Sunday 31 March 2019

खेद है कि यह वेद है (45)



खेद  है  कि  यह  वेद  है  (45)

उषा को जानते हुए जो मेघावी अग्नि कांतदर्शियों के मार्ग पर जाते हुए जगे थे, वही परम तेजस्वी अग्नि देवों को चाहने वाले लोगों द्वारा प्रज्वलित होकर अज्ञान के जाने के द्वार खोलते हैं.
तृतीय मंडल सूक्त 5 (1)

अग्नि की हमारी बस इतनी सी पहचान है कि यह हिन्दुओं को मालामाल करती है और मुसलमानों को दोज़ख़ में तडपा तडपा कर भूनती है. 
पंडित इस अग्नि महिमा को गाकर हलुवा पूरी उड़ाते हैं 
और मुल्ले इसके तुफैल में मुर्ग मुसल्लम डकारते हैं. 
यह दोनों जीव अग्नि के और कोई रूप जानते भी नहीं.
*

हे अत्यधिक प्रज्वलित अग्नि ! 
तुम उत्तम मन से जागो. 
तुम अपने इधर उधर फैलने वाले तेज के द्वारा हमें धन देने की कृपा करो. 
हे अतिशय द्योतमान अग्नि ! 
देवों को हमारे यज्ञं में लाओ. 
तुम देवों के मित्र हो. 
अनुकूलता पूर्वक देवों का यज्ञं करो. 
तृतीय मंडल सूक्त 4  (1 )

प्राचीन काल में ईरानी अग्नि पूजा करते थे. ज़रतुष्ट ईरानी पैग़म्बर हुवा करता था जिसके मानने वाले इस्लामी गलबा और हमलों से परेशान होकर भारत आ गए जो आज पारसी कहे जाते हैं. ईरान का पुराना नं फारस था, उसी रिआयत से फारसी हुए, फिर पारसी हो गए. पारसी आज भी अग्नि पूजा करते हैं. आर्यन भी ईरान के मूल निवासी हैं, दोनों अपने पूर्वजों की पैरवी में अग्नि पूजक हैं.
बेचारी अग्नि इस बात से बेखबर है कि वह पूज्य है या पापन??
जब तक हम पूरबी लोग अपनी सोच नहीं बदलते पश्चिम के बराबर नहीं हो सकते, भले ही स्वयंभू जगत गुरु बने रहें.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 29 March 2019

सूरह बुरूज - 85 = سورتہ لبروج (वस्समाए ज़ाते अल्बुरूज)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह बुरूज - 85 = سورتہ لبروج
(वस्समाए ज़ाते अल्बुरूज)

ऊपर उन (78  -1 1 4) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फ़ाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फ़ातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मक्र, सियासत, नफ़रत, जेहालत, कुदूरत, ग़लाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए ग़ैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फ़ाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सज़ाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफ़रत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की ख़ैर  ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक़ में होगा.

"क़सम है बुरजों वाले आसमान की,
और वादा किए हुए दिन की,
और हाज़िर होने वाले की,
और इसकी कि जिसमें हाज़िर होती है,
कि ख़नक़ वाले यअनी कि बहुत से ईधन की आग वाले मलऊन  हुए.
जिस वक़्त ये लोग इस के आस पास बैठे हुए थे,
इसको देख रहे थे और वह जो मुसलमानों के साथ शरारत कर रहे थे,
और इन काफ़िरों ने इन मुसलमानों में कोई ऐब नहीं पाया, 
बजुज़ इसके कि वह अल्लाह पर ईमान लाए थे, 
जो ज़बरदस्त सज़ा वार हम्द है.
जो शख़्स  अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा, 
अल्लाह तअला उसको ऐसी बेहशतों में दाख़िल कर देंगे, 
जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, 
हमेशा हमेशा इस में रहेंगे, 
ये बड़ी काम्याबी  है.
आपके रब की वारद गीरी बड़ी सख़्त है.
वही पहली बार पैदा केरता है, वही दूसरी बार पैदा करेगा, 
और वही बख़्श ने वाला है, मुहब्बत करने वाला, और अज़मत वाला है.
वह जो कुछ चाहे सब कर गुज़रता है, 
क्या आपको उन लश्करों का क़िस्सा पहुँचा है 
यानी फिरओन और समूद की - - - -
ये काफ़िर तक़ज़ीब में हैं,
अल्लाह इन्हें इधर उधर से घेरे हुए है,
बल्कि वह एक बाअज़मत क़ुरआन है.
सूरह बुरूज आयत (1 -2 2 )

नमाज़ियो !
कोई तअलीम याफ़्ता शख़्स अगर बोलेगा तो उसका एक एक लफ्ज़ बा मअनी होगा, चाहे वह ज़्यादः बोलने वाला हो चाहे कम. 
इसके बर अक्स जब कोई अनपढ़ उम्मी बोलेगा, चाहे ज़्यादा चाहे कम, 
तो वह ऐसा ही होगा जैसा तुमने इस सूरह में देखा. 
किसी मामूली वाक़ेए  को अधूरा बयान करके वह आगे बढ़ जाता है, 
ये उम्मी मुहम्मद की  एक अदा है. 
सूरह में लोगों को न समझ में आने वाली बातें या वाकिया होते हैं. 
इनकी जानकारी का इश्तियाक़ तुम्हें कभी कभी आलिमो तक खींच ले जाता है. तुम्हारे तजस्सुस को देख कर आलिम के कान खड़े हो जाते हैं. 
इस डर से कि कहीं बन्दा  बेदार तो नहीं हो रहा है? 
बाद में वह तुम्हारी हैसियत और तुम्हारे ज़ेह्नी मेयार को भांपते हुए 
तुम से क़ुरआनी आयातों को समझाता है. 
सवाली उसके जवाब से मुतमईन न होते हुए भी 
उसका लिहाज़ करता हुवा चला जाता है.
उसमें हिम्मत नहीं कि वह आलिम से मुसलसल सवाल करता रहे 
जब तक कि उसके जवाब से मुतमईन न हो जाए.
वाकिया है कि आग तापते हुए मुसलमानों की काफ़िरों से कुछ कहा-सुनी हो गई थी तो ये बात क़ुरआनी आयत क्यूं बन गई?
मुहम्मद का दावा है क़ुरआन अल्लाह हिकमत वाले का कलाम है.
क्या अल्लाह की यही हिकमत है?
आलिम के जवाब पर सवाल करना तुम्हारी मर्दानगी से बईद है. 
यही बात तुमको दो नम्बरी क़ौम बने रहने की वजह है.
तुम्हारे ऊपर कभी अल्लाह का खौ़फ़ तारी रहता है तो कभी समाज का. 
तुम सोचते हो कि तुम ख़ामोश रह कर जिंदगी को पार लगा लो.
इस तरह तुम अपनी नस्ल की एक खेप और इस दीवानगी के हवाले करते हो.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 28 March 2019

खेद है कि यह वेद है (50)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (50)

हे यज्ञकर्ताओं में श्रेष्ट अग्नि ! यज्ञ में देवों की कामना करने वाले यजमानों के कल्याण के लिए देवों की पूजा करो. होता एवं यजमानों को प्रसन्नता देने वाले, तुम अग्नि शत्रुओं को पराजित करके करके सुशोभित होते हो. 
तृतीय मंडल सूक्त 10(7)

इन मुर्खता पूर्ण मन्त्रों का अर्थ निकलना व्यर्थ है. 
एक लालची नव जवान सिद्ध बाबा के दरबार में गया जिनके बारे में नव जवान ने सुन रख्का था कि उनके पास पारस ज्ञान है. नव जवान ने बाबा की सेवा में अपने आप को होम दिया. छः महीने बाद बाबा ने पूछा - 
कौन हो ? कहाँ से आए हो ? मुझ से क्या चाहते हो ? 
नव जवान की लाट्री लग गई. वह बाबा के पैर पकड़ कर बोला
 बाबा ! मुझे परस ज्ञान देदें. 
बाबा ने हंस कर कहा, बस इतनी सी बात ? 
बाबा ने विसतर से नव जवान को परस गढ़ने का तरीका बतलाया, 
जिसे किसी धातु में स्पर्श मात्र से धातु सोना बन जाती है. 
बाबा ने कहा अब तुम जा सकते हो. 
नव जवान का दिल ख़ुशी से बल्लियों उछल गया. 
जाते हुए उसे बाबा ने रोका कि ज़रूरी बात सुनता जा. 
खबरदार ! 
पारस गढ़ने के दरमियान बन्दर का ख्याल मन में नहीं लाना. 
वह तमाम उम्र पारस बनता रहा और बन्दर की कल्पना को भूलने की कोशिश करता रहा.
इसी तरह कुछ मित्रों ने मुझे राय दिया है कि वेद की व्याख्या करते समय, 
सत्य को बीच में न लाना
**
हे अग्नि ! 
समस्त देव तुम्हीं में प्रविष्ट हैं, 
इस लिए हम यज्ञों में तुम से समस्त उत्तम धन प्राप्त करें .
तृतीय मंडल सूक्त 11(9)

यह कैसा वेद है जो हर ऋचाओं में अग्नि और इंद्र आदि देवों के आगे कटोरा लिए खड़ा रहता है. कभी अन्न मांगता है तो कभी धन. क्या वेद ज्ञान ने लाखों लोगों को निठल्ला नहीं बनाता है? धर्म को तो चाहिए इंसान को मेहनत मशक्कत और गैरत की शिक्षा दे, वेद तो मानव को मुफ्त खोर बनता है.
कौन सा चश्मा लगा कर वह पढ़ते है जो मुझे राय देते हैं कि इसे समझ पाना मुश्किल है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

सूरह `इनशिक़ाक़ - 84 = سورتہ الانشقاق


सूरह `इनशिक़ाक़ - 84 = سورتہ الانشقاق
(इज़ा अस्समाउन शक्क़त)

यह तीसवाँ और क़ुरआन का आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

"जब आसमान फट जाएगा,
और अपने रब का हुक्म सुन लेगा,
और वह इस लायक़ है,
और जब ज़मीन खींच कर बढ़ा दी जाएगी,
और अपने अन्दर की चीजों को बाहर निकाल देगी,
और ख़ाली हो जाएगी, और अपने रब का हुक्म सुन लेगी और वह इस लायक़ है.
ऐ इंसान तू अपने रब तक पहुँचने तक काम में कोशिश कर रहा है, 
फिर इससे जा मिलेगा.
तो मैं क़सम खाकर कहता हूँ शफ़क की और रात की और उन चीजों की जिनको रात समेट लेती हैऔर चाँद की, जब कि वह पूरा हो जाए कि तुम लोगों को ज़रूर एक हालत के बाद दूसरी हालत में पहुंचना है.
सो उन लोगों को क्या हुवा जो ईमान नहीं लाते और जब रूबरू क़ुरआन पढ़ा जाता है तब भी अल्लाह की तरफ़ नहीं झुकते, बल्कि ये काफ़िर तक़ज़ीब करते हैं"
सूरह इन्शेक़ाक़ 84 आयत (1 -2 2 )

नमाज़ियो !
अपनी नमाज़ में क्या पढ़ा? क्या समझे ?
ज़मीन ओ आसमान को भी अल्लाह तअला दिलो दिमाग़ वाला बना देता है? जोकि इसकी फ़रमा बरदारी के लायक़ हो जाते हैं? ये माफ़ौक़ुल फ़ितरत पाठ, उम्मी मुहम्मद तुमको शब् ओ रोज़ पढ़ाते हैं
एक हदीस में वह पत्थर में ज़बान डालते है.जो बोलने लगता है  - - -
"ऐ मुसलमान जेहादियो! यहूदी मेरे आड़ में छिपा हुवा है, आओ इसे क़त्ल कर दो"
इक्कीसवीं सदी में आप इन अक़ीदों को जी रहे हैं?
जागो, अपनी नस्लों को आने वाले वक़्त का मज़ाक़ मत बनाओ.
***

Wednesday 27 March 2019

सूरह मुतफ़फ़ेफ़ीन - 83 = سورتہ المطفففین (वैलुल्लिल मुतफ्फेफीन)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह मुतफ़फ़ेफ़ीन - 83 = سورتہ المطفففین
(वैलुल्लिल मुतफ्फेफीन) 

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

"बड़ी ख़राबी है नाप तौल में कमी करने वालों की,
कि जब लें तो पूरा लें,
और जब दें तो घटा कर दें.
क्या उनको यक़ीन नहीं है कि वह बड़े सख़्त दिन में जिंदा करके उठाए जाएँगे,
जिस दिन तमाम आदमी अपने रब्बुल आलमीन के सामने खड़े होंगे,
हरगिज़ नहीं होगा लोगों का नामाए आमाल सजजैन में होगा,
आपको कुछ ख़बर है कि सजजैन में रक्खा हुवा ? 
नामाए आमाल क्या चीज़ है?
वह एक निशान किया हुवा दफ़्तर है
इस रोज़ झुटलाने वालों की बड़ी ख़राबी होगी.
और इसको तो वही झुटलाता है जो हद से गुज़रने वाला हो 
और मुजरिम हो और इसके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाएँ 
तो यूं कह दे बे सनद बातें है, 
अगलों से अन्क़ूल चली आ रही हैं,
हरगिज़ नहीं बल्कि उनके आमाल का ज़ंग उन दिलों पर बैठ गया है.
हरगिज़ नहीं बल्कि इस रोज़ ये अपने रब से रोक दिए जाएंगे,
फिर ये दोज़ख में डाले जाएँगे और कहा जाएगा 
यही है वह जिसे तुम झुटलाते थे.
सूरह मुतफ़फ़ेफ़ीन  83  आयत (1 -1 7)

हरगिज़ नहीं नेक लोगों का आमाल इल्लीईन में होगा,
और आपको कुछ ख़बर है कि ये इल्लीईन में रखा हुवा आमाल नामा क्या होगा, वह एक निशान लगा दफ़्तर है जिसे मुक़रिब फ़रिश्ते देखते है,
नेक लोग बड़ी सताइश में होंगे,
मसेह्रियों पर बैठे बहिश्त के अजायब देखते होंगे,
ऐ मुख़ातिब तू इनके चेहरों में आसाइश की बशारत देखेगा,
और पीने वालों के लिए शराब ख़ालिस सर बमुहर होगी,
और हिरस करने वालों को ऐसी चीज़ से हिरस करना चाहिए,
काफ़िर दुन्या में मुसलमानों पर हँसते थे, अब मुसलमान इन पर हँस रहे होंगे, मसह्रियों पर होंगे, वाक़ई काफ़िरों को उनके किए का ख़ूब बदला मिला."
सूरह मुतफ़फ़ेफ़ीन  83  आयत 

नमाज़ियो !
मुहम्मद की वज़अ करदा मन्दर्जा बाला इबारत बार बार ज़बान ए उर्दू में दोहराओ, 
फिर फ़ैसला करो कि क्या ये इबारत काबिले इबादत है? 
इसे सुन कर लोगों को उस वक़्त हंसी आना तो फ़ितरी बात हुवा करती थी, 
जिसकी गवाही ख़ुद सूरह दे रही है, 
आज भी ये बातें क्या तुम्हें मज़हक़ा ख़ेज़ नहीं लगतीं ? 
बड़े शर्म की बात है इसे आप अल्लाह का कलाम समझते हो  
और उस दीवाने की बड़ बड़ की तिलावत करते हो. 
इससे मुँह मोड़ो ताकि क़ौम को इस जेहालत से नजात की कोई सूरत नज़र आए. दुन्या की 2 0 % नादानों को हम और तुम मिलकर जगा सकते हैं. 
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 26 March 2019

खेद है कि यह वेद है (43)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (43)

मेघावी स्तोता सन्मार्ग मार्ग प्राप्त क्कारने के लिए परम बल शाली, 
वैश्यानर अग्नि के प्रति यज्ञों में सुन्दर स्तोत्र पढ़ते है. 
मरण रहित अग्नि हव्य के द्वारा देवों की सेवा करते हैं. 
इसी कारण कोई भी सनातन धर्म रूपी यज्ञों को दूषित नहीं करता.
तृतीय मंडल सूक्त 3 (2)

सुन्दर स्तोत्र वेद में किसी जगह नज़र नहीं आते. 
हाँ ! छल कपट से ज़रूर पूरा  ऋग वेद पटा हुवा है. 
अग्नि हव्य को किस तरह लेकर जाती है कि देवों को खिला सके. 
कहाँ बसते हैं ये देव गण ?
यही लुटेरे बाह्मन हिन्दुओं के देव बने बैठे हैं.

**
अग्नि ने उत्पन्न होते ही धरती और आकाश को प्रकाशित किया 
एवं अपने माता पिता के प्रशंशनीय पुत्र बने. 
हव्य वहन करने वाले, यजमान को अन्न देने वाले, 
अघृष्य एवं प्रभायुक्त अग्नि इस प्रकार पूज्य हैं, 
जैसे मनुष्य अतिथि की पूजा करते हैं. 
तृतीय मंडल सूक्त 2 (2)

अन्धविश्वाशी हिन्दू हर उस वस्तु को पूजता है, जिससे वह डरता है, 
या फिर जिससे उसकी लालच जुडी हुई होती है. 
पहले सबसे ज्यादा खतरनाक वस्तु आग हुवा करती थी, 
इस से सबसे ज्यादा डर हुवा करता था लिहाज़ा उन्हों ने इसे बड़ा देव मान लिया और इसके माता पिता भी पैदा कर दिया.
पुजारी यजमान को जताता है कि अग्नि उसके लिए हव्य और अन्न मुहया करती  है, इस लिए इसकी सेवा अथिति की तरह किया जाए. 
अग्नि तो हवन कुंड में होती है, सेवा पंडित जी अपनी करा रहे है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 25 March 2019

सूरह इन्फ़ितार - 82 = سورتہ الانفطار (इज़ा अस्समाउन फ़ितरत)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह इन्फ़ितार - 82 = سورتہ الانفطار
(इज़ा अस्समाउन फ़ितरत)

ऊपर उन (78  -1 1 4) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फ़ाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फ़ातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मक्र, सियासत, नफ़रत, जेहालत, कुदूरत, ग़लाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए ग़ैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फ़ाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सज़ाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफ़रत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की ख़ैर  ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक़ में होगा.

"जब आसमान फट जाएगा,
जब सितारे टूट कर झड पड़ेगे,
जब सब दरया बह पड़ेंगे,
और कब्रें उखाड़ी जाएगी,
हर शख़्स अपने अगले और पिछले आमाल को जान लेगा,
ऐ इंसान तुझको किस चीज़ ने तेरे रब्बे करीम के साथ भूल में डाल रख्खा है,
जिसने तुझको बनाया और तेरे आसाब दुरुस्त किए,
फिर तुझको एतदाल पर लाया,
जिस सूरत चाहा तुझको तरकीब दे दिया,
हरगिज़ नहीं बल्कि तुम जज़ा और सज़ा को ही झुट्लाते हो,
और तुम पर याद रखने वाले और मुअज़्ज़ज़ लिखने वाले मुक़र्रर हैं,
जो तुम्हारे सब अफ़आल  को जानते हैं,
नेक लोग बेशक आशाइश में होंगे,
और बदकार बेशक दोज़ख में होगे,
और आप को कुछ ख़बर है कि वह रोज़ ऐ जज़ा कैसा है,
और आप को कुछ ख़बर है की वह रोज़ ऐ जज़ा कैसा है,
वह दिन ऐसा है कि किसी शख़्स  को नफ़ा के लिए कुछ बस न चलेगा,
और तमाम तर हुकूमत उस रोज़ अल्लाह की होगी.
सूरह इन्फ़ितार - 82 आयत(1 -1 9 )

आसमान कोई चीज़ नहीं होती, 
ये कायनात लामतनाही और मुसलसल है, 
500  किलो मीटर हर रोज़ अज़ाफ़त के साथ साथ बढ़ रही है. 
ये आसमान जिसे आप देख रहे हैं, ये आपकी हद्दे नज़र है.
इस जदीद इन्केशाफ से बे ख़बर अल्लाह आसमान को ज़मीन की छत बतलाता है, और बार बार इसके फट जाने की बात करता है, 
अल्लाह के पीछे छुपे मुहम्मद सितारों को आसमान पर सजे हुए कुम्कुमें समझते हैं , इन्हें ज़मीन पर झड जाने की बातें करते हैं. 
जब कि ये सितारे ख़ुद ज़मीन से कई कई गुना बड़े होते हैं..
अल्लाह कहता है जब सब दरियाएँ बह पड़ेंगी. 
है न हिमाक़त की बात, क्या सब दर्याएँ कहीं रुकी हुई हैं? 
कि बह पड़ेंगी. बहती का नाम ही दरिया है.
 तुम्हारे तअमीर और तकमील में तुम्हारा या तुम्हारे माँ बाप का कोई दावा तो नहीं है, इस जिस्म को किसी ने गढ़ा हो, फिर अल्लाह हमेशा इस बात ख़ुलासा क्यूँ करता  रहता है कि तुमको इस इस तरह से बनाया. 
इसका एहसास और एहसान भी जतलाता रहता है कि 
इसने हमें अपनी हिकमत से मुकम्मल किया.
सब जानते हैं कि इस ज़मीन की तमाम मख़लूक़ इंसानी तर्ज़ पर ही बने हैं, 
इस सूरत में वह चरिंद, परिन्द और दरिंद को 
अपनी इबादत के लिए मजबूर क्यूँ नहीं करता? 
इस तरह तमाम हैवानों को अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक़ मुसलमान होना चाहिए. मगर ये दुन्या अल्लाह के वजूद से बे ख़बर है.
अल्लाह पिछली सूरतों में कह चुका है कि 
वह इंसान का मुक़द्दर हमल में ही लिख देता है, 
फिर इसके बाद दो फ़रिश्ते आमाल लिखने के लिए 
इंसानी कन्धों पर क्यूँ बिठा रख्खे है?
असले-शहूद ओ शाहिद ओ मशहूद एक है,
           हैराँ हूँ फिर मुशाहिदा है किस हिसाब का. 
(ग़ालिब)
तज़ादों से पुर इस अल्लाह को पूरी जिसारत से समझो, 
ये एक जालसाज़ी है, इंसानों का इंसानों के साथ, 
इस हक़ीक़त को समझने की कोशिश करो. 
जन्नत और दोज़ख़ इन लोगों की दिमाग़ी पैदावार है,  
इसके डर और इसकी लालच से ऊपर उट्ठो. 
तुम्हारे अच्छे अमल और नेक ख़याल का गवाह अगर तुम्हारा ज़मीर है, 
तो कोई ताक़त नहीं जो मौत के बाद तुमहारा बाल भी बीका कर सके. 
और अगर तुम ग़लत हो तो इसी ज़िन्दगी में 
अपने आमाल का भुगतान करके जाओगे.
मुहम्मद अल्लाह की जुबां से कहते हैं 
"उस दिन तमाम तर हुकूमत अल्लाह की होगी"
आज कायनात  की तमाम तर हुकूमत किसकी है? 
क्या अल्लाह ने इसे शैतान के हवाले करके सो रहा है?
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 24 March 2019

खेद है कि यह वेद है (41)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (41)

*हे वायु ! तुम्हारे पास जो हजारों रथ हैं, 
उनके द्वारा नियुत गणों के साथ सोमरस पीने के लिए आओ.
*हे वायु नियुतों सहित आओ. 
यह दीप्तमान सोम तुम्हारे लिए है. 
तुम सोमरस निचोड़ने यजमान के घर जाते हो. 
* हे नेता इंद्र और वायु आज नियुतों के साथ गव्य (पंचामृति) मिले सोम पीने के लिए आओ.
द्वतीय मंडल सूक्त 41 (1) (2) (3)

* हजारो रथ पर सवार अकेले इंद्र देव कैसे आ सकते हैं ? वह भी  एक जाम पीने के लिए ?? पुजारी देव को परम्परा याद दिलाता है कि 
"तुम सोमरस निचोड़ने यजमान के घर जाते हो."
हमारा मक़सद किसी धार्मिक आस्था वान को ठेस पहुचना नहीं है. 
उनको जगाना है कि इन मिथ्य परम्पराओं को समझें और जागें. 
यह रूकावट बनी हुई हैं इंसान के लिए कि वह वक़्त के साथ क़दम मिला कर चले
***

हे सोम एवं पूषा !
तुम में से एक ने समस्त प्राणियों को उत्पन्न क्या है. 
दूसरा सब का निरीक्षण करता हुवा जाता है. 
तुम हमारे यज्ञ कर्म की रक्षा करो. 
तुम्हारी सहायता से हम शत्रुओं की पूरी सेना को जीत लेंगे.
द्वतीय मंडल सूक्त 40(5)
*पंडित जी सैकड़ों देव गढ़ते है और फिर इनको उनकी विशेषता से अवगत कराते हैं, उसके बाद उनको अपनी चाकरी पर नियुक्त करते हैं. पता नहीं किस शत्रु की सेना इनके यज्ञ में विघ्न  डालती हैं. 
यजमान हाथ जोड़ कर इनके मंतर सुनते हैं. मैंने पहले भी कहा है मंतर जिसे मंत्री के सिवाए कोई समझ न पाए. यह बहुधा संस्कृति और अरबी में होते है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 22 March 2019

सूरह तकवीर- 81 = سورتہ التکویر (इज़ा अशशम्सो कूवरत)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह तकवीर- 81 = سورتہ التکویر
(इज़ा अशशम्सो कूवरत)

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

 देखो, बाज़मीर होकर कि तुम अपने नमाज़ों में क्या पढ़ते हो - - -
"जब आफ़ताब बेनूर हो जाएगा,
जब सितारे टूट कर गिर पड़ेगे,
जब पहाड़ चलाए जाएँगे,
जब दस महीना की गाभिन ऊंटनी छुट्टा फिरेगी,
जब वहशी जानवर सब जमा हो जाएगे,
 जब दरिया भड़काए जाएंगे,
और जब एक क़िस्म के लोग इकठ्ठा होंगे,
और जब ज़िन्दा गड़ी हुई लड़की से पूछा जाएगा
 कि वह किस गुनाह पर क़त्ल हुई,
और जब नामे आमाल खोले जाएँगे,
और जब आसमान फट जाएँगे,
और जब दोज़ख दहकाई जाएगी,
तो मैं क़सम खाता हूँ इन सितारों की
जो पीछे को हटने लगते हैं,
और क़सम है उस रात की जब वह ढलने लगे,
और क़सम है उस सुब्ह की जब वह जाने लगे,
कि कलाम एक फ़रिश्ते का लाया हुवा है.
जो क़ूवत वाला है
 और जो मालिक ए अर्श के नज़दीक़ ज़ी रुतबा है,
वहाँ इसका कहना माना जाता है,
सूरह तक्वीर 81 आयत (1 -2 0 )

अपने कलाम में नुदरत बयानी समझने वाले मुहम्मद क्या क्या बक रहे हैं 
कि जब पहाड़ों में चलने के लिए अल्लाह पैर पैदा कर देगा, 
वह फुद्केंगे, लोग अचम्भा और तमाशा ही देखेंगे, 
मुहम्मद ऊंटों और खजूरों वाले रेगिस्तानी थे, 
गोया इसे भी अलामाते क़यामत तसुव्वर करते हैं कि 
"जब दस महीना की गाभिन ऊंटनी छुट्टा फिरेगी" 
छुट्टा घूमे या रस्सियों में गाभिन हो अभागिन, 
ऊंटनी ही नहीं तमाम जानवर हमेशा आज़ाद ही घूमा फिरा करेंगे. 
दरिया सालाना भड़कते ही रहते हैं. ये क़ुरआन की फूहड़ आयतें 
जिनकी क़समें अल्लाह अपनी तख़लीक़ की नव अय्यत को पेशे नज़र 
रख कर क़सम खाता है तो इसपर यक़ीन तो नहीं होता, 
हाँ,  हँसी ज़रूर आती है.
मुसलामानों! क्या सुब्ह ओ शाम तुम ऐसी दीवानगी की इबादत करते हो?

"और वह तुम्हारे साथ रहने वाले मजनू नहीं हैं.
उन्हों ने फ़रिश्ते को आसमान पर भी देखा है
और ये पैग़म्बर की बतलाई हुई वह्यी क़ी बातों में बुख़्ल करने वाले नहीं.
और ये क़ुरआन शैतान मरदूद की कही हुई बातें नहीं हैं,
तो तुम लोग किधर जा रहे हो,
बस कि ये दुन्या जहान के लिए एक बड़ा नसीहत नामा है
और ऐसे लोगों के लिए जो तुम में सीधा चलना चाहे,
और तुम अल्लाह रब्बुल आलमीन के चाहे बिना कुछ नहीं चाह सकते.
सूरह तक्वीर 81 आयत (2 1 -2 9 )
कहाँ उसका कहना नहीं माना जाता? 
उसके हुक्म के बग़ैर तो पत्ता भी नहीं हिलता. 
ये वही फ़रिश्ता है जिसे वह रोज़ ही देखते हैं 
जब वह अल्लाह की वहयी लेकर मुहम्मद के पास आता है,
फिर उसकी एक झलक आसमान पर देखने की गवाही कैसी?
क़यामत के बाद जब ये दुन्या ही न बचेगी तो नसीहत का हासिल?
क़ुरआन पर हज़ारों एतराज़ ज़मीनी बाशिदों के है, 
जिसे ये ओलिमा मरदूद उभरने ही नहीं देते.

भोले भाले ऐ नमाज़ियो!
सबसे पहले ग़ौर करने की बात ये है कि ऊपर जो कुछ कहा गया है, 
वह किसी इंसान के मुंह से अदा किया गया है या कि किसी ग़ैबी अल्लाह के मुंह से?
ज़ाहिर है कि ये इंसान के मुंह से निकला हुवा कलाम है 
जो कि बद कलामी की हदों में जाता है. 
क्या कोई ख़ुदाई हस्ती इरशाद कर सकती है कि 
"जब दस महीना की गाभिन ऊंटनी छुट्टा फिरेगी,"
अरबी लोग क़समें ज़्यादः खाते हैं. शायद क़समें इनकी ही ईजाद हों. 
मुहम्मद अपनी हदीसों में भी क़ुरआन की तरह ही क़समे खाते हैं. 
इस्लाम में झूटी क़समें खाना आम बात है, इनको अल्लाह मुआफ़ करता रहता है. अगर इरादतन क़सम खा लिया तो किसी यतीम या मोहताज को खाना खिला दो. बस. झूटी क़सम से मुबर्रा हुए.
ग़ौर करने की बात है कि जहाँ झूटी क़समें रायज हों 
वहां झूट बोलना किस क़दर आसन होगा? 
ये क़ुरआन झूट ही तो है. क़यामत, दोज़ख, जन्नत, हिसाब-किताब, फ़रिश्ते, जिन और शैतान सब झूट ही तो हैं. 
क्या तुम्हारे आईना ए हयात पर झूट की परतें नहीं जम गई हैं?
ये इस्लाम एक गर्द है तुमको मैला कर रही है. 
अपने गर्दन को एक जुंबिश दो, 
इस जमी हुई गर्द को अपनी हस्ती पर से हटाने के लिए.
अल्लाह कहता है 
"और तुम अल्लाह रब्बुल आलमीन के चाहे बिना कुछ नहीं चाह सकते."
तो फिर दुन्या में कहाँ कोई बन्दा गुनाहगार हो सकता है, 
सिवाए अल्लाह के.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 21 March 2019

खेद है कि यह वेद है (39



खेद  है  कि  यह  वेद  है  (39)

कपडे बुनने वाली नारी जिस प्रकार कपडे लपेटी है, 
उसी प्रकार रात बिखरे हुए प्रकाश को लपेट लेती है. 
कार्य करने में समर्थ एवं बुद्धिमान लोग अपना काम बीच में ही रोक देते हैं. 
विराम रहित एवं समय का विभाग करने वाले सविता देव के उदित होने तक लोग शैया छोड़ते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 38(4)
*वाह पंडित जी ! क्या लपेटा है.
कुरआन में भी कुछ ऐसे ही रात और दिन को अल्लाह लपेटता है. 
नारी कपडे को लपेट कर सृजात्मक काम करती है 
और रात बिखरे हुए प्रकाश को लपेट कर नकारात्मक काम करती है. 
यह विरोधाभाषी उपमाएं क्या पांडित्व का दीवालिया पन तो नहीं? 
इस सूक्त से एक बात तो साफ़ होती है कि वेद की आयु उतनी ही है कि जब इनसान कपडा बुनना और उसे लपेट कर रखने का सकीका सीख गया था, 5-6 हज़ार वर्ष पुरानी नहीं.

हे अस्वनी कुमारो ! 
तुम दोनों होटों के सामान मधुर वचन बोलो, 
दो स्तनों के सामान हमारे जीवन रक्षा के लिए दूध पिलाओ, 
नासिका के दोनों छिद्रों के सामान हमारे शरीर रक्षक बनो. 
एवं कानो के सामान हमारी बात सुनो.  
द्वतीय मंडल सूक्त 39(6)

पंडित जी महाराज दोनों होटों से ही कटु वचन भी बोले जाते है. 
कब तक स्तनों के दूध पीते रहोगे ? अब बड़े भी हो जाओ.
हाथ, पैर, आँखें और अंडकोष भी दो दो होते हैं 
इनको भी अपने मंतर में लाओ. 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 20 March 2019

सूरह अबस- 80 = سورتہ عبس (अ ब स वतावल्ला)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****

सूरह अबस- 80 =  سورتہ عبس
(अ ब स वतावल्ला)

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

"पैग़म्बर चीं बचीं हो गए,
और मुतवज्जेह न हुए उससे कि इनके पास अँधा आया है,
और आपको क्या ख़बर कि नाबीना सँवर जाता,
या नसीहत क़ुबूल करता तो इसको नसीहत करना फ़ायदा पहुँचाता,
सो जो शख़्स लापरवाही करता है तो आप उसकी फ़िक्र में पड़े रहते हैं.
हालाँकि आप पर कोई इलज़ाम नहीं है कि वह संवरे,
जो शख़्स आपके पास दौड़ा हवा चला आता है,
और डरता है,
आप इससे बे एतनाई करते हैं.
हरगिज़ ऐसा न कीजिए, क़ुरआन नसीहत की चीज़ है,
सो जिसका दिल चाहे इसे क़ुबूल करे.
ऐसे सहीफों में से है जो मुकर्रम है.
सूरह अबस 80 आयत (1-13) 

आदमी पर अल्लाह की मार. वह कैसा है,
अल्लाह ने उसे कैसी चीज़ से पैदा किया,
नुतफ़े से इसकी सूरत बनाई, फिर इसको अंदाज़े से बनाया.``
फिर इसको मौत दी,
फिर इसे जब चाहेगा दोबारह जिंदा कर देगा.
सूरह अबस 80 आयत (14-22)  

"हरगिज़ नहीं इसको जो हुक्म दिया गया है बजा नहीं लाया,
कि आदमी को चाहिए अपने खाने पर ग़ौर करे.
कि हमने अजीब तौर पर पानी बरसाया,
फिर अजीब तौर पर ज़मीन को फाड़ा,
फिर हमने उसमें ग़ल्ला और तरकारी,
और ज़ैतून और खजूर,
और गुंजान  बाग़ और मेवे,
और चारा पैदा किया.
बअज़ी तुम्हारे और बअज़ी  तुम्हारे मवेशियों के फ़ायदे के वास्ते.
फिर जब कानों में बरपा होने वाला शोर बरपा होगा,
जिस रोज़ आदमी अपने भाई से, अपनी माँ से और अपने बाप से और अपनी बीवी से और अपनी अवलाद से भागेगा,
उस वक़्त हर शख़्स को ऐसा मशगला होगा जो उसको और तरफ़ मुतवज्जेह न होने देगा.
बहुत  से चेहरे उस वक़्त रौशन, शादाँ और खन्दां होगे ,
और बहुत से चेहरों पर ज़ुल्मत होगी,
यही लोग काफ़िर ओ फ़ाजिर होंगे.    , 
सूरह अबस 80 आयत (32-42)

झूट और शर की अलामत ओसामा बिन लादेन मारा गया.  
दुन्या भर में खुशियाँ मनाई जा रही हैं. 
याद रखें ये अलामत को सज़ा मिली है, 
झूट और शर को नहीं. 
सारी दुन्या मुत्तहद हो कर कह रही है कि झूट और शर से इस ज़मीन को पाक किया जाए. 
ये झूट और शर क़ुरआन है जिसकी तअलीम जुनूनियों को तालिबान, जैश ए मुहम्मद वग़ैरा बनाए हुए है. इसकी तबलीग़ और तहरीर दर पर्दा इंसानी ज़ेहन को ज़हरीला किए हुए है. अगर तुम मुसलमान हो तो यक़ीनी तौर पर क़ुरआन के शिकार हो. 
अब मुसलमान होते हुए  मुँह नहीं छिपाया जा सकता और न ओलिमा का ज़हरीला कैप्शूल निगला जा सकता है, वह चाहे उस पर कितनी शकर लपेटें. 
तुम्हारा भरम दुन्या के साथ टूट चुका है.

मुसलमानों!
तुम यक़ीनन " किं कर्तव्य विमूढ़" (क्या करें, क्या न करें) हो रहे हो. 
तुम्हारा इस वक़्त कोई रहनुमा नहीं है, लावारिस हो रहे हो, ओलिमा ठेल ढ़केल कर तुम्हें क़ुरआन के झूट और शर भरी आयतों की तरफ़ ढकेल रहे है जिनके शिकार तुमहारे आबा ओ अजदा हुए हैं. एक वक़्त आएगा कि तुम्हारा वजूद ख़त्म हो रहा होगा और ये हरामी क्रिश्चिनीटी और हिदुत्व के गोद में बैठ रहे होंगे. 
*** 
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 19 March 2019

खेद है कि यह वेद है (37)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (37)

हे द्रविणोदा ! वे घोड़े तृप्त हों जिनके द्वारा तुम आते हो.
हे वनों के स्वामी ! तुम किसी की हिंसा न करते हुए दृढ बनो.
हे शत्रुपराभवकारी !तुम नेष्टा के यज्ञ आकर ऋतुओं के साथ सोम पियो. 
द्वतीय मंडल सूक्त 37 (3)

समझ में नहीं आता कि कौन सी उपलब्धियाँ हैं वेद में जो मानवता का उद्धार कर रही होम. बस देवों को खिलाने पिलाने की दावत हर दूसरे वेद मन्त्र में है. 
खुद बामन्ह का पेट गणेश उदर जैसा लगता है कि इसके लिए हवि की हर वक़्त ज़रुरत होती है. 

* हे बुद्धिमान अग्नि ! 
इस यज्ञ स्थल में देवों को बुला कर उनके निमित यज्ञ करो.
हे देवों को बुलाने वाले अग्नि !
तुम हमारे हव्य की इच्छा करते हुए तीन स्थानों पर बैठो , 
उत्तर वेदी पर रख्खे हुए सोमरूप मधु को रवीकर करो.
एवं अगनीघ्र के पास से अपना हिस्सा लेकर तृप्त बनो.
द्वतीय मंडल सूक्त 36(4)

बुद्धू राम अग्नि को बुद्धमान बतला रहे हैं. 
आग का बुद्धी से क्या वास्ता ?  
देव को महाराज हुक्म देते हैं कि अपना हिस्सा ही लेना , 
कोई मनमानी नहीं करना. 
यह है इनका मस्तिष्क स्तर.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 18 March 2019

सूरह नाज़िआत- 79 = سورتہ النازعات (वन नज़ात ए आत ग़रक़न)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****


सूरह नाज़िआत- 79 = سورتہ النازعات
(वन नज़ात ए आत ग़रक़न)

ऊपर उन (78 -114) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फ़ाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फ़ातेहा या अलहम्द - - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो. 
ये छोटी छोटी सूरतें तीसवें पारे की हैं. देखिए और समझिए कि इनमें 
झूट, मक्र, सियासत, नफ़रत, जेहालत, दारोग़ और लग़वियत भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. 
तुम अपनी ज़बान में इनको पढ़ने के बाद क्या, 
तसव्वुर करने की भी हिम्मत नहीं कर सकते इनका मतलब जानो ? 
ये ज़बान ए ग़ैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, 
चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो. 
इबादत के लिए रुक़ूअ, सुजूद, अल्फ़ाज़, तौर तरीक़े और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, ग़र्क़ ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. 
तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि 
तुम इसे सज़ाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए और धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफ़रत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की ख़ैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक़ में होगा.

अल्लाह की क़समें देखें, 
क्या इनमे झूट, मक्र, सियासत, नफ़रत और जेहालत नहीं है - - -

"क़सम है फ़रिश्तों की जो जान सख़्ती से निकालते हैं,
जो आसानी से निकालते हैं, गो ये बंद खोल देते हैं,
और जो तैरते हुए चलते हैं फिर तेज़ी से दौड़ते हैं,
फिर हर अम्र की तदबीर करते हैं,
क़यामत ज़रूर आएगी."

"जिस रोज़ हिला डालने वाली चीज़ हिला डालेगी ,
जिसके बाद एक पीछे आने वाली चीज़ आएगी,
बहुत से दिल उस रोज़ धड़क रहे होंगे,
आँखें झुक रही होंगी."
 सूरह नाज़िआत 79 आयत (6 -9) 

क्या आपको मूसा का क़िस्सा पहुँचा, जब कि अल्लाह ने इन्हें एक पाक मैदान में पुकारा कि फ़िरऔन के पास जाओ, इसने बड़ी शरारत अख़्तियार कर रख्खी है, उससे जाकर कहो कि क्या तुझको इस बात की ख़्वाहिश है कि तू दुरुस्त हो जाए . . . 
सूरह नाज़िआत 79  आयत  (15-17 )

"भला तुम्हारा पैदा करना ज़्यादः सख़्त है या आसमान का?
अल्लाह ने आसमान को बनाया इसकी छत को बुलंद किया,
फिर ज़मीन को बिछाया
इससे इसका पानी और चारा निकाला
तुम्हारे मवेशियों को फ़ाएदा पहुँचाने  के लिए."
सूरह नाज़िआत 79  आयत  (27 -33)

"सो जब वह बड़ा हंगामा आएगा
यानी जिस रोज़ इंसान अपने किए को याद करेगा
और देखने वालों के सामने दोज़ख पेश की जाएगी,
तो जिस शख़्स  ने सरकशी की होगी और दुनयावी ज़िन्दगी को तरजीह दी होगी,  सो दोज़ख ठिकाना होगा."
सूरह नाज़िआत 79  आयत  (34-39 )

मुसलमानों! 
सबसे पहले हिम्मत करके देखो कि ये अल्लाह किस ढब की बातें करता है? वह ग़ैर ज़रुरी उलूल जुलूल क़समें क्यूँ खाता है ? 
ये फ़रिश्ते किसी की जान क्यूँ तड़पा  तड़पा कर निकालते हैं 
और क्यूँ  किसी की आसानी के साथ? 
ऐसा भी नहीं कि ये आमाल के बदले होता हो.
एक बीमार मासूम बच्चा अपनी बीमारी झेलता हुवा क्यूँ पल पल घुट घुट कर मरता है? तो एक मुजरिम तलवार की धार से पल भर में मर जाता है? 
क्या इन हक़ीक़तों से क़ुरआन का दूर दूर तक का कोई वास्ता है? 
क़यामत का डर तुम्हें चौदह सौ सालों से खाए जा रहा है.
मूसा ईसा क़ी सुनी सुनाई दास्ताने, 
मुहम्मद अपने दीवान में दोहराते रहते हैं, 
अगर ये अरबी में न होकर आपकी अपनी ज़बान में होती तो 
कब के आप इस दीवन ए मुहम्मद को बेज़ार होकर तर्क कर दिए होते.
इबादत के अल्फ़ाज़ तो ऐसे होने चाहिए कि जिससे ख़ल्क़ क़ी ख़ैर  और ख़ल्क़ का भला हो.
क़ुरआन को अज ख़ुद तर्क करके आपको इससे नजात पाना है, 
इससे पहले कि दूसरे तुमको मजबूर करें.
***   

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 14 March 2019

खेद है कि यह वेद है (35)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (35)

 हिरण्यरूप, हिरण्यमय इन्द्रियों वाले एवं हिरण्यवर्ण अपानपात हिरण्यमय स्थान पर बैठ कर सुशोबित होते हैं. हिरण्यदाता यजमान उन्हें दान देते हैं. 
द्वतीय मंडल सूक्त 35(10)
पंडित जी शब्दा अलंकर को लेकर एक पशु हिरन को सुसज्जित और अलंकृत कर रहे हैं, भाव का आभाव है,
भाव देखें
हरे हरे कदम की, हरी हरी छड़ी लिए, हरि हरि पुकारती, हरे हरे लतन में.
पिछले सूक्त34 (1) में अपने देव को भयानक पशु जैसा रूप गढ़ा था. 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

**

हे रूद्र !
तुम्हारा वह सुख दाता हाथ कहाँ है जो सबको सुख पहुँचाने वाली दवाएं बनाता है ?
हे काम वर्धक रूद्र !
तुम देव कृत पाप का विनाश करते हुए मुझे जल्दी क्षमा करो .
द्वतीय मंडल सूक्त 33 (7)

काम वर्धक अर्थात आज की भाषा में अय्याशी . श्लोक उन हाथों को तलाश कर रहा है जो उसके लिए काम वर्धक दवाएं बनाता है .
कुरआनी  मुसलमान हो या वैदिक हिन्दू , सब भोग विलाश में मुब्तिला है.
देव तो देव होते हैं, उनके कृत पाप कैसे हुए. अगर देव भी पापी हुवा करते हैं तो इंसान की क्या औकात ?
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 13 March 2019

सूरह नबा- 78 = سورتہ النبا (अम्मा यता साएलूना)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****


सूरह नबा- 78 = سورتہ النبا
(अम्मा यता साएलूना)

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

 "ये लोग किस चीज़ का हल दरियाफ़्त करते हैं,
उस बड़े वाक़ेए का जिसका ये इख़्तेलाफ़ करते हैं ,
हरगिज़ ऐसा नहीं, इनको अभी मालूम हुवा जाता है,
(दोबारा)
हरगिज़ ऐसा नहीं, इनको अभी मालूम हुवा जाता है,
क्या हमने ज़मीन को फ़र्श और पहाड़ को मेखें नहीं बनाईं?
और हमने ही तुमको जोड़ा जोड़ा बनाया,
और हमने ही तुम्हारे सोने को राहत की चीज़ बनाया.
और हमने ही रात को पर्दा की चीज़ बनाया,
और हमने ही दिन को मुआश का वक़्त बनाया,
और हम ही ने तुम्हारे ऊपर सात मज़बूत आसमान बनाए,
और रौशन चराग़ बनाया,
और हम ही ने पानी भरे बादलों से कसरत से पानी बरसाया,
ताकि हम पानी के ज़रीया ग़ल्ला और सब्ज़ी और गुंजान बाग़ पैदा करें.
बेशक फ़ैसले के दिन का मुअय्यन वक़्त है."
सूरह नबा 78  आयत  (1-17 )

"हमने हर चीज़ को लिख कर ज़ब्त कर रखा है, सो मज़ा चक्खो हम तुम्हारी सज़ा बढ़ाते जाएंगे{काफ़िरों से अल्लाह का वादा}अल्लाह से डरने वालों के लिए बेशक कामयाबी है यानी बाग़ और अंगूर और नव ख़्वास्ता नव उम्र औरतें और लबालब भरे हुए जाम ए शराब. वहाँ न कोई बेहूदः बातें सुनेंगे और न झूट. ये काम बदला मिलेगा जो कॉफ़ी इनआम होगा रब की तरफ़ से." सूरह नबा 78  आयत  (27 -36 )

 नमाजियों !
तुम्हारा अल्लाह तुमको ग़लत इत्तेला देता है कि ये ज़मीन फ़र्श की तरह समतल है और पहाड़ उस पर खूंटों की तरह ठुके हुए हैं ताकि ये तुमको लेकर हिले दुले ना.
हक़ीक़त ये है कि तुम्हारी धरती गोल है जिसे तुम टी वी पर हर रोज़ कायनात में गर्दिश करते हुए देख सकते हो. 
ज़मीन अपने गोद में पहाड़ और समंदर कैसे लिए हुए है, इसे तुम अपने बच्चे से पूछ सकते हो अगर वह तअलीम जदीद ले रहा हो वर्ना अगर वह मदरसे का पामाल तालिब इल्म है तो तुम्हारी अगली नस्ल भी ज़ाया गई.
तुम अगर थोड़े से तअलीम याफ़्ता हो या तुम में फ़िक्र की कुछ अलामत है 
तो इन आयतों वाली नमाज़ पढ़ ही नहीं सकते.
ईसाई भो मुसलमानों की तरह ही धरती को गोल न मान कर समतल मानते थे, मगर चार सौ साल पहले आलिम ए फ़ल्कियात, गैलेलिओ के इन्किशाफ़ के बाद , हुज्जत करते हुए वह ज़मीन को गोल मानने लगे हैं.
क्या तुम चार सौ साल और लोगे सच को सच मानने के लिए? 'इसमें पहाड़ों के खूटे ठुके हुए हैं ताकि ये तुमको लेकर हिले दुले न' जैसी जिहालत भरी नमाज़ कब तक पढ़ते रहोगे?
रह गई ज़मीन पर क़ुदरत की बख़्शी हुई नेमतें, तो इसको कौन बेवक़ूफ़ नहीं मानता. ये किसी छुपे हुए फ़नकार की तख़लीक़ है, 
उसे ख़ुदा, ईश्वर या गाड कोई भी नाम दो, 
मगर इसे क़ुरआनी अल्लाह का नाम नहीं दिया जा सकता, 
क्यूंकि वह कठ मुल्ला है.
इसके अलावा तुम पूरा यक़ीन कर सकते हो कि 
तुमको मरने के बाद कोई सज़ा या जज़ा नहीं है.
ज़िन्दगी ख़ुद एक आज़ार भरी सौग़ात है, मौत इसका अंजाम है.
मरने के बाद कोई सज़ा, कोई ताक़त ऐसी नहीं जो तुम पर थोपे.
मुहम्मद इस लिए तुमको डराते हैं कि 
तुम इनको कम ओ बेश ख़ुदा की तरह मानते हो. 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान