Monday 4 February 2019

सूरह ताग़ाबुन- 64 = سورتہ التغابن (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह ताग़ाबुन- 64 = سورتہ التغابن 
(मुकम्मल)

 देखिए कि मुहम्मदी अल्लाह का क्या मेयार है - - -
"सब कुछ जो आसमानों में है, ज़मीन में हैं, अल्लाह की पाकी बयान करती हैं, इसी की सल्तनत है और वही तारीफ़ के लायक़ है और वह हर शय पर क़ादिर है ."
"वही है जिसने तुम को पैदा किया है, सो इनमे बअज़े काफ़िर हैं, बअज़े मोमिन और अल्लाह तुम्हारे आमाल देख रहा है."
"ये  काफ़िर दावा करते हैं हरगिज़ हरगिज़ दोबारा ज़िन्दा न किए जाएँगे. आप कह दीजिए क्यूँ नहीं ? वल्लाह! दोबारा जिंदा किए जाएँगे. तुमको सब जतला दिया जाएगा"
"ए ईमान वालो! तुम्हारी बअज़ बीवियां और औलाद तुम्हारे दुश्मन हैं, सो तुम इनसे होशियार रहो और अगर तुम मुआफ़ करदो और दर गुज़र कर जाओ और बख़्श दो तो अल्लाह बख़्शने वाला है, रहेम करने वाला है."
"तो जहाँ तक तुम से हो सके अल्लाह से डरते रहो और सुनो और मानो. खर्च किया करो ये तुम्हारे लिए बेहतर होगा और जो शख़्स  ना फ़रमानी हिरस से महफ़ूज़ है, ऐसे लोग फ़लाह पाते हैं. अगर तुम अल्लाह को अच्छी तरह क़र्ज़ दोगे तो वह इसको तुम्हारे लिए बढ़ाता चला जाएगा और तुम्हारे गुनाह बख़्श देगा और अल्लाह बड़ा क़द्र दान है. बड़ा बुर्दबार है, पोशीदः और ज़ाहिर को जानने वाला, ज़बरदस्त है, हिकमत वाला.है "
सूरह तग़ाबुन 64 आयत (1-18 )

मुहम्मद दर अस्ल अल्लाह की हक़ीक़त को जान चुके थे कि वह एक वह्म के सिवा और कुछ भी नहीं. इस बात का फ़ायदा लेते हुए ख़ुद दर पर्दा अल्लाह बन बैठे थे, 
इस बात की गवाही कई जगह पर ख़ुद क़ुरआन देता है. 
अगर मुसलामानों के अक़ीदे का कोई अल्लाह होता तो वह सब से पहले मुहम्मद के साथ  कुछ इस तरह पेश आता- - -
ऐ मुहम्मद! 
तू मेरे मुतालिक़ हमेशा ग़लत बयानी किया करता है,
मैं जो कुछ हूँ तुझे मालूम भी नहीं और जो नहीं हूँ वह तू ख़ूब जनता है. 
मैंने कब तुझ पिद्दी को आप, आप कहक़र मुख़ातिब किया था ?
कि अपनी बकवास में तू बार बार कहता है
" आप कह दीजिए - - -"
मैं अपने बन्दों को डराता हूँ?
इसके लिए कब तुझको मुक़र्रर किया?
वह खर्च करें या न करें, उनका ज़ाती मुआमला है. 
मैं या तू कौन होते हैं इसकी राय के लिए?
जो जितनी मशक्क़त से चीज़ें पैदा करेगा, 
वह उसे सर्फ़ करने में उतना ही मोहतात रहेगा.
भला मैंने बन्दों से कब क़र्ज़ माँगा ?
तूने मुझे एक सूद खो़र  बनिया बना कर बन्दों के सामने ला खड़ा किया.
तूने मुझे भी अपने जैसा समझा ?
मैं ये हूँ, मैं वह हूँ. मैं कद्र दान हूँ, मैं बुर्दबार हूँ, ज़बरदस्त हूँ, हिकमत वाला हूँ - - -
तुझे ग़लत फ़हमी है कि ये सब तू हो गया है 
और मेरा नाम लेकर तू इसका एलान किया करता है
ऐ अक़्ल के अंधे! मैं अल्लाह हूँ अल्लाह!
इंसान जैसी अगर शक्ल नहीं है तो इंसान जैसी मेरी अक़्ल  कैसे हो सकती है?
मेरी अजीब ओ ग़रीब ख़सलातें तू बन्दों के सामने पेश किया करता है.
तू अल्लाह बन कर बन्दों को गुमराह कर रहा है जिसक अन्जाम कम से कम इनके लिए बुरा ही होगा.
तू दुन्या के गुनाह गारों में अव्वल होगा. 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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