Friday 30 November 2018

सूरह हा मीम सजदा -41 - سورتہ حا میم السجدہ क़िस्त 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह हा मीम सजदा -41 - سورتہ حا میم السجدہ
क़िस्त 2  

ज़ालिम अल्लाह क़ुरआन में कहता है - - - 
"तुम अपने काले करतूत करते वक़्त ये तो न करते थे कि अपने कान आँख और खाल से अपनी हरकत छुपा सकते. लेकिन तुम ज़्यादः तर इस गुमान में रहे कि वह बहुत कुछ जो तुम करते रहे अल्लाह को मालूम नहीं."
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (22)
ए मुहम्मद तेरे अल्लाह ने शर्म से मुँह छुपा लिया था जब तू अपनी बहू जैनब के साथ काले करतूत कर रहा था ? 

"और हम ने इसके लिए कुछ साथ रहने वाले शयातीन मुक़र्रर कर रखे थे सो इन्हों ने इनके अगले पिछले आमाल इनकी नज़र में मुस्तःसिन कर रखे थे और इनके लिए भी अल्लाह का कौल पूरा होके रहा.जो इनके पहले जिन और इंसान हो गुज़रे है बेशक वह भी ख़सारे में रहे."
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (25)

यह आयत मेरे क़ौल की सदाक़त बयान करती है कि अल्लाह और शैतान आपस में भाई भाई हैं और दोनों एक हैं. 
जब अल्लाह ही शैतान से काम कराता है तो इंसान दो तो तरफ़ा मार झेल रहा है. मुहम्मद एक बेवक़ूफ़ साज़िशी का नाम है, 
जिसे नादान मुसलमान समझ नहीं पाते.

"और कहते हैं इस क़ुरआन को सुनो मत और इसके बीच ही शोर कर दिया करो. ऐसे काफ़िरों को हम बड़ा सख़्त मज़ा चखाएंगे और उनके बुरे कामों का भर पूर सज़ा उनको देंगे,"
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (26-27)

मुहम्मद की असली हालत ये सूरह बतला रही है कि किस क़दर लाख़ैरे और बेहया ज़ात थी उनकी. जाहिलों की पुश्त पनाही उसके बाद माले ग़नीमत की लालच से ये जिहालत की आयतें इबादत की बन गईं .

"और मिन जुमला इसकी निशानियों में एक ये है कि तू ज़मीन को देखता है कि दबी दबी पड़ी है, फिर जब हम पानी बरसाते हैं तो ये उभरती और फूलती है, हमने इस ज़मीन को ज़िंदा कर दिया वही मुर्दों को ज़िंदा करेगा. बे शक वह हर चीज़ पर क़ादिर है."
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (29)

ज़मीन का मुशाहिदा न किसानों के लिए किया न मज़दूरों के लिए, 
जिनका तअल्लुक़ ज़मीन से है. 
अपने लाल बुझककड़ी दिमाग से इंसानों की फ़सल ज़मीन से उगा रहे हैं.

"और ये बड़ी बा वक़अत किताब है जिसमें ग़ैर वाकई बात न आगे से आ सकती है न इसके पीछे की तरफ़ से. ये अल्लाह हकीम महमूद की तरफ़ से नाज़िल किया गया है और अगर हम इसे अजमी  क़ुरआन बनाते तो यूँ कहते कि इसकी आयतें साफ़ साफ़ क्यूँ बयान नहीं की गईं. ये क्या बात है कि अजमी क़ुरआन और अरबी रसूल ? आप कह दीजिए कि ये क़ुरआन ईमान वालों के लिए राह नुमा और शिफ़ा है. और जो ईमान नहीं लाते उनके लिए डाट लगा दी गई है."
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (41-44) 

बार उम्मी अपना तकिया कलाम क़ुरआन में दोहराते हैं 
"न आगे से आ सकती है न इसके पीछे की तरफ़ से." 
अल्लाह का नया नाम किसी तालीम याफ़्ता ने सुझाया 
"अल्लाह हकीम महमूद" 
अस्ल में क़ुरआन तौरेत और यहूदियत की चोरी है मगर इसमें झूट और जिहालत की आमेज़िश कर दी गई.
मालूम हो कि जब उस्मान ग़नी क़ुरआन को तरतीब देने पर आए तो इसके आगे से, पीछे से,ऊपर से और नीचे से 50% आयतें निकल कर कूड़ेदान में डाल दी गईं थी. 
कि आप की आयतें इन्तेहाई दर्जे हिमाक़त की थी और कराहियत की भी थीं. 
अरबी और अजमी की बातें कितनी झोलदार हैं.
कितना मामूली फ़िक्र का रसूल है जो कहता है 
"जो ईमान नहीं लाते उनके लिए डाट लगा दी गई है."

"बहुत जल्द हम अपनी निशानियाँ उनके चारो तरफ़ दिखलाएँगे और ख़ुद इनके अन्दर भी, यहाँ तक कि इनके लिए ये इक़रार किए बग़ैर कोई चारा न होगा कि ये  क़ुरआन हक़ है. क्या तुम्हारे लिए ये काफ़ी नहीं कि तुम्हारा परवर दिगार हर हर चीज़ पर ख़ुद गवाह है. आगाह हो जाओ कि इसने हर चीज़ को अपने घेरे में ले रखा है."
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (53-54)  
पहली बार मुहम्मद डरा धमका नहीं रहे बल्कि आगाह कर रहे हैं मगर एक झूट के साथ. क़ुदरत की निशानियाँ तो चारो तरफ़ रौशन हैं जो इन्हें नज़र नहीं आतीं, 
नज़र कुछ आता है तो किज़्ब और झूट.    
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 29 November 2018

Hindu Dharm Darshan 251


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा.(55)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>जो व्यक्ति प्रकृति जीव तथा प्रकृति के गुणों को अंतः क्रिया से संबंधित इस विचार धारा को समझ लेता है, उसे मुक्ति की प्राप्ति सुनिश्चित है. 
उसकी वर्तमान स्थिति चाहे जैसी हो, 
यहाँ पर उसका पुनर जन्म नहीं होगा. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -13   श्लोक -24  

*अधूरा सत्य . यहाँ तक तो ठीक है कि जो व्यक्ति प्रकृति जीव तथा प्रकृति के गुणों को अंतः क्रिया से संबंधित इस विचार धारा को समझ लेता है, उसे मुक्ति की प्राप्ति सुनिश्चित है. उसकी वर्तमान स्थिति चाहे जैसी हो, 
इंसान इतना समझदार हो जाए तो ज़िन्दगी की तमाम हकीक़तें अफसाना ही तो होती हैं, जो जीवन में घटता है, हम उसके गवाह मात्र हो जाएँ तो समझदारी है, 
ग़ैर ज़रूरी अशांति से मुक्त हो सकते हैं. 
मगर यह पुनरजन्म अजीब मंतिक है जिसे हिन्दू धर्म गढे हुए है. 
पुनरजन्म पंडो का कथा श्रोत है. 
न पुनरजन्म होता हैं न पूर्व जन्म. 
बेटा इंसान का पुनरजन्म हैं तो बाप उसका पूर्व जन्म. 
हर जानदार का यही सच है, बाक़ी सब झूट और मिथ्य.  

और क़ुरआन कहता है - - - 
>ऐसे कुरान से जो मुँह फेरेगा वह रहे रास्त पा जायगा और उसकी ये दुन्या संवर जायगी. वह मरने के बाद अबदी नींद सो सकेगा कि उसने अपनी नस्लों को इस इस्लामी क़ैद खाने से रिहा करा लिया.
रूरह ताहा २० _ आयत (१०१-११२)

इंसान को और इस दुन्या की तमाम मख्लूक़ को ज़िन्दगी सिर्फ एक मिलती है, सभी अपने अपने बीज इस धरती पर बोकर चले जाते हैं और उनका अगला जनम होता है उनकी नसले और पूर्व जन्म हैं उनके बुज़ुर्ग. साफ़ साफ़ जो आप को दिखाई देता है, वही सच है, बाकी सब किज़्ब और मिथ्य है. कुदरत जिसके हम सभी बन्दे है, आइना की तरह साफ़ सुथरी है, जिसमे कोई भी अपनी शक्ल देख सकता है. इस आईने पर मुहम्मद ने गलाज़त पोत दिया है, आप मुतमईन होकर अपनी ज़िन्दगी को साकार करिए, इस अज्म के साथ कि इंसान का ईमान ए हाक़ीकी ही सच्चा ईमन है, इस्लाम नहीं. इस कुदरत की दुन्या में आए हैं तो मोमिन बन कर ज़िन्दगी गुज़ारिए,आकबत की सुबुक दोशी के साथ.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 28 November 2018

सूरह हा मीम सजदा -41 - سورتہ حا میم السجدہ

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह हा मीम सजदा -41 - سورتہ حا میم السجدہ

क़िस्त 1 

 शुरू करिए शैतानुर्रज़ीम  के नाम से - - -    
"हा मीम"
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (1)
जी हाँ! यह भी एक बात कही है अल्लाह ने, जिसे आप समझ नहीं पाएंगे. 
जो बात अल्लाह की आपके समझ में आती हैं वह भी कौन सी बेहतर बात है. ज़िन्दगी को कौन सा मज़ा देती हैं.

"ये कलाम रहमान और रहीम की तरफ़ से नाज़िल किया जाता है."
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (2)
मुहम्मद के जेहन में पहली बार रहमान और रहीम नाज़िल हुए हैं 
यही बात हिदुस्तानी रवा दारी में जब कही जाती है 
तो राम रहीम हो जाती है .

"बशारत देने वाला और डर सुनाने वाला और वह लोग सुनते ही नहीं, और मुँह फेर कर चले जाते हैं .''
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (4)
जो आयतें ज़िन्दगी को मुर्दनी बनाएँ उनको कौन सुनना गवारा करेगा? 
जब तक कि इस्लामी तलवार सर पर न हो. 
हम धीरे धीरे कोफ़्त को सुनने के आदी हो गए हैं, वह भी ज़बाने ग़ैर में. 
ये आयतें बशारत नहीं खबासत और कराहियत देती हैं 
अगर अपनी ज़बान में इसका इल्म हो, इसका ख़ालिस तर्जुमा हो.

"और कहते हैं कि जिस बात की तरफ़ आप हमें दावत देते हो हमारे दिल में उस के लिए कोई जगह नहीं और हम ने अपने कान भी बंद कर लिए, आप के और हमारे बीच पर्दा पड़ गया है, हमारी समझ में कुछ नहीं आता, बस तुम अपना काम करो और हम अपना काम जारी रखेंगे."
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (5)
ये बातें लोग उल्टा मुहम्मद के मुँह पर तअने के तौर पर वापस मारते हैं. 
अल्लाह की आयतें बार बार दोहराई जाती हैं कि ये काफ़िर समझने वाले नहीं. हमने इनके कानों में डाट लगा दी कई और आँखों पर पर्दा डाल दिया है. सुम्मुम, बुक्मुम फ़हुम लायारजऊन. है, 
जिसे बार बार वह क़ुरआन में गाया करते है.

"सुनो! मैं भी तुम्हारी तरह ही एक बशर हूँ, मुझ पर ये वह्यी नाज़िल होती है कि तुम्हारा माबूद एक ही माबूद है सो इसकी तरफ़ सीध बाँध लो और इससे माफ़ी माँगो, वर्ना शिर्क करने वालों की बड़ी बर्बादी होगी."
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (6)
ख़ुदा न करे कि कोई बशर तुम जैसा मक्कार दूसरा हो. 
ये मक्र भरी तुम्हारी वहियाँ इस धरती के करोड़ों इंसानों का ख़ून पी चुकी हैं, फिर भी तुम्हारे अल्लाह की प्यास अभी बुझी नहीं.

"और उसने ज़मीन में उसके ऊपर पहाड़ बना दिए हैं,
और उसमें फ़ायदे की चीज़ रख दीं,
और इसमें इसकी गिज़ाएँ तजवीज़ कर दीं.
चार दिन में पूरे हैं, पूछने वालों के लिए.
फिर आसमान की तरफ़ तवज्जो फ़रमाई और वह धुवाँ सा था,
सो इससे और ज़मीन से फ़रमाया कि तुम दोनों ख़ुशी से आओ या ज़बरदस्ती से.
दोनों ने अर्ज़ किया हम दोनों हाज़िर हैं,
सो दो रोज़ में इसके सात आसमान बनाए और हर आसमान में इसके मुताबिक़ अपना हुक्म भेज दिया और हमने इस क़रीब वाले आसमान को सितारों से ज़ीनत दी और हिफाज़त दी.
ये तजवीज़ है ज़बरदस्त वाक़िफ़ ए कुल की."
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (10-12) 

हर जुमले मुहम्मद की मूर्खता का बख़ान करते हैं - -
तौरेती इलाही छ दिन में दुनिया की तकमील करता जिसकी फूहड़ नक़ल उम्मी ने की "चार दिन में पूरे हैं, पूछने वालों के लिए.'' 
आसमान धुवाँ था तो ज़मीन क्या थी? और कहाँ थी? कि अल्लाह उनको धमका रहा है किसी उजड पहेलवान की तरह, 
"सो इससे और ज़मीन से फ़रमाया कि तुम दोनों ख़ुशी से आओ या ज़बरदस्ती से."
दोनों भाई बहनों से से अर्ज़ करवा रहा है उम्मी .
"दोनों ने अर्ज़ किया हम दोनों हाज़िर हैं, "
अपने अल्लाह का नया नाम तराशते हुए कहता है,"वाक़िफ़ ए कुल'' 
किसी ने सुझा दिया होगा कि उसका ये नाम दो. 
नाम भर रखने से क्या फ़ायदा, जब पूरा मज़मून ही गुड गोबर हो.

"उनसे कह दीजिए कि मैं तुमको ऐसे आफ़त से डरता हूँ जैसे आद ओ सुमूद पर आफ़त आई थी जब कि इनके पास इनके आगे से भी इनके पीछे से भी पैग़ामबर आए थे."
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (13)
दुन्या में लाखों हुक्मरान आए हैं आदिलो-मरदूद, मगर मुहम्मदी अल्लाह को दस पाँच नाम ही याद हैं जिन्हें बार बार दोहराता है.

"जिस दिन अल्लाह के दुश्मन दोज़ख़ की तरफ़ जमा कर के ले जाए जाएंगे, यहाँ तक कि जब इसके क़रीब आ जाएंगे तो इन के कान, इनकी आँखें और इनकी खालें इन पर इनके आमाल की गवाही देंगे. और उस वक़्त वह लोग अपने अअज़ा से कहेगे तुमने हमारे ख़िलाफ़ गवाही क्यों दिया ? वह कहेंगे कि अल्लाह ने हमें गोयाई दी, जिसने हर चीज़ को गोयाई दी."
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (19-21) 
ए रसूल तेरा अल्लाह  चालबाज़ है, ज़ालिम है, क़ह्हार है, अय्यार है, मक्कार है और मुन्तक़िम है जैसा कि तूने कई बार बतलाया तो उसे इन बनाए गए गवाहों की क्या ज़रुरत है?

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 27 November 2018

Hindu Dharm Darshan 250



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (54)
भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
> प्रक्रति तथा जीवों को अनादि समझना चाहिए. 
उनके विकार तथा गुण प्रकृतिजन्य हैं.
>>इस प्रकार जीव प्रकृति के तीनों गुणों का भोग करता हुवा 
प्रकृति में ही जीवन बिताता है. 
यह उस प्रकृति के साथ उसकी संगति के कारण है. 
इस तरह उसे उत्तम तथा अधम योनियाँ मिलती रहती हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -13   श्लोक - 20 -22 
*कभी कभी मन तरंग वास्तविकता को स्वीकार ही कर लेता है, 
हज़ार उसका मन पक्ष पाती हो. 
गीता के  यह श्लोक पूरी गीता की कृष्ण भक्ति को कूड़े दान में फेंकता है, 
भले ही गीता पक्ष  कोई " तात्पर्य " परस्तुत करता हो.  
श्लोक के इसी विन्दु को विज्ञान मानता है जो परम सत्य है. 
हम सभी जीवधारी इस "प्रकृतिजन्य" पर आधारित हैं. 
धर्मो और धर्म ग्रंथों ने केवल मानव को फिसलन में डाल दिया है. 
या यह कहा जा सकता है कि मानव स्वभाव ही फिसलन को पसंद करता है.
और क़ुरआन कहता है - - - 
"हमने कुरान को आप पर इस लिए नहीं उतरा कि आप तकलीफ उठाएं बल्कि ऐसे शख्स के नसीहत के लए उतारा है कि जो अल्लाह से डरता हो" 
सूरह ताहा २० आयत २-३ 
ऐ अल्लाह ! तू अगर वाकई है तो सच बोल तुझे इंसान को डराना भला क्यूं अचछा लगता है ?क्या मज़ा मज़ा आता है कि तेरे नाम से लोग थरथरएं ? गर बन्दे सालेह अमल और इंसानी क़द्रों का पालन करें जिससे कि इंसानियत का हक अदा होता हो तो तेरा क्या नुकसान है? तू इनके लिए दोज्खें तैयार किए बैठा है, तू सबका अल्लाह है या कोई दूसरी शय ? 
तेरा रसूल लोगों पर ज़ुल्म ढाने पर आमादा रहता है. तुम दोनों मिलकर इंसानियत को बेचैन किए हुए हो. 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 26 November 2018

सूरह मोमिन/ग़ाफ़िर-40 -سورتہ المومنक़िस्त 3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह मोमिन/ग़ाफ़िर-40 -سورتہ المومن
(क़िस्त  3) 

 देखिए कि बादशाह फ़िरओन के दरबार में मुहम्मदी अल्लाह क्या क्या नाटक खेल रहा है - - -

"दरबारी वज़ीर मोमिन ने अपनी तक़रीर जारी रखते हुए कहा कि ऐ बिरादराने क़ौम  मुझे डर है कि बड़ी बड़ी क़ौमों जैसी बरबादी का दिन तुम पर भी आ जाएगा, जैसा कि क़ौम नूह, क़ौम आद, और क़ौम सुमूद वालों का हाल बना और उसके बाद भी बहुत से लोग बरबाद हो चुके, हालांकि अल्लाह अपने बन्दों पर ज़ुल्म करने का इरादा नहीं रखता. ऐ बिरादराने क़ौम मुझको तुम पर एक ऐसे दिन के आ पड़ने का खौ़फ़ है जब बहुत चीख पुकार करोगे. वह दिन ऐसा होगा कि पीठ फेर कर भागोगे मगर अल्लाह से बचाने वाला तुम को कहीं भी न मिल सकेगा. याद रखो कि जिसे अल्लाह गुमराही में पड़ा रहने दे तो उसको राह पर कोई नहीं ला सकता."
सूरह मोमिन 40 आयत (30-33)

आसानी से समझा जा सकता है कि आयतें मुहम्मदी मक्र बयान करती हैं. 
वह दरबारी मोमिन की आड़ में अपनी बात कर रहे है.

"फ़िरऔन बोला : ऐ हामान! मेरे लिए एक ऊँची इमारत बनाओ ताकि मैं ऊपर के रास्तों पर पहुँच कर देख सकूँ. आसमानों के रस्ते पर जाना चाहता हूँ, ताकि मूसा के माबूद को झाँक कर देख लूं. मैं तो इसे झूटा समझता हूँ. फ़िरऔन की ऐसी बुरी हरकत अपनी निगाह में बहुत अच्छी मालूम पड़ती थी, जिसके सबब सही रस्ते से उसको रोका गया और फ़िरऔन की हर तदबीर बेअसर और बेकार साबित हुई."
सूरह मोमिन 40 आयत (40-42)

मुहम्मदी अल्लाह अपनी ज़बान और कलाम का हक़ तक नहीं अदा कर पा रहा, जिसे मुसलमान अल्लाह का कलाम कहते हैं. इसे तमाम उम्र दोहराते रहते हैं.
कहता है - - -
"ताकि मैं ऊपर के रास्तों पर पहुँच कर देख सकूँ. आसमानों के रस्ते पर जाना चाहता हूँ, ताकि मूसा के माबूद को झाँक कर देख लूं."
 ऐसे गाऊदी अल्लाह को मुसलमान ही गले उतार सकते हैं.

मोमिन वज़ीर कहता  है - - -
"मेरी बात बहुत जल्द तुम को याद आकर रहेगी. तब बहुत पछताओगे अब मैं अपने मुआमले अल्लाह के सुपुर्द करता हूँ जो बन्दों को देख रहा है. अल्लाह ने उस मोमिन को उनके क़रीब के चक्कर से बचा लिया और अज़ाब ने आले फ़िरऔन पर बुरी तरह घेरा डाल दिया."


सूरह मोमिन 40 आयत (38-45)
ऐसे अल्लाह के चक्कर में मुसलमान क़ौम फंसी हुई है.
मुसलमानों! क्या बिकुल नहीं समझ पाते सच्चाई से तुम्हें परहेज़ है?

"मरने के बाद इन्हें सुब्ह ओ शाम आग पर पेश किया जाता है और जिस दिन क़यामत क़ायम होगी, हुक्म होगा कि फ़िरऔन और उसके साथ वालों को सख़्त अज़ाब में दाख़िल करो. भयानक होगा वह मंज़र जब आग में गिरने के बाद ये लोग आपस में झगड़ रहे होंगे. तब दबा कर रक्खे गए लोग अपने बड़ों से कहेंगे, तुम्हारे कहने पर चलते थे , फिर क्या तुम मुझ पर से इस आग के अज़ाब को कुछ कम करा सकोगे? बड़े कहेंगे हमको तुमको सभी को इस जहन्नम में पड़े रहना है कि अल्लाह अपने बन्दों के दरमियान फैसला कर चुका है. दोज़खी लोग दोज़ख़ के दरोगा से कहेंगे, अपने रब से दुआ करो कि किसी एक दिन के वास्ते तो हम को इस अज़ाब से हल्का करदे . जवाब में दोज़ख़ के अफ़सरान बोलेंगे कि क्या तुम्हारे पास तुम्हारे रसूल इस अज़ाब की चेतावनी देने नहीं आए ? बोलेंगे कि हाँ ! वह तो बराबर हमको डराते रहे . जहन्नम के अफ़सर कहेंगे कि बस अब बात ख़त्म हुई, तुम ख़ुद दुआ कर लो और काफ़िरों की दुआ क़तई क़ुबूल नहीं होगी." 
सूरह मोमिन 40 आयत (47-50)

"मरने के बाद इन्हें सुब्ह ओ शाम आग पर पेश किया जाता है"
ताकि उन्हें ताज़ा रखा जा सके ?
"जब आग में गिरने के बाद ये लोग आपस में झगड़ रहे होंगे."
गोया गंदे पानी में गिरा दिए गए हों.
इस्लाम अपने बड़े बुजुर्गों की बातों को न मानने का पैग़ाम दे रहा है.
ये आयतें मुसलमानों की घुट्टी में पिलाई हुई है, इन हराम जादे ओलिमा ने 
जिसे कि एक बच्चा भी तस्लीम करने में बेजारी महसूस करे.

"कयामत आकर रहेगी लेकिन बहुत से लोग ऐसी बेशक ख़बर पर भी यक़ीन नहीं करते."
"ऐसी बेशक ख़बर पर भी यक़ीन नहीं करते."
उम्मी की बेशक ख़बरें मुसलमानों का ही यक़ीन हो सकती हैं.

"अल्लाह ने तुम्हारे लिए रात बनाया ताकि तुम इसमें सुकून और राहत हासिल कर सको और दिन इस लिए कि तुमको अच्छी तरह दिखाई दे, 
बे शक अल्लाह तो लोगों पर फ़ज़ल फ़रमाने वाला है लेकिन बहुत से लोग शुक्र ही नहीं करते."
मुसलमानों! 
रात और दिन ज़मीन पर सूरज की रौशनी है जो हिस्सा सूरज के सामने रहता है वहाँ दिन होता है, बाक़ी में रात, इतनी तालीम तो आ ही गई होगी. 
अब देखने के लिए दिन की ज़रुरत नहीं पड़ती इसे भी तुम रौशन हो चुके हो. अपने दिमागों को भी रौशन करो. 
मुहम्मदी अल्लाह के दुश्मन क़ौमों ने रातों को भी दिन से ज़्यादः रौशन कर लिया है. मुहम्मदी अल्लाह की हर बात ग़लत साबित हो चुकी है. 
मुसलमान झूट के अंधेरों में मुब्तिला है,

"वही तो है जो तुम्हारी पैदाइश मिटटी से करता है, फिर उसे फुटकी बूँद बना देता है, फिर उसको लहू के लोथड़े यानी लहू की फुटकी में तब्दील फ़रमाता है, फिर तुमको बच्चा बना कर बाहर निकालता है, फिर तुम हो कि अपनी जवानी तक पहुँचाए जाते हो, फिर बहुत बूढ़े भी हो जाते हो. कुछ तो अपना वक़्त हो जाने पर जवानी या बुढ़ापा के पहले ही मर जाते हैं, और बाक़ी बहुत से अपने अपने वक़्त तक बराबर पहुँचते रहते हैं. इन हालात को ध्यान में रख कर अक़्ल  से काम लो." 
सूरह मोमिन 40 आयत (59-67)

अक़्ल  से काम लो और उम्मी की जनरल नालेज पर तवज्जो दो. 
इंसान की पैदाइश के सिलसिले में ये उम्मी का गया हुवा ये नया राग है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 24 November 2018

Hindu Dharm Darshan 249



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (53)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -

>मुझ भगवान् में अपने चित्त को स्थिर करो
और अपनी सारी  बुद्धि मुझ में लगाओ.
इस प्रकार तुम निःसंदेह मुझ में वास करोगे.

>>हे अर्जुन ! हे धनञ्जय !!
 यदि तुम अपने चित को अविचल भाव से मुझ पर स्थिर नहीं कर सकते 
तो तुम भक्ति योग की विधि-विधानों का पालन करो.
इस प्रकार तुम मुझे प्राप्त करने की चाह पैदा करो. 

>>> यदि तुम यह अभ्यास नहीं कर सकते तो 
घ्यान के अनुशीलन में लग जाओ. 
लेकिन ज्ञान से श्रेष्ट ध्यान है
और ध्यान से भी श्रेष्ट कर्म फलों का परित्याग, 
क्योकि ऐसे त्याग से मनुष्य को मन शान्ति प्राप्त हो सकती है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय - 12  श्लोक -8 -9 -12  

*धार्मिकता मानव मस्तिष्क की दासता चाहती है. 
उसे तरह तरह के प्रलोभन देकर मनाया जाए 
और अगर इस पर भी न पसीजे तो इसे डरा धमका कर 
जैसा कि भगवान् अपने विकराल रूप अर्जुन को दिखलाता है 
कि डर के मारे अर्जुन की हवा निकल जाती है.  
गीता सार को जो प्रसारित और प्रचारित किया जाता है
 वह अलग अलग श्लोकों में वर्णित टुकड़ों का समूह समूह है 
जो अलग अलग संदर्भित है. 
हर टुकड़ा युद्ध को प्रेरित करने के लिए है 
मगर उसे संयुक्त करके कुछ और ही अर्थ विकसित किया गया है.  
आखिर भगवान् अपनी भक्ति के लिए क्यों बेचैन है ? 
कहते हैं कर्म करके फल को भूल जाओ. 
भला क्यों ? 
फल के लिए ही तो मानव कोई काम करता है. 
फल भक्त भूल जाए ताकि इसे भगवान् आसानी से हड़प ले. 
हम बैल हैं ? कि दिन भर हल जोतें और सानी पानी देकर मालिक फसल को भोगे ? यह गीता का घिनावना कार्य क्रम है जिसके असर में मनुवाद ठोस हुवा है 
और मानवता जरजर.
पडोसी चीन में धर्म को अधर्म क़रार दे दिया गया, 
वह भारत से कई गुणा आगे निकल गया है. 
यहाँ आज भी इनके बनाए हुए शूद्र और आदिवासी अथवा मूल निवासी ग़रीबी रेखा से निकल ही नहीं पा रहे. 

और क़ुरआन कहता है - - - 
>मुहम्मदी अल्लाह के दाँव पेंच इस सूरह में मुलाहिज़ा हो - - -
"जो लोग काफ़िर हुए और अल्लाह के रस्ते से रोका, अल्लाह ने इनके अमल को क़ालअदम (निष्क्रीय) कर दिए. और जो ईमान लाए, जो मुहम्मद पर नाज़िल किया गया है, अल्लाह तअला इनके गुनाह इनके ऊपर से उतार देगा और इनकी हालत दुरुस्त रक्खेगा."
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (१-२)

मुहम्मद की पयंबरी भोले भाले इंसानों को ब्लेक मेल कर रही है जो इस बात को मानने के लिए मजबूर कर  रही है कि जो गैर फ़ितरी है. क़ुदरत का क़ानून है कि नेकी और बदी का सिला अमल के हिसाब से तय है,ये  इसके उल्टा बतला रही है कि अल्लाह आपकी नेकियों को आपके खाते से तल्फ़ कर देगा. कैसी बईमान मुहम्मदी अल्लाह की खुदाई है? किस कद्र ये पयंबरी झूट बोलने  पर आमादः है.


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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 23 November 2018

सूरह मोमिन/ग़ाफ़िर-40 -سورتہ المومن क़िस्त 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह मोमिन/ग़ाफ़िर-40 -سورتہ المومن
क़िस्त  2

मुसलमानों! 
तुम अगर अपना झूटा मज़हब इस्लाम को तर्क कर के मोमिन हो जाओ तो तमाम कौमें तुम्हारी पैरवी के लिए आमादा नज़र आएँगी. कौन कमबख़्त ईमान दारी की क़द्र नहीं करेगा? 
माज़ी की तमाम दुन्या लाशऊरी तौर पर मौजूदा दुन्या की हुकूमतों को ईमानदार बनने के लिए कुलबुला रही है, मगर मज़हबी कशमकश इनके आड़े आती है. 
चीन पहला मुल्क है जिसने मज़हबी वबा से छुटकारा पा लिया है नतीजतन वह ज़माने में सुर्ख़रू होता जा रहा है, शायद हम चीन की सच्ची सियासत की पैरवी पर मजबूर हो जाएं.
मोमिन लफ़्ज़ अरबी है, इसके लिए तमाम इंसानियत अरबों की शुक्र गुज़ार है कि इतना पाक साफ़, शुद्ध और लाजवाब लफ़्ज़ दुन्या को उन्हों ने दिया जिसे एक अरब ने ही इस्लाम का नाम देकर इस पर डाका डाला और लूट कर खोखला कर दिया.
मगर इसका असर अभी भी क़ायम है.
ऐसे ही "सेकुलर" लफ्ज़ को हमारे नेताओं ने लूटा है. सेकुलर के मानी हैं "ला मज़हब" होता है, जिसका नया मानी इन्हों ने गढ़ा है 
"सभी मज़हब को लिहाज़ में लाना" 
सियासत दान और मज़हबी लोग ही ग़ैर मोमिन होते हैं, अवाम तो मोम की तरह मोमिन, होती है, हर सांचे में ढल जाती है.

देखिए कि लुटेरा दीन क्या कहता है - - -
"वह लोग कहेंगे कि ए मेरे परवर दिगार! आप ने हमें दो बार मुर्दा रखा और दो बार ज़िन्दगी दी, सो हम अपनी ख़ताओं का इक़रार करते हैं, तो क्या निकलने की कोई सूरत है? फ़रमाएगा हरगिज़ नहीं, इस लिए कि जब एक अकेले अल्लाह से दुआ करने को कहा जाता था, तो तुम ने मुख़्तलिफ़ की थी और अल्लाह के साथ जब किसी दूसरे को शरीक करने को कहा जाता था तो तुम ने क़ुबूल कर लिया, बस आज अल्लाह आली शान जो सब से बड़ा है, उसका हुक्म हो चुका है."
 सूरह मोमिन 40 आयत (11-12)

मुहम्मद ग़लती से कह रहे हैं कि "दो बार मुर्दा रखा" मौत तो एक बार ही आती है - - - ख़ैर ये इंसानी भूल चूक है, कोई क़ुदरत की नहीं, मुहम्मदी अल्लाह न क़ुदरत है न अल्लाह की क़ुदरत.  
कई बार मैं बतला चुका हूँ कि मुहम्मद की ख़सलत ही उनके रचे हुए अल्लाह की हुवा करती है कि वह कितना बे रहेम दिल और ज़ालिम है. 
अपनी तबीअत के मुताबिक़ ही रचा है अल्लाह को. 

"वह रफ़ीउद दर्जात, वह अर्श का मालिक है, वह अपने बन्दों में से ही जिस पर चाहता है, वह्यी यानी अपना हुक्म भेजता है ताकि इज्तेमा के दिन से डराए. जिस दिन सब लोग सामने आ मौजूद होंगे. इनकी बात अल्लाह से छुपी नहीं होगी. आज के रोज़ किसकी हुकूमत होगी, बस अल्लाह की होगी. जो यकता ग़ालिब है. आज हर एक को इसके किए का बदला दिया जायगा, आज ज़ुल्म न होगा, अल्लाह बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है. और आप लोगों को एक क़रीब आने वाली मुसीबत से डराएँ, जिस रोज़ कलेजे मुँह को आ जाएँगे, घुट घुट जाएँगे. जालिमों का कोई दोस्त होगा न सिफ़ारसी."
सूरह मोमिन 40 आयत (15-18)

उम्मी मुहम्मद कहते है "आज के रोज़ किसकी हुकूमत होगी, बस अल्लाह की होगी" जैसे बाक़ी दिनों में शैतान की हुकूमत रहती हो. 
क़यामत का हर मंज़र नामा जुदा जुदा होता है, 
यह उनके झूट की क़िस्में हैं.

"और फ़िरओन ने कहा मुझको छोड़ दो मैं मूसा को क़त्ल कर डालूँगा, उसको चाहिए कि अपने रब को पुकारे. हमको अंदेशा है कि वह तुम्हारा दीन बदल डालेगा या मुल्क में कोई ख़राबी फैला दे.और मूसा ने कहा मैं अपने और तुम्हारे रब की पनाह लेता हूँ और हर ख़र दिमाग़ शख़्स से जो रोज़े हिसाब पर यक़ीन नहीं रखता "
सूरह मोमिन 40 आयत (26-27)

जाह ओ जलाल वाला बादशाह कहता है मुझ को छोड़ दो? 
जैसे उसको किसी ने पकड़ रक्खा हो. 
बादशाह के एक इशारे से मूसा की गर्दन उड़ाई जा सकती थी. 
बेवक़ूफ़ ख़ुद साख़्ता रसूल को इन बातों की तमाज़त कहाँ थी. 
वह उस ज़माने में मूसा से इस्लाम की तबलीग़ कराता है. 
और इस वक़्त की उसकी उम्मत को क्या कहा जाए, 
उसने तो अक़ीदत के नाम पर जिहालत ख़रीद रख्खी है.
सानेहा ये है कि मुसलमान इन बातों को समझने की कोशिश नहीं करता. फ़िरओन की ज़िन्दगी के इन्हीं बातों को अल्लाह ने कान लगा कर सुना और मुहम्मद के कान में जिब्रील से फुसकी करवाया.

"और एक मोमिन शख़्स जो फ़िरऔन के ख़ानदान से थे, अपना ईमान पोशीदा रक्खे हुए थे, कहा कि तुम एक शख़्स को इस बात पर क़त्ल करते हो कि वह कहता है मेरा परवर दिगार अल्लाह है, हाँलाकि वह तुम्हारे रब की तरफ़ से दलील लाया है कि अगर वह झूठा है तो उसके झूट का वबाल उसी पर पडेगा और अगर वह सच्चा है तो इसकी पेश ख़बरी के मुताबिक़ तुम पर कोई अज़ाब भी आ सकता है. जान रक्खो कि अल्लाह ऐसे शख़्स को राह नहीं देता जो हद से बढ़ जाने वाला और झूठा हो."
सूरह मोमिन 40 आयत (28)

इस्लाम से दो हज़ार साल पहले ही कोई मोमिन पैदा हो गया था जो ईमान को पोशीदा रक्खे हुए था?
मुहम्मद जो ज़बान पर आता बक जाते उनकी हर ग़लत बात का जवाब ओलिमा ने गढ़ रक्खे हैं. इस बात का जवाब उन्हों ने इस तरह बना रक्खा है कि इस्लाम दीने इब्राहीमी मज़हब है.
उनसे कोई पूछे कि ख़ुद नबी का बाप जहन्नम में क्यूँ जल रहा है जैस कि मुहम्मद ख़ुद कहते हैं कि उनका बाप  जहन्नम रसीदा हुवा.

कलामे दीगराँ - - -
"जो शख़्स दौलत को आबे हयात समझ कर 
तरह तरह के आमाले बद से दौलत हासिल करता है, 
वह बद आमालियों के जाल में फँस जाता है. 
वह बहुत से लोगों की मुख़ालिफ़त और दुश्मनी के नतीजे में 
सब कुछ यहीं गँवा कर जहन्नम रसीदा हो जाता है."
"जैन धर्म" 
इसे कहते हैं कलाम पाक


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 22 November 2018

Hindu Dharm Darshan 248


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (52)

भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
>अतः उठ्ठो ! लड़ने के लिए तैयार हो ओ और यश अर्जित करो. अपने शत्रुओं को जित कर संपन्न राज्य का भोग करो.यह सब मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं और हे सव्यसाची ! तुम तो युद्ध में केवल निमित्त मात्र हो.
द्रोंण, भीष्म,  जयद्रथ, कर्ण और अन्य महँ योद्धा पहले ही मरे जा चुके हैं, अतः तुम उनका वध करो और तनिक भी विचलित न हो ओ. तुम केवल युद्ध करो. युद्ध में तुम अपने शत्रुओं को परास्त करो.  
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -11   श्लोक -33-  34 

*कृष्ण अपना भयानक रूप दिखला कर अर्जुन को फिर युद्ध के लिए वरग़लाते हैं. 
पिछले अध्यायों में ब्रह्मचर्य का उपदेश देते हैं और अब भोग विलास का मश्विरह. 
कहते हैं काम तो मैंने सब का पहले ही तमाम कर दिया है, 
तुम केवल नाम के लिए उनकी हत्या करो. 
अगर बंदा ऐसा करे तो ब्लेक मेलिंग और भगवान् करे तो गीता ?
और क़ुरआन कहता है - - - 
>''और इनमें (जेहाद से गुरेज़ करने वालों) से अगर कोई मर जाए तो उस पर कभी नमाज़ मत पढ़ें, न उसके कब्र पर कभी खड़े होएँ क्यूं कि उसने अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ्र किया और यह हालाते कुफ्र में मरे. हैं''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (८४)
इब्नुल वक़्त (समय के संतान) ओलिमा और नेता यह कहते हुए नहीं थकते कि इस्लाम मेल मोहब्बत, अख्वत और सद भाव सिखलता है, आप देख रहे हैं कि इस्लाम जिन्दा तो जिन्दा मुर्दे से भी नफरत सिखलाता है. कम लोगों को मालूम है कि चौथे खलीफा उस्मान गनी मरने के बाद इसी नफ़रत के शिकार हो गए थे, उनकी लाश तीन दिनों तक सडती रही, बाद में यहूदियों ने अज़ राहे इंसानियत उसको अपने कब्रिस्तान में दफ़न किया। 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 21 November 2018

सूरह मोमिन/ग़ाफ़िर-40 -سورتہ المومن क़िस्त 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह मोमिन/ग़ाफ़िर-40 -سورتہ المومن
क़िस्त  1 

ये सूरह मक्का की है जोकि मुहम्मद की तरकीब, तबलीग़ और तक़रीर से पुर है. वह कुछ डरे हुए से है, उनको अपने ऊपर मंडराते ख़तरे का पता चल चुका है, पेशगी में इब्राहीम और मूसा की गिरफ़्तारी की आयतें गढ़ने लगे हैं. उन पर जो आप बीती होती है वह अगलों की आप बीती बन जाती है. नाक लगी फटने, ख़ैरात लगी बटने,
उस वक़्त लोग उन्हें सुनते और दीवाने की बड़बड़ जानकर नज़र अंदाज़ कर जाते. तअज्जुब आज के लोगों पर है कि लोग उसी बड़बड़ को अल्लाह का कलाम मानने लगे हैं. ख़ैर - - -

"हा मीम"
सूरह मोमिन 40 आयत (1)

अल्लाह का ये छू मंतर, कभी एक आयत (बात) होती है और कभी कभी कोई बात नहीं होती. यहाँ पर ये "हा मीम" एक बात है जो की अल्लाह के हमल में है.

"ये किताब उतारी गई है अल्लाह की तरफ़ से जो ज़बर दस्त है. हर चीज़ का जानने वाला है, गुनाहों को बख़्शने वाला है, और तौबा को क़ुबूल करने वाला है. सख़्त  सज़ा देने वाला और क़ुदरत वाला है. इसके सिवा कोई लायक़े इबादत नहीं है, इसके पास लौट कर जाना है. अल्लाह की इस आयत पर वही लोग झगड़ने लगते हैं जो मुनकिर हैं, सो उनका चलना फिरना आप को शुबहे में न डाले."
सूरह मोमिन 40 आयत (2-4)

अल्लाह कोई ऐसी हस्ती नहीं है जो इंसानी दिल ओ दिमाग़ रखता हो, जो नमाज़ रोज़ा और पूजा पाठ से ख़ुश होता हो या नाराज़. यहाँ तक कि वह रहेम करे या सितम ढाए जाने से भी नावाक़िफ़ है. अभी तक जो पता चला है, हम सब सूरज की उत्पत्ति हैं और उसी में एक दिन लीन हो जाएँगे. हमारे साइंसदान कोशिश में हैं कि नसले इंसानी बच बचा कर तब तक किसी और सय्यारे को आबाद कर ले, मगर हमारे वजूद को फ़िलहाल लाखों साल तक कोई ख़तरा नहीं.

"जो फ़रिश्ते अर्श को उठाए हुए हैं और जो फ़रिश्ते इसके गिर्दा गिर्द हैं और अपने रब की तस्बीह और तमहीद करते रहते हैं और ईमान वालों के लिए इसतेगफ़ार करते रहते है कि ऐ मेरे परवर दिगार इन लोगों को बख़्श दीजिए जिन्हों ने तौबा कर लिया है और उनके माँ बाप बीवी और औलादों में से जो लायक़ हों उनको भी बहिश्तों में दाख़िल कीजिए."
सूरह मोमिन 40 आयत (7-8)

जो फ़रिश्ते अर्श को उठाए हुए है तो उनका पैर किस ज़मीन पर टिकता है? फ़रिश्ते अर्श को उठाए हुए नहीं बल्कि अर्श में लटके अपनी जान की दुआ करने में लगे होंगे. मुहम्मद कितने सख़्त  हैं कि "उनके माँ बाप बीवी और औलादों में से जो लायक़ हों उनको भी बहिश्तों में दाख़िल कीजिए."
अगर इन लोगों ने इस्लाम को क़ुबूल कर लिया हो तभी वह लायक़ हो सकते हैं.

अल्लाह बने मुहम्मद अपनी तबीअत की ग़ममाज़ी यूँ करते हैं - - -
"बेशक जो लोग कुफ़्र की हालत में मर कर आए होंगे, उनको सुना दिया जाएगा जिस तरह आज तुम को अपने रब से नफ़रत  है, इससे कहीं ज़्यादः अल्लाह को तुम से नफ़रत थी जब तुमको दुन्या  में ईमान की तरफ़ दावत दी जाती थी और तुम इसे मानने से इंकार करते थे,"
सूरह मोमिन 40 आयत (10)

ऐसी आयतें बार बार इशारा करती है कि मुहम्मद अंदरसे ख़ुद को ख़ुदा माने हुए थे. इन से बड़ा जहन्नमी और कौन हो सकता है?

कलामे दीगराँ - - -
लीक पुरानी न तजैं, कायर कुटिल कपूत.
लीक पुरानी न रहैं, शायर, सिंह, सपूत.
"कबीर"
इस कहते हैं कलाम पाक
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 20 November 2018

Hindu Dharm Darshan 247



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (51)

अर्जुन हैरान है भगवान् के भगवत को देख कर - - -
>धृष्टराष्ट्र के सारे पुत्र, अपने समस्त सहायक राजाओं सहित 
तथा भीष्म, द्रोण, कर्ण एवं हमारे प्रमुख योद्धा भी आपके विकराल मुंह में प्रवेश कर रहे हैं. उनमें तो कुछ के शिरों को तो मैं आपके दातों में चूर्णित हुवा देख रहा हूँ.

>>जिस प्रकार नदियों की अनेक तरंगें समुद्र में प्रवेश करती हैं, 
उसी प्रकार यह समस्त महान योद्धा आपके प्रज्वलित मुखों में प्रवेश कर रहे हैं.

>>>हे विष्णु ! मैं देखता हूँ कि आप अपने प्रज्वलित मुखों से सभी दिशाओं के लोगों को निंगले जा रहे हैं.
आप सारे ब्रह्माण्ड को अपने तेज से आपूरित करके अपनी विकराल झुलसाती किरणों सहित प्रकट हो रहे हैं.

*भगवान् ने कहा ---समस्त जगतों को विनष्ट करने वाला काल मैं हूँ 
और मैं यहाँ समस्त लोगों का विनाश करने के लिए आया हूँ. 
तुम्हारे (पांडवों के) सिवा दोनों पक्षो के सारे योद्धा मारे जाएँगे. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय - 11  श्लोक - 26-27 -29 -30 -32 

*हिन्दुओ !
 क्या तुम्हारा भगवान् इतना अन्न्याई और पक्ष पाती हुवा करता है? 
गीता ने सारे अवगुण उसमें भर दिए हैं. 
यह तो जिहादियों से भी सौ गुणा जल्लाद है. 
जिहादी सर पे तलवार लेकर खड़ा हो जाता है कि 
"कालिमा पढ़ कर मुसलमान हो जाओ, 
या हमें अपने जीने का हक (जज़िया) अदा करो 
या आखिर शर्त है कि मुझ से मुक़ाबिला करो." 
दो सूरतों में जीवित रहने का हक जिहादी १००% देता है और 
तीसरी में 50%. वह भी अपनी जान की बाज़ी लगा कर. 
यहाँ तो भगवान् अपने और पराय सभी निंगलते जा रहे हैं ?
भीष्म, द्रोण, कर्ण जैसे निर्दोष को भी. 
वह तो भेड़िया नज़र आता है, 
उसके  दातों में यह महान चूर्णित हो रहे हैं. 
मैं तुम्हारी आस्था को चोट नहीं पहुँचाना नहीं चाहता, 
बल्कि तुम्हारी ऐसी आस्था का संहार करना चाहता हूँ. 
मैं चाहता हूँ तुम्हारी पीढियां इन मिथक को धिक्कारें और जीवन तरंग को समझे. जीवन तरंग लौकिक और वैज्ञानिक विचारों में अंगडाई लेती है, 
इन ढोंगियों की रचना तुम्हें सुलाती हैं या फिर कपट सिखलाती हैं.

और क़ुरआन कहता है - - - 
>"ये लोग हैं जिनको अल्लाह तअला ने अपनी रहमत से दूर कर दिया, फिर इनको बहरा कर दिया और फिर इनकी आँखों को अँधा कर दिया तो क्या ये लोग कुरआन में गौर नहीं करते या दिलों में कुफल लग रहे हैं. जो लोग पुश्त फेर कर हट गए बाद इसके कि सीधा रास्ता इनको मालूम हो गया , शैतान ने इनको चक़मा दे दिया और इनको दूर दूर की सुझाई है."
सूरह मुहम्मद - ४७ -पारा २६- आयत (२३-२५)

जब अल्लाह तअला ने उन लोगों को कानों से बहरा और आँखों से अँधा कर दिया और दिलों में क़ुफ्ल डाल दिया तो ये कुरआन की गुमराहियों को कैसे समझ सकते हैं? वैसे मुक़दमा तो उस अल्लाह पर कायम होना चाहिए कि जो अपने मातहतों को अँधा और बहरा करता है और दिलों पर क़ुफ्ल जड़ देता है मगर मुहम्मदी अल्लाह ठहरा जो गलत काम करने का आदी.. शैतान मुहम्मद बनी ए   नव इंसान को चकमा दे गया. की कौम पुश्त दर पुश्त गारों में गर्क़ है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 19 November 2018

सूरह ज़ुमर-39 -سورتہ الزمرक़िस्त -2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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 सूरह ज़ुमर-39 -سورتہ الزمر
क़िस्त 2 

"अल्लाह ने बड़ा उम्दा कलाम नाज़िल फ़रमाया है जो ऐसी किताब है कि बाहम मिलती जुलती है, बारहा दोहराई गयी है. जिस से उन लोगों को जो अपने रब से डरते हैं, बदन काँप  उठते हैं. फिर उनके बदन और दिल अल्लाह की तरफ़ मुतवज्जह हो जाते हैं, ये अल्लाह की हिदायत है, जिसको चाहे इसके ज़रीए हिदायत करता है.और जिसको गुमराह करता है उसका कोई हादी नहीं."
सूरह ज़ुमर 39 आयत (23)

उम्मी ने अपने अल्लम ग़ल्लम किताब को तौरेत, ज़ुबूर और इंजील के बराबर साबित करने की कोशिश की है जिनके मुक़ाबिले में क़ुरआन कहीं ठहरता ही नहीं. 
जब तक मुसलमान इसके फ़रेब में क़ैद रहेंगे दुनिया के ग़ुलाम बने रहेंगे. 
दुनिया बेवक़ूफ़ का फ़ायदा उठती है उसको बेवक़ूफ़ी से छुटकारा नहीं दिलाती.

''हाँ! बेशक तेरे पास मेरी आयतें आई थीं, तूने इन्हें  झुटलाया और तकब्बुर किया और काफ़िरों में शामिल हुवा. आप कह दीजिए कि ए जाहिलो ! क्या फिर भी तुम मुझ से ग़ैर अल्लाह की इबादत करने को कहते हो? और इन लोगों ने अल्लाह की कुछ अज़मत न की, जैसी अज़मत करनी चाहिए थी. हालांकि सारी ज़मीन इसकी मुट्ठी में होगी, क़यामत के दिन और तमाम आसमान लिपटे होंगे इसके दाहिने हाथ में. वह पाक और बरतर है उन के शिर्क से "
सूरह ज़ुमर 39 आयत (59-68)

दुन्या का बद तरीन झूठा नाम निहाद पैग़ामबर अपने जाल में फँसे मुसलमानों कैसे कैसे मक्र से डरा रहा है. 
इसे किसी ताक़त का डर न था, 
अल्लाह तो इसकी मुट्ठी में था. 
तख़रीब का फ़नकार था, मुतफ़न्नी की ज़ेहनी परवाज़ देखे कि कहता है 
"ज़मीन इसकी मुट्ठी में होगी, क़यामत के दिन और तमाम आसमान लिपटे होंगे इसके दाहिने हाथ में." 
क्यूंकि बाएँ हाथ से अपना पिछवाडा धो रहा होगा इसका अल्लाह.

"और सूर में फूँक मार दी जायगी और होश उड़ जाएँगे तमाम ज़मीन और आसमान वालों के, मगर जिसको अल्लाह चाहे. फिर इसमें दोबारा फूँक मार दी जायगी, अचानक सब के सब खड़े हो जाएँगे और देखने लगेंगे और ज़मीन अपने रब के नूर से रौशन हो जाएगी और नामा ए आमाल रख दिया जायगा और उन पर ज़ुल्म न होगा और हर शख़्स को इसके आमाल का पूरा पूरा बदला दिया जायगा. और सबके कामों को ख़ूब जानता है और जो काफ़िर हैं वह जहन्नम की तरफ़ हाँके जाएँगे गिरोह दर गिरोह बना कर, यहाँ तक कि जब दोज़ख़ के पास पहुँचेंगे तो इसके दरवाज़े खोल दिए जाएंगे और इनमें से दोज़ख़ के मुहाफ़िज़ फ़रिश्ते कहेंगे कि क्या तुम्हारे पास तुम ही में से कोई तुम्हारे पैग़ामबर नहीं आए थे? जो लोगों को तुम्हारे रब की आयतें पढ़ पढ़ कर सुनाया करते थे. और तुम को तुम्हारे इन दिनों के आने से डराया करते थे. काफ़िर कहेंगे हाँ आए तो थे मगर अज़ाब का वादा काफ़िरों से पूरा होके रहा. फिर कहा जायगा कि जहन्नम के दरवाज़े में दाख़िल हो जाओ और हमेशा इसी में रहो."
सूरह ज़ुमर 39 आयत (68-72)

क़यामत की ये नई मंज़र कशी है. न कब्रें शक हुईं, न मुर्दे उट्ठे, न कोई हौल न हंगामा आराई. लगता है ज़िन्दों में ही यौम हिसाब है.
सूर की अचानक आवाज़ सुन कर लोग चौंकेंगे, 
उनके कान खड़े हुए तो दोबारा आवाज़ आई, वह ख़ुद खड़े हो गए, 
ज़मीन अपने रब की रौशनी से रौशन हो गई, 
बड़ा ही दिलकश नज़ारा होगा. गवाहों के सामने लोगों के आमाल नामे बांटे जाएँगे, किसी पर कोई ज़ुल्म नहीं हुवा. 
बस काफ़िर दोज़ख़ की जानिब हाँके जाएंगे. 
दोज़ख़ के दरवाज़े पर खड़ा दरोगा उनसे पूछता है, 
अमा यार क्या तुम्हारे पास तुम ही में से कोई तुम्हारे पैग़ामबर नहीं आए थे? 
जो लोगों को तुम्हारे रब की आयतें पढ़ पढ़ कर सुनाया करते थे. 
और तुम को तुम्हारे इन दिनों के आने से डराया करते थे.
काफ़िर कहेंगे आए तो थे एक चूतिया टाईप के, 
उनकी मानता तो मेरी दुन्या भी ख़राब हो जाती.

अगर आप के पास वक़्त है तो पूरी ईमान दारी के साथ, 
फ़ितरत को गवाह बना कर इन क़ुरआनी आयतों का मुतालिआ करें. 
मुतराज्जिम की बैसाखियों का सहारा क़तई न लें, ज़ाहिर है वह उसकी बातें हैं, अल्लाह की नहीं. 
मगर, अगर आप ग़ैर फ़ितरी बातो पर यक़ीन रखते हैं कि 2+2=5 हो सकता है तो आप कोई ज़हमत न करें और अपनी दुन्या में महदूद रहें.
मुसलमानों के लिए इस से बढ़ कर कोई बात नहीं हो सकती कि क़ुरआन को अपनी समझ से पढ़ें और अपने ज़ेहन से समझें. 
जिस क़दर आप समझेंगे, क़ुरआन बस वही है. 
जो दूसरा समझाएगा वह झूट होगा. 
अपने शऊर, अपनी तमाज़त और अपने एहसासात को हाज़िर करके मुहम्मद की तहरीक को परखें. 
आपको इस बात का ख़याल रहे कि आजकी इंसानी क़द्रें क्या हैं, 
साइंसटिफ़िक टुरुथ क्या है. 
मत लिहाज़ करें मस्लेहतों का, सदाक़त के आगे. बहुत जल्द सच्चाइयों की ठोस सतह पर अपने आप को खडा पाएँगे.
आप अगर मुआमले को समझते हैं तो आप हज़ारों में एक हैं, 
अगर आप सच की राह पर गामज़न हुए तो हज़ारों आपके पीछे होंगे. 
इंसान को इन मज़हबी खुराफ़ात से नजात दिलाइए.  

कलामे दीगराँ
"हुकूकुल इबाद, 
ख़ैर ओ ख़ैरात, 
कुवें और तालाबों की तामीर, 
गाय बैल और कुत्ते जैसे फ़ायदे मंद जानवरों का पालन, 
मियाँ और बीवी का एक दूसरे पर यक़ीन, 
अनाज का भरपूर पैदा वार, 
ऐश ओ अय्याशी से दूर, 
पराए माल और पराई औरत पर नज़रे बद नहीं, 
ग़ुस्सा लालच, हसद, चोरी झूट और शराब से दूर रहो. 
मेहनत, सदाक़त और तालीम के क़रीब रहो."
   "ज़र्थुर्ष्ट "
पारसी धर्म
इसे कहते हैं कलाम पाक 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 16 November 2018

सूरह ज़ुमर-39 -سورتہ الزمر क़िस्त -1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह ज़ुमर-39 -سورتہ الزمر
क़िस्त -1

"यह नाज़िल की हुई किताब है अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाले की तरफ़ से "
सूरह ज़ुमर 39 आयत (1)

नाज़िल और ग़ालिब यह दोनों अल्फाज़ मकरूह हैं 
अगर रहमान और रहीम, वह ख़ालिक़ ए कायनात कोई है तो. 
नाज़िल वह शै होती है जो नाज़ला हो. वबाई हालत में कोई आफ़त ए नाज़ला होती है.
ग़ालिब वह सूरतें होती हैं जिसका वजूद पर ग़लबा हो,  
जो हठ धर्मी और ना इंसाफी का एक पहलू होता है. 
अल्लाह अगर बन्दों को नाज़ला और ग़लबा में रखता है तो 
वह ख़ालिक़ हो ही नहीं सकता.
क़ुदरत तो हर शै को उसके वजूद में आने के लिए मददगार होती है. 
वजूद का मज़ा लेकर वह उसे फ़ना की तरफ़ माइल कर देती है.
इस्लाम, का अल्लाह और इसका रसूल मख़लूक़ के लिए नाज़ला और ग़लबा ही हैं. इसमें रह कर क़ुदरत  की बख़्शी हुई नेमतों से महरूमी है . 

"अगर अल्लाह किसी को औलाद बनाने का इरादा करता है तो ज़रूर अपनी मख़लूक़ में से जिसको चाहता है मुंतख़िब फ़रमाता है. वह पाक है और ऐसा है जो वाहिद है, ज़बरदस्त है."
सूरह ज़ुमर 39 आयत (4) 

ईसा को ख़ुदा का बेटा कहने वाले ईसाइयों पर वार करते हुए क़ुरआन में बार बार कहा गया है कि 
"लम यलिद वलम यूलद" 
न वह किसी का बाप है और न किसी का बेटा. अब मुहम्मद कह रहे है 
"अगर अल्लाह किसी को औलाद बनाने का इरादा करता है तो ज़रूर अपनी मख़लूक़  में से जिसको चाहता है मुंतख़िब फ़रमाता है."
क़ुरआन तज़ाद (विरोधाभास) का अफ़साना है. 
मुहम्मद ख़ुद इस बात के इमकानात की सूरत पैदा कर रहे हैं 

"और तुम्हारे नफ़े के लिए आठ नर मादा चार पायों को पैदा किये और तुम्हें माँ के पेट में एक कैफ़ियत के बाद दूसरी कैफ़ियत में बनाता है, तीन तारीखों में. ये है अल्लाह तुम्हारा रब, इसी की सल्तनत है. इसके सिवा कोई लायक़े इबादत नहीं. सो तुम कहाँ फिरे चले जा रहे हो?"
सूरह ज़ुमर 39 आयत (6)

 क़ुरआन के ख़िलाफ़ अब इससे ज़्यादः और क्या सुबूत हो सकता है कि यह किसी अनपढ़,मूरख और कठ मुल्ले की पोथी है.
वह सिर्फ़ आठ चौपायों की ख़बर रखता है, उसे इस बात की कहाँ ख़बर है कि एक एक चौपायों की सौ सौ इक्साम हो सकती हैं. 
हमल में इंसान की तीन सूरतें भी उसके जिहालत का सुबूत है, 
पिछले बाबों में इसका ज़िक्र आ चुका है.

"ऐ बन्दों! मुझ से डरो. और जो लोग शैतान की इबादत करने से बचते हैं, अल्लाह की तरफ़ मुतवज्जे होते हैं, वह मुस्तहक़ ख़ुश ख़बरी सुनाने के हैं, सो आप मेरे इन बन्दों को ख़ुश ख़बरी सुना दीजिए जो इस कलाम को कान लगा कर सुनते हैं, फिर उसकी अच्छी अच्छी बातों पर चलते हैं, यही हैं जिन को अल्लाह ने हिदायत की. और यही हैं जो अहले अक़्ल  हैं."
सूरह ज़ुमर 39 आयत (17-18)

कोई ख़ुदा यह कह सकता है क्या?
दर पर्दा मुहम्मद ही अल्लाह बने हुए हैं ये बात जिस दिन 
आम मुसलमानों की समझ में आ जाएगी इसी दिन उनको अपने बुजुगों 
के साथ ज़ुल्म ओ सितम के घाव नज़र आ जाएँगे.
 क़ुरआन में एक बात भी अच्छी नहीं है अगर कोई है तो 
वह आलमी सच्चाइयों की सूरत है.

मुसलमानों ! क़ुरआन तुम्हें सिर्फ़ गुमराह करता है .

"लेकिन जो लोग अपने रब से डरते हैं उनके लिए बाला ख़ाने है. जिन के ऊपर और बाला ख़ाने हैं, जो बने बनाए तय्यार हैं. इसके नीचे नहरें चल रही हैं, ये अल्लाह ने वादा किया है. अल्लाह वादा ख़िलाफ़ी नहीं करता. क्या तूने इस पर कभी नज़र नहीं की कि अल्लाह ने आसमान से पानी बरसाया फिर इसको ज़मीन के सोतों में दाख़िल कर देता है, फिर इसके ज़रीए से खेतियाँ करता है जिसकी कई क़िस्में हैं, फिर वह खेती बिलकुल ख़ुश्क हो जाती है सो इनको तू ज़र्द देखता है, फिर इसको चूरा चूरा कर देता है. इसमें अहले अक़्ल के लिए बड़ी इबरत है.
सूरह ज़ुमर 39 आयत (20-21)

ए उम्मी! आजकल तेरे बाला ख़ाने से लाख गुना बेहतर इंसानी पाख़ाने बन गए हैं. हज़ारों ख़ाने वाली सैकड़ों मंज़िल की इमारतें खड़ी होकर तुझे मुँह चिढ़ा रही हैं. 
तूने मुसलमानों पर हराम कर रखी हैं, इंसानी काविशों की बरकतें 
तूने तो सिर्फ़ अपने ख़ानदान क़ुरैश की बेहतरी तक सोचा था, 
अब तो हर एक बिरादरी में एक कठ मुल्ला, मुहम्मद बना बैठा है. 
उनके ऊपर मौलानाओं की टोली फ़तवा लिए बैठी है, 
और इससे भी कोई बाग़ी हुआ तो मफ़िया सरग़ना सर काटने को तैयार है.

कलामे दीगराँ  - - - 
"जो कुछ भी पूरी सच्चाई से नहीं कहा जा सकता, 
वह तक़रीर ए बोसीदा है, 
इस बुराई से नाकाम होना बद तरीन जहन्नम में जाना है."
'दाव' 
(चीनी धर्म)
इसे कहते हैं कलाम पाक 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Hindu Dharm Darshan 246


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (50)

अर्जुन चकित होकर कहता है - - -
>आप आदि हैं मध्य तथा अंत से रहित हैं. 
आपका यश अनंत है. 
आपकी असंख्य भुजाएं हैं 
और सूर्य तथा चंद्रमा आपकी आँखें हैं. 
मैं आपके मुख से प्रज्वलित अग्नि निकलते और आपके तेज से इस संपूर्ण ब्रह्माण्ड को जलते हुए देख रहा हूँ.

>>यद्यपि आप एक हैं, 
किन्तु आप आकाश तथा सारे लोकों एवं उनके बीच के समस्त अवकाश में व्याप्त हैं. 
हे महा पुरुष ! 
आपके इस अद्भुत तथा भयानक रूप को देख कर सारे  लोक भयभीत हैं. 

>>>हे महाबाहू ! 
आपके इस अनेक मुख, नेत्र,बाहू, जंघा, पेट 
तथा भयानक दाँतों वाले विराट रूप को देख कर देव गण सहित 
सभी लोक अत्यंत विचलित हैं और उन्हीं की तरह मैं भी. 

>>>>हे सर्व व्यापी विष्णु ! 
नाना ज्योतिर्मय रंगों से युक्त आपको आकाश का स्पर्श करते, 
मुंह फैलाए तथा बड़ी बड़ी चमकती आँखें निकाले देख कर 
भय से मेरा मन विचलित है. 
मैं न धैर्य धारण कर पा रहा हूँ न मानसिक संतुलन ही पा रहा हँ.

श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय - 11  श्लोक -19-20-23 -24  
*भगवान् कृष्ण के ऐसे फूहड़ रूप, क्या किसी सभ्य पुरुष को नागवार नहीं होगा ?
ऐसी बेहूदा चित्रण. गंभीर हिन्दुओं के लिए यह सोचने का विषय है. 
हमने एक छोटा सा जीवन जीने के लिए पाया है या इन आडंबरों को ढोने केलिए ?
पाई है हमने जहाँ में गुल के मानिंद ज़िन्दगी,
रंग बन कर आए हैं, बू बन के उड़ जाएँगे हम. 

और क़ुरआन कहता है - - - 
>''और अगर आप को तअज्जुब हो तो उनका ये कौल तअज्जुब के लायक है 
कि जब हम खाक हो गए, क्या हम फिर अज़ सरे नव पैदा होंगे. 
ये वह लोग हैं कि जिन्हों ने अपने रब के साथ कुफ़्र किया 
और ऐसे लोगों की गर्दनों में तौक़ डाले जाएँगे 
और ऐसे लोग दोज़खी हैं.वह इस में हमेशा रहेंगे.''
सूरह रअद १३ परा-१३ आयत (५)

यहूदियत से उधार लिया गया ये अन्ध विश्वास मुहम्मद ने मुसलामानों के दिमाग़ में भर दिया है कि रोज़े महशर वह उठाया जाएगा, फिर उसका हिसाब होगा और आमालों की बुन्याद पर उसको जन्नत या दोज़ख की नई ज़िन्दगी मिलेगी. 
आमाले नेक क्या हैं ? 
नमाज़, रोज़ा, ज़कात, हज, और अल्लाह एक है का अक़ीदा जो कि दर अस्ल नेक अमल हैं ही नहीं, बल्कि ये ऐसी बे अमली है जिससे इस दुन्या को कोई फ़ायदा पहुँचता ही नहीं, आलावा नुकसान के.
हक तो ये है कि इस ज़मीन की हर शय की तरह इंसान भी एक दिन हमेशा के लिए खाक नशीन हो जाता है बाकी बचती है उस की नस्लें जिन के लिए वह बेदारी, खुश हाली का आने आने वाला कल । वह जन्नत नुमा इस धरती को अपनी नस्लों के वास्ते छोड़ कर रुखसत हो जाता है 
या तालिबानियों के वास्ते .

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान