हुक्म देती है. 
इसे मुस्लिम परिवेश में मुरीदी कहते हैं जिसका ह्कवारा कोई पीर हुवा करता है. मेरे परचित एक मुरीद ने बतलाया कि उसका अल्लाह और उस रसूल, 
उसका पीर है, मैं उसके लिए समर्पित हूँ, 
वह मेरे आकबत (परलोक) का निगहबान है. 
भक्ति भाव रखने वाले भेड़ और बकरियां से अधिक और हुछ भी नहीं , 
भारत भूमि का खासकर हिन्दू समूह इस चरागाह में चरना ज्यादा पसंद करते हैं. इस चरागाह के हक्वारे इतने स्वार्थी होते हैं कि प्रचलित देवी देवताओं को भी किनारे लगाने में संकोच नहीं करते.
भगवान् कृष्ण कहते हैं कि 
अल्प बुद्धी वाले व्यक्ति देवताओं की पूजा करते हैं 
और उन्हें प्राप्त होने वाले फल सीमित एवं क्षणिक होते हैं. 
देवताओं की पूजा करने वाले देव लोक को जाते हैं, 
किन्तु मेरे भक्त अंततः मेरे परम धाम को प्राप्त होते हैं.
 यानी अब देवताओं की माया से निकलो और मेरे शरण में आओ.

और क़ुरआन कहता है - - - 
''और अगर आप देखें जब ये दोज़ख के पास खड़े किए जाएँगे 
तो कहेंगे है कितनी अच्छी बात होती कि हम वापस भेज दिए जाएं
 और हम अपने रब की बातों को झूटा न बतलाएं और हम ईमान वालों में हो जाएं''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (२7)

आगे ऐसी ही बचकानी बातें मुहम्मद करते हैं कि लोग इस पर यकीन कर के इस्लाम कुबूल करें. ऐसी बचकाना बातों पर जब तलवार की धारों से सैक़ल किया गया तो यह ईमान बनती चली गईं. तलवारें थकीं तो मरदूद आलिमों की ज़बान इसे धार देने लगीं.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 24 September 2018

Soorah rom 30 Q3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
************
 सूरह रूम -30- سورتہ الروم 
क़िस्त-3 

"अल्लाह तअला तुमसे एक मज़मून-अजीब, तुम्हारे ही हालात में बयान फ़रमाते हैं, क्या तुम्हारे ग़ुलामों में कोई शख़्स तुम्हारा उस माल में जो हमने तुम को दिया है, शरीक है कि तुम और वह इस में बराबर के हों, जिनका तुम ऐसा ख़याल करते हो जैसा अपने आपस में ख़याल किया करते हो? हम इसी तरह  समझदार के लिए दलायल साफ़ साफ़ बयान करते हैं "
सूरह रूम - 30 (आयत 28)

क्या अल्लाह की इस ना मुकम्मल बकवास में कोई दम है, 
अलबत्ता ये अजीबो ग़रीब ज़रूर है.

"सो जिसको ख़ुदा गुम राह करे उसको कौन राह पर लावे"
सूरह रूम - 30 (आयत 29)

ये आयत क़ुरआन  में मुहम्मद का तकिया कलाम है जो बार बार आती है, 
नतीजतन मुसलमान इसे दोहराते रहते हैं, बग़ैर इस पर ग़ौर किए 
कि आयत कह क्या रही है, कि अल्लाह शैतान से भी बड़ा शैतान है 
कि सीधे सादे अपने बन्दों को ऐसा गुमराह करता है कि 
उसका राह पर आना मुमकिन ही नहीं है.

"जिन लोगों ने अपने दीन के टुकड़े टुकड़े कर रखे है और बहुत से गिरोह हो गए हैं, हर गिरोह अपने तरीक़े पर नाज़ाँ है जो उसके पास है  - - -
क्या उनको मालूम है कि अल्लाह तअला जिसको चाहे ज़्यादः रोज़ी दे देता है जिसको चाहे कम देता है. इसमें निशानियाँ हैं उन लोगों के लिए जो ईमान रखते हैं.- - -
अल्लाह ही वह है जिसने तुम को पैदा किया, फिर रिज़्क़ दिया फिर मौत देता है, फिर तुमको जिलाएगा. क्या तुम्हारे शरीकों में कोई ऐसा है?- - -
ख़ुशकी और तरी में लोगों के आमाल के सबब बलाएँ फ़ैल रही हैं ताकि अल्लाह तअला उनके बअज़ आमाल का मज़ा उनको चखा दे ताकि वह बअज़ आएँ,
वाक़ई अल्लाह तअला काफ़िरों को पसंद नहीं करता
और हमने आप से पहले बहुत से पैग़म्बर इनके क़ौमों के पास भेजे और वह उनके पास दलायल लेकर आए सो हमने उन लोगों से इन्तेक़ाम लिया जो मुर्तक़ब जरायम हुए थे और अहले ईमान को ग़ालिब करना हमारा ज़िम्मा था.
सो आप मुर्दों को नहीं सुना सकते और बहरों को आवाज़ नहीं सुना सकते जब कि पीठ फेर कर चल दें, आप अंधों को उनकी बेराही से राह पर नहीं ला सकते, आप तो बस उनको सुना सकते हैं जो हमारी आयातों पर यक़ीन रखते हैं, बस वह मानते हैं.
सूरह रूम - 30 (आयत 30-57)

"और हमने इस क़ुरआन  में तरह  तरह  के उम्दा मज़ामीन बयान किए हैं. और अगर आप उनके पास कोई निशानी ले आवें तब भी ये काफ़िर जो हैं, यही कहेंगे कि तुम सब निरा अहले बातिल हो. जो लोग यक़ीन नहीं करते अल्लाह तअला उनके दिलों में यूँ ही मुहर लगा देता है. तो आप सब्र कीजिए, बेशक अल्लाह का वादा सच्चा है, और ये बद यक़ीन लोग आपको बेबर्दाश्त न कर पाएँगे."
सूरह रूम - 30 (आयत 60-75)

सिडी सौदाइयों की तरह  क्या क्या बक रहे हो, अल्लाह मियां?
ये कौन लोग निरे अहले बातिल हैं? बद यक़ीन हैं? ये कौन लोग है 
जो आपको बेबर्दाश्त नहीं कर पा रहे है? 
ये बेबर्दाश्त क्या होता है. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 22 September 2018

Hindu Dharm Darshan 230


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (34)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
> इनमें (इंसानों में) जो परम ज्ञानी हैं 
और शुद्ध भक्ति में लगा रहता है, 
वह सर्व श्रेष्ट है 
क्योंकि मैं उसे अत्यंत प्रिय हूँ 
और वह मुझे प्रिय है.  
**अल्प बुद्धि वाले व्यक्ति देवताओं की पूजा करते हैं 
और उन्हें प्राप्त होने वाले फल सीमित एवं क्षणिक होते हैं. 
देवताओं की पूजा करने वाले देव लोक को जाते हैं, 
किन्तु मेरे भक्त अंततः मेरे परम धाम को प्राप्त होते हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -7  - श्लोक -17 +23 
'भक्ति' 
आने वाले समय में समाज की गाली बन जाएगी, 
भक्त पशुओं की श्रेणी में माना जाएगा.  
भक्ति दासता से बढ़ कर ऐसी मानसिकता है जो इंसान के व्यक्तिव को नष्ट करके दासता को अपनाने का हुक्म देती है. 
इसे मुस्लिम परिवेश में मुरीदी कहते हैं जिसका ह्कवारा कोई पीर हुवा करता है. मेरे परचित एक मुरीद ने बतलाया कि उसका अल्लाह और उस रसूल, 
उसका पीर है, मैं उसके लिए समर्पित हूँ, 
वह मेरे आकबत (परलोक) का निगहबान है. 
भक्ति भाव रखने वाले भेड़ और बकरियां से अधिक और हुछ भी नहीं , 
भारत भूमि का खासकर हिन्दू समूह इस चरागाह में चरना ज्यादा पसंद करते हैं. इस चरागाह के हक्वारे इतने स्वार्थी होते हैं कि प्रचलित देवी देवताओं को भी किनारे लगाने में संकोच नहीं करते.
भगवान् कृष्ण कहते हैं कि 
अल्प बुद्धी वाले व्यक्ति देवताओं की पूजा करते हैं 
और उन्हें प्राप्त होने वाले फल सीमित एवं क्षणिक होते हैं. 
देवताओं की पूजा करने वाले देव लोक को जाते हैं, 
किन्तु मेरे भक्त अंततः मेरे परम धाम को प्राप्त होते हैं.
 यानी अब देवताओं की माया से निकलो और मेरे शरण में आओ.

और क़ुरआन कहता है - - - 
''और अगर आप देखें जब ये दोज़ख के पास खड़े किए जाएँगे 
तो कहेंगे है कितनी अच्छी बात होती कि हम वापस भेज दिए जाएं
 और हम अपने रब की बातों को झूटा न बतलाएं और हम ईमान वालों में हो जाएं''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (२7)
आगे ऐसी ही बचकानी बातें मुहम्मद करते हैं कि लोग इस पर यकीन कर के इस्लाम कुबूल करें. ऐसी बचकाना बातों पर जब तलवार की धारों से सैक़ल किया गया तो यह ईमान बनती चली गईं. तलवारें थकीं तो मरदूद आलिमों की ज़बान इसे धार देने लगीं.
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 21 September 2018

सूरह रूम -30- سورتہ الروم क़िस्त-2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
********
 सूरह रूम -30- سورتہ الروم 

क़िस्त-2 

मुहम्मदी अल्लाह की क़ुदरत से मुतालिक़ जानकारी मुलाहिज़ा हो - - -

"वह जानदार चीज़ों को बेजान को निकाल लेता है ( यानी मुर्गी से अण्डा?) और बेजान चीज़ों से जानदार चीज़ों( यानी अंडे से मुर्गी?) से निकल लेता है और ज़मीन को इसके मुर्दा हो जाने के बाद जिंदा कर देता है और इसी से तुम लोग निकलते हो."
सूरह रूम - 30 (आयत 19)

यह आयत क़ुरआन  में बार बार आती है जिसको कि कोई आम मुसलमान क़ुरआन का नमूना बना कर पेश नहीं करता, ओलिमा की तो छोड़िए कि इनका आल्लाह परिंदों के अण्डों को बेजान जानता और मानता है. 
कोई जाहिल कहलाना पसँद नहीं करता. 
मुहम्मद बार बार अपने इस वैज्ञानिक ज्ञान को दोहराते रहे, 
सहाबाए इकराम और उनके ख़लीफ़ाओं ने भी कभी न टोका कि 
या रसूल लिल्लाह अंडे जानदार होते हैं. 
इस बात से ये साबित है कि उनके गिर्द सब के सब जाहिल और उम्मी हुआ करते थे. यही जेहालत इस्लाम मुसलमानों को बाँट रहा है, 

"और उसी की निशानियों में ये है कि उसने तुम्हारे वास्ते तुम्हारे जिन्स की बीवियाँ बनाईं ताकि तुमको उनके पास आराम मिले और तुम मियाँ बीवी में मुहब्बत और हमदर्दी पैदा की. इसमें उन लोगों के लिए निशामियाँ हैं जो फिक्र से काम लेते हैं. और उसी की निशानियों में से ज़मीन और आसमान का बनाना है. और तुम्हारे लबो लहजे और नुक़तों का अलग अलग होना है. इसी में दानिश मंदी के लिए निशानियाँ हैं."
सूरह रूम - 30 (आयत 21-22)

मुहम्मदी अल्लाह कहता है तुमहारे वास्ते तुम्हारे जिन्स की बीवियां बनाईं?
कुछ तर्जुमान ने लिखा कि तुम्हारे लिए तुम्हारी हम जिन्स बीवियां बनाईं. 
दोनों बातें एक ही है. 
मुहम्मदी अल्लाह चूँकि उम्मी है वह कहना चाहता है तुम्हारे लिए जिन्स ए मुख़ालिफ़ बीवियां बनाईं और उसमे लुत्फ़ डालकर जोड़ों में मुहब्बत पैदा की. 
मुहम्मद की ये लग्ज़िसें चीख़ चीख़ कर मुसलमानों को आगाह करती हैं कि क़ुरआन और कुछ भी नहीं, सिर्फ़ अनपढ़ मुहम्मद के कलाम के.
फिर सवाल ये उठता है कि क़ुदरत की इन बातों को कौन नहीं जनता था 
और कौन नहीं मानता था, 
उस वक़्त अरब की तारीख़ में बड़े बड़े दानिश्वर हुवा करते थे. 
इंसान तो इंसान, हैवान भी अपने जोड़े के लिए जान ले लेते हैं और जान दे देते हैं. 
तालिबानी जेहालत समझती है कि इन बातों को उनके नबी ने जानकर हमें बतलाया. 
जाहिलों की जमाअत समझती है कि इंसानों का रोज़ अव्वल, 
रसूल की आमद के बाद से शुरू होता है 
और क़ुदरत के तमाम इन्केशाफ़ात उनके रसूल ने किया है. 
उनको सुक़रात,गौतम, ईसा, कन्फ्यूसेस, ज़ेन, ज़र्तुर्ष्ट और महावीर कोई नज़र ही नहीं आता, 
जो मुहम्मद से पहले हो चुके है, 
अलावा लाल बुझक्कड़ के.

"और इसी निशानियों  में से ये है कि वह तुम्हें बिजली दिख़ता है जिस से डर भी होता है और उम्मीद भी होती है और वह्यि आसमान से पानी बरसता है, फिर उसी से ज़मीन को उस मुर्दा हो जाने के बाद जिंदा कर देता है. इसमें इन लोगों के लिए निशानियाँ हैं जो अक़्ल  रखते हैं. और इसी निशानियों में से ये है कि आसमान और ज़मीन उसके हुक्म से क़ायम हैं. फिर जब तुमको पुकार कर ज़मीन से बुलावेगा तो  तुम यक बारगी निकल पड़ोगे और जितने आसमान और ज़मीन हैं, सब उसी के ताबे हैं. और वह्यि रोज़े अव्वल पैदा करता है और वह्यि दोबारा पैदा करेगा, और ये इसके नजदीक ज़्यादः आसन है. "
सूरह रूम - 30 (आयत 24-27)

मुसलमानों अल्लाह को बाद में जानो, पहले निज़ामे क़ुदरत को समझो. 
पेड़ पौदों की तरह  क्या इंसान ज़मीन से उगने शुरू हो जाएँगे? 
ज़मीन न मुर्दा होती है न ज़िंदा, पानी ही ज़िदगी है. 
बेहतर ये होता कि अल्लाह 
एक बार इंसान को पानी की बूँदें की तरह  बरसता. 
ये थोडा छोटा झूट होता.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 20 September 2018

Hindu Dharm Darshan 229


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (32)
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>हे कुंती पुत्र ! मैं जल का स्वाद हूँ, 
सूर्य तथा चंद्रमा का प्रकाश हूँ,
वैदिक मन्त्रों में ओंकार हूँ,
आकाश में ध्वनि हूँ 
तथा मनुष्यों में सामर्थ्य हूँ.
**मैं पृथ्वी की आघ्यसुगंध और अग्नि की ऊष्मा हूँ.
मैं समस्त जीवों का जीवन तथा तपिश्वियों का ताप हूँ. 
***हे पृथा पुत्र ! 
यह जान लो कि मैं ही समस्त जीवों का आदि बीज हूँ, 
बुद्धिमानों की  बुद्धि तथा समस्त तेजस्वी पुरुषों का तेज हूँ.
मैं बलवानों का कामनाओं तथा इच्छा से रहित बल हूँ. 
हे भरत श्रेष्ट अर्जुन ! 
मैं वह काम हूँ जो धर्म के विरुद्ध नहीं.
****तुम जान लो कि मेरी शक्ति द्वारा सारे गुण प्रकट होते हैं, 
चाहे वह सतोगुण हों,रजोगुण हो या तमोगुण हों. 
एक प्रकार से मैं सब कुछ हूँ,
किन्तु हूँ स्वतंत्र. मैं प्रकृति के गुणों के आधीन नहीं हूँ 
अपितु वे मेरे आधीन हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -7  - श्लोक -8 -9 10 11-12 

>हे भगवान् तुम क्या नहीं हो ? बस इतना बतला देते. 
गर्भ से गर्भित, 
योनि से जन्मित, 
माँ बाप द्वारा निर्मित, 
लीलाओं की लीला सहित, 
तुम सब कुछ हो यह बात कहाँ तक और कब तक गिनाते रहोगे, 
केवल इतना बतलाने की ज़रुरत थी कि 
तुम क्या नहीं हो ? 
हे सर्व गुण संपन्न पभु ! 
इस भारत भूमि को आज मानव मात्र गुणों वाला भगवान् चाहिए , 

भगवान् कृष्ण के अंतिम क्षण बहुत कम ऋषि और मुनि दर्शाते हैं. 
बहुत सी किंवदंतियाँ हैं, 
उनमे से एक यह भी है कि महा भारत के बाद दोनों परिवारों कौरवों और पांडुओं का समाप्त हो जाना या बिखर जाना उनका भाग्य बना. 
कुछ बचे हुए दोनों के वारिसों ने जब होश संभाला तो भगवान् की खबर ली 
कि हमारे पूर्वजों के विनाश के दोषी यही भगवान श्री है. 
भगवान् को सजा मिली कि बिना भोजन, वस्त्र के इनको बस्ती के बहर वीरान आम के बाग़ में छोड़ दिया जाए. 
मनादी कराई गई कि कोई उन के पास नहीं जाएगा, न कोई सहायता करेगा.
नंगे पाँव भगवान के पैरों में बबूल के कांटे चुभ गए थे, 
शरीर में ज़हरबाद हो गया था, 
भूखे प्यासे एडियाँ रगड़ते बे यार व् मददगार 18 दिनों तक जीवित रहे, 
फिर दम तोड़ दिया.
कुछ शाश्त्र कहते हैं कि यह उन पर किसी ऋषि (?) का श्राप था. 
आश्चर्य है हिन्दू मैथोलोजी पर 
कि गीता जिनका गुण गान करती है 
उन पर किसी फटीचर ऋषि का साप असर कर जाए ?

और क़ुरआन कहता है - - - 
''उन्हों ने देखा नहीं हम उनके पहले कितनी जमाअतों को हलाक कर चुके हैं, जिनको हमने ज़मीन पर ऐसी कूवत दी थी कि तुम को वह कूवत नहीं दिया और हम ने उन पर खूब बारिश बरसाईं हम ने उनके नीचे से नहरें जारी कीं फिर हमने उनको उनके गुनाहों के सबब हलाक कर डाला''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (6)

मुहम्मद का रचा अहमक अल्लाह अपने जाल में आने वाले कैदियों को धमकता है कि तुम अगर मेरे जाल में आ गए तो ठीक है वर्ना मेरे ज़ुल्म का नमूना पेश है, देख लो. उस वक्त के लोगों ने तो खैर खुल कर इन पागल पन की बातों का मजाक उडाया था मगर जिहाद के माले-गनीमत की हांडी में पकते पकते आज ये पक्का ईमान बन गया है. यही अलकायदा और तल्बानियों का ईमान है. ये अपनी मौत खुद मरेंगे मगर आम बे गुनाह मुसलमान अगर वक़्त से पहले न चेते तो गेहूं के साथ घुन की मिसाल बन जायगी.
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 19 September 2018

सूरह रूम -30- سورتہ الروم क़िस्त-1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
******
 सूरह रूम -30- سورتہ الروم 

क़िस्त-1 

इस सूरह का नाम रोम इस लिए पड़ा कि फ़ारस (ईरान) ने मुहम्मद काल में रोम को फ़तह कर लिया था, जिसके बारे में क़ुरआनी अल्लाह ने अपने क़ुरआन में पेशीन गोई की थी कि फ़ारस का यह ग़लबा तीन से नौ सालों के अंदर ख़त्म हो जाएगा और रोम फिरसे आज़ाद हो जाएगा, 
बस कि ऐसा हो भी गया. 
दर अस्ल बात ये थी कि रोमी ईसाई थे जो कि मुसलमानों के किताबी भाई हुए और फ़ारस वाले उस वक़्त काफ़िर थे, उस वक़्त कुफ़्फ़ार मक्का ने इस्लामियों को तअने दिए थे कि हम अहले कुफ्र, 
अहले किताब पर ग़ालिब हो गए. 
जब रोम फ़ारस के गलबे से नज़ात पा गए तो ये सूरह मुहम्मदी अल्लाह को सूझी.
इस वाक़िए के सिवा इस सूरह में और कुछ नहीं है. 
मुहम्मदी अल्लाह का शुक्र है कि इस सूरह में इब्राहीम, नूह, मूसा और ईसा अलैहिस-सलामान की दास्तानें नहीं हैं. 
सिर्फ़ क़यामत की धुरी पर सूरह घूम रही है. 
हर आलमी और फ़ितरी सचाइयों को क़ुरआन अपनी ईजाद बतलाता है, 
जिस पर मुसलमानों का ईमान है . 
एक साहब ने मुझे टटोलने के लिए पूछा कि आप नमाज़ क्यूँ नहीं पढ़ते? 
मैं ने जवाब दिया कि इंसानियत ही मेरा दीन है. 
कहने लगे कि इंसानियत सिखलाई किसने ? 
उनका मतलब था "मुहम्मद" 
उन पर तरस खाते हुए मैं ख़ामोश रहा, 
बात तो ज़ेहन में आई कि गिना दूं ईसा, गौतम, महावीर और सुक़रात बुक़रात के नाम मगर मसलहतन चुप रहा.
सूरह रोम में भी सूरह क़सस की तरह  मुहम्मद की झक नहीं है, इस सूरह का मुसन्निफ़ कोई और है और साहिबे क़लम है. वह उम्मी अल्लाह नहीं हो सकता.
इसने सलीक़े के साथ क़ुरआन  सार पेश किया है
मुलाहिज़ा हो - - - 
"अहले रोम क़रीब के मौक़े पर मग़लूब हो गए और वह अपने मग़लूब होने के बाद अनक़रीब तीन साल से नौ साल के अंदर ग़ालिब आ जौएँगे. पहले भी अख़्तियार अल्लाह का था और पीछे भी और उस वक़्त मुसलमान अल्लाह की इस इमदाद से ख़ुश होंगे."
सूरह रूम - 30 (आयत (2-4)

अब ये कोई तिलावत की चीज़ या बात है?
"ये लोग ज़मीं पर चलते फिरते नहीं, जिसमें देखते भालते कि जो लोग इनसे पहले हो गुज़रे हैं, उन पर अंजाम क्या हुवा है? वह उन से क़ूवत में भी बढ़े चढ़े हुए थे और उन्हों ने ज़मीन को बोया जोता था और जितना इन्हों ने इस को आबाद कर रखा है, उससे ज़्यादा उन्हों ने इसको आबाद कर रखा था और उनके पास भी उनके पैग़म्बर मुअज्ज़े लेकर आए थे.
सूरह रूम - 30 (आयत 9)

मुहम्मद माज़ी के लोगों की मौतें अज़ाबे इलाही का अंजाम कहते हैं. 
अगर उन पर अज़ाब न होता तो शायद वह ज़िदा होते. 
आज के लोगों को समझा रहे हैं कि उनकी बात मानो जो कि अल्लाह की मर्ज़ी है, 
तो अज़ाब में नहीं पड़ोगे. इन ओछी बातों से लोग गुम राह हुए, 
मगर आज के लोग इन बातों में सवाब ढूढ़ते हैं, 
तो ये अफ़सोस का मुक़ाम है 
"और जब रोज़े क़यामत क़ायम होगी, उस रोज़ मुजरिम लोग हैरत ज़दा हो जाएँगे और उनके शरीकों में कोई उनका सिफ़ारशी न होगा और ये लोग अपने शरीकों से मुंकिर हो जाएगे. और जिस रोज़ क़यामत क़ायम होगी उस रोज़ आदमी जुदा जुदा हो जाएँगे यानी जो लोग ईमान लाए थे और अच्छे काम किए थे, वह तो बाग़ में मसरूर होंगे और जिन्हों ने कुफ़्र किया था और हमारी आयातों को और आख़िरत के पेश आने को झुटलाया था, वह अजाब में होंगे."
सूरह रूम - 30 (आयत 12-16)
क़यामत तो आप के मरते ही आप के ख़ान दान पर आ गई थी, 
मुहम्मद साहब!
आप कि छोटी बेग़म आयशा और आप के दामाद अली में मशहूर जंग ए जमल हुई तो 
एक लाख ताजः ताजः मुसलमान हुए लोग मारे गए थे. 
आप के सभी ख़लीफ़ा और सहाबा ए किराम आपसी रंजिश में एक दूसरे का क़त्ल कर रहे थे. 
बात कर्बला तक पहुंची तो आपका ख़ान दान एक एक क़तरा पानी के लिए तड़प तड़प कर मरा. 
आपकी झूटी रिसालत के बाईस आपके ख़ान दान का बच्चा बच्चा भूक और प्यास के साथ मारा गया. 
काश कि इस अंजाम तक आप ज़िन्दा होते और सच्चाइयों के आगे तौबा कर लेते. 
और सदाक़त का पैर पकड़ कर रहम की भीक तलब करते. 
याद करते अपने जेहादी नअरे को कि ख़ैबर में क़त्ले आम करने से पहले जो आपने दिया था 
"ख़ैबर बरबाद हुवा! क्यूं कि हम जब किसी क़ौम पर नाज़िल होते हैं तो उसकी बर्बादी का सामान होता है."
क़यामत पूरे अरब और अजम में आप के झूट की सी फ़ैल चुकी है, 
आपसी झगड़ों से मुसलमानों पर आग ज़्यादः बरसी, 
ग़ैर मुस्लिम भी जंगी चपेट में आए मगर ख़सारे में रहे वह 
जिन्हों ने आप की ज़हरीली पैग़म्बरी को तस्लीम किया. 
आपके बोए हुए पैग़म्बरी के ज़हर बीज को दुन्या की २०% आबादी काट रही है.
मुसलमानों को आप के इस्लाम ने पस्मान्दः क़ौम बना दिया है. 
किसी क़ौम की आलमी ज़िल्लत से बढ़ कर, 
दूसरी क़यामत और ज़िल्लत क्या होगी. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 18 September 2018

Hindu Dharm Darshan 228


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (33)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>तीन गुणों (सतो रजो तमो) के द्वारा मोह ग्रस्त यह सारा संसार 
मुझ गुणातीत तथा अविनाशी को नहीं जानता.
**प्रकृति के तीन गुणों वाली इस मेरी दैविक शक्ति को पार कर पाना कठिन है.
किन्तु जो मेरे शरण गत हो जाते हैं, वह सरलता से इसे पार कर जाते हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -7  - श्लोक -13+14  

>हे महाराज आप बार बार कह चुके हैं कि आप सर्व शक्ति मान और गुण वान होते हैं, फिर यह क्या कि मोह ग्रस्त संसार को ख़ुफ़िया तंत्र से अवगत न करा सके. अगर आप इतना कर लिए होते तो संसार में कोई आपस ना आशना न होता.
**कठिन शब्द आपको शोभा नहीं देता. 
बार बार आप कहते हैं कि आपके लिए कुछ कठिन नहीं, 
विरोधयों के दिलों में प्रेम की तरह घुस जाते.

और क़ुरआन कहता है - - - 
>" अल्लाह ताला जब किसी काम को करना चाहता है 
तो इस काम के निस्बत इतना कह देता है कि 
कुन यानी हो जा 
और वह फाया कून याने हो जाता है " 
(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत 117) 

अल्लाह तअला बस इतना ही नहीं कर पता कि सारे संसार को मुसलमान बना दे. बेचारे सैकड़ों साल से लड़ कट रहे है.
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 17 September 2018

Soorah Anquboot 29 Q 3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*******
सूरह अनकबूत -29 
क़िस्त-3   

मुसलमानों ! 
तुम्हारे रसूल फ़रमाते हैं - - -

"दौरान नमाज़ जिस रियाह (पाद) में आवाज़ कान तक आ जाए या बदबू नाक में पहुँच जाए तो वजू टूट जाता है."
वजू ? 
अर्थात पानी से सिर्फ़ मुँह, हाथ और पैर को धो कर अपने पूरे बदन को शुद्ध मानना, वजू कहलाता है, जोकि पाद निष्काषित होने पर टूट जाता है.
यानी कान या नाक तक पाद की पहुँच न हो तो वजू बना रहता है. 
कभी कभी नमाज़ी दोपहर को वजू बनाते हैं तो रात तक वह बना रहता है. 
इस दौरान पाद निष्काषित होने से वह बचते रहते हैं ताकि वजू बना रहे. 
पाद निष्कासन एक प्राकृतिक परिक्रिया है जिसे रोके रहना पेट को विकार अर्पित करना है
कहते हैं कि - - - 
"इस्तेंजा करें तो ताक़ बार यानी ३,५, ७, ९ - - - 
अर्थात जुफ्त बार४,६,८ वग़ैरा न हो"
इस्तेंजा? 
पेशाब करने के बाद लिंग मुख द्वार को पानी न मिले तो मिटटी के ढेले से सोखाना. ताकि वजू बना रहे. कपड़े को पेशाब नापाक न कर सके .
ऐसी मूर्खता पूर्ण बातों में आम मुसलमान मुब्तिला रहता है, 

"और आप इस किताब से पहले न कोई किताब पढ़े हुए थे और न कोई किताब अपने हाथों से लिख सकते थे कि ऐसी हालत में ये हक़ नाशिनास कुछ शुबहा निकालते, बल्कि ये किताब ख़ुद बहुत सी वाजः दलीलें हैं. उन लोगों के ज़ेहन में ये इल्म अता हुआ है कि हमारी आयतों से बस ज़िद्दी लोग इंकार किए जाते हैं और ये लोग यूँ कहते हैं कि इन पर रब कि तरफ़ से निशानियाँ क्यूं नहीं नाज़िल हुईं. आप कह दीजिए कि वह निशानियाँ तो अल्लाह के क़ब्ज़े में हैं और मैं तो साफ़ साफ़ एक डराने वाला हूँ"
सूरह अनकबूत -29 आयत(48-50)

इस बारआप थोड़ा सा सच बोले वह भी झूट के साथ, 
जिसे ज़िद्दी नहीं साहबे इल्म ओ फ़िक्र नकारते रहे. 
दो निशानियाँ आप दिखला चुके हैं 
१- शक्कुल क़मर और 
२- मेराज, 
जिन्हें आप भूल रहे हैं कि 
ख़लीफ़ा उमर ने आप को वह फटकार लगाई कि निशानियाँ और मुअजज़े आप को भूलना ही पड़ा, 
मगर आपके चमचों ने उसको क़ुरआन में शामिल ही कर दिया. 
आप के बाद आपके मुसाहिबों ने तो सैकड़ों निशानियाँ आपके लिए गढ़ लिए .
''निशानियाँ तो अल्लाह के क़ब्ज़े में हैं'' 
और अल्लाह आप के क़ब्ज़े में था.

''क्या इन लोगों को ये बात काफ़ी नहीं क़ि हमने आप पर ये किताब नाज़िल फ़रमाई जो उनको सुनाई जाती रहती है ईमान ले आने वाले लोगों को बड़ी रहमत और नसीहत है. आप ये कह दीजिए अल्लाह मेरे और तुम्हारे दर्मियान गवाही बस है. इसको सब चीजों की ख़बर है जो आसमानों में है और जो ज़मीन में है. जो लोग झूटी बातों पर यक़ीन रखते हैं और अल्लाह के मुंकिर हैं तो वह लोग ज़ियाँ कर रहे हैं. और ये लोग आप से अज़ाब का तक़ाज़ा करते हैं. और अगर मीयाद मुअय्यन न होती तो इन पर अज़ाब आ चुका होता. वह अज़ाब इनपर अचानक आ पहुंचेगा. और इनको ख़बर न होगी. ये लोग आप से अज़ाब का तक़ाज़ा करते हैं और इसमें शक नहीं कि जहन्नम इन काफ़िरों को घेर लेगा. जिस दिन कि इन पर अज़ाब उनके ऊपर से और उनके नीचे से घेर लेगा. और अल्लाह तअला फ़रमाएगा कि जो कुछ करते रहे हो अब चक्खो.
ऐ मेरे ईमान दार बन्दों! 
मेरी ज़मीन फ़िराख़ है सो ख़ालिस मेरी इबादत करो. हर शख़्स को मौत का मज़ा चखना है. फिर तुम सब को हमारे पास आना है''.और बहुत से जानवर ऐसे हैं जो अपनी गिज़ा उठा कर नहीं रखते, अल्लाह ही उनको रोज़ी भेजता है और तुमको भी. और वह सब कुछ सुनता है. - - बेशक अल्लाह सब चीज़ के हाल से वाक़िफ़ है. आप उनसे दरयाफ़त करिए वह कौन है जिसने आसमान से पानी बरसाया? 
तो वह लोग यही कहेंगे की अल्लाह है. 
आप कहिए कि अलहम्दो लिल्लाह, बल्कि उन में अकसर समझते भी नहीं. और यह दुनयावी ज़िन्दगी बजुज़ लह्व-लआब के और कुछ भी नहीं और असल ज़िन्दगी आलमे आख़रत है. अगर इनको इसका इल्म होता तो ऐसा न करते. फिर जब ये लोग कश्ती पर सवार होते हैं तो ख़ालिस एतक़ाद करके अल्लाह को ही पुकारते हैं, फिर जब नज़ात देकर खुश्की की तरफ़ ले आता है तो वह फ़ौरन ही शिर्क करने लगते हैं.
सूरह अनकबूत -29 आयत(46-69)

मुसलमानों! 
अगर आज कोई शनासा आपके पास आए और कहे कि 
"अल्लाह ने मुझे अपना रसूल चुन लिया है" 
और इस क़िस्म की बातें करने लगे तो आप का रद्दे-अमल क्या होगा? 
जो भी हो मगर इतनी सी बात पर आप अपना आपा इतना नहीं खो देंगे कि उसे क़त्ल ही कर दें. 
फिर धीरे धीरे वह अपने दन्द फन्द से अपनी एक टोली बना ले जैसा कि आज आम तौर पर हो रहा है. 
उस वक़्त आप उसकी मुख़ालिफ़त करेंगे और उसके बारे में कोई बात सुनना पसंद नहीं करेंगे. 
उसकी ताक़त बढ़ती जाय और उसके चेले गुंडा गर्दी पर आमादः हो जाएँ तब आप क्या करेंगे ? 
पुलिस थाने या अदालत जाएँगे, 
मगर उस वक़्त ये सब नहीं थे, 
उस वक़्त जिसकी लाठी उसकी भैंस का ज़माना था.
शनासा का गिरोह अपनी ताक़त समाज में बढा ले, 
यहाँ तक कि जंग पर आमादः हो जाए, 
आप लड़ न पाएं और मजबूर होकर बे दिली से उसको तस्लीम कर लें. 
वह ग़ालिब होकर आप के बच्चों को अपनी तअलीम देने लगे, 
और आप चल बसें, 
आपके बच्चे भी न नकुर के साथ उसे मानने लगें मगर उनके बच्चे उस के बाद उस अल्लाह के झूठे रसूल को पूरी तरह  से सच मानने लगेंगे. 
इस अमल में एक सदी की ज़रुरत होगी. 
आप तो चौदह सदी पार कर चुके हैं. 
गुंडा गर्दी आपका ईमान बन चुका है. 
इस तरह  दुन्या में इस्लाम और क़ुरआन मुसल्लत हुवा है.
क़ुरआन को अपनी समझ से पढ़ कर इस्लाम का नुसख़ा ख़ुद बख़ुद आप की समझ में आ सकता है. 
क़ुरआन  ख़ुद इस्लाम की नंगी तस्वीर अपने आप में छुपाए हुए है, 
जिसकी पर्दा दारी ये मूज़ी ओलिमा किए हुए हैं.
   
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 15 September 2018

Hindu Dharm Darshan 227


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (31)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>सारे प्राणियों का उद्गम इन दोनों शक्तियों में है . 
इस जगत में जो भी भौतिक तथा आध्यात्मिक है, 
उनकी उत्पत्ति तथा प्रलय मुझे ही जानो.
**हे धनञ्जय ! 
मुझ से श्रेष्ट कोई शक्ति नहीं. 
जिस प्रकार मोती धागे में गुंधे रहते हैं, 
उसी प्रकार सब कुछ मुझ पर ही आश्रित है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -7  - श्लोक -6-7 

>उफ़ ! 
हिन्दू समाज के लिए ब्रह्माण्ड से बड़ा झूट ? 
कोई शख्स खुद को इस स्वयम्भुवता के साथ पेश कर सकता है ? 
तमाम भगवानों, खुदाओं और Gods इस वासुदेव के सपूत से कोसों दूर रह गए. कृष्ण जी जो भी हों, जैसे रहे हों, उनसे मेरा कोई संकेत नहीं. 
मेरा सरोकार है तो गीता के रचैता से 
कि अतिश्योक्ति की भी कोई सीमा होती है. 
चलिए माना कि शायरों और कवियों की कोई सीमा नहीं होती 
मगर अदालतों के सामने जाकर अपना सर पीटूं ? 
कि ऐसी काव्य संग्रह पर हाथ रखवा कर तू मुजरिमों से हलफ़ उठवाती है ? 
ऐसा लगता है जिस किसी ने गीता या क़ुरान को कभी कुछ समाज लिया होगा, वह इनकी झूटी कसमें खाने में कभी देर नहीं करेगा. 
क्या गीता और क़ुरान वजह है कि हमारी न्याय व्यवस्था दुन्या में भ्रष्टतम है. भ्रष्ट कौमों में हम नं 1 हैं. 
हमारे कानून छूट देते है कि सौ की आबादी वाले देश की आर्थिक अवस्था १०० रुपए हैं , जो न्याय का चक्कर लगते हुए ९० रुपए दस लोगों के पास पहुँच जाए और 10 रुपए ९० के बीच बचें ? जिसका हक एक रुपया होता हो, उसके पास एक पैसा बचे ? वह अगर इस व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाए तो उसे देश द्रोही कहा जाए ? नकसली कहकर गोली मार दी जाए ?

और क़ुरआन कहता है - - - 
>"यह सब अहकाम मज़्कूरह खुदा वंदी जाब्ते हैं 
और जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा 
अल्लाह उसको ऐसी बहिश्तों में दाखिल करेगा 
जिसके नीचे नहरें जारी होंगी. हमेशा हमेशा उसमें रहेंगे, 
यह बड़ी कामयाबी है."
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (८-१३)

यह आयत कुरान में बार बार दोहराई गई है. अरब की भूखी प्यासी सर ज़मीन के किए पानी की नहरें वह भी मकानों के बीचे पुर कशिश हो सकती हैं मगर बाकी दुन्या के लिए यह जन्नत जहन्नम जैसी हो सकती है. 
मुहम्मद अल्लाह के पैग़मबर होने का दावा करते हैं और अल्लाह के बन्दों को झूटी लालच देते हैं. अल्लाह के बन्दे इस इक्कीसवीं सदी में इस पर भरोसा करते हैं. 
अल्लाह के कानूनी जाब्ते अलग ही हैं कि उसका कोई कानून ही नहीं है.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 14 September 2018

Soorah Anquboot 29 Q 1 Q 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं
*****
सूरह अनकबूत -29 
क़िस्त-2 

मुलाहिज़ा हो मुहम्मद की अल्लम ग़ल्लम  - - -  

अलिफ़-लाम-मीम"  (अल्लम)
सूरह अनकबूत -29 आयत(1)

ये लफ़्ज़ मुह्मिल है जिसके कोई मअनी नहीं होते. ऐसे हरफ़ों को क़ुरआनी इस्तेलाह में हुरूफ़- मुक़त्तेआत कहते है. इसका मतलब अल्लाह ही जानता है. ऐसे लफ़्ज़ मुह्मिल को क़ुरआन की कई सूरह में मुहम्मद पहले लाते हैं. 
क़ुरआन की आयातों को सुनकर शायद किसी बेज़ार ने कहा होगा, 
"क्या अल्लम-ग़ल्लम बकते हो?" 
तब से ही यह अल्लम-ग़ल्लम अरबी, फ़ारसी और उर्दू में ये मुहविरा क़ायम हुआ.

"क्या इन लोगों ने ये ख़याल कर रक्खा है कि वह इतना कहने पर छूट जाएँगे कि हम ईमान ले आए और उनको आज़माया न जायगा और हम तो उन लोगों को भी आज़मा चुके हैं जो इसके पहले हो गुज़रे हैं, सो अल्लाह इनको जान कर रहेगा जो सच्चे थे और झूटों को भी जान कर रहेगा."
सूरह अनकबूत -29 आयत (2-3)

हर अमल का गवाह अल्लाह कहता है कि वह ईमान लाने वालों को जान कर रहेगा? 
मुहम्मद परदे के पीछे ख़ुद अल्लाह बने हुए हैं जो ऐसी तक़रार में अल्लाह को घसीटे हैं. 
वरना आलिमुल ग़ैब अल्लाह को ऐसी लचर बात कहने की क्या ज़रुरत है? 
अल्लाह को क्या मजबूरी है कि वह तो दिलों की बात जानता है. 
इस्लाम क़ुबूल करने वाले नव मुस्लिम ख़ुद आज़माइश के निशाने पर हैं. 
मुहम्मद इंसानी ज़ेहनों पर मुकम्मल अख़्तियार चाहते हैं कि उनको तस्लीम इस तरह  किया जाए कि इनके आगे माँ, बहन, भाई, बाप कोई कुछ नहीं. 
इनसे साहब सलाम भी इनको गवारा नहीं.

"हम ने इंसान को अपने माँ बाप के साथ नेक सुलूक करने का हुक्म दिया है और अगर वह तुझ पर इस बात का ज़ोर डालें कि तू ऐसी चीज़ को मेरा शरीक ठहरा जिसकी कोई दलील तेरे पास नहीं है तो उनका कहना न मानना. तुझको मेरे ही पास लौट कर आना है. सो मैं तुमको तुम्हारे सब काम बतला दूंगा."
सूरह अनकबूत -२९ आयत(८)

मुहम्मदी अल्लाह की ये गुमराही के एहकाम औलादों के लिए है तो दूसरी तरफ़ माँ बाप को धौंस देता है कि अगर उनकी औलादें इस्लाम के ख़िलाफ़ गईं तो जहन्नम की सज़ा उनके लिए ( माँ बाप के लिए ) रक्खी हुई है. 
ये है मुसलमानों की चौ तरफ़ा घेरा बंदी.

"अल्लाह ईमान वालों को जान कर ही रहेगा और मुनाफिकों भी."
सूरह अनकबूत -29 आयत(11)

मुहम्मद अपने अल्लाह को भी अपनी ही तरह  उम्मी गढ़े हुए हैं, 
कितनी मुतज़ाद बात है क़ुदरत के ख़िलाफ़ कि वह सच्चाई को ढूंढ रही है.

"कुफ़्फ़ार मुसलमानों से कहते हैं कि हमारी राह पर चलो, और तुम्हारे गुनाह हमारे जिम्मे, हालाँकि ये लोग इनके गुनाहों को ज़रा भी नहीं ले सकते, ये बिलकुल झूट बक रहे हैं और ये लोग अपना गुनाह अपने ऊपर लादे हुए होंगे."
सूरह अनकबूत -29 आयत(12)  

ये आयत उस वाक़िए का रद्दे अमल है कि कोई शख़्स  मुसलमान हुवा था, उसे दूसरे ने वापस पुराने दीन पर लाने में कामयाब हुवा, जब उसने इस बात कि तहरीरी शक्ल में लिख कर दिया कि अगर गुनाह हुवा तो उसके सर. मज़े की बात ये कि ज़मानत लेने वाले ने उससे कुछ रक़म भी ऐंठी. 
ऐसे गाऊदी हुवा करते थे सहाबए किराम .


"जिन लोगों ने अल्लाह के सिवा दूसरे को अपना अवलिया बनाया, उस की मिसाल मकड़ी जैसी है कि वह भी एक तरह का घर बनती है और कुछ शक नहीं कि तमाम घरों से कमज़ोर और बोदा मकड़ी का घर है."
सूरह अनकबूत -29 आयत(41)

"अल्लाह ने आसमानों और ज़मीन को बड़ी मुनासिब तौर पर बनाया, ईमान वालों के लिए इसमें बड़ी दलील है."
सूरह अनकबूत -29 आयत(44)

मकड़ी का बोदा घर हो, 
ज़मीन और आसमानों की तकमील हो, 
पानी को चीरती हुई कश्तियाँ हों, 
ऊँट का बेढंगा डील डौल हो, 
या गधे की करीह आवाज़, 
जिनको कि आप क़ुरआन  में बघारते हैं, 
इन सब का तअल्लुक़ ईमान से क्या है? 
जिसकी शर्त पर आपकी पयंबरी क़ायम होती है. 
आपको तो इतना इल्म भी नहीं कि आसमान (कायनात) सिर्फ़ एक है 
और इस कायनात में ज़मीनें अरबों है 
जिनको हमेशा आप उल्टा फ़रमाते हैं . . 
"आसमानों (जमा) ज़मीन (वाहिद)"

"जो किताब आप पर वह्यि की गई है उसे आप पढ़ा कीजिए और नमाज़ की पाबन्दी रखिए. बेशक नमाज़ बेहयाई और ना शाइस्ता कामों से रोक टोक करती हैं और अल्लाह की याद बहुत बड़ी चीज़ है और अल्लाह तुम्हारे सब कामों को जानता है."
सूरह अनकबूत -29 आयत(45)

ऐ अल्लाह! मुहम्मद नाख़्वान्दा हैं, अनपढ़ हैं, कोई किताब कैसे पढ़ सकते हैं? 
उन्हें थोड़ी सी अक़्ल  दे कि सोच समझ कर बोला करें.
***

गुनाह और सवाब ?
आम मुसलमान उम्र भर इन दो भूतिए एहसास में डूबे रहते है, 
जब कि इंसान पर भूत इस बात का होना चाहिए कि उसका हिस और ज़मीर उस पर सवार रहे .

.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान