Thursday 28 February 2019

खेद है कि यह वेद है - - -25

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (25)

हे धन स्वामी इंद्र एवं ब्रहस्पति ! 
तुम्हारी सभी स्तुत्याँ सत्य हैं, तुम्हारे ब्रत को जल नष्ट नहीं कर सकता, 
रथ एवं जुते हुए घोड़े जिस प्रकार घास की ओर दौड़ते हैं, 
उसी प्रकार तुम हमारे हवि के सम्मुख आओ.
ऋग वेद -द्वतीय मंडल  सूक्त 24(12)
महाराज कह रहे हैं घास को देख कर घोडा तो घोडा, 
रथ भी दौड़ता है. 
और इन्हीं दोनों की तरह अपने देवों को हवि को 
देख कर दौड़ने की राय देते हैं. 
पता नहीं कि इनके देव भी पशुओं के स्वाभाव के हैं ??
इनका क्या भरोसा कि देवों को यह पशु बना दें,
या पशुओं को माता. 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 27 February 2019

सूरह जिन्न ७२ (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह जिन्न- 72 = سورتہ الجن 
(मुकम्मल)

मुझे हैरत होती है की मुहम्मद के ज़माने में वह लोग थे 
जोकि क़ुरआनी बकवासों को मुहम्मद का परेशान ख़याल कहते थे,
फिर दीवाने को फ़रामोश कर दिया करते थे. 
वह इस लग्वियात को मुहम्मद का ज़ेह्नी ख़लल मानते थे, 
ये बातें ख़ुद क़ुरआन में मौजूद है, 
इस लिए कि मुहम्मद लोगों की तनक़ीद को भी क़ुरआनी फ़रमान का हिस्सा बनाए हुए हैं. वह लोग क़ुरआनी फ़रमूदात पर ऐसे ऐसे जुमले कसते कि अल्लाह की बोलती बंद हो जाया करती थी.
 आज का इंसान उस ज़माने से कई गुना तअलीम याफ़्ता है,
ज़ेह्नी बलूग़त भी लोगों की कॉफ़ी बढ़ गई है,
तहक़ीक़ात और इंक़ेशाफ़ात के कई बाब खुल चुके हैं,
फिर भी इन क़ुरआनी लग्वियात को लोग अल्लाह का कलाम माने हुए हैं.और इस बात पर यक़ीन रक्खे हुए हैं.
जाहिल अवाम को मुआफ़ किया जा सकता है, मगर
कालेज के प्रोफ़ेसर, वोकला, जज और बुद्धि जीवी भी यक़ीन रखते हैं कि अल्लाह ने ही क़ुरआन को अपनी दानिश मंदी की शक्ल बख़्शी .  
अभी तक मुहम्मद उन लोगों को पकड़ कर अपनी पब्लिसिटी कराते थे जो बक़ौल उनके अल्लाह के रसूल हुवा करते थे. अब उतर आए हैं जिन्नों और भूतों के स्तर पर.
वह इस तरह मक्र को वह आयतें बनाते है - - -

"आप कहिए कि मेरे पास इस बात की वह्यी आई है कि जिन्नात में से एक जमाअत ने क़ुरआन को सुना फिर उनहोंने कहा हमने एक अजीब क़ुरआन को सुना जो राहे रास्त बतलाता है सो हम तो ईमान ले आए और हम अपने रब के साथ किसी को शरीक नहीं करेंगे."

मुहम्मद क़ुरआन की डफ़ली अब उस मख़लूक़ से भी बजवा रहे हैं जो वहमों का वजूद है. जिन्न का वहम भी यहूदियों के मार्फ़त इस्लाम में आया है.
"और हमारे परवर दिगार की बड़ी शान है. इसने न किसी को बीवी बनाया न औलाद."
उस शख़्स को अल्लाह के वजूद का वहम अगर है और इंसानी दिल ओ दिमाग़ रखने वाला अल्लाह है तो इंसानी जिसामत उसमें क्यूं नहीं? 
उसकी बीवी और बच्चे भी होना चहिए.
इस के बर अक्स जिन्नों मलायक़ की इफ़रात से मौजूदगी 
बग़ैर जिन्स के कैसे  मुमकिन है?

"और हम में जो अहमक हुए हैं वह अल्लाह की शान में बढ़ी हुई बात करते थे. और हमारा ख़याल था कि इंसान और जिन्नात कभी अल्लाह की शान में झूट बात न कहेंगे. और बहुत से लोग आदमियों में ऐसे थे कि वह जिन्नात में से बअजे लोगों की पनाह लिया करते थे, सो उन आदमियों ने इन जिन्नात लोगों की बाद दिमागी और बढ़ा दी."

क्या कहना चाहा है उम्मी ने? इसे कठ बैठे मुल्ला ही समझें.
अल्लाह को पोलिस बन कर अपने ही कायनात की तलाशी लेनी पड़ सकती है क्या? कि किसी मुजरिम ने आसमान में शोले छुपा रक्खा था. 
साथ साथ पहरे भी सख़्ती के साथ थे, फिर भी अल्लाह हो असग़र (यानी  शैतान) आसमान में कान  लगाए बैठा रहता है कि वहां की कोई ख़बर मिल सके. ग़रज़ उसके लिए तारे का बुर्ज बना दिया  जो कि शोले के साथ उस का पीछा करता है. ये तमाम कहानियाँ गढ़ राखी हैं रसूल ने इसको  मुहम्मदी उम्मत वजू करके और टोपी लगा कर पढ़ती है.

"और हम नहीं जानते कि ज़मीन वालों को कोई तकलीफ़ पहुँचाना मक़सूद है या उनके रब ने उनको हिदायत लेने का एक किस्सा फ़रमाया."
ऐसे किस्सों से क़ुरआन भरा हुवा है, जिसे मुसलमान दिनों रात तिलावत करते हैं.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 26 February 2019

खेद है कि यह वेद है


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (24)

मन्तर अर्थात मन+तंत्र 
वेद श्लोक को उर्फ़ आम में वेद मंत्र कहा जाता है,
अर्थात मन का तंत्र. 
मन तो हर समय उड़ा करता है, 
कभी यहाँ तो कभी वहाँ. 
कभी इस शाख पर तो कभी उस शाख पर. 
यह मनमौजी, मन चला होता है. 
अस्थिर. 
बचपन में मैं मदारी के मन्त्र सुनता था तो कुछ समझ में न आता. 
बड़े होने पर पता चला कि न समझ में आने वाले शब्द मन्तर होते हैं. 
हमारे भारत में भी मुख्यता दो भाषाएँ ऐसी हैं जो मंतर प्रधान हैं 
और दोनों को मदारियों के सिवा कोई नहीं समझ पाता. 
पहली संस्कृत है और दूसरी अरबी. 
इन्हीं दोनों भाषाओँ  में मदारी मन्त्र बघारते हैं.
शुकर है नव युग का कि विद्वानों ने हमें 
वेद और क़ुरान जैसी किताबों का हर भाषा में अनुवाद करके दे दिया. 
ज़रुरत है कि हम इन्हें आस्था का चश्मा उतार कर 
खुली आखों से पढ़ें और वास्तविकता को स्वीकारें.
मन की बातों को मन में आने जाने दें, 
दिल की आवाज़ सुनें. ह्रदय ध्वनि को माने.  
ह्रदय ध्वनि हमेशा लौकिक और प्रकृतिक सत्य पर आधारित होती है, 
आडंबरों और आस्थाओं से परे होती है ह्रदय ध्वनि. 
ह्रदय ध्वनि को ज़मीर की आवाज़ भी कहते हैं. 
ह्रदय ध्वनि या ज़मीर की आवाज़ अथवा अंतर आत्मा की पुकार 
को सुनने वाला मानव, मानव से महा मानव हो जाता है.
सम्पूर्ण ऋग वेद मंगाकर पढ़ें और जानें कि आने वाला समय आपकी नस्लों को कहाँ ले जाना चाहता है ?
ब्रह्मांड की खोज में या 
काँवडयों की काँवड यात्रा 
अथवा हज के सफ़र में.


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (23)

हे बृहस्पति ! जो तुम्हें हव्य अन्न देता है, 
उसे तुम न्याय पूर्ण मार्ग से ले जाकर पाप से बचाते हो. 
तुम्हारा यही महत्त्व है कि तुम यज्ञ  का विरोध करने वाले को 
कष्ट देते एवं शत्रुओं की हिंसा करते हो. 
द्वतीय मंडल सूक्त 23(4)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

ब्रह्मणस्पति और बृहस्पति भी इंद्र देव की तरह कोई इनके देव होंगे. 
इनके सामने पुरोहित उन लोगों को नाश कर देने की तमन्ना करते हैं 
और उनको उनका हिंसक महत्व बतलाते हैं. 
उनको हिंसा करने का निमंत्रण देते हैं.
एक ओर हिन्दू अहिंसा का पुजारी है कि वह पानी भी छान कर पता है 
और दूसरी ओर हर मौके पर हवन कराता है, 
कि हे देव तुम हिंसा करो, हम पर पाप लगेगा. 
ठीक ही कहा है किसी ने - - -

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह नूह- 71 = سورتہ نوح (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह नूह- 71 = سورتہ  نوح 
(मुकम्मल)

देखिए क़ुरआनी अज़मातें - - -

"हम ने नूह को इनके क़ौम के पास भेजा था कि तुम अपनी क़ौम को डराओ, क़ब्ल  इसके कि इन पर दर्द नाक अज़ाब आए."
क़ुरआनी आयतें साबित करती हैं कि इंसान का पैदा होना ही उसके लिए अज़ाब है. 
ये पैग़ाम मुसलामानों को अन्दर से खोखला किए हुए है. 
बेमार की तौबा ? इनको राहत पहुँचाती है, 
ये वजूद पर ग़ैर ज़रूरी तसल्लुत है. 
कोई किसी को दर्द नाक अज़ाब क्यूँ दे? 
वह भी अल्लाह? बकवास है ये रसूली आवाज़.
"उनहोंने कहा ऐ मेरी क़ौम! मैं तुम्हारे लिए साफ़ साफ़ डराने वाला हूँ कि तुम अल्लाह की इबादत करो और उससे डरो और हमारा कहना मानो तो वह तुम्हारे गुनाह मुआफ़ करेगा और तुमको वक़्त मुक़र्रर तक मोहलत देगा."
मुहम्मद झूट का लाबादः ओढ़ कर ख़ुद नूह बन जाते हैं, 
कभी इब्राहीम तो कभी मूसा. 
अफ़सोस कि इस्लामी दुन्या एक झूठे की उम्मत कहलाना पसंद करती है.
"नूह ने दुआ की कि ऐ मेरे अल्लाह! मैंने अपनी क़ौम को रात को भी और दिन को भी बुलाया, सो वह मेरे बुलाने पर और ही ज़्यादः भागते रहे और हमने जब भी बुलाया कि आप उनको बख़्श दें, तो उन्हों ने अपनी उंगलियाँ अपने कानों में दे लीं और अपने कपड़े लपेट लिए और इसरार किया और ग़ायत दर्जे का तकब्बुर किया."
अपने कलाम में मुहम्मद अपने मेयार के मुताबिक़ फ़साहत और बलूग़त भरने की कोशिश कर रहे हैं जब कि जुमले को भी सहीह अदा नहीं कर पा रहे.
सुबहो-शाम की जगह  "अपनी क़ौम को रात को भी और दिन को भी बुलाया" 
जैसे जुमलों में पेश करते हैं.
मालिके कायनात को क्या ऐसी हक़ीर बाते बकने के लिए है. 
मुहम्मद ने उस हस्ती को पामाल कर रखा है.
क्या किसी पागल की गूफ़्तुगू इससे हटके हो सकती है?
"कसरत से तुम पर बारिश भेजेगा"
अगर तुम उम्मी को पैग़म्बर मान लो तो.
"और तुम्हारे लिए बाग़ लगा देगा और नहरें बहा देगा."
शर्त है कि उसको अल्लाह का रसूल मानो.
"तुमको क्या हुवा कि तुम उसकी अजमतों के मुअत्किद नहीं हो."
उसकी अज़मतों का सेहरा मक्कार मुहम्मद पर मत बाँधो, 
मुसलामानों .
अल्लाह को एक बन्दा समझा रहा है कि तू अपने बन्दों का गुनहगार बन जा, 
उसको नशेब ओ फ़राज़ समझा रहा है.
क्या ये सब तुमको मकरूह नहीं लगता?
"ऐ मेरे रब ! मुझको, मेरे माँ बाप को और जो मोमिन होने की हालत में मेरे घर दाख़िल हैं, और तमाम मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतों को बख़्श दे और ज़ालिमों की हलाक़त और बढ़ा दे."
सूरह नूह- 71 आयत (1 -2 7)
इसके बाद अल्लाह ख़ुद किसी अल्लाह से दुआ मांग रहा है?
कितनी अहमक क़ौम है ये जिसको मुसलमान कहते हैं.
*** 
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Saturday 23 February 2019

सूरह मुआरिज 70 आयत (36 -39 )

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****


मुआरिज़- 70 = سورتہ المعارج
(मुकम्मल)

मुहम्मद का क़यामत का शगूफ़ा इतना कामयाब होगा कि इसे सोचा भी नहीं जा सकता. आज इक्कीसवीं सदी में भी क़यामत की अफ़वाह अक्सर फैला करती है, 
तब तो ख़ैर दुन्या जेहालत के दौर में मासूम थी.
अवाम उमूमन डरपोक हुवा करती है. 
हाद्साती अफ़वाहों को वह ख़ुद हवा दिया करती है. अहले क़ुरैश से एक शख़्स  क़यामत आने की ख़बर समाज को देता है, 
इसे वह मुश्तहिर करता है. लोग हज़ार झुट्लाएं, वह बाज़ नहीं आता. 
उसकी वजेह से मक्का में लोगों को क़यामत का सपना आने लगा था. 
क़यामत की वबा फ़ैल चुकी थी, वह चाहे यक़ीन के तौर पर या इसका मज़ाक़ ही बन गया हो.
क़यामत का नया बाब खोलते हुए मुहम्मदी अल्लाह कहता है - -

"एक दरख़्वास्त करने वाला इस अज़ाब की दरख़्वास्त करता है कि जो काफ़िरों पर होने वाला है, जिसका कोई दिफ़अ करने वाला नहीं है और जो कि अल्लाह की तरफ़ से वाक़ेअ होगा, जो कि सीढ़ियों का मालिक है. फ़रिश्ते और रूहें इसके पास चढ़ कर जाती हैं. ऐसे दिन में होगा जिस की मिकदार पचास हज़ार साल होगी, सो आप सब्र कीजिए और ऐसा सब्र कि जिसमें शिकायत का नाम न हो.'
सूरह मुआरिज 70 आयत (1-5 )

मुहम्मदी अल्लाह क़यामत के एक दिन का वक्फ़ा यहाँ पर 50,000 साल बतलाता है, इसके पहले हज़ार साल बतलाया था, और अब जल्द ही आने वाली है, तो हर सूरह में बार बार दोहराता है. 
फ़ारसी मुहाविरा है कि 'झूट बोलने वाले की याद दाश्त कमज़ोर होती है' 
बहुत दिनों से मुसलामानों को चौदहवीं सदी का इन्तेज़ार था, 
मुहम्मद ने इस सदी के लिए पेशीन गोई कि थी जो आधी होने को है.
क्या मुसलमान मुसलसल ख़द्शे की ज़िन्दगी जी रहा है?

"ये लोग इस दिन को बईद देख रहे हैं और हम इसको क़रीब देख रहे हैं, जिस दिन तेल तलछट की तरह हो जाएगा और पहाड़ रंगीन उन की तरह"
सूरह मुआरिज 70 आयत (6 -9)

मुहम्मद का साज़िशी दिमाग़ हर वक़्त कुछ न कुछ उधेड़ बुन किया करता है, जिसके तहत क़यामत के ख़ाक़े बना करते हैं. इस तरह से क़ुरआन का पेट भरता रहता है. तेल तलछट की तरह हो जाएगा तो ये भी अल्लाह की कोई बात हुई,
तेल के नीचे तो तलछट ही होता है.

"और उस रोज़ कोई दोस्त, किसी दोस्त को न पूछेगा, बावजूद एक दूसरे को दिखा दिए जाएँगे और मुजरिम इस बात की तमन्ना करेगा कि अज़ाब से छूटने के लिए, अपने बेटों को, बीवी को, भाई को, और क़ुनबे को जिस में वह रहता था और तमाम अहले ज़मीन को फ़िदया में देदे, फिर ये इसको बचाए, ये हरगिज़ न होगा, बल्कि आग ऐसी हिगी जो ख़ाल उधेड़ देगी.'
सूरह मुआरिज 70 आयत (10-16 )

एक पाठक ने पिछले ब्लॉग पर मुझ से पूछा है कि दुन्या में मुसलमानों की पस्मान्दगी की वजेह क्या है?
उनको मैने इन्हीं आयतों पर मुसलामानों का पुख़ता यक़ीन बतलाया था.

मुसलमानों! क्या तुम आयत (आयत10-16 ) में मुहम्मद की साज़शी बू नहीं पा रहे हो? तुम्हारा रहनुमा तुमको और तुम्हारी नस्लों को ठग रहा है, 
आँखें खोलो.
जो इस्लाम से जुडा हुआ सर गर्म है, 
उसे ग़ौर से समझो कि वह मज़हब को ज़रीआ मुआश बनाए हुए है, 
न कि वह अच्छा इंसान है,
अच्छे और नेक तो आप लोग हो जो अपनी नस्लों को उनके यहाँ गिरवीं रक्खे हुए हो.
मैं तुम्हारी गिरवीं पड़ी अमानत को बेख़ौफ़ होकर उनसे तुम्हारे हवाले कर रह हूँ.

"जो अपनी शर्म गाहों को महफ़ूज़ रखने वाले हैं, लेकिन अपनी बीवी से और अपनी लौंडियों से नहीं, क्यूंकि इन पर कोई इलज़ाम नहीं. हाँ जो इसके अलावा तलब गार हो, ऐसे लोग हद से निकलने वाले हैं."
सूरह मुआरिज 70 आयत (29 -30)

मुहम्मदी अल्लाह कहाँ से कहाँ पहुँच गया? 
इसी को 'बे वक़्त, बे महल बात' कहते है. 
उम्मी के पास कोई मुफ़क्किर का ज़ख़ीरा तो था ही नहीं, 
लेदे के एक ही बात को बार बार औटा करता है.
मुसलमानों! क्या आज तुम लौडियाँ रखते हो?
 नहीं! तो फिर उस अहमक की बातों में क्यूँ मुब्तिला हो?
जैसे लौंडियाँ हराम हो गई हैं, वैसे ही इस्लाम को अपने ऊपर हराम कर लो.  

"तो काफ़िरों को क्या हुवा कि आप की तरफ़ को दाएँ और बाएँ जमाअतें बन बन कर दौड़ रहे हैं. क्या इस में से हर शख़्स इसकी हवस रखता है कि वह आशाइश की जन्नत में दाख़िल होगा. ये हरगिज़ न होगा. हमने इनको ऐसी चीज़ से पैदा किया है कि जिसकी इनको भी ख़बर नहीं."
सूरह मुआरिज 70 आयत (36 -39 )

क्या पैग़ाम दे रही हैं ये अल्लाह की बातें ?
ख़ुद मुसलमान इस की हवस रखाता है कि वह आशाइश की जन्नत में दाख़िल और काफ़िरों पर इलज़ाम है. इसी को लोग इस्लामी तअस्सुब कहते हैं.
इंसान कैसे पैदा हुवा है, इसको हमारे साइंसटिस्ट साबित कर चुके हैं जो रोज़े रौशन की तरह उजागर है, ख़ुद फ़रेब अल्लाह इसे राज़ ही रखना चाहता है.

"फिर मैं क़सम खाता हूँ मग़रिब और मशरिक़ के मालिक की, कि हम इस पर क़ादिर हैं कि इनकी जगह इन से बेहतर लोग ले आएँगे और हम आजिज़ नहीं हैं, सो इनको आप इसी शुगल में और इसी तफ़रीह में रहने दीजिए."
सूरह मुआरिज 70 आयत  (42 )

मुहम्मदी अल्लाह दो दिशाओं की क़सम खाता है? 
गोलार्ध की मुख्य लीक को जो सूरज की चाल की है, शुमाली और जुनूबी को वह जानता भी नहीं. जिस अल्लाह की जानकारी इस कद्र सीमित हो, उसको ख़ुदा कहलाने में शर्म नहीं आती?
मुसलामानों! तुम पर दूसरी क़ौमें ग़ालिब हो चुकी हैं, ये इस्लाम की बरकत ही है. ईराक और लीबिया मौजूदः मिसालें हैं.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 22 February 2019

खेद है कि यह वेद है - - -22



खेद  है  कि  यह  वेद  है  (22)

इंद्र ने अपनी शक्ति द्वारा इधर उधर जाने वाले पर्वतों को अचल बनाया, 
मेघों के जल को नीचे की ओर गिराया, 
सब को धारण करने वाली धरती को सहारा दिया 
और अपनी बुद्धिमानी से आकाश को नीचे गिरने से रोका है.  
द्वतीय मंडल सूक्त 17(5)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

कुरआन कहता है कि आसमान बिना खंबे की छत है 
और वेद भी  कुछ ऐसा ही कहता है. 
कुरआन की बातें सुनकर हिन्दू मज़ाक़ उड़ाता है, 
और कहता है वेद को अपमानित मत करो 
क्योकि यह सब  से पुराना ग्रन्थ है. 
दोनों को ग़लत फ़हमी है कि योरोपियन इन्ही ग्रंथो से बहु मूल्य नुस्खे उड़ा कर ले गए हैं और आज आकाश को नाप रहे हैं. 
कितनी बड़ी विडंबना है - - -  इंसानी वैचारिकता के लिए.

' निसारुल-ईमान

Thursday 21 February 2019

सूरह हाक़्क़ा- 69 = سورتہسورتہ الحاققہ (मुकम्मल

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****


सूरह हाक़्क़ा- 69 = سورتہسورتہ الحاققہ
(मुकम्मल)

"वह होने वाली चीज़ कैसी कुछ है, वह होने वाली चीज़,
आपको कुछ ख़बर है, कैसी कुछ है, वह आने वाली चीज़. 
सूरह हाक़्क़ा- 69 आयत (1-3)

मुहम्मद के सर पे क़यामत का भूत था,या साज़िशी दिमाग़ की पैदावार, 
कहना ज़्यादः बेहतर होगा साज़िशी दिमाग़. 
वह क़ुरआन को उसी तरह बकते हैं जैसे एक आठ साल के बच्चे को बोलने के लिए कहा जाए, उसके पास अलफ़ाज़ ख़त्म हो जाते है, वह अपनी बात दोराने लगता है. उसका दिमाग़ थक जाता है तो वह भाषा की क़वायद भी भूल जाता है. 
जो मुँह में आता है, आएँ बाएँ शाएँ बकने लगता है 
अगर सच्चाई पर कोई आ जाए तो क़ुरआन का निचोड़ यही है.

''सुमूद और आद ने इस खड़ खड़ाने वाली चीज़ की तक़ज़ीब की, सुमूद तो एक ज़ोर की आवाज़ से हलाक कर दिए गए और आद जो थे, एक तेज़ तुन्द हवा से हलाक कर दिए गए. 
सूरह हाक़्क़ा- 69 आयत (4-6 )

आपने कभी आल्हा सुना हो तो समझ सकते हैं कि उसके वाक़ेआत सारे के सारे लग्व और कोरे कल्पित होते हैं, इसके वाद भी अल्फ़ाज़ की बन्दिश और सुख़नवरी आल्हा को अमर किए हुए है कि सुन सुन कर श्रोता मुग्ध हो जाता है. 
उसके आगे मुहम्मद का क़ुरआनी आल्हा ज़ेहन को छलनी कर जाता है, 
क्यूंकि इसे चूमने चाटने का मुक़ाम हासिल है.

''जिसको अल्लाह तअला ने सात रात और आठ दिन मुतावातिर मुसल्लत कर दिया. वह तो उस क़ौम को इस तरह गिरा हुवा देखाता कि वह गोया गिरी हुई खजूरों के ताने हों." 
सूरह हाक़्क़ा- 69 आयत (7 )

किस को सात रात और आठ दिन मुतावातिर मुसल्लत कर दिया ? 
किस पर मुसल्लत कर दिया? 
अल्लाह के इशारे पर पहाड़ और समंदर उछलने लगते हैं, 
फिर किस बात ने उसको मुतावातिर मुसल्लत करते रहने के अज़ाब में मुब्तिला रक्खा. मुहम्मद का ज़ेह्नी परवाज़ भी किस क़दर फूहड़ है. 
अल्लाह को अरब में खजूर इन्जीर और जैतून के सिवा कुछ दिखाता ही नहीं.

''फ़िरऔन ने और इस से पहले लोगों ने और लूत की उलटी हुई बस्तियों ने बड़े बड़े कुसूर किए, सो उन्हों ने अपने रसूल का कहना न माना तो अल्लाह ने इन्हें बहुत सख़्त पकड़ा. हमने जब कि पानी को तुग़यानी हुई, तुमको कश्ती में सवार किया ताकि तुम्हारे लिए हम इस मुआमले को यादग़ार बनाएँ और याद रखने वाले कान इसे याद रक्खें."
सूरह हाक़्क़ा- 69 आयत (10-14)

पाषाण युग के लूत कालीन बाशिदों का ज़िक्र है कि उस गड़रिए  लूत की बातें मुहम्मद कर रहे है जो बूढा बेय़ार ओ मदद गार अपनी दो बेटियों को लेकर एक पहाड़ पर रहने लगा था.
मुहम्मद अपने लिए पेश बंदी कर रहे हैं कि मुझ रसूल की बातें न मानोगे तो अल्लाह तुम्हारी बस्तियों को ज़लज़ले और सूनामी के हवाले कर देगा.

"फिर सूर में यकबारगी फूँक मार दी जाएगी और ज़मीन और पहाड़ उठा लिए जाएँगे फिर दोनों एक ही बार में रेज़ा रेज़ा कर दिए जाएँगे, तो इस रोंज़ होने वाली चीज़ हो पड़ेगी." 
सूरह हाक़्क़ा- 69 आयत (15)

जब ज़मीन और पहाड़ उठा लिए जाएँगे तो हज़रत के गुनाहगार दोज़ख़ी कहाँ होंगे?

"आसमान फट जाएगा और वह उस दिन एकदम बोदा होगा और फ़रिश्ते उसके किनारे पर आ जाएगे और आपके परवर दिगार के अर्श को उस रोंज़ फ़रिश्ते उठाए होगे."
ऐसे फटीचर अल्लाह से अल्लाह बचाए.
मुसलमानों! 
अपने अल्लाह का ज़ेहनी मेयार देखो, उसकी अक़्ल पर मातम करो, 
आसमान फट जाएगा, इस मुतनाही कायनात को काग़ज़ का टुकड़ा समझने वाला तुम्हारा नबी कहता है कि फिर ये बोदा (भद्दा) हो जायगा ? फटे हुए आसमान को फ़रिश्ते अपने कन्धों पर ढोते रहेंगे ?
क्या इसी आसमान फाड़ने वाले अल्लाह से तुम्हारी फटती है ? ?

"उस शख़्स  को पकड़ लो और इसके तौक़ पहना दो, फिर दोज़ख में इसको दाख़िल कर दो फिर एक ज़ंजीर में जिसकी पैमाइश सत्तर गज़  हो इसको जकड दो. ये शख़्स  अल्लाह बुज़ुर्ग पर ईमान नहीं रखाता था." 
(30-33)
कोई खुद्दार और ख़ुद सर था मुहम्मद के मुसाहिबों में, जोकि उनकी इन बातों से मुँह फेरता था, उसका बाल बीका तो कर नहीं सकते थे मगर उसको अपने क़यामती डायलाग से इस तरह से ज़लील करते हैं.

"मैं क़सम खाता हूँ उन चीजों की जिन को तुम देखते हो और उन चीजों की जिन को तुम नहीं देखते कि ये क़ुरआन कलाम है एक मुअज्ज़िज़ फ़रिश्ते का लाया हुवा और ये किसी शायर का कलाम नहीं." 
सूरह हाक़्क़ा- 69 आयत (38 -41)

कौन सी चीज़ें है जो अल्लाह को भी नहीं दिखाई देतीं? क्या वह भी अपने मुसलमान बन्दों की तरह ही अँधा है. फिर क़समें खा खाकर अपनी ज़ात को क्यूं गुड गोबर किए हुए है.
मुसलमानों! 
तुम्हें इन अफ़ेमी आयतों से मैं नजात दिला रहा हूँ. 
मेरी राय है कि तुम एक ईमान दार ज़िन्दगी जीने के लिए इस 'मोमिन' की बात मानों और अपनी ज़ात को सुबुक दोश करो. 
इन क़ुरआनी बोझ से और इन ग़लाज़त भरी आयातों से.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 19 February 2019

खेद है कि यह वेद है - - -21




खेद  है  कि  यह  वेद  है  (21)

हे इंद्र ! घास खाकर तृप्त होने हुई गाय जिस प्रकार अपने बछड़े की भूख को समाप्त करती है, उसी प्रकार तुम शत्रु वाधा सम्मुख आने से पूर्व ही हमारी रक्षा कर लो. 
जिस प्रकार पत्नियां युवक को घेरती हैं, 
उसी प्रकार हे शत्तरुत्र इंद्र ! हम सुन्दर स्तुत्यों द्वारा तुमको घेरेंगे.
सूक्त 16-8 

पंडित अपनी सुरक्षा अग्रिम ज़मानत की तरह इंद्र देव से तलब करता है. 
उपमा देखिए कि जिस तरह धास खाकर गाय अपने बछड़े को तृप्त रखती है. अनोखी मिसाल . . .  
" पत्नियाँ सामूहिक रूप में युवक को घेरती हैं"
हो सकता है वैदिक युग में यह कलचर रहा हो 
कि इस पर उनके पतियों को कोई एतराज़ न होता रहा हो, 
वैसे कामुक इंद्र देव की रिआयत से पत्नियों की जगह कुमारियाँ होना चाहिए था. 
पंडित जी कहते हैं उसी तरह वह इन्दर देव को घेरेगे.
हिंदुओ ! कब तक इन पाखंडियों के मनुवाद के घेरे में घिरे रहोगे?


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 18 February 2019

सूरह क़लम- 68 = سورتہ القلم (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह क़लम- 68 = سورتہ القلم
(मुकम्मल)

"नून"
ये हुरूफ़ ए मुक़त्तेआत है जिसके मअनी अल्लाह ही बेहतर जनता है. 
हुरूफ़ ए मुक़त्तेआत 50 बार क़ुरआन में आए है. 
इस्लामी वज़ेअ में सजे हुए (नूरानी गोल्डेन दाढ़ी, सफ़ा चट्ट  मुच्छें, सर पे पगड़ी और आँखों में सुरमा) मुल्ला को, 
व्यँग से 'चुकतता मुक़तता' कहा जाता है. 
इसी रिआयत से ऐसे बेमानी लफ़्ज़ों को 'हुरूफ़ ए मुक़त्तेआत" कहा गया होगा.

"क़सम है क़लम की और इसके लिखने की, कि आप अपने रब के फज़ल से मजनू नहीं हैं"
"और आपके लिए ऐसा उज्र है जो ख़त्म होने वाला नहीं. और आप बेशक एख़लाक़ के आला पैमाने हैं"
"तो अनक़रीब आप भी देख लेंगे और ये लोग भी कि तुम में किसको जूनून था."
सूरह क़लम - 68  आयत(1-2-3-4-7)

"और आप ऐसे शख़्स का कहना न मानें जो बहुत क़समें खाने वाला हो, 
बे वक़अत हो तअने देने वाला हो, चुग़लियाँ लगाता फिरता हो, नेक काम से रोकने वाला हो."
"हद से गुज़रने वाला हो, गुनाहों का करने वाला हो, सख़्त मिज़ाज हो, इन सब के अलावा हराम ज़ादा हो, इस सबब से कि माल और औलाद वाला हो. जब हमारी आयतें उसके सामने पढ़ी जाती हैं तो वह कहता है, ये बे सनद बातें हैं. अगलों से मंक़ूल होती चली आई हैं. हम अनक़रीब उसकी नाक पर दाग़ लगा देंगे."
सूरह क़लम - 68  आयत (11-16 )

"और ये काफ़िर जब क़ुरआन सुनते है तो ऐसे मालूम होते हैं कि गोया आपको अपनी निगाहों से फिसला कर गिरा देंगे और कहते हैं कि ये मजनू है, हालाँकि ये क़ुरआन  जिसके साथ आप तकल्लुम फ़रमा रहे है, तमाम जहाँ के लिए नसीहत है." 
सूरह क़लम - 68  आयत (52)

मुहम्मदी अल्लाह अपने रसूल के लिए क़लम की क़सम खाता है जिससे उसका कोई वास्ता नहीं है. वह इस बात की भी मुहम्मद को ये यक़ीन दिलाने के लिए कहता है कि आप जनाब दीवाने नहीं बल्कि आला ज़र्फ़ इंसान हैं, जैसे कि ख़ुद मुहम्मद अपनी इन ख़ूबियों से नावाक़िफ़ हों. मुहम्मद की अय्यारी ख़ुद इन आयतों का आईना दार हैं. मुहम्मद अपने दुश्मनों के लिए सलवातें ही नहीं, गालियाँ भी अपने अल्लाह के ज़बानी सुनाते हैं.
मुसलामानों! 
क्या तुम सैकड़ों साल के पुराने क़बीलों से भी गए गुज़रे हो? 
जो इन बकवासों से इस शख़्स को अपनी निगाहों से गिराए हुए थे. 
एक अदना सा बन्दा तुम्हारा ख़ुदा और तुम्हारा रसूल बना हुवा है, 
वह भी इन ग़लीज़ आयतों की पूरी दलील और पूरे सुबूत के साथ.
जागो, वर्ना तुम्हारी मौत अनक़रीब लिखी हुई है. ज़माना तुम्हारी जेहालत का शर अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता.
सादिक़ दुन्या में बातिल ख़ुद अपने आप में घुट रहा है. 
क्या तुम कोई घुटन महसूस नहीं कर रहे हो?
इस सूरह में एक वाहियात सी मिसाल भी है कि 
लोगों ने बग़ैर इंशा अल्लाह कहे रात को खेत काटने की बात ठानी, 
सुब्ह देखते हैं कि खेत में फ़सल ग़ायब है. ताक़ीद और नसीहत है कि बिना इंशा अल्लाह कहे कोई वादा मत करो. ये इंशा अल्लाह बे ईमानो को कॉफ़ी मौक़ा दिए हुए है कि वह मामले को टालते रहें. इस इंशा अल्लाह में मुसलमानों की बद नियती शामिल रहती है.
*** 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 17 February 2019

खेद है कि यह वेद है - - -20



खेद  है  कि  यह  वेद  है  (20)

विवाह की इच्छा से आई हुई कन्याओं को भागता देख कर परावृज ऋषि सब के सामने खड़े हुए. 
इंद्र की कृपा से वह पंगु दौड़ा और अँधा होकर भी देखने लगा. 
इंद्र ने यह सब सोमरस के मद में किया है.
सूक्त 15-7 

आप भांग पीकर इस वेद श्लोक को जितना चाहें और जैसे चाहें कल्पनाओं की दुन्या में कूद सकते हैं मगर मैं समझता हूँ कि वेद ज्ञान को शून्य कर देता है,अज्ञानता में ढकेल देता है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 15 February 2019

सूरह मुल्क - 67 = سورتہ الملک (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****


सूरह मुल्क - 67 = سورتہ الملک 
(मुकम्मल)

मुसलमानों !
ख़ुद साख़ता अल्लाह बना पैग़म्बर कहता है - - -
"वह बड़ा आलीशान है, जिसके क़ब्ज़े में तमाम सल्तनत है और हर चीज़ पर क़ादिर है, जिस ने मौत और हयात पैदा किया, ताकि तुम्हारी आज़माइश करे कि तुम में अमल में कौन ज़्यादः अच्छा है और वह ज़बरदस्त बख़्शने वाला है."
सूरह मुल्क - 67 आयत (1-2)

मुसलामानों ! 
अगर किसी अल्लाह ने तुमको आज़माने के लिए पैदा किया है तो उस पर लअनत भेजो. एक बाप अपनी औलाद को पाल पोस कर इस लिए परवान चढ़ाता कि औलाद बड़ी होकर उसके बुढ़ापे का सहारा बनेगी, 
इंसानी कमज़ोरी के तहत ये बात जायज़ हो सकती है, 
अल्लाह का अगर ये ख़याल है तो तुम उस अल्लाह के मुँह पर उसके एलान को मार दो. 

"जिसने सात आसमान ऊपर तले पैदा किए. सो तू फिर निगाह डाल के देख ले  . . . फिर बार बार निगाहें ज़ेल और दरमान्दा होकर तेरी तरफ़ लौट आएँगी और क़रीब के आसमान को चराग़ों से आरास्ता कर रखा है और हमने उनको शैतान के मारने का ज़रीया भी बना दिया है और हम ने उनके लिए दोज़ख का अज़ाब भी तैयार कर रखा है."
सूरह मुल्क - 67 आयत (3-5)

कहाँ हैं ऊपर तले सात आसमान? 
ये मुहम्मदी अटकलें हैं. 
वह अरबों खरबों सितारों और सय्यारों को शामयाने की क़िन्दील समझते हैं और सितारों के टूटने को राम बाण. 
अहमकों के सरदार सरवरे कायनात.

"जब काफ़िर लोग दोज़ख में डाले जाएँगे तो उसकी बड़ी शोर की आवाज़ सुनेंगे और वह इस तरह ज़ोर मारती होगी जैसे मालूम होगा कि ग़ुस्से के मारे फट पड़ेगी . . . "
सूरह मुल्क - 67 आयत (8 )

क्या मुहम्मदी अल्लाह में तुमको कहीं भी जेहालत नज़र नहीं आती?

"बेशक जो लोग अपने परवर दिगार से बे देखे डरते हैं, उनके लिए मग़फ़िरत और उज्र ए अज़ीम है."
सूरह मुल्क - 67 आयत (11)

पैग़म्बर दग़ाबाज़ है जो बग़ैर देखे और बिना सोचे समझे किसी अल्लाह या रसूल्लिल्लाह का यक़ीन दिलाता है. 
मुअज्ज़िन झूटी गवाही अपनी अज़ान में देता है, उसको सज़ा मिलनी चाहिए. 

"आप कहिए कि उसी ने तुमको पैदा किया और कान, नाक और दिल दिया मगर तुम लोग कम शुक्र करते हो"
सूरह मुल्क - 67 आयत (23)
अफ़सोस कि मुसलमान अपने कान, नाक और दिल का इस्तेमाल नहीं करता.  
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 14 February 2019

खेद है कि यह वेद है - - -19


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (19)

दभीति को उनके नगर से बाहर ले जाने वाले असुरों को इंद्र ने मार्ग में रोका एवं उनके प्रकाश मान आयुधों को आग में जला दिया. 
इसके पश्चात इंद्र ने उन्हें बहुत सी गायें घोड़े और रथ प्रदान किए. 
इंद्र ने यह सब सोमरस के नशे में किया.
सूक्त 15-4
ऐसी हरकतें कोई नशे के आलम में ही कर सकता है 
कि दुश्मन के प्रकाशमान आयुधों को जला दे 
फिर उसको गाएँ घोड़े और रथ दे.
इंद्र की इस हरकत को किसी ने नहीं देखा 
अलबत्ता श्लोक रचैता पंडित ने ज़रूर इसे भंग के नशे में लिखा होगा .
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 12 February 2019

खेद है कि यह वेद है - - -18


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (18)

हे यज्ञ कर्म करता अध्वर्युजनो ! तुम जो चाहते हो वह इंद्र के लिए सोमरस देने पर तुरंत मिल जाएगा. 
याज्ञको ! हाथों द्वारा निचोड़ा हुवा सोम रस लाकर इंद्र के लिए प्रदान करो.
द्वतीय मंडल सूक्त 14-8 
यज्ञ आयोजन करने वालों को पंडित आश्वासन सोमरस के चढ़ावे से इंद्र प्रसन्न हो जाएगे. 
ध्यान रख्खें वह ओम्रस हाथों द्वारा निचोड़ा हो, न कि पैरों द्वारा अथवा मशीनों द्वारा.
धन्य है पोंगा पंडितो.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 11 February 2019

सूरह तहरीम- 66 = سورتہ التحریم (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह तहरीम- 66 = سورتہ التحریم 
    (मुकम्मल)

देखो कि तुम अपनी नमाज़ों में क्या पढ़ते हो - - -
"ऐ नबी जिस चीज़ को अल्लाह ने आप के लिए हलाल किया है, 
आप उसे क्यूँ हराम फ़रमाते हैं. 
 अपनी बीवियों की ख़ुशनूदी हासिल करने के लिए?
और अल्लाह बख़्शने वाला है."
मुहम्मद ज़रा सी बात पर बीवियों को तलाक़ देने पर आ गए 
जिसे उनका अल्लाह हलाल फ़रमाता है बल्कि उन्हें समझाता है 
कि आप जनाब तलाक़ को क्यूँ हराम समझते हैं?
 हमारे ओलिमा डफ़ली बजाया करते है कि तलाक़ अल्लाह को सख़्त ना पसन्द है.
क़ुरआन में ऐसा कहीं है तो यहाँ पर तलाक़ इतना आसान क्यूँ?
दोहरा और मुतज़ाद हुक्म मुहम्मदी अल्लाह क्यूँ फ़रमाता रहता है?

"जब पैग़म्बर ने एक बात चुपके से फ़रमाई, फिर जब बीवी ने वह बात दूसरी बीवी बतला दी और पैग़म्बर को अल्लाह ने इसकी ख़बर दे दी. पैग़म्बर ने थोड़ी सी बात जतला दी और थोड़ी सी टाल गए. जतलाने पर वह कहने लगी, आपको किसने ख़बर दी? आपने फ़रमाया मुझको बड़े जानने वाले, ख़बर रखने वाले ने ख़बर दी." 
(यानी अल्लाह ने)

वाक़ेआ यूं है- मुहम्मद की एक बीवी ने उनको शहद पिला दिया था, 
उन्हों ने इस शर्त पर पिया कि दूसरी किसी बीवी को इसकी ख़बर न हो,
मगर उसने अपनी सवतन को बतला दिया कि उनको बात ज़ाहिर न करना.
दूसरी ने तीसरी को कहा आज राजा इन्दर आएँ तो कहना,
 क्या शहेद पिया है ? कि बू आ रही है? यही मैं भी कहूँगी. मज़ा आएगा.
मुहम्मद दूसरी के यहाँ गए तो उसने उनसे पूछा,"क्या शहेद पिया  है ? कि बू आ रही है? वह इंकार करते हुए टाल गए.
फिर तीसरी ने भी उनसे यही सवाल दोराय .क्या शहेद पिया  है ? कि बू आ रही है?"
मुहम्मद सनके कि जिसके यहाँ शहद पिया थ ये उसकी हरकत है सब बीवियों से उसने गा दिया .
बस इतनी सी बात पर पैग़म्बर अपनी बीवियों पर बरसे कि अल्लाह ने उनको सारी ख़बर देदी.
गोया अल्लाह ने उनकी बीवियों में चुगल खो़री  करता फिरा.
मैं मुहम्मदी अल्लाह को ज़ालिम, जाबिर, चाल चलने वाला, और मुंतक़िम के साथ साथ चुग़ल खो़र   भी कहता हूँ. जो अपने बन्दों को आपस में लड़ाता है. 
और वह अपनी सभी 9  बीवियों को तलाक़ देने की धमकी देने लगे. 

"ऐ दोनों बीवियों ! अगर तुम अल्लाह के सामने तौबा कर लो तो तुम्हारे दिल मायल हो रहे हैं और अगर पैग़म्बर के मुक़ाबिले में तुम दोनों कार रवाईयाँ करती रहीं तो याद रखो पैग़म्बर का रफ़ीक़ अल्लाह है और जिब्रील है और नेक मुसलमान हैं और इनके अलावा फ़रिश्ते मददग़ार हैं."

मुहम्मद दो बे सहारा और मजबूर औरतों के लिए अल्लाह की, फ़रिश्तों की और इंसानों की फ़ौज खड़ी कर रहे हैं, इससे ही इनकी कमज़ोरी का अंदाजः किया जा सकता है.

"अगर पैग़म्बर तुम औरतों को तलाक़ दे दें तो उसका परवर दिगार बहुत जल्द तुम्हारे बदले इनको तुम से अच्छी बीवियाँ दे देगा जो इस्लाम वालियाँ, ईमान वालियाँ, फ़रमा बरदारी करने वालियाँ, तौबा करने वालियाँ, इबादत करने वालियाँ और रोजः रखने वालियाँ होंगी. कुछ बेवा और कुछ कुंवारियाँ होंगी."
ऐसे रसूल पर ग़ैरत वालियों की लअनत .

"ऐ ईमान वालो तुम अपने आप को और अपने घरों को आग से बचाओ जिसका ईंधन आदमी और पत्थर है, जिस पर तुन्दख़ू फ़रिश्ते हैं, जो अल्लाह की नाफ़रमानी नहीं करते, किसी बात में, जो उनको हुक्म दिया जाता है और जो कुछ उनको हुक्म दिया जाता है उसको बजा लाते है."

मुसलमानों! क्या ऐसी बातें तुम्हारी इबादत और तिलावत के लायक़ हैं जो दीनी वज्द में आकर तुम बकते हो. बड़े शर्म की बात है. 
सोचो, अल्लाह की बात में कोई बात तो हो.

"ऐ नबी कुफ़्फ़ार से और मुनाफ़िक़ीन से जेहाद कीजिए और उनका ठिकाना दोज़ख है और बुरी जगह है"

किसी इंसान का ख़ून किसी हालत में भी जायज़ नहीं हो सकता, 
चाहे वह कितना बड़ा मुजरिम ही क्यूँ न हो, 
क़ातिल ही क्यूँ न हो. 
क़त्ल के मुजरिम को अल्म नाक ज़िन्दगी गुज़ारने की सज़ा हो 
ताकि वह आख़िरी साँसों तक सज़ा काटता ही मरे मगर हाँ !
जेहादियों को देखते ही गोली मार देनी चाहिए जो 
इंसानी ख़ून के बदले सवाब पाते हों.

"अल्लाह काफ़िरों के लिए नूह की बीवी और लूत कि बीवी का हाल बयान फ़रमाता है. वह दोनों हमारे ख़ास में से ख़ास दो बन्दों के निकाह में थीं. सो उन औरतों दोनों बन्दों का हक़ ज़ाया किया. दोनों नेक बन्दे अल्लाह के मुक़ाबिले में उनके ज़रा भी काम न आ सकेऔर उन दोनों औरतों को हुक्म हो गया और जाने वालों के साथ तुम भी दोज़ख में जाओ."

अल्लाह का मुक़ाबिला किस्से हुवा था? ऐ पागल क्या बक रहा है. ?
कमज़ोर इंसान ! 
अपनी बीवियों को किस नामर्दी के साथ धमका रहा है.
(सूरह तहरीम- 66)
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 10 February 2019

खेद है कि यह वेद है - - -1६

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (१६-१७)

हे  अध्वर्युजनो ! इंद्र के लिए सोम ले आओ एवं चमचों के द्वारा मादक सोम को अग्नि में डालो. इस सोम को पीने के लिए वीर इंद्र सदा इच्छुक रहते हैं. तुम काम वर्धक इंद्र के निमित्त सोम दो, क्यों कि वह इसे चाहते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 14-1 
कामुक इंद्र देव के लिए शराब की महिमा गान ?. 
इंद्र भगवान् की चाहत काम उत्तेजक सोमरस ??. 
भगवान् और मानव से इनकी फरमाइश??? 
जिन्हें गर्व हिंदुत्व का है वह कहाँ हैं ?

जल धारण करने वाली नदियाँ आपस में मिलकर चारो ओर बह रही हैं एवं जल के स्वामी सागर को भोजन पहुँचती हैं, नीचे की ओर बहने वाले जलों का रास्ता एक सामान है, जिसे इंद्र ने प्राचीन काल में ये सब काम किए हैं, वह प्रशंशा के योग्य हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 13-2 
अर्थात विश्व की सारी नदियाँ राजा इन्दर की परिश्रम के परिणाम स्वरूप हैं. 
क्या हम अपने बच्चों को यह शिक्षा  और ज्ञान दे सकते है? 
योरोप के सभ्य समाज के लोग वेदों को पढ़कर हिनुस्तानियों को क्या दर्जा देंगे?
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 6 February 2019

सूरह तलाक़- 65 = سورتہ الطلاق (मुकम्म

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह तलाक़- 65 = سورتہ الطلاق
(मुकम्मल)

मैं फिर इस बात को दोहराता हूँ कि मुस्लमान समझता है कि इस्लाम में कोई ऐसी नियमावली है जो उसके लिए मुकम्मल है, 
ये धारणा  बिलकुल बे बुन्याद है, बल्कि क़ुरआन के नियम तो मुसलामानों को पाताल में ले जाते हैं. मुसलामानों ने क़ुरआनी निज़ाम ए हयात को कभी अपनी आँखों से नहीं देखा, बस कानों से सुना भर है. इनका कभी क़ुरआन का सामना हुवा है, तो तिलावत के लिए. मस्जिदों में कुवें के मेंढक मुल्ला जी अपने ख़ुतबे में जो उल्टा सीधा समझाते हैं, ये उसी को सच मानते हैं. 
जदीद तअलीम और साइंस का स्कालर भी समाजी लिहाज़ में आकर जुमा जुमा नमाज़ पढ़ने चला ही जाता है. इसके माँ बाप ठेल ढकेल कर इसे मस्जिद भेज देते हैं, वह भी अपनी आक़बत की ख़ातिर. 
मज़हब इनको घेरता है कि हश्र के दिन अल्लाह इनको जवाब तलब करेगा 
कि अपनी औलाद को टनाटन मुसलमान क्यूँ नहीं बनाया ? 
और कर देगा जहन्नम में दाख़िल. 
क़ुरआन में ज़मीनी ज़िन्दगी के लिए कोई गुंजाईश नहीं है, 
जो है वह क़बीलाई है, निहायत फ़रसूदा. 
क़ब्ल ए इस्लाम, अरबों में रिवाज था कि शौहर अपनी बीवी को कह देता था कि "तेरी पीठ मेरी माँ या बहन की तरह हुई," 
बस उनका तलाक़ हो जाया करता था. 
इसी तअल्लुक़ से एक वक़ेआ पेश आया कि कोई ओस बिन सामत नाम के शख़्स  ने गुस्से में आकर अपनी बीवी हूला को तलाक़ का मज़कूरा जुमला कह दिया. 
बाद में दोनों जब होश में आए तो एहसास हुआ कि ये तो बुरा हो गया. 
इन्हें अपने छोटे छोटे बच्चों का ख़याल आया कि इनका क्या होगा? 
दोनों मुहम्मद के पास पहुँचे और उनसे दर्याफ़्त किया कि उनके नए अल्लाह इसके लिए कोई गुंजाईश रखते हैं ? कि वह इस आफ़त ए नागहानी से नजात पाएँ ? 
मुहम्मद ने दोनों की दास्तान सुनने के बाद कहा तलाक़ तो हो ही गया है, 
इसे फ़रामोश नहीं किया जा सकता. 
बीवी हूला ख़ूब रोई पीटी और मुहम्मद के सामने गींजी कि नए अल्लाह से कोई हल निकलवाएँ. फिर हाथ उठा कर सीधे अल्लाह से वह मुख़ातिब हुई और जी भर के अपने दिल की भड़ास निकाली, 
तब जाकर अल्लाह पसीजा और मुहम्मद पर वह्यी आई. 
इसी रिआयत से इस सूरह का नाम सूरह तलाक़ पड़ा, 
वैसे होना तो चाहिए था सूरह हूला. 
अब देखिए और सुनिए अल्लाह के रसूल पर आने वाली वहियाँ यानी ईश वाणी - - -
" ए पैग़म्बर ! 
जब तुम लोग औरतों को तलाक़ देने लगो तो उनको इद्दत से पहले तलाक़ दो और तुम इद्दत को याद रखो और अल्लाह से डरते रहो जो तुम्हारा रब है. इन औरतों को इनके घरों से मत निकालो और न वह औरतें ख़ुद निकलें, मगर हाँ अगर कोई खुली बे हयाई करे तो और बात है. ये सब अल्लाह के मुक़र्रर किए हुए एहकाम हैं." 

"फिर जब औरतें इद्दत गुज़रने के क़रीब पहुँच जाएँ, इनको क़ायदे के मुवाफ़िक़ निकाह में रहने दो या क़ायदे के मुवाफ़िक़ इन्हें रिहाई देदो और आपस में दो मुअत्बर शख़्सों को गवाह कर लो." 

"तुम्हारी बीवियों में जो औरतें हैज़ (मासिक धर्म) आने से मायूस हो चुकी हैं, अगर तुमको शुब्हः है तो इनकी इद्दत तीन महीने है और इसी तरह जिनको हैज़ नहीं आया और हामला औरतों का इनके हमल का पैदा हो जाना है. "
"जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाख़िल कर देंगे जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इनमें रहेंगे. ये बड़ी कामयाबी है." 

अल्लाह की आकाश वाणी कुछ समझ में आई? 
पता नहीं इन आयतों से ओस बिन सामत और हूला बी की बरबादियों का कोई हल निकला या नहीं, 
इनको रोजों से नजात तो नहीं मिली अलबत्ता नमाज़ें इनके गले और पड़ गईं. कहीं कोई हल तो नाज़िल नहीं हुवा . हाँ बे सिर पैर की बातें ज़रूर नाज़िल हो गईं. 
इस अल्लाही एहकाम में चौदह सौ सालों से माहरीन दीनयात ज़रूर मुब्तिला है कि वह आपस में मुख़्तलिफ़ रहा करते हैं. 
तलाक़ के बाद शौहर का घर बीवी के लिए अपना कहाँ रह जाता है कि वह वहाँ जमी रहे और इद्दत के दौरान शौहर उसके साथ मनमानी करता रहे. 
ग़ौर तलब है कि मुहम्मद ने हमेशा मर्दों को ही इंसान का दर्जा दिया है. 
ये सारी मुहम्मदी नाज़ेबगी आज रायज नहीं है, पहले रही होगी. 
इसको सुधार कर ही शरअ को एक पैकर दिया गया है 
जो कि दर अस्ल एहकाम ए इलाही में इंसान की मुदाख़लत का नतीजा है, 
वर्ना अल्लाह की गुत्थी और भी उलझी हुई होती. 
अल्लाह की बातें पहले भी मुज़ब्ज़ब थीं और आज भी मुज़ब्ज़ब हैं. 
जैसे इस्लामी शरअ क़ुरआन को तराश ख़राश कर इस्लाम के बहुत दिन बाद बनाई गई, वैसे ही आज भी इसमें तबदीली की ज़रुरत है और इतनी ज़रुरत है कि आज इस्लाम की खुल कर मुख़ालिफ़त की जाए. 
ख़ास कर औरतों के हक़ में इस्लाम निहायत ज़ालिम ओ जाबिर है, 
अफ़सोस कि यही औरतें इस्लाम की ज़्यादः पाबंद है. 
वह सुब्ह उठ कर क़ुरआन की तिलावत को मख्खियों की तरह भिनभिनाने लगती हैं. वह अपने ही ख़िलाफ़ उतरी अल्लाह की आयातों पर मर्दों से ज़्यादः ईमान रखती है. इनको इनका अल्लाह अक़्ल-सलीम दे.
50% की ये इंसानी आबादी अगर जग जाए तो मुसलामानों की दुन्या बदल सकती है.
कोई हूला नहीं पैदा हो रही कि अल्लाह को इन नाक़िस आयातों पर अल्लाह को तलब करे. 
तमिल नाडू की कुछ मुस्लिम औरतें अपनी अलग एक मस्जिद बना कर उसमें पेश इमामी ख़ुद करती है, इससे मर्दों का गलबा उन पर से उठा है. 
इसे इनकी बेदारी कहें या नींद? 
आजतक वह कठ मुल्लों की गिरफ़्त में थीं, अब वह कठ मुल्लियों की गिरफ़्त में होंगी. ख़वातीन की मस्जिद में भी मुहम्मदी अल्लाह के क़ानून क़ायदे होंगे. 
क्या इस मस्जिद में उन क़ुरआनी आयतों का बाई काट भी किया जाएगा जो औरतों को रुसवा करती हैं. 
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 5 February 2019

खेद है कि यह वेद है - - -15


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (15)

हे मनुष्यों ! जिसने चंचल धरती को दृढ किया, क्रोधित पर्वतों को नियमित किया, विशाल आन्तरिक्ष को बनाया और आकाश को स्थिर किया, वही इंद्र है.
द्वतीय मंडल सूक्त 12-2 
वाह ! वाह !! वाह!!!
 गोया राजा इन्दर, मिनी अल्लाह मियाँ भी हुए. धन्य है पंडित जी.
*
हे मनुष्यों ! जो सोम रस निचोडने वाले यजमान, पुरोडाश पकाने वाले व्यक्ति, 
स्तुति रचना करने वाले एवं पढने वाले की रक्षा करता है. हमारा अन्न सोम एवं स्तोत्र जिसे बढ़ाने वाले हैं, हमारे इंद्र हैं. 
द्वतीय मंडल सूक्त 12-14 
पुरोहित जी मदक भंग को कूटने, पीसने, भिगोने और निचोड़ने वाले यजमान (मेज़बान) को और पुरोडाश (पकवान) बनाने वाले बावरची के उत्थान का भी ख़याल रखते हैं. उनके भले में ही सब का भला है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 4 February 2019

सूरह ताग़ाबुन- 64 = سورتہ التغابن (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह ताग़ाबुन- 64 = سورتہ التغابن 
(मुकम्मल)

 देखिए कि मुहम्मदी अल्लाह का क्या मेयार है - - -
"सब कुछ जो आसमानों में है, ज़मीन में हैं, अल्लाह की पाकी बयान करती हैं, इसी की सल्तनत है और वही तारीफ़ के लायक़ है और वह हर शय पर क़ादिर है ."
"वही है जिसने तुम को पैदा किया है, सो इनमे बअज़े काफ़िर हैं, बअज़े मोमिन और अल्लाह तुम्हारे आमाल देख रहा है."
"ये  काफ़िर दावा करते हैं हरगिज़ हरगिज़ दोबारा ज़िन्दा न किए जाएँगे. आप कह दीजिए क्यूँ नहीं ? वल्लाह! दोबारा जिंदा किए जाएँगे. तुमको सब जतला दिया जाएगा"
"ए ईमान वालो! तुम्हारी बअज़ बीवियां और औलाद तुम्हारे दुश्मन हैं, सो तुम इनसे होशियार रहो और अगर तुम मुआफ़ करदो और दर गुज़र कर जाओ और बख़्श दो तो अल्लाह बख़्शने वाला है, रहेम करने वाला है."
"तो जहाँ तक तुम से हो सके अल्लाह से डरते रहो और सुनो और मानो. खर्च किया करो ये तुम्हारे लिए बेहतर होगा और जो शख़्स  ना फ़रमानी हिरस से महफ़ूज़ है, ऐसे लोग फ़लाह पाते हैं. अगर तुम अल्लाह को अच्छी तरह क़र्ज़ दोगे तो वह इसको तुम्हारे लिए बढ़ाता चला जाएगा और तुम्हारे गुनाह बख़्श देगा और अल्लाह बड़ा क़द्र दान है. बड़ा बुर्दबार है, पोशीदः और ज़ाहिर को जानने वाला, ज़बरदस्त है, हिकमत वाला.है "
सूरह तग़ाबुन 64 आयत (1-18 )

मुहम्मद दर अस्ल अल्लाह की हक़ीक़त को जान चुके थे कि वह एक वह्म के सिवा और कुछ भी नहीं. इस बात का फ़ायदा लेते हुए ख़ुद दर पर्दा अल्लाह बन बैठे थे, 
इस बात की गवाही कई जगह पर ख़ुद क़ुरआन देता है. 
अगर मुसलामानों के अक़ीदे का कोई अल्लाह होता तो वह सब से पहले मुहम्मद के साथ  कुछ इस तरह पेश आता- - -
ऐ मुहम्मद! 
तू मेरे मुतालिक़ हमेशा ग़लत बयानी किया करता है,
मैं जो कुछ हूँ तुझे मालूम भी नहीं और जो नहीं हूँ वह तू ख़ूब जनता है. 
मैंने कब तुझ पिद्दी को आप, आप कहक़र मुख़ातिब किया था ?
कि अपनी बकवास में तू बार बार कहता है
" आप कह दीजिए - - -"
मैं अपने बन्दों को डराता हूँ?
इसके लिए कब तुझको मुक़र्रर किया?
वह खर्च करें या न करें, उनका ज़ाती मुआमला है. 
मैं या तू कौन होते हैं इसकी राय के लिए?
जो जितनी मशक्क़त से चीज़ें पैदा करेगा, 
वह उसे सर्फ़ करने में उतना ही मोहतात रहेगा.
भला मैंने बन्दों से कब क़र्ज़ माँगा ?
तूने मुझे एक सूद खो़र  बनिया बना कर बन्दों के सामने ला खड़ा किया.
तूने मुझे भी अपने जैसा समझा ?
मैं ये हूँ, मैं वह हूँ. मैं कद्र दान हूँ, मैं बुर्दबार हूँ, ज़बरदस्त हूँ, हिकमत वाला हूँ - - -
तुझे ग़लत फ़हमी है कि ये सब तू हो गया है 
और मेरा नाम लेकर तू इसका एलान किया करता है
ऐ अक़्ल के अंधे! मैं अल्लाह हूँ अल्लाह!
इंसान जैसी अगर शक्ल नहीं है तो इंसान जैसी मेरी अक़्ल  कैसे हो सकती है?
मेरी अजीब ओ ग़रीब ख़सलातें तू बन्दों के सामने पेश किया करता है.
तू अल्लाह बन कर बन्दों को गुमराह कर रहा है जिसक अन्जाम कम से कम इनके लिए बुरा ही होगा.
तू दुन्या के गुनाह गारों में अव्वल होगा. 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान