Monday 18 February 2019

सूरह क़लम- 68 = سورتہ القلم (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह क़लम- 68 = سورتہ القلم
(मुकम्मल)

"नून"
ये हुरूफ़ ए मुक़त्तेआत है जिसके मअनी अल्लाह ही बेहतर जनता है. 
हुरूफ़ ए मुक़त्तेआत 50 बार क़ुरआन में आए है. 
इस्लामी वज़ेअ में सजे हुए (नूरानी गोल्डेन दाढ़ी, सफ़ा चट्ट  मुच्छें, सर पे पगड़ी और आँखों में सुरमा) मुल्ला को, 
व्यँग से 'चुकतता मुक़तता' कहा जाता है. 
इसी रिआयत से ऐसे बेमानी लफ़्ज़ों को 'हुरूफ़ ए मुक़त्तेआत" कहा गया होगा.

"क़सम है क़लम की और इसके लिखने की, कि आप अपने रब के फज़ल से मजनू नहीं हैं"
"और आपके लिए ऐसा उज्र है जो ख़त्म होने वाला नहीं. और आप बेशक एख़लाक़ के आला पैमाने हैं"
"तो अनक़रीब आप भी देख लेंगे और ये लोग भी कि तुम में किसको जूनून था."
सूरह क़लम - 68  आयत(1-2-3-4-7)

"और आप ऐसे शख़्स का कहना न मानें जो बहुत क़समें खाने वाला हो, 
बे वक़अत हो तअने देने वाला हो, चुग़लियाँ लगाता फिरता हो, नेक काम से रोकने वाला हो."
"हद से गुज़रने वाला हो, गुनाहों का करने वाला हो, सख़्त मिज़ाज हो, इन सब के अलावा हराम ज़ादा हो, इस सबब से कि माल और औलाद वाला हो. जब हमारी आयतें उसके सामने पढ़ी जाती हैं तो वह कहता है, ये बे सनद बातें हैं. अगलों से मंक़ूल होती चली आई हैं. हम अनक़रीब उसकी नाक पर दाग़ लगा देंगे."
सूरह क़लम - 68  आयत (11-16 )

"और ये काफ़िर जब क़ुरआन सुनते है तो ऐसे मालूम होते हैं कि गोया आपको अपनी निगाहों से फिसला कर गिरा देंगे और कहते हैं कि ये मजनू है, हालाँकि ये क़ुरआन  जिसके साथ आप तकल्लुम फ़रमा रहे है, तमाम जहाँ के लिए नसीहत है." 
सूरह क़लम - 68  आयत (52)

मुहम्मदी अल्लाह अपने रसूल के लिए क़लम की क़सम खाता है जिससे उसका कोई वास्ता नहीं है. वह इस बात की भी मुहम्मद को ये यक़ीन दिलाने के लिए कहता है कि आप जनाब दीवाने नहीं बल्कि आला ज़र्फ़ इंसान हैं, जैसे कि ख़ुद मुहम्मद अपनी इन ख़ूबियों से नावाक़िफ़ हों. मुहम्मद की अय्यारी ख़ुद इन आयतों का आईना दार हैं. मुहम्मद अपने दुश्मनों के लिए सलवातें ही नहीं, गालियाँ भी अपने अल्लाह के ज़बानी सुनाते हैं.
मुसलामानों! 
क्या तुम सैकड़ों साल के पुराने क़बीलों से भी गए गुज़रे हो? 
जो इन बकवासों से इस शख़्स को अपनी निगाहों से गिराए हुए थे. 
एक अदना सा बन्दा तुम्हारा ख़ुदा और तुम्हारा रसूल बना हुवा है, 
वह भी इन ग़लीज़ आयतों की पूरी दलील और पूरे सुबूत के साथ.
जागो, वर्ना तुम्हारी मौत अनक़रीब लिखी हुई है. ज़माना तुम्हारी जेहालत का शर अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता.
सादिक़ दुन्या में बातिल ख़ुद अपने आप में घुट रहा है. 
क्या तुम कोई घुटन महसूस नहीं कर रहे हो?
इस सूरह में एक वाहियात सी मिसाल भी है कि 
लोगों ने बग़ैर इंशा अल्लाह कहे रात को खेत काटने की बात ठानी, 
सुब्ह देखते हैं कि खेत में फ़सल ग़ायब है. ताक़ीद और नसीहत है कि बिना इंशा अल्लाह कहे कोई वादा मत करो. ये इंशा अल्लाह बे ईमानो को कॉफ़ी मौक़ा दिए हुए है कि वह मामले को टालते रहें. इस इंशा अल्लाह में मुसलमानों की बद नियती शामिल रहती है.
*** 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. "Noorani golden" wali line kamaal ki hai , you are great

    ReplyDelete