Tuesday 30 April 2019

खेद है कि यह वेद है (72)



खेद  है  कि  यह  वेद  है  (72)

हे संग्राम में आगे बढ़ने वाले और युद्ध करने वाले इन्द्र और पर्वत! तुम उसी शत्रु को अपने वज्र रूप तीक्षण आयुध से हिंसित करो जो शत्रु सेना लेकर हमसे संग्राम करना चाहे. हे वीर इन्द्र ! जब तुम्हारा वज्र अत्यंत गहरे जल से दूर रहते हुए शत्रु की इच्छा करें, तब वह उसे कर ले. हे अग्ने, वायु और सूर्य ! तुम्हारी कृपा प्राप्त होने पर हम श्रेष्ठ संतान वाले वीर पुत्रादि से युक्त हों और श्रेष्ठ संपत्ति को पाकर धनवान कहावें.
(यजुर्वेद १.८) 
यह है शांति प्रीय हिन्दू धर्म.

हे शत्रु नाशक इन्द्र! 
तुम्हारे आश्रय में रहने से शत्रु और मित्र सही हमको ऐश्वर्य्दान बताते हैं |६| यज्ञ को शोभित करने वाले, आनंदप्रद, प्रसन्नतादायक तथा यज्ञ को शोभित करने वाले सोम को इन्द्र के लिए अर्पित करो |१७| हे सैंकड़ों यज्ञ वाले इन्द्र ! इस सोम पान से बलिष्ठ हुए तुम दैत्यों के नाशक हुए. इसी के बल से तुम युद्धों में सेनाओं की रक्षा करते हो |८| हे शत्कर्मा इन्द्र ! युद्धों में बल प्रदान करने वाले तुम्हें हम ऐश्वर्य के निमित्त हविश्यांत भेंट करते हैं |९| धन-रक्षक,दू:खों को दूर करने वाले, यग्य करने वालों से प्रेम करने वाले इन्द्र की स्तुतियाँ गाओ. 
(ऋग्वेद १.२.४) 

* कहाँ पर कोई धर्म या मानव समाज के लिए शुभ बातें कही गई हैं इन वेदों में. सच पूछो तो इनको अब दफना देना चाहिए.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 29 April 2019

खेद है कि यह वेद है (76)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (76)
अब जिक्र करते है अश्लीलता का :-
वेदों में कैसी-कैसी अश्लील बातें भरी पड़ी है,
इसके कुछ नमूने आगे प्रस्तुत किये जाते हैं

(१) यां त्वा .........शेपहर्श्नीम || (अथर्व वेद ४-४-१) अर्थ :

हे जड़ी-बूटी, मैं तुम्हें खोदता हूँ. तुम मेरे लिंग को उसी प्रकार उतेजित करो
जिस प्रकार तुम ने नपुंसक वरुण के लिंग को उत्तेजित किया था.

*धर्मो के पोलखाते धर्म ग्रंथ में ही निहित हैं. जनता बेवकूफ पंडित जी के प्रवचन सुनने की आदी है जो ऐसी बातों को परदे में रखते हैं.


हे बाण रूप ब्राहमण !
तुम मन्त्रों द्वारा तीक्ष्ण किये हुए हो.
हमारे द्वारा छोड़े जाने पर तुम शत्रु सेनाओं पर एक साथ गिरो
और उनके शरीरों में घुस कर किसी को भी जीवित मत रहने दो.
(४५) (यजुर्वेद १.१७)

यहाँ सोचने वाली बात है कि जब पुरोहितों की एक आवाज पर सब कुछ हो सकता है तो फिर हमें चाइना और पाक से डरने की जरुरत क्या है इन पुरोहितों को बोर्डर पर ले जाकर खड़ा कर देना चाहिए उग्रवादियों और नक्सलियों के पीछे इन पुरोहितों को लगा देना चाहिए, क्या जरुरत है इतनी लम्बी चौड़ी फ़ोर्स खड़ी करने की, क्या जरुरत है मिसाइलें बनाने की ?

*****
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 28 April 2019

सूरह बैय्य्ना 98 = سورتہ البینہ

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह बैय्य्ना 98 = سورتہ البینہ
(लम यकुनेल लज़ीना कफ़रू) 

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

"लोग अहले किताब और मुशरिकों में से हैं, काफ़िर थे, वह बाज़ आने वाले न थे, 
जब तक कि इन लोगों के पास वाज़ेह दलील न आई,
एक अल्लाह का रसूल जो पाक सहीफ़े सुनावे,
जिनमें दुरुस्त मज़ामीन लिखे हों,
और जो लोग अहले किताब थे वह इस वाज़ह दलील के आने के ही मुख़तलिफ़ हो गए,
हालाँकि इन लोगों को यही हुक्म हुवा कि अल्लाह की इस तरह इबादत करें कि इबादत इसी के लिए ख़ास रहें. यकसू होकर और नमाज़ की पाबन्दी रखें और ज़कात दिया करें. और यही तरीका है इस दुरुस्त मज़ामीन का. बेशक जो लोग अहले किताब और मुशरिकीन से काफ़िर हुए, वह आतिश ए दोज़ख में जाएँगे. जहाँ हमेशा हमेशा रहेगे. ये लोग बद तरीन खलायक़ हैं.
बेशक जो लोग ईमान ले और अच्छे काम किए, वह बेहतरीन खलायक़ हैं.,
इनका सिलह इनके परवर दिगार के नज़दीक़ हमेशा रहने की बेहिश्तें हैं, 
जिनके नीचे नहरें जारी होंगी. अल्लाह इन से ख़ुश होगा, ये अल्लाह से ख़ुश होंगे, 
ये उस शख़्स के लिए है जो हमेशा अपने रब से डरता है."
सूरह  बय्येनह  आयत (1 -8 )

नमाज़ियो!
सूरह में मुहम्मद क्या कहना चाहते हैं ? 
उनकी फ़ितरत को समझते हुए मफ़हूम अगर समझ भी लो तो सवाल उठता है कि बात कौन सी अहमयत रखती है? 
क्या ये बातें तुम्हारे इबादत के क़ाबिल हैं ?
क्या रूस, स्वेडन, नारवे, कैनाडा, यहाँ तक की कश्मीरियों के लिए घरों के नीचे बहती अज़ाब नहरें पसंद होंगी? 
आज तो घरों के नीचे बहने वाली गटरें होती हैं. 
मुहम्मद अरबी रेगिस्तानी थे जो गर्मी और प्यास से बेहाल हुवा करते थे, 
लिहाज़ा ऐसी भीगी हुई बहिश्त उनका तसव्वुर हुवा करता था.
ये क़ुरआन अगर किसी ख़ुदा का कलाम होता 
या किसी होशमंद इंसान का कलाम ही होता 
तो वह कभी ऐसी नाक़बत अनदेशी की बातें न करता.
*** 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 26 April 2019

सूरह क़द्र - 97 = سورتہ القدر

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह क़द्र - 97 = سورتہ القدر
(इन्ना अनज़लना फी लैलतुल क़द्र) 

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

मैं क़ुरआन को एक साज़िशी मगर अनपढ़ दीवाने  की पोथी मानता हूँ और मुसलामानों को इस पोथी का दीवाना.
एक गुमराह इंसान चार क़दम भी नहीं चल सकता कि राह बदल देगा, 
ये सोच कर कि शायद वह ग़लत राह पर ग़ुम हो रहा है. 
इसी कशमकश में वह तमाम उम्र गुमराही में चला करता है. 
मुसलमानों की ज़ेह्नी कैफ़ियत कुछ इसी तरह की है, 
कभी वह अपने दिल की बात मानता है, 
कभी मुहम्मदी अल्लाह की बतलाई हुई राह को दुरुस्त पाता है. 
इनकी इसी चाल ने इन्हें दर्जनों तबक़े में बाँट दिया है. 
अल्लाह की बतलाई हुई राह में ही रह कर वह अपने आपको तलाश करता है, कभी वह उसी पर अटल हो जाता है. 
जब वह बग़ावत कर के अपने नज़रिए का एलान करता है 
तो इस्लाम में एक नया मसलक पैदा होता है.
यह अपनी मक़बूलियत की दर पे तशैया (शियों का मसलक) से लेकर अहमदिए (मिर्ज़ा ग़ुलाम मुहम्मद क़ादियानी) तक होते हुए चले आए हैं. 
नए मसलक में आकर वह समझने लगते है कि हम मंजिल ए जदीद पर आ पहुंचे है, मगर दर अस्ल वह अस्वाभाविक अल्लाह के फंदे में नए सिरे से 
फंस कर अपनी नस्लों को एक नया इस्लामी क़ैद खाना और भी देते है.
कोई बड़ा इंक़लाब ही इस क़ौम को राह ए रास्त पर ला सकता है 
जिसमे कॉफ़ी ख़ून ख़राबे की संभावनाएं निहित है. 
भारत में मुसलामानों का उद्धार होते नहीं दिखता है 
क्यूंकि इस्लाम के देव को अब्दी नींद सुलाने के लिए हिंदुत्व के महादेव को अब्दी नींद सुलाना होगा. यह दोनों देव और महा देव, सिक्के के दो पहलू हैं.
मुसलामानों ! 
इस दुन्या में एक नए मसलक का आग़ाज़ हो चुका है, वह है तर्क ए मज़हब और सजदा ए इंसानियत. इंसानों से ऊँचे उठ सको तो मोमिन की राह को पकड़ो जो कि सीध सड़क है.  

"बेशक हमने क़ुरआन को शब ए क़द्र में उतारा है,
और आपको कुछ मालूम है कि शब ए क़द्र क्या चीज़ होती है,
शब ए कद्र हज़ार महीनों से बेहतर है,
इस रात में फ़रिश्ते रूहुल क़ुद्स अपने परवर दिगार के हुक्म से 
अम्र ए ख़ैर को लेकर उतरते हैं, सरापा सलाम है.
वह शब ए तुलू फ़जिर तक रहती है".
सूरह क़द्र  97  आयत (1 -5 ) 

नमाज़ियो !
मुहम्मदी अल्लाह सूरह में क़ुरआन को शब क़द्र की रात को उतारने की बात कर रहा है तो कहीं पर क़ुरआन माहे रमजान में नाज़िल करने की बात करता है, जबकि क़ुरआन मुहम्मद के ख़ुद साख़ता रसूल बन्ने के बाद उनकी आखरी साँस तक, तक़रीबन बीस साल चार माह तक मुहम्मद के मुँह से निकलता रहा.  
मुहम्मद का तबई झूट आपके सामने है. 
मुहम्मद की हिमाक़त भरी बातें तुम्हारी इबादत बनी हुई हैं, 
ये बड़े शर्म की बात है. 
ऐसी नमाज़ों से तौबा करो. 
झूट बोलना ही गुनाह है, 
तुम झूट के अंबार के नीचे दबे हुए हो. 
तुम्हारे झूट में जब जिहादी शर शामिल हो जाता है 
तो वह बन्दों के लिए ज़हर हो जाता है. 
तुम दूसरों को क़त्ल करने वाली नमाज़ अगर पढ़ोगे 
तो सब मिल कर तुमको ख़त्म कर देंगे. 
मुस्लिम से मोमिन हो जाओ, 
बड़ा आसान है. 
सच बोलना, सच जीना और सच ही पर जान देना 
बढ़ो और उसपर अमल करो, 
ये बात सोचने में पहाड़ जैसी लगती है, 
अमल पर आओ तो कोई रुकावट नहीं.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 25 April 2019

खेद है कि यह वेद है (70)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (70)
 हे प्रचंड योद्धा इन्द्र! 
तू सहस्त्रों प्रकार के भीषण युद्धों में अपने रक्षा-साधनों द्वारा हमारी रक्षा कर |हमारे साथियों की रक्षा के लिए वज्र धारण करता है, 
वह इन्द्र हमें धन अथवा बहुत से ऐश्वर्य के निमित्त प्राप्त हो.
(ऋग्वेद १.३.४. ७) 

इन्हीं वेदों की देन हैं कि आज मानव समाज विधर्मिओं और अधर्मियों को मिटाने की दुआ माँगा करता है और उनके बदले अपनी सुरक्षा चाहता है. इंसान को दूसरों का शुभ चिन्तक होना चाहिए.

हे वन स्वामी इंद्र 
जब तुमने तीन सौ भैसों का मांस खाया, 
सोम रस से भरे तीन पात्रों को पिया 
एवं वृत्र को मारा, 
तब सब देवों ने सोमरस से पूर्ण तृप्त इंद्र को 
उसी प्रकार बुलाया जैसे मालिक अपने दास को बुलाता है. 
पंचम मंडल सूक्त - 8 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
सभी देवता नशे में मद मस्त हो गए तो आदर सम्मान की मर्यादा खंडित थी. वह बक रहे हैं - - - 
अबे इंद्र !
इधर आ, सुनता नहीं ? 
दूं कंटाप पर एक तान कर !! 
सारे पूज्य देवों को पंडित ने हम्माम में नंगा कर दिया है.
सारे हिदू जन साधारण, इस वेद जाल में फंसे हुए हैं. कहते हैं वेद मन्त्रों को समझना हर एक के बस की बात नहीं. 
आप समझें कि आप कहाँ हैं.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 24 April 2019

सूरह अलक़ - 96 = سورتہ العلق

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह अलक़ - 96 = سورتہ العلق
(इकरा बिस्मरब्बे कल लज़ी ख़लक़ा)   

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.
अल्लाह मुहम्मद से कहता है - - -

"आप क़ुरआन को अपने रब का नाम लेकर पढ़ा कीजिए,
जिस ने पैदा किया ,
जिसने इंसानों को ख़ून के लोथड़े से पैदा किया,
आप क़ुरआन पढ़ा कीजे, और आपका रब बड़ा करीम है,
जिसने क़लम से तअलीम दी,
उन चीजों की तअलीम दी जिनको वह न जानता था,
सचमुच! बेशक!! इंसान हद निकल जाता है,
अपने आपको मुस्तग़ना  देखाता है,
ऐ मुख़ातब! तेरे रब की तरफ़ ही लौटना होगा सबको.
सूरह अलक़ 96  आयत (1 -9 )

ऐ मुखातब ! उस शख़्स का हाल तो बतला,
जो एक बन्दे को मना करता है, जब वह नमाज़ पढ़ता है,
ऐ मुखाताब! भला ये तो बतला कि वह बंदा हिदायत पर है,
या तक़वा का तअलीम देता हो,
ऐ मुखाताब! भला ये तो बतला कि अगर वह शख़्स झुट्लाता हो और रू गरदनी करता हो,
क्या उस शख़्स  को ये ख़बर नहीं कि अल्लाह देख रहा है,
हरगिज़ नहीं, अगर ये शख़्स  बाज़ न आएगा तो हम पुट्ठे पकड़ कर जो दरोग़ और ख़ता में आलूदा हैं, घसीटेंगे. सो ये अपने हम जलसा लोगों को बुला लें. हम भी दोज़ख के प्यादों को बुला लेंगे."
सूरह अलक़ 96  आयत (1 0 -1 9 )

नमाज़ियो!
जब हमल क़ब्ल अज वक़्त गिर जाता है तो वह ख़ून का लोथड़ा जैसा दिखाता है, मुहम्मद का मुशाहिदा यहीं तक है, जो अपने आँख से देखा उसे अल्लाह की हिकमत कहा. वह क़ुरआन  में बार बार दोहराते हैं कि 
"जिसने इंसानों को ख़ून के लोथड़े से पैदा किया''
इंसान कैसे पैदा होता है, इसे मेडिकल साइंस से जानो.
 इंसान को क़लम से तअलीम अल्लाह ने नहीं दी, 
बल्कि इंसान ने इंसान को क़लम से तअलीम दी. 
क़लम इंसान की ईजाद है, अल्लाह की नहीं. 
क़ुदरत ने इंसान को अक़्ल दिया 
कि उसने सेठे को क़लम की शक़्ल दी उसके बाद लोहे को 
और अब कम्प्युटर को शक़्ल दे रहा है. 
मुहम्मद किसी बन्दे को मुस्तग़ना (आज़ाद) देखना पसंद नहीं करते.
सबको अपना असीर देखना चाहते हैं, 
बज़रीए अपने कायम किए अल्लाह के.
ये आयतें पढ़ कर क्या तुम्हारा ख़ून खौल नहीं जाना चाहिए 
कि मुहम्मदी अल्लाह इंसानों की तरह धमकता है 
"अगर ये शख़्स बाज़ न आएगा तो हम पुट्ठे पकड़ कर जो दरोग़ और ख़ता में आलूदा हैं, घसीटेंगे. सो ये अपने हम जलसा लोगों को बुला ले. हम भी दोज़ख के प्यादों को बुला लेंगे."
क्या मालिके-कायनात की ये औक़ात रह गई है?
मुसलमानों अपने जीते जी दूसरा जनम लो. 
मुस्लिम से मोमिन हो जाओ. 
मोमिन का मज़हब वह होगा जो उरियाँ सच्चाई को क़ुबूल करे. 
क़ुदरत का आईनादार होगा और ईमानदार. 
इस्लाम तुम्हारे साथ बे ईमानी है. 
इंसान का बुयादी हक़ है इंसानियत के दायरे में मुस्तग़ना (आज़ाद) होकर जीना, .
*** 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 22 April 2019

सूरह तीन - 95 = سورتہ اللیل



सूरह तीन - 95 = سورتہ اللیل 
(वत्तीने वज्जैतूने वतूरे सीनीना) 

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.
अल्लाह क्या है?
अल्लाह एक वह्म, एक गुमान है.
अल्लाह का कोई भी ऐसा वजूद नहीं जो मज़ाहिब बतलाते हैं.
अल्लाह एक अंदाजा है, एक अंदेशा नुमा खौफ़ है.
अल्लाह एक अक़ीदा है जो विरासत या ज़ेह्नी गुलामी के मार्फ़त मिलता है.
अल्लाह हद्दे ज़ेहन है या अक़ली कमज़ोरी की अलामत है,
अल्लाह अवामी राय है या फिर दिल की चाहत,
कुछ लोगों की राय है कि अल्लाह कोई ताक़त है जिसे सुप्रीम पावर भी कह जाता है?
अल्लाह कुछ भी नहीं है. 
गुनाह और बद आमाली कोई फ़ेल नहीं होता ? 
इन बातों का यक़ीन करके अगर कोई शख़्स मौजूदा 
इंसानी क़द्रों से बग़ावत करता है तो वह 
बद आमाली की किसी हद को क़रीब सकता है.
ऐसे कमज़ोर इंसानों के लिए अल्लाह को मनवाना ज़रूरी है.

वैसे अल्लाह के मानने वाले भी गुनहगारी की तमाम हदें पर कर जाते हैं.
बल्कि अल्लाह के यक़ीन का मुज़ाहिरा करने वाले और अल्लाह की 
अलम बरदारी करने वाले सौ फ़ीसद दर पर्दा बेज़मिर मुजरिम देखे गए हैं.
बेहतर होगा कि बच्चों को दीनी तअलीम देने की बजाय उन्हें  
अख़लाक़यात पढ़ाई जाए, 
वह भी जदीद तरीन इंसानी क़द्रें जो मुस्तकबिल क़रीब में उनके लिए फायदेमंद हों. मुस्तकबिल बईद में इंसानी क़द्रों के बदलते रहने के इमकानात हुवा करते है.
आजका सच कल झूट साबित हो सकता हैं, 
आजकी क़द्रें कल की ना क़दरी बन सकती है.

देखिए कि अल्लाह किन किन चीज़ों की क़समें खाता है और क्यूँ क़समें खाता है. अल्लाह को कंकड़ पत्थर और कुत्ता बिल्ली की क़सम खाना ही बाक़ी बचता है - - -

"क़सम है इन्जीर की,
और ज़ैतून की,
और तूर ए सीनैन  की,
और उस अमन वाले शहर की,
कि हमने इंसानों को बहुत ख़ूब सूरत साँचे में ढाला है.
फिर हम इसको पस्ती की हालत वालों से भी पस्त कर देते हैं.
लेकिन जो लोग ईमान ले आए और अच्छे काम किए तो 
उनके लिए इस कद्र सवाब है जो कभी मुन्क़ता न होगा.
फिर कौन सी चीज़ तुझे क़यामत के लिए मुनकिर बना रही है?
क्या अल्लाह सब हाकिमों से बड़ा हाकिम नहीं है?"
सूरह तीन आयत (1 -8 )

नमाज़ियो!
मुहम्मदी अल्लाह और मुहम्मदी शैतान में बहुत सी यकसानियत है. 
दोनों हर जगह मौजूद रहते है, दोनों इंसानों को गुमराह करते हैं.
मुसलामानों का ये मुहाविरा बन कर रह गया है कि 
"जिसको अल्लाह गुमराह करे उसको कोई राह पर नहीं ला सकता"
आपने देखा होगा कि क़ुरआन में सैकड़ों बार ये बात है कि वह अपने बन्दों को गूंगा, बहरा और अँधा बना देता है.
इस सूरह में भी यही काम अल्लाह करता है,
कि "हमने इंसानों को बहुत ख़ूब सूरत साँचे में ढ़ाला है."
"फिर हम इसको पस्ती की हालत वालों से भी पस्त कर देते हैं."
गोया इंसानों पर अल्लाह के बाप का राज है.
अगर इंसान को अल्लाह ने इतना कमज़ोर और अपना मातेहत पैदा किया है तो उस अल्लाह की ऐसी की तैसी.
इससे कनारा कशी अख़्तियार कर लो. 
बस अपने दिमाग़ की खिड़की खोलने की ज़रुरत है.
कहीं जन्नत के लालची तो नहीं हो?
या फिर दोज़ख की आग से हवा खिसकती है?
इन दोनों बातों से परे, 
मर्द मोमिन बनो, 
इस्लाम को तर्क करके.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 21 April 2019

खेद है कि यह वेद है (68)



खेद  है  कि  यह  वेद  है  (68)
अग्नि ने अपने मित्र इंद्र के लिए तीन सौ भैंसों को पकाया था. 
इंद्र ने वृत्र को मारने के लिए मनु के तीन पात्रों में भरे सोम रस को एक साथ ही पी लिया था.
 पंचम मंडल सूक्त - 7 

हे धन स्वामी इंद्र ! 
जब तुमने तीन सौ भैसों का मांस खाया, 
सोम रस से भरे तीन पात्रों को पिया 
एवं वृत्र को मारा, तब सब देवों ने सोमरस से पूर्ण तृप्त इंद्र को उसी प्रकार बुलाया जैसे मालिक अपने नौकर को बुलाता है. 
* मांसाहार भगवा भगवांस - - -

1-अग्नि ने अपने मित्र इंद्र के लिए 
तीन सौ भैंसों को पकाया था. 
इंद्र ने वृत्र को मारने के लिए मनु के 
तीन पात्रों में भरे सोम रस को एक साथ ही पी लिया था.
 पंचम मंडल सूक्त - 7 

2-हे धन स्वामी इंद्र ! - - -
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

अग्नि देव ने तीन सौ भैसों को किस कढाई में पकाया होगा?
और इंद्र ने कितनी बड़ी परात में तीन सौ भैंसों को भक्षा होगा ? 
यह दोनों मांसाहारी रहे होंगे बल्कि महा मान्साहारी, 
जिनके पुजारी शाकाहारी क्यों हो गए? 
इनको झूट बोलने में कभी कोई लज्जा नहीं आती ? 
इन मन्त्रों को लाउड स्पीकर पर बड़ी बेशर्मी के साथ उच्चारित किया जाता है. इस लिए कि संस्कृत भाषा में होते हैं 
जैसे कुरआन अरबी भाषा में होता है. 
दोनों हिन्दू और मुसलमान इन पंडों और मुल्लों के शिकार हैं.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 19 April 2019

सूरह अलम नशरा - 94 = سورتہ الم نشرح

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह अलम नशरा - 94 = سورتہ الم نشرح
(अलम नशरह लका सद्रका)

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

दुन्या की सब से बड़ी ताक़त कोई है, 
यह बात सभी मानते हैं चाहे वह आस्तिक हो या नास्तिक. 
उसकी मान्यता सर्व श्रेष्ट है. 
उसका सम्मान सभी करते हैं, 
वह किसी को नहीं सेठ्ता. 
एक मुहम्मद ऐसे हैं जो उस सर्व शक्ति मान से अपनी इज्ज़त कराते हैं. 
वह ताक़त (अल्लाह) मुहम्मद को सम्मान जनक शब्दों से ही संबोधित करता है.
वह मुहम्मद को आप जनाब करके ही बात करता है. 
इसका असर ये है की मुसलमान मुहम्मद को मान सम्मान अल्लाह से ज़्यादः देते है, वह इस बात को मानें या न मानें, मगर लाशूरी तौर पर उनके अमल बतलाते हैं,  
वह मुहम्मद को अल्लाह के मुक़ाबिले में ज़्यादः मानते है. 
मुहम्मद की शान में नातिया मुशायरे हर रोज़ दुन्या के कोने कोनों में हुवा करते है, मगर अल्लाह की शान में "हम्दिया" मुशायरा कहीं नहीं सुना गया. अल्लाह की झलक तो संतों और सूफ़ियों की हदों में देखने को मिलती है. देखिए कि अल्लाह अपने आदरणीय मुहम्मद को कैसे लिहाज़ के साथ मुख़ातिब करता है - - -
"क्या हमने आपकी ख़ातिर आपका सीना कुशादा नहीं कर दिया,
और हमने आप पर से आपका बोझ उतार दिया,
जिसने आपकी कमर तोड़ रक्खी थी,
और हमने आप की ख़ातिर आप की आवाज़ बुलंद किया,
सो बेशक मौजूदा मुश्किलात के साथ आसानी होने वाली है,
तो जब आप फ़ारिग हो जाया करेंतो मेहनत करें,
और अपने रब की तरफ़ तवज्जो दें."
सूरह इन्शिराह 94 - आयत(1 -8 )

क्या क्या न सहे हमने सितम आप की ख़ातिर

नमाज़ियो!
धर्म और मज़हब का सबसे बड़ा बैर है नास्तिकों से 
जिन्हें इस्लाम दहेरया और मुल्हिद कहता है. 
वो इनके ख़ुदाओं को न मानने वालों को 
अपनी गालियों का दंड भोगी और मुस्तहक़ समझते हैं. 
कोई धर्म भी नास्तिक को लम्हा भर नहीं झेल पाता. 
यह कमज़र्फ और ख़ुद में बने मुजरिम, समझते हैं कि 
ख़ुदा को न मानने वाला कोई भी पाप कर सकता है, 
क्यूंकि इनको किसी ताक़त का डर नहीं. 
ये कूप मंडूक नहीं जानते कि कोई शख़्सियत 
नास्तिक बन्ने से पहले आस्तिक होती है 
और तमाम धर्मों का छंद विच्छेद करने के बाद ही क़याम पाती है. 
वह इनकी खरी बातों को जो फ़ितरी तकाज़ा होता हैं, को ग्रहण कर लेता है 
और थोथे कचरे को कूड़ेदान में डाल देता है. 
यही थोथी मान्यताएं होती हैं धर्मों की गिज़ा. 
नास्तिकता है धर्मो की कसौटी. 
पक्के धर्मी कच्चे इंसान होते हैं. 
नास्तिकता व्यक्तित्व का शिखर विन्दु है.
एक नास्तिक के आगे बड़े बड़े धर्म धुरंदर, 
आलिम फ़ाज़िल, ज्ञानी ध्यानी आंधी के आगे न टिक पाने वाले मच्छर बन जाते हैं. 
पिछले दिनों कुछ टिकिया चोर धर्मान्ध्र नेताओं ने एलक्शन कमीशन 
श्री लिंग दोह पर इलज़ाम लगाया कि वह क्रिश्चेन हैं 
इस लिए सोनिया गाँधी का ख़ास लिहाज़ रखते हैं. 
जवाब में श्री लिंगदोह ने कहा था,
"मैं क्रिश्चेन नहीं एक नास्तिक हूँ 
और इलज़ाम लगाने वाले नास्तिक का मतलब भी नहीं जानते." 
बाद में मैंने अखबार में पढ़ा कि आलमी रिकार्ड में 
"आली जनाब लिंगदोह, दुन्या के बरतर तरीन इंसानों में 
पच्चीसवें नंबर पर शुमार किए गए हैं. 
ऐसे होते हैं नास्तिक.
फिर मैं दोहरा रहा हूँ कि दुन्या की ज़ालिम और जाबिर तरीन हस्तियाँ 
धर्म और मज़हब के कोख से ही जन्मी है. 
जितना खूनी नदियाँ इन धर्म और मज़ाहब ने बहाई हैं, 
उतना किसी दूसरी तहरीक ने नहीं. 
और इसके सरताज हैं मुहम्मद अरबी 
जिनकी इन थोथी आयतों में तुम उलझे हुए हो.
जागो मुसलामानों जागो.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 18 April 2019

खेद है कि यह वेद है (66)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (66)
हे अग्नि ! 
तुम हमारे सामने आकर अनुकूल एवं कर्म साधक बनो. 
जिस प्रकार मित्र के सामने मित्र एवं संतान के प्रति माता पिता होते हैं. 
मनुष्य मनुष्य के द्रोही बने हैं. 
तुम हमारे विरोधी शत्रुओं को भस्म करो. 
हे अग्नि हमें हराने के इच्छुक शत्रुओं के बाधक बनो. 
हमारे शत्रु तुमको द्रव्य नहीं देते. 
उनकी इच्छा नष्ट करो. 
हे निवास देने वाले एवं कर्म ज्ञाता अग्नि ! 
यज्ञ कर्मों में मन न लगाने वालों को दुखी करो 
क्योकि तुम्हारी किरणें जरा रहित हैं.
त्रतीय मंडल  सूक्त 1 

इन वेद मन्त्रों से ज़ाहिर होता है कि कुंठित वर्ग अग्नि से आग्रह कर रहा है 
कि वह उसके दुश्मनो का नाश करे. 
कौन थे इन मुफ्त खोरों के दुश्मन ? 
वही जो इनको दान दक्षिणा नहीं देते थे, न इनको टेते  थे. 
यही प्रवृति आज भी बनी हुई है. 
आज भी इस वर्ग को गवारा नहीं कि कोई इनसे आगे बढे. 
मंदिरों और मूर्तियों को गंगा जल से धोते हैं, 
यदि शुद्र या दलिद्र बना वर्ग इसमें प्रवेश कर जाए.

**
हे अग्नि ! जो यजमान स्रुज उठाकर तुम्हें प्रज्वलित करता है  
एवं दिन में तीन बार तुम्हें हव्य अन्न देता है, 
हे जातवेद ! 
वह तुम्हें संतुष्ट करने वाले ईंधन आदि से बढ़ते हुए 
तुम्हारे तेज को जानता हुवा 
धन द्वारा शत्रुओं को पूरी तरह हरावे. 
चतुर्थ मंडल सूक्त 12 -1 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

आज के युग में इन वेद मन्त्रों के शब्द गुत्थी को सुल्जना ही मुहाल है, 
इनके अर्थ मे जाना समय की बर्बादी. 
इन्हें पेशेवर पंडित और पुजारियों की सन्मानित भिक्षा स्रोत कहा जा सकता है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 17 April 2019

सूरह ज़ुहा 93 = سورتہ ال ظحی

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह ज़ुहा 93 = سورتہ ال ظحی
( वज़ज़ुहा वल्लैले इज़ा सज़ा) 
यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

"क़सम है दिन की रौशनी की,
और रात की जब वह क़रार पकड़े,
कि आपके परवर दिगार ने न आपको छोड़ा न दुश्मनी की,
और आख़िरत आपके लिए दुन्या से बेहतर है.
अनक़रीब अल्लाह तअला आपको देगा, सो आप ख़ुश हो जाएँगे.
क्या अल्लाह ने आपको यतीम नहीं पाया, फिर ठिकाना दिया और अल्लाह ने आपको बे ख़बर पाया, फिर रास्ता बतलाया और अल्लाह ने आपको नादर पाया.
और मालदार बनाया,
तो आप यतीम पर सख़्ती न कीजिए,
और सायल को मत झिड़कइए,
और अपने रब के इनआमात का का तज़किरा करते रहा कीजिए."    .
सूरह जुहा 9 3 आयत (1 -1 1 )

मुहम्मद बीमार हुए, तीन रातें इबादत न कर सके, बात उनके माहौल में फ़ैल गई. किसी काफ़िर ने इस पर यूँ चुटकी लिया,
"मालूम होता है तुम्हारे शैतान ने तुम्हें छोड़ दिया है."
मुहम्मद पर बड़ा लतीफ़ तंज़ था, जिस हस्ती को वह अपना अल्लाह मुश्तहिर करते थे, काफ़िर उसे उनका शैतान कहा करते थे. इसी के जवाब में ख़ुद साख़ता रसूल की ये पिलपिली आयतें हैं.
नमाज़ियो !
इन आसमानी आयतों को बार बार दोहराओ. 
इसमें कोई आसमानी सच नज़र आता है क्या? 
खिस्याई हुई बातें हैं, मुँह जिलाने वाली.
यहाँ मुहम्मद ख़ुद कह रहे हैं कि वह मालदार हो गए हैं. 
जिनको इनके चापलूस आलिमों ने ज़िन्दगी की मुश्किल तरीन हालत में जीना, इनकी हुलिया गढ़ रखा है. 
ये बेशर्म बड़ी जिसारत से लिखते है कि मरने के बाद मुहम्मद के पास चाँद दीनार थे. मुहम्मद के लिए दस्यों सुबूत हैं कि वह अपने फ़ायदे को हमेशा पेश ए नज़र रखा. तुम्हारे रसूल औसत दर्जे के एक अच्छे इंसान भी नहीं थे. 
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Tuesday 16 April 2019

खेद है कि यह वेद है (64)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (64)
परम सेवनीय अग्नि की उत्तम कृपा मनुष्यों में उसी प्रकार परम पूजनीय है , 
जिस प्रकार दूध की कामना करने वाले देवों के लिए 
गाय का शुद्ध, तरल एवं गरम दूध 
अथवा गाय मांगने वाले मनुष्य को दुधारू गाय.
चतुर्थ मंडल सूक्त 6 

वेद कर्मी सदा ही लोभ से ओत-प्रोत रहते हैं. 
इनमें मर्यादा की कोई गरिमा कहीं नज़र नहीं आती. 
इनके देव भी लोभी और 
परम देव भी लोभी , 
एक कटोरा दूध के लिए इन देवों की राल टपकती रहती है.
**
महान अग्नि प्रातःकाल से प्रज्ज्वलित होकर ज्वाला के रूप में रहते हैं 
एवं अन्धकार से निकल कर अपने तेज के द्वारा यज्ञ स्थल पर जाते हैं. 
शोभन ज्वालाओं वाले एवं यज्ञ के लिए उत्पन्न अग्नि अपने अन्धकार नाशक तेज के द्वारा सभी यज्ञ गृहों को पूर्ण करते है.
दसवाँ मंडल सूक्त 1
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

हिन्दू मानव डरपोक हो गया , जिसकी बड़ी वजेह है यह वेद पंक्तियाँ. मानव समाज की बड़ी दुश्मन है आग जो उसका सर्व नाश करती है. कहते हैं आग की तपिश वस्तु को शुद्ध कर देती है, मेरा मानना यह है कि यह शुद्धता और अशुद्धता, सब को समाप्त  कर देती है. वेद ने सब से बड़ा देव आग को माना है, हर दूसरा मन्त्र अग्नि देव को समर्पित है. डरपोक हिन्दू हज़ार साल तक इन्ही वेदों के कारण ग़ुलाम रहा.  

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Monday 15 April 2019

सूरह लैल - 92 = سورتہ اللیل

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह लैल - 92 =  سورتہ اللیل
(वललैलेइज़ा यगषा) 

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.
जाहिले मुतलक़ मुहम्मदी अल्लाह क्या कहता है देखो - - -

"क़सम है रात की जब वह छुपाले,
दिन की जब वह रौशन हो जाए,
और उसकी जिस ने नर और मादा पैदा किया,
कि बेशक तुम्हारी कोशिशें मुख़्तलिफ़ हैं,.
सो जिसने दिया और डरा,
और अच्छी बात को सच्चा समझा,
तो हम उसको राहत की चीज़ के लिए सामान देंगे,
और जिसने बोख्ल किया और बजाए अल्लाह के डरने के, 
इससे बे परवाई अख़्तियार की और अच्छी बात को झुटलाया,
तो हम इसे तकलीफ़ की चीज़ के लिए सामान देंगे."
सूरह लैल  92  आयत (1 -1 0 )

"और इसका माल इसके कुछ काम न आएगा,
जब वह बर्बाद होने लगेगा,
वाकई हमारे जिम्मे राह को बतला देना है,
औए हमारे ही कब्जे में है,
आख़िरत और दुन्या, तो तुमको एक भड़कती हुई आग से डरा चुका हूँ,
इसमें वही बद बख़्त दाख़िल होगा जिसने झुटलाया और रूगरदानी की,
और इससे ऐसा शख़्स दूर रखा जाएगा जो बड़ा परहेज़गार है,
जो अपना माल इस लिए देता है कि पाक हो जाए,
और बजुज़ अपने परवर दिगार की रज़ा जोई के, इसके ज़िम्मे किसी का एहसान न था कि इसका बदला उतारना हो .
और वह शख़्स  अनक़रीब ख़ुश हो जाएगा."
सूरह लैल  92  आयत (1 1 -2 1 )

नमाजियों!
हिम्मत करके सच्चाई का सामना करो. 
तुमको तुम्हारे अल्लाह का बना रसूल वरग़ला रहा है. 
अल्लाह का मुखौटा पहने हुए, वह तुम्हें धमका रहा है कि उसको माल दो. 
वह ईमान लाए हुए मुसलामानों से, उनकी हैसियत के मुताबिक़ 
टेक्स वसूल किया करता था. इस बात की गवाही ये क़ुरआनी आयतें हैं. 
ये सूरह मक्का में गढ़ी गई हैं जब कि वह इक़्तदार पर नहीं था. 
मदीने में मक़ाम मिलते ही भूख खुल गई थी.
मुहम्मद ने कोई समाजी, फ़लाही, ख़ैराती या तालीमी इदारा क़ायम नहीं कर रखा था कि वसूली हुई रक़म उसमे जा सके. 
मुहम्मद के चन्द बुरे दिनों को ही लेकर आलिमों ने इनकी 
ज़िन्दगी का नक़्शा खींचा है और उसी का ढिंढोरा पीटा है. 
मुहम्मद के तमाम ऐब और ख़ामियों की इन ज़मीर फ़रोशों ने पर्दा पोशी की है. 
बनी नुज़ैर की लूटी हुई तमाम दौलत को मुहम्मद ने हड़प के अपने नौ बीवियों और उनके घरों के लिए वक़्फ़ कर लिया था. और उनके बाग़ों और खेतियों की मालगुज़ारी उनके हक़ में कर दिया था. जंग में शरीक होने वाले अंसारी हाथ मल कर रह गए थे. हर जंगी लूट में माल ग़नीमत में 2 0 % मुहम्मद का हुआ करता था.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Sunday 14 April 2019

खेद है कि यह वेद है (62)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (62)
हे सोम !
तुम्हें इंद्र के पीने के लिए निचोड़ा गया है.
तुम अतिशय मादक
और मादक धारा से निचोड़ो
नवाँ मंडल सूक्त 1

सोम के कई अर्थ हैं, मगर वेदों में इसके अर्थ शराब के सिवा और कुछ नहीं. चतुराई से वेद ज्ञाता अवाम को बहकते हैं कि सोम कोई और पवित्र चीज़ होती है. शराब सिर्फ इस्लाम में हराम है बाक़ी सभी धर्मों में पवित्र. ईसा शराब के नशे में हर समय टुन्न रहते. इंद्र भाब्वन भी सोम रस के बिना टुन्न कैसे रह सकते है.
अतिशय मादक दारू उनको हव्य में दी जाती तभी तो सोलह हज़ार पत्नियों को रखते होंगे.
वेद निर्माता पंडित जी शराब के नशे में डूबे लबरेज़ पैमाने से वार्तालाप कर रहे हैं. पैमाने को मुखातिब कर रहे हैं और उसको हिदायत दे रहे है. पैमाने को क्या पता कि उसको कौन पिएगा, वह आगाह कर रहे हैं कि खबर दार तुमको राजा इन्दर ग्रहण करेगे. तुमको और नशीला होना पड़ेगा. नशे की लहर से निचड़ो.
कुछ लोग मुझे सलाह देते हैं कि वेद को समझने के किए तुम्हें राजा इन्दर की तरह टुन्न होना पड़ेगा वरना वेद तुमको ख़ाक समझ आएगा.
यही मशविरा मुस्लिम ओलिमा भी देते हैं कि क़ुरान समझने के लिए तुम्हें दिल और दिमाग़ चाहिए.
वेद कोई पुण्य पथ नहीं, वेदना है समाज के लिए.

*
हे मित्र स्तोताओ !
तुन इंद्र के अतरिक्त किसी की स्तुति मत करो.
तुम क्षीण मत बनो.
सोम रस निचुड़ जाने पर एकत्र होकर
अभिलाषा पूर्वक इंद्र की स्तुति करते हुए बार बार स्तोत्र बोलो
आठवाँ मंडल सूक्त 1
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

वेद में सैकड़ों देव है जिनकी स्तुति वेद कराता है. यहाँ पर सिर्फ इंद्र देव के अतरिक्त किसी दूसरे की स्तुति करने से रोकता है ?
भक्त गण कान बंद करके मन्त्र को सुनते हैं और मंत्रमुघ्त होते हैं.
शूद्रों को वेद मन्त्र सुनना वर्जित है , कारण ? सुन लें तो उनके कानों में पिघला हुवा शीशा पिलाने का हुक्म है. यह इस लिए कि अनपढ़ शूद्र इन मंत्रो को सुन कर पंडितों की मूर्खता पर क़हक़हे लगा सकता है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Friday 12 April 2019

सूरह शम्स - 91 = سورتہ الشمس

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह शम्स - 91 = سورتہ الشمس
(वश्शमसे वज़ूहाहा)  

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

इस धरती पर मुख़तलिफ़ वक़्तों में समाज में कुछ न कुछ वाक़ेए 
और हादसे हुवा करते है जिसे नस्लें दो तीन पुश्तों तक याद रखती हैं. 
इनको अगर मुरत्तब किया जाए तो लाखों टुकड़े ज़मीन के ऐसे हैं 
जो करोरों वाक़ेए से ज़मीन भरे हुए है. 
इसको याद रखना और बरसों तक दोहराना बेवक़ूफ़ी की अलामत है. 
मगर मुसलमान इन बातों को याद करने की इबादत करते हैं. 
बहुत से ऐसे मामूली वाक़ेए क़ुरआन में है जिनको नमाज़ों में पढ़ा जाता है. 
पिछली सूरह में था कि आग तापते हुए मुसलामानों और मफ़रूज़ा काफ़िरों में कुछ कहा-सुनी हो गई, बात मुहम्मद के कान तक पहुँची, बस वह मामूली सा वाक़ेआ क़ुरआनी आयत बन गया और मुसलमान वजू करके, नियत बाँध के, उसको रटा करते है. ऐसा ही एन वाक़ेआ अबू लहब का है कि जब मुहम्मद ने अपने क़बीले को बुला कर अपनी पैग़म्बरी का एलान किया तो मुहम्मद के चचा अबी लहब, 
पहले शख़्स थे जिन्होंने कहा, 

"तेरे हाथ माटी मिले, क्या इसी लिए तूने हमें बुलाया था?" 
बस ये बात क़ुरआन की एक सूरह बन गई जिसको मुसलमान सदियों से गा रहे हैं, "तब्बत यदा अबी लह्बिवं - - -"

"क़सम है सूरज की और उसके रौशनी की,
और चाँद की, जब वह सूरज से पीछे आए,
और दिन की, जब वह इसको ख़ूब रौशन कर दे,
और रात की जब वह इसको छुपा ले,
और आसमान की और उसकी. जिसने इसको बनाया.
और ज़मीन कीऔर उसकी. जिस ने इसको बिछाया.
और जान की और उसकी, जिसने इसको दुरुस्त बनाया,
फिर इसकी बद किरदारी की और परहेज़ गारी की, जिसने इसको अल्क़ा किया,
यक़ीनन वह इसकी मुराद को पहुँचा जिस ने इसे पाक कर लिया ,
और नामुराद वह हुवा जिसने इसको दबा दिया."
सूरह शम्स 91 आयत (1 -1 0 )

"क़ौम सुमूद ने अपनी शरारत के सबब तक़ज़ीब की,
जब कि इस क़ौम में जो सबसे ज़्यादः बद बख़्त था,
वह उठ खड़ा हुआ तो उन  लोगों से अल्लाह के पैग़म्बर ने फ़रमाया कि अल्लाह की ऊँटनी से और इसके पानी पीने से ख़बरदार रहना,
सो उन्हों ने पैग़म्बर को झुटला दिया, फिर इस ऊँटनी को मार डाला.
तो इनके परवर दिगार ने इनको इनके गुनाह के सबब इन पर हलाक़त नाज़िल फ़रमाई."
सूरह शम्स 91 आयत (1 1 -1 5 )
नमाज़ियो !
अल्लाह चाँद की क़सम खा रहा है, जबकि वह सूरज के पीछे हो. 
इसी तरह वह दिन की क़सम खा रहा है जब कि वह सूरज को ख़ूब रौशन करदे?
गोया तुम्हारा अल्लाह ये भी नहीं जनता कि सूरज निकलने पर दिन रौशन हो जाता है. वह तो जनता है कि दिन जब निकलता है तो सूरज को रौशन करता है.
इसी तरह रात को अल्लाह एक पर्दा समझता है जिसके आड़ में सूरज जाकर छिप जाता है.
ठीक है हज़ारों साल पहले क़बीलों में इतनी समझ नहीं आई थी, 
मगर सवाल ये है कि क्या अल्लाह भी इंसानों की तरह ही इर्तेकाई मराहिल में था?
मगर नहीं! अल्लाह पहले भी यही था और आगे भी यही रहेगा. 
ईश या ख़ुदा अगर है, कभी जाहिल या बेवक़ूफ़ तो हो ही नहीं सकता.
इस लिए मानो कि क़ुरआन किसी अल्लाह का कलाम तो हो ही नहीं सकता. 
ये उम्मी मुहम्मद की ज़ेह्नी गाथा है.
क़ुरआन में बार बार एक आवारा ऊँटनी का ज़िक्र है. 
कहते हैं कि अल्लाह ने बन्दों का चैलेंज क़ुबूल करते हुए पत्थर के एह टुकड़े से एक ऊँटनी पैदा कर दिया. बादशाह ने इसे अल्लाह की ऊँटनी क़रार देकर आज़ाद कर दिया था जिसको लोगों ने मार डाला और अल्लाह के क़हर के शिकार हुए.
ये किंवदंती उस वक़्त की है जब इंसान भी ऊंटों के साथ जंगल में रहता था, इस तरह की कहानी के साथ साथ.
मुहम्मद उस ऊँटनी को पूरे क़ुरआन में जा बजा चराते फिरते हैं.
 *** 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Thursday 11 April 2019

खेद है कि यह वेद है (60)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (60)
यज्ञ के नेता ऋत्विज, दूर से दिखाई देने वाले, गृहपति एवं गति शाली अग्नि को हाथों की गति एवं उँगलियों की सहायता से अरणि से उत्पन्न करते हैं,
सातवाँ मंडल सूक्त 1

नेता ऋत्विज कौन हैं और गृहपति कौन हैं ? 
कहीं यह अग्नि देव को मिली उपाधियाँ तो नहीं ?? 
जो भी हों इस युग में इनकी कोई उपयोगता नहीं. 
 हाथों की गति एवं उँगलियों की सहायता से अरणि (मथना) क्या उत्पन्न करते है?
अधूरी बात कहके पंडित जी महिमा मंडित होते है. 
इसी लिए वेदों का मंत्रोच्चार होता है , समझने की ज़हमत न करें.
ठीक ऐसा ही क़ुरान है जो तिलावत (पाठ) के लिए होता है ,
इसे समझने की इजाज़त मुल्ला कभी नहीं देता .
**

हे अग्नि ! तुम देवों में श्रेष्ट हो. 
उनका मान तुम से संबध है 
हे दर्शनीय ! तुम ही इस यज्ञ में देवों को बुलाने वाले हो. 
हे कामवर्षी ! सभी शत्रुओं को पराजित करने के लिए तुम हमें अद्वतीय शक्ति दो.
छठां मंडल सूक्त 1
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

कुरआन के अनुसार जो अग्नि काफिरों का जलाती है वही अग्नि काफिरों (हिन्दुओं) की पूजनीय बनी हुई है. 
धर्म व् मज़हब के तमाशे देखिए.
वेदों इन्हें देवों में श्रेष्ट मानते हैं तो कुरआन में इन्हें बद तरीन ?
आग वाक़ई दर्शनीय है, दूर से दिखाई देती है. 
बाक़ी देव अदर्शनीय ही होते हैं, 
धर्म ग्रन्थ उनका दर्शन नहीं करा सकते, उनके नाम पर ठगी कर सकते हैं.
कामवर्षी ? इन्दर देव ही हो सकते है.
ब्रह्म चारियों और योग्यों को चाहिए कि वह इन्दर देव की उपासना करे, 
उनका रोग शीग्र दूर हो जाएगा. जिंस ए लतीफ़ से आशना हो जाएँगे.
मठाधीश मैदान ए जंग में कभी भी नहीं आते बस देवों को बुलाया करते है.
महमूद गज़नवी 17 लुटेरों को साथ लेकर आया और सोम नाथ को लूट कर ले गया, वहां मौजूद सैकड़ों पुजारी ज़मीन पर औंधे मुंह पड़े सोमदेव को सहायता के लिए बुलाते रहे.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

Wednesday 10 April 2019

सूरह बलद - 90 = سورتہ البلد

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह बलद - 90 = سورتہ البلد
(लअ उक्सिमो बेहाज़िल बलदे)

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

भारत की मरकजी सरकार और रियासती हुकूमतें भले ही मुस्लिम दुश्मन न हों, मगर यह मुस्लिम दोस्त भी नहीं. यह इलाक़ाई और क़बीलाई तबकों की तरह मुसलमानों को भी छूट दिए हुए है कि मुसलमान सैकड़ों साल पुराने वहमों को ढ़ोते रहें. इन्हें शरई क़ानून के पालन की इजाज़त है, जो इंसानियत सोज़ है. 
पेश इमामों को और मुअज़ज़िनों को सरकार तनख़्वाह  मुक़र्रर किए हुए है 
कि वह मुसलामानों को पंज वक्ता ख़ुराफ़ात पढ़ाते रहे. 
मदरसों को तअव्वुन करती हैं कि वह हर साल निकम्मे और बेरोज़गार पैदा करते रहें. मुसलमानों को नहीं मालूम कि उनका सच्चा हमदर्द कौन है. 
वह क़ुरआन को ही अपना राहनुमा समझते हैं जोकि दर असल उनके लिए ज़हर है. इसका क़ौमी और सियासी रहनुमा कोई नहीं है. 
इसे ख़ुद आँखें खोलना होगा, तर्क इस्लाम करके 
मर्द ए सालह यानी मोमिन बनना होगा.     

"मैं क़सम खाता हूँ इस शहर की,
और आपको इस शहर में लड़ाई हलाल होने वाली है,
और क़सम है बाप की और औलाद की,
कि हमने इंसान को बड़ी मशक़्क़त में पैदा किया है,
क्या वह ख़याल करता है कि इस पर किसी का बस न चलेगा,
कहता है हमने इतना वाफ़र मॉल ख़र्च कर डाला, क्या वह ये ख़याल करता है कि उसको किसी ने देखा नहीं,
क्या हमने उसको दो आँखें ,
और ज़बान और दो होंट नहीं दिए,
और हमने उसको दोनों रास्ते बतलाए,
सो वह शख़्स  घाटी से होकर निकला,
और आपको मालूम है कि घाटी क्या है,
और वह है किसी शख़्स  की गर्दन को गुलामी से छुड़ा देना है,
या खाना खिलाना फ़ाक़ा के दिनों में किसी यतीम रिश्तेदार को,.
या किसी ख़ाक नशीन रिश्ते दार को.
सूरह बलद आयत (1-1 6 )

"फिर इन लोगों में से न हुवा जो ईमान लाए और एक दूसरे को फ़ह्माइश की, पाबन्दी की और एक दूसरे को तरह्हुम की फ़ह्माइश की, यही लोग दाहने वाले हैं,
और जो लोग हमारी आयातों के मुनकिर हैं वह बाएँ वाले हैं,
इन पर आग मुहीत होगी जिनको बन्द कर दिया जाएगा.
सूरह बलद आयत (1 7-2 0 )

नमाज़ियो !
देखिए कि अल्लाह साफ़ साफ़ अपने बाप और अपने औलाद की क़सम खा रहा है, जैसे कि मुहम्मद अपने माँ बाप को दूसरों पर कुर्बान किया करते थे, वैसे है तो ये उनकी ही आदतन क़समें 
जिनको कि बे ख़याली में अल्लाह की तरफ़ से खा गए. 
हाँ, तुमको समझने की ज़रुरत है, इस बात को कि क़ुरआन किसी अल्लाह का कलाम नहीं बल्कि मुहम्मद की बकवास है.
अल्लाह कहता है कि उसने इंसान को बड़ी मशक़्क़त से पैदा किया. 
है ना ये सरासर झूट कि इसके पहले मुहम्मद ने कहा था कि अल्लाह को कोई काम मुश्किल नहीं बस उसको कहना पड़ता है "कुन" यानि होजा, और वह हो जाता है. 
है न दोहरी बात यानी क़ुरआनी तज़ाद अर्थात विरोधाभास. 
किसी ख़र्राच के ख़र्च पर मुहम्मद का कलेजा फट रहा है, 
कि शायद उसने अल्लाह का कमीशन नहीं निकाला. 
घाटी के घाटे और मुनाफ़े में अल्लाह क्या कह रहा है, सर धुनते रहो. 
मुहम्मद के गिर्द कोई भी मामूली वाक़ेया क़ुरआन की आयत बना हुवा है, 
जिसको तुम सुब्ह ओ शाम घोटा करते हो.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान