Saturday 8 December 2018

Hindu Dharm Darshan 255



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (59)

> भगवान् ने कहा ---
हे भरतपुत्र ! 
निर्भयता, आत्म शुद्धि,आध्यात्मिक, ज्ञान का अनुशीलन, दान, आत्म संयम, यज्ञ परायणता, वेदाध्ययन, तपस्या, सरलता, अहिंसा, सत्यता, क्रोध विहीनता, त्याग, शांति, छिद्रान्वेषण (ऐब निकालना) में अरुचि, समस्त जीवों पर करुणा, लोभ विहीनता, भद्रता, लज्जा, संकल्प, तेज, क्षमा, धैर्य, पवित्रता, ईर्ष्या एवं सम्मान की अभिलाषा से मुक्ति -- 
ब यह सारे दिव्य गुण हैं, जो दैवी प्रकृति से संपन्न देव तुल्य पुरुषों में पाए जाते हैं.
>हे पृथापुत्र !
दंभ, दर्प, अभिमान, क्रोध, कठोर्ता तथा अज्ञान -- 
यह सब असुरी स्वभाव वाले गुण हैं.     
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -  16 श्लोक - 1-2-3-4   
*गीता की अच्छी बातें जिनको कम व् बेश स्वीकार किया जा सकता है.
मगर क्या पिछले अध्यायों की घृणित जिहादी बातें इन शुभों के साथ होना चाहिए ?

और क़ुरआन कहता है - - - 
>सूरह फातेहा (१) 

सब अल्लाह के ही लायक हैं जो मुरब्बी हें हर हर आलम के। (१) 
जो बड़े मेहरबान हैं , निहायत रहेम वाले हैं। (२) 
जो मालिक हैं रोज़ जज़ा के। (३) 
हम सब ही आप की इबादत करते हैं, और आप से ही दरखास्त मदद की करते हैं। (४) 
बतला दीजिए हम को रास्ता सीधा । (५) 
रास्ता उन लोगों का जिन पर आप ने इनआम फ़रमाया न कि रास्ता उन लोगों का जिन पर आप का गज़ब किया गया । (६) 
और न उन लोगों का जो रस्ते में गुम हो गए। (७) 
>क़ुरआन में भी बहुत सी बातें जन साधारण के लिए ठीक ही हैं. 



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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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