Wednesday 31 October 2018

सूरह साफ़्फ़ात-37 - سورتہ الصافات Q 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
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सूरह साफ़्फ़ात-37 - سورتہ الصافات
क़िस्त -1


मुसलमानों को क़समें ख़ाने  की कुछ ज़्यादः ही आदत है,

 जो कि इसे विरासत में इस्लाम से मिली है. 
मुहम्मदी अल्लाह भी क़स्में ख़ाने  में पेश पेश है और इसकी क़समें अजीबो ग़रीब है. उसके बन्दे उसकी क़सम खाते हैं, तो अल्लाह जवाब में इनकी क़समें खाता है, मजबूर है कि उससे बड़ा कोई है नहीं कि जिसकी क़समें खा कर वह अपने बन्दों को यक़ीन दिला सके, 
उसके कोई माँ बाप नहीं कि जिनको क़ुरबान कर सके. 
इस लिए वह अपने मख़लूक़ और तख़लीक़ की क़समें खाता है. 
क़समें झूट के तराजू में पासांग (पसंघा) का काम करती हैं वर्ना 
ना का मतलब ना और हाँ का मतलब हाँ ही इंसान की क़समें होनी चाहिए. 
अल्लाह हर चीज़ का ख़ालिक़ है, सब चीज़ें उसकी तख़लीक़ है, 
जैसे कुम्हार की तख़लीक़ माटी के बने हांड़ी,कूंडे वग़ैरह हैं, 
अब ऐसे में कोई कुम्हार अगर अपनी हांड़ी और कूंडे की क़समें खाए तो कैसा लगेगा? 
और वह टूट जाएँ तो मुज़ायक़ा नहीं, कौन  इसकी सज़ा देने वाला है.
 क़ुरआन माटी की हांड़ी से ज़्यादः है भी कुछ नहीं.

 देखिए कि इस सूरह में मुहम्मद अल्लाह का रूप धारण करके क्या कहते हैं- - - 


"क़सम है उन फ़रिश्तों की जो सफ़ बांधे खड़े रहते हैं. फिर उन फ़रितों की जो बंदिश करने वाले हैं. फिर उन फ़रिश्तों की जो ज़िक्र की तिलावत करने वाले हैं. कि तुम्हारा माबूद (साध्य) एक है. वह परवर दिगार है, आसमानों और ज़मीन का. और जो कुछ उसके दरमियान है.

और परवर दिगार का है, तुलूअ करने वाले मवाक़े का,
हमीं ने रौनक दी है उस तरफ़ वाले आसमान को, एक अजीब आराइश के साथ और हिफ़ाज़त भी की है, हर शरीर शैतान से.
 और शयातीन आलमे-बाला की तरफ़ कान भी नहीं लगा सकते और हर तरफ़ मार धक्याय जाते हैं और उनके लिए दायमी अज़ाब होगा.
मगर जो शैतान कुछ ख़बर ले ही भागते हैं तो एक दहक़ता हुवा शोला उन्हें उनके पीछे लग लेता है."
सूरह साफ़्फ़ात -37 आयत (1-10)


क़ुरआन में क़स्मों का सिलसिला शुरू हो गया है जो हैरतनाकी तक पहुँचेगा. 

अल्लाह उन फ़रिश्तों की क़समें खा रहा है जो नमाज़ियों की तरह सफ़ बांधे खड़े रहते हैं. या फिर उन फ़रिश्तों की क़समें जो बंदिश करने में लगे हैं. मुहम्मदी अल्लाह ये नहीं बतलाता कि किन उमूर की बंदिश करते हैं, जब कि अल्लाह ख़ुद हर काम को इशारों पर करने की तनहा कूवत रखता है.
अल्लाह उन मुकामों की क़सम भी खाता है जहाँ से उसके मुताबिक़ सूरज, चाँद सितारे निकलते हैं.
इन मुकामों को रौनक देने के एलान के साथ साथ, वह इनको महफ़ूज़ रखने का दावा भी करता है. शैतान को ही अपने बाद क़ुदरत देने वाला अल्लाह इस से और इसके परिवार वालों से अपनी तख़लीक़ें बचाता भी रहता है.
ये आयतें आसमान पर तारे टूटते रहने के मंज़र को देख कर मुहम्मद ने गढ़ी है. 
इतने हिफ़ाज़ती इंतेज़ाम होने के बाद भी शैतान अल्लाह की प्लानिग की ख़बरें उड़ा ही लेता है जिसके पीछे एक दहक़ता हुवा शोला लग जाता है फिर भी शैतान बच निकलने में कामयाब हो जाता है, आगे पारों में है कि वह ख़बरें शैतान जादू गरों को दे देता है.
     
"तो आप उन लोगों से पूछिए कि वह लोग बनावट में ज़्यादः सख़्त हैं या हमारी पैदा की हुई ये चीजें? हमने इन लोगों को चिपकती हुई मिटटी से पैदा किया है बल्कि आप तअज्जुब करते हैं और ये लोग तमसख़ुर करते हैं. और वह लोग ऐसे थे कि जब उन से कहा जाता था कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद ए बर हक़ नहीं, तो तकब्बुर किया करते थे और कहा करते थे कि क्या हम अपने मअबूदों को एक शायरे दीवाना की वजेह से छोड़ दें.
जो लोग ख़ास किए हुए बन्दे हैं उनके लिए गिज़ाएँ और मेवे हैं और वह लोग बड़ी इज्ज़त से आराम के साथ बागों में तख़्तों पर आमने सामने बैठे होंगे. इनके पास ऐसा जामे शराब लाया जायगा जो बहती हुई शराब से भरा जायगा . सफेद होगी, पीने वालों को लज़ीज़ होगी. न इसमें दर्दे सर न अक़लों में फ़ितूर आयगा. और इनके पास नीची निगाह वाली बड़ी बड़ी आँखों वाली होंगी, गोया वह बैज़े हो जो छुपे हुए रखे हों."
सूरह साफ़्फ़ात -37 आयत (11-49)


अल्लाह बन्दों को चैलेज करता है कि वह उनसे बड़ा कारीगर है. 

बन्दे जवाब दें तो दे सकते है कि तूने ज़र्रात बनाए, हमने उनसे आइटम बम बनाया. जिससे सारी दुन्या को तवानाई मिलती है, 
तू क्या ऐसा कर सकता है? 
तूने दरख़्त बनाया हमने उनसे फ़र्नीचर बनाया, क्या तू ऐसा कर सकता है? 
हम इंसान आज हवा में उड़ रहे हैं जिसको ज़माना देखता है, 
तू, तेरे फ़रिश्ते, तेरे पैग़ामबर  कभी उड़ते हुए देखे गए हैं?
मेरी लड़ाई अल्लाह से नहीं है, वह है तो हुवा करे, जब कभी सामने आएगा देख लेंगे, मेरी लड़ाई उन लोगों से है जो अल्लाह के नाम का धंधा करते हैं.
एक और नया शोशा कि 
"हमने  इन लोगों को चिपकती हुई मिटटी से पैदा किया है" 
ऐसी बातों पर कौन न हँसेगा?
मैं बार बार कहता आया हूँ कि मुहम्मद टूटी फूटी शायरी करते थे जिसका सुबूत ये  क़ुरआन है, 
इसे बज़ोर तलवार अल्लाह का कलाम मनवा लिया गया.
जन्नती शराबी होंगे देखिए कि शायरे दीवाना को न शराब की तारीफ़ आती है, न पीने पिलाने का सलीक़ा, बहती हुई नदियों से भरी जाएगी, दूध की तरह सफ़ेद होगी.
अय्याशी के लिए बड़ी बड़ी आँखों वाली मगर निगाह नीची किए होंगी? 
तब क्या लुत्फ़ आएगा. (हूरें) होंगी जैसे चूजों की तरह जो अंडे से बहार निकलते हैं.
कई परिदों के चूजे तो घिनावने होते है.
अक़्ल  का बौड़म अल्लाह का रसूल.


कलामे दीगराँ - - -

"नफ़्स परस्त शख़्स के अन्दर बियाबान में भी ख़ुराफ़ात पैदा हो जाएँगी. 
घर में रहते हुए नफ़्स पर क़ाबू रखना एक जेहाद है. 
जो लोग भले काम करते हैं और अपने नफ़्स पर क़ाबू रखते हैं 
उनके लिए घर ही इबादत गाह है."
'पदम् श्री खंड'
(हिन्दू धर्म) 
इसे कहते हैं कलामे पाक
***

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 30 October 2018

Hindu Dharm Darshan


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (46)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>मेरे शुभ भक्तों के विचार मुझ में वास करते हैं. 
उनके जीवन मेरी सेवा में अर्पित रहते हैं 
और वह एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते हैं 
तथा मेरे विषय में बातें करते हुए परम संतोष 
तथा आनंद का अनुभव करते हैं.
** जो प्रेम पूर्वक मेरी सेवा करने में परंपर लगे रहते हैं, 
उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूँ. 
जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -  10  श्लोक - 9 +10 

>गीता के भगवान् कैसी सेवा चाहते हैं ? 
भक्त गण उनकी चम्पी  किया करें ? 
हाथ पाँव दबाते रहा करें ? 
मगर वह मिलेंगे कहाँ ? 
वह भी तो हमारी तरह ही क्षण भंगुर थे. 
मगर हाँ ! वह सदा जीवित रहते है, 
इन धर्म के अड्डों पर. 
इन अड्डों की सेवा रोकड़ा या सोने चाँदी के आभूषण भेंट देकर करें. इनके आश्रम में अपने पुत्र और पुत्रियाँ भी इनके सेवा में दे सकते हैं.  
यह इस दावे के साथ उनका शोषण करते हैं कि 
"कृष्ण भी गोपियों से रास लीला रचाते थे." 
धूर्त बाबा राम रहीम की चर्चित तस्वीरें सामने आ चुकी हैं. 
अफ़सोस कि हिदू समाज कितना संज्ञा शून्य है.

और क़ुरआन कहता है - - - 
>" आप फरमा दीजिए क्या मैं तुम को ऐसी चीज़ बतला दूँ जो बेहतर हों उन चीजों से, ऐसे लोगों के लिए जो डरते हैं, उनके मालिक के पास ऐसे ऐसे बाग हैं जिन के नीचे नहरें बह रही हैं, हमेशा हमेशा के लिए रहेंगे, और ऐसी बीवियां हैं जो साफ सुथरी की हुई हैं और खुश नूदी है अल्लाह की तरफ से बन्दों को."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (15)

देखिए कि इस क़ौम की अक़्ल को दीमक खा गई। अल्लाह रब्बे कायनात बंदे मुहम्मद को आप जनाब कर के बात कर रहा है, इस क़ौम के कानों पर जूँ तक नहीं रेगती. अल्लाह की पहेली है बूझें? अगर नहीं बूझ पाएँ तो किसी मुल्ला की दिली आरजू पूछें कि वह नमाजें क्यूँ पढता है? ये साफ सुथरी की हुई बीवियां कैसी होंगी, ये पता नहीं, अल्लाह जाने, जिन्से लतीफ़ होगा भी या नहीं? औरतों के लिए कोई जन्नती इनाम नहीं फिर भी यह नक़िसुल अक्ल कुछ ज़्यादह ही सूम सलात वालियाँ होती हैं। अल्लाह की बातों में कहीं कोई दम दरूद है? कोई निदा, कोई इल्हाम जैसी बात है? दीन के कलम कारों ने अपनी कला करी से इस रेत के महेल को सजा रक्खा है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 29 October 2018

सूरह यासीन-36 -سورتہ یاسین (क़िस्त - 2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह यासीन-36 -سورتہ یاسین
(क़िस्त - 2)

"हम ने एक कश्ती पर लोगों को सवार किया और वह पानी को चीरती हुई रवाँ हो गई. हम चाहते तो इसे पानी में ग़र्क़ कर देते और वह सब के सब मर जाते, मगर जब वह मंज़िल पर बा हिफाज़त आ जाते हैं तो तब भी हमारी क़ुदरत के क़ायल नहीं होते."
सूरह यासीन -36 आयत (43)

अल्लाह के मुंह से ऐसी घटिया बातें ? 
यह तो किसी कम ज़र्फ़ इंसान की ही लगती हैं.
ये इस्लाम की कागज़ की कश्ती है जिस पर मुसलमान सवार हुए हैं, 
हर वक़्त ख़ौफ़-ख़ुदा में मुब्तिला रहते है.

"और जब कहा जाता है कि अल्लाह ने तुम को जो कुछ दिया है उसमें से कुछ ख़र्च क्यूं नहीं करते, तो कुफ़्फ़ार मुसलमानों से कहते हैं कि क्या हम ऐसे लोगों को खाने  को दें जिनको कि अगर अल्लाह चाहे तो बेहतर खाना दे दे."
सूरह यासीन -36 आयत (47)

यह आयत गवाह है कि इस्लाम का शुरूआती दौर ख़ैरात खो़रों का हुवा करता था.
कुफ़्फ़ार का बेहतर जवाब था उस वक़्त के उभरते इस्लामी गुंडों को.
आज भी ये मज़हबी ऊधम के लिए चंदा उन्हीं से वसूलते हैं 
जिनकी रातें ग़ारत करते है.

"ये लोग कहते हैं कि ये वादा कब पूरा होगा (अल्लाह के क़यामत का वादा) अगर तुम सच्चे हो? ये लोग बस एक आवाज़ सख़्त   के मुन्तज़िर हैं, जो इन को आलेगी और ये सब बाहम लड़ते रहे होंगे. सो न वासीअत करने की फ़ुर्सत होगी न अपने घर वालों के पास लौट कर वापस जा सकेगे. और तब सूर फूँका जायगा और व सब क़ब्रों से निकल कर अपने रब की तरफ़ जल्दी जल्दी चलने लगेंगे. कहेगे कि हाय हमारी कम बख्ती! हम को हमारी क़ब्रों से किसी ने उठाया, ये वही है जिसका रहमान ने वादा किया था और पैग़मबर सच कहते थे."
सूरह यासीन -36 आयत (49-52)

कई बार  क़ुरआन में ये बात आती है लोग पूछते हैं कि 
"ये वादा कब पूरा होगा".
इसकी सच्चाई ये है कि लोग उस वक़्त मुहम्मद की चिढ़ बनाए हुए थे 
मियाँ  'क़यामत कब आएगी? 
वो वादा कब पूरा होगा?- - - "
ये सुनने के लिए कि देखें, इस बार दीवाने ने क़यामत का ख़ाका क्या तैयार किया है.
अफ़सोस कि पागल दीवाने की वह बड़ बड़ आज मुसलमानों की क़िस्मत बन चुकी है.

"फिर उस दिन किसी पर ज़रा ज़ुल्म न होगा, तुमको बस उन्हीं कामों का बदला मिलेगा जो तुमने किए थे. अहले जन्नत बे शक उस दिन अपने मशग़लों में ख़ुश दिल होंगे. वह और उनकी बीवियाँ सायों में, मसह्रियों पर तकिया लगाए बैठे होंगे. इनके लिए वहाँ पर मेवे होंगे और जो कुछ माँगेंगे मिलेगा. और इनको परवर दिगार मेहरबान की तरफ़ से सलाम फ़रमाएगा."
सूरह यासीन -36 आयत (53-58)

लअनत भेजिए उस जन्नत पर जिसमें आदमी हाथों पर हाथ धरे मसेह्रियों पर बैठा रहे. 
उस तवील ज़िन्दगी को जीने का न कोई मक़सद हो न उसकी मंज़िल.

"सो क्या तुम नहीं समझते ये जहन्नम है जिसका तुमसे वादा किया जाया करता था, आज अपने कुफ़्र के बदले इसमें दाख़िल हो जाओ. आज हम उनके मुँह पर मोहर लगा देंगे, आज उनके हाथ हम से कलाम करेंगे और उनके पाँव शहादत देंगे, जो कुछ लोग करते थे और अगर हम चाहते तो उनकी आँखों को हम मालिया मेट कर देते तो वह रस्ते की तरफ़ दौड़ते फिरते सो उनको कहाँ नज़र आता."
सूरह यासीन -36 आयत (53-58)

हाथ और पाँव कलाम करेंगे और गवाही देंगे, 
इसकी ज़रुरत क्या होगी जब अल्लाह ने मुँह दे रक्खा है? 
अल्लाह अगर चाहता तो " उनकी आँखों को हम मालिया मेट कर देते तो वह रस्ते की तरफ़ दौड़ते फिरते सो उनको कहाँ नज़र आता." 
सजा यहीं तक होती तो बेहतर होता.

"और हम जिसको उम्र ज़्यादः दे देते हैं उसको तबई हालत में उल्टा कर देते हैं, सो क्या लोग नहीं समझते."
सूरह यासीन -36 आयत (68)

मुहम्मद आयतें चुकरने से पहले अगर सोच लिया करते तो क़ुरआन बहुत मुख़्तसर हो जाता और उनकी उम्मत के लिए बात बात पर रुसवा न होना पड़ता.
कह रहे हैं कि उम्र दराज़ी अल्लाह अज़ाबियों को देता है जब कि लोग उससे उम्र दराज़ करने की दुआ मांगते हैं. 
उलटी सीढ़ी बातों का यह क़ुरआन.

"और हम ने आप को शायरी का इल्म नहीं दिया है और आपके लिए शायाने शान भी नहीं है. वह तो महेज़ नसीहत है. और आसमानी किताब है जो एहकाम को ज़ाहिर करने वाली है, ताकि ऐसे लोगों को डरावे जो ज़िंदा होऔर ताकि काफ़िरों पर हुज्जत साबित हो जाए."
सूरह यासीन -36 आयत  (69-70)

शायर तो तुम थे ही ये उस वक़्त का इतिहास बतलाता है, 
शायर नहीं बल्कि मुत-शायर (अधूरे शायर) 
पूरी कि पूरी क़ुरआन गवाह है इस बात की. 
तुम्हारी तलवार ने तुम्हारी मुत-शायरी को क़ुरआन बना दिया.

"क्या आदमी को मालूम नहीं कि हम ने उसको नुतफ़े से पैदा किया तो वह एलानिया एतराज़ पैदा करने लगा और उसने हमारी शान में एक अजीब मज़मून बयान किया और अपने असल को भूल गया. कहता है हड्डियों को जब वह बोसीदा हो गईं, कौन ज़िन्दा करेगा? जवाब दे दीजिए कि उनको ज़िंदा करेगा, जिसने अव्वल बार में इसको पैदा किया हैऔर वह सब तरह का पैदा करना जानता है."
सूरह यासीन -36 आयत (78-79)

कौन कमबख़् त आदमी कहता है कि वह अपने बाप के नुतफ़े से नहीं, अलबत्ता तुम जैसे बने रसूल ज़रूर इस से परे दिखलाई देते हो. 
अजीब मज़मून तुम्हारा सुर्रा है कि इंसान क़ब्रों से उठ पडेगा.

''जब वह किसी चीज़ को पैदा करना चाहता है तो उसका मामूल तो ये है कि उस चीज़ को कह देता है,'' हो जा'', वह हो जाती है."
सूरह यासीन -36 आयत (83)

बस कि मुसलमान पैदा करने में नाकाम हो रहा है अल्लाह. 
उसका मामूल तो ये है .
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 27 October 2018

u Dharm Darshan 242


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (45)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>बुद्धि, ज्ञान, संशय तथा मोह से मुक्ति, क्षमा भाव, सत्यता, इन्द्रिय निग्रह, मन निग्रह, सुख तथा दुःख, जन्म, मृतु, भय, अभय, अहिंसा, समता, तुष्टि, तप, दान, यश तथा अपयश -- जीवों के यह विभिन्न गुण मेरे ही द्वारा उत्पन्न हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -10  श्लोक -4+5 
>यह सभी सकामकता और धनात्मक योग और गुण आप द्वरा संचालित हैं, तो 
हे भगवन ! 
ऋणातमकता कौन सृजित करता है ? 
कुबुद्धि, अज्ञान, झूट जैसे अवगुण का निर्माण कोई शैतान करता है ? उसके आगे आप बेबस हैं ?
तमाम अवगुण संसार में प्रचलित ही क्यों हुए , आपके होते हुए ? 
अगर इसका संचालन आप  द्वारा ही है तो आप में और पिशाच में फर्क है. आपको क्यों पूजा जाए ? 
क्यूँ न हम उसकी पूजा करें?  

और क़ुरआन कहता है - - - 
>'' बिला शुबहा अल्लाह तअला बड़ी क़ूवत वाले हैं''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( ५२)
जो ''कुन'' कह कर इतनी बड़ी कायनात की तखलीक करदे उसकी कूवत का यकीन एक अदना बन्दा से क्यूँ करा रहा है ? 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 26 October 2018

सूरह यासीन-36 -سورتہ یاسین (क़िस्त -1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह यासीन-36 -سورتہ یاسین


(क़िस्त -1)

 क़ुरआन की ये चर्चित सूरह है. इस की चर्चा ये है कि ये बहुत ही बा बरकत आयत है. मुसलमान इसे कागज़ पर मुल्ला से लिखवा के पानी में घोल कर पीते हैं. इस की अबजत लिखवा कर गले में तावीज़ बना कर पहनते हैं. इस  के तुगरा दीवार पर लगा कर घरों को आवेज़ां करते हैं.
मैं एक हार्ट स्पेशलिस्ट के पास ख़ुद को दिखलाने गया, उन्हों ने मुझे नाम से मुस्लिम जान कर दीवार पर सजी सूरह यासीन को बुदबुदाने के बाद मेरा मुआएना किया. 
वह मुस्लिम अवाम का जज़्बाती इस्तेसाल करते हैं. 
ऐसे ही एक हिन्दू डाक्टर के पास गया तो मुझे देखने से पहले हाथों को जोड़ कर ॐ नमस् शिवाय का जाप किया. 
ये हिदू और मुसलमान दोनें डाक्टर पक्के ठग हैं. अवाम बेदार नहीं हुई कि समझे कि मेडिकल साइंस का आस्थाओं से क्या वास्ता है.

"यासीन"
मोह्मिल (अर्थ हीन) लफ्ज़ है, मुहम्मदी अल्लाह का रस्मी छू मंतर समझें.

"क़सम है क़ुरआन ए बा हिकमत की! कि बेशक आप मिन जुमला पैग़ामबर के हैं."
सूरह यासीन -36 आयत (2-3)

उम्मी मुहम्मद जब कोई नया लफ्ज़ या लफ्ज़ी तरकीब को सुनते है तो उसे दोहराया करते हैं, जैसे कि अकसर जाहिलों में होता है कि वह लफ्ज़ बोलने के लिए बोलते हैं. यहाँ मुहम्मद ने "मिन जुमला" को जाना है जो कि क़ुरआन में कई बार दोहराने के लिए इसे बोले हैं. 'मिन जुमला' कारो बारी अल्फाज़ हैं जिसके मतलब होते हैं 'टोटली' यानी 'कुल जोड़'. तर्जुमान इसमें मंतिक भिड़ाते रहते हैं.
मुहम्मद मुतलक जाहिल थे और ये है जिहालत की अलामत है. 
कहते हैं - - - 
"आप मिन जुमला पैग़म्बर के हैं."
इसी ज़माने की एक हदीस है कि इस उम्मी ने कहा
"काफ़िरों की औरतें और बच्चे मिन जुमला काफ़िर होते है, शब ख़ून में अगर ये मारे जाएँ तो कोई अज़ाब नहीं."
यहाँ से अल्लाह को क़समें ख़ाने  का दौरा पड़ेगा तो आप देखेंगे कि वह किन किन चीजों की क़समें खाता है. वह क़समों की क़िस्में भी बतलाएगा, जिससे मुसलमान फैज़याब हुवा करते हैं. वह  क़ुरआन ए बा हिक्मत की क़सम खा रहा है जिसमें कोई हिकमत ही नहीं है. 
ख़ुद अपनी तारीफ़ अपने मुंह से कर रहा है?
कितने भोले भाले जीव हैं ये मुसलमान कि मुआमले को कुछ समझते ही नहीं.

"सीधे रस्ते पर हैं, ये क़ुरआन, अल्लाह ज़बरदस्त की तरफ़ से नाज़िल किया गया है. कि आप ऐसे लोगों को डराएँ कि जिनके बाप दादे नहीं डराए गए थे, सो इससे ये बेख़बर  हैं."
सूरह यासीन -36 आयत (4-6)

जो डरे वह बुज़दिल होता है. ख़ुद डर का शिकार होता है. 
अल्लाह अगर है तो वह डराने का मतलब भी न जानता होगा 
और अगर जानते हुए बन्दों को डराता है तो वह अल्लाह नहीं शैतान है.

"इनमें से अकसर लोगों पर ये बात साबित हो गई है कि वह ईमान नहीं लाएँगे. हमने इनकी गर्दनों में तौक़ डाल दी है, फिर वह ठोडियों तक हैं, जिससे इनके सर उलर  रहे हैं."
सूरह यासीन -36 आयत (7-8)

माज़ूर और मायूस अल्लाह थक हार कर बैठ गया कि कुफ़्फ़ार ईमान लाने वाले नहीं. तौक़ (एक जेवर) उनकी गर्दनों में क्या इनआम के तौर पर डाल दी है?
उम्मी का तखय्युल मुलाहिज़ा हो, जब ठोडियाँ जुंबिश न कर सकें तो सर कैसे उलरेन्गे?
दीवाना जो मुँह में आता है, बक देता है.

"और हमने एक आड़ इनके सामने कर दी और एक इनके पीछे कर दी, जिससे हम ने इनको घेर दिया, सो वह नहीं देख सकते. इनके हक़ में आप का डराना न डराना दोनों बराबर है सो वह ईमान न ला सकेंगे. पस आप तो सिर्फ़ ऐसे शख़्स को डरा सकते हैं जो नसीहत पर चले और अल्लाह को बिन देखे डरे."
सूरह यासीन -36 आयत (9-11)

एक महिला प्रवचन दे रही थीं, कह रही थीं कि पुस्तक पर पहले आस्था क़ायम करो, फिर उसको खोलो.
मुझसे रहा न गया, उनको उनको टोका कि पुस्तक में चाहे कोकशास्त्र ही क्यूं न हो ? 
वह एकदम से सटपटा गईं और मुँह जिलाने वाली बातें करने लगीं.
यहाँ पर मुहम्मदी अल्लाह आगे पीछे आड़ लगा रहा है कि सोचने समझने का मौक़ा ही नहीं रह जाता कि उसके क़ुरआन  में कोकशास्त्र है या इससे घटिया बातें भी, बस डर के बंदे उसको तस्लीम कर ले.

"बेशक हम मुर्दों को ज़िंदा कर देंगे और हम लिखे जाते हैं वह आमाल भी जिन को लोग आगे भेजते जाते हैं और उनके वह आमाल भी जो पीछे छोड़ जाते हैं और हम ने हर चीज़ को एक वाज़ह किताब में दर्ज कर दिया है,"
सूरह यासीन -36 आयत (12)
मुहम्मद का मुंशी बना अल्लाह दुन्या के अरबों खरबों इंसानों का बही खाता रखता है, ज़रा उम्मी की भाषा पर ग़ौर  करें - - -
"जिन को लोग आगे भेजते जाते हैं और उनके वह आमाल भी जो पीछे छोड़ जाते हैं "
अल्लाह के सहायक ओलिमा, ऐसी बातों की रफ़ू गरी करते हैं.

"और एक निशानी इन लोगों के लिए मुर्दा ज़मीन है, हमने इसको ज़िंदा किया और इससे ग़ल्ले निकाले, सो इनमें से लोग खाते हैं."
सूरह यासीन -36 आयत (33)

बार बार मुहम्मद ज़मीन को मरे हुए इंसानी जिस्म की तरह मुर्दा बतलाते हैं, मुसलमान इसे ठीक मान बैठे हैं, मगर ज़मीन कभी भी मुर्दा नहीं होती, पानी के बिना वह उबरती नहीं, बस. 
मशहूर शायर रहीम ख़ान  खाना कहते हैं - -
रहिमन पानी राखियो, पानी बिन सब सून.
पानी गए  न ऊबरे, मोती मानस चून.
मुहम्मद रहीम के फिकरी गर्द को भी नहीं पा सकते. ज़मीन को मुर्दा कहते हैं. फिर पानी पा जाने के बाद उसे ज़िदा पाते हैं मगर इसी तरह इंसानी जिस्म मुर्दा हो जाने के बाद कभी ज़िदा नहीं हो सकता.
वह इस जाहिलाना मन्तिक़ को मुसलमानों में फैलाए हुए हैं.

"सो इनके लिए एक निशानी रात है जिस पर से हम दिन को उतार लेते हैं सो यकायक वह लोग अँधेरे में रह जाते है और एक आफ़ताब अपने ठिकाने की तरफ़ चलता रहता है. ये अंदाज़ा बांधता है उसका जो ज़बर दस्त इल्म वाला है, न आफ़ताब को मजाल है कि चाँद को जा पकडे और न रात दिन के पहले आ सकती है और दोनों एक एक दायरे में तैरते रहते हैं."
सूरह यासीन -36 आयत (37-40)

ऐ उम्मी ! अपनी ज़बान में सलीक़ा और समझ पैदा कर. ये दिन यकायक नहीं उतरता, इस बीच शाम भी होती है, यकायक लोग अँधेरे में कब होते हैं?.
क़ुरआन मुसलमानों को चूतिया बनाए हुए है जिनको देख कर ज़माना ख़ुश हो रहा है कि ये अल्लाह की मख़लूक़ यूँ ही बने रहें ताकि हमें सस्ते दामों में ग़ुलाम मयस्सर होते रहें.
और ऐ उम्मी! ये आफ़ताब चलता नहीं, अपनी ख़ला में क़ायम है और इसके पास कोई इंसानी दिलो दिमाग नहीं है कि वह किसी ज़बरदस्त को जानने की जुस्तुजू रखता हो.
और ऐ जहिले मुतलक़! ये आफ़ताब और ये माहताब कोई लुका छिपी का खेल नहीं खेल रहे. 
चाँद ज़मीन की गर्दिश करता है, 
ज़मीन इसे अपने साथ लिए सूरज की गर्दिश में है.
और ऐ मज़लूम मुसलमानों! 
तुम जागो कि तुम पर जगे हुए ज़माने की गर्दिश है.

कलामे दीगराँ  - - -
"ऐ ख़ुदा ! हमारी ज़िन्दगी को तालीम ए बद देने वाले आलिम बिगड़ते हैं, जो बद जातों को अज़ीम समझते हैं, 
जो मर्द और औरत के असासे और विरासत को लूटते हैं 
और तेरे नेक बन्दों को राहे रास्त से बहक़ते हैं"
"ज़र्थुर्ष्ट"
इसे कहते हैं कलामे पाक 

***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 25 October 2018

सूरह फ़ातिर -35 (क़िस्त - 3)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
************
सूरह फ़ातिर -35 
(क़िस्त - 3)  

अल्लाह क़ुरआन में बकता है कि - - -
"आप तो सिर्फ़ डराने वाले हैं, हमने ही आपको हक़ देकर ख़ुश ख़बरी सुनाने वाला और डराने वाला भेजा है. और कोई उम्मत ऐसी नहीं हुई जिसमे कोई डर सुनाने वाला नहो."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (24)

या अल्लाह अब डराना बंद कर कि हम सिने बलूग़त को पहुँच चुके हैं.
डराने वाला, डराने वाला, पूरा  क़ुरआन डराने वाला से भरा हुवा है. 
पढ़ पढ़ कर होंट घिस गए है. क्या जाहिलों की टोली में कोई न था 
कि उसको बतलाता कि डराने वाला बहरूपिया होता है. 
'आगाह करना' होता है जो तुम कहना चाहते हो.
मुजरिम अल्लाह के रसूल ने, 
इंसानों की एक बड़ी तादाद को डरपोक बना दिया है, 
या तो फिर समाज का गुन्डा.

"वह बाग़ात में हमेशा रहने के लिए जिसमे यह दाख़िल होंगे, इनको सोने का कंगन और मोती पहनाए जाएँगे और पोशाक वहाँ इनकी रेशम की होगी और कहेंगे कि अल्लाह का लाख शुक्र है जिसने हम से ये ग़म दूर किए. बेशक हमारा परवर दिगार बड़ा बख़्श  ने वाला है."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (33-34)

सोने के कँगन होंगे, हीरों के जड़ाऊ हार, मोतियों के झुमके और चांदी की पायल जिसको पहन कर जन्नती छमा छम नाचेंगे, 
क्यूँ कि वहाँ औरतें तो होंगी नहीं.

"और जो लोग काफ़िर है उनके लिए दोज़ख़ की आग है. न तो उनको क़ज़ा आएगी कि मर ही जाएँ और न ही दोज़ख़ का अज़ाब उन पर कम होगा. हम हर काफ़िर को ऐसी सज़ा देते हैं और वह लोग चिल्लाएँगे कि ए मेरे परवर दिगार! हमको निकाल लीजिए, हम अच्छे काम करेंगे, ख़िलाफ़ उन कामों के जो किया करते थे. क्या हमने तुम को इतनी उम्र नहीं दी थी कि जिसको समझना होता समझ सकता और तुम्हारे पास डराने वाला नहीं पहुँचा था? तो तुम मज़े चक्खो, ऐसे ज़ालिमों का मदद गार कोई न होगा."
सूरह फ़ातिर -35 आयत  (36-37)

ऐसी आयतें बार बार  क़ुरआन में आई हैं, आप बार बार ग़ौर करिए कि मुहम्मदी अल्लाह कितना बड़ा ज़ालिम है कि उसकी इंसानी दुश्मन फ़रमानों को न मानने वालों का हश्र क्या होगा? माँगे मौत भी न मिलेगी और काफ़िर अन्त हीन काल तक जलता और तड़पता रहेगा. 
मुसलमान याद रखें कि अल्लाह के अच्छे कामों का मतलब है उसकी गुलामी बेरूह नमाज़ी इबादत है और उसे पढ़ते रहने से कोई फिकरे इर्तेक़ा या फिकरे- नव  दिमाग में दाख़िल ही नहीं हो सकती और ज़कात की भरपाई से क़ौम  भिखारी की भिखारी बनी रहेगी और हज से अहले-मक्का की परवरिश होती रहेगी.
मुसलमानों कुछ तो सोचो अगर मुझको ग़लत समझते हो तो क़ुदरत ने तुम्हें दिलो दिमाग़ दिया है. 
इस्लाम मुहम्मद की मकरूह सियासत के सिवा कुछ भी नहीं है.

"आप कहिए कि तुम अपने क़रार दाद शरीकों के नाम तो बतलाओ जिन को तुम अल्लाह के सिवा पूजा करते हो? या हमने उनको कोई किताब भी दी है? कि ये उसकी किसी दलील पर क़ायम हों. बल्कि ये ज़ालिम एक दूसरे निरी धोका का वादा कर आए हैं."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (40)

और आप भी तो लोगों के साथ निरी धोका कर रहे हैं, 
अल्लाह के शरीक नहीं, दर पर्दा अल्लाह बन गए हैं, 
इस गढ़ी हुई क़ुरआन को अल्लाह की किताब बतला कर क़ुदरत को पामाल किए हुए हैं. इसकी हर दलील कठ मुललई की क़ाबित है.

"और इन कुफ़्फ़ार (क़ुरैश) ने बड़े ज़ोर की क़सम खाई थी कि इनके पास कोई डराने वाला आवे तो हम हर उम्मत से ज़्यादः हिदायत क़ुबूल करने वाले होंगे, फिर इनके पास जब एक पैगंबर आ पहुंचे तो बस इनकी नफ़रत को ही तरक़्क़ी हुई - - - सो क्या ये इसी दस्तूर के मुन्तज़िर हैं जो अगले काफ़िरों के साथ होता रहा है, सो आप कभी अल्लाह के दस्तूर को बदलता हुवा न पाएँगे. और आप अल्लाह के दस्तूर को मुन्तक़िल होता हुवा न पाएँगे."

सूरह अहज़ाब में अल्लाह ने वह आयतें मौक़ूफ़ (स्थगित करना या मुल्तवी करना) कर दिया था और मुहम्मद ने कहा था कि उसको अख़्तियार है कि वह जो चाहे करे. 
पहली आयत में अल्लाह का दस्तूर ये था कि बहू या मुँह बोली बहू के साथ निकाह हराम है, फिर वह आयतें मौक़ूफ़ हो गईं. नई आयतों में अल्लह ने मुँह बोली बहू के साथ निकाह को इस लिए जायज़ क़रार दिया ताकि मुसलमानों पर इसकी तंगी ना रहे. मुहम्मदी अल्लाह का मुँह है या जिस्म का दूसरा खंदक ? 
वह कहता है कि "और आप अल्लाह के दस्तूर को मुन्तक़िल होता हुवा न पाएँगे." अल्लाह ने अपना दस्तूर फर्जी फ़रिश्ते जिब्रील के मुँह में डाला, 
जिब्रील मुहम्मद के मुँह में उगला और मुहम्मद इस दस्तूर को मुसलमानों के कानों में टपकाते हैं.

मुसलमानों! मोमिन को समझो, परखो, तोलो,खंगालो, फटको और पछोरो  
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है 
चमन में जाके होता है कोई तब दीदा वर पैदा.
मेरी इस जिसारत की क़द्र करो. इस्लामी दुन्या कानों में रूई ठूँसे बैठी है,
हराम के जने कुत्ते ओलिमा तुम्हें ज़िंदा दरगोर किए हुवे हैं,
तुम में सच बोलने और  सच सुनने की सलाहियत ख़त्म हो गई है.
तुमको इन गुन्डे आलिमो ने नामर्द बना दिया है.
जिसारत करके मेरी हौसला अफ़ज़ाई  करो जो तुम्हारा शुभ चिन्तक और ख़ैर ख्वाह है.
मैं मोमिन हूँ और मेरा मसलक ईमान दारी है,
इस्लाम अपनी शर्तों को तस्लीम कराता है जिसमें ईमान रुसवा होता है,
मेरे ब्लॉग पर अपनी राय भेजो भले ही गुमनाम हो.
 अगर मेरी बातों में कुछ सदाक़त पाते हो तो.
*** 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 23 October 2018

Dharm Darshan 241




शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (44)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
हे महाबाहु अर्जुन ! और आगे सुनो. 
चूँकि तुम मेरे प्रिय सखा हो, 
अतः मैं तुम्हारे लाभ के लिए  ऐसा ज्ञान प्रदान करूँगा, 
जो अभी तक मेरे द्वारा बताए गए ज्ञान में श्रेष्ट होगा .
**जो मुझे अजन्मा अनादि,  
समस्त लोकों के  स्वामी के रूप में जनता है,
मनुष्यों में केवल वही मोहरहित और समस्त पापों से मुक्त हिता है.     
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  - 10  श्लोक -1+3 

> भगवान् एक सामान्य आदमी को विभिन्न उपाधियाँ देकर ही संबोधित करते हैं.. कभी महाबाहु तो कभी कुंती पुत्र तो कभी पृथा पुत्र, पांडु पुत्र और भरतवंशी. 
अर्जुन भी कोई कसर नहीं छोड़ते मधुसूदन  भगवान्   पुरुषोत्तम आदि उपाधियों से नवाजते हैं. 

फ़ारसी की एक सूक्ति है कि नए शहर में रोज़ी कमाने दो लोग गए और तय किया कि "मन तुरा क़ाज़ी बगोयम, तू मरा हाजी बेगो." 
(तुम मुझे काज़ी जी कहा करो और मै तुमको हाजी जी.) 
कुछ दिनों में हम दोनों कम से कम इज़्ज़त तो कमा ही लेगे .
खैर यह लेखनी की नाट्य कला है. 
गीता कृष्ण और अर्जुन का नाटक ही तो है जिसे धर्म ग्रन्थ मान लिया गया है. उसके बाद तुलसी दास के महा काव्य कृति रामायण को धर्म ग्रन्थ मान लिया गया.
कृष्ण जी अपने प्रिय सखा से एक ही बात को बार बार दोहराते हैं कि आखिर तुम मुझको ईश्वरीय ताक़त क्यों नहीं मान लेते.

और क़ुरआन कहता है - - - 
>'' ऐ ईमान वालो! तुम अल्लाह और रसूल के कहने को बजा लाया करो जब कि रसूल तुम को तुम्हारी ज़िन्दगी बख्श चीजों की तरफ बुलाते हैं और जान रखो अल्लाह आड़ बन जाया करता है आदमी के और उसके क़ल्ब के दरमियान और बिला शुबहा तुम सब को अल्लाह के पास जाना ही है.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( २४ )

जादूई खसलत के मालिक मुहम्मद इंसानी ज़ेहन पर इस कद्र क़ाबू पाने में आखिर कार कामयाब हो ही गए जितना कि कोई ज़ालिम आमिर किसी कौम पर फ़तह पाकर उसे गुलाम बना कर भी नहीं पा सकती. आज दुन्या की बड़ी आबादी उसकी दरोग की आवाज़ को सर आँख पर ढो रही है और उसके कल्पित अल्लाह को खुद अपने और अपने दिल ओ दिमाग के बीच हायल किए हुए है.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 22 October 2018

सूरह फ़ातिर-35 -سورتہ فاطر (क़िस्त - 2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
************
 सूरह फ़ातिर-35 -سورتہ فاطر
(क़िस्त - 2)  

अल्लाह के कारनामे मुलाहिज़ा हों - - - 

"तो क्या ऐसा शख़्स जिसको उसका आमले-बद से अच्छा करके दिखाया गया, फिर वह उसको अच्छा समझने लगा, और ऐसा शख़्स जिसको क़बीह को क़बीह (बुरा) समझता है, कहीं बराबर हो सकते हैं
सो अल्लाह जिसको चाहता गुमराह करता है.
जिसको चाहता है हिदायत करता है .
सो उन पर अफ़सोस करके कहीं आपकी जान न जाती रहे.
अल्लाह को इनके सब कामों की ख़बर है.
और अल्लाह हवाओं को भेजता है, फिर वह बादलों को उठाती हैं फिर हम इनको खुश्क कर के ज़मीन की तरफ़ हाँक ले जाते हैं, फिर हम इनको इसके ज़रिए से ज़मीन को ज़िंदा करते हैं. इसी तरह (रोज़े -हश्र  इंसानों का) जी उठाना है. जो लोग इज्ज़त हासिल करना चाहें तो, तमाम इज्ज़त अल्लाह के लिए ही हैं.
अच्छा कलाम इन्हीं तक पहुँचता है और अच्छा काम इन्हें पहुँचाता है."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (8-10)

इन आयतों के एक एक जुमले पर ग़ौर करिए कि उम्मी अल्लाह क्या कहता है?
*मतलब ये कि अच्छे और बुरे दोनों कामों के फ़ायदे हैं मगर दोनों बराबर नहीं हो सकते.
*मुसलमानों के लिए सबसे भला काम है= जिहाद, फिर नमाज़, ज़कात और हज वग़ैरह और बुरा काम इन की मुख्लिफत. 
*जब अल्लाह ही बन्दे को गुमराह करता है तो ख़ता वार अल्लाह हुवा या बंदा?
*जिसको हिदायत नहीं देता तो उसे दोज़ख़ में क्यूँ डालता है ? 
क्या इस लिए कि दोज़ख़ से, उसका पेट भरने का वादा किए हुए है ?
*जब सब कामों की ख़बर है तो बेख़बरी किस बात की? 
फ़ौरन सज़ा या मज़ा चखा दे, क़यामत आने का इंतज़ार कैसा? 
बुरे काम करने ही क्यूँ देता है इंसान को?
*अल्लाह हवाओं को हाँकता है, जैसे चरवाहे मुहम्मद बकरियों को हाँका करते थे.
*गोया कि इंसान दफ़्न होगा और रोज़ हश्र बीज की तरह उग आएगा. 
फिर सारे आमाल की ख़बर रखने वाला अल्लाह ख़ुद भी नींद से उठेगा 
और लोगों के आमालों का हिसाब किताब करेगा.
*"तमाम इज्ज़त अल्लाह के लिए ही हैं.
"तब तो तुम इसके पीछे नाहक़ भागते हो, 
इस दुन्या में बेईज्ज़त बन कर ही जीना है. 
जो मुसलमान जी रहे हैं.
मुसलमानों! 
तुम जागो. अल्लाह को सोने दो. 
क़यामत हर खित्ता ए ज़मीन पर तुम्हारे लिए आई हुई है. 
पल पल तुम क़यामत की आग में झुलस रहे हो. 
कब तुम्हारे समझ में आएगा. 
क़यामत पसंद मुहम्मद हर तालिबान में ज़िंदा है 
जो मासूम बच्चियों को तालीम से ग़ाफ़िल किए हुए है. 
गैरत मंद औरतों पर कोड़े बरसा कर ज़िन्दा दफ़्न करता है. 
ठीक ऐसा ही ज़िन्दा मुहम्मद करता था.

"अल्लाह ने तुम्हें मिटटी से पैदा किया, फिर नुत्फ़े से पैदा किया, फिर तुमको जोड़े जोड़े बनाया और न किसी औरत को हमल रहता है, न वह  जनती है, मगर सब उसकी इत्तेला से होता है और न किसी की उम्र ज़्यादः की जाती है न उम्र कम की जाती है मगर सब लौहे-महफ़ूज़ (आसमान में पत्थर पर लिखी हुई किताब) में होता हो.ये सब अल्लाह को आसान है."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (11)

इंसान के तकमील का तरीक़ा कई बार बतला चुके हैं अल्लाह मियाँ ! 
कभी अपने बारे में भी बतलाएँ कि आप किस तरह से वजूद में आए.
उम्मी का ये अंदाज़ा यहीं तक महदूद है ?
वह अनासिरे ख़मसा (पञ्च तत्व) से बे ख़बर है ?
"मिटटी से भी और फिर नुतफ़े से भी"? 
मुहम्मद तमाम मेडिकल साइंस को कूड़े दान में डाले हुए हैं. 
मुसलमान आसमानी पहेली को सदियों से बूझे और बुझाए हुए है.

"और दोनों दरिया बराबर नहीं है, एक तो शीरीं प्यास बुझाने वाला है जिसका पीना आसान है. और एक खारा तल्ख़ है और तुम हर एक से ताजः गोश्त खाते हो, ज़ेवर निकलते हो जिसको तुम पहनते हो और तू कश्तियों को इसमें देखता है, पानी को फाड़ती हुई चलती हैं, ताकि तुम इससे रोज़ी ढूढो और शुक्र करो."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (12)

मुहम्मदी अल्लाह की मालूमात देखिए कि खारे समन्दर को दूसरा दरिया कहते हैं, 
ताजः मछली को ताजः गोश्त कहते हैं, 
मोतियों को जेवर कहते हैं. 
हर जगह ओलिमा अल्लाह की इस्लाह करते हैं. 
भोले भाले और जज़बाती मुसलमानों को गुमराह करते हैं. 

"वह रात को दिन में और दिन को रात दाख़िल कर देता है. उसने सूरज और चाँद को काम पर लगा रक्खा है. हर एक वक्ते-मुक़र्रर पर चलते रहेंगे. यही अल्लाह तुम्हारा परवर दिगार है और इसी की सल्तनत है और तुम जिसको पुकारते हो उसको खजूर की गुठली के छिलके के बराबर भी अख़्तियार नहीं" 
सूरह फ़ातिर -35 आयत (13)

रात और दिन आज भी दाख़िल हो रहे हैं एक दूसरे में 
मगर वहीँ जहाँ तालीम की रौशनी अभी तक दाख़िल नहीं हुई.
अल्लाह सूरज और चाँद को काम पर लगाए हुए है 
अभी भी जहां आलिमाने-दीन की बद आमालियाँ  है. 
मुहम्मदी अल्लाह की हुकूमत क़ायम रहेगी 
जब तक इस्लाम मुसलमानों को सफ़ा ए हस्ती से नेस्त नाबूद न कर देगा.

"अगर वह तुमको चाहे तो फ़ना कर दे और एक नई मख़लूक़ पैदा कर दे, अल्लाह के लिए ये मुश्किल नहीं."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (14)

अल्लाह क्या, कोई भी गुंडा बदमाश किसी को फ़ना कर सकता है.
मगर मख़लूक़ में इंसान भी एक क़िस्म की मख़लूक़ , 
अगर वह इसे ख़त्म कर दे तो पैग़मबरी किस पर झाडेंगे?
मैं बार बार मुहम्मद की अय्यारी और झूट को उजागर कर रहा हूँ 
ताकि आप जाने कि उनकी हक़ीक़त क्या है. 
यहाँ पर मख़लूक की जगह वह काफ़िर जैसे इंसानों को मुख़ातिब करना चाहते हैं मगर इस्तेमाल कर रहे हैं शायरी लफ़्फ़ाज़ी.

"आप तो सिर्फ़ ऐसे लोगों को डरा सकते हैं जो बिन देखे अल्लाह से डर सकते हों और नमाज़ की पाबंदी करते हों."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (18)

बेशक ऐसे गधे ही आप की सवारी बने हुए हैं.

"और अँधा और आँखों वाला बराबर नहीं हो सकते और न तारीकी और रौशनी, न छाँव और धूप और ज़िंदे मुर्दे बराबर नहीं हो सकते. अल्लाह जिस को चाहता है सुनवा देता है. और आप उन लोगों को नहीं सुना सकते जो क़ब्रों में हैं." 
सूरह फ़ातिर -35 आयत (19-22)

मगर या अल्लाह तू कहना क्या चाहता है, 
तू ये तो नहीं रहा कि मुल्ला जी और डाक्टर बराबर नहीं हो सकते.
जो इस पैग़ाम को सुनने से पहले क़ब्रों में चले गए, 
क्या ?
उन पर क्यों नाफ़िज़ होगा यह है कलाम पाक ? 
तू रोज़े-हश्र मुक़दमा चला कर दोज़खी जेलों में ठूँस देगा ? 
तेरा उम्मी रसूल तो यही कहता है कि उसका बाप अब्दुल्लह भी जहन्नम रसीदा होगा.
या अल्लाह क्या तू इतना नाइंसाफ़ हो सकता है?
दुन्या को शर सिख़ाने  वाले फ़ित्तीन के मरहूम वालिद का उसके जुर्मों में क्या कुसूर हो सकता है? 

कलामे दीगराँ - - - 
"आदमी में बुराई ये है कि वह दूसरे का मुअल्लिम (शिक्षक) बनना चाहता है और बीमारी ये है कि वह अपने खेतों की परवाह नहीं करता और दूसरे के खेतों की निराई करने का ठेका ले लेता है."
 कानफ़्यूश
यह है कलाम पाक 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 21 October 2018

सूरह सबा-34 -سورتہ سبا Q-2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह सबा-34 -سورتہ سبا
(क़िस्त -2)  

 चलते है क़ुरआन की हक़ीक़त पर 
"सो अपनों ने सरताबी की तो हमने उन पर बंद का सैलाब छोड़ दिया, हमने उनको फलदार बाग़ों के बदले, बाँझ बागें दे दीं जिसमें ये चीज़ें रह गईं, बद मज़ा फल और झाड़, क़द्रे क़लील बेरियाँ उनको ये सज़ा हमने उनकी नाफ़रमानी की वजेह से दीं, और हम ऐसी सज़ा बड़े ना फ़रमानों को ही दिया करते हैं."
सूरह सबा 34 आयत (17)
अल्लाह बन बैठा रसूल अपनी तबीअत, फ़ितरत और ख़सलत के मुताबिक़ अवाम को सज़ा देने के लिए बेताब रहता है. वह किस क़दर ज़ालिम था कि उसकी अमली तौर में दास्तानें हदीसों में भरी पडी हैं. तालिबान ऐसे दरिन्दे उसकी ही पैरवी कर रहे हैं. 
देखिए कि अपने लोगों के लिए कैसी सोच रखता है, 
"सो अपनों ने सरताबी की तो हमने उन पर बंद का सैलाब छोड़ दिया"
अल्लाह की बेशरमी मुलाहिज़ा हो ,
"हम ने उनको अफ़साना बना दिया और उनको बिलकुल तितर बितर कर दिया. बेशक इसमें हर साबिर और शाकिर के लिए बड़ी बड़ी इबरतें हैं"
सूरह सबा 34 आयत (19)
मुसलमानों! 
अगर ऐसा अल्लाह कोई है जो अपने बन्दों को तितर बितर करता हो और उनको तबाह करके अफ़साना बना देता हो तो वह अल्लाह नहीं बंदा ए  शैतान है, जैसे कि मुहम्मद थे.
वह चाहते हैं कि उनकी ज़्यादितियों के बावजूद लोग कुछ न बोलें और सब्र करें.
"उन्होंने ये भी कहा हम अमवाल और औलाद में तुम से ज्यादः हैं और हम को कभी अज़ाब न होगा. कह दीजिए मेरा परवर दिगार जिसको चाहे ज्यादः रोज़ी देता है और जिसको चाहता है कम देता है, लेकिन अकसर लोग वाक़िफ़ नहीं और तुम्हारे अमवाल और औलाद ऐसी चीज़ नहीं जो दर्जा में हमारा मुक़र्रिब बना दे, मगर हाँ ! जो ईमान लाए और अच्छा काम करे, सो ऐसे लोगों के लिए उनके अमल का दूना सिलह है. और वह बाला ख़ाने  में चैन से होंगे."
सूरह सबा 34 आयत (35-37)

कनीज़ मार्या के हमल को आठवाँ महीना लगने के बाद जब समाज में चे-मे गोइयाँ शुरू हुईं तो मार्या के दबाव मे आकर मुहम्मद ने उसे अपनी कारस्तानी क़ुबूला और बच्चा पैदा होने पर उसको अपने बुज़ुर्ग इब्राहीम का नाम  दिया, उसका अक़ीक़ा भी किया. ढाई साल में वह मर गया तब भी समाज में चे-मे गोइयाँ हुईं कि बनते हैं अल्लाह के नबी और बुढ़ापे में एह लड़का हुवा, उसे भी बचा न सके. तब मुहम्मद ने अल्लाह से एक आयत उतरवाई " इन्ना आतोय्ना कल कौसर - - - "यानी उस से बढ़ कर अल्लाह ने मुझको जन्नत के हौज़ का निगराँ बनाया - - -
तो इतने बेगैरत थे हज़रात.
इस सूरह के पासे मंज़र मे इन आयतों भी मतलब निकाला जा सकता है.
एक उम्मी की रची हुई भूल भुलैय्या में भटकते राहिए कोई रास्ता ही न मिलेगा, 

"आप कहिए कि मैं तो सिर्फ़ एक बात समझता हूँ, वह ये कि अल्लाह वास्ते खड़े हो जाओ, दो दो, फिर एक एक, फिर सोचो कि तुम्हारे इस साथी को जूनून नहीं है. वह तुम्हें एक अज़ाब आने से पहले डराने वाला है."
सूरह सबा 34 आयत (46)

बेशक, ये आयत ही काफ़ी है कि आप पर कितना जूनून था. दो दो, फिर एक एक - - - फिर उसके बाद सिफ़र सिफ़र फिर नफ़ी एक एक यानी बने हुए रसूल की इतनी धुनाई होती और इस तरह होती कि इस्लामी फ़ितने का वजूद ही न पनप पाता. 

यहूदी धर्म कहता है - - -
ऐ ख़ुदा!
फ़िरके फ़िरके का इन्साफ़ करेगा. मुल्क मुल्क के लोगों के झगड़े मिटाएगा, 
वह अपने तलवारों को पीट पीट कर हल के फल और भालों को हँस्या बनाएँगे, 
तब एक फ़िरका दूसरे फ़िरके पर तलवारें नहीं चलाएगा न आगे लोग जंग के करतब सीखेंगे.
"तौरेत"

ये हो सकती है अल्लाह की वह्यी या कलाम ए पाक.     


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 16 October 2018

Hindu Dharm Darshan 240



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (43)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>अपने मन को मेरे नित्य चिंतन में लगाओ, 
मेरे भक्त बनो, मुझे नमस्कार करो और मेरी ही पूजा करो. 
इस प्रकार मुझ में पूर्णतया तल्लीन होने पर 
तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त करोगे. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -9  श्लोक -34 

>भगवान् को प्राप्त करने के बाद साधक को क्या मिलता है ?
गूंगे को गुड का स्वाद ? जिसे वह बयान नहीं कर पाता. 
या अंधे की कल्पना जिसमे डूब कर वह हमेशा मुस्कुराया करता है ? 
क्या गीता लोगों को अँधा और गूंगा बनती है ? 
परम सुख है औरों को सुख देना और भगवान् स्वयं सुख पाने का पाठ पढ़ा रहे हैं.

और क़ुरआन कहता है - - - 
>''ऐ ईमान वालो! 
अगर तुम अल्लाह से डरते रहोगे तो, वह तुम को एक फैसले की चीज़ देगा और तुम से तुम्हारे गुनाह दूर क़र देगा और तुम को बख्श देगा और अल्लाह बड़ा फ़ज़ल वाला है.''
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( २९ )

अल्लाह के एजेंट बने मुहम्मद उसकी बख्शी हुई रियायतें बतला रहे हैं. 
पहले उसके बन्दों को समझा दिया कि उनका जीना ही गुनाह है, 
वह पैदा ही जहन्नम में झोंके जाने के लिए हुए हैं, 
इलाज सिर्फ़ यह है कि मुसलमान होकर मुहम्मद और उनके कुरैशियों को टेक्स दें और उनके लिए जेहाद करके दूसरों को लूटें मारें जब तक कि वह भी उनके साथ जेहादी न बन जाएँ.
ना करदा गुनाहों के लिए बख्शाइश का अनूठा फार्मूला जो मुसलमानों को धरातल की तरफ खींचता रहेगा.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 15 October 2018

सूरह फ़ातिर-35 -سورتہ فاطر (क़िस्त -1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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 सूरह फ़ातिर-35 -سورتہ فاطر
(क़िस्त -1) 

तारीख़ अरब के मुताबिक़ बाबा ए क़ौम  इब्राहीम के दो बेटे हुए  
इस्माईल और इसहाक़. 
छोटे इसहाक़ की औलादें बनी इस्राईल कहलाईं जिन्हें यहूदी भी कहा जाता है. इन में नामी गिरामी लोग पैदा हुए, मसलन यूफुफ़, मूसा, दाऊद, सुलेमान और ईसा वग़ैरह और पहली तारीख़ी किताब मूसा ने शुरू की तो उनके पैरो कारों ने साढ़े चार सौ सालों तक इसको मुरत्तब करने का सिलसिला क़ायम रखा. 
लौंडी जादे हाजरा (हैगर) पुत्र इस्माइल की औलादें इस नाम व से महरूम रहीं जिनमें मुहम्मद भी आते हैं. 
इस्माइलियों में हमेशा ये क़लक़ रहता कि काश हमारे यहाँ भी कोई पैग़मबर होता कि हम उसकी पैरवी करते. 
इन रवायती चर्चा मुहम्मद के दिल में गाँठ की तरह बन्ध गई कि क़ौम में पैग़ामरी की जगह ख़ाली है.
मदीने की एक उम्र दराज़ बेवा मालदार ख़ातून ख़दीजा ने मुहम्मद को अपने साथ निकाह की पेश काश की. वह फ़ौरन राज़ी हो गए कि बकरियों की चरवाही से उन्हें छुट्टी मिली और आराम के साथ रोटी का ज़रीया मिला. 
इस राहत के बाद वह रोटियाँ बांध कर ग़ार ए हिरा में जाते और अल्लाह का रसूल बन्ने का ख़ाका तैयार करते.
इस दौरान उनको जिंसी तकाजों का सामान भी मिल गया था और छह अदद बच्चे भी हो गए, साथ में ग़ार ए हिरा में आराम और प्लानिंग का मौक़ा भी मिलता कि रिसालत की शुरूवात कब की जाए, कैसे की जाए, 
आगाज़, हंगाम और अंजाम की कशमकश में आख़िर कार एक रोज़ फैसला ले ही लिया कि गोली मारो सदाक़त, सराफ़त और दीगर इंसानी क़दरों को. ख़ारजी तौर पर समाज में वह अपना मुक़ाम जितना बना चुके हैं, वही काफ़ी है.
एक दिन उन्हों ने अपने इरादे को अमली जामा पहनाने का फैसला कर ही डाला. अपने क़बीले क़ुरैश को एक मैदान में इकठ्ठा किया, 
भूमिका बनाते हुए उन्हों ने अपने बारे में लोगों की राय तलब की, 
लोगों ने कहा तुम औसत दर्जे के इंसान हो कोई बुराई नज़र नहीं आती, सच्चे, ईमान दार, अमानत और साबिर तबा शख़्स हो. 
मुहम्मद  ने पूछा अगर मैं कहूँ कि इस पहाड़ी के पीछे एक फ़ौज आ चुकी है, तो यक़ीन कर लोगे? 
लोगों ने कहा कर सकते हैं इसके बाद मुहम्मद ने कहा - - -
मुझे अल्लाह ने अपना रसूल चुना है.
ये सुन कर क़बीला भड़क उट्ठा. 
कहा तुम में कोई ऐसे आसार, ऐसी ख़ूबी और अज़मत नहीं कि तुम जैसे जाहिल गँवार को अल्लाह पयंबरी के लिए चुनता फिरे.
मुहम्मद के चाचा अबू लहेब बोले,
 "माटी मिले, तूने इस लिए हम लोगों को यहाँ बुलाया था? 
सब के सब मुँह फेर कर चले गए. 
मुहम्मद की इस हरकत और जिसारत से क़ुरैशियों  को बहुत तकलीफ़ पहुंची मगर मुहम्मद मैदान में कूद पड़े तो पीछे मुड कर न देखा.
बाद में वह क़ुरैशियों के बा असर लोगों से मिलते रहे और समझाते रहे 
कि अगर तुमने मुझे पैग़मबर मान लिया और मैं कामयाब हो गया तो तुम बाक़ी क़बीलों में बरतर होगे, 
मक्का ज़माने में बरतर होगा 
और अगर नाकाम हुवा तो ख़तरा सिर्फ़ मेरी जान को होगा. 
इस कामयाबी के बाद, बदहाल मक्कियों को हमेशा हमेश के लिए रोटी सोज़ी का सहारा मिल जाएगा.
मगर क़ुरैश अपने माबूदों (पूज्य) को तर्क करके मुहम्मद को अपना माबूद बनाए जाने को तैयार न हुए.

इस हक़ीक़त के बाद क़ुरआन की आयातों को परखें.

"तमाम तर हम्द अल्लाह तअला को लायक़ है जो आसमानों और ज़मीनों को पैदा करने वाला है. जो फ़रिश्तों को पैग़ाम रसा बनाने वाला है, जिनके दो दो तीन तीन और चार चार पर दार बाजू हैं, जो पैदाइश में जो चाहे ज़्यादः कर देता है. बे शक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (1)

तमाम हम्द उन हस्तियों की होनी चाहिए जिनहों ने इंसान और इंसानियत के किए कुछ किया हो. 
जो मुसबत ईजादों के मूजिद हों. 
उन पर लअनतें हों जिन्हों ने इंसानी ख़ून से नहाया हो .
ईसाइयों के फ़रिश्ते न नर होते हैं न नारी और उनका कोई जिन्स भी नहीं होता, अलबत्ता छातियाँ होती हैं जिस को मुहम्मदी अल्लाह कहता है ये लोग तब मौजूद थे जब वह पैदा हुए कि उनको औरत बतलाते हैं. 
तअने देता है कि अपने लिए तो बेटा और अल्लाह के लिए बेटी?
मुहम्मद हर मान्यता का धर्म का विरोध करते हुए अपनी बात ऊपर रखते हैं, चाहे वह कितनी भी धांधली ही क्यूं न हो. 
ख़ुद फ़रिश्तों के बाज़ू गिना रहे हैं, जैसे अपनी आँखों से देखा हो. 

"अल्लाह जो रहमत लोगों के लिए खोल दे, सिवाए इसके कोई बंद करने वाला नहीं और जिसको बंद कर दे, सो इसके बाद इसको कोई जारी करने वाला नहीं - - - ए लोगो ! तुम पे जो अल्लाह के एहसान हैं, इसको याद करो, क्या अल्लाह के सिवा कोई ख़ालिक़ है जो तुमको ज़मीन और आसमान से रिज़्क पहुँचाता हो. इसके सिवा कोई लायक़-इबादत नहीं. अगर ये लोग आप को झुट्लाएंगे तो आप ग़म न करें क्यूंकि आप से पहले भी बहुत से पैग़ामबर झुट्लाए जा चुके हैं."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (2-4)

अभी तक कोई अल्लाह खोजा नहीं जा सका, 
दुन्या को वजूद में आए लाखों बरस हो गए. 
अगर वह मुहम्मदी अल्लाह है तो निहायत टुच्चा है, 
जिसे नमाज़ रोज़ों की शदीद ज़रुरत है. 
किसी भी इंसान पर वह एहसान नहीं करता बल्कि ज़ुल्म ज़रूर करता है 
कि आज़ाद रूह किसी पैकर के ज़द में आकर ज़िन्दगी पर थोपी गई मुसीबतें झेलता है. 

"ए लोगो! अल्लाह का वादा ज़रूर सच्चा है, सो ऐसा न हो कि ये दुन्यावी ज़िन्दगी तुम्हें धोके में डाल रखे और ऐसा न हो कि तुम्हें धोकेबाज़ शैतान अल्लाह से धोके में डाल दे. ये शैतान बेशक तुम्हारा दुश्मन है, सो तुम इसको दुश्मन समझते रहो. वह तो गिरोह को महेज़ इस लिए बुलाता है कि वह दोंनों दोज़खियों में शामिल हो जाएँ."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (5-6)

अल्लाह और शैतान दोनों ही इन्सान को दोज़ख़ में डालने का बेड़ा उठाए हुए हैं. शैतान लड़ता है कि अल्लाह इंसानों का दुश्मन नंबर वन है, 
तभी तो किसी वरदान की तरह दोज़ख़ रसीदा करने का वादा करता है,
ऐसे अल्लाह को जूते मार कर घर (दिल) से बाहर करिए, 
और शैतान नंबर दो को समझने की कोशिश करिए 
जिसकी बकवास ये क़ुरआन है.
उम्मी फ़रमाते हैं "धोकेबाज़ शैतान अल्लाह से धोके में डाल दे."
मुतराज्जिम अल्लाह की इस्लाह करते हैं.

कलामे दीगराँ - - -
"जन्नत और दोज़ख़ दोनों इंसान के दिल में होते हैं."
"शिन्तो"
  जापानी पयम्बर   
इसे कहते हैं कलाम पाक 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान