Tuesday 2 October 2018

Hindu Dharm Darshan 234


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (37)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
और जीवन के अंत में जो केवल मेरा स्मरण करते हुए शरीर का त्याग करता है, वह तुरंत मेरे स्वभाव को प्राप्त करता है. इसमें रंच मात्र भी संदेह नहीं. 
**अतएव हे अर्जुन ! 
तुम्हें सदैव कृष्ण रूप में मेरा चिंतन करना चाहिए 
और साथ ही युद्ध करने के कर्तव्य को भी पूरा करना चाहिए. 
अपने कर्मों को मुझे समर्पित करके तथा अपने मन और बुद्धि को मुझ में स्थिर करके तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त कर सकोगे.
 श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -8  - श्लोक -5+7 

>गीता उपदेशों को क़ुरआन के फरमानों से मिला कर देखें, 
क्या दोनों का इशारा एक जैसा नहीं है. ?

 इंसानी ज़ेहन को बंधक बना कर इन पर अपनी मनमानी की जाए. 

और क़ुरआन कहता है - - - 
>"आप फरमा दीजिए कि मुझे ये हुक्म हुवा है 
कि सब से पहले मैं इस्लाम कुबूल करूँ 
और तुम इन मुशरिकीन में से हरगिज़ न होना. 
आप फरमा दीजिए कि अगर मैं अपने रब का कहना न मानूँ तो 
मैं एक बड़े दिन के अज़ाब से डरता हूँ.''
अनआम -६-७वाँ पारा आयत (15)
''सो जिस शख्स को अल्लाह ताला रस्ते पर डालना चाहते हैं उसके सीने को इस्लाम से कुशादा कर देते हैं और जिस को बे राह रखना चाहते हैं उसके सीने को तंग कर देते हैं जैसे कोई आसमान पर चढ़ना चाहता हो. इसी तरह अल्लाह ईमान न लाने वाले वाले पर फिटकार डालता है.''
सूरह अनआम छटां+सातवां पारा (आयत १२६)
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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