Monday 30 December 2019

दूसरों को जगाएँ


दूसरों को जगाएँ

दोसतो !
कल मैंने अपना परिचय फेस बुक पर डाल दिया था जिसे बर्षों पहले कभी मैंने कलम बंद किया था. आप लोगो के जज़्बात ने मेरी आँखें नम कर दीं. मै आभार कैसे गिनाऊँ, शब्द नहीं मिल पा रहे है.
आप के ख़ुलूस और भावनाओं में ज्यादा नाम मुझे हिन्दू हज़रात के दिखे, 
एक मुस्लिम नाम भी देखा. लिखते हैं - - - 
"अच्छी जीवनी हे आपकी.. अफ़सोस इस उम्र में आपकी औलाद आपके साथ नही है.. उन्हें माँ के कदमो में जन्नत और बाप जन्नत का दरवाजा वाला मज़हबी कॉन्सेट समझाया होता तो आज वे अपनी जन्नत के साथ होते बजाय , uk और अमेरिकन कम्पनी की सेवा के वाल्दैन की खिदमत कर रहे होते." 
इनकी तहरीर बतला रही है कि मुस्लिम किस क़दर मज़हबी अफ़ीम को पिए हुए हैं. इनका मज़हबी कांसेप्ट देखिए कि 
इंसान को मज़हब किस दर्जा स्वार्थी बनाता है, 
उनका मतलब यह है कि मैं अपनी खिदमत कराने के लिए बच्चों की तरक्की रोके रहता, इसमें बच्चों का भला भी था कि 
वह वालदैन के पाँव तले दबी मिलने वाली जन्नत से महरूम हैं.
आगे पूछते हैं कि - - -
"क्या आपके बच्चे भी आपके अक़ाइद से इत्तेफाक रखते हे??"
इनको डर और मलाल है कि कही उम्मत ए मुहम्मदी (मुसलमानों) में दस पांच कम तो नहीं हो गए. 
इनके अन्दर इतनी गहरी मज़हबी जड़ें पेवस्त हैं. 
यह ISIS के ज़ुल्म से तंग हो कर डूबते मरते योरोपीय देश के भले मानुसों की शरण में पहुँच तो जाते है, मगर दूसरे दिन अपनी नमाज़ों की जमात खड़ी कर लेते हैं. 
इनके ख़मीर में है कि हर हाल  में दूसरों को मुसलमान बनाओ. 
यह सीधे सादे लोग मुजरिम नहीं, यह नादान हैं, मुल्लाओं के शिकार हैं.
मैं किसी अल्लाह से नहीं डरता, डरता हूँ तो सिर्फ़ झूट से.
मैं दोस्तों को आज बतलाना चाहूँगा कि मज़हब को त्यागने का फ़ायदा 
मुझे यह है कि मैं आज भार मुक्त हूँ. 
सच्चाई मेरा धर्म, मेहनत की रोटी है मेरा ईमान 
और नस्लों की तालीम मेरी ज़िन्दगी का मंज़िल.
आज मेरी दूसरी नस्लों में एक स्वेटज़र लैंड में इल्म हासिल कर रहा है 
तो दूसरी मास्को में स्पेस साइंस (आंतरिक्ष विज्ञान) की तालीम ले रही है. 
मैंने अपने बच्चो से कहा था कि तालीम के लिए अगर मुझे बेच देने की 
नौबत आ जाए तो मुझे बेच देना.
दोसतो मैं कुछ ज्यादा बोल गया हूँ ? 
तो मुझे मुआफ़ का देना .
आप भी अगर सोए हुए हैं तो जागें .
और दूसरों को जगाएँ.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 29 December 2019

वज्दानी कैफ़ियत


वज्दानी कैफ़ियत 

क़ुरआन मुहम्मद की वज्दानी कैफ़ियत में बकी हुई ऊट पटाँग 
बातों का एक ऐसा मजमूआ ए कलाम है जिसका कुछ जंगी फ़तूहात से इस्लामी ग़लबा क़ायम हो जाने के बाद, मज़ाक उड़ाना जुर्म क़रार दे दिया गया. 
जंगों से हासिल माले ग़नीमत ने इसे मुक़द्दस बना दिया. 
फ़तह मक्का के बाद तो यह उम्मी की पोथी, 
शरीयत बन कर मुमालिक के क़ानून व  क़ाएदे बन्ने लगी. 
इसके मुजरिमीन ओलिमा ने तलवार तले अपने ज़मीरों को गिरवीं 
रखना 
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 28 December 2019

मुज़फ्फ़र नगर का नमूना


मुज़फ्फ़र नगर का नमूना

 मनुवादी कभी भी पाक साफ़ या पवित्र हो ही नहीं सकता, 
अगर इनमे कोई पाक साफ़ होने पर आमादा हो जाए
 तो उसे मनुवाद शूद्र बना देता है, 
यह बात ख़ुद मनु स्मृति कहती है. 
आज कल संविधान के डर से किसी को शूद्र कहना भी अपराध है, 
इस लिए मनुवादी उसे देश द्रोही कह कर प्रताणित करते हैं.
मनुवादी तो देश की जन संख्या को देखते हुए 
मुट्ठी भर भी नहीं, चुटकी भर हैं. 
जैसे चुटकी भर यहूदियों का इंटरनेट पूरी दुन्या पर ग़ालिब है 
उसी तरह मनुवाद देश पर अपनी टेक्निक से नहीं, 
अपने तिकडम से देश पर ग़ालिब हैं. 
देश द्रोह और देश पेम के जाल में शूद्र सपूत फंसे हुए हैं 
इनकी शाखाओं में फंस कर इनके संरक्षक बन चुके हैं, 
राम की वानर सेना की तरह. 
इन सेवकों को इस्लाम का जिन दिखला कर भयभीत किया जाता है. 
बजरंग दल अपने ही मुस्लिम भाइयों को इस बात के लिए प्रताड़ित करता है कि 
तुम हमें छोड़ कर क्यूँ मुक्त हुए ? 
घर वापसी करो. हम चमार और भंगी उनकी कृपा से बदल चुके हैं, 
हमारी जगहें ख़ाली हो रही हैं , 
तुम उसे पुर करो. 
वरना मुज़फ्फ़र नगर का नमूना तुम्हारे सामने है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 27 December 2019

क़ुरआन सरापा झूट


क़ुरआन सरापा झूट 

*इस्लाम इसके सिवा और कुछ भी नहीं क़ि यह एक 
अनपढ़ मुहम्मद की जिहालत है भरी, ज़ालिमाना तहरीक है. 
आज इसके नुस्ख़े सड़ गल कर ग़लीज़ हो चुके हैं, 
इसी ग़लाज़त में पड़े हुए हैं 99% मुसलमान.
*क़ुरआन सरापा बेहूदा और मक्र का पुलिंदा है. 
इतिहास की बद तरीन तस्नीफ़े-ख़ुराफ़ात .
*मुहम्मद ने निहायत अय्यारी से क़ुरआन की रचना की है 
जिसकी ज़िम्मेदारी अल्लाह पर रख कर ख़ुद अलग बैठे तमाश बीन बने रहते हैं.
*मुहम्मद एक कठमुल्ले थे जिसका सुबूत उनकी हदीसें हैं.
*क़ुरआन की हर आयत मुसलमानो की शह रग पर चिपकी 
जोंक की तरह उनका ख़ून चूस रही हैं.
*वह जब तक क़ुरआन से मुंह नहीं फेरता, और उसके फ़रमान से बग़ावत नहीं करता, 
इस दुनिया में पसमान्दा क़ौम  के शक्ल में रहेगा 
और दीगर क़ौमो का सेवक बना रहेगा.
*क़ुरआन  के फायदे मक्कार ओलिमा गढ़े हुए हैं 
जो महेज़ इसके सहारे ग़ुज़ारा करते हैं 
और आली जनाब भी बने रहते हैं..
*मुसलमानो!
 इन ओलिमा से उतनी ही दूरी क़ायम रख्खो, 
जितनी दूरी सुवरों से रखते हो. 
यही तुम्हारे सबसे बड़े दुश्मन हैं.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 26 December 2019

त्याग


त्याग
मोदी जी ! 
आपने काले धन को ज़प्त करके इसका कुछ भाग ग़रीब कल्याण कोष में डालने की,  बात जो आपने की है, सराहनीय है. 
(ख़बर   है कि अभी तक आप 70 करोड़ रु अपने परिधानों पर खर्च कर चुके हैं. 
ख़ुदा करे ख़बर ग़लत हो.)
और अगर ख़बर सही है अफ़सोस नाक है.
और अशोभनीय भी.
ग़ौर तलब है कि नए भारत के मेमार पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु रईस बाप की रईसी और रियासत को त्याग कर देश की रचना में लग गए और इंदिरा के लिए अपनी रायल्टी के अलावा कुछ नहीं छोड़ा.
ग़ौर तलब है कि पूर्व प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री को एक नया कोट सिलवाने के लिए बड़े यत्न करने पड़े थे. ग़रीब जनता का असली प्रधान मंत्री.
तीसरी प्रधान मंत्री इंद्रा गाँधी कुछ राजनीतिज्ञों के लिए अभिशाप ज़रूर थीं मगर जनता बाएँ बाजू चलना सीख गई थी अफ़सर शाही रिश्वत लेना भूल गई थी, 
दो नम्बरी विलास की वस्तुएँ घूरों पर फेकी जाने लगी थीं. 
आज़ाद भारत की स्वच्छ तस्वीर थी इमर्जन्सी.
इतिहास में मुरारजी देसाई भी आए जो मुरारजी कोला के साथ सौ ग्राम बादाम से दिन की शुरुआत करते थे, सिंडी केट का डुप्लीकेट प्रधान मंत्री. निर्धन भारत के इतिहास को नापाक कर गया . 
एक कांग्रेसी प्रधान मंत्री और - - - 
राजा माँढा विश्व नाथ सिंह जिनकी पहचान इस तरह से हुई थी , 
राजा नहीं फ़क़ीर है , भारत की तक़दीर है. 
अपने बीवी के हाथों बना सरसों का साग, मक्का की रोटी, 
प्रधान मंत्री निवास में रह कर खाता था, 
अपना सारा रजवाडा दान करके समाज सेवा को समर्पित हुए, 
बहुत सादगी से जीवन व्यातीत किया प्रधान मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे, 
दोबारा फिर उनको लोगों ने प्रधान मंत्री बनाने के लिए ढूँढते रहे, 
वह अज्ञात वास में चले गए थे .
राजीव गाँधी का नाम भी प्रधान मंत्रियों में आना चाहिए, 
एक ड्राइवर के हाथों में मकैनिक का काम सौंप दिया गया. 
जनता भावुक थी, मगर मगर एक इन्तेहाई शरीफ़ और नेक इंसान 
भारत को कंप्यूटर मकैनिकिज्म की फुलवारी सजा कर दे गया. 
बहादुरी के साथ देश के लिए समर्पित होकर जान को त्याग दिया.  
आप भी कहते है कि आपने सब कुछ त्यागा ? 
चाय बेचने वाले के बेटे ने क्या त्यागा ?? 
था ही क्या त्यागने के लिए ???
सिवाए मल मूत्र .
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 25 December 2019

क़ुरआन की चुनौतियाँ


 क़ुरआन की चुनौतियाँ

आम मुसलमानों को कहने में बड़ा गर्व होता है कि क़ुरआन की एक आयत (वाक्य) भी कोई इंसान नहीं बना सकता क्यूंकि ये अल्लाह का कलाम है. 
दूसरी फ़ख़्र की बात ये होती है कि इसे मिटाया नहीं जा सकता क्यूंकि यह सीनों में सुरक्षित है, (अर्थात कंठस्त है.) 
यह धारणा भी आलिमों द्वारा फैलाई गई है कि इसकी बातों और फ़रमानों को 
आम आदमी ठीक ठीक समझ नहीं सकता, बग़ैर आलिमों के. 
सैकड़ों और भी बे सिरो-पैर की ख़ूबियाँ इसको प्रचारित करती हैं.
सच तो है कि किसी दीवाने की बात को कोई सामान्य आदमी 
दोहरा नहीं सकता और आपकी अख़लाकी जिसारत भी नहीं कि 
किसी पागल को दिखला कर मुसलमानों से कह सको कि यह रहा, 
बडबडा रहा है क़ुरआनी आयतें. 
एक सामान्य आदमी भी नक़्ल में मुहम्मद की आधी अधूरी और अर्थ हीन बातें स्वांग करके दोहराने पर आए तो दोहरा सकता है, क़ुरआन की बकवासें, 
मगर वह मान कब सकेंगे. 
मुहम्मद की तरह उनकी नक़्ल उस वक़्त लोग दोहराते थे मगर झूटों के बादशाह कभी मानने को तैयार न होते. 
हिटलर के शागिर्द मसुलेनी ने शायद मुहम्मद की पैरवी की हो कि झूट को बार बार दोहराव, सच सा लगने लगेगा. 
मुहम्मद ने कमाल कर दिया, झूट को सच ही नहीं बल्कि 
अल्लाह की आवाज़ बना दिया, तलवार की ज़ोर और माले-ग़नीमत की लालच से. 
मुहम्मद एक शायर नुमा उम्मी थे, और शायर को हमेशा यह भरम होता है कि उससे बड़ा कोई शायर नहीं, उसका कहा हुवा बेजोड़ है.
क़ुरआन के तर्जुमानों को इसके तर्जुमे में दातों पसीने आ गए, 
मौलाना अबू कलाम आज़ाद सत्तरह सिपारों का तर्जुमा करके, 
मैदान छोड़ कर भागे. 
मौलाना अशरफ़ अली थानवी ने ईमानदारी से इसको शब्दार्थ में परिवर्तित किया और भावार्थ को ब्रेकेट में अपनी राय देते हुए लिखा, 
जो नामाक़ूल आलिमों को चुभा. 
इनके बाद तो तर्जुमानों ने बद दयानती शुरू कर दी और 
आँखों में धूल झोंकना उनका ईमान और पेशा बन गया.
दर अस्ल इस्लाम की बुनियादें झूट पर ही रख्खी हुई, 
अल्लाह बार बार यक़ीन दिलाता है कि उसकी बातें इकदम सही सही हैं, 
इसके लिए वह कसमें भी खाता है. 
इसी झूट के सांचे को लेकर ओलिमा चले हैं. 
इनका काम है मुहम्मद की बकवासों में मानी ओ मतलब पैदा करना. 
इसके लिए तरफ़सीरें (व्याख्या) लिखी गईं जिसके जरीए शरअ और आध्यात्म से जोड़ कर अल्लाह के कलाम में मतलब डाला गया. 
सबसे बड़ा आलिम वही  है जो इन अर्थ हीन बक बक में किसी तरह अर्थ पैदा कर दे. मुहम्मद ने वजदानी कैफ़ियत (उन्माद-स्तिथि) में जो मुंह से निकाला 
वह क़ुरआन हो गया, 
अब इसे ईश वाणी बनाना इन रफ़ुगरों का काम है.
जय्यद आलिम वही होता है जो क़ुरआन को जा बेजा दलीलों के साथ 
इसे ईश वाणी बनाए.
मुसलमान कहते हैं क़ुरआन मिट नहीं सकता कि ये सीनों में क़ायम और दफ़्न है. 
यह बात भी इनकी क़ौमी बेवक़ूफ़ी बन कर रह गई है, 
बात सीने में नहीं याद दाश्त यानी ज़हनों में अंकित रहती है 
जिसका सम्बन्ध सर से है. 
सर ख़राब हुआ तो वह भी गई समझो. 
जिब्रील से भी ये इस्लामी अल्लाह ने मुहम्मद का सीना धुलवाया था, 
चाहिए तो यह था कि धुलवाता इनका भेजा. 
रही बात हाफ़िज़े (कंठस्त) की, मुसलमान क़ुरआन को हिफ्ज़ कर लेते हैं 
जो बड़ी आसानी से हो जाता है, 
यह फूहड़ शायरी की तरह मुक़फ़्फ़ा (तुकान्तित) पद्य जैसा गद्य है, 
आल्हा की तरह, गोया आठ साल के बच्चे भी इसके हाफिज़ हो जाते हैं, 
अगर ये शुद्ध गद्य में होता तो इसका हफ़िज़ा मुमकिन न होता.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 24 December 2019

पैग़ाम


पैग़ाम

मैं प्रचलन में मुसलमान हूँ 
और डंके की चोट पर मुसलमानो का ख़ैर ख़्वाह हूँ. 
मेरे हर आर्टिकल मुसलमानों के हित में होते हैं. 
वह इस लिए कि भारत में मुसलमान सब से ज़्यादः निरक्षर, निर्धन 
और पक्षपात का शिकार है. 
लगभग हर हिन्दी लेख के साथ मेरा नोट ;- लगा रहता है कि 
"यह उन मुसलमानों के लिए है जो उर्दू नहीं जानते." 
इसके बाद भी लोगों का ओछा कमेन्ट देख कर हैरानी होती है. 
मैं जिस दर्जे का मुसलमान हूँ, काश उसी दर्जे के हिन्दू, सारे हिन्दू हो जाएं. 
इस्लाम और मनुवाद भारत के जिल्दी मरज़ (चर्म-रोग) हैं. 
इस्लाम इस्लामी मुल्को का इससे भी घातक रोग, क्षय रोग है.
मैंने कुछ दिनों से हिन्दू धर्म को भी इस्लाम के साथ नाधा है. 
पहले इससे बचता था कि हिन्दू मित्रों की राय थी,
"मियाँ ! इसमें बहुत से समाज सुधाक हुए हैं, मुसलमानों तक ही सीमित रहिए"
मगर ज़मीर ने आवाज़ दी कि यह संकुचन है कि मुसलमानों को ही संभालो, 
विस्तृत हो जाओ, हिन्दू भी हमारे भाई हैं.
इनको भी मेरी जरूरत है.

दोस्तों को भी मिले दर्द की लज़्ज़त या रब,
सिर्फ़ मेरा ही भला हो, मुझे मंज़ूर नहीं.
***  
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 23 December 2019

अदना , औसत और तवासुत


अदना , औसत और तवासुत 

मुहम्मदी अल्लाह अपनी क़ुरआनी आयातों की ख़ामियों की जानकारी देता है 
कि इन में कुछ साफ़ साफ़ हैं और यही क़ुरआन की धुरी हैं 
और कुछ मशकूक हैं जिनको शर पसंद पकड़ लेते हैं. 
इस बात की वज़ाहत आलिमान क़ुरआन यूँ करते हैं 
कि क़ुरआन में तीन तरह की आयतें हैं---
1- अदना (जो साफ़ साफ़ मानी रखती हैं)
2- औसत (जो अधूरा मतलब रखती हैं)
3-तवास्सुत (जो पढने वाले की समझ में न आए 
और जिसको अल्लाह ही बेहतर समझे.)
सवाल उठता है कि एक तरफ़ दावा है हिकमत और हिदायते-नेक से भरी हुई 
क़ुरआन अल्लाह की अजीमुश्शान किताब है 
और दूसरी तरफ़ तवस्सुत और औसत की मजबूरी ? 
अल्लाह की मुज़बज़ब बातें, एहकामे-इलाही में तज़ाद, 
हुरूफ़े मुक़त्तेआत का इस्तेमाल जो किसी मदारी के छू मंतर की तरह लगते हैं. 
दर अस्ल क़ुरआन कुछ भी नहीं, मुहम्मद के वजदानी कैफ़ियत में बके गए 
बड़ का एक मज्मूआ है. इन में ही बाज़ बातें ताजाऊज़ करके 
बे मानी हो गईं तो उनको मुश्तबाहुल मुराद कह कर 
मुहम्मद ने अल्लाह के सर हांडी फोड़ दिया है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 22 December 2019

नील गाय


नील गाय 

 किसानों की ज्वलंत समस्या पहली बार जोर शोर से मंज़र ए आप पर आई है. 
सूखा और बाढ़ पर तो इंसान का अभी तक कोई बस नहीं रहा मगर जिन पर बस है, वह धर्म और फ़िलासफ़ी के ताने बाने में फंसे हुए हैं.
नील गाय का आतंक मैंने अपने आँखों से देखा हुवा है, 
देख कर ख़ून के आंसू बहने लगे. 
सरकार ने शूटरों के ज़रिए नील गायों की सफ़ाई का काम जो शुरू किया है, 
वह फ़ौरी हल है, इसके मुश्तकिल हल बहुत से हैं. 
जैसे भारत के मांस एक्सपोर्टर गाय, बैल, भैंस और अन्य जानवरों का मांस एक्सपोर्ट करते हैं, वैसे ही नील गायों को उनके हवाले कर दिया जाए . 
अरबी नाम रख कर 85% इसके हिन्दू एक्सपोर्टर हैं, 
भग़ुवा ब्रिगेड को इस पर कोई एतराज़ नहीं, 
वह तो ग़रीब ट्रक ड्राईवर और क्लीनर को नंगा कर के देखते हैं, 
फिर जानवरों की तरह उन्हें पीट पीट कर मार देते हैं 
और उनके सर पर अपने जूते रख कर ISIS के विजई की तरह फोटो खिंचवाते हैं, 
उन्हें कोई डर नहीं कि सरकारें उन्हें इसकी छूट देती हैं.
इन ग़रीबों के बाल बच्चे घर में इनके मुंतज़िर रहते हैं कि 
अब्बू रात को कुछ खाने ला रहे होंगे.
हमारे किसानों का दुर्भाग्य है कि वह भी इन्हीं नील गायों की तरह ही शाकाहार हैं, वरना घर आई मुफ़्त की गिज़ा इनके लिए उपहार होता. 
बिना चर्बी का, रूखा गोश्त सेहत के लिए अच्छा होता है.
नील गायों के बचाव के पक्ष में जो धर्म भीरु नेता और दलीलों के दलाल आते हैं, उनको उनके एयर कंडीशन घरों से निकाल कर उन गावों में किसानी करने की सज़ा दी जाए, जिनकी फ़सलें रात भर में जानवर बर्बाद कर देते हैं. 
इंसान अशरफ़ुल मख़लूक़ात हैं, 
अगर तमाम जीव ख़तरे में आ जाएं तो पहले इंसान को बचाना चाहिए, 
क्योंकि इंसान ही तमाम प्रजातियों को बचा रखने की सलाहियत रखता है. 
जानवरों की प्रजातियां एक दूसरे को ख़त्म करने के जतन में रहती हैं.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 21 December 2019

सूरह बक्र का निचोड़


सूरह बक्र का निचोड़

* शराब और जुवा में बुराइयाँ हैं और अच्छइयां भी. 
* ख़ैर और ख़ैरात में उतना ही ख़र्च करो जितना आसान हो. 
* यतीमों के साथ मसलेहत की रिआयत रखना ज़्यादः बेहतर है. 
*काफ़िर औरतों के साथ शादी मत करो भले ही लौंडी के साथ कर लो. 
*काफ़िर शौहर मत करो, उस से बेहतर ग़ुलाम  है. 
*हैज़ (मासिक धर्म)एक गंदी चीज़ है हैज़ के आलम में बीवियों से दूर रहो. 
*मर्द का दर्जा औरत से बड़ा है. 
*सिर्फ़ दो बार तलाक़ दिया है तो बीवी को अपना लो चाहे छोड़ दो. 
*तलाक़ के बाद बीवी को दी हुई चीजें नहीं लेनी चाहिएं, मगर आपसी समझौता हो तो वापसी जायज़ है. जिसे दे कर औरत अपनी जन छुडा ले. 
*तीसरे तलाक़ के बाद बीवी हराम है.
*हलाला के अमल के बाद ही पहली बीवी जायज़ होगी. 
*माएँ अपनी औलाद को दो साल तक दूध पिलाएं तब तक बाप इनका ख़याल रखें. 
ये काम दाइयों से भी कराया जा सकता है. 
*एत्काफ़ में बीवियों के पास नहीं जाना चाहिए. 
*बेवाओं को शौहर के मौत के बाद चार महीना दस दिन 
निकाह के लिए रुकना चाहिए. 
*बेवाओं को एक साल तक घर में पनाह देना चाहिए 
*मुसलमानों को रमज़ान की शब् में जिमा (संभोग) हलाल हुवा.
वग़ैरह वग़ैरह सूरह ख़ास बातें, 
इस के अलावः नाक़ाबिले क़द्र बातें जो फ़ुज़ूल कही जा सकती हैं, भरी हुई हैं.
तमाम आलिमान को मोमिन का चैलेंज है.
मुसलमान आँख बंद कर के कहता है क़ुरआन में निज़ाम हयात (जीवन-विधान) है.

ये जुमला मुल्ला, मौलवी मुसलमानों के सामने इतना दोहराते हैं 
कि वह सोंच भी नहीं सकता कि ये उसकी जिंदगी के साथ सब से बड़ा झूट है. 
ऊपर की बातों में आप तलाश कीजिए कि कौन सी इन 
बेहूदा बातों का आज की ज़िंदगी से वास्ता है. 
इसी तरह इनकी हर हर बात में झूट का अंबार रहता है. 
इनसे मुसलमानों को नजात दिलाना हर मोमिन का क़स्द होना चाहिए . 
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 20 December 2019

आपो दीपो भवः


आपो दीपो भवः 

मैं कभी किसी संस्था के आधीन नहीं रहा, न किसी तंजीम का मिंबर.
मैं ज़िन्दगी की मुकम्मल आज़ादी चाहता हूँ , 
बसकि मेरी ज़ात से किसी को कोई नुकसान न पहुंचे.
मैं अपने आप में ख़ुद एक संस्था हूँ. 
जो किसी को आधीन बनाना पसंद नहीं करती.
यह धर्म व् मज़हब भी अपने आप में बड़ी संस्थाएं हैं, 
जो अपने आधीनों की संख्या में अज़ाफ़ा करने में लगे रहते हैं. 
स्वाधीन अगर बाज़मीर है तो, किसी को आधीन नहीं बनाता .
बड़ा गर्व करती हैं संस्थाएं कि विश्व में उनके इतने सदस्य और मानने वाले हैं, 
मगर जब इन पर अंकुश लगता है, 
तब इनका मानवता भेदी पोल खुल जाता है,   
बाबा, स्वामी, बापू, ग़ुरुदेव जुर्म के पुतले बन जाते हैं.
राजनीति इन्हें पालती पोस्ती है, इनके चार धाम बनाती है .
यही धाम जब क़िला बनकर हुकूमत को आँख दिखलाते है तो उसे 
आपरेशन ब्लू , रेड, येलो स्टार चलाना पड़ता है .
इन दुष्ट प्रवृत पर अगर हुकूमत-ए-वक़्त पाबंदी नहीं लगा पाती, 
तो यह पैग़म्बर का मुक़ाम पा जाते हैं .
इनके फ़रमूदात की पैरवी करते हुए तारीख़ में ISIS पैदा होते रहते हैं .
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 19 December 2019

साइंसटिफ़िक टुरुथ क्या है


साइंसटिफ़िक टुरुथ क्या है.   
            
अगर आप के पास वक़्त है तो पूरी ईमान दारी के साथ, 
फ़ितरत को गवाह बना कर इन क़ुरआनी आयतों का मुतालिआ करें. 
मुतराज्जिम की बैसाखियों का सहारा क़तई न लें, ज़ाहिर है वह उसकी बातें हैं, अल्लाह की नहीं. 
मगर अगर आप ग़ैर फ़ितरी बातों पर यक़ीन रखते हैं कि 2+2=5 हो सकता है 
तो आप कोई ज़हमत न करें और अपनी दुन्या में महदूद रहें.
मुसलमानों के लिए इस से बढ़ कर कोई बात नहीं हो सकती 
कि क़ुरआन को अपनी समझ से पढ़ें और अपने ज़ेहन से समझें. 
जिस क़दर आप समझेंगे, क़ुरआन बस वही है. 
जो दूसरा समझाएगा वह झूट होगा. 
अपने शऊर, अपनी तमाज़त और अपने एहसासात को हाज़िर करके 
मुहम्मद की तहरीक को परखें. 
आपको इस बात का ख़याल रहे कि आजकी इंसानी क़द्रें क्या हैं, 
साइंसटिफ़िक टुरुथ क्या है. 
मत लिहाज़ करें मस्लेहतों का, सदाक़त के आगे. 
बहुत जल्द सच्चाइयों की ठोस सतह पर अपने आप को खड़ा पाएँगे.
आप अगर मुआमले को समझते हैं तो आप हज़ारों में एक हैं, 
अगर आप सच की राह पर गामज़न हुए तो हज़ारों आपके पीछे होंगे. 
इंसान को इन मज़हबी ख़ुराफ़ात से नजात दिलाइए.  
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 18 December 2019

इनका मानसिक पोषण


इनका मानसिक पोषण \

ऐसा लगता है कि शायद एशिया के मद्य से लेकर दक्षिण और पूर्व की ज़मीन का तक़ाज़ा है कि इस पर जन्मा मानव बग़ैर भगवान् ख़ुदा अल्लाह या किसी रूहानी ताक़त की कल्पना के रह ही नहीं सकता.  
इनकी ज़ेहनी ग़िज़ा के लिए कम अज़ कम एक अदद महा शक्ति, एकेश्वर, वाहिद ए मुतलक़, ख़ालिक़ ए कुल, सर्व सृष्टा या सुप्रीम पावर चाहिए ही, 
पहले जाय नमाज़ चाहिए, फिर दस्तर ख्वान. पहले मंदिर मस्जिद फिर घर की छत. 
इनको पहले परम पूज्य चाहिए , वह इनके जैसा ही इंसानी सोच रखता हो 
या कोई जानवर पेड़ पहाड़ दरिया हत्ताकि पत्थर की मूर्ति हो या फिर हवा की मूर्ति निरंकार या अल्लाह और ख़ुदा बाप.  
कोई न कोई मिज़ाजी ख़ुदा या फिर आफ़ाक़ी ख़ुदा तो चाहिए ही वर्ना 
इनका सांस लेना दूभर हो जाएगा .
वह अनेश्वर वादी मानव को पशु मानते हैं और मुल्हिद, 
जो सुकर्मों और कुकर्मों में कोई अंतर नहीं समझता. 
मैं कभी दीर्घ अतीत में जाता हूँ और वक़्त की तलाश करता हूँ तो हिन्दू मिथक ब्रहमा विष्णु महेश का कल्पित महा काल ढाई अरब साल नज़रों में घूम जाता है 
कि इस काल में ब्रम्ह्मा अपने शरीर से कायनात को वजूद में लाते हैं , 
विष्णु सृष्टी को चलते हैं और फिर महेश इसका विनाश कर देते हैं. 
इस तरह ढाई अरब साल का एक महाकाल समाप्त होता है 
और यह महा काल समय चक्र में चलता ही रहता है. 
इसके बाद यहूदीयत तख़य्युल की बुन्याद है जिस पर दुन्या की तीनों क़ौमें की यकसाँ राय थोड़े बहुत इख्तेलाफ़ के साथ क़ायम है. 
इनकी राय है कि दुन्या सिर्फ़ छः सात हज़ार साल पहले वजूद में आई. 
तमाम कायनात और मख़लूक़ छः दिन में ख़ुदा ने पैदा किया. 
इनकी यह सोच बहुत ठिंगनी और हास्य स्पद है क्योकि दस्यों हज़ार साल की पुरानी इंसानी तहज़ीब आज साइन्स दान तलाश कर चुके हैं और लाखों साल पहले के इंसानी और हैवानी कंकाल तलाशे जा चुके हैं. 
पहला आदमी आदम को क़ायम करने के लिए दुन्या की संरचना यहूदियों की कोरी कल्पना हैं जिसे ईसाइयों और मुसलमानो ने मुफ़्त पा लिया है. 
अब बचती है एक सूरत जिसे डरबन थ्योरी कहा जाता है 
जिसमे पहली बार अक़्ल की दख़्ल  है. उसका ख़याल है कि इंसान का वजूद भी तमाम मख़लूक़ की तरह  ही पानी से हुवा  है 
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 17 December 2019

जिंस-लतीफ़ -


 जिंस-लतीफ़ - 

बड़े ही पुर कशिश शब्द हैं, जिंस ए लतीफ़. 
जिंस के लफ्ज़ी मअने है 'लिंग' 
लतीफ़=लुत्फ़ देने वाला. 
अर्थात 'लिंगाकर्षण'.  
जिंस ए लतीफ़ उर्दू में खुला और प्राकृतिक सच है 
जो कि हिंदी में शायद संकोच और लज्जा जनक हो सकता है. 
मैंने दो बच्चों को देखा कि सुबह एक साथ दोनों खुली छत पर जागे, 
उट्ठे और पेशाब करने चले गए, 
मैंने देखा कि लड़का अपनी बहन की नंग्नता की तरफ़ आकर्षित था, 
बार बार जगह बदल कर वह इसे देखना चाहता था. 
लड़की ने भी लड़के की जिज्ञासा को महसूस किया मगर खामोश पेशाब करती रही. 
यह दोनों भाई बहन थे और उम्र 5-6 साल की थी, 
मासूम किसी तरह से ग़ुनाहगार नहीं कहे जा सकते. 
एक दूसरे के जिंस ए लतीफ़ की ओर आकर्षित थे 
जो कि कुदरती रद्दे अमल था. 
नादान माँ बाप को यह फ़ितरत बुरी मालूम पड़ती है, 
वह इस उम्र से ही टोका टाकी शुरू कर देते हैं.
मगर समझदार वालदैन के लिए यह ख़ुश ख़बरी है कि बच्चे नार्मल हैं.
 एबनार्मल बच्चे बड़े होकर ब्रहमचारी, योगी, योगिनें, 
यहाँ तक कि किन्नर हिजड़े और होम्यो - - - आदि बन जाते हैं. 
ऐसे लोग बड़े होकर दुन्या में अपना मुक़ाम भी पाना चाहते हैं, 
यदि उग्र हुए तो धार्मिक परिधानों के साथ दाढ़ी, चोटी और जटा की वेषभूषा अपनाते हैं. यह आधे अधूरे और नपुंसक लोग क़ुदरत का बदला समाज से लेते हैं. 
अपने अधूरेपन का इंतेक़ाम समाज में नफ़रत फैला कर संतोष पाते हैं. 
आजकल मनुवादी व्योवस्था में इनका बोलबाला है.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 14 December 2019

क़ुरआन क्या है ?


क़ुरआन क्या है ?

सूरह अव्वल यानी सूरह फ़ातेहा में मैंने आपको बतलाया था कि 
मुहम्मद ख़ुद अपने कलाम को अल्लाह बन कर फ़रमाने की नाकाम कोशिश की, जिसे ओलिमा ने क़लम का ज़ोर दिखला कर कहा कि अल्लाह कभी अपने मुँह से बोलता है, कभी मुहम्मद के मुँह से, तो कभी बन्दे के मुँह से बोलता है. 
बोलते बोलते देखिए कि आख़िर में अल्लाह की बोलती बंद हो गई, 
उसने सच बोलकर अपनी ख़ुदाई के खात्मे का एलान कर दिया है.
क़ुरआन की 30 सूरतों का सिलसिला बेतुका सा है, 
कोई सूरह इस्लाम के वक़्त ए इब्तेदा की है तो अगली सूरह आख़िर दौर की है. 
बेहतर यह होता कि इसे मुरत्तब करते वक़्त मुहम्मद की 
तहरीक के मुताबिक इस का सिसिला होता. खैर, 
इस्लाम की तो सभी चूलें ढीली हैं, उनमें से एक यह भी है. 
इस ख़ामी से एक फ़ायदा यह हुवा है कि इन आख़िरी दो सूरतों में इस्लाम की वहदानियत की हवा ख़ुद मुहम्मदी अल्लाह ने निकाल दिया है. 
अल्लाह जिब्रील के मार्फ़त जो पैगाम मुहम्मद के लिए भेजता है 
उसमे मुहम्मद उन तमाम कुफ्र के माबूदों से पनाह माँगते है, 
अल्लाह की, जिसे हमेशा नकारते रहे, जिससे साबित है 
कि उनमें ख़ुदाई करने का दम है. 
इस सूरह में अल्लाह तमाम माबूदों को पूजने का मश्विरः देता है 
क्यूंकि वह बीमारी से निढाल है.
मुहम्मद शदीद बीमार हो गए थे, कहते हैं कि उनका पेट फूल गया था, 
जिसकी वजेह थी कि कुछ यहूदिनों ने उन पर जादू टोना कर दिया था 
कि उनकी बजने वाली मिटटी जाम हो गई थी 
और उनका बजना बंद हो गया था.
पिछली सूरतों में उन्होंने फ़रमाया है कि (इंसान बजने वाली मिटटी का बना हुवा है) पेट इतना फूल गया था कि बांसुरी बजना बंद हो गई थी. 
जिब्रील अलैहिस सलाम वह्यि लेकर आए और मंदर्जा ज़ेल आयतें पढनी शरू कीं, 
तब जाकर धीरे धीरे उनका जाम खुलने लगा, उनसे जिब्रील ने कहलवाया कि - - -
नमाज़ियो !
सूरह फ़लक और सूरह नास के बारे में वाक़िया है कि यहूदिनों ने मुहम्मद पर जादू टोना करके उनको बीमार कर दिया था, तब अल्लाह ने यह दोनों सूरतें बयक वक़्त नाजिल कीं, घर की तलाशी ली गई, एक ताँत (सूखे चमड़े की रस्सी) की डोरी मिली, जिसमे ग्यारह गाठें थीं. इसके मुक़ाबिले में जिब्रील ने मंदर्जा ग्यारह आयतें पढ़ीं, 
हर आयत पर डोरी की एक एक गाठें खुलीं, और सभी गांठें खुल जाने पर मुहम्मद चंगे हो गए.
जादू टोना को इस्लामी आलिम झूट क़रार देते हैं, 
जब कि इसके ताक़त के आगे उनके रसूल अल्लाह की अमाँ चाहते हैं.
यह क़ुरआन क्या है?
राह भटके हुए मुहम्मदी अल्लाह की भूल भुलय्या ? 
या मुहम्मद की, अल्लाह का पैग़मबर बन्ने की चाहत ?

मुसलमानों!
मैं तुम्हारा और तुम्हारी नस्लों का सच्चा ख़ैर ख़्वाह हूँ , इस लिए कि दुन्या की कोई क़ौम तुम जैसी सोई हुई नहीं है. माजी परस्ती तुम्हारा ईमान बन गया है, 
जब कि मुस्तक़बिल पर तुम्हारे ईमान को क़ायम होना चाहिए. 
हमारी तहक़ीक़ात और हमारे तजुरबे, हमारे अभी तक के सच है, 
इन पर इमान लाओ. कल यह झूट भी साबित हो सकते हैं, 
तब तुम्हारी नस्लें फिर एक बार नए सच पर ईमान लाएँगी, 
उनको इस बात पर लाकर क़ायम करो, 
और उनको इस्लाम से नजात दिलाओ.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 13 December 2019

सीता कथा


सीता कथा 
भारत में ग़ुलाम  वंशज के दूसरे बादशाह अल्तुतमिश  के वक्त में बाल्मीकि कानपुर की वन्धाना तहसील में  बिठूर स्थित गाँव में रहते थे. 
उन्होंने सीता नाम की तलाक़ शुदा औरत को पनाह दी थी. 
बिठूर जाकर इस विषय में बहुत सी जानकारियाँ और निशानियाँ आज भी जन जन की ज़ुबान पर है. 
बाल्मीकि रामायण संस्कृत में, सीता पर लिखी एक रोचक कथा मात्र है. 
तुलसी दास ने हिंदी में अनुवाद कर के इस में बड़ा हेर फेर किया है. 
रचना को दिलचस्प कर दिया है. 
इसी सीता राम की कहानी को मनुवाद ने भारत का धर्म घोषित कर दिया है.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 12 December 2019

सच का एलान


सच का एलान

क़ुरआन मुकम्मल तौर पर दरोग़, किज़्ब, लग्व और मक़्र का पुलिंदा है. 
इसके मुसन्निफ़ दर परदा, अल्लाह बने बैठे मुहम्मद 
सरापा मक्र, अय्यारी, क़त्लो-ग़ारत गरी, सियासते-ग़लीज़ और दुश्मने इंसानियत हैं. 
इन की तख़्लीक़ अल्लाह, इंसानों को तनुज़्ज़ली के ग़ार में गिराता हुवा, 
इस्लाम इनकी बिरादरी क़ुरैशियों पर दरूद-सलाम भिजवाता रहेगा, 
इनके हराम ख़ोर ओलिमा बदले में ख़ुद तो हलुवा पूरी खाते है 
और करोरों मुसलमानों को अफ़ीमी इस्लाम की नींद सुलाते हैं.
मैं एक मोमिन हूँ, जो कुछ लिखता हूँ सदाक़त और ईमान की छलनी से 
बात को छान कर लिखता हूँ.
मैं क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा मुसम्मी 
(बमय अलक़ाब) ''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' 
को लेकर चल रहा हूँ जो हिंदो-पाक में अपना पहला मुक़ाम रखते हैं. 
मैं उनका एहसान मंद हूँ कि उनसे हमें इतना क़ीमती धरोहर मिला. 
मौलाना ने बड़ी ईमान दारी के साथ अरबी तहरीर का बेऐनेही (अक्षरक्ष:) 
उर्दू में तर्जुमा किया जोकि बाद के आलिमों को खटका और उन्होंने तर्जुमें में कज अदाई करनी शुरू कर दी, करते करते 'कूकुर को धोकर बछिया' बना दिया.
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' 
ने इस्लामी आलिम होने के नाते यह किया है कि ब्रेकेट के अंदर अपनी (मनमानी) बातें रख रख कर क़ुरआन की मुह्मिलात में मअने भर दिए हैं, 
मुहम्मद की ग्रामर दुरुस्त करने की कोशिश की है, 
यानी तालिब इल्म अल्लाह और मुहम्मद के उस्ताद बन कर 
उनके कच्चे कलाम की इस्लाह की है, 
उनकी मुतशाइरी को शाइरी बनाने की नाकाम कोशिश की है.
हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी ने एक और 
अहम काम किया है कि रूहानियत के चले आ रहे रवायती फ़ार्मूले 
और शरीयत की बारीकियों का एक चूँ चूँ का मुरब्बा बना कर नाम रखा 
'तरफ़सीर' 
जो कुछ क़ुरआन के तल्ख़ जुज़ थे मौलाना ने इस मुरब्बे से उसे मीठा कर दिया है. 
तरफ़सीर हाशिया में लिखी है, वह भी मुख़फ़फ़फ़ यानी short form में जिसे अवाम किया ख़वास का समझना भी मोहाल है.
दूसरी बात मैं यह बतला दूँ कि 
क़ुरआन के बाद इस्लाम की दूसरी बुनियाद है हदीसें हैं, 
हदीसें बहुत सी लिखी गई हैं जिन पर कई बार बंदिश भी लगीं मगर 
''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की हदीसें मुस्तनद मानी गई हैं. 
मैंने इनको ही अपनी तहरीर के लिए मुन्तख़िब किया है. 
ज़ईफ़ कही जाने वाली हदीसों को छुवा भी नहीं. 
याद रखें कि हदीसें ही इस्लामी इतिहास की बुन्याद हैं. 
अगर इन्हें हटा दिया जाए तो इस्लाम का कोई सच्चा मुवर्रिख़ न मिलेगा 
जैसे तौरेत या इंजील के हैं. 
क्यूं कि यह उम्मी का दीन है. 
ज़ाहिर है मेरी मुख़ालिफ़त में वह लोग ही आएँगे जो 
मुकम्मल झूट क़ुरआन पर ईमान रखते है 
और सरापा शर मुहम्मद को ''सललललाहो अलैहे वसल्लम'' कहते हैं. 
जब कि मैं अरब की आलमी इंसानी तवारीख़ तौरेत (Old Testament) को आधा सच और आधा झूट मान कर अपनी बात पर क़ायम हूँ.
***   
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 11 December 2019

ज़रा सी तब्दीली


ज़रा सी तब्दीली 

भारत उप महाद्वीप के 60 करोर मुसलमान मनुवाद के महा जाल से मुक्त, 
इस्लाम के छोटे जाल में फंस कर रह गए हैं. 
यह आकाश से गिर कर खजूर में अटके हुए लोग हैं.
मुसलमानों ने जिस तरह भी मनु वाद से मुक्ति पाई हो, 
सामजिक दबाव से, स्व -चिंतन से या और किसी करण से, 
उनके हक़ में अच्छा ही हुवा. 
मनुवाद की ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी से नजात मिली.
मुसलमानो को एक बार और जिसारत करनी होगी कि वह मुस्लिम से मोमिन हो जाएं. कोई बड़ी तब्दीली करनी नहीं पड़ेगी, 
बस बेदारी की ज़रुरत है. इस्लामी अक़ीदत को तर्क कर के, 
ईमानी हकीक़त को अपना लें, 
इसमें ख़ुद इनका ही भला न नहीं बल्कि मनुवाद के अन्धकार को भी 
रौशनी की किरण मिलेगी. उनका अस्तित्व भी दुश्वार हो जाएगा. 
ईमान क्या है ? वह सच जिसकी गवाह क़ुदरत हो, 
लौकिक सत्य, आलमी सदाक़त. 
इस्लाम कल्पित सत्य नहीं बल्कि कल्पित मिथ्य है.  
इस्लाम को मुसलमानो के हलक़ में घुट्टी की तरह पिलाया गया है.
मनुवाद हिदुओं के चेहरों पर पाथा गया गोबर है. 
इससे निकलना बहुत ही आसान है. 
60 करोर मुसलमान इसी गलाज़त से निकले हुए लोग है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 10 December 2019

हर्फ़ ए ग़लत



हर्फ़ ए ग़लत         

शर्री रसूल के बाप को किसी ने नहीं मारा कि वह उससे इंतेक़ाम ले, न दादा को. 
वह तो इस बात का बदला लेगा कि उसकी रिसालत को लोग नहीं मान रहे हैं 
जो कि किसी बच्चे के गले भी नहीं उतरती.
लाखों लोग उसके इंतेक़ाम के शिकार हो गए.
*क़ुरआन की लाखों झूटी तस्वीरें इस्लामी आलिमों ने दुन्या के सामने अब तक पेश की हैं. 
"हर्फ़ ए ग़लत" 
आप की ज़बान में ग़ालिबान पहली किताब है जो उरियां सदाक़त के साथ आप के सामने एक बा ईमान मोमिन लेकर आया है. 
इसके सामने कोई भी फ़ासिक़ लम्हा भर के लिए नहीं ठहर सकता.
क़ुरआनी अल्लाह के मुक़ाबिले में कोई भी कुफ़्र का देव और शिर्क के बुत 
बेहतर हैं कि अय्याराना कलाम तो नहीं बकते, 
डराते धमकाते तो नहीं, गरयाते भी नहीं, पूजो तो सकित न पूजो तो सकित, 
जिस तरह से चाहो  इनकी पूजा कर सकते हो, सुकून मिलेगा, बिना किसी डर के. इनकी न कोई सियासत है, न किसी से बैर और बुग्ज़.  
इनके मानने वाले किसी दूसरे तबके, ख़ित्ते और मुख़ालिफ़ पर ज़ोर ओ ज़ुल्म करके अपने माबूद को नहीं मनवाते. 
इस्लाम हर एक पर मुसल्लत होना अपना पैदायशी हक़ समझता है. 
जब तक इस्लाम अपने तालिबानी शक्ल में दुन्या पर क़ायम रहेगा, 
जवाब में अफ़गानिस्तान,इराक़ और चेचेनिया का हश्र इसका नसीब बना रहेगा.
भारत में कट्टर हिन्दू तंजीमे इस्लाम की ही देन हैं. 
ग़ुजरात जैसे फ़साद का भयानक अंजाम क़ुरआनी आयातों का ही जवाब हैं. 
ये बात कहने में कोई मुज़ायक़ा नहीं कि जो मुकम्मल मुसलमान होता है 
वह किसी जम्हूरियत में रहने का मुस्तहक़ नहीं होता. 
मुसलमानों के लिए कोई भी रास्ता बाक़ी नहीं बचा है, 
सिवाय इसके कि तरके-इस्लाम करके मजहबे-इंसानियत क़ुबूल कर लें. 
कम अज़ कम हिदुस्तान में इनका ये अमल फ़ाले नेक साबित होगा, 
राद्दे अमल में कट्टर हिन्दू ज़हनियत वाले हिन्दू भी 
अपने आप को खंगालने पर आमादा हो जाएँगे. 
हो सकता है वह भी नए इंसानी समाज की पैरवी में आ जाएँ. 
तब बाबरी मस्जिद और राम मंदिर, दो बच्चों के बीच कटे हुए पतंग के फटे हुए कागज़ को लूटने की तरह माज़ी की कहानी बन जाए. तब 
दोनों बच्चे कटी फटी पतंग को और भी मस्ख़ करके ज़मीन पर फेंक कर 
क़हक़हा लगाएँगे. 
इंसान के दिलों में ये काली बलूग़त को गायब करने की ज़रुरत है, 
और मासूम ज़ेहनों से लौट जाने की.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 9 December 2019

मुस्लिमो के लिए बेवा और तलाक़ शुदा


मुस्लिमो के लिए बेवा और तलाक़ शुदा 

 जब दस आदमी एक पर थूकें तो एक अकेला भी मायूस होकर ख़ुद पर शक करने लगता है और दस की ज़बान ज़बान ए ख़ल्क़ बन जाती है . 
कोई ज़रूरी नहीं कि एक अकेला ग़लत हो और बाक़ी दस सही .
मुसलमान बहु विवाह के लिए बदनाम है और तलाक के लिए रुस्वाए ज़माना .
मुस्लिम समाज में औरतें बेवा या अबला होने के बावजूद समाज से जुडी रहती थीं . पुराने ज़माने में ख़ास कर अरब मर्द जंगजू हुवा करते थे , 
मरते कटते अपनी औरतों को बेवा और बहनों को अनाथ छोड़ कर अल्ला को प्यारे हो जाते थे . समाज में कभी कभी नौबत यहाँ ताक पहुँच जाती कि मर्दों के मुक़ाबले औरते दो तीन ग़ुना हो जाती थी. इस सूरत में बचे हुए शादी शुद मर्दों के आगे उन औरतों को अपने निकाह में ले लेना समाजी तकाज़ा बन जाता . 
बेवा से शादी करना सवाब होता , इस पर बीवी भी शौहर का साथ देती .
रोज़ी दुश्वार हुवा करती थी घर में एक और औरत का आना शुभ था कि काम करने वाले हाथ बढ़ जाते. चूलह चक्की से लेकर चमड़ा पकाने का काम भी घरों में हुवा करता था. बेवाएं अपनी बरकत लेकर आतीं थीं . 
बेशक अधेड़ के साथ नव खेज़ बेवा ब्याह दी जाती थी. 
खानदान में कोई बेवा हुई तो रिशते तय्यार खड़े रहते .
इस तरह बेवा को सामाजिक संरक्षण ही नहीं , शारीरिक संरक्षण भी मिल जाता था .
इसके बर अक्स हिन्दू समाज को देखा जा सकता है , 
जहाँ बेवा को सत्ती माँ कहते हुए आग के हवाले कर दिया जाता था . 
कोई बाप भाई और बेटा अपने घर में विधवा को देखना पसंद नहीं करता , 
आज भी फ़ौरन आश्रम के हवाले कर देते है 
जहाँ उम्र के हिसाब से उनका शोषण होता है .
मुस्लिम में कहीं कोई आश्रम नहीं मिलता जहाँ वेवाओं को ले जा कर छोड़ आओ . अपनी औरतों को अपनी मर्यादा समझते हैं न कि भेड़ बकरी .
याद रख्खें दस की आवाज़  मिलकर सच्चाई को दबा तो सकती है 
मगर मिटा नहीं सकती . 
यही मुस्लिम समाज का हिन्दू समाज के लिए कडुवा सच है 
कि हर रोज़ उसे विसतार मिलता रहता है .
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 7 December 2019

फ़ेस बुक पर आज की मेरी पोस्ट जन्मोत्सव


फ़ेस बुक पर आज की मेरी पोस्ट 

जन्मोत्सव 

दोस्तो!
रोते और गाते हुए, झूझते और मुस्कुराते हुए, 
आज मैं 75 साल का हो गया हूँ.
हैरत में हूँ कि मैंने इतनी लम्बी उम्र पाई है. 
क्या बात है, मैं आज बहुत खुश हूँ. 
मुझे बधाई दो. 
मैं ने कभी भी जन्म दिन नहीं मनाया दूसरे लोग ख़्वाह मख़्वाह बधाई देते हैं, 
फ़ेस बुक की तरह.
मैं अपने बारे आज कुछ ख़ुलासा करना चाहता हूँ.

ब्लॉग की दुन्या में मैं पिछले दस सालों से 
"जीम मोमिन निसारुल-ईमान" के नाम से लिख रहा हूँ. 
शब्द मोमिन मुझे बहुत पसंद है, 
इससे मुक़द्दस और पवित्र शै मेरी ज़िंदगी में कुछ भी नहीं. 
मोमिन का मतलब होता है फ़ितरी सच,(लौकिक सत्य) 
इसका कठोरता को ईमानदारी से निर्वाह करने वाला मोमिन होता है, 
 अलौकिक सत्य इसके लिए मज़ाक़ मात्र होते हैं . 
इस्लाम ने मोमिन को अग़वा कर रखा 
और इसके साथ मुसलसल बलात्कार करता चला आ रहा है. 
ईमान से बना शब्द कभी इस्लाम हो ही सकता. 
इसलाम तो सरापा झूट और मसलेहत का दूसरा नाम है. 
जीम यानी जुनैद मेरे नाम को दर्शाता है जोकि मेरे नाना ने रखा था, 
निसरुल-ईमान (ईमान पर न्योछावर) 
और निसार मेरे नाना का नाम भी था जिन्हों ने बहुत कुछ वैचारिक धरोहर मुझे दिया. ब्लॉग प मेरी तहरीर क़रीब दो लाख बर पढ़ी गई और फेस बुक पर भी दो लाख बार. 

पौने सौ साला ज़िंदगी पाई, एक बार जन्म दिन मानने का मौक़ा तो है न, 
शायद फिर न मिले.
मेरा पैग़ाम है कि यह जीवन जो हमें मिला है, 
बड़ा क़ीमती है 
और ये दुन्या बहुत ही खूब सूरत. 
हर इंसान इसका सदुपयोग करे. 
हम उपमहाद्वीप के लोग इस दुन्या में बहुत पीछे हैं, 
बाक़ी लोग बहुत आगे निकल गए हैं. 
हम अरचनात्मक विषयों को ढो रहे हैं और जीवन की सच्ची खुशियों से वंचित हैं. 
यह कब तक चलेगा ? 
हम दरिन्दे बने हुए है, जंगल में चरिन्दों और परिंदों को दौडाए हुए हैं, 
दोनों थके हुए बदहाल, ज़ालिम और मज़लूम की तरह. 
आओ हम जोकि मानव मात्र हैं, मिलकर नए संविधान की रचना करें, 
इतिहास हमारा अतीत है, मरे हुए लोगों की क़ब्र गाह, 
वर्तमान को इस पर सर्फ़ न करें, 
भविष्य की सोचें जो हमारे बच्चों का युग होगा, 
क्या हम अपने बच्चों को यही क़ब्र गाहें समर्पित करेगे ? 
धूर्त लोग दौलत बटोरने में लगे हैं और हम मूर्ख उनका गुणगान कर रहे हैं. 
हम तथा कथित माताओ के पुत्र नहीं, 
हम सिर्फ़ धरती माता की संतानें हैं. 
हर इंसान हमारा भाई है. 
क्या किसी को दुखी करके तुम सुखी रह सकते हो ? 
अगर रह सकते हो तो तुम अपनी अंतर आत्मा एक कीड़े नुमा जीव मात्र हो, 
इंसान नहीं. 
अगर दुन्या के किसी भू भाग में काल पड़ा है तो हमारा पेट भर खाना हराम होना चाहिए, इतनी संवेदना आएगी तब हम इंसान कहलाने लायक़ होगे. 
वहां हिटलर, सद्दाम, बगदादी पैदा हो रहे हैं, होने दो, 
तुम्हारे यहाँ यह पैदा नहीं होने चाहिएँ. यह देखो बस.
तुम विश्व गुरु न बनो, न विश्व गुरु कभी थे, न होने की ज़रुरत है. 
तुम हज़ारों सालों के ग़ुलाम थे, यह तुम्हारा इतिहास बतलाता है. 
नई दुन्या के आईने में अपनी सूरत देखो, 
तुम मंदिर और मस्जिद के मलबे चाट रहे हो, 
वह भी इक्कीसवीं सदी में.    
हम नवीन मानव मूल्यों को लेकर इस धरती पर एक नया जन्म लें,
और दुन्या को मानवता का पैग़ाम दें. 
 ***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 6 December 2019

तराशा हुआ झूट


तराशा हुआ झूट        
   
कुफ़्फ़ार ए मक्का कहते हैं - -
" ए मुहम्मद ये क़ुरआन तुम्हारा तराशा हुआ झूट है"
क़ुरआन मुहम्मद का तराशा हुवा झूट है, ये सौ फ़ीसदी सच है. 
कमाल का ख़मीर था उस शख़्स का, जाने किस मिटटी का बना हुवा था वह, 
शायद ही दुन्या में पैदा हुवा हो कोई इंसान, तनहा अपनी मिसाल आप है वह. 
अड़ गया था अपनी तहरीक पर जिसकी बुनियाद झूट और मक्र पर रखी हुई थी. 
हैरत का मुक़ाम ये है की हर सच को ठोकर पर मारता हुवा,  
हर गिरफ़्त पर अपने पर झाड़ता हुवा, 
झूट के बीज बोकर फ़रेब की फ़सल काटने में कामयाब रहा. 
दाद देनी पड़ती है कि इस क़द्र बे बुन्याद दलीलों को लेकर 
उसने इस्लाम की वबा फैलाई 
कि इंसानियत उस का मुंह तकती रह गई. 
साहबे-ईमान लोग मुजरिम की तरह मुँह छिपाते फिरते. 
ख़ुद साख़्ता पैग़मबर की फैलाई हुई बीमारी बज़ोर तलवार दूर तक फैलती चली गई.
वक़्त ने इस्लामी तलवार को तोड़ दिया मगर बीमारी नहीं टूटी. 
इसके मरीज़ इलाज ए जदीद की जगह इस्लामी ज़हर पीते चले गए, 
ख़ास कर उन जगहों पर जहाँ मुक़ामी बद नज़मी के शिकार और दलित लोग. 
इनको मज़लूम से ज़ालिम बनने का मौक़ा जो मिला. 
इस्लाम की इब्तेदा ये बतलाती है कि मुहम्मद का ख़ाब क़बीला ए क़ुरैश की अज़मत क़ायम करना और अरब की दुन्या तक ही था, 
इस कामयाबी के बाद अजमी (गैर अरब) दुन्या इसके लूट का मैदान बनी, 
साथ साथ ज़ेहनी ग़ुलामी के लिए तैयार इंसानी फ़सल भी. 
मुहम्मद अपनी जाबिराना आरज़ू के तहत बयक वक़्त दर पर्दा अल्लाह बन गए, 
मगर बज़ाहिर उसके रसूल ख़ुद को क़ायम किया. 
वह एक ही वक़्त में रूहानी पेशवा, 
मुमालिक का रहनुमा और बेताज बादशाह हुआ , 
इतना ही नहीं, 
एक डिक्टेटर भी थे, 
बात अगर जिन्स की चले तो राजा इन्दर साबित होता है.
कमाल ये कि मुतलक़ जाहिल, एक क़बीलाई फ़र्द. हट धर्मी को ओढ़े-बिछाए, जालिमाना रूप धारे, 
जो चाहा अवाम से मनवाया, इसकी गवाही ये क़ुरआन और उसकी हदीसें हैं. 
मुहम्मद की नक़्ल करते हुए हज़ारों बाबुक खुर्मी और अहमदी हुए 
मगर कोई मुहम्मद की गर्द भी न छू सका.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 5 December 2019

प्रतिक्रियाएं


प्रतिक्रियाएं

मेरे हिंदी आर्टकिल "लिंग भेद" पर काफी कमेंटस पढ़ने को मिल रहे हैं. 
जो पाठक मेरे इस्लाम के जायज़ विरोध पर मेरी हिम्मत की दाद देते हैं, 
वही पाठक हिन्दू आस्था और मान्यता को लेकर मेरे जायज़ जायज़े पर आग बग़ुला हो रहे है. कहते है यह उनकी 5000 साल पुरानी आस्था है . 
मुस्लिम अक़ीदा क्या है ? हिन्दू आस्था है क्या ? 
कठ मुल्लों और पोंगा पंडितों की कल्पनाओं के सिवा 
कोई ठोस आधार रखती हैं यह गाथाएँ रुपी आस्थाएं ? 
अगर इस्लाम 1400 साल पुराना बदबूदार व्यंजन है, 
तो 5000 साल पुरानी वैदिक आस्थाएँ इस्लाम से चार ग़ुणा दुर्गंधित हैं. 
पोंगों ने 1000 ग़ुणा अतिश्यक्ति से काम लिया है. 
राम और कृष्ण काल को हज़ारों साल पुराना बतलाया 
और ढाई अरब साल का एक काल चक्र ? 
क्या इन बातों पर यक़ीन किया जाय ? 
बाल्मीकि का समय अल्तुतमिश के समय काल का है.
बाल्मीकि जिनके संक्षण में सीता अपने दो बेटों के साथ बिठूर में रहती थीं. 
इससे तमाम वास्तविकता खुलती है. 
तुलसी दास की रचित कल्पनाएँ हिदू धर्म बन गई हैं? 
राम के बाद कृष्ण हुए और महा भारत अभी कल की बात लगती है.
ग़ुरु गाँव ग़ुड़गांव हुवा अब ग़ुरु ग्राम हो गया. 
शिव जी की बारात हरिदर निवासी अभी अपने पूर्वजों की कथाओं में समेटे हुए हैं.
 शिव जी मुसलामानों के बाबा बर्फ़ानी बने हुए हैं 
जिनकी छड़ी मुबारक के दर्शन आज कराए जाते है. 
यही शिव जी ब्रह्मा विष्णु के साथ महेष बन कर ब्रह्मांड का सर्व नाश 
ढाई अरब साल बाद करते है > 
कोई हद होती है स्वयं घात की ? 
मैं मुसलमानों के साथ साथ अपने हिदू भाइयों को भी जागृत करना चाहता हूँ. 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान