Wednesday 3 October 2018

Soorah Ahzab 33-Q 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अहज़ाब -33 -سورتہ الاحزاب 

क़िस्त - 1 

 क़ुरआन की बहुत अहम सूरह है, 
जिसे कि मदीने की "दास्तान ए बेग़ैररत" कहा जा सकता है. 
यह सूरह मुहम्मद के काले करतूत को उजागर करती है. 
मुहम्मद ने इंसानी समाज को कैसे दाग़दार किया है, 
इसकी मिसाल बहैसियत एक रहनुमा, दुन्या में कहीं न मिल सकेगी. 
क़ारी हज़रात (पाठक गण) से इंसानियत का वास्ता दिला कर अर्ज़ है कि 
सूरह को समझने के लिए कुछ देर की ख़ातिर अक़ीदत का चश्मा उतार कर फेंक दें, फिर हक़ और सदाक़त की ऐनक लगा कर मुहम्मदी अल्लाह को और मुहम्मद को देखें और समझें.

ज़ैद ;- एक मज़लूम का पसे-मंज़र - - -
एक सात आठ साल का मासूम बच्चा ज़ैद बिन हारसा को बस्ती से बुर्दा फरोशों (बच्चा चोरों) ने अपहरण कर लिया,और मक्के में लाकर मुहम्मद के हाथों फ़रोख़्त कर दिया. ज़ैद बिन हारसा अच्छा बच्चा था, 
इस लिए मुहम्मद और उनकी बेगम ख़दीजा ने उसे भरपूर प्यार दिया. 
उधर ज़ैद का बाप हारसा अपने बेटे के ग़म में पागल हो रहा था, 
वह लोगों से रो-रो कर और गा-गा कर अपने बेटे को ढूँढने की इल्तेजा करता. 
उसे महीनों बाद जब इस बात का पता चला कि उसका लाल मदीने में मुहम्मद के पास है, तो वह अपने भाई को साथ लेकर मुहम्मद के पास हस्बे-हैसियत फिरौती की रक़म लेकर पहुंचा. 
मुहम्मद ने उसकी बात सुनी और कहा---
"पहले ज़ैद से तो पूछ लो कि वह क्या चाहता है."
ज़ैद को मुहम्मद ने आवाज़ दी, वह बाहर निकला और अपने बाप और चाचा से फ़र्ते-मुहब्बत से लिपट गया, मगर बच्चे ने इनके साथ जाने से मना कर दिया. 
"खाई मीठ कि माई" ?
बदहाल माँ बाप का बेटा था. हारसा मायूस हुवा. मुआमले को जान कर आस पास से भीड़ जमा हो गई, 
मुहम्मद ने सब के सामने ज़ैद को गोद में उठा कर कहा , 
"आप सब के सामने मैं अल्लाह को गवाह बना कर कहता हूँ कि आज से ज़ैद मेरा बेटा हुआ और मैं इसका बाप"
ज़ैद अभी नाबालिग़ ही था कि मुहम्मद ने इसका निकाह अपनी हबशन कनीज़ ऐमन से करा दिया. ऐमन मुहम्मद की माँ आमना की कनीज़ थी जो मुहम्मद से इतनी बड़ी थी कि बचपन में वह मुहम्मद की देख भाल करने लगी थी.
आमिना चल बसी, मुहम्मद की देख भाल ऐमन ही करती, 
यहाँ तक कि वह सिने बलूग़त में आ गए. 
पच्चीस साल की उम्र में जब मुहम्मद ने चालीस साला ख़दीजा से निकाह किया तो ऐमन को भी वह ख़दीजा के घर अपने साथ ले गए.
जी हाँ! 
आप के सल्लाल्ह - - - 
घर जँवाई हुआ करते थे और ऐमन उनकी रखैल पहले ही बन चुकी थी. 
ऐमन को एक बेटा ओसामा हुआ 
जब कि अभी उसका बाप ज़ैद सिने-बलूग़त को भी न पहुँचा था, 
मशहूर सहाबी ओसामा मुहम्मद का ही नाजायज़ बेटा था.
ज़ैद के बालिग़ होते ही मुहम्मद ने उसको एक बार फिर मोहरा बनाया और उसकी शादी अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब से करा दी. 
ख़ानदान वालों ने एतराज़ जताया कि एक ग़ुलाम के साथ ख़ानदान क़ुरैश की बेटी की शादी ? 
मुहम्मद का जवाब था, 
ज़ैद ग़ुलाम नहीं, ज़ैद, ज़ैद बिन मुहम्मद है.
फिर हुआ ये, 
एक रोज़ अचानक ज़ैद घर में दाख़िल हुवा, 
देखता क्या है कि उसका मुँह बोला बाप 
उसकी बीवी ज़ैनब के साथ मुँह काला कर रहा है. 
उसके पाँव के नीचे से ज़मीन खिसक गई, 
घर से बाहर निकला तो घर का मुँह कभी न देखा. 
हवस से जब मुहम्मद फ़ारिग हुए तब बाहर निकल कर ज़ैद को बच्चों की तरह ये हज़रत बहलाने और फुसलाने लगे, मगर वह न पसीजा. 
मुहम्मद ने समझाया जैसे तेरी बीवी ऐमन के साथ मेरे रिश्ते थे, 
वैसे ही ज़ैनब के साथ रहने दे. 
तू था क्या? 
मैंने तुझको क्या से क्या बना दिया, पैग़म्बर का बेटा, 
हम दोनों का काम यूँ ही चलता रहेगा, मान जा,
ज़ैद न माना तो न माना, 
बोला तब मैं नादान था, ऐमन आपकी लौंडी थी जिस पर आप का हक़ यूँ भी था मगर ज़ैनब मेरी बीवी और आप की बहू है,
आप पर आप कि पैग़मबरीक्या कुछ कहती है?
मुहम्मद की ये कारस्तानी समाज में सड़ी हुई 
मछली की बदबू की तरह फैली. 
औरतें तआना ज़न हुईं कि 
बनते हैं अल्लाह के रसूल और अपनी बहू के साथ करते हैं मुँह काला. 
अपने हाथ से चाल निकलते देख कर, 
ढीठ मुहम्मद ने अल्लाह और अपने जोकर के पत्ते जिब्रील का सहारा लिया, एलान किया कि ज़ैनब मेरी बीवी है, 
मेरा इसके साथ निकाह हुवा है, 
निकाह अल्लाह ने पढ़ाया है और गवाही जिब्रील ने दी थी,
अपने छल बल से मुहम्मद ने समाज से अपनी अय्यारी मनवा लिया. 
उस वक़्त का समाज था ही क्या? रोटियों को मोहताज, 
उसकी बला से मुहम्मद की सेना उनको रोटी तो दे रही है. 
ओलिमा ने तब से लेकर आज तक इस घृणित वाक़ेए की 
कहानियों पर कहानियाँ गढ़ते फिर रहे है, 
इसी लिए मैं इन्हें अपनी माँ के ख़सम कहता हूँ. 
दर अस्ल इन बे ज़मीरों को अपनी माँ का ख़सम ही नहीं बल्कि 
अपनी बहन और बेटियों के भी ख़सम कहना चाहिए.   .
देखिए कि इस घिनावने आमाल के तहत, 
"कुरआने-नापाक" कैसे कैसे गिरगिट के रंग बदलता है - - -

"ऐ नबी अल्लाह से डरते रहिए और काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों का कहना न मानिए. बेशक अल्लाह बड़ी इल्म वाला और हिकमत वाला है,"
सूरह अहज़ाब - 33 आयत (1)

बने हुए नबी लोगों को अल्लाह से डराते हैं क्यूँकि यही हवाई अल्लाह उनको बचाने का ढाल है. मुसलमान हुए लोगों को भड़काते हैं कि वह उनके मुख़ालिफ़ों से भिड़े रहें और ये समाज और ख़ुद अपने घर में पापड़ बेलते रहें.

"अल्लाह ने किसी के सीने में दो दिल नहीं बनाए, और तुम्हारी इन बीवियों से जिनसे तुम इज़हार कर लेते हो, तुम्हारी माँ नहीं बना दिया और तुम्हारे मुँह बोले बेटे को सच मुच का तुम्हारा बेटा नहीं बना दिया. ये सिर्फ़ तुम्हारे मुँह से कहने की बात है. और अल्लाह हक़ बात फ़रमाता है और वही सीधा रास्ता बतलाता है,"
सूरह अहज़ाब - 33 आयत  (4)   

इस वाक़ेए की आग मुहम्मद के घर तक पहुँची थी. 
कई बीवियाँ थीं, कई घर थे, बीवियों से आपस में तल्ख़ कलामी हुई थी. 
इन्हें रसूल धमका रहे हैं. 
जिस बच्चे को मजमें में अल्लाह को गवाह बना कर अपना बेटा बनाया था, 
उसे अब ठुकरा रहे हैं. 
मुंह से निकली हुई बात की कोई अहमियत ही न हुई, 
जैसे बात पिछवाड़े से निकला हुवा धुवाँ हो. 
उम्मत को ज़िना की सज़ा सौ कोड़े और 
अपने ज़िना पर अल्लाह का सहारा लेते हैं.
दर अस्ल मुहम्मद ताक़त वर गुंडे बन चुके थे, लोग उनसे इतना डरते थे कि हाथ जोड़ कर उनको "परवर दिगार" कहते और इल्तेजा करते. 
ये बातें  क़ुरआन में अयाँ है. आगे देखिएगा.

"तुम इनको उनके बापों की तरफ़ मंसूब किया करो. ये अल्लाह के नज़दीक रासती की बात है और अगर तुम उनके बापों को न जानते हो तो वह तुम्हारे दीन के भाई हैं और तुम्हारे दोस्त हैं और तुम को इसमें कुछ भूल चूक हो जाए तो इस पर तुम को कोई गुनाह नहीं, लेकिन हाँ! जो दिल से इरादा करके करो और अल्लाह तअला ग़फूरुर रहीम है."
सूरह अहज़ाब - 33 आयत (5)

इस आयत को दस बार पढ़ कर समझने की कोशिश करें कि क्या मुहम्मद ख़ुद इस में अल्लाह नज़र नहीं आते?
बने हुए अल्लाह के रसूल अपने आप को समझाने की बजाए अपनी उम्मत को समझाते हैं कि इस तरह का बोला हुवा रिश्ता कोई अहमियत नहीं रखता. 
शख़्स का गर बाप है तो उसको उसी के बाप के नाम से मंसूब करो. 
किसी और के बाप से नहीं. 
मुहम्मद जो ग़लती कर चुके हैं उसके लिए उनके पास उनका ग़ुलाम "ग़फूरुर रहीम" है. 
इस तरह ये जाबिर शख़्स सदियों से चले आ रहे इंसानी रिश्तों को तार तार कर रहा है.
औलादे नरीना से महरूम मुहम्मद ने ज़ैद जैसा क़ीमती फ़रमा बरदार औलाद को खो दिया. जज़बाती ज़ैद जिसने ख़दीजा और मुहम्मद को अपने माँ बाप पर तरजीह दी, सीधा इतना की मुहम्मद के कहने पर उसने मुहम्मद की हब्शी बाँदी से निकाह कर लिया, जो की उम्र दराज़ सियाह फ़ाम थी. 
मुसलमानों! 
ऐसे शख़्स को मोह्सिने इंसानियत कहते हो, 
ये तुम्हारी बद क़िसमती है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

2 comments:

  1. " मदीने की दास्तान ए बेगैरत " ही पैगम्बर साहब की हकीकी सीरत है । वह एक जालिम , जाबिर , और बेरहम इन्सान थे । सच बोलने वालों को बद तरीन गालियों से नवाजते थे । कुछ गालियां कुरान में मौजूद हैं ,,तब्बा ,उतुल ,जनीम ,हम्माजिम-मश्शाइम-बि-नमीम ,,अफ्फाकिन असीम ,,मिस्लुल हिमार यहमिलु अस्फारा ,, जैसी गालियों की तिलावत में सवाब और जन्नत है । मुसलमान यह गालियां पढकर अपने मुर्दों को बख्शते है । नमाज में ऐसी वाहियात आयतों की तिलावत का ही असर है कि अक्सर मुसलमान दौरान ए गुफ्तगू एक दूसरे को गाली देने के आदी हो चुके हैं । ऐसी गालियाों का खालिक मेह्सिने इन्सानियत ,, या रह्मतुल लिल्आल्मीन कैसे हो सकता है ।

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  2. शुक्रया मेहरबान . मज़ीद मालूमात दिया.

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